27 नक्षत्रों में से चित्रा नक्षत्र 14वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र में 1 प्रधान तारा होता है जिसकी आकृति मोती के समान दिखाई पड़ती है. यह चमकता हुआ तारा होता है. इस नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता विश्वकर्मा हैं. इस नक्षत्र के स्वामी मंगल है, तथा यह नक्षत्र बुध ग्रह कि राशि में आता है. चित्रा शब्द से उज्जवल चितकबरा, रुचिकर या अदभुत अर्थ को दर्शाता है. कुछ विद्वान इसका संबंध चित से भी मानते हैं.
चैत्र माह की पूर्णिमा को चंद्रमा चैत्र नक्षत्र पर गोचर करता है. चित्रा नक्षत्र के नक्षत्रपति मंगल हैं अत: इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मंगल ग्रह से प्रभावित होते है. चित्रा नक्षत्र का व्यक्ति साहस, ऊर्जा, और उग्र स्वभाव का हो सकता है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति में उतम वक्ता बनने के गुण विद्यमान होते है. वह पत्रकार बन सम्मान और धन प्राप्त कर सकता है. बुद्धि और बल का यह मेल व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में सफल होने का सामर्थ्य देता है.
चित्रा नक्षत्र का व्यक्ति दूसरों के साथ मेल-मिलाप से रहने का प्रयास करते है. आप स्वयं किसी भी संबंध को तोड़ना नहीं चाहते है. संबंधों की अहमियत समझने की प्रवृति इनके संबंधों को लम्बी अवधि तक बनाये रखती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति साह्स और जोखिम से काम लेने के साथ-साथ ये आत्मविश्वास के साथ काम करना पसंद करते है. जीवन के कठिन समय में भी ये हौंसला बनाये रखते है.
इनके द्वारा किए गये सभी कार्यो में व्यावहारिकता का भाव पाया जाता है. साथ ही इनके द्वारा लिए गये निर्णयों में भी व्यावहारिकता होती है. यह भाव इन्हें दूसरों से आगे रखने में सहयोग करता है. मंगल का प्रभाव नक्षत्र पर होने के कारण इन्हें शीघ्र क्रोध आ जाता है. इनके क्रोध को शान्त होने में समय लगता है. परन्तु जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करते समय व्यक्ति समझ-बुझ से काम लेता है. इस नक्षत्र का व्यक्ति अपने सभी कार्यो को समय पर पूरा करना चाहता है. पुरुषार्थ से काम लेना इनकी सफलता की चाबी है.
चित्रा नक्षत्र का एक महत्वपूर्ण गुण है आशावादी बने रहना है. इस गुण से इन्हें जीवन में आगे बढने में सहयोग मिलता है. अपने इसी गुण के कारण ये मेहनत करना बन्द नहीं करते है. इस नक्षत्र के व्यक्ति को अपने वैवाहिक जीवन में सुख और सहयोग दोनों की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों को अपने मित्रों और रिश्तेदारों से पूर्ण सहयोग मिलता है.
परिवार में माता-पिता के साथ विशेष स्नेह रखता है, भाई बंधुओं के प्रति भी इनका व्यवहार प्रेम से भरा होता है. पर इनमें कुछ शंका करने की प्रवृत्ति भी होती है. वह दूसरों के आचरण पर बहुत जल्दी विश्वास नहीं करते हैं. जातक को अपने पिता से प्रेम और लाभ की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र के जातक के पिता पृथक रुप से जीवन व्यतीत कर सकते हैं. जातक को माता से भी लगाव बहुत होता है, माता से भी जातक को लाभ प्राप्त होता है. इस नक्षत्र के प्रभाव स्वरुप जातक निवास स्थान से दूर रह कर जीवन व्यतीत कर सकता है, अपने जन्म स्थान पर टिक नहीं पाता है. दांपत्य जीवन में उतार-चढा़व की स्थिति बनी रह सकती है. सुख में कमी आती है. जीवन साथी के साथ वाद विवाद रह सकते हैं.
यह भचक्र का चौदहवाँ नक्षत्र है और चित्रा नक्षत्र को मंगल के कारण पित्त प्रधान माना जाता है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में उदर का निचला भाग आता है, तीसरे व चौथे चरण में गुरदे, कटि क्षेत्र, हर्निया, मेरुदंड का निचला भाग, नसों की गति आदि आती है. इसी के साथ माथा, मस्तक और गर्दन को चित्रा नक्षत्र का अंग माना जाता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों में कष्ट होता है.
चित्रा नक्षत्र में मंगल का युति संबंध व्यक्ति को अनेकों साहसिक कार्यक्षेत्रों से जोडता है. जातक पुलिस या सेना में कार्यरत हो सकता है. बुध की राशि में होने के कारण व्यक्ति वकील बनने की योग्यता भी रखता है. मंगल के साथ चन्द्र या शुक्र हों, तो व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है. नक्षत्र के अनुसार देखे तो व्यक्ति में शिल्पकार बनने के गुण होते है. चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को हाथ के काम करने में विशेष योग्यता प्राप्त होती है. यह नक्षत्र व्यक्ति को कला और ग्राफिक्स के क्षेत्रों से जोड़ता है. व्यक्ति गीत-संगीत में रुचि लेता है और इन क्षेत्रों में विशेष ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करता है. गहनों के डिजाईन बनाना और लेखन के क्षेत्र में कार्य करना, चित्रा नक्षत्र के व्यक्तियों के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आता है.
लग्न या चंद्रमा, चित्रा नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा व्यक्ति कोमल शरीर वाला, गोरे रंग का लम्बी कद काठी वाला होता है. स्वभाव में उग्रता हो सकती है. व्यक्ति अभिमानी भी बहुत होता है. आंखों में उभार होता है. लम्बी व भरी बांहें होती हैं रोम भूरे रंग के हो सकते हैं. कंधे कुछ झुके हुए से हो सकते हैं. भाईयों से अनबन हो सकती है और कन्या संतती अधिक होती है.
लग्न या चंद्रमा, चित्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक घर से दूर अधिक रहने वाला होता है. कोमल शरीर का और प्रसिद्ध पाने वाला होता है. चतुर एवं विद्वान होता है. लेखन कला में दक्ष होता है. विदेशों से लाभ पाने वाला. पितृदोष युक्त हो सकता है और गंभीर व्याधि से ग्रसित हो सकता है.
लग्न या चंद्रमा, चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो व्यक्ति गौरे रंग का, बडी़ आंखों वाला और बड़े चेहरे वाला होता है. शास्त्रों को जानने वाला एवं बुद्धिमान होता है. धीमा बोलने वाला कम लाभ से भी प्रसन्न होने वाला. क्रोधी स्वभाव का प्रशंसा चाहने वाला होता है. धन संचय करने में माहिर होता है. वस्तुओं के विक्रय में कुशल होता है.
लग्न या चंद्रमा, चित्रा नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो व्यक्ति की आंखे गोल और बडी़ होती हैं. दांतों की बनावट में कुछ विषमता हो सकती है. दान करने वाला, निष्ठापूर्वक गुरू की सेवा करने वाला होता है. पतली कमर लम्बी मिली हुई भौंहें होती हैं. लालिमा युक्त सांवले रंग का हो सकता है. जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए कष्ट अधिक झेलने पड़ते हैं.
चित्रा नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 23:20 से 26:40 तक होता है. इसका अक्षर “पे” होता है.
चित्रा नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 26:40 से 30:00 तक होता है. इसका अक्षर “पो” होता है.
चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 00:00 से 03:20 तक होता है. इसका अक्षर “रा” होता है.
चित्रा नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 03:20 से 06:40 तक होता है. इसका अक्षर “री” होता है.
ॐ त्वष्टातुरीयो अद्धुत इन्द्रागी पुष्टिवर्द्धनम ।
द्विपदापदाया: च्छ्न्द इन्द्रियमुक्षा गौत्र वयोदधु: ।
त्वष्द्रेनम: । ॐ विश्वकर्मणे नम: ।
चित्रा नक्षत्र के जातक के लिए देवी दुर्गा और भवानी का पूजन व उपासना उत्तम मानी जाती है. शक्ति की उपासना से चित्रा के अनिष्ट प्रभाव दूर होते हैं और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. जातक को दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से शत्रुओं को पर विजय प्राप्त होती है. शक्ति पीठों की यात्रा और देवी के सहस्त्रनामों का जाप भी उत्तम होता है. बहु रंगी पोशाक और फूल पत्तियों के चित्रों वाली ड्रेस पहना अच्छा होता है.
नक्षत्र - चित्रा
राशि - कन्या-2, तुला-2
वश्य - नर
योनि - व्याघ्र
महावैर - गौ
राशि स्वामी - बुध-2, शुक्र-2
गण - राक्षस
नाड़ी - मध्य
तत्व - पृथ्वी-2, वायु-2
स्वभाव(संज्ञा) - मृदु
नक्षत्र देवता - विश्वकर्मा
पंचशला वेध - पूर्वा भाद्रपद