27 नक्षत्रों की श्रृंखला में आर्द्रा नक्षत्र का स्थान छठा है. आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है. आर्द्रा नक्षत्र मिथुन राशि में 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक रहता है. यह कई तारों का समूह ना होकर केवल एक तारा है. यह आकाश में मणि के समान दिखता है. इसका आकार हीरे अथवा वज्र के रुप में भी समझा जा सकता है. कई विद्वान इसे चमकता हीरा तो कई इसे आँसू की बूंद समझते हैं. इस नक्षत्र का रंग लाल होता है. प्राचीन मान्यता के अनुसार इस लाल रंग के तारे में संहारकर्त्ता शिव का वास है.
आर्द्रा का अर्थ होता है नमी, भीषण गर्मी के बाद नमी के कारण बादल बरसने का समय. सूर्य का इस नक्षत्र पर गोचर ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति तथा वर्षा ऋतु का आगमन को दर्शाता है. कुछ विद्वानों ने आर्द्रा नक्षत्र का संबंध पसीने और आँसू की बूंद से जोडा़ है. वास्तव में सभी प्रकार की नमी, ठण्डक तथा गीलापन आर्द्रता कहलाता है. जो बीत गया, उसे भूल जाओ. नए का स्वागत करो. यही संदेश आर्द्रा नक्षत्र में छिपा है. दृढ़ता, धैर्य, सहिष्णुता तथा सतत प्रयास का महत्व आर्द्रा नक्षत्र ही सिखाता है. किसी - किसी ग्रंथ में आर्द्रा नक्षत्र को "मनुष्य का सिर" भी कहा गया है
आर्द्रा नक्षत्र का जातक मोटे और पतले दोनों तरह की काया के हो सकते हैं. छरहरे और स्थूल डील डौल काया के हो सकते हैं. नेत्र आकर्षक व ऊंची नाक होती है. आर्द्रा नक्षत्र के जातक का स्वभाव चंचल होता है. वह हँसमुख, अभिमानी तथा विनोदी स्वभाव का होता है. यह दु:ख पाने वाला भी होता है. यह बुरे विचारों वाले तथा व्यसनी भी होते है. आर्द्रा नक्षत्र वाले जातक को राहु की स्थिति अनुसार भी फल मिलता है.
यह सदा स्वयं को सही मानते हैं. इनमें आक्रामकता अधिक होती है. स्त्री के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार रखते हैं. यह अन्य लोगों की अनुशासनहीनता देखकर चिन्तामग्न रहते हैं. दूसरों की चिन्ता में परेशान रहते हैं. इनका स्वर कड़क तथा विद्रोही होता है. इन्हें अत्यधिक क्रोध आता है.
नारद के मतानुसार आर्द्रा नक्षत्र के जातक क्रय-विक्रय में निपुण होते हैं. लेकिन अन्य कई मतानुसार यह व्यापार में अनाडी़ सिद्ध होते हैं. यह मंत्र-अनुष्ठान में विशेष कुशल होते हैं. इनमें काम वासना भी प्रबल होती है. इन जातकों में एक राह पकड़कर चलने का अदम्य साहस होता है. इस नक्षत्र के जातकों में अहसानों को भूलने की आदत होती है. यह व्यक्ति के चरित्र के आधार पर ही उसका मूल्याँकन करते हैं. जरा सी कमी मिलते ही यह दुखी होकर पीछे हट जाते हैं.
विवाह देर से होता है. स्वभाव में कठोरता होती है. परिवार से संपत्ति को लेकर विवाद भी हो सकता है. दांपत्य जीवन में आपसी वाद-विवाद रह सकता है. परिवार से अलग रहने की संभावना भी बनती दिखाई देती है. भाग्य का प्रभाव बहुत रहता जातक पर, जीवनभर भाग्य से संबंधित समस्याओं से उलझना पड़ता है. पर जातक अपनी समस्याओं को दूसरों को कम ही बताता है. जातक को विवाह पश्चात पूर्ण सम्मान ससुराल पक्ष से न मिल पाए. वैवाहिक जीवन कष्ट भरा हो सकता है. संतान पक्ष की ओर से भी अधिक सुख नहीं मिल पाता है. विवाह में तलाक या अलगाव की स्थिति प्रभावित कर सकती है.
इस नक्षत्र के अधिकार में गला आता है, बाजुएँ आती है और कंधे आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है. जातक कुछ असाध्य रोग भी प्रभावित कर सकते हैं. लकवा होना, हृदय अथवा दांत के रोग, रक्त संबंधी बीमारी हो सकती है. स्त्रियों को मुख्य रुप से मासिक से संबंधी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. पित्त दोष एवं कफ से संबंधी रोग प्रभावित करते हैं. दोनों नेत्र व मस्तक का आगे और पीछे का भाग आर्द्रा के अवयव में आते हैं. इस नक्षत्र का संबंध वायु दोष विकार से भी होता है.
इस नक्षत्र में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय और काम काज आते हैं. बिजली से संबंधी सामान एवं उससे जुड़े काम आर्द्रा नक्षत्र में आते हैं. इलैक्ट्रानिक व कम्प्यूटर से संबंधित कामों में आप अच्छा लाभ कमा सकते हैं. वाद्य उपकरण, विभिन्न भाषाओं का ज्ञान होना, फोटोग्राफी से संबंधित काम, कंप्यूटर डिज़ाइनर का कार्य भी इस नक्षत्र के अंतर्गत आता है.
इस संबंध का दार्शनिकता एवं चिंतन से भी संबंध होता है. आप एक अच्छे चिकित्सक शास्त्री बन सकते हैं. दिमागी खेल जैसे शतरंज इत्यादि में भी आपको अच्छी रफ्तार मिल सकती है. मनोचिकित्सक, अन्वेषक, गुप्तचर विभाग से जुड़े कार्य, मादक पदार्थ, राजनैतिक षडयंत्र व घोटाले इत्यादि से संबंधित काम इस नक्षत्र में आते हैं.
लग्न या चंद्रमा, आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक गौर वर्ण का, सुंदर नाक, लालिमा युक्त आंखों वाला हो सकता है. मध्यम कद का भरे शरीर का स्वामी होता है. चेहरा बड़ा और भौंहें काली होती हैं. बुद्धिमान एवं वाणी में चातुर्य का भाव निहित होता है.
लग्न या चंद्रमा, आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक का माथा सुंदर होता है, सुंदर भौंहे, कामुक स्वभाव का हो सकता है, नीलकमल के समान आँखें हो सकती हैं. रंगत में सांवला पन हो सकता है. चौड़ी छाती और सफेद दांतों युक्त. छोटा व कोमल मुख होता है.
लग्न या चंद्रमा, आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में आता हो तो बड़े मुख वाला होता है. मोटी छाती वाला होता है. मोटी भुजाओं से युक्त होता है. मोटी नसें और बड़े से सिर का हो सकता है. स्वभाव से कठोर उग्र हो सकता है.
लग्न या चंद्रमा, आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक की आंखें शहद से युक्त होती हैं. मन ही मन अधिक बड़बडा़ने वाला होता है. माथे का मध्य भाग दबाव युक्त होता है. सुंदर काया युक्त, चंचल स्वभाव का व्यक्तित्व, सुन्दर होंठ व दांतों वाला होता है. धैर्यशील होता है.
आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 06:40 से 10:00 तक होता है. इसका अक्षर “कु” होता है.
आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 10:00 से 13:20 तक होता है. इसका अक्षर “घ” होता है.
आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 13:20 से 16:40 तक होता है. इसका अक्षर “ङ” होता है.
आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 16:40 से 20:00 तक होता है. इसका अक्षर “छ” होता है.
ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवSउतोत इषवे नम: बाहुभ्यां मुतते नम: ।
ॐ रुद्राय नम: ।
आर्द्रा नक्षत्र के जातक के लिए भगवान शिव की आराधना करना शुभदायक होता है. भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करना चाहिए. सोमवार का व्रत एवं जाप इत्यादि करना उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है. आर्द्रा नक्षत्र में चंद्रमा का गोचर होने पर भगवान शिव का भजन कीर्तन, नाम स्मरण करने से कार्यों में सफलता एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है.
नक्षत्र - आर्द्रा
राशि - मिथुन
वश्य - नर
योनी - श्वान
महावैर - मृग
राशि स्वामी - बुध
गण - मनुष्य
नाडी़ - आदि
तत्व - वायु
स्वभाव(संज्ञा) - तीक्ष्ण
नक्षत्र देवता - शिव
पंचशला वेध - पूर्वाषाढा़