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बुद्धि, बोलचाल, विवेक का स्वामी बुध ग्रह जब तुला राशि में होता है तो विचार तेजी से सामने आते चले जाते हैं. बुध तर्क और बौद्धिकता का प्रतीक है, तुला राशि वायु तत्व युक्त शुक्र के स्वामित्व की राशि है ऎसे में इन दोनों का
कर्क राशि और शुक्र दोनों ही स्त्री तत्व युक्त शीतलता से भरपुर ग्रह माने जाते हैं. इन दोनों की स्थिति का जीवन पर असर व्यक्ति को कुछ अधिक महत्वाकांक्षी भी बना देता है ओर साथ में जल्द से काम करने को लेकर उत्सुक भी बनाता
मेष लग्न मेष राशि का स्वामी मंगल है. बृहस्पति और मंगल नैसर्गिक मित्र हैं अत: मेष राशि गुरु की मित्र राशि होगी. मेष राशि में बृहस्पति की दशा के कारण व्यक्ति सक्षम और तेजस्वी बनता है. व्यक्ति अपने गुणों के कारण यश और
संकटा दशा का समय काफी चुनौतियों एवं जीवन में होने वाले बदलावों से भरा माना गया है. संकटा दशा का समय आठ वर्ष का होता है. यह समय जिन कार्यों को करते हैं या जो फैसले लेते हैं उन सभी पर दूरगामी असर दिखाता है.  इस दशा
सूर्य महादशा का प्रभाव व्यक्ति के ऊपर एक कम अवधि के लिए पड़ता है. इस दशा के दोरान व्यक्ति आत्मिक रुप से जागरुक बनता है. वह अपने आस पास की स्थिति को अब बहुत अधिक गहराई से देख पाता है. सूर्य आत्मा का कारक है जिसके चलते
विवाह एक ऎसी परंपरा है जो हर दृष्टिकोण से अत्यंत ही आवश्यक एवं प्रभावशाली स्थिति है जिसके द्वारा परिवार, समाज एवं राष्ट के निर्माण की नींव रखी जा सकती है. विश्वभर में विवाह एक ऎसा संबंध है जिसे सभी धर्म एवं पंथों ने
वर्तमान समय 2021 में गुरु ग्रह का गोचर कुंभ राशि में हो रहा है. कुंभ राशि में गोचर करते हुए गुरु जून माह में इसी राशि में वक्री अवस्था में गोचर करेंगे ओर यह समय सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सभी क्षेत्रों पर असर डालने
बुध कन्या में प्रवेश - 26:05 बुध कन्या राशि में वक्री होगा 10 सितंबर 09:07 बुध कन्या में मार्गी होगा 2 अक्टूबर 14:35 कन्या राशि ओर बुध के मध्य एक बहुत ही गहरा संबंध है. बुध को कन्या राशि का स्वामित्व प्राप्त है इस कारण
बुध ग्रह एक बौद्धिक ज्ञान और उचित मार्ग को निर्धारित करने वाला उत्तम स्थान प्राप्त ग्रह है. इस ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन को चहुंमुखी प्रतिभा से भर देने वाला होता है. बुध ग्रह एक प्र्कार की चंचलता और आकर्षण क्षमता
मंगल एक उग्र व अग्नि युक्त ग्रह हैं. सभी ग्रहों में से मंगल को ही ऎसे कार्यों का सौंपा जाता है जिनमें शक्ति और साहस का परिचय दिया जा सके. यह एक योद्धा की भांति है जिसमें अदम्य साहस है विपत्तियों से लड़ने का. मंगल ग्रह
एक लम्बे समय से शनि राशि गोचर कर रहे हैं. मकर और कुंभ राशि शनि के स्वामित्व की राशि हैं. शनि का मकर या कुंभ राशि में गोचर करना शनि के कारक तत्वों में वृद्धि करने वाला हो सकता है. पर इसी बीच में शनि ग्रह की चाल में
मई मध्य माह का समय ज्योतिष की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण समय होगा. इस समय के पर दो महत्वपूर्ण घटनाएं होंगी. ये दोनों घटनाएं गुरु और शनि ग्रह से जुड़ी हैं ज्योतिष में किसी भी ग्रह की चाल बहुत तरह के इफैक्ट देने वाली होती
नए और अच्छे वाहन की चाहत तो सभी के मन में रहती है, पर इसके साथ ही जो वस्तु हम ले रहे हैं वो सही रहे कोई दिक्कत न आई और हमारे लिए शुभदायक हो यह सभी बातें मन में चलती ही रहती हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही
निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह - धनु राशि की कन्या से हो रहा हो, तो
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
प्रेम संबंधों को लेकर युवाओं के मन में बहुत सी कल्पनाएं जन्म लेती रहती है. उम्र के इस पड़ाव पर जब व्यक्ति अपने साथी की तलाश में होता है तो उसका मन किन बातों से प्रभावित होगा यह कहना आसान नहीं होता है. पर वहीं ज्योतिष
बृहस्पति को समस्त ग्रहों में शुभ ग्रह माना गया है. इसी के साथ इन्हें ज्ञान, विवेक और धन का कारक माना जाता है. इस बात से यह सपष्ट होता है कि अगर कुण्डली में गुरू उच्च एवं बली हो तो स्वभाविक ही वह शुभ फलों को देता है.
ज्योतिष में ग्रहों की दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है. इन्हीं ग्रहों के द्वारा व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के उतार-चढा़व आते हैं जिससे कभी सुख व कभी दुख की धूप छांव जीवन में मौजूद रहती है तथा व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण
भद्रिका दशा को बुध की दशा के रूप में जाना जाता है इस दशा की कुल अवधि पांच वर्ष की मानी गई है. यह दशा शुभ ग्रह की दशा होती है इसलिए इस दशा में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. यह दशा परिवार में स्नेह एवं प्रेम की
ज्योतिष में बहुत से योगो का उल्लेख मिलता है. यह सभी योग हमारे ऋषि मुनियो द्वारा हजारो वर्षो पूर्व लिख दिए गए हैं. जब यह सभी योग लिखे गए थे तब से लेकर अब तक समय में बहुत अंतर आ चुका है इसलिए इन योगो को देश, काल, पात्र के
किसी भी जन्म कुण्डली के मजबूत आधार लग्न, सूर्य तथा चंद्रमा को माना जाता है. अगर ये तीनो कुण्डली में बली है तब जीवन की बहुत सी बाधाओ पर काबू पाया जा सकता है. लग्न से व्यक्ति का व्यक्तित्व, सूर्य से आत्मा तथा चंद्रमा से
जन्म कुण्डली के आधार पर व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में बताया जाता है. सभी का भविष्य अलग होता है. कोई सुखी तो कोई दुखी रहता है अथवा किसी को मिश्रित फल जीवन में मिलते हैं. किसी भी बात के होने में कुण्डली के
अच्छे स्वास्थ्य के लिए जन्म कुण्डली में बहुत सी बातो का आंकलन किया जाता है जो निम्नलिखित है :- सबसे पहले तो लग्न, लग्नेश का बली होना आवश्यक है. यदि अशुभ भाव का स्वामी जन्म लग्न में स्थित है तब स्वास्थ्य संबंधी परेशानियो
व्यवसाय के विषय में जानने के लिए दशम भाव का विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक माना गया है. इसी के द्वारा जातक के कार्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है. इसी के साथ यह भी जानना आवश्यक है कि कुण्डली में चंद्र, सूर्य और लग्न में
भचक्र में शून्य से 13 अंश 20 कला तक का विस्तार अश्विनी नक्षत्र के अधिकार में आता है. अश्चिनी नक्षत्र दो "अश्विन" से उत्पन्न हुआ नक्षत्र है. यह दो सितारो का समूह है. लेकिन कुछ अन्य मतानुसार अश्विनी नक्षत्र तीन सितारो का
ज्योतिष शास्त्र व्यवसाय एवं नौकरी का चयन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. नौ ग्रह और बारह राशियां मिलकर जातक के कैरियर या व्यवसाय का निर्धारण करती हैं तथा उनसे संबंधित कामों को दर्शाती हैं. चंद्रमा जो मन का कारक है
ज्योतिष में नौ ग्रहों का जिक्र किया गया है. इन ग्रहों में से कोई भी ग्रह शुभ अथवा अशुभ हो सकता है क्योकि हर लग्न के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रह भिन्न होते हैं. इस लेख में पाठको को सभी बारह लग्नों के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रहो
ज्योतिष की मान्यता है कि प्राणपद लग्न कर्क राशि में स्थित होने पर व्यक्ति में दिखावे की प्रवृति होती है. चन्द्रमा अथवा राहु पांचवे घर में स्थित हो अथवा उनमें दृष्टि सम्बन्ध बन रहे हों तो व्यक्ति उदासीन एवं निराशावादी
धान्या दशा योगिनी दशाओं में तीसरे स्थान पर आती है. इसका संबंध गुरू से है और इसके स्वामी भी वही हैं. इसकी समय अवधि 3 वर्ष की मानी गई है. धान्या संबंध गुरू से होने के कारण यह दशा शुभता देने वाली कही गई है. धान्या दशा का
योगिनी दशा क्रम के अगले चरण में पिंगला दशा आती है. पिंगला दशा की समय अवधि 2 वर्ष की मानी गई है. इस समय के अनुसार जातक को पिंगला दशा फलों की प्राप्ति होती है. सूर्य से संबंधित इस दशा में व्यक्ति को कुछ हद तक संघर्ष की
नैसर्गिक रूप से कुछ ग्रहों को शुभ और कुछ को अशुभ कहा गया है. लेकिन इनका शुभ या अशुभ फल जन्म समय पर निर्धारित होता है. इसी के आधार पर फल का निर्धारण होता है परंतु साथ ही साथ भिन्न भिन्न लग्नों के लिए अलग-अलग फल निर्धारित
योगिनी दशाओं में मंगला नामक योगिनी दशा सर्वप्रथम होती है. इस दशा की समय अवधि 1 वर्ष की मानी गई है. इस दशा में चंद्रमा की भूमिका होती है यही इस दशा का स्वामित्व रखते हैं. यह शुभ ग्रह की दशा होने के कारण मन में शीतलता व
योगिनी दशा की कुल अवधि 36 वर्ष की होती है. मंगला, पिंगला, धन्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा, संकटा नामक आठ योगिनी दशाएं होती हैं. संख्याक्रम से मंगला एक वर्ष रहती है, पिंगला दो वर्ष, धन्या तीन, भ्रामरी चार, भद्रिका
कुण्डली के सातवें भाव में स्थित सूर्य को अलगाववादी और विच्छेदकारी कहा गया है. इसी के साथ साथ वैवाहिक जीवन के लिए भी इसे अच्छा नहीं माना गया है परंतु इन तथ्यों की सत्यता के विषय में जानने के लिए सर्वप्रथम इस बात को समझ
वर्ष फल कुण्डली में एकादश भाव के फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार हैं कि यदि भाव स्व
वर्ष फल कुण्डली में दूसरे भाव के फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों के कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार हैं कि यदि भाव स्व
वर्ष फल कुण्डली जिसे ताजिक भी कहा जाता है, ज्योतिष शास्त्र की तीन शाखाओं में से एक है. वर्ष फल मुख्यत: किसी विशेष घटनाओं को अध्ययन करने के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है. फलों को जानने के लिए उनमें सभी विभिन्न भावों
विभिन्न भावों में ग्रह स्थिति के परिणाम पराशरी सिद्धांतों पर आधारित यह परिणाम वर्ष कुण्डली में भी उपयोगी होते हैं. ग्रह अपने विभिन्न भावों में अपने कारकतत्व राशि आधिपत्य व अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है. ग्रहों द्वारा
वर्ष फल कुण्डली में दशम भाव में स्थित ग्रहों के प्रभाव, जातक के जीवन को अनेक प्रकार से प्रभावित करते हैं. वर्ष फल कुण्डली ज्योतिष शास्त्र की तीन शाखाओं में से एक है. वर्ष फल मुख्यत: किसी विशेष घटनाओं को अध्ययन करने के
वर्ष फल कुण्डली के सातवें भाव में ग्रहों के प्रभाव का विशलेषण करके इस भाव से संबंधित फलों को जाना जा सकता है. सातवें भाव में ग्रहों का प्रभाव जातक के जीवन में कई तरह से बदलाव ला सकता है, समाज में स्थिति का सशक्त होना और
बलिष्ठ लग्न दशा | Balishtha Lagna Dasha शुभ स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा, सम्मान, सरकार द्वारा अनुग्रहीत कराती है. मध्यम बल दशा सामान्य प्रभाव देने वाली होती है. लाभ मिश्रीत परिणामों से युक्त होंगे. बाधाओं और मानसिक अशांति को
कुण्डली में दशा व अन्तर्दशानाथ परस्पर केन्द्र व त्रिकोण भाव में होने पर शुभ व सुखदायी हो जाते हैं. इस बात को अनेक प्रकार से समझा जा सकता है. जातक परिजात इत्यादि पुस्तकों में दशानाथ के केन्द्र व त्रिकोण में परस्पर होने
ग्रह स्थिति में विभिन्न दशाओं का प्रभाव देखा जा सकता है. यह प्रभाव उस दशा की ग्रह स्थिति के अनुरूप ही प्राप्त होता है. यदि दशानाथ शुभ ग्रह हो तब जातक को जीवन में राजयोग का सुख मिलता है परंतु यदि दशानाथ अशुभ ग्रह का हो
ज्योतिष में नौ ग्रहों का प्रभाव पूर्ण रुप से प्रदर्शित होता है. सभी ग्रह अपने कारक स्वरुप को पूर्ण रुप से व्यक्त करते हैं. जातक के जीवन पर होने वाले प्रभाव कुण्डली में स्थित ग्रहों के प्रभाव द्वारा प्रलक्षित होते हैं.
प्रश्न कुण्डली में लग्न, चन्द्र तथा नवाँश की भूमिका अहम मानी जाती है. प्रश्न कुण्डली में लग्न को पुष्प माना गया है. प्रश्न कुण्डली में चन्द्र को बीज की संज्ञा दी गई है. नवाँश कुण्डली में प्रश्न का स्वाद बताया गया है.
महर्षि पराशर के अनुसार जीवन में होने वाली घटनाओं का आंकलन करने के लिए जन्म कुण्डली महत्वपूर्ण साधन है. कुण्डली से ज्ञात होता है कि विभिन्न समयों में, ग्रहों की युति और स्थिति के अनुसार व्यक्ति विशेष को किस प्रकार का
राजयोग को उत्तम योग माना गया है. यह बहुत ही दुर्लभ योग होता है जो भाग्यशाली व्यक्तियों की कुण्डली में पाया जाता है या यूं कह सकते हैं कि जिनकी कुण्डली में यह योग बनता है वह भाग्यशाली होते हैं. इस योग के विषय में जैमिनी
प्रत्येक राशि और ग्रह अपनी स्थिति और प्रकृति के अनुसार दूसरी राशियों और ग्रहों पर दृष्टि डालते हैं. इस दृष्टि का शुभ और अशुभ प्रभाव व्यक्ति को ग्रहों व राशियों की शुभता और अशुभता के अनुरूप प्राप्त होता है, इसे ही अर्गला
वर्ष कुण्डली में ताजिक योगों का उपयोग किया जाता है. वर्ष फल में इन योगों का विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक होता है. बिना ताजिक योगों के वर्ष कुण्डली का अध्ययन अधूरा होता है. कार्य की सिद्धि होगी अथवा नहीं होगी यह ताजिक
नाम के इस व्यवहारिक महत्व को हमारे धर्म गुरुओं ने वर्षों पहले ही समझ लिया था. उसी मह्त्ता के आधार पर नामकरण संस्कार को आधार मिला तथा नामकरण की धार्मिक प्रक्रिया शुरु हुई. भारतीय ज्योतिष में नामकरण को शादी-विवाह जैसे
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को प्रमुख ग्रह के रूप मान्यता प्राप्त है. सूर्य देव को नवग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह माना गया है इन्हें आत्म कारक कहा गया है. सभी ग्रह इन्हीं की परिक्रमा करते हैं. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार
भौतिक समृद्धि के लिए लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव आवश्यक होती है. कन्या लग्न में जन्में जातक की कुण्डली में यदि बुध बलवान होकर स्थित हो तो जातक बुद्धिमान, बलवान, कुशल वक्ता तथा सुंदर गुणों से युक्त होता है. उसे संगीत का
प्रश्न कुण्डली व्यक्ति द्वारा पूछे प्रश्न पर आधारित होती है. जिस समय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कोई प्रश्न किया जाता है उसी समय की एक कुण्डली बना ली जाती है. इसे ही प्रश्न कुण्डली कहा गया है. प्रश्न कुण्डली द्वारा यात्रा
अभिष्ट फलों की प्राप्ती हेतु यंत्र साधना का प्रतिकात्मक या चित्रात्मक रुप में उपयोग बहुत लाभदायक होता है. गणेश यंत्र सबसे महत्वपूर्ण, शुभ और शक्तिशाली यंत्र होता है जो न केवल लाभ देता है तथा व्यक्ति के लिए शुभ फलदायक
नवग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर पूर्ण रुप से प्रभाव देखा जा सकता है. इन नवग्रहों की शांति द्वारा जीवन की अनेक समस्याओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं. नवग्रहों के विषय में अनेक तथ्यों को बताया गया है जिनमें मंत्रों का
ज्योतिष के अनुसार कुण्डली में शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है तो अशुभ स्थिति चारित्रिक दोष एवं पीड़ा दायक होती है. शुक्र के अशुभ होने पर व्यक्ति में चारित्रिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं.
माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं. यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी यंत्र धार्मिक कार्यो में शुभ माना जाता है. धर्मशास्त्रो के अनुसार बगलामुखी
कुंडली में मौजूद सभी ग्रह अच्छे या बुरे फल देने वाले सिद्ध हो सकते हैं. शनि यदि कुंडली में शुभ भावों के स्वामी हैं तब वह बुरा फल नहीं देते. यदि शनि कुण्डली शुभ होकर निर्बल है तब उसे बल देना आवश्यक है. यदि शनि कुंडली में
गोचर में जब ग्रह अनिष्ट फल दे रहा हो या फिर दशा में कष्ट देने कि स्थिति में हों ऎसे में ग्रह के उपाय करना हितकारी रहता है. जन्म कुण्डली में जब किसी ग्रह का सहयोग प्राप्त न होने की स्थिति में उस ग्रह से जुडे उपाय करने से
ज्योतिष में सभी नौ ग्रह का अपना विशिष्ट महत्व होता है. सभी ग्रह अपनी दशा/अन्तर्दशा में अपने फल प्रदान करने की क्षमता रखते हैं. इसी के अन्तर्गत मंगल ग्रह उग्र स्वभाव वाला ग्रह माना गया है. यह मेष तथा वृश्चिक राशि राशि का
वर्ष कुण्डली में मुंथा का अत्यधिक उपयोग किया जाता है. जन्म कुण्डली में मुन्था सदैव लग्न में स्थित रहती है और प्रत्येक वर्ष मुंथा एक राशि आगे बढ़ जाती है. मुंथा नवग्रहों के समान ही महत्व रखती है. मुंथा विचार द्वारा
वैदिक ज्योतिष में कई वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. कुण्डली का अध्ययन करते समय संबंधित भाव की वर्ग कुण्डली का अध्ययन अवश्य करना चाहिए. जिनमें से कुछ वर्ग कुण्डलियाँ प्रमुख रुप से उल्लेखनीय है. होरा कुण्डली से
वैदिक ज्योतिष अत्यधिक व्यापक क्षेत्र है. कुण्डली का विश्लेषण करना चुनौती भरा काम होता है. किसी भी कुण्डली को देखने के लिए बहुत सी बातों का विश्लेषण करके तब किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए. कुण्डली विश्लेषण में कुण्डली के
हल योग अपने नाम के अनुसार ही दिखाई भी देता है. हल जो भूमि को खोदकर उसमें से जीवन का रस प्रदान करता है और उसी को पाकर ही जीव अपने जीवन को बनाए रखने में सफल होता है यही हल योग जब कुण्डली में निर्मित होता है तो उसी प्रकार
कुण्डली के प्रत्येक भाव की महादशा भिन्न भिन्न फल प्रदान करने वाली होती है. बारह भावों में स्थित शुभ और अशुभ प्रभाव जातक के जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं. प्रत्येक भाव अनुसार महादशा के प्रभावों का वर्णन इस
संपूर्ण दशा | Sampoorna Dasha जन्म कुण्डली में जो ग्रह उच्च राशिस्थ या अतिबल (षडबल) हो उसकी दशा अन्तर्दशा संपूर्णदशा कहलाती है. इस दशा काला में मनुष्य सुख वैभव एवं समृद्धि प्राप्त कर पाता है. जातक को धन, स्वास्थ्य,
कई बार जन्म कुण्डली में शुभ योग होने पर भी जातक को शुभ फलों की प्राप्ति नही हो पाती. जन्म कुण्डली शुभ होने पर भी जातक के जीवन में कभी तो दशा या गोचर में ग्रहों की स्थिति विषम हो जाती है कि जीवन में उतार चढा़व की स्थिति
ज्योतिष शास्त्रों में शनि की व्याख्या अधिक की गई है, शनि की महादशा और शनि की साढेसाती से हर व्यक्ति प्रभावित होता है. शनि व्यक्ति को जीवन के उच्चतम शिखर या निम्नतम स्तर में बिठा सकते है. ज्योतिष शास्त्र के अलग- अलग
कुण्डली में स्थित ग्रहों कि स्थिति के द्वारा संतान सुख के विषय में जाना जा सकता है. किसी की कुण्डली में ग्रहों की ऐसी स्थिति होती है जो उन्हें कई संतानों का सुख देती है. तो किसी कि कुण्डली संतान में बाधा को दर्शाती है.
ज्योतिष में दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है और व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम में यह अपना विशेष प्रभाव डालती हैं. यह दशाएं ग्रहों द्वारा गत जन्म के कर्मफलों को इस जन्म में दर्शाने का माध्यम है. महादशाओं के गणना की
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के जीवन पर बारह राशियों का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. इन्हीं बारह राशियों के आधार पर जन्म नाम का निर्धारण होता. जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है, वह राशि चन्द्र राशि
वैदिक ज्योतिष द्वारा हम कुण्डली में स्थित शिक्षा के योग के बारे में भी जान सकते हैं. जातक की शिक्षा कैसी होगी और वह शैक्षिक योग्यता में किन उचाइयों को छूने में सक्षम हो सकेगा. आज के समय में सभी अपनी शिक्षा में उच्च शिखर
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा जाता है और इसी के प्रभाव से प्रभावित हो व्यक्ति का मन हर समय चलायमान रहता है. उत्तर कालामृत में चंद्रमा को बुद्धि पुष्य सुगंध कहा है अर्थात चंद्रमा को बुद्धि (मन) का कारक कहकर