ज्योतिष की मान्यता है कि प्राणपद लग्न कर्क राशि में स्थित होने पर व्यक्ति में दिखावे की प्रवृति होती है. चन्द्रमा अथवा राहु पांचवे घर में स्थित हो अथवा उनमें दृष्टि सम्बन्ध बन रहे हों तो व्यक्ति उदासीन एवं निराशावादी होता है. चन्द्रमा और राहु लग्न अथवा आत्मकारक से नौवें घर में स्थित होने से व्यक्ति कमजोर होता है. लग्न स्थान मंगल द्वारा दृष्ट होने पर व्यक्ति का स्वभाव क्रोधी होता है वह छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो उठता है.
व्यक्ति की राशि में कारकांश ग्रह मीन राशि में होने पर व्यक्ति गुणवान होता है और दूसरों के लिए आदर्श स्वरूप होता है जबकि केतु का सम्बन्ध कारकांश से होने पर व्यक्ति में धर्माचरण की कमी होती है लेकिन अपने अच्छे होने का दिखावा ज्यादा करता है. सूर्य और राहु कारक में हो तथा उन्हें मंगल देख रहा हो तो यह इस बात का संकेत होता है कि व्यक्ति क्रोधी होगा. कारकांश से दसवें घर में बुध स्थित हो तथा उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति काफी बुद्धिमान होता है.
जैमिनी ज्योतिष यह भी कहता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में कारकांश से तीसरे घर में अशुभ ग्रह होता है वह आत्मविश्वासी होता है. उनमें उर्जा व साहस भी भरपूर रहता है. वे अपने बल पर अपना भविष्य स्वयं बनाने वाले होते हैं. जबकि, अशुभ ग्रह कारकांश से पांचवें और नवमें घर में स्थित होता है तथा उसे कोई अशुभ ग्रह देखता है तो व्यक्ति का जीवन सामान्य रहता है. उन लोगों को जनसमूह एवं रैली से घबराहट महसूस होती है जिनकी कुण्डली में शनि कारकांश अथवा इससे पांचवें घर में होता है.
जिन लोगों की कुण्डली में केतु कारकांश से दूसरे घर में होता है और अशुभ ग्रह उसे देखते हैं वह साफ और स्पष्ट बोलने की बजाय बातों को छुपाने की कोशिश करते हैं. आमतौर पर वह लोग बुद्धिमान होते हैं जिनकी कुण्डली में पांचवें घर के स्वामी का आत्मकारक अथवा लग्न से दृष्टि सम्बन्ध बनता है. वे लोग गम में भी मुस्कुराने वाले होते हैं जिनकी जन्मपत्री में लग्न एवं आत्मकारक से चौथे घर के स्वामी की दृष्टि लग्न तथा आत्मकारक पर होती है, इनका चरित्र भी ऊँचा रहता है. आत्मकारक एवं लग्न से बारहवें घर के स्वामी की दृष्टि लग्न एवं आत्मकारक पर होना यह बताता है कि व्यक्ति खुले हाथों से खर्च करने वाला होगा.
ज्योतिष में व्यक्ति के शारीरिक गठन, लक्षण तथा रंग-रूप का विचार नवमांश, कारकांश एवं वरन्दा लग्न के स्वामी से किया जात है. वरन्दा लग्न को व्यक्ति के रूप-रंग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इस ज्योतिषीय विधि में बताया गया है कि अगर केतु और शनि लग्न में हो, नवमांश लग्न, कारकांश या वरन्दा लग्न में हो तो व्यक्ति की त्वचा का रंग लालिमा लिये होता है.
शनि की युति शुक्र या राहु से होने पर व्यक्ति दिखने में सांवला होता है. उन लोगों की त्वचा निली आभा लिये होती है जिनकी कुण्डली में शनि के साथ बुध की युति बनती है. अगर आपकी कुण्डली में मंगल व शनि की युति लग्न, नवमांश लग्न, कारकांश या वरन्दा लग्न में बन रही है तो आपकी त्वचा का रंग लाल और पीली आभा लिए होगी. वहीं गुरू के साथ शनि की युति होने से आप अत्यंत गोरे हो सकते हैं. चन्द्र के साथ शनि की युति होने से भी आपकी त्वचा निखरी होती है.