विवाह एक ऎसी परंपरा है जो हर दृष्टिकोण से अत्यंत ही आवश्यक एवं प्रभावशाली स्थिति है जिसके द्वारा परिवार, समाज एवं राष्ट के निर्माण की नींव रखी जा सकती है. विश्वभर में विवाह एक ऎसा संबंध है जिसे सभी धर्म एवं पंथों ने स्वीकार किया और इसकी महत्ता को समझा है. विवाह के विचार पर भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत ही उत्कृष्ट पहलू सभी के समक्ष उपस्थित है और ज्योतिष शास्त्र चाहे वे भारतीय ज्योतिष हो या फिर पाश्चात्य ज्योतिष सभी में विवाह होने की स्थिति पर कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख मिलता है जिसमें कई मायनों में समानताएं मौजूद हैं. इनके आधार पर हम समझ सकते हैं की एक विवाह होने हेतु कौन-कौन से ज्योतिषीय कारक इस पर गहरा असर डालने में सक्षम होते हैं.
ब्रह्मो दैवस्तथैवार्ष: प्रजापत्यस्थासुर: ।
गान्धर्वो राक्षश्चैव पैशाचश्चाष्टमोSधम:।।
“विवाह के विषय में आठ प्रकार के विवाह का उल्लेख हमें धर्म ग्रंथों में प्राप्त होता है. नारद पुराण एवं मनु समृति में ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्य विवाह, प्राजापत्य विवाह, असुर विवाह, गन्धर्व विवाह, राक्षस विवाह एवं पिशाच विवाह के बारे में कुछ संदर्भ प्राप्त होते हैं. इन सभी में ब्रह्म विवाह को श्रेष्ठ माना गया है.”
आपके जीवन में विवाह कब होगा, विवाह सुखद होगा, विवाह की स्थिति कैसी होगी इत्यादि बातों की सूक्ष्मता का वर्णन ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही सटिकता पूर्ण किया गया है. पराशर होरा शास्त्र, फलदीपिका, सर्वार्थ चिंतामणि इत्यादि ग्रंथों में विवाह से संबंधित कई विचार मौजूद हैं. किसी भी व्यक्ति के विवाह के लिए कौन सी ज्योतिषीय स्थितियां कार्य करती हैं एवं विवाह होगा या नहीं इन बातों को शास्त्रों द्वारा सहजता पूर्ण तर्क रुप से समझा जा सकता है.
विवाह से जुड़े मुख्य ज्योतिषिय सूत्र
विवाह संबंधित भाव
विवाह के लिए जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्र एवं भाव फल की स्थिति को देखा जाता है. किसी भी व्यक्ति की कुण्डली में सप्तम भाव मुख्य रुप से विवाह के लिए देखा जाता है. इसी के साथ लग्न भाव, द्वितीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव, अष्टम भाव, एकादश भाव और अष्ट भाव को भी विवाह के लिए देखा जाता है. कुंडली के इन भावों द्वारा विवाह होने की स्थिति, विवाह के सुख-दुख एवं विवाह होने की संभावनाओं को प्रमाणिकता द्वारा जाना जा सकता है.
विवाह हेतु मुख्य कारक ग्रह
विवाह के लिए दूसरा मुख्य कारक ग्रह स्थिति बनती है. जन्म कुंडली में विवाह सुख के लिए मुख्य रुप से बृहस्पति, शुक्र और मंगल को विशेष रुप से देखा जाता है. यह ग्रह विवाह एवं विवाह उपरांत इत्यादि की स्थिति के विषय में स्पष्ट रुप से संकेत देने में सक्षम होते हैं.
विवाह से संबंधित भाव स्वामी
विवाह के लिए जन्म कुंडली में मौजूद विवाह भावों के साथ ही उनके स्वामियों की स्थिति को भी देखा जाता है जिसके आधार पर विवाह होने की पुष्टि होती है तथा विवाह का सुख किस प्रकार का होगा यह पता लगाया जा सकता है. इस में मुख्य रुप से सातवें भाव के स्वामी ग्रह, लग्न भाव के स्वामी ग्रह, दूसरे भाव के स्वामी ग्रह, पांचवें भाव के स्वामी ग्रह, नौवें भाव के स्वामी ग्रह तथा ग्यारहवें भाव के स्वामी ग्रह को देखना होता है. जन्म कुंडली में इनकी शुभ स्थिति शुभ विवाह के लिए उत्तरदायी होती है.
विवाह हेतु भाव कारक ग्रह
जन्म कुंडली में विवाह के लिए विवाह कारक ग्रह की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. कुंडली में सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र मुख्य रुप से विवाह का कारक ग्रह बनता है. सप्तम भाव के कारक ग्रह शुक्र की कुंडली में अवस्था को जांच करके ही विवाह होने की संभावनाओं को अभिव्यक्त किया जा सकता है.
ग्रह दृष्टि
विवाह के लिए कुंडली में ग्रहों की दृ्ष्टि एवं अवस्थाओं को समझना आवश्यक होता है. सप्तम भाव या सप्तम भाव के स्वामी पर शुभ या पाप ग्रह की दृष्टि होना अथवा कारक ग्रह पर भी शुभ एवं अकारक ग्रह की दृष्टि को देखना- समझाना आवश्यक होता है जो विवाह के लिए मुख्य कारक बनता है.
ग्रह युति
विवाह हेतु विवाह भाव, भाव के स्वामी तथा भाव के कारक के साथ अन्य ग्रहों का युति संबंध किस प्रकार हो रहा है. इस तथ्य को देखना भी विवाह के लिए आवश्यक होता है. शुभ युति उत्तम विवाह को दर्शाती है तथा अशुभ युति विवाह सुख को बाधित करती है.
विवाह योग
जन्म कुंडली में बनने वाले विवाह योग भी इसमें विशेष स्थान रखते हैं. व्यक्ति का विवाह होगा या नहीं होगा, विवाह जल्दी होगा या देर से होगा इत्यादि बातें विवाह योग द्वारा देखी जाती हैं. जन्म कुंडली में यदि लग्न भाव और भावेश, सप्तम भाव-भावेश, पंचम भाव-भावेश, नवम भाव भावेश की शुभ स्थिति, मांगलिक योग इत्यादि विवाह योग का निर्माण करती है जिसके द्वारा विवाह उचित आयु में एवं शुभ प्रकार से संपन्न होता है.
विवाह हेतु वर्ग कुंडलियां
विवाह के लिए लग्न कुंडली के साथ साथ अन्य वर्ग कुंडलियों का अध्ययन भी किया जाता है और यह वर्ग कुंडलियां विवाह होने की शुभ स्थिति को बताती हैं. विवाह के लिए नवांश कुंडली, द्रेष्काण्ड कुण्डली, द्वादशांश कुंडली इत्यादि का अध्ययन विवाह होने की पुष्टि तथा सुखी विवाह जीवन के लिए अपनी सहमति देने में मुख्य कारक बनते हैं.
विवाह दशा
विवाह होने की स्थिति किसी व्यक्ति के जीवन में तभी बनती है जब उस व्यक्ति की कुंडली में विवाह की दशा भी चल रही होती है. अगर कुंडली में विवाह की दशा नहीं चल रही है. तो चाहे विवाह भाव का गोचर बना हुआ हो लेकिन विवाह तब तक संपन्न नहीं होता है जब तक विवाह भाव की दशा अंतरदशा का योग प्राप्त न हो रहा हो, इसलिए विवाह हेने के लिए विवाह की दशा का होना भी अत्यंत महत्वपूर्ण कारक होता है.
विवाह गोचर
अब बात आती है विवाह के गोचर की, ग्रहों की गोचर की स्थिति सदैव बदलाव से प्रभावित होती है. ऎसे में जब विवाह दशा आरंभ हो और विवाह भाव पर ग्रहों का गोचर भी लग रहा हो, तो ऎसे में विवाह होना निशिचित होता है. विवाह होने की पूर्णता: इस गोचर द्वारा ही संपूर्ण होती है. किसी व्यक्ति का विवाह कब होगा इन बातों पर कई सारे अन्य कारक भी निश्चित रुप से अपना काम करते हैं किंतु एक महत्वपूर्ण एवं सरसरी निगाह स्वरुप विवाह के लिए भाव, योग, दशा, गोचर इन सभी का निसंदेह अग्रीण स्थान होता है.