योगिनी दशा क्रम के अगले चरण में पिंगला दशा आती है. पिंगला दशा की समय अवधि 2 वर्ष की मानी गई है. इस समय के अनुसार जातक को पिंगला दशा फलों की प्राप्ति होती है. सूर्य से संबंधित इस दशा में व्यक्ति को कुछ हद तक संघर्ष की स्थिति का सामना करना करना पड़ सकता है और जातक में गुस्से की स्थिति बनी रहती है.
पिंगला योगिनी दशा में सूर्य का जुडा़व होने से विद्वानों ने इस दशा में देह कष्ट, मनोव्यथा व हृदय रोग जैसी समस्याओं का अनुमोदन किया है. ज्योतिष विद्वानों नें सूर्य को एक क्रूर ग्रह की संज्ञा दी है. इस कारण पिंगला योगिनी दशा में जातक को अनेक प्रकार की सूर्य से संबंधित प्रभावों को भी अपने में देखना मिल जाता है.
पिंगला दशा में जातक के मन में द्वंद की स्थिति देखी जा सकती है. अनैतिक आचरण और गलत कामों द्वारा धन कमाने की ओर अग्रसर रह सकते हैं. इसी के साथ कुसंगति में होने पर धन का नाश व मान समान की हानि का सामना करना पड़ सकता है. जो व्यक्ति के लिए संताप को बढा़ने वाला हो सकता है.
पिंगला योगिनी दशा में व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है. व्यक्ति में पित्त की अधिकता हो सकती है इस कारण पित्त संबंधि रोग और ज्वर या रक्त विकार उभर सकते हैं. व्यक्ति में क्रोद्ध करने की प्रवृत्ति अधिक बढ़ सकती है और शांति से कार्यों को निपटाने की शक्ति क्षिण होने लगती है. जिसके कारण मन अशांत रहने लगता है और शुभत अमें कमी आने लगती है.
कुछ विद्वान पिंगला दशा का संबंध अग्नि संबंधि दुर्घटनाओं, वरिष्ठ जनों के सहयोग से होने वाले कामों में सफलता मिलना, काम के प्रति रात दिन को एकाकार कर देना, धन की प्राप्ति, भ्रमण इत्यादि से जोड़ते हैं. इसी के साथ साथ व्यापार में तेजी व कुशलता देने वाली दशा, पिला अथवा सुनहरा रंग जो प्रसन्नता में सहयोगी हो,
कलह-क्लेश से मुक्ति मिलना, किसी प्रभावशाली महिला के सहयोग से उन्नती को पाना, दया व परोपकारित अके कामों में उन्मुख होना तथा अधिकार एवं सत्ता के सुख को पाना भी पिंगला दशा के दौरान हो सकता है. इन दो विचधारों के मध्य पिंगला दशा एक तथ्य को तो अवश्य दर्शाती है कि सूर्य से संबंधित फलों के मिलने की दशा प्रबल होती है इस समय में
वैदिक ज्योतिष में अनेक दशाओं का वर्णन किया गया हैं सूर्य आत्मा का, चन्द्रमा मन का, मंगल बल का, बुध बुद्धि का, गुरु जीव का, शुक्र स्त्री का और शनि आयु का कारक है. अत: इनकी महादशाओं का फलादेश देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए फलादेश में परिस्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है.
जन्म से मृत्यु तक ग्रहों के प्रभाव से विभिन्न प्रकार की सुखद एवं दु:खद घटनाओं से प्रभावित होते है. ग्रह उच्च राशि में हो तो नाम, यश प्राप्त होता है तथा ग्रहों के अशुभ होने पर कष्ट प्राप्त होता है. जन्म नक्षत्र से दशा स्वामी किस नक्षत्र में है ये देखना आवश्यक है. यदि वह अच्छी स्थिति में मित्र या अतिमित्र में है तो शुभ फल प्राप्त होते हैं.