कुण्डली के सातवें भाव में स्थित सूर्य को अलगाववादी और विच्छेदकारी कहा गया है. इसी के साथ साथ वैवाहिक जीवन के लिए भी इसे अच्छा नहीं माना गया है परंतु इन तथ्यों की सत्यता के विषय में जानने के लिए सर्वप्रथम इस बात को समझ चाहिए की कुण्डली में क्या संभावनाएं दी गई हैं तथा वह किस प्रकार अपना फल देने में सक्षम होंगी क्योंकि केवल यह कह देना की सातवें भाव में सूर्य स्थित है और इसके कारण जीवन में सुखों का अभाव बना रहेगा यह प्रमाणिकता नहीं कहलाती.
ज्योतिष में सूर्य को पिता, आत्मा के कारक ग्रह कहा गया है. यह सिंह राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं राजसी व तपस्वी ग्रह हैं. यह आरोग्यता के कारक हैं. इसलिए सप्तमस्थ सूर्य के होने से इन गुणों का जीवन साथी में होना स्वाभाविक है. ज्योतिष शास्त्रियों ने सप्तम भाव में सूर्य के होने को विच्छेद कारक कहा है क्योंकि सप्तम भाव का कारक शुक्र है और शुक्र का स्वभाव सुख सुविधाओं, सौंदर्य और भोग विलास में लिप्त रहना है और इसके विपरित सूर्य का स्वभाव आध्यात्मिक और सात्विक रहा है जिसके फलस्वरूप जीवन साथी समाज के आध्यात्मिक, सामाजिक, धार्मिक और अन्य क्षेत्रों से जुडा़ रहता है.
ज्योतिष के अनेक ग्रंथों में शास्त्रकारों ने सूर्य के सातवें भाव में स्थित होने के अनेक अशुभ फलों को बताया है. जिसमें से बृहत् पराशर होरा शास्त्र के अनुसार सप्तम भाव में स्थित सूर्य स्त्री को बांध्य बनाता है.
सारावली के अनुसार कुण्डली में सप्तमस्थ सूर्य के होने से जातक अनेक स्त्रियों के साथ संब्म्ध बनाने वाला, सुख से रहित, चंचल, पीले रंग के केश वाला व कुरूप होता है.
जातक निर्णय के अनुसार सप्तमस्त सूर्य के कारण जातक गोर वर्ण का कम केश वाला, विवाह में विलंब, सरकार से हानि व अपमान, संदिग्ध चरित्र वाला, यात्रा का शौकिन होता है.
जातक भ्रमण के अनुसार सप्तम भाव में सूर्य हो तो जातक संपत्ति व शरीर की कान्ति से हीन होता है, कमजोर व राजा के क्रोद्ध से दुखी होता है. भय व रोग से मुक्त रहता है.
यहां तात्पर्य यह है कि ज्योतिर्विदों ने सप्तमस्थ सूर्य को अयोग्य जीवनसाथी का होना माना है. जिसके फलस्वरूप पारिवारिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं. उपरोक्त फलों के कारण सप्तमस्थ सूर्य को जानना अत्यंत आवश्यक हो जाता है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल जल्दी प्राप्त होता है. भाग्य का साथ मिले तो व्यक्ति को जीवन का हर सुख प्राप्त होता. यही कारण है कि लागों में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि उसका भाग्य कैसा होगा. कुण्डली के भाग्य भाव में सातवें घर का स्वामी बैठा होने पर व्यक्ति का भाग्य कितना साथ देता है।
ज्योतिषशास्त्र की मान्यता है कि कुण्डली के सातवें घर में जो ग्रह बैठे होते हैं उनके अनुसार व्यक्ति के जीवनसाथी का स्वभाव हो सकता है, अगर इस घर में एक से अधिक ग्रह हों तो बाकि ग्रहों का भी प्रभाव जीवनसाथी पर होता है. साथी कैसा होगा अथवा वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा तो सप्तम भाव में स्थित ग्रहों को देख कर इस विषय में काफी कुछ अनुमान लगा सकते हैं. इस आलेख में सूर्य के साथ सातवें घर में होने के अनुसार जीवन में होने वाले प्रभावों का उल्लेख किया गया है.