ज्योतिष में बहुत से योगो का उल्लेख मिलता है. यह सभी योग हमारे ऋषि मुनियो द्वारा हजारो वर्षो पूर्व लिख दिए गए हैं. जब यह सभी योग लिखे गए थे तब से लेकर अब तक समय में बहुत अंतर आ चुका है इसलिए इन योगो को देश, काल, पात्र के अनुसार लगाना चाहिए. यहि एक समझदार और कुशल ज्योतिषी के लक्षण होते हैं. लेकिन एक बात सत्य है कि जो योग पहले होते थे वह अब भी होते हैं केवल उन्हें देखने का नजरिया बदल गया है. जैसे हाथी-घोड़ो की सवारी की जगह कारों ने ले ली है. मंत्री पद की जगह उच्च सरकारी पदो ने ले लिया है. बहु-विवाह का स्थान अब एक से अधिक शारीरिक संबंधो ने ले लिया है.

इसी तरह से पहले भी दाम्पत्य जीवन में परेशानियाँ होती थी और पति-पत्नी अलग-अलग कारणो से एक-दूसरे से अलग रहते थे. जैसे कि भगवान राम को कई कारणो से माता सीता से अलग रहना पड़ा. द्रौपदी को भी बहुत समय अपने पतियो से अलग रहना पड़ा था. रोजगार के सिलसिले में भी पतियो को अपनी पत्नी से कई सालो तक दूर रहना पड़ता था. अब यातायात के साधन और अन्य सुविधाएँ इतनी है कि सारा संसार सिमट कर रह गया है. ऎसे में यदि कुण्डली में वैवाहिक जीवन पीड़ित नजर आ रहा है तब उस व्यक्ति को फलों का भुगतान तो करना ही पड़ता है. व्यक्ति को अपने जीवनसाथी से दूर रहना ही पड़ता है चाहे उसके लिए कुछ भी कारण बनें.

जन्म कुण्डली में विवाह के आंकलन के लिए सप्तम भाव को मुख्य भाव माना जाता है. जब सप्तम भाव पर पाप ग्रहो का प्रभाव होता है तब दाम्पत्य जीवन में परेशानियो का सामना करना पड़ता है. इसी तरह से यदि सप्तमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव ज्यादा होता है तब भी दाम्पत्य जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. जन्म कुण्डली का दूसरा भाव कुटुम्ब भाव माना जाता है इसलिए इसका पीड़ित होना भी वैवाहिक संबंधो के लिए अच्छा नही माना जाता है. जन्म कुण्डली का आठवाँ भाव मांगलिक सुख का माना जाता है. यदि इस भाव में पाप ग्रह हों तब यह भी दाम्पत्य जीवन के मांगल्य को खराब करता है.

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जन्म कुण्डली में यदि दूसरा, सप्तम और अष्टम भाव पीड़ित है तब वैवाहिक जीवन कलहमय हो जाता है और यदि उस समय जन्म कुण्डली में दशा भी विच्छेदकारी ग्रहो की या छठे, आठवें या बारहवें भाव से संबंधित चल रही है तब परेशानियाँ ज्यादा हो जाती हैं. दूसरे कारण यह भी है कि यदि आपके भीतर सहनशक्ति है तब परिस्थितियों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. यदि सहनशक्ति नही है तब आपका वैवाहिक जीवन अच्छा नही हो सकता है.

यदि आपका लग्न अग्नि तत्व राशि 1,5,9 का है तब आपको क्रोध ज्यादा आता होगा और आप किसी की सुनेगें नहीं. ऎसे व्यक्ति को ऎसे आदमी से विवाह करना चाहिए जिसका लग्न जल तत्व राशि 4,8,12 का हो ताकि यदि एक को क्रोध आए तब दूसरा व्यक्ति शांत रह सकें. यदि आपके लग्न पर पाप ग्रहो का प्रभाव है तब भी आपको क्रोध ज्यादा आएगा और आप नियंत्रित हो सकते हैं. यदि आपके लग्न के आसपास अर्थात दूसरे और बारहवें भाव में भी पाप ग्रहों का प्रभाव है तब भी आपके अंदर धैर्य की कमी देखी जा सकती है. ऎसे में आप किसी अन्य के प्रभाव में नहीं रह पाएंगे और आपके मन-मुटाव बने रहने की संभावना रहेगी. पृथ्वी तत्व राशि 2,6,10 लग्न वाले व्यक्तियों में भी सहनशक्ति काफी होती है और ये व्यवहारिक भी होते हैं. 3,7,11 राशि वायु तत्व राशि होती है और ये कुछ ज्यादा ही भावुक भी होते हैं. सोचते ज्यादा है. जरा सी बात पर परेशान हो जाते हैं. यही इनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी होती है.

यदि आप यह समझ लें कि आपकी कुण्डली के योग खराब हैं और आपके अपने स्वभाव व व्यवहार में कुछ बदलाव करने से परिस्थितियो में सुधार हो सकता है तब आपको बदलाव जरुर करना चाहिए. आप यदि अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत बनाकर चलते हैं तब कुण्डली के बली खराब योगो का प्रभाव भी कम हो सकता है.