ज्योतिष में नौ ग्रहों का जिक्र किया गया है. इन ग्रहों में से कोई भी ग्रह शुभ अथवा अशुभ हो सकता है क्योकि हर लग्न के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रह भिन्न होते हैं. इस लेख में पाठको को सभी बारह लग्नों के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रहो के विषय में बताया जाएगा.
मेष लग्न | Aries Ascendant
मेष लग्न में मंगल लग्नेश तथा अष्टमेश होता है. मेष राशि को मंगल की मूल त्रिकोण राशि माना जाता है. मेष लग्न चर लग्न है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक का काम करता है. इसलिए शनि एकादशेश होने से बाधकेश का काम करता है. गुरु ग्रह नवमेश है और यदि कुण्डली में गुरु और शनि एक साथ होते हैं तब यह अच्छा फल नहीं देगें क्योकि भाग्येश की युति बाधकेश के साथ हो गई है. कुण्डली में शनि जिस भी ग्रह के साथ होगा उसके कारकत्वों में कमी कर सकता है. कुण्डली में शनि की स्थिति यदि ठीक नही है तब वह मारक का काम भी कर सकता है. मेष लग्न के लिए शुक्र मारक है तो चंद्रमा चतुर्थ का स्वामी होकर मिश्रित फल प्रदान करता है.
वृष लग्न | Taurus Ascendant
वृष लग्न के जातको के लिए शनि शुभ फलदायक है क्योकि शनि केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होकर योगकारक है. बृहस्पति अष्टमेश तथा एकादशेश होने से मारक के समान फल प्रदान करता है. शुक्र लग्नेश होने के साथ छठे भाव का स्वामी भी होता है इसलिए इसके शुभ फल देने में संदेह रहता है क्योकि इसकी मूल त्रिकोण राशि छठे भाव में पड़ती है. चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी होकर शुभ फल प्रदान करता है और सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होता है इसलिए शुभ फल प्रदान करता है क्योकि केन्द्र के स्वामी साम हो जाते हैं और सूर्य क्रूर ग्रह होने से सम हो जाता है.
बुध दूसरे का स्वामी होने से धनकारक होने के साथ मारक भी होता है लेकिन साथ ही पंचम भाव का स्वामी होने से शुभ फल भी प्रदान करता है क्योकि पंचम त्रिकोण भाव है. मंगल इस लग्न के लिए सप्तम और बारहवें भाव का स्वामी होकर मारक का काम करता है. चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी है और यदि वह किसी मारक ग्रह के साथ स्थित हो जाता है तब मारक जैसे ही फल प्रदान करता है.
मिथुन लग्न | Gemini Ascendant
इस लग्न के लिए बृहस्पति दशम भाव का स्वामी होने के साथ सप्तम भाव का भि स्वामी होता है और सप्तमेश होने से यह ग्रह मारक का काम करता है. साथ ही मिथुन लग्न द्वि-स्वभाव राशि का है और द्विस्वभाव लग्न के लिए सप्तमेश बाधक होता है. शनि इस लग्न के लिए अष्टमेश तथा नवमेश होता है. अष्टम भाव बाधा का है तो नवम भाव सबसे शुभ त्रिकोण भाव है. यदि कुण्डली में गुरु व शनि की युति हो जाती है तब शनि भी शुभ फल प्रदान करने में दिक्कत कर सकते हैं. बुध इस लग्न के लिए लग्नेश तथा चतुर्थेश होता है लेकिन इसकी दोनो राशियाँ केन्द्र में पड़ने से इसे केन्द्राधिपति दोष भी लगता है और इस कारण शुभ फल प्रदान नहीं करता है. चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी है और मारक हो जाता है लेकिन कहा गया है कि चंद्र तथा सूर्य को मारक का दोष नहीं लगता है लेकिन कुण्डली में यदि चंद्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठ गया तब मारक का काम कर सकता है.
कर्क लग्न | Cancer Ascendant
इस लग्न के लिए मंगल ग्रह पंचम तथा दशम का स्वामी होने से अत्यधिक शुभ तथा योगकारक बन जाता है. बृहस्पति भी नवम भाव का स्वामी होने से शुभ ही बन जाता है. चंद्रमा लग्नेश होकर शुभ होता है. इस प्रकार हम कह सकते है कि कर्क लग्न के लिए चंद्रमा, गुरु तथा मंगल तीनो शुभ ग्रह होते हैं. शनि इस लग्न के लिए सप्तमेश तथा अष्टमेश होकर बिल्कुल ही खराब है और सूर्य दूसरे भाव का स्वामी होकर मारक हो जाता है. यदि सूर्य तथा शनि की युति हो जाए तब फल शुभ नहीं हो सकते हैं.
शुक्र को कर्क लग्न के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योकि कर्क लग्न चर लग्न है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक होता है. साथ ही शुक्र की मूल त्रिकोण राशि चतुर्थ भाव में आने से इसे केन्द्राधिपति दोष भी लग जाता है. बृहस्पति नवमेश होने के साथ छठे भाव का स्वामी भी है लेकिन लग्नेश चंद्र का मित्र होने से यह शुभ फल ही प्रदान करता है.
सिंह लग्न | Leo Ascendant
इस लग्न के लिए मंगल केन्द्र - त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक ग्रह बन जाता है और शुभ फल प्रदान करता है. बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि धनु पंचम भाव अर्थात त्रिकोण भाव में पड़ने से यह शुभ हो जाता है हालांकि इसकी दूसरी राशि अष्टम भाव में पड़ती है. शनि और चंद्रमा इस लग्न के लिए शुभ नहीं है. वैसे भी शनि छठे और सप्तम भाव का स्वामी है और लग्नेश सूर्य का शत्रु भी है. इस कारण शनि अशु भ फल प्रदान करने वाला ही होगा. बुध की मूल त्रिकोण राशि दूसरे भाव में पड़ती है और मिथुन राशि एकादश भाव में. दोनों हि स्थितियां सही नही मानी गई है. शुक्र की मूल त्रिकोण रशि तीसरे भाव में और वृष राशि दशम भाव में चली जाती है जिससे इसे केन्द्राधिपति दोष लगता है और यह शुभ फल प्रदान करने में सक्षम नही होता है.
कन्या लग्न | Virgo Ascendant
इस लग्न के लिए बुध तथा शुक्र दोनो ही शुभ ग्रह माने गये हैं. शुक्र धन भाव तथा भाग्य भाव का स्वामी है लेकिन धन भाव ही मारक स्थान भी है इसलिए शुक्र मारक का भी काम इस लग्न के लिए करता है. मंगल तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होकर अशुभ है. बृहस्पति चतुर्थेश और सप्तमेश होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होता है और साथ ही बाधकेश भी है क्योकि कन्या लग्न द्विस्वभाव लग्न है और इस लग्न के लिए सप्तमेश बाधक होता है. इस लग्न के लिए शनि पांचवे और छठे भाव का स्वामी है और लग्नेश बुध का मित्र है, इसलिए शनि को शुभ ही माना जाता है. छठे भाव में शनि की मूल त्रिकोण राशि पड़ती है और मंगल आठवें भाव का स्वामी होकर यदि शनि से संबंध बनाए तब शनि के शुभ फलों में कमी आ सकती है.
तुला लग्न Libra Ascendant
इस लग्न के लिए शुक्र तथा बुध दोनों ही शुभ है. शुक्र लग्नेश है और बुध नवमेश होकर शुभ बन जाता है. मंगल इस लग्न के लिए प्रबल मारक ग्रह बन जाता है क्योकि मंगल दूसरे और सातवें भाव का स्वामी है. सूर्य एकादशेश होकर बाधकेश बन जाता है क्योकि तुला चर राशि है और चर के लिए एकादश भाव का स्वामी बाधक है. बृहस्पति इस लग्न के लिए शुभ नहीं है क्योकि तीसरे और छठे भाव का स्वामी होता है. साथ ही बृहस्पति, लग्नेश शुक्र का शत्रु भी है इसलिए यह शुभ फल प्रदान नहीं करेगा.
वृश्चिक लग्न | Scorpio Ascendant
इस लग्न के लिए बृहस्पति शुभ है क्योकि यह पांचवें भाव का स्वामी है, चंद्रमा शुभ है क्योंकि यह नवम भाव का स्वामी होने से भाग्येश है. शनि, बुध और शुक्र इस लग्न के लिए शुभ नही माने गये हैं. शुक्र सातवें और बारहवें भाव का स्वामी होने से मारकेश बन जाता है. बुध भी दो अशुभ भावों अष्टम और एकादश का स्वामी होता है. शनि तीसरे और चौथे का स्वामी होने से अशुभ होता है. मंगल इस लग्न के लिए सम माना गया है क्योंकि इसकी मूल त्रिकोण राशि छठे भाव में पड़ती है.
धनु राशि | Sagittarius Ascendant
इस लग्न में मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष पंवम भाव में पड़ती है, इसलिए मंगल इस लग्न के लिए शुभ माना गया है. सूर्य इस लग्न के लिए भाग्येश है और इसलिए शुभ है. बुध को भी शुभ ही माना गया है क्योकि यह दशम भाव का स्वामी होता है लेकिन सप्तमेश होने से मारक का कार्य भी करेगा. शुक्र छठे तथा एकादश भाव का स्वामी होने से और लग्नेश बृहस्पति का शत्रु होने से अशुभ ही माना जाता है. इस लग्न में बुध को केन्द्राधिपति दोष भी लगता है लेकिन यदि बुध पंचमेश मंगल के साथ युति करता है तो अच्छे फल दे सकता है. बुध, चंद्र अथवा बृहस्पति के साथ सहचर्य में अच्छा फल प्रदान करता है.
मकर लग्न | Capricorn Ascendant
इस लग्न के लिए शुक्र केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक बन जाता है और शुभ फल प्रदान करता है. बुध इस लग्न के लिए नवमेश होता है और अत्यधिक शुभ माना जाता है. मकर चर लग्न है इसलिए मंगल एकादशेश होने से बाधकेश हो जाता है और शुभ फल प्रदान नहीं करता है. सूर्य अष्टम का स्वामी होने से सम माना जाता है. वैसे तो सूर्य अष्टमेश है लेकिन सूर्य तथा चंद्रमा को अष्टमेश का दोष नही लगता है. बृहस्पति तीसरे भाव का स्वामी है और बारहवें भाव का स्वामी है. इसलिए यह अशुभ फल प्रदान करने वाला होता है.
कुंभ लग्न | Aquarius Ascendant
इस लग्न के लिए शुक्र केन्द्र - त्रिकोण का स्वामी होकर योगकारक ग्रह बन जाता है और इसकी दशा/अन्तर्दशा में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है. शनि इस लग्न का स्वामी हो और शुक्र लग्नेश का मित्र भी होता. इसलिए दोनो और शुभ बन जाते हैं. बृहस्पति एकादश और द्वितीय भाव का स्वामी है. चंद्रमा छठे भाव का स्वामी होकर अधिक शुभ नहीं है. मंगल तीसरे भाव का और सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होने से शुभ नहीं माने जाते. ये तीनो ग्रह मारक के समान है और लग्नेश शनि के शत्रु भी हैं. इस लग्न के लिए बुध पंचमेश और अष्टमेश होने पर मिश्रित फल प्रदान करने वाला होगा.
मीन लग्न | Pisces Ascendant
इस लग्न के लिए मंगल नवमेश होकर शुभ है तथा चंद्रमा भी पंचमेश होकर शुभ बन जाता है. बृहस्पति है ही लग्नेश और तीनो ग्रह आपस में नैसर्गिक मित्र भी है इसलिए यह शुभ फल ही प्रदान करते हैं. वैसे तो मंगल दूसरे भाव का स्वामी होने से मारक भी बनता है लेकिन लग्नेश का मित्र होने से मारक का कार्य नहीं करता. बाकी बचे सभी ग्रह इस लग्न के लिए अशुभ ही माने जाते हैं.