संपूर्ण दशा | Sampoorna Dasha
जन्म कुण्डली में जो ग्रह उच्च राशिस्थ या अतिबल (षडबल) हो उसकी दशा अन्तर्दशा संपूर्णदशा कहलाती है. इस दशा काला में मनुष्य सुख वैभव एवं समृद्धि प्राप्त कर पाता है. जातक को धन, स्वास्थ्य, भूमि, भवन मान सम्मान एवं यश प्राप्त होता है.
पूर्णादशा | Poorna Dasha
जो ग्रह स्वराशि में, शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हों तथा जिसका इष्ट फल अधिक हो उसकी दशा या अन्तर्दशा मे पदोन्नति, लाभ, सफलता और सुख प्राप्त होता हे.
शुभ दशा | Shubha Dasha
जो ग्रह मित्र क्षेत्री, मित्र या शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हों या वर्गोत्तम या उच्च नवांश स्थित हों अथवा सप्तवर्ग बली हों तो उस ग्रह की दशा उन्नति एवं प्रगति प्रदान करने में सहायक होती है. तथा जातक को सुख, वैभव एवं धन की प्राप्ति होती है.
आरोहिणी दशा | Aarohini Dasha
जो ग्रह अपनी नीच राशि को छोड़कर कुण्डली में अपनी उच्च राशि की ओर बढ़ रह हो तो उस ग्रह की दश या अन्तर्दशा आरोहिणी दशा कहलाती है, आरोहिणी दशा महत्वकांक्षी बनाती है और जातक को अपनी इच्छा की पूर्ति करने के लिए परिश्रम द्वारा धन धान्य की प्राप्ति कराती है तथा जातक को अच्छा स्वास्थ्य एवं समाज में सम्मानीत स्थान प्रदान करती है. इस स्थिति में व्यक्ति के शत्रु और रोग नष्ट होते हैं या व्यक्ति उन्हें दबाने में समर्थ हो जाता है.
अवरोहिणी दशा | Avrohini Dasha
जन्मांग में जो ग्रह परमोच्च स्थिति को छोड़कर अपनी नीच राशि की ओर अग्रसर हो रहा हो वह अपनी दशा या अन्तरदशा आने पर रोग, पीड़, कलेश, चिंता, धन हानि प्रदान करता है. इस स्थिति में परेशानियों में इजाफा होने लगता है अत्यधिक व्यय भी होता है.
अशुभ दशा | Ashubh Dasha
जन्मांग में जो ग्रह नीच राशिस्थ, शत्रु क्षेत्री अथवा नवांश में नीचस्थ या शत्रु राशि में हो या शत्रु ग्रह से युक्त हो तो उसकी दशा या अन्तर्दशा में जातक को अनेक विषम स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. भय, क्लेश, परेशानियों एवं बाधाओं को झेलना पड़ सकता है.
रिक्ता दशा | Rikta Dasha
जो ग्रह अति नीच, षड़बल में निर्बल या पिड़ित होता है, तो उसकी दशा रिक्ता अर्थात शुभ प्रभावों से वंचित दशा कहलाती है. इस दशा में जीवन में अनेकों उतार चढाव देखने को मिलते हैं. दुख सुख का समय लगा ही रहता है.
अनिष्ट दशा | Anishta Dasha
परम नीच, शत्रु राशि, शत्रु या नीच नवांश, पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट ग्रह की दशा अन्तर्दशा अनिष्टकारी होने से अनिष्ट दशा होती है. इस दशा अवधि में जातक रोग, कष्ट, संकट पाता है. धन एवं सुख में कमी आती है. जातक की शिक्षा बाधित हो सकती है या उसे व्यवसाय में उतार-चढा़व झेलने पड़ सकते हैं.
कष्ट दशा | Kashta Dasha
सूर्य के अत्यधिक नज़दीक होने के कारण ग्रह अस्त कहलाते हैं. ऎसे अस्त ग्रह प्राय: शुभ फल देने में असमर्थ होते हैं. यदि शुक्र या मंगल अस्त हों तो दांपत्य सुख की हानि करते हैं. इसी प्रकार गुरू, शनि अस्त होने पर उक्त भाव से संबंधि कष्ट एवं परेशानियां दे सकते हैं
भाग्येश और गुरू का संबंध | Relation between Jupiter and Master of luck
दशानाथ ग्रह से केन्द्र या त्रिकोण भाव में गुरू या भाग्येश हो अथवा दशानाथ पर गुरू या भाग्येश की की दृष्टि हो तो दशा काल में भाग्योदय होता है. जातक को सुख एवं सम्मान की प्राप्ति होती है.