कुंडली में मौजूद सभी ग्रह अच्छे या बुरे फल देने वाले सिद्ध हो सकते हैं. शनि यदि कुंडली में शुभ भावों के स्वामी हैं तब वह बुरा फल नहीं देते. यदि शनि कुण्डली शुभ होकर निर्बल है तब उसे बल देना आवश्यक है. यदि शनि कुंडली में बुरे भावों का स्वामी है जैसे कर्क लग्न और सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ माना जाता है अत: इस स्थिति में हमें शनि मंत्र जाप के द्वारा शनि शांति के उपाय करने चाहिए.
यदि कोई साढेसाती अथवा शनि की ढैय्या से पीड़ित हो तो उसे अपने कर्मों का भुगतान करना ही होगा चाहे वह कितना भी उपाय क्यूँ ना कर ले. इस समय शनि उन्हें अपने और पराये का फर्क बताने का काम करता है. व्यक्ति को आग में तपाकर सोना बनाता है.
शनि के लिए तेल का दान | Donating Oil for Saturn
शनिदेव का उपचार करते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है. सबसे पहले तो यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी शनिवार के दिन तेल नहीं खरीदें. तेल को पहले से ही खरीदकर घर में रखें और उसे शनि मंदिर में अर्पित करें. जब शनिदेव की मूर्ति पर तेल अर्पित करें तब कभी भी उनकी आंखों में ना देखें क्यूंकि उनकी दृष्टि को ही खराब माना गया है. शनि देव जी के चरणों में देखते हुए तेलार्पण करें.
शनिवार के दिन तेल मांगने वाले को भी तेल दान कर सकते हैं. यह तेल दान छाया दान के रुप में भी दिया जा सकता है. एक कटोरी में थोड़ा सा तेल लेकर उसमें अपनी परछाई देखकर उसे दान कर दें, इसे छाया दान कहा गया है. साथ में एक सिक्का भी अवश्य दान करना चाहिए.
शनि देव के लिए मंत्र उपचार | Mantras for Saturn
यदि कुंडली में शनि ग्रह की महादशा चल रही हो तो व्यक्ति को शनि मंत्र जाप अवश्य करने चाहिए. चाहे शनि ग्रह उनकी कुंडली के लिए शुभ हो अथवा अशुभ हो. जब भी किसी ग्रह की महादशा आरंभ होती है तब फल उस महादशा को देने होते हैं और महादशा घर में आए मेहमान की भांति होती है. मेहमान का स्वागत ना किया जाए तो वह रुष्ट हो जाता है. इसी तरह यदि महादशानाथ का पूजन ना किया जाए तब शुभ फल मिलने में विलम्ब हो सकता है.
यदि अशुभ ग्रह की दशा है तब वह और अधिक अशुभ हो सकती है. इसलिए महादशानाथ के मंत्र जाप अवश्य करने चाहिए. शनि की महादशा के लिए शनि के मंत्रों का जाप करना चाहिए. शुक्ल पक्ष के शनिवार से संध्या समय में मंत्र जाप आरंभ करने चाहिए. स्वच्छ वस्त्र पहन कर शुद्ध आसन पर बैठना चाहिए. उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुख करना चाहिए. उसके बाद शुद्ध मन से शनिदेव को याद करके मंत्र जाप शुरु करना चाहिए. मंत्र जाप की संख्या 108 होनी चाहिए.
यदि शनि की महादशा आरंभ होते ही 19,000 मंत्रों का जाप यदि कर लिया जाए तो अशुभ फलों में कमी आ सकती है. महादशा शुरु होने के बाद जब तक शनि की प्रत्यंतर दशा चलती है तब तक 19,000 हजार मंत्रों का जाप पूरा किया जा सकता है. उसके बाद हर शनिवार को एक माला की जा सकती है. मंत्र है :- "ॐ शं शनैश्चराय नम:"
शनि मंत्र के साथ शनि स्तोत्र का जाप भी किया जा सकता है शनि स्तोत्र में दशरथ कृत्त शनि स्त्रोत्त का जाप अत्यंत लाभकारी माना जाता है शास्त्रों के अनुसार इस स्त्रोत की रचना भगवान राम के पिता दशरथ जी ने शनि देव को प्रसन्न करने हेतु की थी जिससे प्रसन्न होकर शनिदेव ने उन्हें कष्ट से मुक्ति प्रदान की.