योगिनी दशाओं में मंगला नामक योगिनी दशा सर्वप्रथम होती है. इस दशा की समय अवधि 1 वर्ष की मानी गई है. इस दशा में चंद्रमा की भूमिका होती है यही इस दशा का स्वामित्व रखते हैं. यह शुभ ग्रह की दशा होने के कारण मन में शीतलता व सकून का भाव लेकर आती है.
इस दशा में चंद्रमा के गुणों की समानता समाहित होती है, जिसके प्रभुत्व के कारण शुभता बनी रहती है. इस दशा में मन पवित्रता को पाता है. धार्मिक कार्यों में सहज ही रूचि बनती है. मन की जिज्ञासाओं में आगे बढने की चाह बनी रहती है. व्यक्ति का मन देव पूजन व धार्मिकता में अधिक रमता है.
सतसंग, काव्य चर्चा व पुराण काथाओं में शामिल होने से व इनमें भाग लेने से सुख, वैभव और संपन्नता का माहौल पनपता है. इस समय में व्यक्ति को सुख, सुविधा और यश की प्राप्ति संभव हो पाती है. अत्नाभूषणों एवं यात्राओं का सुख भी मिलता है. घर परिवार में शुभ आयोजन होते हैं.
विद्या, विनय और वैभव के साथ लोगों से सम्मान की प्राप्ति भी हो पाती है. मित्रों के साथ अच्छा समय और सहयोग प्राप्त होने की उम्मीद बनी रहती है. अपनों का स्नेह व सहयोग मन को संतोष देने वाला होता है. विद्वानों के अनुसार मंगला दशा मांगल्य को दर्शाती है. यह शुभ व श्रेष्ठता का प्रतीक होता है.
यह दशा जातक को संतान व जीवन साथी का सुख देने वाली होती है. साथी से निष्ठा एवं प्रेम की प्राप्ति होती है. संतान कि ओर से सुख की अनुभूति मिलती है और आदर व सम्मान की प्राप्ति होती, संतान आज्ञाकारी और भाग्यशाली होती है. धन वैभवता को पाती है.
इस दशा में व्यक्ति को अरिष्ट निवारण क्षमता प्राप्त होती है. व स्वस्थ एवं स्वयं को निरोगी रखने में सफल होता है. इस समय पराक्रम अवं साहस की प्राप्ति भी होती है. अपने कार्यों द्वारा पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति और साथ ही जीवन में आने वाली समस्याओं के प्रति सजगता बनी रहती है. यह सभी गुण व लाभ मंगला की दशा भुक्ति में सहज ही प्राप्त हो पाते हैं.
मंगला दशा के दौरान जातक के जीवन में होने वाले नकारत्मक एवं असफल रूप में कमी आती है और जीवन की परेशानियों का दौर कुछ थमता सा नजर आता है. कुछ शांति की प्राप्ति व सहजता का एहसास मिलता है.
जातक के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम में यह योगिनी दशाएं अपना विशेष प्रभाव डालती हैं. यह दशाएं ग्रहों द्वारा गत जन्म के कर्मफलों को इस जन्म में दर्शाने का माध्यम है.
महादशाओं के गणना की पद्धति में इन दशाओं के क्रम का भी अनुमोदन होता है और उसी दशा क्रम में दशा का आगमन होता है और इसी के भितर अन्तर दशा, प्रत्यन्तर दशा, सूक्ष्म दशा, प्राण दशाएं आती हैं. प्रत्येक योगिनी दशा के काल में उक्त दशा से संबंधी ग्रह अपना फल देते हैं. ज्योतिषी के अनुसार सभी ग्रह अपनी दशा में फल प्रदान करते हैं और अच्छा-बुरा कोई भी फल दे सकते हैं. यह सत्य है कि वे अपनी दशा में आकर ही अपने संपूर्ण अच्छे-बुरे फलों का दर्शन कराती हैं. इससे अच्छी-बुरी घटनाओं का बोध हो पाता है.
मंगला दशा के दौरान अन्य दशा का प्रभाव
ऐसे में जब मंगला के साथ किसी मित्र ग्रह की दशा आती है तो ये अच्छे फल देती है. पर जब इस दशा में शत्रु ग्रह की दशा आती है तो जातक को मानसिक रुप से परेशान करने वाली होती है.
इस के साथ ही ग्रह जन्म कुण्डली में किस स्थान पर बैठा किस स्थिति में बैठा हुआ है उसके आधार पर भी दशा के शुभाशुभ फल मिलते हैं. मंगला में जब संकटा अंतरदशा, उल्का अंतरदशा आती है तो ये बहुत खराब फल देने वाली बनती है. इस समय व्यक्ति किसी न किसी कारण से परेशान रहता है. स्वास्थ्य भी खराब रहता है. आर्थिक क्षेत्र में उतार-चढा़व बहुत झेलने पड़ते हैं.
मंगला में धान्या की अंतरदशा बहुत शुभ होती है. जातक को धन धान्य देने वाली होती है. मंगला में सिद्धा अंतरदशा के दौरान जातक कलात्मक रुप से बहुत मजबूत होता है. व्यक्ति की छुपी हुई प्रतिभा सामने आती है. प्रेम संबंधों में नए पड़ाव आते हैं. इस समय के दौरान जातक को एक ऎसा माहौल मिलता है जिसमें वह अपने मन अनुसार काम कर सकता है.