जैमिनी ज्योतिष में कारक - Karakas in Jaimini Astrology
जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology) के सिद्धांत कई मायने में पाराशरी ज्योतिष से अलग है उदाहरण के तौर पर देखें तो जैमिनी ज्योतिष में घर और राशियों का परिणाम एक ही होता है, परन्तु पाराशरी ज्योतिष में घरों और राशियों के परिणाम में विभिन्नताएं पायी जाती हैं. दोनों ही पद्धतियों में कारकों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है लेकिन, जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology) के कारक अस्थिर होते हैं जबकि पाराशरीय ज्योतिष में कारक स्थिर होते हैं. इन दोनों में एक अंतर यह भी है कि जहां पाराशरीय ज्योतिष में ग्रहों के बल को कठिन गणित से ज्ञात किया जाता वहीं जैमिनी के सिद्धांत में ग्रहों के बल को सामान्य नियम से ज्ञात कर लिया जाता है.
जैमिनी ज्योतिष कुण्डली (Horoscope according to Jaimini Astrology) का विश्लेषण करने के लिए कारकों को प्रमुखता दी गई है. इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह ज़िन्दगी के विभिन्न कार्यक्रमों में से किसी न किसी कार्यक्रम के होने का संकेत देता है. कारकांश ग्रह कुण्डली में जिस भाव में विराजमान होता है उसी के अनुरूप यह परिणाम देता है.
जैमिनी ज्योतिष के प्रमुख कारक (Main Karakas in Jaimini Astrology)
जैमिनी ज्योतिष में कारकों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है. कारक के द्वार ग्रहों की स्थिति और उनके द्वारा मिलने वाले फलों की पुष्टि भी बहुत अधिक संभव हो पाती है. यहां यह कारक एक दूसरे के साथ मिलकर शुभाशुभ योगों का निर्माण करते हैं. किसी भी जातक की कुण्डली में जब किसी अच्छे शुभ कारक की दशा आती है तो उस स्थिति में जातक को अपने जीवन में सकारात्मक फलों की प्राप्ति भी होती है. वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति के जीवन में किसी अशुभ एवं खराब कारक की दशा का आरंभ होता है तो जीवन में उत्तार-चढा़व अधिक होता है.
कारकों को कैसे जानें
जैमिनी ज्योतिष में राहु और केतु को कारकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. जैमिनी ज्योतिष में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र ओर शनि को कारक की श्रेणी में रखा गया है. यह सभी सात ग्रह कुण्डली में किसी न किसी कारक का प्रतिनिधित्व करते हैं. कारकों का निर्धारण ग्रहों के अंशों के आधार पर ही होता है.
कोई भी ग्रह किसी भी भाव का कारक बन सकता है और कारक का स्वरुप एवं उसकी स्थिति ही जातक के जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन एवं फलों के देने वाली होती है. सबसे अधिक डिग्री(अंश) वाला ग्रह आत्मकारक बनता है, इसी तरह बाकि दूसरे ग्रह क्रम से अमात्यकारक, भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और सबसे कम डिग्री(अंश) वाला ग्रह दाराकारक बनता है.
अगर इस स्थान पर किसी ग्रह की डिग्री(अंश) समान निकल जाते हैं तो उस स्थिति में मिनिटों के आधार पर हम देखेंगे की किसी पहले रखा जाए और किसे बाद में. इस प्रकार जैमिनी ज्योतिष कारकों का पता लग जाने के बाद फलित किया जाना संभव हो पाता है.
आत्मकारक (Atmakarak in Jaimini Astrology)
सभी ग्रहों में आत्मकारक (Atmakarak) सबसे प्रमुख होता है. यह ग्रह समस्त ग्रहों में सबसे अधिक डिग्री पर होता है. आत्मकारक ग्रह को विशेषतौर पर अच्छा होना चाहिए क्योंकि, कुण्डली (Jaimini Astrology Horoscope) में इसकी स्थिति काफी मायने रखती है. इसका कमज़ोर अथवा बल होना व्यक्ति विशेष के जीवन के विषय में काफी कुछ बयान करता है. सूर्य को इसका प्राकृतिक ग्रह माना गया है.
अमात्यकारक (Amatyakarak in Jaimini Astrology)
सभी ग्रहों में आत्मकारक (Amatyakarak) ग्रह के बाद जो सबसे अधिक डिग्री घेरता वह अमात्यकारक ग्रह माना जाता है. यूं तो अमात्यकारक (Amatyakarak) का कोई प्राकृतिक ग्रह नहीं माना जाता है फिर भी वैधानिक तौर पर बुध को प्राकृतिक अमात्यकारक (Amatyakarak) ग्रह का दर्जा प्राप्त है. अमात्यकारक ग्रह का संबंध व्यवसाय के रुप में देखा जाता है, इसके साथ ही इससे आर्थिक स्थिति, धार्मिक स्थिति, कार्य क्षेत्र की स्थिति को समझने में मदद मिलती है. आत्मकारक के पाप प्रभाव में होने पर जातक को जीवन में अमात्यकारक के शुभ फल मिलने में कमी आती है. दूसरी ओर अगर आत्मकारक बली ओर शुभ है तो व्यक्ति को जीवन में धन, मान सम्मान अच्छी नौकरी इत्यादि की प्राप्ति होती है.
भ्रातृ कारक (Bhratrukarak in Jaimini Astrology)
जैमिनी ज्योतिष कुण्डली (Jaimini Astrology Kundli) में आमात्यकारक ग्रह के बाद जिस ग्रह की डिग्री अधिक होती है उसे भ्रातृ कारक (Bhratrukarak) ग्रह माना जाता है. इसे व्यक्ति के भाई बहनों के कारक ग्रह के रूप में देखा जाता है. सभी ग्रहों में मंगल को भाई-बहनों का स्वामी ग्रह माना जाता है यही कारण है कि प्राकृतिक भ्रातृ कारक ग्रह के रूप में मंगल को स्वीकार किया जाता है.
मातृ कारक (Matrukarak in Jaimini Astrology)
भ्रातृ कारक से कम डिग्री वाले ग्रह को मातृ कारक ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह माता का स्वामी ग्रह माना जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह चन्द्रमा है. इस कारक के द्वारा जातक की माता के विषय में समझा जा सकता है. माता का सुख और माता की स्थिति के विषय में जाना जा सकता है. जन्म कुण्डली में मातृकारक ग्रह को चौथे भाव का स्थान प्राप्त है. इस भाव से जातक का आत्मिक सुख उसकी अपनी फैमली में स्थिति, शुरुआती शिक्षा जैसी चीजों का भी पता लगाया जा सकता है. यह भाव जातक के घर, वाहन, वस्त्र जैसी चीजों के सुख के बारे में भी बतात है. यह आपके भौतिक सुखों को दर्शाने वाला होता है और आप किस प्रकार स्वयं इसका कितना लाभ उठा पाते हैं इसकी जानकारी हमे मातृकारक से होती है.
पुत्र कारक (Putrakarak in Jaimini Astrology)
मातृ कारक से कम डिग्री वाले ग्रह को पुत्रकारक (Putrakarak) ग्रह कहा जाता है. इसे संतान का स्वामी ग्रह माना जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह गुरू है. यह पाँचवें स्थान पर आता है. यह जन्म कुण्डली में पाँचवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है. कुण्डली का पांचवां भाव हमारी शिक्षा, संतान प्रेम संबंधों इत्यादि को भी दर्शाती है. अत: ऎसे में पुत्रकारक ग्रह की शुभता होने पर हमे इसके शुभ परिणाम मिल पाते हैं वहीं अगर यह अशुभ प्रभाव में होगा तो इस से संबंधित परेशानियां हमें झेलनी होंगी.
ज्ञातिकारक (Gnatikarak in Jaimini Astrology)
पुत्र कारक ग्रह के पश्चात जिस ग्रह की डिग्री कम होती है उसे ज्ञातिकारक (Gyatikarka) के नाम से जाना जाता है. इसे सम्बन्धों के स्वामी के रूप में स्थान प्राप्त है. भ्रातृ कारक की तरह इसका भी प्राकृति ग्रह मंगल है. जन्म कुण्डली का छठा भाव ज्ञातिकारक ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है. यह जीवन में आने वाले कष्ट, बीमारियों, लड़ाई झगड़ों, कानूनी कार्यवाही इत्यादि को बताता है. ज्ञातिकारक की दशा आने पर व्यक्ति के जीवन में अचानक से होने वाले घटना क्रम अधिक हो जाते हैं. इस दशा में व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक व शारीरिक रुप से कष्ट इत्यादि झेलने पड़ जाते हैं.
दारा कारक (Darakarak in Jaimini Astrology)
जिस ग्रह की डिग्री सबसे कम होती है उसे दारा कारक (Darakarak) कहते हैं. इसे जीवनसाथी का स्वामी ग्रह कहा जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह शुक्र है. यह सातवें भाव के कारकत्वों को दर्शाता है. जन्म कुण्डली का सातवां भाव विवाह एवं संबंधों, सहभागिता में किए जाने वाले काम, विदेश यात्रा, व्यक्ति की लोगों के मध्य स्थिति इत्यादि को समझने में इस भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है. साथ ही जिस ग्रह को इस भाव का प्रतिनिधित्व मिलता है वह भी इस भाव से मिलने वाले फलों पर अपना प्रभाव भी डालता है.
कारकों का शुभ और अशुभ फल
इन सभी सातों कारकों का जातक के जीवन में किसी न किसी रुप में प्रभाव बना ही रहता है. अगर ये कारक शुभ हों शुभ प्रभाव में हों तो व्यक्ति को सफलता दिलाने वाले होते हैं. लेकिन अगर ये कारक अशुभ प्रभाव में हों राहु/केतु से प्रभावित हों तो ऎसी स्थिति में जातक को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. कारकों की शुभाशुभ स्थिति को समझने के लिए कुण्डली और कारकों का बारीकी से अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक होता है.