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लाल किताब में फलादेश और उपायों का आधार शुभ एवं अशुभ ग्रहों को माना जाता जाता है. जो ग्रह कुण्डली में उच्च राशि में स्थिति हो स्वराशि में हो, मित्र राशि में हो शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो बेहतर फलों की संभावना बढ़ जाती है.
लाल किताब में कमजोर ग्रह होने के बहुत से कारण हो सकते हैं जिसके प्रभाव से ग्रह का बल कमजोर हो जाता है और ग्रह शुभ फल देने में सक्षम नहीं हो पाता है. लाल किताब कुण्डली में ग्रह कई प्रकार से कमजोर या कहें मंदा हो सकता है.
लाल किताब में पांचवां घर शुभ और अशुभ फलों की जानकारी देने वाला होता है. इस भाव द्वारा जीवन के मिले जुले फलों की प्राप्ति का योग दिखाई पड़ता है. आपकी सफलताओं और असफलताओं हेतु लाल किताब कुण्डली का पांचवां भाव शुभाशुभ भाव
शुक्र और सूर्य | Venus and Sun लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में शुक्र की युति सूर्य के साथ होने पर व्यक्ति के स्वभाव में एक असमंजस की स्थिति देखी जा सकती है. उसके मन की कल्पनाओं की सकारात्मकता में विलंब की स्थिति पनप
बुध और बृहस्पति | Mercury and Jupiter बुध और बृहस्पति का योग होने पर एक तथ्य तो यह सामने आता है कि इन दोनों का संबंध बुद्धि और ज्ञान से है, अत: यह मिलकर हों तो व्यक्ति में इन गुणों का समावेश बना रहता है और उसके ज्ञान
बृहस्पति और बुध | Jupiter and Mercury लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में बृहस्पति के साथ बुध की युति होने पर जातक को दोनों के शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस स्थिति में यदि इन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव आ रहा होता है तो
केतु और सूर्य | Ketu And Sun लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर में केतु के साथ सूर्य का होना जातक के तेज में कमी करने वाला बन सकता है उसे पिता की ओर से सहायता मे कमी भी मिल सकती है किंतु वह अपने नाम को आगे ले जाने में
बृहस्पति और सूर्य | Jupiter and Sun लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में बृहस्पति के साथ सूर्य की युति संबंध होने के कारण शुभता का प्रभाव प्रतिफलित होता है. बृहस्पति और सूर्य का संयोग प्रभाव स्वरूप जातक को विद्या के
बृहस्पति और राहु | Rahu And Jupiter लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर में राहु के साथ बृहस्पति के स्थित होने पर राहु, बृहस्पति के अधीन हो जाता है. इस घर में बृहस्पति की ही चलती है क्योंकि एक ओर तो यह इसका घर होता है. अगर
राहु और सूर्य | Rahu and Sun लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर में राहु के साथ सूर्य होने पर जातक को परिवार के सुख में कमी मिलती है. मानसिक तनाव की स्थिति उसे परेशान कर सकती है. राहु इस स्थान पर सूर्य के तेज में अवरोध पैदा
केतु और बुध | Ketu and Mercury लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर में केतु के साथ बुध का युति करना दोनों के फलों में अनुकूलता देने वाला हो सकता है यहां बुध केतु के साथ मिलकर उसके जैसे फलों को देने की कोशिश कर सकत है. यहां
सूर्य और चंद्रमा | Sun and Moon लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में सूर्य का चंद्रमा के साथ युति संबंध होने पर जातक के लिए यह स्थिति अच्छे फल देने वाली मानी जाती है. जातक को लाभ और शक्ति की प्राप्ति होती है. वह अपने कामों
शनि और बृहस्पति | Saturn and Jupiter लाल किताब कुण्डली में दूसरे घर अगर शनि के साथ गुरू के होने पर अनुकूलता में कमी आ सकती है. यह दोनों साथ में एक दूसरे के साथ होकर दूसरे घर के फलों में कमी कर सकते हैं. परिवार से दूरी
शनि और सूर्य | Saturn and Sun लाल किताब कुण्डली के दुसरे घर में शनि के साथ सूर्य की स्थिति व्यक्ति की भाषा में गर्मजोशी लाने का काम करती है वार्तालाप में कुछ उत्तेजना बनी रह सकती है. परंतु यहां एक दूसरे के साथ शत्रु भाव
शुक्र और बृहस्पति | Venus and Jupiter लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर शुक्र के साथ बृहस्पति के होने पर एक का ही प्रभाव फलित हो पाता है और दूसरे का प्रभाव खराब होने लगता है. इस दशा में बृहस्पति के फल नहीं मिल पाते और
बुध और बृहस्पति | Mercury and Jupiter लाल किताब के दूसरे घर में बुध और गुरू अर्थात बृहस्पति की युति जातक को ज्ञानी बनाती है और उसे विद्वान लोगों से सम्मान तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है, यह दोनों ही ग्रह व्यक्ति को
बृहस्पति और सूर्य | Jupiter and Sun बहस्पति के साथ सूर्य का होना एक अच्छी स्थिति को दर्शाता है. इन दोनों का प्रभाव इस घर पर 39 वर्षों तक शुभ प्रभाव मिलता रहेगा और जातक को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकेगी. यह दोनों ही
मंगल और शुक्र | Mars and Venus लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में मंगल की स्थिति व्यक्ति के व्यवहार में जो पराक्रम का भाव देने में सहायक बनती है वह उसके लिए हर क्षेत्र में परिश्रम और लगन से सफलता दिलाने में सहायक होती
बृहस्पति और शुक्र | Jupiter and Venus बृहस्पति के साथ शुक्र यदि लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर में बैठे हों तो इस दशा में बृहस्पति के फल नहीं मिल पाते और व्यक्ति को गुरू के प्रभावों से वंचित रहता है, अर्थात अगर कोई
बुध और सूर्य | Mercury and Sun लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में बुध के साथ सूर्य की स्थिति अच्छी मानी जाती है. बुध की स्थिति तीसरे घर में होने पर इस घर में उसी के स्वामित्व को देने वाली बनती है तथा सूर्य के साथ इसकी
बुध और सूर्य | Mercury And Sun लाल किताब कुण्डली में जब हम दूसरे घर में बुद के साथ सूर्य को पाते हैं तो यह तथ्य एक उज्जवल बौद्धिकता और ज्ञान का पैमाना लेकर आता है. बुध के साथ सूर्य का होना जातक क्लो ज्ञान के क्षेत्र में
राहु और सूर्य | Rahu and Sun राहु के साथ सूर्य के पहले घर में होने पर कुण्डली की अनुकूल स्थिति खराब होती है यहां इनकी युति होने पर ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है. राहु के साथ सूर्य का संबंध इस घर के फलों में कमी आएगी
लाल किताब कुण्डली का दूसरा घर धर्म ग्रह कहा जाता है यहां स्थित जो भी ग्रह हो वह धर्म ग्रह के रूप में प्रमुखता पाता है और जातक को उससे संबंधि फलों की प्राप्ति होती है. इसी के साथ इस घर का प्रमुख कारक ग्रह यदि स्वयं यहां
मंगल और सूर्य | Mars and Sun लाल किताब टेवे के तीसरे घर में मंगल के होने से व्यक्ति में साहस की अधिकता होती है. वह शूरवीर होता है और कठिनाईयों से घबराता नहीं है. व्यक्ति में लड़ने की शक्ति होती है. उसे अपने जीवन में
चंद्र और सूर्य | Sun and Moon लाल किताब कुण्डली के तीसरे भाव में चंद्रमा के होने से जातक का स्वभाव का शांत तथा साधु जैसा प्रतीत होता है वह लोभ से परे स्वयं के सामर्थ्य से कुछ बनने की कोशिश करने वाला होता है. वह अपना
चंद्रमा और शुक्र | Moon and Venus लाल किताब कुण्डली के तीसरे घर में चंद्रमा के साथ शुक्र का संबंध आने पर व्यक्ति के शौक अलग से दिखाई देने लगते हैं. वह अपने प्रयासों द्वारा अपनी छुपी हुई प्रतिभा को सबके सामने लाने में
सूर्य और शुक्र | Sun and Venus सूर्य और शुक्र की युति टेवे के तीसरे घर में बनने से व्यक्ति की भावनाएं और इच्छाएं अनियंत्रित सी रह सकती हैं. वह दोहरे जीवन की चाह रख सकता है, जीवन में उसे ऎश्वर्य के साथ ही मुक्ति की चाह
लाल किताब कुण्डली का दूसरा घर धर्म ग्रह कहा जाता है यहां स्थित जो भी ग्रह हो वह धर्म ग्रह के रूप में प्रमुखता पाता है और जातक को उससे संबंधि फलों की प्राप्ति होती है. इसी के साथ इस घर का प्रमुख कारक ग्रह यदि स्वयं यहां
लाल किताब कुण्डली के दूसरे घर को धर्म स्थान कहा गया है. इस घर का कारक ग्रह बृहस्पति है जिसके फलस्वरूप यह स्थान गुरू मंदिर भी कहा जाता है. धर्म भाव में जो भी ग्रह होता है या गोचर में चलकर आता है उसे भाग्य का ग्रह कहते
केतु और सूर्य | Ketu and Sun केतु का लाल किताब कुण्डली में पहले घर में होना संदेह की प्रवृत्ति को दर्शता है. व्यवहार में गोपनियता का समावेश रहता है. इस विचार के फलस्वरूप जब यह सूर्य के साथ स्थित होता है तो उस उजाले पर
लाल किताब कुण्डली में ग्रहों व राशियों के महत्व को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है. यहां राशियों के स्वामी हैं जिसमें मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल हैं. वृष और तुका के स्वामी शुक्र हैं, मिथुन और कन्या के
लाल किताब के खाना नम्बर 9 को भाग्य विधाता कहा जाता है. इसे लाल किताब में किस्मत की कहानी कहते हैं. इस घर का स्वामी और कारक दोनों ही बृहस्पति हैं. लाल किताब में इस स्थान को गुरू की गद्दी कहा गया है. नौंवा घर कर्मों का
लाल किताब में आठवां घर मृत्यु व बिमारी का घर कहा गया है. इस घर का स्वामी मंगल है और कारक ग्रह शनि है इसलिए इस घर को शनि-मंगल की सांझी गद्दी कहा जाता है. मंगल ही यहां वृश्चिक का भावेश भी होता है. यह भाव न्याय, बुद्धि तथा
लाल किताब का सातवां घर वैवाहिक जीवन तथा गृहस्थी के स्वरूप को बताता है. यह गृहस्थी का कारक है. विवाह संबंधी समस्त शुभाशुभ फलों का निर्धारण इसी से किया जा सकता है. इसी के साथ जातक अपने जीवन के निर्वाह हेतु किस काम को
लाल किताब में छठे घर को पाताल कहा जाता है, इसे पाताल की दुनिया, रहम का खजाना और खुफिया मदद का घर भी कहते हैं. इस घर से माता-पिता और ससुराल के साथ संबंधों का विचार करते हैं. इस घर के कारक ग्रह केतु माने गए हैं और स्वामी
लाल किताब में पांचवां घर शुभाशुभ भाव कहलाता है. यह मिश्रित फल देने वाला होता है जीवन में मिलने वाली सफलता या असफलता सभी का विचार इस भाव से किया जाता है. संतान और संतान से संबंधी अच्छी-बुरी सभी बातों का विचार किया जाता
लाल किताब कुण्डली के चौथे घर को माता का घर कहा जाता है. इसका स्वामी और कारक ग्रह चंद्रमा है और इस घर को केन्द्र स्थानों में से एक माना जाता है. लाल किताब में इस केन्द्र स्थानों को बंद मुट्ठी का भाव कहा जाता है. इसे बंद
लाल किताब कुण्डली में तीसरे घर को भाई बंधुओं का भाव कहा जाता है. इस घर का स्वामी बुध और कारक मंगल होता है. इस घर को मुख्यत: मृत्यु और भोग का घर माना जाता है. इस घर में राहु और बुध उच्च तथा शुक्र नीच का हो जाता है. इस घर
ज्योतिष में कुण्डली के दूसरे भाव को धन भाव कहते हैं, परंतु लाल किताब कुण्डली में इसे धर्म भाव कहा जाता है. भाव का कारक बृहस्पति होने से इसे गुरू मंदिर भी कहा जाता है. धर्म भाव में जो भी ग्रह होता है या गोचर में चलकर आता
लाल किताब में कुण्डली के पहले घर को राज्य सिंहासन कहते हैं. कुण्डली में ग्रहफल का ग्रह राजा कहा जाता है. ज्योतिष में इसे लग्न कहा जाता है. इस लग्न से ही जीव अर्थात रूह और माया अर्थात प्रकृत्ति का संबंध परिलक्षित होता
लाल किताब का विवेचन करने के उपरांत हम यह पाते हैं कि इसके अनुसार हमारे पास कुण्डलियों का अध्ययन करने के लिए अनेक कुन्डलियां होती हैं जो अनेक नामों से जानी जाती हैं जैसे अंधी कुण्डली, धर्मी कुण्डली, कायम ग्रहों वाली
व्यक्ति का जन्म जिस दिन को हुआ हो उस दिन को जन्मदिन का दिन तथा उस दिन के ग्रह को जन्मदिन का ग्रह कहा जाता है. जातक का जन्म जिस भी समय हुआ हो उसे जन्मसमय का ग्रह कहते हैं. जन्म दिन के ग्रह को किस्मत जगाने वाला ग्रह
लाल किताब में एक ग्रह का दूसरे ग्रह से संबंध वैदिक ज्योतिष के जैसा ही है. लाल किताब में भी ग्रहों के एक दूसरे के साथ सम्बन्धों का अपना अलग महत्व तथा अपना एक अलग सिद्धान्त है.वैदिक ज्योतिष के एक अन्य सिद्धान्त में
लाल किताब के अनुसार फलादेश करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है. यहां पर इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि उम्र के कौन से वर्ष में कौन से भाव तथा कौन सी राशि के ग्रह प्रभावित करने वाले रह सकते हैं.
लाल किताब अनुसार यह ज्ञात किया जा सकता है कि किस आयु वर्ष में कौन सा ग्रह अपना प्रभाव विशेष प्रभाव दिखाएगा. इसी के साथ साथ इन ग्रहों को पुरुष, स्त्री एवं नपुंसक ग्रह में बांटा गया है. सूर्य ग्रह - 22 वर्ष की आयु में
लाल किताब अनुसार बारह वर्ष तक की आयु के बच्चों का वर्ष फल बनाकर उपाय बताना सही नहीं होता. कुछ हालातों में बारह साल की आयु तक कुछ टेवे नाबालिग होते हैं ऎसी कुण्डली पर बच्चे की बारह साल की आयु तक अभी उसके पूर्व जन्म के
लाल किताब कुन्डली में प्रत्येक ग्रह का अपना बनावटी ग्रह होता है. यह बनावटी ग्रह कुछ विशेष बातों पर प्रभाव डालते हैं जिसे इस प्रकार समझा जा सकता है. सूर्य - सूर्य के लिए बनावटी ग्रह बुध और शुक्र हैं. यह के स्वास्थ को
अंधी कुंडली | Andhi Kundali लाल किताब के अनुसार कुछ कुण्डलियों को अंधी कुण्डली कहा जाता है. यदि जन्म कुण्डली के दसवें भाव में दो या दो से अधिक ऐसे ग्रह स्थित हैं जो आपस में शत्रुता रखते हों तो ऎसी कुण्डली को अंधी
लाल किताब के अनुसार जब कोई ग्रह किसी भाव में अकेला स्थित होता है या किसी और ग्रह से दृष्ट भी नही हो तो वह शुभ प्रभाव वाला होगा. यहां अकेले ग्रह से अर्थ यह है कि उस ग्रह को कोई भी अन्य ग्रह तथा किसी दृष्टि से न देख रह
लाल किताब में ग्रहों की दृष्टि के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण विचार दिए गए हैं जिनके अनुसार ग्रहों के प्रभावों को समझा जा सकता है. वैदिक ज्योतिष दृष्टि ग्रह की होती है भाव की नहीं. दूसरे पूर्ण दृष्टि ही मान्य है आधी-अधूरी
महादशा का विचार लाल किताब में उसके आधारित नियमों द्वारा किया जाता है. यहां लाल किताब में ग्रहों की महादशा का स्वरुप वैदिक ज्योतिष की भांति एक सौ बीस वर्ष का होता है. जो इसके अपने नियमों पर चलता है. महादशा के नियम |
कुर्बानी के बकरे के बारे में लाल-किताब पद्धति का अपना सिद्धांत होता है जिसका अर्थ होता है कि जब कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह से पीड़ित होता है तो वह अपना कष्ट दूसरे ग्रह के फल के अशुभ हो जाने से प्रदर्शित करता है और जिस
लाल किताब में चंद्र कुण्डली का बहुत महत्व होता है. जिस प्रकार वैदिक ज्योतिष में चंद्रकुण्डली का विवेचन किया जाता है उसी प्रकार लाल किताब पद्धति में भी चंद्र कुण्डली के द्वारा कई तथ्यों का अनुमोदन संभव होता है. लाल किताब
लाल किताब पद्धति में राशि के स्थान पर भावों की प्रधानता रहती है. इस बात का अर्थ यह नहीं है कि इसमें राशियों का कोई महत्व नहीं है अपितु राशियों का भी अपना पूर्ण स्थान एवं महत्व है. लेकिन फलित कि गुणवत्ता एवं सफल परिणाम
लाल किताब में निर्मित कुण्डली वैदिक ज्योतिष से भिन्न होती है. लाल किताब में लग्न मेष राशि के अंक एक से ही आरंभ होता है. अर्थात जन्म कुण्डली में चाहे कोई भी लग्न निर्मित हो रहा हो परंतु लाल किताब में सभी कुण्डलीयों का
लाल किताब के विषय में बहुत सी धारणाएँ फैली हुई हैं. यह विद्या कैसे आरम्भ हुई इसमें भी सभी लोगों में मतभेद है. लाल किताब की गणना वैदिक ज्योतिष से भिन्न है. लेकिन वर्तमान समय में ज्योतिष सबसे बड़ी भूल यही कर रहे हैं कि वह