लाल किताब का खाना नम्बर 1 | First House of Lal Kitab
लाल किताब में कुण्डली के पहले घर को राज्य सिंहासन कहते हैं. कुण्डली में ग्रहफल का ग्रह राजा कहा जाता है. ज्योतिष में इसे लग्न कहा जाता है. इस लग्न से ही जीव अर्थात रूह और माया अर्थात प्रकृत्ति का संबंध परिलक्षित होता है. भाग्य का शुभ होना इस घर में शुभ ग्रहों की स्थिति से भी निर्धारित होता है. व्यक्ति को शुभता इनमें स्थित शुभ ग्रहों से ही प्राप्त होती है. खाना नम्बर 1 को मेष राशि प्राप्त है. इसलिए लग्न में सूर्य उच्च का, शनि नीच का और मंगल स्वगृही होता है.
इसी प्रकार सातवें घर में तुला राशि स्वामी शुक्र है तो खाना नम्बर सात में शनि उच्च का और सूर्य नीच का तथा शुक्र स्वग्रही कहलाता है. सातवें भाव में कोई भी ग्रह न हो तो सभी ग्रहों का प्रभाव संदेहजनक माना जाता है. पहले और सातवें भाव में जो भी ग्रह उच्च या नीच के कहे गए हैं वह परस्पर झगडा़ नहीं करते. परंतु इसके उलट यदि शनि लग्न में नीच का हो और सातवें भाव में सूर्य नीच का हो जाए तो इसका कुप्रभाव सप्तम भाव पर पड़ता है.
इसी प्रकार यदि मंगल सप्तम में और शुक्र लग्न में हो तो स्त्री भाव में परेशानी उत्पन्न करेंगे. परंतु यदि लग्न में अकेला ग्रह हो और सप्तम में कई सारे ग्रह हों तो राजा से सुख स्वास्थ्य उत्तम रहेगा.
लग्न बैठा ग्रह तख्तनशीनी राजशाही जब करता हो,
आंख गिना घर आठ है उसकी 11 से हरदम चलता है.
यहां एक बात ध्यान देने की है कि लग्न स्थित ग्रह राजा है लेकिन वह राज्य का संचालन 11 वें भाव अर्थात कुम्भ राशि से करता है और आठवां भाव वृश्चिक उसका नेत्र कहा जाता है जिसके अनुसार यदि लग्न में मंगल हो या बनावटी मंगल हो या मंगल बद हो तो खाना नम्बर 1 देखेगा खाना नम्बर 11 को, यदि खाना नम्बर 11 खाली हो तो लग्न स्थित ग्रह अपना प्रभाव मेढे़ की चाल या बुध की चाल से देगा. बुध कुण्डली में जिस अवस्था में होगा वैसा फल देगा. आठवां भाव स्थित ग्रह लग्न वाले ग्रह की आंख है. लग्न का ग्रह अष्टमस्थ ग्रह की आंख से देखता है परंतु आठवां घर खाली हो तो लग्न वाले ग्रह की आखों को देखने में कोई रूकावट नहीं होगी. वह स्वयं अपनी आंखों से देखभाल करता है.
इस प्रकार लग्न से सप्तम, अष्टम तथा एकादश भाव का संबंध स्पष्ट किया गया है. प्रत्येक ग्रह की अपनी ताकत खाना नम्बर 1 में आने के समय उस ग्रह के मुकाबले में अन्य ग्रहों की ताकत का मापदण्ड निम्न प्रकार से बनती है.
- लग्न कुडली का सिंहासन होता है. जन्म समय में या गोचर में लग्न में बैठा हुआ ग्रह सिंहासन का अधिपति बनता है. इसलिए यदि लग्न में गुरू हो तो यह ग्रह किसी से वैर नहीं रखता है. चंद्रमा की ताकत ½, शुक्र की ताकत ¾, शनि की ¾ केतु की 5/6 होगी.
- सूर्य हो तो नीच नहीं होगा पर शुक्र हुआ तो शुक्र नीच का होगा. केतु की ताकत ½, बुध की ½, शनि की ताकत विभिन्न अनुपात में होगी.
- चंद्रमा के होने पर कोई ग्रह शत्रुता नहीं करेगा. राहु की ताकत ½ होगी.
- शुक्र हो तो यह किसी को नीच नहीं करता, चंद्रमा की ताकत ½, शनि की ताकत ⅓ रहेगी.
शनि हो तो चंद्रमा की ताकत ⅓, केतु की ताकत ½ होगी. - लग्न में राहु हो तो सूर्य की ताकत शून्य, चंद्रमा की ½ होगी.
- केतु हो तो चंद्रमा की ताकत चंद्रमा की ताकत शून्य और सूर्य की ताकत ½ होगी.
सूर्य का पहले घर में फल
लाल किताब के पहले घर में सूर्य की स्थिति व्यक्ति को राजा और अधिकारी बनाती है. ऎसे जातक से कोई भी शत्रुता रखेगा तो वह उस व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं होगा. व्यक्ति नेकी करेगा और गरीबों की सहायता करने वाला होगा. धन कभी नहीं घटेगा. ईमानदारी से किए हुए कामों में बरकत होगी. अगर सूर्य के मित्र ग्रह खराब हों तो सूर्य का फल नहीं मिल पाएगा. अगर सूर्य 1 में ओर शनि 8 में हो तो स्त्रियों का स्वास्थ्य खराब रहता है.
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बृहस्पति का पहले घर में फल
लाल किताब के पहले घर में बृहस्पति का प्रभाव राजगुरु जैसा प्रभाव देता है. एक प्रसिद्ध व्यक्ति बनता है. जातक को आर्थिक क्षेत्र में अच्छी उन्नती भी मिलती है. माता का प्रेम और सहयोग मिलेगा. माता जातक को सदैव साथ देगी. चंद्रमा की वस्तुएं लाभदायक होंगी. स्त्री का सुख मिलता है. व्यक्ति आकर्षक और स्वास्थ्य उत्तम होगा. अगर कुण्डली में चंद्रमा उत्तम हो तो व्यक्ति का आयु के साथ सुख भी बढे़गा. बृहस्पति अगर राहु के साथ होगा तो स्थिति खराब हो जाती है. सूर्य अगर मंदा होगा तो कानूनी कार्यवाही में धन खराब होगा.
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चंद्रमा का पहले घर में फल
चंद्रमा पहले घर में सफल जीवन और सुख को देने वाला होगा, व्यक्ति को सम्मान और कार्यों में सफलता की प्राप्ति भी होगी. जातक के जन्म से पहले उसके भाई बहनों के लिए कष्टदायक स्थिति भी रही होगी. माता-पिता की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो सकती है. अगर जातक की शादी 28 वर्ष से पहले होती है तो आयु और संतान से संबंधित परेशानी झेलनी पड़ सकती है.
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मंगल का पहले घर का फल
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शुक्र का पहले घर में फल
व्यक्ति अपनी ही सोच में लगा रहता है, वह एक ही पक्ष का सोचता है. अगर दयालु होगा तो सभी कुछ दे दान कर देने वाला होगा. अगर किसी का शत्रु होगा तो सब कुछ समाप्त कर देना चाहेगा. जातक चाहे अपने मार्ग से भटका हुआ हो लेकिन उसके सम्मान में कमी नही आती है. जब किसी से प्रेम करता है और अपना सभी कुछ लुटा देने वाला होता है. कुण्डली में शनि की अवस्था ही शुक्र को प्रभावित करती है. वाहन सुख मिलेगा. अगर जातक जवानी में प्यार इश्क के चक्कर में पड़ जाता है या वह जवानी में अपने परिवार के मुख्य सदस्य के रुप में उभरे तो यह स्थिति रिश्तेदारों के लिए अच्छी नही होती है. मंदा शुक्र माता का सुख और घर का सुख प्रभावित करता है.
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शनि का पहले घर में फल
शनि पहले घर में अच्छा नही माना गया. जातक के जन्म समय के दौरान ही जीवन में बहुत से उतार-चढा़व झेलने पड़ेंगे. अगर कुण्डली में बुध मंदा होगा तो शिक्षा अधूरी होगी. जातक के जन्म समय नमकनी वस्तु बांटना अच्छा होता है. आर्थिक हानि अधिक परेशान करेगी. व्यक्ति कई कामों में उलटफेर करने वाला होता है. धन को जोड़ने की कोशिश अधिक करता है. आयु लम्बी होती है. सूर्य और शनि का संबंध होने पर जातक को सरकार की ओर से परेशानी अधिक मिलती है.
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राहु का पहले घर में फल
लाल किताब के पहले घर में राहु के होने से यह एक प्रकार के ग्रहण की स्थिति भी होती है. क्योंकि लाल किताब के पहले घर का कारक सूर्य है. पर ग्रहण का काल सदैव नहीं रहता है. इसका अर्थ यह होगा की अगर किसी काम में परेशानी होगी तो उसमें सुधार की संभावना भी साथ में होगी. मन में भ्रम की स्थिति बहुत अधिक रहेगी. किसी न किसी कारण से मन में दुविधा और परेशानी लगी रहने वाली है. नौकरी में स्थान परिवर्तन अधिक हो सकता है.
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केतु का पहले घर में फल
केतु के प्रभाव पहले घर में होने पर जातक में धन के प्रति लालच रहेगा और वह प्रेम संबंधों की ओर आकर्षित भी रहेगा. अगर कुण्डली में मंगल 12वें में हो तो केतु खराब नहीं होगा. केतु अगर मंदा होगा तो पैतृक घर में जन्म होना अनुकूल होगा.
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