गजकेसरी योग कैसे बनता है? How is Gaja Kesari Yoga Formed

ज्योतिष शास्त्र में बहुत से योगों के विषय में लिखा गया है. ज्योतिष में बनने वाले यह योग व्यक्ति को शुभ और अशुभ प्रभाव देने में सक्षम होते हैं. वैदिक ज्योतिष में शुभ योगों में गजकेसरी योग (Gaja Kesari Yoga) को विशेष रुप से शुभ माना जाता है. यह योग गुरु से केन्द्र अर्थात लग्न, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव में चन्द्र हो तो 'गजकेसरी योग' बनता है. गुरु जो धन, ज्ञान, समृद्धि, सौभाग्य, संतान के कारक ग्रह है वहीं चन्द्र मन, गतिशिलता, तरलता, मनोबल, शीतलता, सुख-शान्ति के ग्रह है. यह दोनों ग्रह शुभ ग्रहों की श्रेणी में आते हैं इस कारण दोनों की युति जातक को जीवन में शुभता देने में सफल भी होती है.

गजकेसरी योग जिस भाव में बनता है जातक को उस भाव से संबंधित शुभ फल मिलते हैं. अगर लग्न में यह योग बन रहा हो तो जातक सुंदर योग्य होता है और अपने पराक्रम द्वारा जीवन को जीने की कोशिश भी करता है. दूसरे भाव में बनने पर व्यक्ति को परिवार की ओर से सुख और सौभाग्य भी मिलता है. तीसरे भाव में बनने पर यह योग व्यक्ति को भाई बंधुओं से सहयोग देने में सहायक होता है. इस प्रकार जहां योग निर्मित होगा वहां उस तरह के फल देने में भी सहायक होता है.

गजकेसरी योग का फल

गजकेसरी योग को जानने से पहले इसे समझना होगा की इसका अर्थ क्या होता है. गज को हाथी कहा जाता है और केसरी को शेर के लिए उपयोग किया जाता है. इसका अर्थ हुआ की इस योग के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति इतना संपन्न और वैभव से युक्त होता है कि उसे अपने जीवन में इन महत्वपूर्ण चीजों को रखने की क्षमता होती है. अगर देखा जाए तो, पहले के समय में राजा समक्ष व्यक्ति के पास ही यह महत्वपूर्ण चीजें रखने की योग्यता थी. आज के संदर्भ में हम इन चीजों को वाहन, वस्त्र और मकान के सुख से जोड़ कर देखते हैं. इसलिए जन्म कुण्डली में बनने वाला ये योग व्यक्ति को सुख और साधन सम्पन्न बनाने में सहायक बनता है.

गजकेसरी योग को लग्न से केन्द्र भाव में भी देखने का विचार है. इसकी शुभता केन्द्र भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में बनने वाले योग की तुलना में उत्तम होती है.

गज केसरी योग निर्माण कैसे होता है (Formation of Gaja Kesari Yoga)

गुरु चन्द्र से केन्द्र में होना चाहिए या (Jupiter must be in Kendra from Moon)

गुरु लग्न से केन्द्र में होना चाहिए (Jupiter must be in Kendra from Ascendant)

इस योग में देवगुरु बृहस्पति लग्न से केन्द्र में होने चाहिए या चन्द्र से तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट होने चाहिए. इसके साथ ही ऋषि पराशर ने यह भी कहा है कि :-

1 गुरु नीच स्थिति में

2 शत्रु भाव में

3. अस्त नहीं होना चाहिए

अगर गुरु गजकेसरी योग बनाते समय इनमें से किसी स्थिति में हों तो योग कि शुभता अवश्य प्रभावित होती है. इस स्थिति में "गजकेसरी योग' प्रतिमाह जन्म लेने वाले 20% से 33 % व्यक्तियों की कुण्डली में होता है. इसके अतिरिक्त ऋषि पराशर के अनुसार गजकेसरी योग बना रहा गुरु कुण्डली में वक्री या पाप ग्रह से दृष्ट नहीं होना चाहिए. यहां पर ध्यान देने योग्य एक विशेष बात यह है कि इस योग में गुरु का चन्द्र से केन्द्र में होना आवश्यक नहीं है.

गुरू और चंद्रमा का एक साथ एक ही भाव में स्थिति होना भी शुभ गजकेसरी योग को दर्शाता है. गजकेसरी योग में यह एक दूसरे पर समसप्तक दृष्टि से भी गजकेसरी योग का निर्माण करते हैं. गजकेसरी योग का निर्माण यदि शुभस्थ भावों में होता है तो यह जातक को जीवन में सकारात्मकता देने में सहायक बनता है, पर अगर यह योग 6,8,12 भाव में बनता है तो जीवन में उसी के अनुरूप फल देने में बहुत अधिक सक्षम नही हो पाता है.

शुक्र व बुध से बनने वाला गजकेसरी योग (Gaja Kesari Yoga formed through Venus and Mercury)

एक अन्य मत के अनुसार यह अगर शुक्र, चन्द्र से केन्द्र ( 1,5,7,10 ) में हों तब भी 'गजकेसरी" योग बनता है. पर व्यवहारिक रुप से यह पाया गया है कि शुक्र व बुध जब चन्द्र से केन्द्र में हों तब इस योग की शुभता में वृद्धि होती है. इस योग में चन्द्र का शुक्र व बुध से दृष्टि संबंध भी होना चाहिए.

अगर बुध, गुरु, शुक्र से चन्द्र का योग गजकेसरी योग में शामिल किया जाता है तो गजकेसरी योग को शुभ योगों में जो मान्यता प्राप्त है उसमें कमी आयेगी. कई बार वह निरर्थक भी हो जायेगा. क्योंकि इस स्थिति में यह योग नब्बे प्रतिशत व्यक्ति की कुंडली में बनेगा. ऐसे में यह उत्तम श्रेणी के शुभ धन योगों में से नहीं रहेगा.

वास्तविक रुप में यह देखा गया है कि शुक्र से चन्द्र केन्द्र में होने पर बनता ही नहीं है. शुक्र कि दोनों राशियां सदैव एक दूसरे से षडाष्टक योग रखती है. इस स्थित में शुक्र की एक राशि केन्द्र में हो भी तो दूसरी राशि हमेशा पाप भाव में होगी. इस स्थिति में गजकेसरी योग भंग हो जाता है तथा योग की शुभता, अशुभता का स्थान ले लेती है.

बुध से बनने वाले गजकेसरी योग में गुरु व बुध पर चन्द्र की दृष्टि होने की बात कही गई है. ऐसे में चन्द्र को इन दोनों ग्रहों से सप्तम भाव में होना चाहिए, तभी चन्द्र व गुरु एक- दूसरे से केन्द्र में हो सकते है.

गजकेसरी योग कब देता है सफलता

जन्म कुण्डली में योग की सकारातमकता और फल देने में सहायक कब बनती है. जब योग की दशा का आरंभ होता है तब उस समय उस योग की प्राप्ति भी मिलती है. जातक को जब गुरु की दशा में चंद्रमा की अंतर दशा प्राप्त हो या चंद्रमा की महादशा में गुरु की अतरदशा प्राप्त होती है तब उस समय गजकेसरी योग के प्रभाव बहुत अच्छे रुप में सामने आते हैं.

इसके अतिरिक्त भी जीवन में यह योग हर पल पर सहयोग देने में सहायक बनता है. जन्म कुण्डली में सकारात्मकता और शुभता को बढा़ने में बहुत सहायक होता है. इस योग की शुभता जातक के जीवन और आयु पर भी शुभता देने में सक्षम होती है. जन्म कुण्डली को ये योग मजबूत बनाता है.

अगर जन्म कुण्डली के लग्न में यह योग बनता है तो जातक को आयु से संबंधित लाभ देने में सहायक होता है. जन्म कुण्डली में बनने वाला बालारिष्ट जैसा अशुभ योग भी इसके बनने से कमजोर हो जाता है. यह योग व्यक्ति को सम्मानित ओर आत्मविश्वास देता है.

गजकेसरी योग में कमी कब आती है

गजकेसरी योग को एक बेहद ही शुभ और मजबूत योग माना गया है. इसके साथ ही एक तथ्य यह भी विचार में सदैव रहता है की जातक के जीवन में कई बार यह योग उस प्रकार का फल नहीं दे पाता जिसकी जातक को अपेक्षा रहती है. इस बात का मुख्य कारण इस योग का ऐसे स्थान पर बनना जहां उसकी शुभता मे कमी होना. जन्म कुण्डली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में जब ये योग बनता है तो अपनी स्थिति से प्रभावित होकर ये योग बहुत अधिक सफलता नहीं दे पाता है, या कहा जा सकता है की जातक को जीवन में वह लाभ और सफलता नहीं मिल पाती जिसके वह सदैव इच्छा रखता है.

इस बात को हम एक उदाहरण से इस प्रकार समझ सकते हैं की अगर छठे भाव में गजकेसरी योग बनता है तो जातक अपने कार्य क्षेत्र में बहुत अधिक ऊंचाईयां प्राप्त होने में संघर्ष अधिक करना पड़ता है. जातक की बार उस स्थिति से चूक भी जाता है जहां उसे सर्वोच्च स्थान मिल सकता है लेकिन उसे मिल नहीं पाता है.

गजकेसरी के शुभ लाभ

गजकेसरी योग के जीवन में बनने में पर निम्न लाभ मिलते हैं.

  • जातक समाज में एक सम्मानित स्थान को पाता है.

  • उसे जीवन में धन की प्राप्ति अवश्य होती है.

  • कर्ज से मुक्ति भी प्राप्त होती है.

  • व्यक्ति को वाहन और सुख सुविधाएँ मिलती हैं.

  • व्यक्ति जीवन में उच्च पद को प्राप्त कर पाता है.

  • जातक वाक पटुता में निपुण होता है, बोलचाल में कुशलता से दूसरों को प्रभावित कर सकने में भी सक्षम होता है.
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