अधिक मास अर्थात मास की अधिकता को ही अधिकमास कहा जाता है. मास का अर्थ माह से होता है. हिंदू पंचांग गणना में तिथि, दिन मास की स्थिति को समझने के लिए जिस वैदिक गणना आधार लिया जाता है, उसके अंतर्गत ही अधिक मास की कल्पना की गई है. वर्ष की सही

17 जुलाई को मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी इस दिन के बाद से सभी प्रकार के विवाह, सगाई, गृह प्रवेश मुहूर्त इत्यादि शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी. आषाढ़ मास की एकादशी के दिन से इन मांगलिक कार्यों पर रोक का आरंभ होगा. ऎसा इसलिए होगा क्योंकि

21 जून को लगने वाला कंकण सूर्य ग्रहण एक बहुत बड़ा और अधिक प्रभावशाली ग्रहण होगा. कंकण सूर्य ग्रहण को भारत समेत अन्य कई देशों में भी देखा जा सकेगा. इस कंकण सूर्य ग्रहण के प्रभाव के चलते राजनैतिक, आर्थिक, प्राकृतिक बदलाव स्पष्ट रुप से दिखाई

मई मध्य माह का समय ज्योतिष की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण समय होगा. इस समय के पर दो महत्वपूर्ण घटनाएं होंगी. ये दोनों घटनाएं गुरु और शनि ग्रह से जुड़ी हैं ज्योतिष में किसी भी ग्रह की चाल बहुत तरह के इफैक्ट देने वाली होती है. इस चाल का प्रभाव

शनि एक धीमी गति के ग्रह हैं ऎसे में इनका गोचर एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है. शनै: शनै: चलने वाले शनि की गति और उनका किसी राशि पर कैसा प्रभाव रहेगा इन सभी बातों को जानने की उत्सुकता तो रहती ही है, पर सबसे अधिक इस बात को लेकर ध्यान अधिक

<p> ज्योतिष में बहुत से योगों का वर्णन मिलता है. इन योगों में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के योग मिलते हैं. ज्वालामुखी योग अशुभ योगों में से एक योग है. इस योग में कभी कोई शुभ काम आरंभ नहीं करना चाहिए. शुभ तो क्या कोई भी महत्वपूर्ण

ज्योतिष में कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है जैसे कक्रय योग, दग्ध योग, कुलिक योग और यमघण्टक इत्यादि योग. यह योग शुभ-मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने जाते हैं अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना

नए और अच्छे वाहन की चाहत तो सभी के मन में रहती है, पर इसके साथ ही जो वस्तु हम ले रहे हैं वो सही रहे कोई दिक्कत न आई और हमारे लिए शुभदायक हो यह सभी बातें मन में चलती ही रहती हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही हमारे आचार्यों ने कुछ

काम को लेकर सभी के मन नई-नई योजनाएं बनती ही रहती है. हर व्यक्ति यह चाहता है की जब भी वह कोई नय काम शुरू करे तो उसे उक्त काम में अच्छी सफलता मिले. अपने काम से वह धन और मान सम्मान की प्राप्ति करे और उसका कार्यक्षेत्र शुभता और समृद्धि से

मंगल 2024 | Mars 2024 मंगल 05 फरवरी 2024 को मकर राशि में 21:42 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 15 मार्च 2024 को कुंभ राशि में 18:08 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 23 अप्रैल 2024 को मीन राशि में 08:38 पर प्रवेश करेंगे. मंगल 01 जून 2024 को मेष राशि में 15:37

किसी भी मुख्य कार्य को करने के लिए ज्योतिष में शुभ मुहूर्त विचार के बारे में बताया गया है. कई बार परिस्थिति वश अथवा समय के अभाव के चलते उपयुक्त समय न मिल पाने के कारण कोई सुनिश्चित या निर्धारित मुहूर्त नही मिल पाता है, तब उस समय सर्वार्थ

गुरू पुष्य योग रवि पुष्य योग एक बहुत ही विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण योग माना जाता है. ज्योतिष में इस योग की बहुत महत्ता है. इस योग के समय किए गए कार्यों में सफलता एवं शुभता की संभावना में वृद्धि होती है. इसके साथ ही व्यक्ति को सकारात्मक फलों की

24 जनवरी 2020 में शनि ग्रह का प्रवेश मकर राशि में होगा. 2020 से 2022 के आरंभ तक शनि मकर राशि में ही गोचर करेंगे. 11 मई 2020 को मकर राशि में ही वक्री होकर गोचर करेंगे. इसके बाद 29 सितंबर 2020 को मार्गी होकर मकर राशि में गोचर करेंगे. मकर

वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब उस समयावधि को संक्रान्ति कहते हैं. भचक्र में कुल 12 राशियाँ होती हैं. इसलिए सूर्य संक्रान्ति भी बारह ही होती है. इन बारह संक्रान्तियों को हमारे ऋषियों ने चार

किसी भी मुख्य कार्य को करने के लिए ज्योतिष में शुभ मुहूर्त विचार के बारे में बताया गया है. कई बार परिस्थिति वश अथवा समय के अभाव के चलते उपयुक्त समय न मिल पाने के कारण कोई सुनिश्चित या निर्धारित मुहूर्त नही मिल पाता है, तब उस समय अमृत

ज्योतिष में खरीदारी करने से संबंधित कई योगों के बारे में विवरण मिलता है. जिनमें शुभाशुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है. इन्ही योग में से ऎसे दो योग हैं द्विपुष्कर योग और त्रिपुष्कर योग. इन योगों में भूमि संपति से संबंधित कार्य शुभ होते हैं.

हमारे प्राचीन काल से भारतीय आयुर्वेद संतों ने सोलह कर्मकांडों का वर्णन दिया है। इन सभी सोलह अनुष्ठानों में शिशु के चुराकर्म संस्कार की प्रक्रिया भी शामिल है। वर्ष 2024 में 'चूड़ाकर्म संस्कार' अनुष्ठान के लिए निम्नलिखित शुभ तिथियां यहां दी

भगवान शिव की आराधना का एक विशेष दिन होता है शिवरात्रि. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि के रुप में जाना जाता है. इस तरह से यह शिवरात्रि मासिक होती है जो हर माह आती है. पौराणिक मान्यता अनुसार चतुर्दशी तिथि की रात्रि समय

27 नक्षत्रों में से छ: नक्षत्र ऎसे हैं जिन्हें गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है. यह नक्षत्र दो राशियों की संधि पर होते हैं, एक नक्षत्र के साथ ही राशि भी समाप्त होती है और दूसरे नक्षत्र के आरंभ के साथ ही दूसरी राशि भी आरंभ होती है. जैसे मीन राशि

प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है. प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है. भगवान शिव की पूजा एवं उपवास-