सभी मासों में पुरुषोत्तम मास का बहुत गहरा और गंभीर असर देखने को मिलता है. पुरुषोत्तम मास सभी 12 मासों से अलग होता है. यह प्रत्येक वर्ष में आने वाले मासों से इसलिए भिन्न है क्योंकि यह हर वर्ष नहीं आता है. यह केवल तीन वर्ष में 1 बार आता है. इस कारण इसके विषय में और इसकी महत्ता के बारे में पुराणों में बहुत ही सुंदर रुप से उल्लेख भी मिलता है.

पुरुषोत्तम क्यों है सभी 12 मासों से अलग

हिन्दी महिनों के नाम

  • चैत्र माह (मार्च से अप्रैल)
  • वैशाख माह (अप्रैल से मई)
  • ज्येष्ठ माह (मई से जून)
  • आषाढ़ माह (जून से जुलाई)
  • श्रावण माह (जुलाई से अगस्त)
  • भाद्रपद माह (अगस्त से सितंबर)
  • आश्विन माह (सितंबर से अक्टूबर)
  • कार्तिक माह (अक्टूबर से नवम्बर)
  • मार्गशीर्ष माह (नवम्बर से दिसंबर)
  • पौष माह (दिसंबर से जनवरी)
  • माघ माह (जनवरी से स फरवरी)
  • फाल्गुन माह (फरवरी से मार्च)
  • यह वो माह हैं जो प्रत्येक वर्ष में समान रुप से आते हैं. पर पुरुषोत्तम मास हर वर्ष नही आता है. यह पंचांग की गणना का वह अंग है जो समय को समान रुप से रखने के लिए हर तीन वर्ष में आता है. इसके द्वारा ही समय की गणना को सही रुप से किया जाना संभव हो पाता है.

    पुरुषोत्तम मास कथा

    पुरुषोत्तम मास की कथा को पुराणों में बहुत ही आकर्षक रुप में वर्णित किया गया है. पुरुषोत्तम मास का विचार और कथा का अध्ययन ही हमे बताता है की यह मास अपने आप में इतना विशेष क्यों है. पुरुषोत्तम मास के बारे में कहा गया है की इस मास को मल मास के नाम से पुकारा जाता रहा था. यह लम्बे समय तक अपने इसी स्वरुप में विराजमान रहा. मलमास को उसके नाम और बिना किसी अधिकार के होने के कारण कोई भी इस मास की प्रशंसा नहीं करता था.

    मल मास अपनी इस स्थिति से बहुत चिंतित रहने लगा. अपने नाम के कारण तो उसे सदैव ही निंदा सहनी पड़्ती थी. पर अब इसके साथ ही उसके कोई स्वामी नही थे तो इसलिए उसके अस्तित्व को नकारा जाने लगा था. परंतु सत्य बात यही थी की मलमास के बिना वर्ष की गणना कर पाना संभव ही नही हो सकता था. मलमास के बिना समय गणना की स्थिति अव्यवस्थित हो सकती थी.

    अपनी इस प्रकार की अवहेलना से दुखी मलमास चिंतित हो श्री हरि की शरण में जाता है. मलमास अपने महत्व और अपनी स्थिति का स्पष्ट रुप से श्री विष्णु जी के सामने सारी कथा कह देता है. मलमास की कथा के अनुसार, स्वामी विहीन होने के कारण उसे मलमास जैसी निंदा सुननी पड़ती थी. मल मास को इस बात से दु:खी होकर देख कर श्री विष्णु जी ने उसे आश्वासन प्रदान किया की अब से कोई तुम्हारी निंदा नहीं कर पाएगा.

    भक्तवत्सल श्रीविष्णु ने उसे अपने लोक में स्थान देने का निश्चिय क्या. भगवान ने मलमास से कहा की मैं अब से तुम्हे वरदान देता हूं की मै तुम्हारा स्वामी बनूंगा. तुम्हारे भीतर मेरे ही गुण विद्यमान होंगे. करुणासिंधु ने मलमास को अपने सभी दिव्य गुणों से सुशोभित कर दिया. मल मास को अपन अनाम पुरुषोत्तम दिया और कहा की अब से तुम पुरुषोत्तम मास के नाम से जगत में विख्यात होगे और मेरे नाम से ही जाने जाओगे. भगवान के दिए गए वरदान के अनुसार ही मल मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा. इस मास के स्वामी श्री विष्णु हैं, इसलिए इस समय पर श्री विष्णु जी का ध्यान-पूजन जप किया जाना अत्यंत उत्तम होता है.

    पुरुषोत्तम मास के अन्य नाम

    पुरुषोत्तम मास के अनेक नाम दिए गए हैं. इस मास को अधिकमास और मल मास भी कहा जाता है. इस दुर्लभ पुरुषोत्तम मास के समय पर भगवान श्री विष्णु के नामों का जप करना, स्नान, पूजन व दान करने से अनेक पुण्य फलों की प्राति होगी. इस मास को प्रत्येक दिवस का समय अपने अपने अनुरुप फलों को देने में सहायक होता है. इस समय पर एकादशी अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का स्थान उत्तम होता है. इस मास में आने वालि एकादशी तिथि के दिन व्रत करने और पुरुषोत्तम मास कथा का श्रवण करने से पुरूषोत्तम मास से प्राप्त होने वाले शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

    पुरुषोत्तम मास में उपासना का महत्व

    पुरुषोत्तम मास के प्रति तीसरे वर्ष में आगमन पर सभी स्थानों पर भगवान के भजन और पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है. इस पवित्र मास में जो भी कोई श्रद्धा-भक्ति के साथ शुभ अच्छे कार्य करता है उन्हें अपने द्वारा किए गए शुभ कर्मों का कई गुना पुण्य मिल सकेगा. इस पुरुषोत्तम या कहे अधिकमास को धर्म और कर्म के लिए अत्यंत उत्तम समय बताया गया है.

    पुरुषोत्तम मास के समय पर भागवत कथा का पाठ करने का विधान उत्तम बताया गया है. इस समय पर संध्या उपासना के साथ ही दीपक प्रज्जवलित करना भी अत्यंत उत्तम होता है. इस समय पर भगवान श्री विष्णु जी के समक्ष घी का दीपक नियमित रुप से जलाना चाहिए. इसी के साथ भगवान श्री विष्णु के मंत्र एवं उनके नामों का स्मरण करना चाहिए.