बृहस्पति का कुम्भ राशि में प्रवेश 6 अप्रैल 2021 को होगा. वर्तमान समय में बृहस्पति मकर राशि में गोचर कर रहे हैं. पर 6 अप्रैल 2021 में 00:23 मिनिट पर बृहस्पति का कुम्भ राशि में प्रवेश होगा. इसके साथ ही एक लम्बे समय से चली आ रही गुरु शनि कि

20 नवंबर 2020 को गुरु मकर राशि में वापसी कर रहे हैं. गुरु का अब मकर राशि में आना सभी लोगों पर अलग-अलग रुप से प्रभाव डालने वाला होगा. गुरु के लिए मकर राशि उसकी कमजोर राशि है यहां आकर गुरु के बल में कमी आ जाती है और इसी स्थान पर गुरु नीच

चतुर्ग्रही योग से अर्थ होता है कि जब कोई चार ग्रह एक साथ किसी एक राशि में स्थित हों. इस योग के प्रभाव के फलस्वरुप राशि पर उन सभी चार ग्रहों का प्रभाव होने पर विशेष लक्ष्ण उभरते हैं. कुंडली के किसी भी भाव मे स्थिति चार ग्रहों का योग उन के

शुक्र का गोचर सिंह राशि से निकल कर कन्या राशि में जाना होता है महत्वपूर्ण. कन्या राशि में शुक्र का गोचर होने वाला है. शुक्र ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में धन लाभ देने वाला और सौंदर्य, विलासिता का कारक भी बताया गया है. कुंडली में शुक्र शुभ

बुध ग्रह एक बौद्धिक ज्ञान और उचित मार्ग को निर्धारित करने वाला उत्तम स्थान प्राप्त ग्रह है. इस ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन को चहुंमुखी प्रतिभा से भर देने वाला होता है. बुध ग्रह एक प्र्कार की चंचलता और आकर्षण क्षमता से भी युक्त माना गया

सूर्य का कन्या राशि में जाना कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाता है. कन्या संक्रांति में सूर्य का पूजन और राशि का पूजन होता है. इस समय पर सूर्य का बुध के स्वामित्व की राशि कन्या में प्रवेश होता है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को आत्मा

गुरु (बृहस्पति) ग्रह का धनु राशि में मार्गी होने का फल गुरु का ग्रह का किसी भी राशि में गोचर का फल बहुत ही प्रभावशाली होता है. गुरु कहीं भी स्थित हों वह अपने प्रभाव से चारों ओर प्रकाश से उस स्थान को आलौकित करता ही है. इसी प्रकार गुरु ग्रह

बुध की स्थिति ग्रहों में एक कोमल और प्रसन्नचित स्वरुप ग्रह की है. बुध की स्थिति व्यक्ति को दिशाज्ञान देने में अत्यंत ही सक्षम ओर सुलभ होती है. बुध का एक राशि से दूसरी राशि में जाना बुध के लिए प्रभावों और उसके कारक तत्वों को प्रभावित करने

वर्तमान में शुक्र का गोचर कर्क राशि में हो रहे हैं, पर जल्द ही शुक्र का प्रवेश सिंह राशि में होगा. शुक्र का सिंह राशि में जाना कुछ न कुछ परिवर्तनों की ओर इशारा करते हुए दिखाई देगा. जिस समय पर शुक्र का गोचर सिंह में जाने पर एक प्रकार की

मंगल का गोचर इस बार मेष राशि से पुन: मीन में होगा और ऎसा इस कारण होगा क्योंकि मंगल वक्री होंगे. मंगल की चाल में बदलाव के कारण वह मेष राशि से निकल कर उलटे मीन राशि में प्रवेश करेंगे. 4 अक्टूबर 2020 को वक्री अवस्था में मंगल मीन राशि में

मंगल का गोचर अर्थात “भ्रमण काल”. मंगल जब किसी राशि में होता है घूम रहा हो उस समय को मंगल के गोचर की संज्ञा दी जाती है. राशि में उसकी स्थिति बहुत मजबूर होती है. ऎसे में जब भी मंगल अपनी मूलत्रिकोण राशि में जाते हैं, तो उस कारण मंगल के मिलने

सिंह संक्रांति का समय अगस्त माह के मध्य समय पर आता है. सिंह संक्रांति सूर्य के सिंह राशि में गोचर करने के समय को कहा जाता है. सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश ही सूर्य संक्रांति होता है. सूर्य संक्रांति के समय पर पूजा स्नान और दान के कार्य

शुक्र मिथुन राशि से निकल कर कर्क में प्रवेश करने वाले हैं. 20 अगस्त 2025 को शुक्र का कर्क राशि में प्रवेश होगा. इससे पहले शुक्र मिथुन राशि में गोचर कर रहे थे पर अगस्त की शुरुआत के साथ ही शुक्र अपनी चाल में बदलाव करेंगे. इस समय पर शुक्र का

बुध अपनी स्वराशि मिथुन को छोड़ कर अब कर्क राशि में प्रवेश करेंगे. मिथुन से निकल कर कर्क राशि में जाने पर बुध की स्थिति में बहुत तरह से बदलाव दिखाई देगा. इसका मुख्य करण यह है की बुध अभी तक अपनी ही राशि मिथुन में विराजमान थे और ऎसे में वह

वक्री मंगल का मेष राशि में होने का प्रभाव मंगल का मेष राशि में गोचर कई तरह से व्यक्ति को प्रभावित करता है. मंगल एक ऊर्जा से भरपूर ग्रह है. जब वह अपनी राशि में होता है तो उसकी उर्जा ओर अधिक विकसित होती जाती है. मेष राशि मंगल की स्वराशि है

वारुणी योग एक अत्यंत ही शुभ एवं उत्तम गति प्रदान करने वाला समय होता है. हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत ही पावन शुभ समय मुहूर्त भी है. यह उन शुभ मुहूर्तों की ही तरह है जो अबूझ मुहूर्त के महत्व को दर्शाते हैं. वारुणी योग के समय पर बहुत से

ग्रहों का गोचर प्रत्येक राशि पर अपने अनुरुप शुभाशुभ फल देने में समर्थ होता है. जब भी कोई ग्रह एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में जाता है वह समय किसी न किसी रुप में प्रभवित अवश्य करता है. इस साल के अंत में केतु की राशि में चेंज होने वाला है.

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में केतु का स्थान छाया ग्रह के रुप में है. इसे ग्रह न समझ कर परछाई कहा गया है. इस छाया ग्रह होने के कारण केतु बहुत ही गहरा असर डालने में सक्षम होता है. राहु ओर केतु यह दोनों ही ग्रह छाया ग्रह कहे जाते हैं. केतु ग्रह न

शुक्र अपनी स्वराशि वृष से निकल कर मिथुन राशि की ओर संचार करेंगे. शुक्र अपनी स्वराशि को त्यागकर बुध की राशि मिथुन में जाएंगे. शुक्र का बुध की राशि में जाना अनुकूल स्थिति की ओर इशारा करता है. शुक्र ओर बुध का संबम्ध मित्रता से युक्त माना गया

राहु का प्रभाव वृषभ राशि पर होने के कारण वृष राशि वालों के लिए तो अब आने वाला समय काफी बदलावों को दिखा सकता है. राहु एक ऎसा ग्रह है जो अपने प्रभाव का पूर्ण प्रभाव जिस स्थन में बैठा होता है या जिसके साथ बैठा होता है उसी के अनुरुप देता है.