आश्विन मास जो श्राद्ध कार्य के लिए अत्यंत ही शुभ और महत्वपूर्ण मास बताया गया है. अधिक मास के रुप में इस साल का समय आश्विन मास में होना इस समय को अत्यधिक उत्तम बनाने जैसा है. इस समय पर चंद्र आश्विन मास “अधिक” पुरुषोत्तम मास का समय होगा. इस की अवधि का आरंभ होगा.
आश्विन “अधिकमास” का आरंभ समय
आश्विन अधिक मास मंत्र
इस मास के आरंभ होने पर प्रात:काल सुर्योदय समय से पूर्व उठकर स्नान इत्यादि कार्यों को पूरा कर लेने के बाद भगवान को याद करना चाहिए. इस समय पर तुलसीदल से पूजा शालिग्राम का पूजन करना चाहिए और मंत्रों का पाठ करना चाहिए. इस शुभ समय पर संपूर्ण मास के दौरान इस मंत्र का 1 माला जाप नियमित करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.
“ गोवर्द्धनधर्म वन्दे गोपालं गोपरुपिणम् ।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदमं गोपिकाप्रियम् ।।”
अधिक मास का निर्णय कैसे होता है ?
अधिक मास का निर्धारन करने के लिए ज्योतिष शास्त्र गणना को आधार बनाया जाता है. भगवान सुर्य सभी ज्योतिषशास्त्र के अधिष्ठाता हैं. इसलिए सौर वर्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. सूर्य का मेषादि 12 राशियों में संक्रमण द्वारा संवत्सर बनता है. जिसे सौर वर्ष कहा जाता है.
ब्रह्मसिद्धांत के अनुसार - जिस माह में सूर्य देव का किसी भी राशि में संचरण न हो वह मास ही “अधिक मास” होता है.
“अधिकमास” का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विचार
धार्मिक व आध्यात्मिक उन्नती को पाने के लिए यह समय अत्यंत पुण्यदायी माना गया है. यह केवल आध्यात्मिक रुप से महत्वपूर्ण नही है अपितु ये समय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्व रखता है. ये एक गणित गणना ही जो संपूर्ण वर्ष के समय को एक सूत्र में बांधने में बहुत उपयोगी होती है.
ज्योतिष कि गणित गणना में सोर वर्ष 365 दिन 6 घंटे और 11 सैकंड का होता है. लेकिन एक चंद्र वर्ष 354 दिन और लगभग 9 घंटों का होता है. इस कारन से सोर वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच में आने वाले इस अंतर को खत्म करने के लिए शास्त्र के जानकारों ने “अधिकमास” की स्थापना की है.
चिंतामणि के अनुसार - एक अधिक मास से दूसरे अधिक मास तक की समय अवधि एक बार दोबारा से 28 मास से लेकर 36 मास के बीतर हो सकती है. इस तरह से हर तीसरे वर्ष में अधिकमास की पुनरावृत्ति होती है.
आश्विन अधिक मास महात्म्य
इस मास की निंदा मल मास के रुप में होती है. पर पुरुषोत्तम भगवान का साथ मिलने से श्रेष्ठ स्थान को पाता है. अधिक मास ने अपनी निष्ठा और तप द्वारा श्री विष्णु को प्रसन्न करके पुरुषोत्तम मास का नाम पाया. भगवान द्वारा इस मास को उन्का स्वामित्व प्राप्त हुआ और यह सभी मासों में सबसे उत्तम स्थान पा गया.
शिवपुराण के अनुसार भी इस मास को महत्व दिया गया है. मलमास, अधिमास या पुरुषोत्तम मास कहें इन सभी को भगवान शिव का स्वरुप बताया गया है. कुछ स्थानों में प्राप्त होता है जिसमें कहा गया है की भगवान शिव ही महीनों में अधिमास को भगवान शिव का स्वरुप कहा गया है. इस लिए इस मास में भगवान विष्णु और शिव भगवान की अराधना विधित है. मान्यता है की इस मास को दोनों का ही आशीर्वाद मिलता है. कहा जाता है कि सौ वर्षों के तप का फल इस मास में किए जाने वाले एक दिन के व्रत में स्वत: ही प्राप्त हो जाता है. ऎसे में इस मास की महत्ता बहुत ही शुभ रुप से प्रकट होती है.
आश्विन अधिक मास का फल
आश्विन अधिमास के आने पर व्यक्ति को चाहिए कि शृद्धा और विश्वास के साथ पूजा का आरंभ करना चाहिए. इस मास में व्रत, उपवास, पूजन, धर्म ग्रंथों का पाठ करना, दान और स्नान इत्यादि शुभ कार्यों को किया जाता है. यह मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला समय होता है.
अधिकमास जब भी जिस भी वर्ष में आता है उस वर्ष अनुसर उसके प्र्भाव को बताया गया है. आश्विन अधिक मास के बारे में कहा गया है कि जब आश्विन मास अधिमास होता है, तो उस समय देश और लोगों पर ही इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं. इस समय राज्य को दूसरे के शासन द्वारा परेशानी उठानी पड़ती है. गलत लोगों का बोल बाला होता है. चोरों से जनता अधिक परेशानी झेलती है. दुख का सर अधिक गहरा होता है. धार्मिक कार्यों में वृस्शि होती है. इस समय पर दक्षिण दिशा कि ओर अकाल जैसी स्थिति असर डालने वाली होती है. इस समय कुछ साकार्त्मक पहलू भी होता है जो आरोज्ञ को बढ़ाने में सहायक बनता है.
आचार्य गर्ग द्वारा - अधिमास को लेकर शिक्षित लोगों की वृद्धि होती है. ज्ञान में वृद्धि का का अच्छा समय भी आया है.