17 जुलाई को मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी इस दिन के बाद से सभी प्रकार के विवाह, सगाई, गृह प्रवेश मुहूर्त इत्यादि शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी. आषाढ़ मास की एकादशी के दिन से इन मांगलिक कार्यों पर रोक का आरंभ होगा. ऎसा इसलिए होगा क्योंकि इस दिन से भगवान श्रीविष्णु क्षीर सागर में निंद्रा अवस्था में चले जाएंगे. इस कारण से भगवान के शयन के साथ ही सभी शुभ मुहूर्तों पर रोक लग जाती है.

17 जुलाई को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है. इस एकादशी को देवताओं के शयन की एकादशी भी कहा जाता है. इस समय पर देवता विश्राम में होते हैं. ऎसे में हिंदू धर्म अनुसार होने वाले शुभ कामों को कुछ समय के लिए रोक दिया जाता है. इसके कुछ समय पश्चात श्रावण संक्राति के साथ ही दक्षिणायन का समय भी आरंभ हो जाएगा. दक्षिणायन समय पर देवताओं की रात्रि का समय होता है अत: ये दोनों समय का मेल होने से उन सभी कामों को रोक देने के निर्देश शास्त्रों में दिये गए हैं.

आषाढी एकादशी के बाद कब होगी शुभ मुहूर्त की शुरुआत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी के दिन से ही भगवान श्री विष्‍णु योग निद्रा में होते हैं. इस दिन को हिन्‍दू धर्म में विशेष महत्‍व प्रदान किया गया है. भगवान विष्‍णु के योग निद्रा में चले जाने के बाद से शुभ समय का आभाव हो जाता है. आने वाले लगभग चार महीने इसी प्रकार से भगवान योग निद्रा में रहते हैं. चार मास पश्चात भगवान श्री विष्णु कार्तिक एकादशी के दिन अपनी निंद्रा से जागते हैं. इस दिन को देवप्रबोधनी, देव उठानी देवोत्थान इत्यादि नामों से भी जाना जाता है. आने वाली 4 नवंबर को होगी देव उठानी एकादशी और एक बार फिर से शुरुआत होगी मांगलिक कार्यों की.

आषाढी एकादशी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं से ज्ञात होता है की ये दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं. इन दिनों में भगवान के अनुपस्थित होने के कारण ही कोई भी मांगलिक कामों न करने की बात बतायी गयी है. एक कथा अनुसार इस समय पर भगवान विष्‍णु पाताल लोक के राजा बलि के पास उसके संरक्षक के रुप में रहते हैं. ऎसे में उनके बिना कोई भी शुभ कार्य पृथ्वी पर नहीं हो पाते हैं.

एक अन्य कथा अनुसार श्री हरि इस समय पर क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं. इसलिए भगवान जब तक योग निंद्रा में रहते हैं उस समय तक हिंदू पंचांग में चौमासा का आरंभ होता है. इन चतुर्मास पर गृह प्रवेश के काम गृह निर्माण के कार्य, शादि इत्यादि शुभ अवसरों को रोक दिया जाता है. जब भगवान पुन: जागते हैं तो उस समय पर एक बार फिर से सभी काम आरंभ होते हैं.

भगवान के शयन की स्थिति होने की वजह से जनेऊ, नामकरण व उपनयन संस्‍कार इत्यादि भी नहीं किए जाने की परंपरा अधिक रहती है.

आषाढी एकादशी से शुरु होंगे साधना और उपासना कार्य

इस समय पर साधना का कार्य आरंभ होता है. ये समय पूजा ध्यान और मंत्र साधना करने के लिए बहुत अच्छा बताया गया है. इस समय पर एक साथ पर रह कर सत्संग का आयोजन होता है. साधु-मुनि व संत लोग भक्ति के सभी कामों में इस समय पर सभी को अपने धार्मिक विचारों से प्रेरित करते हैं.