अधिक मास अर्थात मास की अधिकता को ही अधिकमास कहा जाता है. मास का अर्थ माह से होता है. हिंदू पंचांग गणना में तिथि, दिन मास की स्थिति को समझने के लिए जिस वैदिक गणना आधार लिया जाता है, उसके अंतर्गत ही अधिक मास की कल्पना की गई है. वर्ष की सही गणना करने हेतु ही अधिक मास और क्षय मास का निर्धारण किया गया है.

कई सालों बाद आया आश्विन मास में अधिकमास

इस बार अधिक मास का समय आश्विन मास के समय पर होगा. इस कारण इस मास का समय पितृ पक्ष के दौरान होने से यह समय अत्यंत खास भी हो जाता है. आश्विन मास पितृ पक्ष के कार्यों के लिए महत्वपुर्ण समय माना गया है. ऎसे में इस समय पर अधिक मास होने के कारण इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाना तय है. आश्विन मास पर पितरों और श्री विष्णु भगवान का पूजन एक साथ होने पर समय की शुभता बढ. गयी है. पितरों के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा.

इससे पहले 2001 में आया था आश्विन अधिक मास. वर्तमान में इस बार फिर से आश्विन मास होने वाला है अधिक मास.

अधिक मास कब से कब तक होगा

अधिक मास का आरंभ 18 सितंबर 2021 को शुक्रवार से आरंभ होगा.

अधिक मास की समाप्ति 16 अक्टूबर 2021 को शुक्रवार के दिन होगी.

आश्विन अधिक मास में आने वाले व्रत और त्यौहार

  • 27 सितंबर 2020 को पुरुषोत्तम एकादशी
  • 28 सितंबर से 3 अक्टूबर तक पंचक काल होगा.
  • 29 सितंबर को भौम प्रदोष व्रत होगा.
  • 1 अक्टूबर 2020 को अधिक मास आश्विन पूर्णिमा होगी .
  • 13 अक्तूबर 2020 को पुरुषोत्तम एकादशी.
  • 14 अक्टूबर को प्रदोष व्रत होगा .
  • 15 अक्टूबर 2020 को मासिक शिवरात्रि व्रत .
  • 16 अक्टूबर 2020 को अधिकमास आश्विन अमावस्या .
  • आश्विन अधिक मास में क्या करना चाहिए

    अधिक मास के समय पर विशेष रुप से भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए. इस माह को भगवान श्री विष्णु ने नाम दिया है पुरुषोत्तम मास का. इस कारण से भगवान स्वय कहते हैं "कि जो व्यक्ति पुरुषोत्तम मास के समय मेरा पूजन करता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है". अत: अधिक मास के समय पर भगवान का पूजन, भजन नाम स्मरण इत्यादि करना उत्तम होता है.

    अधिक मास को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है

    अधिक मास को कई नामों से पुकारा गया है. इस मास को “मलिम्लुच”, “संसर्प”, “अंहस्पति”, “अंहसस्पति” इत्यादि नामों से पुकारा जाता है.

    अधिक मास क्यों आता है ?

    अधिक मास क्यों आता है इसे समझने के लिए हमें सूर्य सिद्धांत समझना होगा. पंचांग के निर्माण में जो गणित की गणना की जाती है उसमें वैदिक ज्योतिष गणित का उपयोग होता है. इस गणित में सौर वर्ष में 365 दिन, 15 घटी, 31 पल व 30 विपल होते हैं. पर इसके दूसरी ओर जब हम चन्द्र वर्ष की गणना करते हैं तो उसमें 354 दिन, 22 घटी, 1 पल व 23 विपल का समय आ जाता है. इस तरह से देखा जाए तो सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष दोनों में 10 दिन, 53 घटी, 30 पल एवं 7 विपल का अंतर आ जाता है. यह अंतर हर वर्ष में रहता है. सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के मध्य होने वाले इसी अंतर को दुर करने के लिए, अधिक मास की कल्पना को आधार दिया गया है.

    अधिक मास करें दान, हर समस्या का होगा समाधान

    अधिक मास के समय पर दान करने का महत्व बहुत अधिक कहा गया है. इस समय पर दान में धन, भोजन, वस्त्र का उपयोग बहुत ही शुभ होता है. स्वर्ण का दान करने से सौ यज्ञ करने का पुण्य फल प्राप्त होता है. मान्यता है की अधिक मास में किया गया अन्न दान पाप कर्मों को समाप्त करके पुण्य फलों को प्राप्त करने वाला होता है. इस समय के दान की महत्ता के बारे में नारद पुराण, विष्णु पुराण इत्यादि में वर्णन मिलता है.

    अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल कई गुना बढ़ जाता है. श्री विष्णु पूजा-पाठ द्वारा पाप कर्मों की शांति होती है. इस समय पर किसी भी प्रकार की हत्या से मुक्ति का फल भी प्राप्त होता है.भक्त गण अपनी पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से अपनी भक्ति के साथ इस पुरुषोत्तम मास में भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करते हैं. इन धार्मिक कार्य द्वारा भक्त का इहलोक और परलोक को सुधारने का मार्ग प्रशस्त होता है.

    यह मास इतना ही प्रभावशाली होता है कि किसी के भीतर आद्यात्मिक बल को मजबूती देने में सक्षम होता है. इस समय को पवित्र और शुद्धता की श्रेणी में रखा जाता है. हर तीन साल में आने वाले इस पावन समय पर कई प्रकार के प्रवचन एवं सत्संग के कार्य किए जाते हैं प्राथना और जप की महत्ता प्रमुख होती है.

    हर तीन साल बाद ही क्यों आता है अधिक मास

    अधिक मास आखिर तीन साल बाद ही क्यों आता है. आखिर क्यों और किन कारणों से इसे इतना पवित्र माना जाता है. इस बात को समझने के लिए वैज्ञानिक और ज्योतिषी आधारा दोनों की समान रुप से भूमिका को स्विकार किया गया है. वैज्ञानिक गणना और वैदिक ज्योतिष गणना इस स्थिति को बहुत ही स्टीक रुप से समझाने में मदद करती है. इन सभी सवालों को स्वाभाविक रूप से जानने की जिज्ञासा हम सभी के मन में आती है. तो आईये जानने की कोशिश करते हैं कि किस प्रकार ये काम करता है.

    ज्योतिष में महर्षि वशिष्ठ, पराशर, भास्कराचार्य इत्यादि के सिद्धांतों को देखा जाए तो उस अनुसार हिंदू कैलेंडर सूर्य और चंद्र के आधार पर चलता है. सूर्य मास को संक्रांति से समझा जाता है और चंद्र मास को पूर्णिमा-अमावस्या के आधार पर देखा जाता है.

    अधिकमास चंद्र वर्ष का एक आधिक भाग है, जो प्र्त्येक 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है. इसकी उत्पति इस लिए की गई ताकि सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच जो अंतर आता है उसका संतुलन बनाने में सहायता मिल सके. भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष में 354 दिनों का. इन दोनों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर आ जाता है. यह हर तीन वर्ष में लगभग 1 माह के समान हो जाता है. इसी अंतर को मिटाने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास सामने आता आता है. इस कारन से इसे अधिकमास की उपाधी प्राप्त होती है.

    अधिक मास में क्या नहीं करना चाहिए.

  • अधिकमास में सभी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं.
  • विवाह,सगाई, महोत्सव, मूर्ति प्रतिष्ठा नही की जाती है.
  • बड़े- बड़े यज्ञ का आयोजन कुछ विशेष कारण से होता है.