Articles in Category vedic astrology Muhurta

सूर्य का कन्या राशि में जाना कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाता है. कन्या संक्रांति में सूर्य का पूजन और राशि का पूजन होता है. इस समय पर सूर्य का बुध के स्वामित्व की राशि कन्या में प्रवेश होता है. ज्योतिष शास्त्र में
7 अगस्त 2022 को शुक्र का कर्क राशि में प्रवेश होगा. इससे पहले शुक्र मिथुन राशि में गोचर कर रहे थे पर अगस्त की शुरुआत के साथ ही शुक्र अपनी चाल में बदलाव करेंगे. इस समय पर शुक्र का कर्क राशि में जाना वृष और तुला राशि के
वक्री मंगल का मेष राशि में होने का प्रभाव मंगल का मेष राशि में गोचर कई तरह से व्यक्ति को प्रभावित करता है. मंगल एक ऊर्जा से भरपूर ग्रह है. जब वह अपनी राशि में होता है तो उसकी उर्जा ओर अधिक विकसित होती जाती है. मेष राशि
वारुणी योग एक अत्यंत ही शुभ एवं उत्तम गति प्रदान करने वाला समय होता है. इस वर्ष 2023 को 19 मार्च को वारुणी योग बनेगा. हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत ही पावन शुभ समय मुहूर्त भी है. यह उन शुभ मुहूर्तों की ही तरह है जो अबूझ
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में केतु का स्थान छाया ग्रह के रुप में है. इसे ग्रह न समझ कर परछाई कहा गया है. इस छाया ग्रह होने के कारण केतु बहुत ही गहरा असर डालने में सक्षम होता है. राहु ओर केतु यह दोनों ही ग्रह छाया ग्रह कहे
शुक्र अपनी स्वराशि वृष से निकल कर मिथुन राशि की ओर संचार करेंगे. शुक्र अपनी स्वराशि को त्यागकर बुध की राशि मिथुन में जाएंगे. शुक्र का बुध की राशि में जाना अनुकूल स्थिति की ओर इशारा करता है. शुक्र ओर बुध का संबम्ध
सूर्य का मिथुन राशि से निकल कर कर्क राशि में जाना ही “कर्क संक्रांति” कहलाएगा. 16 जुलाई 2023 को सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे. कर्क राशि वालों के लिए सूर्य उनकी राशि में ही गोचर करेंगे. सूर्य राशि द्वारा सूर्य का
बुध एक ऎसा ग्रह है जो बुद्धि विवेक पर अपना आधिपत्य रखता है. बुध ग्रह का प्रभाव किसी भी व्यक्ति को एक अच्छा जानकार और बेहतर वक्ता बनाने के लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकता है. किसी व्यक्ति विशेष, संस्था, स्थान के बारे में
आने वाली 10 जुलाई 202 को रविवार के दिन से सभी प्रकार के विवाह, सगाई, गृह प्रवेश मुहूर्त इत्यादि शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी. आषाढ़ मास की एकादशी के दिन से इन मांगलिक कार्यों पर रोक का आरंभ होगा. ऎसा इसलिए होगा
<p> ज्योतिष में बहुत से योगों का वर्णन मिलता है. इन योगों में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के योग मिलते हैं. ज्वालामुखी योग अशुभ योगों में से एक योग है. इस योग में कभी कोई शुभ काम आरंभ नहीं करना चाहिए. शुभ तो क्या
ज्योतिष में कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है जैसे कक्रय योग, दग्ध योग, कुलिक योग और यमघण्टक इत्यादि योग. यह योग शुभ-मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने जाते हैं अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ
काम को लेकर सभी के मन नई-नई योजनाएं बनती ही रहती है. हर व्यक्ति यह चाहता है की जब भी वह कोई नय काम शुरू करे तो उसे उक्त काम में अच्छी सफलता मिले. अपने काम से वह धन और मान सम्मान की प्राप्ति करे और उसका कार्यक्षेत्र
किसी भी मुख्य कार्य को करने के लिए ज्योतिष में शुभ मुहूर्त विचार के बारे में बताया गया है. कई बार परिस्थिति वश अथवा समय के अभाव के चलते उपयुक्त समय न मिल पाने के कारण कोई सुनिश्चित या निर्धारित मुहूर्त नही मिल पाता है,
गुरू पुष्य योग रवि पुष्य योग एक बहुत ही विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण योग माना जाता है. ज्योतिष में इस योग की बहुत महत्ता है. इस योग के समय किए गए कार्यों में सफलता एवं शुभता की संभावना में वृद्धि होती है. इसके साथ ही व्यक्ति
वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब उस समयावधि को संक्रान्ति कहते हैं. भचक्र में कुल 12 राशियाँ होती हैं. इसलिए सूर्य संक्रान्ति भी बारह ही होती है. इन बारह संक्रान्तियों को
किसी भी मुख्य कार्य को करने के लिए ज्योतिष में शुभ मुहूर्त विचार के बारे में बताया गया है. कई बार परिस्थिति वश अथवा समय के अभाव के चलते उपयुक्त समय न मिल पाने के कारण कोई सुनिश्चित या निर्धारित मुहूर्त नही मिल पाता है,
ज्योतिष में खरीदारी करने से संबंधित कई योगों के बारे में विवरण मिलता है. जिनमें शुभाशुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है. इन्ही योग में से ऎसे दो योग हैं द्विपुष्कर योग और त्रिपुष्कर योग. इन योगों में भूमि संपति से संबंधित
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है. प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है. भगवान शिव की
हिन्दु माह के अनुसार चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन गणेश जी के व्रत व पूजा का विधान है, जो श्रद्धालु इस व्रत को करते हैं तब भगवान गणेश उनके सभी संकटों को दूर करते हैं इसलिए इन्हें
पंचक का अर्थ है - पांच, पंचक चन्द्रमा की स्थिति पर आधारित गणना हैं. गोचर में चन्द्रमा जब कुम्भ राशि से मीन राशि तक रहता है तब इसे पंचक कहा जाता है, इस दौरान चंद्रमा पाँच नक्षत्रों में से गुजरता है. ऎसे भी कह सकते हैं कि
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
विवाह के लिए शुभ समय और शुभ मुहूर्त को बहुत ध्यान के साथ करना चाहिए. विवाह मुहूर्त के लिए कई बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है और बेहतर रुप से ज्योतिष गणना के द्वारा मुहूर्त शास्त्र एवं विवाह के लिए मुहूर्त
22 अप्रैल 2023 को नव विक्रम संवत का आरंभ होगा. 2080 का नव संवत्सर “पिंगल” नाम से पुकारा और जाना जाएगा. इस वर्ष संवत के राजा बुध होंगे और मंत्री शुक्र होंगे. पिंगल नामक संवत के प्रभाव से विकास के कार्यों में व्यवधान की
ज्योतिष में मुहूर्त एक ऎसा विषय है जो व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालने वाला होता है. एक शुभ मुहूर्त्त आपके किसी भी अटके हुए काम और रुके हुए काम को आगे बढ़ाने में बहुत ही सहायक होता है. कहीं नौकरी के लिए जाना
हम सभी चाहें जो भी काम करने का सोचें उसमें सफलता की इच्छा भी हमारे भीतर उस समय के साथ ही बढ़ने लगती है. हम सदैव यही चाहते हैं की हमारे सभी काम सफल रहें और उनके पूरा होने में हमारे सामने कम से कम परेशानी या बिलकुल भी कोई
वैदिक ज्योतिष में कुछ ऎसे योगों के विषय में चर्चा मिलती है जो अत्यंत ही शुभ योगों की श्रेणी में आते हैं. ऎसे ही कुछ योगों में गुरु पुष्य योग और रवि पुष्य योग का नाम आता है. यह दोनों ही योग किसी भी काम को करने में शुभता
काम की शुभता और उस शुभता में वृद्धि की इच्छा हम सभी के भीतर रहती है. कोई भी काम जो अच्छा हो मन को भाए और उससे जीवन में सुख एवं मांगल्य का वास हो, तो हम चाहेंगे की वह कार्य हमारे जीवन में बार-बार घटित हो. सुख एवं समृद्धि
हिन्दुओं के 16 संस्कारों में से एक संस्कार “मुंडन” होता है. हिन्दु धर्म परंपरा में इसका अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है. मुंडन संस्कार के समय बच्चे के सिर के जन्मसमय के केश अर्थात बालों को हटाया जाता है. बच्चे के सिर
ज्योतिष में कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है जैसे कक्रय योग, दग्ध योग, कुलिक योग और यमघण्टक इत्यादि योग. यह योग शुभ-मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने जाते हैं अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्राति कहलाता है. संक्रान्ति को हिन्दू पंचांग में सूर्य राशि परिवर्तन समय कहा जाता है. इस समय के दौरान बहुत से धार्मिक कृत्य भी किए जाते हैं. 12 राशियों में सूर्य का गोचर
श्री सत्यनारायण व्रत कथा को मुख्य रुप से पूर्णिमा तिथि पर संपन्न किया जाता है. इसके अतिरिक्त किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने हेतु भी श्री सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण किया जाता है. मान्यथा है कि भगवान सत्यनारायण की
पंचक अर्थात पांच, किसी कार्य का बार-बार होना और उसकी शुभता में कमी होना. यह नक्षत्र आधारित गणना होती है. जिसमें धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण से रेवती नक्षत्र तक का समय पंचक का समय कहलाता है. पंचक की गणना को चंद्रमा के
शादी जैसे शुभ मांगलिक कार्य के लिए एक अच्छे शुभ दिन का होना बहुत जरुरी माना गया है. प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई नया अध्याय जुड़ता ही है ऎसे में शादी-विवाह का कार्य भी दो लोगों के जीवन की एक नई शुरुआत ही है.
शुभ मुहूर्त में किए गए कामों को करने का फल भी शुभ प्रभाव देने वाला होता है. विवाह जैसा कार्य भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है. यह ऎसा काम है जो विवाह को एक शुभ आरंभ देता है और दांपत्य जीवन की मजबूत आधारशीला बनता है.
निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह - धनु राशि की कन्या से हो रहा हो, तो
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के
विवाह कार्य एवं अत्यंत ही शुभ व मांगलिक कार्य होता है तो ऎसे में इस कार्य में एक अच्छे शुभ मुहूर्त की तलाश हर किसी के मन में भी रहती है. माता-पिता अपने बच्चों के लिए विवाह मुहूर्त देखना चाहें या फिर लड़के लड़की खुद अपनी
विवाह को हर धर्म संप्रदाय में एक अत्यंत ही पवित्र बंधन के रुप में देखा जाता है. यह दो लोगों के जीवन का एक नया अध्याय होता है जिसे दोनों को एक साथ मिलकर लिखना होता है. एक सुखी दांपत्य जीवन की इच्छा हर लड़के-लड़की के मन
आप फरवरी 2024 में शादी के लिए कोई शुभ मुहूर्त खोज रहे हैं तो यहां मिलेंगे फरवरी माह में होने वाले विवाह के सभी शुभ मुहूर्त समय. आप खुद अपनी राशि से जान सकते हैं की फरवरी 2024 में आपके लिए कौन सा दिन रहेगा शादी के लिए
निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह - कर्क राशि की कन्या से हो रहा हो, तो
विवाह के लिए शुभ समय और शुभ मुहूर्त को बहुत ध्यान के साथ करना चाहिए. विवाह मुहूर्त के लिए कई बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है और बेहतर रुप से ज्योतिष गणना के द्वारा मुहूर्त शास्त्र एवं विवाह के लिए मुहूर्त
कुछ अशुभ योगों की गिनती में यमघंटक योग का नाम भी आता है. यह वह योग है जो अच्छे कार्यों में त्याज्य होता है. इस योग में व्यक्ति के किए गए शुभ कार्यों में असफलता की संभावना बढ़ जाती है. ज्योतिष में इन्हीं कुछ योगों को
नए और अच्छे वाहन की चाहत तो सभी के मन में रहती है, पर इसके साथ ही जो वस्तु हम ले रहे हैं वो सही रहे कोई दिक्कत न आई और हमारे लिए शुभदायक हो यह सभी बातें मन में चलती ही रहती हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही
आज इस लेख के माध्यम से हम मुहूर्त से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर विचार करना चाहेगें कि कौन सा मुहूर्त कब अच्छा होता है और इसमें किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. गोधूलि लग्न | Godhuli Lagna गोधूलि लग्न का अर्थ है
मुहूर्त को भारतीय ज्योतिष में किसी कार्य विशेष को प्रारंभ एवं संपादित करने हेतु एक निर्दिष्ट शुभ समय कहा गया है. ज्योतिष के अनुसार शुभ मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करने से कार्य बिना किसी रुकावट के और शीघ्र संपन्न होता है.
संकटनाशनगणेशस्तोत्रम भगवान गनपति जी का अत्यंत प्रभावि स्त्रोत है. इसके स्मरण मात्र से सभी संकटों का नाश होता है. यदि प्रतिदिन इस स्त्रोत का पाठ किया जाए तो व्यक्ति को सभी परेशानियों से निजात मिलने लगती है. भगवान गणेश
ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. हिन्दु धर्म में तिथियों के आधार पर मुहूर्त्त निकाले जाते हैं और उनके अनुसार विभिन्न कार्य किए जाते हैं. सभी कार्यों का मुहुर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है. प्रतिपदा तिथि