संकटनाशनगणेशस्तोत्रम भगवान गनपति जी का अत्यंत प्रभावि स्त्रोत है. इसके स्मरण मात्र से सभी संकटों का नाश होता है. यदि प्रतिदिन इस स्त्रोत का पाठ किया जाए तो व्यक्ति को सभी परेशानियों से निजात मिलने लगती है. भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं, इनकी शरण में जाकर भक्त समस्त चिंताओं से दूर हो जाता है और आनंद एवं सुख की अनुभूति को प्राप्त करता है. गणेश पूजन किये कोई शुभ व मांगलिक कार्य आरंभ नहीं करते हैं.
पुरातन पूजा क्रम में पंच देवोपासना भेद में श्री गणेश जी को प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ है. गणेश साधना के अनेक प्रयोग बताये जाते हैं जो जीवनोपयोगी हैं. प्रातःकाल गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने से कार्यों में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती. घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी का चित्र या प्रतिमा लगाने से धन लाभ होता है. गणपति को दूर्वा और मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाकर उनके सम्मुख शुद्ध घी का दीपक जलाने से कभी भी धनाभाव का सामना नहीं करना पड़ता है.
प्रातः काल गणपति जी के मंत्रों का 21 दिनों तक जप करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं. श्री गणेश भगवान को ब्रह्मा, विष्णु, शिव रुप कहा गया है. अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्र एवं समस्त देवता, पंचतत्व, नवग्रह आदि सभी कुछ गणपति जी के स्वरुप माने गए हैं. ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति कामनापूर्ति, संकटनाश, दांपत्य जीवन सुख आरोग्य इत्यादि कोई भी ऐसी कामना नहीं है जो कि गणेश कृपा से पूर्ण न हो.
श्री गणेश सभी सिद्धियों के प्रदाता और विघ्न विनाशक हैं. हिंदू धर्म में प्रत्येक कार्य का आरंभ करते हुए उसकी सफलता हेतु भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. गणेश साधना के अनेक प्रयोग बताये गये हैं, जिनके द्वारा समस्त अवसादों का नाश होता है इसी श्रेणी में संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् का पाठ करना अति उत्तम माना जाता है. तीनों वक्त श्री गणेश का पूजन करना श्रेस्कर होता है पूजन समय श्री गणेश को दूर्वा अवश्य चढ़ाएं, पुष्पों द्वारा श्री गणेश जी का आह्वान करें सिंदूर, घी का दीप और मोदक द्वारा पूजन करें.
नारद उवाच । Narada quotations
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु:कामार्थसिद्धये ।।१ ।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।।
तृतीयं कृष्णपिङ्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।२ ।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।३ ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।४ ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।५ ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।६ ।।
जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।७ ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ।।८ ।।
इति श्री नारदपुराणे संकटविनाशनं श्रीगणपतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।
संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् महत्व | Importance of Sankat Nashan Ganesha Stotram
इस स्त्रोत में नारद जी, श्री गणेश जी के अर्थ स्वरुप का प्रतिपादन करते हैं. नारद जी कहते हैं कि सभी भक्त पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये इनका नित्यप्रति स्मरण करना चाहिए.
श्री गणपति जी के सर्वप्रथम वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्ण पिंगाक्ष, गजवक्र, लम्बोदरं, छठा विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति तथा बारहवें स्वरुप नाम गजानन का स्मरण करना चाहिए. क्योंकि इन बारह नामों का जो मनुष्य प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल में पाठ करता है उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, श्री गणपति जी के इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ प्रदान करने वाला होता है.
इससे विद्या चाहने वाले को विद्या, धना की कामना रखने वाले को धन, पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र तथा मौक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस गणपति स्तोत्र का जप छहः मास में इच्छित फल प्रदान करने वाला होता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है इस प्रकार जो व्यक्ति इस स्त्रोत को लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त होती है.