वैदिक ज्योतिष शास्त्र में केतु का स्थान छाया ग्रह के रुप में है. इसे ग्रह न समझ कर परछाई कहा गया है. इस छाया ग्रह होने के कारण केतु बहुत ही गहरा असर डालने में सक्षम होता है. राहु ओर केतु यह दोनों ही ग्रह छाया ग्रह कहे जाते हैं. केतु ग्रह न होकर ग्रह की छाया है. पर इस छाया का भी अपना उतना ही महत्व होता है जितना अन्य का. शायद उससे भी बढ़कर इसका बहुत महत्व रहता है.

केतु ग्रह का सभी के जीवन में बहुत असर होता है.केतु की छाया जीवन में किसी रुप में पड़ रही है उसी के अनुरूप इसका फल मनुष्य को अवश्य प्राप्त होता है. मान्यता है की केतु की छाया का प्रभाव प्रकृति को ढक लेने में भी सक्षम है. केतु की शुभता से ज्ञान की प्राप्ति होती है. आत्मज्ञान मिलता है. जिस प्रकार अज्ञानी को ज्ञान का तभी पता चल सकता है जब उसे प्रकाश देने वाला गुरु मौजूद हो. उसी तरह से केतु ग्रह भी भीतर के ज्ञान को उजागर करने वाला होता है.

वृश्चिक राशि में केतु का प्रवेश (गोचर) समय

  • 23 सितंबर 2020 को केतु वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे.
  • केतु का वृश्चिक राशि प्रवेश समय दोपहर 12:52 के करीब होगा.

  • वृश्चिक राशि में स्थित होने पर केतु को उच्च का भी कहा गया है. वृश्चिक राशि में जाने पर केतु का बल अधिक बढ़ जाता है. वृश्चिक में गोचर करता हुआ केतु दूसरी राशियों की तुलना में ज्यादा स्ट्रांग हो जाते हैं. कुछ उच्च का होने पर तर्कशीलता का गुण देता है. गोचर में केतु यदि उच्च का हो तो अपने प्रभावों में तेजी देता है. केतु सदा अशुभ होता है जो सत्य नहीं है क्योंकि कुंडली में केतु का सही स्थान में होना और मजबूत होने से यह शुभ प्रभाव देने में भी सक्षम होता है.

    केतु के वृश्चिक में जाने के साथ ही अपनी स्ट्रांग स्थिति में होंगे. उच्च होना केवल आपके बल को दर्शाता है. केतु का प्रभाव शुभ या अशुभ स्वभाव को नहीं जिसके चलते किसी कुंडली में उच्च का केतु शुभ अथवा अशुभ दोनों प्रकार के फल ही प्रदान कर सकता है जिसका निर्णय उस कुंडली में केतु के शुभ और अशुभ स्वभाव को देखकर ही किया जा सकता है. कुंडली के विभिन्न भावों में स्थित होने पर उच्च के केतु द्वारा प्रदान किये जाने वाले फल भी अलग-ालग होंगे. कुछ संभावित शुभ तथा अशुभ फलों के बारे में विचार किया जा सकता है जो सामान्य फल विवेचना को दर्शाता है.

    केतु ग्रह की छाया का जीवन पर प्रभाव

    केतु का असर जीवन में विरक्ति का भाव लाता है. यह एक ऎसा ग्रह है जो भोग विलास से मुक्ति दिलाने में भी सक्षम होता है. केतु का खराब होने के कारण कई तरह के रोग जीवन में प्रभाव डाल सकते हैं. कुंडली में केतु के दोष युक्त होने या फिर खराब होने के कारण इस स्थिति से बचाव के लिए की प्रकार की बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती हैं.

    केतु के विषय में अनेक ग्रंथों में विचार मिलता है. केतु को ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान मिलता है. ज्योतिष में केतु ग्रह को एक पाप ग्रह माना जाता है. परंतु केतु के फलों को मिलने वाले शुभाशुभ फलों की प्राप्ति होती है. केतु के द्वारा व्यक्ति को हमेशा ही बुरे फल प्राप्त नहीं करते हैं. केतु ग्रह के द्वारा व्यक्ति को शुभ फल भी मिल सकते हैं.

    केतु से जुड़ी चीजें

    केतु का प्रभाव अनेक वस्तुओं और क्षेत्रों पर पड़ता रहता है. केतु को मुख्य रुप से यह आध्यात्म के साथ जोड़ा जाता है. इसके साथ जुड़ कर यह व्यक्ति को वैराग्य और मोक्ष की प्राप्ति कराने में भी सहायक होता है. नव ग्रहों में शायद केतु ही एक ऎसा ग्रह है जो मोक्ष के लिए सबसे अधिक सहायक ग्रह बनता है. केतु का संबंधो गुढ़ विषयों को समझने के लिए अत्यंत ही उपयोगी है. केतु तंत्र-मंत्र से जुड़े कार्यों आदि का कारक होता है.

    केतु से प्रभावित राशि और नक्षत्र

    ज्योतिष में केतु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है. लेकिन कुछ विचारकों द्वारा केतु के लिए वृश्चिक और धनु इसकी राशि है और इसी स्थान पर यह बली भी होता है. केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथनु में केतु निर्बल माना गया है. वहीं नक्षत्रों में केतु को अश्विनी नक्षत्र, मघा नक्षत्र और मूल नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त होता है. वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह राक्षस का धड़ है. इसके सिर के भाग को राहु को कहा गया है.

    केतु के गोचर का वृश्चिक राशि पर प्रभाव

    वृश्चिक राशि वालों के लिए केतु का गोचर के लिहाज से बहुत गंभीर असर देने वाला होगा. घरेलू स्तर पर आप थोड़े से धुन के पक्के होंगे. घर की चीजों और माहौल को संभालने की कोशिश भी करेंगे. ज्योतिष में केतु ग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं होने के कारण केतु जिस स्थान में अर्थात जिस भी भाव में बैठा होता है, उसके अनुसार फल देता है. इसलिए केतु जिस राशि में होता उसके अनुरुप फल देता है. अभी केतु वृश्चिक में बैठेंगे तो अब वह आपको ज्यादा प्रभावित करने वाले हैं.

    केतु तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम एवं द्वादश भाव में हो तो बेहतर फल देने वाला होता है. गोचर अगर कुंडली के इन भावों पर होता है फायदे का सौदा होता है. वृश्चिक राशि में तो ये स्थिति व्यक्ति को बेहतर सकारात्मक परिणाम देने में बहुत अधिक सफल भी होती है. व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों के प्रति गंभीर बनता है. आर्थिक स्थिति को बेहतर करने में सफल होता है.