स्वास्थ्य का हाल जानिए जैमिनी ज्योतिष से (Your Health and Jaimini Astrology)
हमारे शरीर के सभी अंगों पर किसी न किसी राशि का स्वामित्व रहता है. स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव का कारण भी राशियों व ग्रहों की युति और स्थिति पर निर्भर होता है ऐसा ज्योतिषशास्त्र का मत है. इस विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में नवम भाव का स्वामी आठवें घर में विराजमान होता है वह व्यक्त राशि आपके शरीर के विभिन्न अंगों पर राज करती है. अंगों पर पड़ने वाला शुभ अथवा अशुभ प्रभाव राशियों की युति तथा ग्रहो की स्थिति पर निर्भर करता है. अगर नौवें घर का स्वामी आठवें घर में स्थित हो तो व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, यानी आमतौर पर उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं कम मिलती हैं.
सूर्य और चन्द्र का शरीर में स्थान (The influence of Sun and Moon on the human body)
जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Jyotish) के अनुसार लग्न तथा अन्य भावों का प्रभाव व्यक्ति के सिर, चेहरा, गर्दन, बांह, पेट, जांघ, नितम्ब, जननांग, पैर, आंख तथा कान पर क्रमवार पड़ता है. लेकिन, गौर तलब बात यह है कि कुण्डली में सूर्य और लग्न में से जो भी अधिक बलवान होता है उससे शरीर का आंकलन किया जाता है. इसी प्रकार लग्न व चन्द्र में जो बलशाली होता है उससे हृदय का आंकलन होता है.नवमांश के आधार पर स्वास्थ्य का विवेचन (Health on the basis of the Navamsha Kundali)
ज्योतिषशास्त्र का मानना है कि कुण्डली में अगर पुत्र कारक और मातृ कारक ग्रह सूर्य के सामने स्थिति हों तो यह इस बात को दर्शाता है कि 40 वर्ष के बाद स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव आ सकता है. वैसे, स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव के विषय में नवमांश की स्थिति से काफी कुछ पता लगता है. इस संदर्भ में आत्मकारक ग्रह का विभिन्न नवमांश में होना अलग-अलग रोग व रोग के कारणों को इंगित करता है.आत्मकारक एवं राशियों के रोग (Atmakaraka and illnesses)
अगर आत्म कारक ग्रह मेष राशि में स्थित हो तो चुहे और बिल्ली जैसे जन्तुओं से होने वाले रोगों की संभावना रहती है. अगर आत्मकारक ग्रह वृष में हो तो बैल, घोड़े व इसी प्रकार के अन्य पशुओं से सम्बन्धित रोग की आशंका होती है. आत्मकारक ग्रह मिथुन राशि में बैठा हो तो देर से पता चलने वाले रोग तथा मोटापे से होने वाले रोग की संभावना बनती है. अगर आत्मकारक ग्रह कर्क में हो तो जल व जलचर जीवों से होने वाली बीमारियों की आशंका रहती है. आत्मकारक ग्रह सिंह राशि में हो तो कुत्ते और अन्य दांत वाले जानवरों से बचकर रहने की सलाह दी जाती है. आत्मकारक कन्या राशि में हो तो अग्नि से भय व चर्म रोग की संभावना रहती है. तुला राशि में हो तो मदिरा व नशीली चीज़ों से बचने की सलाह दी जाती है क्योंकि इनसे बीमार होने की संभावना प्रबल रहती है.आत्मकारक वृश्चिक राशि में हो तो जानवर, जीव-जन्तु और रेंगने वाले प्राणियों से बीमारी का भय रहता है. धनु राशि में आत्मकारक होने से वाहनों से दुर्घटना, सीढ़ी, पर्वत तथा अन्य ऊँचे स्थानों से गिरने की आशंका रहती है. शनि की राशि मकर में आत्मकारक ग्रह होने से मछलियों, जंगली जानवरों के प्रभाव से बीमार होने की आशंका रहती है. इनके स्वास्थ्य में कमी का कारण स्त्रियां भी हो सकती हैं. आत्मकारक ग्रह कुभ राशि में हो तो मानसिक पीड़ा एवं अनिद्रा की संभावना रहती है. मीन में आत्मकारक ग्रह की उपस्थिति होने से जल से होने वाले रोग विशेषतौर पर पैरों में सूजन व ड्रोप्सी की आशंका होती है.
कारकांश से रोग (Illnesses due to Karakamsh)
जैमिनी ज्योतिष में सबसे महत्वपूर्ण कारक लग्न को माना जाता है. जिस राशि में आत्मकारक व कारकांश ग्रह हों तथा इससे छठे घर में जो राशि स्थित होता है उससे स्वास्थ्य व रोग का विचार किया जाता है. इस सिद्धान्त के अनुसार यह भी बताया गया है कि आत्मकारक से छठा घर अधिक रोग व पीड़ा देता है. यह लग्न से छठे घर से मिलने वाले रोग के अनुपात में भी अधिक पीड़ादायक होता है.ग्रह व कारकांश के सम्बन्ध से रोग (Planets and illnesses due to their relationship with Karakamsh)
जैमिनी ज्योतिष कहता है कि चन्द्रमा कारकांश में हो व उस पर मंगल की दृष्टि पड़ रही है तो गंभीर रोग की संभावना बनती है. कारकांश अगर गुलिक के युति बनाये और बुध उसे देख रहा हो तो हार्निया की आशंका रहती है. कारकांश व केतु की युति पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने से कान में तकलीफ तथा चन्द्र अगर कारकांश से चौथे भाव में हो व शुक्र उसे देखता हो तो कुष्ठ रोग की संभावित होता है. केतु के कारकांश से चौथे भाव में होने पर ड्रोप्सी नामक रोग की संभावाना रहती है.मदिरा सेवन के विषय में माना जाता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहु व मंगल कारकांश से चौथे अथवा पांचवें में होता है वह मदिरा पीने की चाहत रख सकता है. अगर चन्द्रमा मंगल को देख रहा हो तो यह स्थिति भी मदिरा सेवन को दर्शाता है.