शनि और राहु का सम्बन्ध (Astrological Relationship between Rahu and Saturn)
राहु का नाम केतु के साथ लिया जाता है परंतु इन दोनों ग्रहों में जितना विभेद है उतनी ही समानता राहु एवं शनि में है. शनि और राहु इन दोनों ग्रहों को पाप ग्रह के रूप में माना जाता है. ज्योतिषशास्त्र में शनि और राहु को एक विचार एवं गुणों वाला भी माना गया है. आमतौर पर इन दोनों ही ग्रहों को दु:ख एवं कष्ट का कारक समझा जाता है. लेकिन, ये दोनों ही ग्रह कुण्डली में बलवान हों तो राजयोग के समान फल देते हैं (Strong Rahu or Saturn give results of a Raja yoga). राहु-केतु में कुछ समानता हैं तो कुछ विभिन्नताएं भी हैं फिर भी ज्योतिषशास्त्र के बहुत से विद्वानों की सामान्य धारणा है कि शनि एवं राहु एक समान ग्रह हैं. दोनों ही ग्रह एक समान फल देते हैं.
शनि ज्योतिष में महत्व
शनि ग्रह को शनैश्चर कहा जाता है जिसका अर्थ हुआ धीरे-धीरे चलने वाले हैं, इसलिए एक राशि में सबसे अधिक समय शनि देव ही रहते हैं. शनि देव को कर्म के अनुरुप फल देने वाला कहा जाता है. इसी कारण इनका प्रभाव जीवन पर बहुत अधिक गहरा पड़ता है. शनि के ढाई साल और शनि के साढ़े सात साल व्यक्ति की जिंदगी को उलट-पुलट कर देने में सक्षम होते हैं. जन्म कुण्डली में शनि दशा, गोचर में शनि का प्रभाव जब भी जीवन में आता है तो जातक पर इसका असर जरुर पड़ता है.
शनि को शरीर में मुख्य रूप से वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित करते हैं. जब शनि कुण्डली में खराब होता है या खराब भावों का स्वामी होता है तो उस स्थिति में शरीर पर शनि के प्रभाव को बहुत प्रभावशाली रुप में देखा जा सकता है. शनि के प्रभाव से शरीर में दर्द और वात प्रभाव और मानसिक तनाव की अधिकता बनी रहती है.
शनि को मकर और कुम्भ राशि का स्वामित्व प्राप्त है. यह दोनों राशियां इनके प्रभाव क्षेत्र में आती हैं. इसके अतिरिक्त शनि तुला राशि में होने पर मजबूत होते हैं. तुला में शनि को उच्च माना जाता है. मेष राशि में शनि की नीच स्थिति कही जाती है इसमें शनि कमजोर होते हैं. कुम्भ राशि शनि की मूल त्रिकोण राशि है जिसके प्रभाव से शनि को मजबूती है. तुला में स्थित होने से शनि को बहुत अधिक मजबूती मिलती है. इसके अतिरिक्त शनि मकर तथा कुंभ में स्थित होने पर भी बल पाते हैं. शनि के प्रभाव जातक को वकील, नेता का काम करने वाले लोग तथा गुढ़ विद्याओं में रुचि रखने वाला बना सकता है.
शनि का ज्योतिषीय स्वरुप
शनि ग्रह को नपुंसक, कृष्ण वर्ण का, पश्चिम दिशा का स्वामी, वायु तत्व प्रधान माना गया है. शनि द्वारा ज्योतिष में आयु का विचार, शारीरिक बल क्षमता का विचार, जीवन में आने वाली परेशानियों का विचार, नौकरी, विदेशी भाषा, मूर्च्छा, प्रभु भक्ति और मोक्ष इत्यादि बातों का विचार किया जाता है. शनि को ज्योतिष में पाप ग्रह कहा गया है, शनि जातक को दुर्भाग्य और जीवन में उत्पन्न होने वाले संकटों के प्रभाव में डाले रखता है पर अंत में इन संघर्षों से आगे बढ़ते हुए जातक को शुद्ध एवं सात्विक जीवन की सत्यता से भी अवगत कराता है. शनि जातक में विरक्ति का भाव भी लाता है. इसी के द्वारा इस ज्ञान का भी पता चलता है की जीवन में भोग इत्यादि से आगे बढ़कर मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन की सार्थकता को दिखाती है.
ज्योतिष में राहु का स्वरुप
ज्योतिष में राहु को पाप ग्रह कहा जाता है. राहु के बारे में बहुत सी जानकारी मिलती है. राहु को धुआं भरा हुआ, क्रूर स्वभाव युक्त और बौद्धिकता को भ्रमित करने वाला है. कूटनीति से जुड़े काम राहु के द्वारा प्रभावित होते हैं. राहु के प्रभाव से व्यक्ति परंपरा से हट कर काम करने वाला होता है. राहु कृष्ण वर्ण का और दक्षिण दिशा का स्वामी रहा है. राहु कुण्डली में जिस भी भाव में स्थित होता है उस स्थान से संबंधित बाधा अवश्य देता है. यह स्थिति उस स्थान की उन्नती में कुछ रुकावट तो अवश्य दिखाती है. इसके द्वारा छुप कर किए हुए काम होते हैं, राहु के प्रभाव से व्यक्ति को उचित स्थिति दिखाई नही देती है.
राहु की सहायता से व्यक्ति को किसी चीज के विषय में शोध करने की इच्छा भी रहती है. राहु एक साथ बहुत सी चीजों की ओर लगाव भी देता है. यह आपको लम्बे समय से चली आ रही चीजों से हट कर काम करने की सलाह देता है. इसके द्वारा आपके जीवन में चीजों को लेकर उत्सुकता होगी पर साथ ही भ्रम भी बना रहने वाला होता है. राहु की कारक वस्तुओं में वाणी में कुछ कठोरता, झूठ बोलने की प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है, क्योंकि ये सत्य का बोध कराना नहीं चाहता है. अपने जन्म स्थान से हटाने का काम भी यही करता है.
राहु के द्वारा जातक को विदेश में जीवन यापन एवं यात्रा इत्यादि करने के मौके भी मिलते हैं. अनेक अधूरी इच्छाएं, त्वचा से संबंधित रोग, विष का प्रभाव, सांप, महामारी, अनैतिक संबन्ध, दादा और नानी इत्यादि को राहु के द्वारा देखा जाता है. राहु के द्वारा जातक व्यर्थ के तर्क करने में ज्यादा ही आगे रहता है. दिखावा, उत्तेजक भाषा दिखावटीपन, अंधेरा, धुआं, निचले तबके के लोग, सट्टा खेलना, चालाकी से भरे काम करना, शराब इत्यादि नशे का प्रभाव को राहु द्वारा जीवन को प्रभावित करता है.
शनि राहु में समानता (Similarities between Saturn and Rahu)
शनि एवं राहु दोनों ही कार्मिक ग्रह माने जाते है (Saturn and Rahu give results according to the Karma). कर्मिक का अर्थ होता है कर्म के अनुरूप फल देने वाला. नवग्रहों में शनि देव को दण्डनायक का पद प्राप्त है जो व्यक्ति को उनके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार सजा भी देते हैं और पुरस्कार भी. राहु का फल भी शनि की भांति पूर्व जन्म के अनुसार मिलता है. राहु व्यक्ति के पूर्व जन्म के गुणों एवं विशेषताओं को लेकर आता है.
शनि एवं राहु दोनों ही ग्रह दु:ख, कष्ट, रोग एवं आर्थिक परेशानी देने वाले होते हैं. परंतु, जन्मपत्री में ये दोनों अगर शुभ स्थिति में हों तो बड़े से बड़ा राजयोग भी इनके समान फल नहीं दे सकता. यह व्यक्ति को प्रखर बुद्धि, चतुराई, तकनीकी योग्यता प्रदान कर धन-दौलत से परिपूर्ण बना सकते हैं. ऊँचा पद, मान-सम्मान एवं पद प्रतिष्ठा सब कुछ इन्हें प्राप्त होता है.
शनि राहु में भेद (Differences between the nature of Saturn and Rahu)
शनि राहु में कुछ समानताएं हैं तो इनमें अंतर भी हैं. शनि का भौतिक अस्तित्व है अर्थात यह पिण्ड के रूप में मौजूद हैं, जबकि राहु एक आभासीय बिन्दु है इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है. इसे छाया ग्रह भी कहते हैं. मकर एवं कुम्भ इन दोनों राशियों का स्वामित्व शनि को प्राप्त है जबकि राहु की अपनी कोई राशि नहीं है. राहु जिस राशि में बैठता है उसे अपने अधिकार में कर लेता है.
शनि देव की गति मंद होने के कारण शनि का फल विलम्ब से अथवा धीरे-धीरे प्राप्त होता है जबकि राहु जल्दी फल देने वाला ग्रह है (Rahu gives quick results while Saturn gives delared results). यह एक पल में अमीर बना देता है तो दूसरे ही पल कंगाल बनाने की भी योग्यता रखता है. शनि देव का गुण है कि यह व्यक्ति को ईमानदारी एवं मेहनत से आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं तो राहु चतुराई एवं आसान तरीकों से सफलता पाने का विचार उत्पन्न करता है.
शनि राहु में विभेद के साथ समानता (Other similarities between Rahu and Saturn)
शनि एवं राहु में एक बहुत ही रोचक विभेद और समानता भी है. राहु वृष राशि में उच्च का होता है और वृश्चिक में नीच का तो शनि तुला में उच्च होते हैं एवं मेष में नीच होते हैं. इस तरह दोनों ही शुक्र की एक राशि में उच्च के होते हैं और मंगल की एक राशि में नीच के हो जाते हैं. इन दोनों का प्रभाव एक दूसरे के जैसा होता है. पर इनमें इस बात पर एक बहुत बड़ा भेद भी देखने को मिलता है की जहां शनि हमे कर्मों के अनुरुप फल देते हैं राहु का फल जिस भाव में राहु हो और जिस ग्रह राशि में या ग्रह के साथ में हो उसके फलों को अपने में आत्मसात कर लेता है और उसके अनुसार ही फल भी देता है.
एक उक्ति इन दोनों के भेद को समाप्त करने में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है - “शनिवत राहु, कुजवत केतु” अर्थात शनि के समान राहु का फल होता है और मंगल की तरह केतु का फल होता है. ऎसे में शनि और राहु के संदर्भ में बहुत सी समानता और असमानता की कमी स्पष्ट होती है विभिन्न पहलूओं पर