साढ़ेसाती का फल - Result of Saturn Sadesati

शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है. यह व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार शुभाशुभ फल देता है. लेकिन, आमतौर पर लोग इसे अशुभ एवं कष्टकारी ग्रह के रूप में देखते हैं. शनि के विषय में यह आम मानसिकता बन चुकी है कि यह केवल कष्ट एवं दु:ख देते हैं जबकि, शनि कष्ट ही नहीं सुख एवं वैभव देने वाले ग्रह भी हैं. शनि का भय सबसे ज्यादा लोगों को साढ़ेसाती के नाम से होता है क्योंकि, साढ़ेसाती के साढ़े सात वर्षों में शनि अपने पूर्ण प्रभाव में होता है.

साढ़ेसाती में शनि का प्रकोप (Saturn's Terror During Sadesati)

जिस प्रकार दूसरे ग्रह विभिन्न राशियों में गोचर करते हैं. शनि भी गोचर करता है. शनि का गोचर ही साढ़ेसाती कहलता है (The transit of Saturn causes Sadesati). गोचर में शनि जब जन्म राशि से एक राशि पीछे होता है तब साढ़ेसाती का आरम्भ माना जाता है. शनि की इस अवस्था को साढ़ेसाती का पहला चरण कहा जाता है. दूसरा चरण वह होता है जब शनि जन्म राशि में होता है. साढ़ेसाती का तीसरा और अंतिम चरण उसे कहते हैं जब शनि जन्म राशि से अगली राशि में गोचर करता है. शनि प्रत्येक राशि में ढ़ाई वर्ष होता है और साढ़ेसाती की अवधि में तीन राशियों में गोचर करता है. (Saturn remains in one sign for 2.5 years and transits three signs in 7.5 years)

प्रत्येक राशि में शनि अलग-अलग फल देता है इसलिए जरूरी नहीं है कि साढ़ेसाती के समय व्यक्ति को पूरे साढ़ेसात साल तक परेशानी एवं कष्ट उठाना होगा. जिस राशि में शनि गोचर करते हैं उस राशि से शनि के सम्बन्ध के अनुसार साढ़ेसात सालों में व्यक्ति को अच्छे बुरे एवं मिश्रित फल प्राप्त हो सकते हैं. इसलिए शनि के प्रकोप से भयभीत नहीं होना चाहिए.
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साढ़ेसाती के दौरान शनि के फल का विचार (Understanding Saturn's Impact during Sadesati)

साढ़ेसाती के समय शनि कष्टकारी होंगे यह सोचकर कभी भी भयभीत नहीं होना चाहिए बल्कि पहले यह समझ लेना चाहिए कि शनि उनके लिए शुभ फलदायी हैं अथवा कष्टकारी. इस स्थिति को जन्मकुण्डली में शनि की अवस्था से जाना जा सकता है. शनि यदि जन्म कुण्डली में स्वराशि में है तो शढ़ेसाती काल में आने वाली चुनौतियों का सामना व्यक्ति आसानी से कर पाता है इस समय व्यक्ति उन्नति भी करता है. शनि उच्च राशि में बैठा हो तथा योगकारी भी हो तब भी साढ़ेसाती में व्यक्ति को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है (If Saturn is exalted or Yogakarak there are no problems during Sadesati). शनि अपने नवमांश में वर्गोत्तम होने पर साढ़ेसाती की अवधि में कष्ट की बजाय उन्नति एवं सुख प्रदान करता है.

साढ़ेसाती के समय उन्हें ही कष्ट की अनुभूति होती है जिनकी कुण्डली में शनि नीच राशि में बैठा होता है. शत्रु राशि में बैठा शनि भी साढ़ेसाती की अवधि में मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट देता है. नवमांश में शनि के शुभ नहीं होने पर भी साढ़ेसाती एवं ढैय्या के समय कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शनि अशुभ और कष्टकारी ग्रह नहीं है. यह न्यायकर्ता हैं सभी के साथ न्याय करते हैं. जो अच्छे कर्म करते हैं उन्हें शनि उन्नति देता है तथा जो ग़लत काम करते हैं उन्हें सजा भी देता है.

What is Shani Sade Sati - शनि साढेसाती क्या है

साढ़ेसाती से बचाव के उपाय (Protection Measures during Sadesati)

साढ़ेसाती के समय कष्ट एवं तकलीक से बचने हेतु व्यक्ति को अपना व्यवहार नम्र रखना चाहिए. ईश्वर के प्रति श्रद्धावन रहकर उनका ध्यान करना भी लाभप्रद होता है. साढ़ेसाती के अवधि में सबसे अधिक मांस-मदिरा के सेवन से परहेज रखने की जरूरत होती है. परस्त्री एवं परपुरूष से अधिक निकटता भी हानिकारक होता है अत: अपनी मर्यादा का ध्यान रखना आवश्यक होता है. जिनकी कुण्डली में शनि कमज़ोर, वक्री अथवा अशुभ प्रभाव में हैं उन्हें साढ़ेसाती के इन उपायों को सदैव ध्यान में रखना चाहिए.

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