कृष्णमूर्ति पद्धति और प्रथम भाव - KP Astrology and First House
ज्योतिषशास्त्र में ग्रह, नक्षत्र तथा राशियों के समान ही कुण्डली में मौजूद विभिन्न भावों का अपना खास महत्व है. प्रथम भाव से लेकर द्वादश भाव तक सभी के अधीन बहुत से विषय होते हैं. इन विषयों से सम्बन्धित फल ग्रहों राशियों एवं इनसे सम्बन्धित नक्षत्रों के आधार पर शुभ-अशुभ तथा कम और ज्यादा मिलते हैं.
कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते है. जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का आरम्भ सिर से होता है उसी प्रकार इस भाव से कुण्डली का आरम्भ होता है. इस भाव से व्यक्ति के स्वभाव (nature), आचार-विचार की जानकारी होती है. शरीर के हिस्सों में मस्तिष्क, सिर व पूरा शरीर तथा सामान्य कद-काठी का अनुमान भी लगाया जाता है. इस भाव में उपस्थित राशि तथा इस भाव में स्थित ग्रहों के आधार पर इस विषय में फल ज्ञात किया जाता है.
प्रथम भाव से विचार:- (Consideration through the First House as per KP Systems)
इस भाव से सोचने -समझने के कार्य किये जाते है. किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति का प्रथम भाव से विचार किया जाता है. यह घर मस्तिष्क का घर होने के कारण इस घर से व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता तथा दूरददर्शिता आती है. मन का झुकाव, बल, धीरज, हौसला, नेतृत्व (leadership), प्रतिरोध शक्ति, स्वास्थ्य, रुप-रंग तथा व्यक्तित्व सामान्य रुप से देखा जाता है.
यह भाव का शुभ प्रभाव व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रुप से सबल बनाने में सक्षम होता है. व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी मनोभावों पर शुभ ग्रह का प्रभाव शुभता की वृद्धि करने में सहायक बनते हैं. लग्न में स्थिति बली शुभ गुरू एवं शुभ चंद्रमा, शुक्र अथवा बुध इत्यादि के प्रभाव से जातक के भीतर एक बेहद ही सकारात्मक ऊर्जा भी प्रवाहित होती है.
प्रथम भाव में ग्रहों का फल
सूर्य
पहले भाव में सूर्य के होने पर जातक में क्रोध की अधिकता होती है. वह नेतृत्व करने की क्षमता भी रखता है. जातक परिवार में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. अपने बल का अभिमान करने वाला और सभी के समक्ष स्वयं को स्थापित करने वाला होता है. जातक ओज पूर्ण और दिर्घायु भी होता है.
चंद्रमा
इस भाव में चंद्रमा की स्थिति होने पर जातक में सौम्यता अधिक देखने को मिल सकती है. व्यक्ति अपने कामों में चंचल हो सकता है. वाणी मे अस्पष्टता ओ सकती है. बोलने में कुछ शांत सौम्य भी हो सकता है. जातक को माता की ओर से स्नेह की प्राप्ति होती है.
मंगल
इस भाव में स्थित मंगल व्यक्ति में क्रोध, आतुरता और जिद्दी स्वभाव दे सकता है. व्यक्ति का चेहरा लालिमा लिए होता है. व्यक्ति का प्रभाव दूसरों पर भी जल्द से पड़ता है. वाद विवाद करने में आगे और लड़ाई में भी आगे रह सकता है. घूमने फिरने का शौकिन हो सकता है. शुभ प्रभाव का चंद्रमा व्यक्ति के लिए शुभकरी होगा.
बुध
पहले भाव स्थान में बुध की स्थिति का प्रभाव जातक को मनमौजी बना सकती है. जातक बोलने में कुशल और हंसी-मजाक करने वाला हो सकता है. कुछ अहंकारी और अपनी बातों को आगे रखने में हमेशा ही तैयार रहता है. काम के क्षेत्र में थोड़ा आलसी हो सकता है. शारीरिक शक्ति से अधिक बौद्धिक क्षमता से काम लेने वाला होता है.
बृहस्पति
बृहस्पति के पहले भाव में स्थिति व्यक्ति को बौद्धिकता चतुरता देने वाली होती है. यह लग्न में होने पर व्यक्ति में नेतृत्व और लोगों को अपने अनुसर चलाने कि क्षमता भी देता है. धार्मिक रुप से थोड़ा सजग होता है. अपनी परंपराओं को निभाने वाला होता है. कुछ मामलों में व्यक्ति में अहंकार भी दिखाई दे सकता है.
शुक्र
जातक अपने मन अनुरूप काम करने की इच्छा रखने वाला और अपने रहन सहन और पहनावे के प्रति कुछ सजग भी होता है. व्यक्ति में भौतिक सुखों के प्रति आकर्षण होता है. शुभ प्रभाव में होने पर सात्विकता को पाएगा पर अशुभ प्रभाव होने पर गलत चीजों की ओर जल्द ही आकर्षित हो सकता है.
शनि
पहले भाव में शनि के प्रभाव से जातक में मौन अधिक होता है. वह आत्मिक चिंतन पर जोर देता है. कुछ बोलने से पूर्व उस पर विचार करने की कोशिश होती है. सोच-विचार में अधिक रहने वाला. अपने अनुसार जीवन जीने की इच्छा रखने वाला.
राहु-केतु
साहसी और उत्साह में काम करने वाला. व्यक्ति सोच विचार में अधिक रहता है. भ्रम की स्थिति भी व्यक्ति में अधिक रहेगी. काम को करना या नही करना इन बातों को लेकर दूसरों पर अधिक निर्भरता हो सकती है.
प्रथम भाव की अन्य विशेषताएं:- (Other Qualities of the First House as per KP Systems)
किसी भी व्यक्ति की कुण्डली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले कुण्डली के पहले भाव पर नजर डाली जाती है. प्रथम भाव को देखने से व्यक्ति के विषय में सामान्य जानकारी मिल जाती है. लग्न भाव के सुदृढ होने पर व्यक्ति का मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहने की संभावनाएं रहती है.
यह पहला भाव जातक के संबंधों को भी दर्शाता है. जातक के सगे-सम्बन्धियों में नानी, दादी का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. यह शुभ होने पर इन लोगों का जातक को सुख प्राप्त होता है. अगर यहां पाप प्रभाव होगा तो उनके सुख में कमी कर सकता है.
इस भाव से विचार किये जाने वाले कार्य:-(Consideration of Acts are Performed through this House as per KP Systems)
यह भाव दूसरे स्थान का बारहवां घर है. इसलिये इस घर से संचय में कमी का विचार किया जाता है. संचित धन में कमी का कारण पहला घर हो सकता है. दूसरे घर के स्वामी का पहले भाव में होने पर व्यक्ति को संचय करने में परेशानियां आ सकती है. यह घर बारहवें घर से दूसरा घर होता है इसलिए विदेशों के संस्कार का प्रभाव भी इस घर से ज्ञात किया जाता है.
घर में पहले भाव का स्थान:- (Place of the First House in the House as per KP Systems)
पहले भाव को घर के दरवाजे (door of the house) के रुप में देखा जाता है. यह भाव कमज़ोर होने पर घर का दरवाजा वस्तु दोष से प्रभावित हो सकता है. अगर कोई वस्तु खो गयी है जिनका सम्बन्ध प्रथम भाव से हैं तो खोई हुई वस्तु को मुख्य दरवाजे के पास तलाश करनी चाहिए चाहिए.
पहले भाव में शुभाशुभ फल
कुण्डली का कोई भी भाव अपने शुभ और अशुभ प्रभाव को ग्रहों की शुभ और अशुभ स्थिति पर भी निर्भर करता है. पहले भाव में जब शुभ ग्रह बैठे हो, भावेश बली हो, पहले भाव में शुभ ग्रह दृष्टि हो जैसी अन्य बहुत से शुभ प्रभावों के कारण पहला भाव शुभ होगा और जातक का शारीरिक और मानसिक बल मजबूत होता है. अगर पहला भाव अशुभ ग्रहों के मध्य फंसा हो, अशुभ ग्रह बैठें हो, अशुभ ग्रह देखते हों जैसी बातें इसे अशुभता देती हैं. इस के प्रभाव से जातक मानसिक और शारीरिक परेशानी झेल सकता है.