मंगल-केतु का तुला राशि में गोचर देगा गंभीर परिणाम

वैदिक ज्योतिष में केतु के साथ मंगल का गोचर बेहद परिवर्तन के साथ ही एक महत्वपूर्ण घटना का समय भी बन जाता है. मंगल ऊर्जा, साहस और पराक्रम का कारक है और केतु क्रोध अलगाव को दर्शाता है. ऎसे में तुला राशि में केतु और मंगल की स्थिति का असर एक साथ गोचर के कारण परेशानी देने वाला भी होगा. यह एक विस्फोटक स्थिति को भी दर्शाने वाला होगा. केतु-मंगल का तुला राशि में होना बेहद क्रांतिकारी रुप से अपना असर दिखा सकता है. यह राशि गोचर करता सभी बारह राशियों के लिए विशेष होने वाला होगा.  तुला राशि में मंगल के आने के बाद इस देश ओर दुनिया पर होने वाले असर काफी महत्वपूर्ण होंगे. इस समय प्राकृति आपदाओं का प्रभाव भी जीवन पर होगा. 

मेष राशि 

मंगल और केतु का तुला राशि में गोचर मेष राशि के लिए बदलाव ओर उत्साह को बढ़ाने का संकेत होगा. मंगल जो मेष राशि का अधिपति ग्रह है वह केतु के साथ तुला राशि में होने पर गोचर साझेदारी और संबंधों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का संकेत देता है. अपने काम में जितना संभव हो धैर्य को बनाए रखना उचित होगा. यह गोचर रिश्तों में सामंजस्य और संतुलन को कमजोर करने वाला होगा. विवाद और उत्तेजना अधिक दिखाई देगी. इस गोचर के दौरान अपनी मुखरता का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है. मंगल के साथ केतु दोनों ही एक उग्र और आवेगी ग्रह हैं, और तुला राशि में इसका गोचर ठीक से नहीं होने पर संघर्ष या गलतफहमी पैदा कर सकता है.

वृष राशि 

वृष राशि वालों के लिए मंगल और केतु का तुला राशि में होना नए विचारों से जुड़ने के समय को दर्शाता है. इससे बेहतर संचार और नई चीजों के अविष्कार का समय होगा. प्रियजनों के साथ गहरे संबंध अभी न बन पाएं लेकिन इस ओर शुरुआत हो सकती है. यह गोचर रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ावा दे सकता है. नए शौक या परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अधिक प्रेरित और प्रेरित महसूस कर सकते हैं, विशेष रूप से वे जिनमें साझेदारी या सहयोग शामिल है. अभी इस समय के दौरान सेहत को लेकर अचानक से कुछ परेशानी हो सकती है. 

मिथुन राशि 

मिथुन राशि वालों के लिए मंगल-केतु का तुला राशि गोचर एकाग्रता की कमी को दे सकता है. इस समय छात्रों को अपनी पढ़ाई को लेकर परेशानी रह सकती है. इस समय बच्चों की ओर से माता-पिता को चिंता होगी. गर्भवत महिलाओं को विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होगी. यह समय दर्शन, तंत्र और विज्ञान जैसे विषयों पर  अच्छी पकड़ देने वाला होगा. आध्यात्मिक रुप से जागरण का समय होगा. अचानक से गुढ़ चीजों की ओर रुझान भी बढ़ने वाला है. दोस्तों के साथ विवाद अथवा प्रेम संबंधों में अलगाव होने कि संभावना अधिक रह सकती है. 

कर्क राशि 

मंगल-केतु का तुला राशि में गोचर कर्क राशि वालों के लिए मिलेजुले फलों को देगा. इस समय के दौरान घर परिवार में कुछ अशांति मिल सकती है. इस समय पर चीजों की स्थिरता की उम्मीद कम हौ रहने वाली है. यह गोचर साझेदारी और सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का होगा क्योंकि व्यर्थ के विवाद इस समय अधिक परेशानी देने वाले होंगे. यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों संबंधों में विकास और विस्तार के लिए अभी संघर्ष की जरूरत होगी. नेतृत्व करने में आगे रह सकते हैं. रिश्तों पर काम करने और दूसरों के साथ सामान्य आधार खोजने के लिए खुद को अधिक तैयार करना होगा, यह गोचर संघर्ष या शक्ति संघर्ष के रूप में चुनौतियाँ भी ला सकता है. 

सिंह राशि 

इस गोचर के दौरान अपनी और दूसरों की ज़रूरतों के बीच संतुलन बनाने की दिशा में अधिक काम करने की जरुरत होगी. परिश्रम में वृद्धि रहेगी. अपने संबंधों में उत्पन्न होने वाली किसी भी चुनौती से निपटने के लिए अधिक कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत होगी. भाई बंधुओं की ओर से चिंता अधिक रहने वाली है. कंधे और हाथ में दर्द या खिंचाव रह सकता है. इस समय यह गोचर सामाजिककरण और नए कनेक्शन बनाने के अवसर बढ़ा सकता है. 

कन्या राशि 

कन्या राशि में विशेष रूप से उन लोगों के लिए समय थोड़ा संभल कर करने वाला होगा जो जिम्मेदारियों का अधिक निर्वाह कर रहे होंगे. समान रुचियों या मूल्यों को साझा करने का समय कम ही मिल पाएगा. वाणी में कठोरता का समय अधिक रह सकता है. खुद को कुछ अलग थलग भी पा सकते हैं. आर्थिक निवेश की स्थिति कमजोर होगी और इस समय अचानक से धन खर्च की मांग भी बढ़ सकती है. 

तुला राशि 

तुला राशि वालों पर ही मंगल और केतु का असर होने वाला है. अपने आप को कई सारी बातों में उलझा हुआ देख सकता है. काम करने के लिए खुद को अधिक प्रेरित महसूस कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त, यह गोचर रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति में कुछ कमी को दिखाता है इसलिए नए शौक या परियोजनाओं का पता लगाने के लिए आगे रहना महसूस कर सकते हैं, विशेष रूप से वे जिनमें साझेदारी या सहयोग शामिल है. तुला राशि वालों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इस गोचर के दौरान अपनी अनिर्णय की प्रवृत्ति और आसानी से विचलित होने की प्रवृत्ति से सावधान रहने की जरुरत होती है. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि के लिए मंगल केतु का तुला में होना अभी क्रोध ओर उत्साह की अधिकता को दिखाने वाला होता है. तुला राशि में केतु – मंगल के गोचर का असर विवाद और आगे रहने की प्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी को दर्शाता है. यह गोचर व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों ओर ध्यान देने के साथ साथ प्रगत्ति को देने में सहायक होगा. यह गोचर कुछ चुनौतियाँ भी ला सकता है. इनमें संघर्ष या शक्ति संघर्ष शामिल हैं, जिनके लिए सावधानीपूर्वक बातचीत और संचार कौशल की आवश्यकता हो सकती है. इस अवधि के दौरान  शांत रहना महत्वपूर्ण है. उत्पन्न होने वाली किसी भी चुनौती से निपटने के लिए उनकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. विदेशी मामलों में लाभ की स्थिति मिल सकती है. 

धनु राशि 

तुला राशि में मंगल का गोचर सिंह राशि के जातकों के लिए विशेष रूप से उनके पेशेवर जीवन में कुछ सकारात्मक विकास ला सकता है. यह गोचर करियर में उन्नति या मान्यता के अवसर पैदा कर सकता है. इसलिए, सिंह राशि के लोग खुद को अधिक नेतृत्व वाली भूमिकाएं निभाते हुए पा सकते हैं. मंगल ग्रह की ऊर्जा चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं से निपटने के लिए आवश्यक प्रेरणा भी प्रदान कर सकती है. लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में साहसिक कदम उठा सकते हैं. इस समय पर किसी कानूनी मामलों पर अधिक हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा.

मकर राशि 

यह गोचर कुछ चुनौतियाँ भी ला सकता है, जैसे संघर्ष या अधिकार को लेकर विवाद. संघर्ष के साथ अलगाव जैसी बातें परेशानी दे सकती हैं. इस अवधि के दौरान जमीन से जुड़े रहना और ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है. उत्पन्न होने वाले किसी भी संघर्ष को हल करने के लिए उनके करिश्मे और कूटनीति का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. अपने प्रेम जीवन में अधिक संतुलन और सामंजस्य की तलाश कर सकते हैं. इस गोचर के दौरान जमीन से जुड़े और खुले विचारों वाले रहें. किसी भी टकराव को हल करने के लिए स्पष्ट रूप से संवाद करना जरूरी होगा. 

कुंभ राशि 

कुंभ राशि के लिए मंगल-केतु गोचर महत्वपूर्ण प्रभाव देने वाला होता है. मंगल ऊर्जा, क्रिया का ग्रह और केतु का वहां प्रतिस्पर्धा को लेकर नई चीजें देगा. इस समय के दौरान पर यात्राओं का समय होगा. इस गोचर के दौरान, अधिक आत्मविश्वास और मुखर महसूस कर सकते हैं. अधिक जोखिम लेने और अपने लक्ष्यों को अधिक दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ाने वाले हो सकते हैं. अपने काम में इस समय बहुत अधिक मेहनत की जरुरत होगी. कार्यों में बहुत अधिक आक्रामक या आवेगी न बनने के लिए सावधान रहें, क्योंकि मंगल कभी-कभी इन प्रवृत्तियों को सामने ला सकता है. 

मीन राशि 

केतु- मंगल के तुला राशि में गोचर का होना मिलाजुला असर हो सकता है. कुछ चुनौतीपूर्ण अवधि हो सकती है. इस गोचर के दौरान अपने रिश्तों में तनाव और संघर्ष का अनुभव हो सकता है, क्योंकि मंगल-केतु व्यक्तित्व का अधिक मुखर और टकराव वाला पक्ष सामने ला सकता है. जीवन में हताशा और अधीरता की भावना भी महसूस कर सकते हैं. अपने खान पान को लेकर सजग रहने की जरुरत होगी. 

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मंगल के साथ राहु का क्यों बनाता है दुर्घटना का योग

कुंडली में मंगल और राहु एक साथ होने पर दुर्घटना का योग बनाता है. यह एक ऐसा ज्योतिषीय योग है जिसे नकारात्मक योगों की श्रेणी में रखा जाता है. यह वैदिक ज्योतिष में कई चुनौतियों को दर्शाता है. यदि राहु किसी कुंडली में स्थिति या दृष्टि के कारण मंगल से संबंध बनाता है तो इसे खराब योग कहते हैं. कुण्डली में जिस भी भाव का निर्माण होता है अर्थात यदि राहु और मंगल एक ही भाव में स्थित हों या राहु और मंगल की परस्पर दृष्टि हो तो कुण्डली में उस भाव से संबंधित दुर्घटना का प्रभाव झेलना पड़ सकता है. राहु और मंगल जब कुंडली के किसी भी भाव में हों तो युति बनाते हैं. जन्म कुंडली में राहु और मंगल की स्थिति खराब होने पर यह दोष अशुभ और हानिकारक प्रभाव दे सकता है.

इसका जीवन पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव दशा और गोचर में अधिक पड़ता है. यह दोनों ग्रह, अग्नि का प्रतीक हैं. कुंडली में इस के कारण व्यक्ति क्रोध में फंसा रहता है और निर्णय नहीं ले पाता है. इसके कारण क्रोध, अग्नि, दुर्घटना, रक्त संबंधी रोग और त्वचा की समस्याओं का कारण बनता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति बहुत क्रोधी हो जाता है हिंसा दुर्घट्ना का कारण बनती है. ये कोई निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं लेकिन न्यायप्रिय होते हैं.इस योग के प्रभाव में दुर्घटनाएं अधिक असर डालने वाली होती हैं. इस योग के प्रभाव में व्यक्ति के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं.

इस योग से जुड़े दुष्प्रभाव 

दुर्घटना योग का प्रभाव आक्रामक, हिंसक और नकारात्मक रुप से असर डालता है. इस योग के प्रभाव में व्यक्ति का अपने भाइयों, मित्रों और अन्य संबंधियों से मतभेद हो जाता है. अंगारक योग होने से धन की कमी रहती है. इसके प्रभाव से योग बनाने वाले ग्रहों की दशा में दुर्घटना होने की संभावना बनती है. वह रोगों से पीड़ित रहता है और उसके शत्रु उस पर काला जादू करते हैं. अंगारक योग का बुरा प्रभाव व्यापार और वैवाहिक जीवन पर भी पड़ता है. कुंडली के पहले भाव में राहु-मंगल अंगारक योग होने से पेट की बीमारी और शरीर में चोट लग सकती है.

प्रथम भाव में

यह दोनों वर्जनाओं को तोड़ने का काम करते हैं जोखिम उठाने के लिए आगे रहते हैं. मंगल जुनून और आक्रामकता का प्रतिनिधित्व करता है. वैदिक ज्योतिष या लग्न में पहला घर शरीर और आत्म-दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है. तो, पहले घर में राहु और मंगल एक हिंसक स्वभाव, लालच, अतृप्त भूख और क्रोध पैदा कर सकते हैं. इसके प्रभाव से दुर्घटनाएं अधिक परेशानी दे सकती हैं. 

दूसरे भाव में

दूसरा घर धन, समृद्धि और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल दुर्घटनाओं, चोटों, सर्जरी और रक्त का प्रतिनिधित्व करता है. इस योग के कारण जातक को आर्थिक हानि, शल्य चिकित्सा और बीमारी का सामना करना पड़ सकता है. मंगल के उग्र स्वभाव के कारण इन्हें अपनी संपत्ति से भी हाथ धोना पड़ सकता है.

तीसरे भाव में

तीसरा भाव भाई-बहन, आत्म-अभिव्यक्ति और छोटी यात्राओं का प्रतिनिधित्व करता है. राहु सभी भौतिक चीजों के लिए तरस रहा है. यह व्यक्ति को धोखा देता है और झूठ बोलता है. यह उन्हें क्रूर और कंजूस भी बनाता है. कार्यक्षेत्र में इनके लिए परेशानी भरा माहौल हो सकता है. इसलिए, वे बार-बार नौकरी बदल सकते हैं.

चतुर्थ भाव में

चौथा भाव या भाई का घर और माता के साथ संबंध दर्शाता है. जब इस घर में राहु और मंगल एक साथ आते हैं तो स्त्री पक्ष का सहयोग कम होता है. रिश्तों में रूहानी लगाव कम रह सकता है. विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. मान सम्मान पर गहरा असर पड़ सकता है. परिवार से दूर जाना पड़ सकता है.

पंचम भाव में

यह तकनीकी क्षेत्र में आगे ले जा सकता है लेकिन उसके कारण दुर्घटना भी दे सकता है. अधीर और चिंतित बना सकता है. जब यह इस घर में होता है, तो यह खुशी, चंचलता, शिक्षा, आशावाद और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए यह बहुत नुकसान कर सकता है. राहु और मंगल की युति में बहुत ऊर्जा होती है जो संतान पक्ष पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. उत्पन्न करता है

छठे भाव में

छठा भाव ऋण, विरोध, शत्रुता, स्वास्थ्य, बाधाओं और दुर्भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है. लेकिन यह ग्रह योग यहां कुछ सकारात्मक प्रभाव देता है. विरोधियों पर विजय प्राप्त हो सकती है. जातक शत्रुओं पर भारी रहता है. शत्रु को हानि पहुँचाने से नहीं हिचकिचाते.

सप्तम भाव में

सप्तम भाव प्रेम, संबंध, विवाह और जीवन साथी का प्रतिनिधित्व करता है. राहु अहंकारी है और मंगल हिंसक, अत: यदि इस भाव में मंगल और राहु एक साथ हों तो दांपत्य जीवन बहुत कष्टदायक और दुखी हो सकता है. यह इस घर के लिए बहुत ही विनाशकारी योग है. थी

आठवें भाव में

अष्टम भाव में राहु और मंगल की उपस्थिति जातक के लिए अनुकूलता की कमी का कारण बनती है. आठवां भाव दीर्घायु, मृत्यु और अचानक धन लाभ और हानि जैसी चीजों का प्रतिनिधित्व करता है. इसे एक खराब घर के रूप में देखा जाता है. यह युति जातक को मुसीबतों और अचानक होने वाली घटनाओं से प्रभावित करने वाली है.

नवम भाव में

तमाम मेहनत के बावजूद काफी प्रयासों के बाद परिणाम मिल पाते हैं. काम के प्रति बद्धता और बहिर्प्रवाह आपके वित्तीयको चुनौती देता है. काम के क्षेत्र में दुर्घटनाएं परेशानी देती हैं. इस स्थन पर किसी दुर्घटना के कारण काम से दूर होन अपड़ सकता है. जोखिम भरे काम मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाले होते हैं शत्रुओं से परेशानी होती है. 

दशम प्रभाव 

यहां अपने काम में और सामाजिक क्षेत्र दुर्घटनाएं प्रभवैत कर सकती हैं. व्यवहार पर नियंत्रण रखना चाहिए, जो चिड़चिड़े और अत्यधिक आलोचनात्मक होने से दुश्मनों को खड़ा कर सकता है. सकता है. काम में शत्रुओं के कारण दुर्घटना प्रभावित कर सकती है. परिवार और बच्चों के साथ संबंधों में दूरियां आ सकती हैं.

एकादश प्रभाव 

यह वित्त पर नए सिरे से काम करने का समय होता है और सभी पुराने मामले सुलझाने के चलते विवाद उभर सकते हैं. सामाजिक मानदंडों के बाहर संबंध की संभावना विकसित हो सकती है लेकिन विवाद भी होते हैं. भाई-बहनों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं और दुर्घटना प्रभावित कर सकती है. 

द्वादश भाव 

व्यर्थ के मुद्दों पर तनाव बढ़ सकता है. स्वभाव सख्त होता है. कुछ चुनौतियाँ पैदा बाहरी लोगों के कारण ही दुर्घटना के रुप में प्रभाव डालती हैं. जीवन में स्वास्थ्य को लेकर विवाद को लेकर दुर्घटना अपना असर डालने वाली होती है. 

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नौकरी में कब होगा बदलाव जानें अपनी कुंडली से

कार्यक्षेत्र में होने वाले बदलाव कई तरह के हो सकते हैं. यह कभी अच्छे तो कभी खराब या फिर सामान्य रुप से अपना असर डालने वाले होते हैं. नौकरी में प्रगत्ति के लिए कई बार व्यक्ति बदलाव को चुनते हैं तो कुछ न चाहते हुए भी नौकरी बदलने को मजबूर होते हैं. इसी तरह कई बार व्यवसाय में भी हम कई तरह के चेंज को देखते है. कुछ परिस्थितियों में तो कई बार एक व्यापार को बदल कर दूसरे काम को अपनाने के लिए आगे बढ़ते हैं. ऎसे में प्रश्न यह उठता है की आखिर कार्यक्षेत्र को लेकर बदलाव इतना असर क्यों डालने वाला होता है.

नौकरी या करियर में बदलाव अधिकांश मामलों में कुछ पसोपेश की स्थिति, संकट या अशांति का विषय अधिक दिखाई देता है. कभी-कभी आपके पास इस परिवर्तन या स्थानांतरण को स्वीकार करने का विकल्प होता है लेकिन अधिकांश समय यह स्थिति मनोकूल नहीं रह पाती है. इन बातों को समझने में ज्योतिष में कई सारे सुत्रों का उल्लेख मिलता है.

ज्योतिष अपने कई ज्योतिषीय कारकों के साथ नौकरी में परिवर्तन या स्थानांतरण की भविष्यवाणी कर सकता है. परिवर्तन कैसा रहेगा, किसी व्यक्ति के लिए फायदेमंद साबित हो भी सकता है या नहीं इन बातों को ज्योतिष के कारकतत्वों के आधार पर जाना जा सकता है. नौकरी में बदलाव के साथ लोग हमेशा बेहतर अवसर चाहते हैं लेकिन चीजें हमेशा वांछित नहीं होती हैं. आइए देखें कि ज्योतिष आपके जीवन में नौकरी में बदलाव या स्थानांतरण की भविष्यवाणी या संकेत कैसे दे सकता है.

नौकरी बदलाव अथवा स्थानांतरण के सूत्र

जन्म कुंडली में नौकरी में होने वाले बदलाव या व्यवसाय के क्षेत्र में होने वाले बदलाव के लिए कुछ भावों की स्थिति पर विशेष रुप से विचार किया जाता है. जन्म कुंडली में तीसरे भाव, चौथे भाव, छठे भाव, नौवें भाव, दसवें भाव और बारहवें भाव को नौकरी बदलने या स्थानांतरण के लिए विशेष रुप से देखा जाता है. यह भाव जीवन में आर्थिक स्थिति, मकान, भागय कर्म और व्यय को दर्शाने वाले होते हैं. 

कुंडली में दूसरे भाव, छठे भाव और दसवें भाव को अर्थ भाव कहा जाता है. अर्थ का संबंध व्यक्ति की आर्थिक स्थिति एवं समृद्धि से संबंधित होता है. जीवन में लक्ष्य या उद्देश्य और इसके प्रति व्यक्ति के समर्पण का संकेत भी इसी के द्वारा प्राप्त होता है. 

दूसरा भाव संपत्ति और संचित चीजों का प्रतिनिधित्व करता है. इस प्रकार, यह परिवार, धन, बैंक बचत, संचित ज्ञान और भावनात्मक जुड़ाव का भाव बनता है. इस भाव के द्वारा व्यक्ति को अपने कर्म क्षेत्र में अपनी स्थिति को जानने का भी मौका मिलता है. 

छठा भाव व्यक्ति की शक्ति और कार्य करने की क्षमता को दर्शाता है. यह प्रतियोगिता, दैनिक कार्य दिनचर्या, दूसरों की मदद करने, नौकरी और समस्याओं को सुलझाने का भाव है. अब इस भाव के द्वारा कार्यक्षेत्र में होने वाले बदलावों की भूमिका भी तय होती देखी जा सकती है. 

दशम भाव यह कर्म का स्थान माना गया है. इस भाव से ही व्यक्ति की स्थिति और उसे मिलने वाले सम्मान को देखा जाता है. दसवां भाव बहुत प्रमुख होता है क्योंकि इस भाव के द्वारा ही करियर को देखा जाता है और करियर से संबंधित मामलों में इसकी प्रमुख भूमिका होती है.

छठे और दसवें दोनों भाव कमाने और काम करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं. जीवन की आरंभिक कमाई और अंतिम कमाई का इन्हीं से संबंध होता है. संचित धन, कमाई को आपके द्वितीय भाव द्वारा दर्शाया गया है. पीड़ित या कमजोर द्वितीय भाव अर्जित धन के संचय या प्रबंधन में कठिनाई को दर्शाता है. जबकि मजबूत होने पर यह भाव पैसे बचाने और समय के साथ इसे बढ़ाने के लिए इसे बेहतर बनाता है. 

यदि कोई व्यक्ति अच्छी नौकरी पाना चाहता है तो उसके लिए छठे और दसवें भाव को दर्शाने वाले सक्रिय ग्रहों की आवश्यकता होती है. इन भाव के स्वामियों का नौकरी और करियर पर गहरा प्रभाव भी पड़ता है. 

नौकरी में बदलाव के भाव 

नौकरी में परिवर्तन या हानि को पंचम भाव और नवम भाव से देखा जा सकता है. दोनों का छथे भाव, दशम भाव और द्वादश भाव में होना नुकसान या नौकरी में बदलाव का कारण बनता है. इन ग्रहों की दशा अवधि के दौरान या तो नौकरी खोने या बदलने की संभावना भी प्रबल होती है. व्यक्ति को दूसरी नौकरी पाने के लिए करियर के लिए सकारात्मक भावों यानी छठे भाव और दसवें भाव को दर्शाने वाले ग्रह की दशा का इंतजार करना पड़ता है. यदि कोई ग्रह पंचम भाव और नवम भाव के साथ-साथ 6वें और 10वें भाव का कारक है तो भी जातक नौकरी में बदलाव की उम्मीद कर सकता है, वह एक को छोड़ देगा और दूसरे को स्वीकार कर लेगा.

लग्न और उसका स्वामी इसका विशेष महत्व होता है. लग्न या लग्न का स्वामी व्यक्ति के व्यक्तित्व और परिवेश को दर्शाता है. काम करने के प्रति उसकी अभिरुचि का भी निर्धारण इसी के द्वारा होता है. दूसरा भाव और उसका स्वामी धन, बचत और वित्तीय संसाधनों को दर्शाता है. तीसरा भाव और उसका स्वामी व्यक्ति के साहस, उसके प्रयासों और छोटी यात्राओं को दर्शाता है. 

चौथा घर और उसका स्वामी घरेलू वातावरण को दर्शाता है और पीड़ित होने पर स्थान में परिवर्तन का कारण बनता है. छठा भाव और उसका स्वामी यह नौकरी और सेवा का भाव है. 

आठवां भाव और उसका स्वामी बाधाओं, नौकरी की हानि और शोध को दर्शाता है. नौवां भाव और उसका स्वामी दसवें घर से बारहवां होने के कारण स्थानांतरण, लंबी यात्रा और नौकरी में बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है. दसवां भाव और उसका स्वामी व्यक्ति के काम को, करियर और उसमें मिलने वाली सफलता को दर्शाता है. भारहवां भाव और इसका स्वामी व्यय, हानि स्थानान्तरण का भाव होता है

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आठवें भाव में मंगल का होना मांगलिक प्रभाव क्यों देता है परेशानी

आठवें भाव में मंगल की स्थिति को व्यापकर रुप से शोध का विषय माना गया है. यहां मंगल की उपस्थिति को साधारण रुप से नहीं देखा जा सकता है. जन्म कुंडली में सभी ग्रहों का और भाव स्थिति का महत्व किसी न किसी रुप जीवन पर अपना प्रभाव डता है लेकिन जब बात आती है मंगल की और मंगल के किसी विशेष भाव स्थान में बैठ जाने की तब जरुरत पड़ती है इस पर उचित रुप से विचार किया जाए.

कुंडली के कुछ भाव बेहद गहन अर्थों से संबंधित होते हैं. हर भाव की अपनी महत्ता और स्थिति होती है. इस भाव में मंगल का होना व्यक्ति के भावेशों में अलग असर देने वाला होगा. यह अपनी आवेगी प्रवृत्ति का विरोध नहीं कर सकते हैं, लेकिन जब उनकी इच्छाओं की बात आती है तो वे बहुत गणनात्मक और ठंडे होते हैं. इस कारण से चीजों को डिल कर पाना भी बहुत मुश्किल हो जाएगा. 

मंगल आठवें भाव में

मंगल के आठवें भाव में होने के कई तरह के परिणाम हमारे सामने होंगे. यह मंगल और भाव की स्थिति के अनुसार होंगे. मंगल के लोग अधिक से अधिक चीजों को जानने के लिए ऊर्जावान, कामुक और उत्साही होते हैं, यह समझने के लिए कि लोग कैसे काम करते हैं और उनके रहस्यों को जानने के लिए. उन्हें रिश्तों में कुछ समस्याएँ हो सकती हैं, इसलिए एक साथी जो उन्हें अधिक आर्थिक रूप से स्थिर होने में मदद कर सकता है, वह उनका सच्चा हीरो भी बन सकता है. विवाह बहुत अधिक आवश्यकता नहीं अपितु रिश्तों में निष्ठा और समर्पण में अधिक रुचि संभव होती है. 

आठवां भाव रंध्र स्थान जहां मंगल की ऊर्चा का अनिश्चित स्वरुप 

आठवां भाव एक ऎसा छिद्र स्थान है जहां मंगल का होना हर बार कुछ नए अनुभव देने वाला बन जाता है. ऊर्जा का विस्तार होता है लेकिन स्थिर नहीं हो पाती है. इन व्यक्तियों को किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो उनके साथ सब कुछ साझा करना चाहता हों. यहां बंधन की बात ही नहीं किंतु समर्पण की इच्छा अधिक रह सकती है. यहां सहयोग की भावना बहुत अधिक रुप में काम करती है. इसलिए अगर पूर्णता के करीब पहुंचना चाहते हैं, तो जुनून को कम करने की जरूरत भी मंगल के लिए आवश्यक शर्त बन जाती है. आठवें भाव में मंगल वाले व्यक्ति में एक अहंकार होता है जो या तो जानबूझकर या अनजाने में उन्हें हमेशा खुद को बदलने के लिए मजबूर करता है. पूरी तरह से अलग व्यक्ति बनने के लिए दूसरों से बहुत प्रभावित हो सकते हैं. 

जीवन में अंस्तुष्टि भी होती है. मंगल कई दिशाओं की ओर ले जाने में आगे रहता है. ऎसे में ऊर्जा कई जगह पर बंट जाती है. मंगल मार्गदर्शक का काम नही कर पाता है, अगर लग्न पर शुभ दृष्टि न हो तो सदैव ही भटकाव रहता है. किंतु यदि शुभ ग्रह की लग्न को दृष्टि मिल जाती है तो मंगल कुछ सकारात्मक रुप से सहायक भी बन सकता है.

आठवें भाव में मंगल वाले लोगों के पास यह ग्रह स्थिति है जहां संसाधनों को साझा करने का उन पर अधिकार भी होता है. व्यक्ति इतना देख और जान सकता है कि चीजें कैसे काम करती हैं और नए विचारों से आसानी से ग्रहण भी कर सकता है. जितने अधिक छिपे हुए तथ्यों को प्राप्त करते जाते हैं. वे काम में उतने ही प्रसन्न भी होंगे. 

भौतिक एवं आध्यात्मिक मार्ग उलझन भरा 

अष्टम में मंगल का होना भौतिक और आध्यात्मिक के मध्य द्वंद को भी दिखाता है. संपत्ति या संपत्ति पर बहस अधिक झेलनी पड़ सकती है. यहां ध्यान से विश्लेषण करना चाहिए कि वास्तव में जीवन में क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते हैं. क्योंकि इस स्थिति के कारण साथी के साथ भी विवाद रह सकता है. यहां आवश्यकता होती है समझोते की. अधिक संचार उन्हें बेहतर संबंध बनाने में मदद कर सकता है. अगर बदलना चाहते हैं, तो बस उन चीजों को छोड़ देना चाहिए जो महत्वपूर्ण नहीं हैं. जब यौन संबंधों की बात आती है तो मंगल का यहां होना बहुत तीव्रता देने वाला होता है इसलिए बहुत से लोग ऎसे व्यक्ति को बहुत ही कुशल प्रेमी के रूप में देखते हैं, लेकिन यह प्रेम से इतर की बात है.                       

मनोगत और आध्यात्मिक दुनिया से भी व्यक्ति बहुत आकर्षित दिखाई दे सकता है. सभी प्रकार के रहस्यों और असामान्य गतिविधियों का पता लगाने में भी उनका रुझान दिखाई दे सकता है.  उनके लिए दूसरों को बदलने या बेहतर करने का गुण भी होता है. क्योंकि वे लोगों को अपनी ताकत खोजने और दर्दनाक परिस्थितियों से उबरने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. जीवन का एक मुख्य उद्देश्य अपने भीतर की शक्ति को खोजना और अपनी पूरी क्षमता से जीना ही अष्टम मंगल की विशेषता का गुण बन सकता है. अनुसंधान और रहस्यों के समाधान खोजने के लिए बहुत जुनून हो सकते हैं. जीवन में जो कुछ छिपा हुआ है, उसे सामने लाना उनके लिए एक कुशलता है. 

मांगलिक होने का असर 

मंगल की यह स्थिति मांगलिक बनाती है. इसका मुख्य रुप से प्रभाव संबंधों को लेकर पड़ता है. जिस भाव में मंगल होता है वह यौन इच्छाओं का स्थन भी होता है जो छिपी हैं लेकिन मंगल जब मेजबानी कर रहा है तो इसका मतलब यह है कि व्यक्ति यौन रूप से आकर्षित होने पर कोई कदम उठाने से नहीं हिचकिचाएंगे, लेकिन यहां यह समझना की वह गलत है नहीं अपितु वह अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने में दूसरों से अधिक निडर होगा. उसके भीतर दिखावे से अधिक वास्तविकता होगी जो उसके रिश्ते को मजबूती देने का काम करती है. बहुत भावुक और प्रखर बुद्धि भी पाते हैं, इन लोगों का एक मजबूत भावनात्मक पक्ष होता है और वे दूसरों की तुलना में मृत्यु के बारे में अधिक बार सोचते हैं.  जिसका अर्थ हुआ की साहस की कमी नहीं होती है और विपदा का सामना करने का हौसला रखते हैं. 

आठवें भाव में मंगल अंतरंगता पर अधिकार को दर्शाता है. प्यार के संबंध में लोग भावुक होते हैं. 8वें घर में मंगल के साथ प्रेम संबंध के लोगों का एक स्याह पक्ष है और उनके विवाह में घरेलू हिंसा, यौन शोषण और जुनून जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं. यह उनके साथ पीड़ा और दर्द के बारे में अधिक रह सकता है. इस कारण मांगलिक उर्जा यदि गैर मांगलिक के साथ जुड़ती है तो इस पर काम नहीं कर पाती है. इसलिए आवश्यकता होती है मांगलिक के मांगलिक के साथ जुड़ने की जिससे कुछ चीजों का नियंत्रण समान रुप से बन पाए.              

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नवांश कुंडली में 12 लग्नों के उदय होने का फल

नवांश कुंडली का निर्माण ग्रहों के बल को मापने हेतु किया जाता है. यह कुंडली प्रत्येक ग्रह की स्थिति एवं उसके प्रभाव के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है. नवांश कुंडली में लग्न की विशेष भूमिका होती है. यह जीवन में घटने वाले घटनाक्रम पर विशेष नजर डालता है. लग्न में मौजूद राशि ओर उसके स्वामी की अवस्था विशेष होती है जिसके कारण व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ विशेष प्रभाव भी दिखाई देता है. 

नवांश कुंडली में लग्न के गुण और विशेषता 

नवांश कुंडली का लग्न यदि मेष बनता है तो व्यक्ति को मेष लग्न के गुण और उसका असर अपने जीवन पर दिखाई देगा. नवांश में मेष लग्न का उदय होना व्यक्ति को भीतरी रुप से आत्मबल देने में सहायक भी बनता है. कार्यों को सीखने और नई चीजों में हाथ आजमाने का गुण भी प्राप्त होगा. व्यवहार में कुछ क्रियात्मक विचारों का असर भी दिखाई देगा लेकिन साथ ही अपनी असफलताओं को दूर करने की इच्छा भी व्यक्ति में बनी रह सकती है. व्यक्ति अपनी गतिविधियों को लेकर काफी प्रयासशील बना रह सकता है ओर उसमें आक्रामक, प्रतिस्पर्धी होने का भाव भी दिखाई दे सकता है. मेहनती और आत्मकेंद्रित होते हुए वह हैं लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहेगा तथा जिस भी कार्य को हाथ में लेगा उसमें उत्कृष्टता प्राप्त करना पसंद होगा. 

नवांश कुंडली में वृष लग्न का उदय 

नवांश कुंडली में वृष लग्न के होने पर व्यक्ति के स्वभाव और उसके मनोभाव की स्थिति में कहीं न कहीं स्थिरता अवश्य काम करने वाली होगी. वह अपने आप को दिखाने की इच्छा भी रखेगा लेकिन साथ ही उन चीजों को छुपाएगा जो उसके लिए कमजोरी सिद्ध हो सकती हैं. व्यक्ति आमतौर पर आकर्षण दिखने और उसमें खुद को ढालने वाला भी होगा. काम करने में विशेष रुप से व्यवसाय के लिए योग्यता उसकी बेहतर होती है. किसी रचनात्मक गुण में भी उसकी अभिरुची देखी जा सकती है. कला, संगीत, विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्र में उसका प्रभाव अवश्य दिखाई दे सकता है. भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने की चाह भी उसमें होगी. 

नवांश कुंडली में मिथुन लग्न का उदय

नवांश कुंडली में मिथुन लग्न का उदय होना व्यक्ति के भीतर कुछ अलग कर दिखाने का जोश भी देता है. यह व्यक्ति में व्यवहारिकता का गुण देने वाला होता है. एक साथ कई कामों को करने की इच्छा रह सकती है. सक्रिय लेकिन अस्थिर दिमाग वाले व्यक्तित्व को प्राप्त कर सकते हैं. बौद्धिक होते हैं लेकिन व्यर्थ की चीजों में शामिल होकर इस गुण को नजरअंदाज कर सकते हैं. मिथुन का असर बुद्धि प्रधान होने की ओर इशारा करता है. 

नवांश कुंडली में कर्क लग्न का उदय

नवांश कुंडली में कर्क लग्न का उदय होने पर व्यक्ति में भावनात्मक पहलू अधिक काम कर सकता है. उसके चुंबकीय आकर्षण, दृढ़, महत्वाकांक्षी गुणों का असर कार्यक्षेत्र पर भी पड़ता है. इसके साथ ही कार्य में सफलता को पाने की इच्छा भी उसमें अधिक होती है. व्यक्ति बहुत मेधावी, उत्साही, संवेदनशील, कल्पनाशील, मेहनती, बुद्धिमान और भावुक हो सकता है. इसके साथ ही उसके भीतर कुछ कलात्मक हो सकता है या इस ओर उसका रुझान भी बना रह सकता है. अपनी चीजों के प्रति अधिक संवेदनशील बनता है. 

नवांश कुंडली में सिंह लग्न का उदय

सिंह लग्न का उदय नवांश कुंडली में होने पर यह एक बेहतर और मजबूत व्यतित्व के निर्माण को दर्शाती है. व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है. उसमें प्रभावशाली व्यक्तित्व, होने के साथ खुद को सदैव आगे रखने की इच्छा भी होगी. कार्यों में दूसरों का मार्गदर्शन करने एवं अपने विचारों को दृढ़ता के साथ लेकर चलने में वह काफी प्रबल होगा. उसके भीतर निर्भीक, शक्तिशाली, आत्मविश्वासी और बहुत महत्वाकांक्षी होने का भाव भी होगा. स्वतंत्र विचारक और साहसी स्वभाव भी प्राप्त हो सकता है. अपने अनुसार कार्यों को करने की इच्छा अधिक होगी ओर निर्देश देने में कुशल होगा. 

नवांश कुंडली में कन्या लग्न का उदय 

कन्या लग्न के नवांश में होने पर व्यक्ति को अपने विषय में बाहरी दुनिया को जानने में अधिक दिलचस्पी होती है. ये लोग अभिव्यक्ति जानते हैं, यदि ये कुछ करना चाहते हैं, तो इसे किसी का सहयोग लेने की इच्छा भी रखते हैं. अपनी ओर से समर्पण की इच्छा भी रखते हैं. ये लोग जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में तार्किक, व्यावहारिक और व्यवस्थित हो सकते हैं. भौतिक दुनिया में गहरी जड़ें जमाए हुए हो सकते हैं. मेहनती और लगातार अभ्यास के माध्यम से अपने कौशल में सुधार करने के लिए प्रयासरत रह सकते हैं. 

नवांश कुंडली में तुला लग्न का उदय 

नवांश कुंडली में तुला राशि का लग्न में होना व्यक्तित्व में इच्छा ओर महत्वाकांक्षाओं का अलग ही रंग देने वाला होता है. व्यक्ति में संतुलन, सामंजस्य और न्याय करने का हुनर होता है. तुला की  ऊर्जा व्यक्ति को नई चीजों के साथ ढ़लने का समय और सहजता का गुण देती है. अपने जीवन में संतुलन की तलाश भी बनी रह सकती है. भावनाएं काम करती हैं ओर इस कारण कई बार अन्य पर निर्भरता का भाव अधिक बढ़ जाता है.  

नवांश कुंडली में वृश्चिक लग्न का उदय 

वृश्चिक लग्न का नवांश कुंडली में होना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. जीवन के अधिकांश हिस्से पर माया और रहस्यमय स्थितियों का असर भी बना रह सकता है. व्यक्ति में जुझारुपन देखने को मिल सकता है. अपनी हार को जीत में बदलने की इच्छा इनमें काफी स्ट्रांग दिखाई दे सकती है. भौतिक सुख साधनों को पाना और इन के प्रति अनदेखी जैसा भाव भी इनके मध्य द्वंद के रुप में मौजूद रह सकता है. ये अपनी मानसिक क्षमताओं से असाधारण साहस दिखा सकते हैं.  

नवांश कुंडली में धनु लग्न का उदय 

नवांश में धनु लग्न का होना साहसी और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाला होता है. जहां धनु जाता है अपनी छाप जरुर छोड़ता है. यह निडरता का संकेत देता है.  हमेशा ज्ञान की तलाश में रह सकता है. भौगोलिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रोमांच का पीछा करने में अगे रह सकते हैं. अपने अनुसार चीजों को करने का इनके भीतर अधिक उत्साह दिखाई दे सकता है.  बुद्धिमान, खुले और हमेशा आशावादी होते हैं. रोमांच-चाहने वाले अपने भाग्य और सकारात्मकता पर भरोसा करते हैं. नए स्थानों की खोज करने और नए अनुभवों को आज़माने के लिए आगे रह सकते हैं. 

नवांश कुंडली में मकर लग्न का उदय 

मकर राशि का नवांश के लग्न में उदय होने पर व्यक्ति में स्पष्ट होकर आगे बढ़ने की इच्छा अधिक रह स्कती है. किसी न किसी काम में उनकी अधिकता परेशानी भी दे सकती है.  धैर्य, दृढ़ता और समर्पण ही उन्हें आगे बढ़ाने का काम कर सकता है. भौतिक और भावनात्मक दोनों क्षेत्रों में काफी प्रयास करने की आवश्यकता होती है तभी उचित परिणाम मिल सकते हैं. 

नवांश कुंडली में कुंभ लग्न का उदय 

कुंभ राशि का नवांश में लग्न रुप में आना स्वतंत्र एवं उन्मुक्त रुख प्रदान करने वाला हो सकता है. यह कुछ बदलाव ओर बहुत सारा आनंद चाहने वाली स्थिति बनाती है. संतुष्टि का अभाव इनमें अधिक रह सकता है. हर बार कुछ नया करने की इच्छा रहती है. अपने आप किसी बेहतर स्थान पर खड़ा देखने की इनकी इच्छा ही इन्हें परिश्रम की ओर ले जाती है. रहयात्मक गुण भी इनमें खूब होते हैं और दूसरों का इनके प्रति आकर्षण भी दिखाई देता है. 

नवांश कुंडली में मीन लग्न का उदय 

मीन लग्न का नवांश कुंडली में उदय होना व्यक्ति के विचार एवं भावनात्मक पक्ष पर अधिक केन्द्रित दिखाई देता है. बुद्धिमान, उत्साही, संवेदनशील, सक्रिय और बहुत रचनात्मक हो सकता है.  अध्यात्मवाद की ओर बहुत अधिक झुकाव भी रह सकता है लेकिन उसके अपने विचार होते हैं. 

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लग्न अनुसार जाने कैसा होगा आपके भाग्य और कर्म का संबंध

कुंडली में लग्न का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण माना गया है. यह व्यक्ति के लिए मूल गुण को दर्शाता है जो जीवन के हर पहलू पर अपना असर डालता है. लग्न में मौजूद जो राशि होगी वह महत्व पूर्ण होगी. इसी के द्वारा जीवन में मिलने वाले फल और साथी पूर्व कर्मों का प्रभाव इसी में दिखाई देता है. जन्म के समय जो राशि इस पहले भाव अर्थात लग्न पर आति है वह सभी पर अपना असर डालती है. कुंडली में पहले भव में आने वाली राशि और उसका स्वामी दोनों को देखना बेहद महत्वपूर्ण होता है. है. लग्न में मौजूद राशि उस प्रकाश की तरह है जो प्रत्येक भाव के लिए चमक और ऊर्जा का काम करती है.

अगर कुंडली में राशि मजबूत और अच्छी स्थिति में है तो विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति साहस के साथ टिका रह सकता है और जब अवसर दस्तक देता है तो वह कोई भी चमत्कार कर सकता है. लग्न में मौजूद राशि हमें किसी व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं, कद और अन्य विशिष्टताओं को निर्धारित करने में मदद करती है. लग्न में मौजूद राशि कुंडली में मूल भविष्यवाणी कारक होती है.  लग्न की राशि के स्वामी का अलग-अलग भावों और राशियों में स्थित होना अलग-अलग परिणाम देता है, फिर भी लग्न की राशि का मूल प्रभाव सभी स्थितियों में लगभग समान रहता है.  

मेष राशि  

पहले भाव लग्न पर जब मेष राशि होती है तो यह बेहद महत्वपूर्ण होती है. यह पहली राशि है और लग्न के लिए इसका असर क्रियात्मकता के पक्ष में अच्छा होता है. इस लग्न में मौजूद मेष राशि का होना चलायमान बनाने वाला होता है क्योंकि मेष एक चल राशि है. मंगल द्वारा शासित मेष राशि वालों में कुछ हद तक स्वतंत्र सोच और तर्क शक्ति होती है. परंपरा या विचारों के सख्त न रह पाए.  सही और गलत के बारे में उनके अपने विचार होंगे. जिद्दी, स्पष्टवादी, आवेगी और साहसी होने का गुण मिलेगा. 

वृष राशि 

वृष राशि एक स्थिर राशि है और ऎसे में व्यक्ति के भीतर ये गुण विशेष होगा. वृष राशि का प्रभाव होने पर काफी कुछ विचारों को दिखाता है लेकिन उसमें बहुत अधिक जल्दी से बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है. अच्छी बुद्धि है और लेखक, पत्रकार के रूप में अच्छी तरह चमकते हैं. भावनाओं से बंधे नहीं रहते हैं.  व्यापारिक कौशल और अच्छी अंतर्ज्ञान शक्ति होती है. जीवन को लेकर एक स्थिर दृष्टिकोण मिलता है. कर्मों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है ओर भौतिकता का लाभ उठा पाते हैं. 

मिथुन राशि

मिथुन राशि का असर व्यक्तित्व में कुछ अलग सा आकर्षण दे सकता है. यह एक द्विस्वभाव राशि है और इसके आधार पर कई परिणाम प्राप्त हो सकते हैं मिथुन राशि के व्यक्ति की विचारधारा में कई तरह की चीजें मिलीजुली होती हैं. अस्थिर दिमाग होने के कारण एक अकर्य पर लम्बे समय तक रुक पाना कठिन हो सकता है. सक्रिय रह सकते हैं और गणित कैलकुलेशन, विज्ञान के विशेषज्ञ हो सकते हैं. कर्म की अवधारणा का प्रभाव इन्हें अचानक नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार बना सकता है. जीवन में आत्म नियंत्रण की आदत विकसित करने की आवश्यकता अधिक होती है.  

कर्क राशि

सभी राशियों में कर्क काफी भनात्मक शुभ राशि मानी जाती है. यह राशि का प्रभव व्यक्ति के जन्मों के कर्मों और शुभता का प्रभाव होता है. व्यक्ति में संवेदनशील और मितव्ययी होने का गुण भी होता है.  बुद्धिमान, उज्ज्वल और मेहनती व्यक्तित्त्व प्राप्त होता है. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार भी रहता है. नैतिक मूल्यों को लेकर द्वंद से प्रभावित रहता है. प्रेम संबंधों में निराशा का सामना करना पड़ता है. अत्यधिक निर्भरता भी परेशानी दे सकती है. ईमानदार और आत्मनिर्भर होने का गुण भी मिलता है. भावनाएं अत्यधिक वृद्धि को पाने वाली हैं. 

सिंह राशि 

सिंह राशि राजसिक राशि है, यह एक स्थिर राशि है. इसके प्रभाव का असर उग्र और क्रोध की अधिकता में दिखाई दे सकता है. राजसी रूप, अधिकार, और नेतृत्व की चाह इनमें होती है. इस राशि के  पूर्व कर्मों के रुप में व्यक्ति स्वभाव से निर्भीक और सम्मानित होता है. किसी भी परिस्थिति में खुद को ढाल लेने में माहिर हो सकता है. महत्वाकांक्षी होते हुए काम में सफलता को पाता है. धर्म में रूढ़िवादी सिद्धांतों से चिपके रह सकते हैं लेकिन दूसरों के प्रति सहिष्णु होते हैं. उपदेश, अभ्यास, कला और साहित्य से इनका जुड़ाव अधिक रहता है. अच्छे दार्शनिक होकर दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक बन सकते हैं.

कन्या राशि 

कन्या राशि वाले होने पर पोषण का गुण देखभाल की शैली उत्तम होती है. यह द्विस्वभाव राशि है और इसकी दिशा दक्षिण है. इस राशि के अंतर्गत जन्म लेने वाले व्यक्ति में युवावस्था बहुत उत्तम रुप से दिखाई देती है. अपने गुणों को देख पाते हैं. बुद्धि और याददाश्त का अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. विवेकशील और संवेदनशील होते हैं और आवेगों में बह जाते हैं. रचनात्मकता के गुणों में उत्तम होते हैं. 

तुला राशि 

तुला राशि बेहद उन्मुक्त स्वभाव का प्रभाव लाती है. यह वायु तत्व एवं चल प्रकृति की होती है. व्यक्ति में उत्साह होता है नई चीजों को अपनाने वाला होता है. आकर्षक रंग रुप प्राप्त होता है.  सुन्दर आंखें होती हैं मिलनसार व्यक्तित्व प्राप्त होता है. दृढ़ विश्वास होता है और अपने कार्यों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास कर सकते हैं. यथार्थवादियों से अधिक आदर्शवादी होते हैं. वे उत्साह से प्यार करते हैं और उनके पास अंतर्ज्ञान की शक्ति होती है जिस पर वे अपने मार्गदर्शन के लिए भरोसा करते हैं. वे संगीत के बड़े प्रेमी हैं.

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि के प्रभाव से कर्मों की रहस्यात्मकता का बेहतर गुण दिखाई देता है. वृश्चिक राशि वाला व्यक्ति अधिक युवा रूप वाला दिखाई दे सकता है. उनके पास एक उदार स्वभाव लेकिन उग्रता भी होती है. नेत्रों से स्थिर होते हैं लेकिन मन में चंचलता होती है. हर चीज में खोज की चाह रहती है. कार्यों में उत्तेजना पसंद करते हैं. कामुक चीजों में प्रवृत्त होते हैं. यहां तक कि इस राशि में पैदा होने वाली महिलाओं में भी मर्दाना प्रवृत्ति दिखाई दे सकती है. अच्छे संवाददाता होते हैं और आपस में मित्रता कर लेने में कुशल होते हैं. 

धनु राशि

धनु राशि वालों के गुण बेहद उद्यमशीलता पूर्ण दिखाई देते हैं. दोहरी प्रकृति होती है और उग्र भी होते हैं. चीजों के प्रति इच्छुक होते हैं और भूरे बालों के साथ बादामी आँखें होती हैं..  रूढ़िवादी दृष्टिकोण को बनाए रखने में कुछ अधिक कठोर हो सकते हैं. गुप्त विज्ञान और दर्शन की ओर आकर्षित होते हैं. अपने कर्मों के द्वारा भाग्य का निर्धारण करते हैं. निर्दयी और उत्साही हैं. बाहरी दिखावे से घृणा करते हैं और कपट से मुक्त होते हैं.  प्रतिभाशाली, शिष्ट और शुद्ध हृदय वाले होते हैं. राजनीतिक सत्ता हासिल कर सकते हैं यह इन्हें अपने कर्म फल के आधार पर भी प्राप्त होती है. 

मकर राशि

मकर राशि में काफी संभावनाएं दिखाई दे सकती हैं. चल प्रकृति और मजबूत स्वभाव भी होता है. जीवन में परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार खुद को ढाल लेने का गुण अच्छा होता है. अपने आस पास की चीजों के प्रति सजग होते हैं भौतिकता के लिए संघर्ष करते हैं. परिश्रम द्वारा ही उच्चतम स्तर को पाने में सक्षम भी होते हैं. इनकी बड़ी आकांक्षाएं होती हैं, मजबूत दिमाग और दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं. कभी-कभी मकर प्रतिशोधी हो सकते हैं तथा परंपरा के प्रति कठोर भी रहते हैं. 

कुंभ राशि

कुंभ राशि वालों के भीतर मस्ती और रहस्य दोनों की छाप देखने को मिलती है. इनका कर्म इनके पूर्व के साथ गहराई से जुड़ा होता है. अपने कार्यों के द्वारा जीवन में उपलब्धियों को पाते हैं अपने साथ साथ दूसरों के लिए सहायक भी बनते हैं. कुछ अस्थिरता इनमें अधिक दिखाई दे सकती है. द्धिमान होते हैं और मित्र बनाने में बहुत अच्छे होते हैं. दिल के साफ होते हैं और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. अच्छे प्रवक्ता के रूप में चमकते हैं.अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में कुछ छिपे रह सकते हैं लेकिन दिलचस्प और अत्यधिक शिक्षाप्रद होते हैं. आकर्षण इनका विशेष गुण भी होता है. 

मीन राशि

मीन राशि एक बहुत शुभ राशि होती है. इसमें चंचलता होती है, उदारता एवं कोमलता भरपूर होती है. यह एक सात्विकता से युक्त राशि है जिसके असर द्वारा जीवन में आने वाली दिशा को उचित रुप प्राप्त होता है. इसमें ज्ञान के साथ साथ नवीनता के प्रति भी लगाव होता है. अपने आस पास के वातावरण को काफी अच्छे से बदल देने में सक्षम होती है. इनके किए गए कार्य इनके कर्म की दिशा को बदल सकते हैं. 

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पीड़ित चंद्रमा कुंडली के सभी भावों डाल सकता है अपना असर

चंद्रमा तेजी से बदलती प्रकृति का ग्रह है ओर इसका जीवन पर बहुत खास असर दिखाई देता है. चंद्रमा के साथ अन्य ग्रहों की युति इस तथ्य की ओर ले जाती है कि चंद्रमा व्यावहारिक रूप से कैसा अपना असर दालेगा इसके विपरित चंद्रमा यदि अकेले होगा तो इसका असर भिन्न होगा. कुंडली में चन्द्रमा पर पड़ने वाला अन्य ग्रहों एवं राशियों का प्रभाव महत्वपूर्ण होता है. चंद्रमा एक शुभ ग्रह है लेकिन इसकी प्रकृति तब कुछ बदल सकती है जब यह अपनी कमजोर स्थिति में होता है.

जन्म कुंडली में चंद्रमा अक्सर पीड़ित या कमजोर हो सकता है.  जब कोई व्यक्ति पूर्णिमा  पूर्णिमा के करीब के दिनों में पैदा होता है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा अधिक सामंजस्यपूर्ण और पूर्ण होगा लेकिन इसके विपरित चीजें उसे कुछ बदलाव देने वाली होती हैं. 

कुंडली में चंद्रमा से जुड़े कारक

चंद्रमा मानस-कारक और मातृ-कारक है. किसी व्यक्ति के मन के सोचने का तरीका, भावुकता का सूचक भी चंद्रमा ही होता है, कुंडली में चंद्रमा कई कारणों से पीड़ित हो सकता है. मंगल, शनि और राहु-केतु के साथ इसकी पीड़ा रहती है. इसके अलावा भाव में इसकी स्थिति छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव में होने पर भी चंद्रमा कमजोर होता है. पाप ग्रहों के साथ चंद्रमा का संबंध भी चंद्रमा के स्वभाव को नष्ट कर देगा. निर्बल पीड़ा युक्त चंद्रमा जीवन को बर्बाद कर सकता है, यदि अगर हम इसके साथ काम करना नहीं सीखते हैं, इस तरह से अपनी समस्याओं का एहसास नहीं करते हैं, और स्थिति में सुधार करना शुरू नहीं करते हैं तो स्थिति अनियंत्रित ही रहेगी. 

चंद्रमा के साथ कुंडली संबंधी समस्याएं हमारे जीवन के कई क्षेत्रों में परिलक्षित होती हैं. कुंडली में कमजोर या पीड़ित चंद्रमा अक्सर कई लोगों में होता है.  सामान्य तौर पर, प्रत्येक व्यक्ति के लिए, चंद्रमा का पीड़ित होना भय को दिखाता है, नियमित रूप से घबराहट और तनाव, गहरे अवसाद और लंबे समय तक उदासी को दिखाने वाला होता है. ऎसे में पीड़ित चंद्रमा की स्थिति कुडली के हर भाव पर अपना असर अलग रुप में दिखाने वाली होगी. 

प्रथम भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव 

पहले भाव चंद्रमा यदि पिड़ा में होगा तो व्यक्ति अपने स्वतंत्र अतित्व को पहचान नहीं पाता है.व्यक्ति अधिक भावुक, संवेदनशील भी होगा लेकिन उसके स्वभाव की कठोरत उसे आंतरिक स्वरुप को देखने से रोक सकती है. अपनी इच्छाएं भावनाएं केंद्र में आ सकती हैं.अपने आप को लेकर कई तरह के भ्रम भी रह सकते हैं. चंद्रमा के पीड़ित होने पर उन्हें उसके साथ बहुत समस्याएं हो सकती हैं. स्त्री पक्ष के साथ सुख का कमी रह सकती है.  बहुत कल्पनाशील हो सकता है.स्वभाव में नकारात्मकता भी अधिक रह सकती है.  स्वभाव में बदलाव हो सकता है लेकिन चीजें काफी जिद और बेचैनी के साथ दिखाई दे सकती हैं. 

द्वितीय भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव 

द्वितीय भाव में चंद्रमा का पिड़ा में होना वित्त, परिवार, खान-पान, वाणी को प्रभावित करने वाला होगा. परिवार से दूरी की संभावना अधिक रह सकती है. परिवार सबसे अहम पहलू रुप काम करता है. भावनात्मक रूप से व्यक्ति फैसले नहीं ले पाता है.  अपने परिवार से अधिक जुड़े होते हैं. अंतर्मुखी हो सकते हैं जिसके कारण मन में . दूसरा घर शिक्षा के बारे में भी बताता है ऎसे में चंद्रमा का निर्बल होना आरंभिक शिक्षा के लिए परेशानी भी दे सकता है. आराम की कमी रह सकती है, जीवन में माता का प्रभाव प्रबल रह सकता है लेकिन यह सुख की कमी को दर्शाता है.  धन के मामले में उतार-चढ़ाव रहेगा. लॉटरी जैसा अचानक और अप्रत्याशित धन के कारण परेशानी घाटा अधिक रह सकता है. गुप्त विद्याओं में रुचि हो सकती है. 

तीसरे घर में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव 

तीसरा भाव साहस, प्रयास, छोटी यात्रा, संचार आदि के बारे में होता है. अब चंद्रमा का प्रभाव लोगों के लिए इन चीजों को प्रभावित कर देने वाला होगा. बहुत आसानी से दोस्त बना लेंगे लेकिन रिश्ते लम्बे नहीं चल पाते हैं. राशि चक्र का तीसरा भाव मिथुन है, यह एक साथ कई काम करने के बारे में है. बहु-प्रतिभाशाली लोग होंगे लेकिन उन्हें यात्रा में परेशानी अधिक कर सकती है. यहां विचार बहुत स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होते हैं ऎसे में विवाद भी अधिक रह सकता है. अपनों के सुख में कमी रहेगी भाई बहनों के साथ मतभेद या दूरी का अनुभव रह सकता है. बहुत भावुक होंगे और भौतिक संपत्ति की इच्छा रखेंगे जो नकारात्मक पक्ष को दर्शा सकता है.

चतुर्थ भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव 

चौथा घर खुशी, घर के आराम, संपत्ति, मां आदि से संबंधित हो सकता है. निर्बल चंद्रमा के कारण इन चीजों का अभाव हो सकता है. किसी भी चीज में स्थिर नहीं रह पाते हैं. मन सदैव गतिमान रहता है और ऎसे में एकाग्रता की कमी होगी. एक साथ कई काम करना चाहेंगे लेकिन पूर्ण काम कर पाना मुश्किल होगा. इनका दिमाग कई बातों में डगमगाता है. करियर में भी इनके लिए सेटल होना मुश्किल होता है. अपने घर से दूर जाकर निवास करना पड़ सकता है. भावनात्मक रुप से दबाव अधिक रह सकता है. 

चंद्रमा का पंचम में निर्बल होने का प्रभाव 

निर्बल चंद्रमा का प्रभाव जीवन भर की कमजोर स्मृति का असर डाल सकता है. बचपन की एक दुखद याद सदैव जीवन पर असर डालती है. प्रेम में दुख या विच्छोह को झेलना पड़ सकता है.  असंतुलित भावनाएं और मानसिकता में एकाग्रता की कमी बनी रह सकती है. बार-बार अपना घर बदल सकते हैं या वे बहुत अधिक बदलाव में शामिल रह सकते हैं. काम काज में अस्थिरता रह सकती है. भावनाओं से अस्थिर रह सकते हैं. प्रेम की कमी का अनुभव हो सकता है. पेट एवं कफ संबंधित विकार अधिक रह सकते हैं. 

छठे भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव 

छठा भाव सेवा, संघर्ष, रोग, ऋण, शत्रु आदि से संबंधित होता है ऎसे में यहां चंद्रमा अच्छे परिणाम नहीं दे पाता है. मन स्वयं संघर्ष से उलझा रहता है. स्वभाव में उतेजना अधिक रह सकती है.  चीजों को लेकर बहुत उत्साहित रह सकता है. भावनात्मक रूप से अशांत हो सकते हैं. उन्हें बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. मानसिक स्थिति बहुत उतार-चढ़ाव वाली रह सकती है. माता के सुख की कमी रह सकती है जीवन में दूसरों के साथ विवादों का सामना करना पड़ सकता है. 

सप्तम भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव 

यहां निर्बल चंद्रमा रिश्तों के लिए परेशानी दे सकता है. संघर्षों के साथ अपना जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है. जीवन साथी के साथ परेशानी अधिक रहती है. एक से अधिक रिश्ते उलझाते हैं. अपनों का सहयोग कम मिल सकता है. बाहरी संपर्क की इच्छा अधिक रह सकती है. अपनों से दूर रहना पड़ सकता है.  दूसरों के प्रति बहुत सहानुभूतिपूर्ण होता है. दिखावे की स्थिति के चलते मानसिक अस्थिरता का प्रभाव पड़ता है. 

चंद्रमा आठवें भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव

यह चंद्रमा के लिए सबसे खराब भाव हो सकता है, यहां मन और भावनाएं बहुत संवेदनशील और अस्थिर हो जाती हैं. विचार सदैव लगे रहते हैं जिसके कारण बुद्धि दबाव में हो सकती है, वे बहुत गुप्त हो सकते हैं, दूसरों पर भरोसा नहीं कर सकते हैं  किसी भी चीज से संतुष्ट नहीं हो पाते हैं. संतुष्टि का भाव कमजोर रह सकता है. यहां जीवन में रिश्तों के कारण सुख की कमी रह सकती है. प्रेम संबंधों की कमी परेशानी रह सकती है. गलत कार्यों में अधिक ध्यान आकर्षित रहता है. 

नवम भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव

आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए स्थान अच्छा है लेकिन चंद्रमा के निर्बल होने के कारण स्थिति कमजोर हो जाती है. अपनों से कुछ अनबन भी हो सकती है. माता गुप्त स्वभाव की हो सकती है या उनके जीवन में बहुत संघर्ष और संघर्ष होंगे. उनके विचारों को समझना मुश्किल हो सकता है. रहस्यवाद, मनोगत विज्ञान की ओर ध्यान अधिक आकर्षित होगा. जीवन में यात्राएं अधिक रह सकती है. 

दशम भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव

दशम भाव में निर्बल चंद्रमा का असर काम के लिए परेशानी देने वाला होगा. अस्थिर कार्यशैली होगी. लोगों के साथ संवाद करने की तीव्र लालसा भी अधिक रह सकती है. भौतिक सफलता प्राप्त होगी. सहकर्मियों से भावनात्मक रूप से जुड़े रहना परेशानी दे सकता है. कार्यक्षेत्र में इनके लिए मित्र बनाना आसान नहीं होता है. कार्यालय की राजनीति का भी सामना करना पड़ सकता है. चंद्रमा कमजोर होगा तो करियर में काफी उतार-चढ़ाव देने वाला होता है. एक स्थिर करियर की कमी जीवन को बर्बाद कर सकती है. 

एकादश भाव में चंद्रमा के निर्बल होने का प्रभाव

चंद्रमा के कारकत्व से संबंधित व्यवसाय से जुड़ने का मौका मिलेगा. समाज में उतार-चढ़ाव अधिक रह सकते हैं इच्छाएं अधिक रहती हैं जिनकी पूर्ति कर पाना मुश्किल लग सकता है. बड़े भाई या बहनों से भावनात्मक रूप से जुड़े हो सकते हैं लेकिन उनकी ओर से परेशानी रह सकती है. भाइयों की तुलना में अधिक बहनें होती हैं. बहुत भावुक और इच्छुक होते हैं भौतिक संपत्ति, प्रेम, सेक्स आदि के लिए तीव्र इच्छा भी रहती है. विपरीत लिंग के लिए बहुत आकर्षक लगते हैं और कभी-कभी स्वार्थी भी हो सकते हैं.

चंद्रमा के बारहवें भाव में निर्बल होने का प्रभाव
यहां चंद्रमा का निर्बल होना भावनाओं, संवेदनशीलता को खो देने जैसा होता है. व्यक्ति स्वभाव से कठोर लगता है. अलग-थलग महसूस कर सकता है. स्वार्थी हो सकता है. मानसिक रुप से असुरक्षा की भावना भी अधिक रह सकती है. चंद्रमा पर शुभ ग्रह की दृष्टि लाभदायी रहेगी. नहीं तो उनके लिए संतुलन बनाना मुश्किल होता है. अनिद्रा की शिकायत अधिक रह सकती है. संबंधों में अलगाव और असंतोष प्रकट होता है.

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ज्योतिष से संपत्ति के मामलों में समस्या या कोर्ट केस का कारण ?

मकान एवं संपत्ति ऎसी चीजें हैं जिनका सुख पाना एक बड़ा संघर्ष हो सकता है. कई बार इन चीजों में जीवन का संपुर्ण समय उलझा सा रहता है. संपत्ति के विवाद की स्थिति किसी न किसी रुप में जब जीवन पर आती है तो इस से बाहर निकल पाना आसान नहीं होता है. अपने घर या अपनी संपत्ति के लिए व्यक्ति बहुत संघर्ष करता है तो कुछ को सहजता से भी चीजें मिल जाती हैं. 

कई बार सहजता से मिली संपत्ति भी कानूनी झमेलों में जा सकती है. संपत्ति शायद या तो अधिकांश लोगों के लिए सबसे मूल्यवान सपना है ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दुनिया में एक व्यक्ति और वास्तव में एक परिवार के लिए संपत्ति का महत्व है. संपत्ति न केवल रहने की जगह देती है, बल्कि निवेश के लिए भी एक अद्भुत अवसर प्रदान करती है. इस को पाने के लिए व्यक्ति जीवन में लगातार संघर्ष बना रह सकता है. संपत्ति की की खरीद हो या फिर संपत्ति को पैतृक रुप में पाना यह किसी भी रुप में मिल सकती है. अब संपत्ति हमारे भाग्य में है या नहीम ओर संपत्ति में पड़े विवाद आखिर क्यों परेशान करते हैं इन बातों को जानने के लिए जन्म कुंडली एवं ग्रहों की स्थिति काफी कुछ बताने वाली होती है. 

जब संपत्ति का लेन-देन करने की बात आती है तो कई लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उनके जीवन में संपत्ति प्राप्त करना या बेचना, भारी बाधाओं के साथ हो सकता है. संपत्ति में भारी मात्रा में धन शामिल होता है, ऐसे मामलों में आने वाली कोई भी समस्या मानसिक तनाव और शांतिपूर्ण दैनिक जीवन में भी दे सकता है. संपत्ति के मामलों में आने वाली समस्याओं का समाधान क्या है  इसका समाधान कुंडली में निहित है. 

ज्योतिषी द्वारा संपत्ति की भविष्यवाणी

जब कोई व्यक्ति संपत्ति का प्रश्न करता है व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण करके देखता जाता है. कुंडली में ग्रहों की स्थिति कैसी है और संपत्ति की संभावनाओं के संबंध में वे क्या परिणाम दे रहे हैं. इन बातों को कुंडली द्वारा जाना जा सकता है.  आइए देखें कि एकसंपत्ति की समस्याओं के समाधान के लिए व्यक्ति की कुंडली में क्या देखा जाना महत्वपूर्ण होता है. 

संपत्ति के भाव स्थान की स्थिति 

कुंडली में सभी भाव किसी न किसी विशेषता के साथ होते हैं इसी में संपत्ति के भाव के रुप में चतुर्थ भाव को देखा जाता है. यह कुंडली में संपत्ति का प्रधान भाव होता है. इस घर की मजबूती व्यक्ति के जीवन में संपत्ति या अचल संपत्ति की स्थिति का निर्धारण करने का आधार बनती है. चतुर्थ भाव के अलावा चतुर्थ भाव के स्वामी ओर उसके अन्य भावों के संबंध को देखना भी विशेष होता है. इसके अलावा सूर्य या चंद्रमा की शुभ स्थिति स्थिति सरकार के साथ संपत्ति के सौदे की संभावनाओं को बढ़ाती है. उदाहरण के लिए, यदि कुंडली में सूर्य चंद्रमा की स्थिति अच्छी होती है तो व्यक्ति को सरकार की ओर से भी भूखंड या आवासीय संरचना की प्राप्ति किसी न किसी रुप में हो सकती है. किंतु खराब सूर्य या चंद्रमा जातक को संपत्ति के मामले में सरकारी अधिकारियों से नियामक बाधाएं देने वाला होता है. संपत्ति के आर्किटेक्चर या नक्शे आदि में अधिकारियों की आपत्तियां भी इसी के कारण झेलनी पड़ सकती है. 

आठवां घर

कुंडली का आठवां घर विरासत से मिलने वाली संपत्ति का स्थान माना गया है. यहीं से पैतृक संपत्ति की प्राप्ति को देखा जाता है. इसे यह विरासत का घर भी कहा जाता है. व्यक्ति की कुण्डली में इस भाव की स्थिति उत्तराधिकार के माध्यम से संपत्ति के लाभ की संभावनाओं को प्रकट करती है. इस घर में शनि या मंगल का होना संपत्ति मिलने की स्थिति को दिखाने वाला होता है. लेकिन यहां केतु या राहु की उपस्थिति से अक्सर व्यक्ति को अपनी पैतृक संपत्ति से मिलने वाले अटकाव या की स्थिति भी परेशानी दिखाने वाली होती है. 

नौवां भाव 

नौवां घर भाग्य का घर होता है. यह भाव शुभ होने पर संपत्ति के मालिक होने का सुख देता है. यह ऐसा भाव भी है जो अचल संपत्ति या संपत्ति उद्यमों में सफल व्यवहार को बढ़ावा देता है. इस भाव में शुभ ग्रहों की स्थिति होने पर व्यक्ति को अच्छी संपत्ति दिलाने वाली होती है. यहां शनि की उपस्थिति या दृष्टि अनावश्यक बाधाएँ पैदा करती है और संपत्ति के लाभ या संपत्ति की सफल बिक्री में देरी भी दिलाने वाली होती है. संपत्ति में यदि भाग्य की स्थिति अनुकूल न हो तो इस संपत्ति में विवाद हो सकता है. कानून संबंधी अड़चनें तथा विवाद को दिखाती हैं. 

ग्यारहवां भाव 

जब संपत्ति की बात आती है तो एकादश भाव भी बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह लाभ को दर्शाता है और चाहे संपत्ति खरीदना हो या बेचना, एक मजबूत ग्यारहवां भाव किसी के जीवन के संपत्ति क्षेत्र में लाभ सुनिश्चित करने वाला होता है. कुंडली में इस भाव की शुभ स्थिति व्यक्ति को संपत्ति से मिलने वाले लाभ को प्रदान करने वाली होती है. यदि शुभ न हो तो लाभ की प्राप्ति मुश्किल होती है. 

बारहवां भाव 

यह भाव व्यय की स्थिति के बारे में बताता है. संपत्ति खरीदने के विशेष मामले में, बारहवां भाव से संकेतित एक अच्छा व्यय का अर्थ है कि यह एक अच्छा निवेश दिलाने में सहायक हो सकता है. बारहवां भाव व्यक्ति 

संपत्ति से संबंधित ग्रह 

मकान, प्रोपर्टी से संबंधित संपत्ति के इए दो ग्रहों का विचार विशेष रुप से होता है. इन में मंगल का और शनि का प्रभाव मुख्य होता है. संपत्ति के लिए यह दोनों ग्रह महत्वपूर्ण माने गए हैं. इन दोनों ग्रहों की शुभता का प्रभाव व्यक्ति के लिए सकारात्मक रुप से काम करता है. कुंडली में मजबूत मंगल की स्थिति भूमि का लाभ प्रदान करने वाली स्थिति है. 

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आपकी कुंडली में चंद्रमा की एक से बारह भाव की कहानी

चंद्रमा ओर सुर्य यह ज्योतिष में दो मुख्य आधार स्तंभ हैं इनके द्वारा संपूर्ण व्यक्तित्व के सबसे प्रमुख गुण दृष्टिगोचर हो सकते हैं. जब चंद्रमा की बात आती है तो चंद्रम अके प्रत्येक पक्ष की स्थिति विशेष होती है ओर इसी के साथ कुंडली में मौजूद चंद्रमा का असर भी विशेष माना गया है.  चंद्रमा व्यक्ति के भावनात्मक और संवेदनशील चरित्र का प्रतीक बनता है. चंद्रमा जल प्रधान है और इसकी स्वामित्व की राशि भी इससे संबंधित है. चंद्रमा कर्क राशि का स्वामित्व रखता है, जो प्राकृतिक राशि चक्र में चौथा भाव स्थान भी है. चौथा भाव मन, मानस, माता, घर और भावनाओं को दर्शाता है. कुंडली में, चंद्रमा आंतरिक स्व, भावनात्मक जरूरतों और हम अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करते हैं, का प्रतिनिधित्व करता है. चंद्र घर और परिवार से भी जुड़ा हुआ है और अतीत से हमारा संबंध भी इसी से देखा जाता है. चंद्रमा अलग-अलग भावों में अलग-अलग फल देता है. चन्द्रमा ज्योतिष में नैसर्गिक शुभ कारक है 

प्रथम भाव में चंद्रमा का होना

ज्योतिष में प्रथम भाव को लग्न भी कहा जाता है. यह व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, चरित्र और दृष्टिकोण को दर्शाता है. पहले घर में स्थित चंद्रमा यह संकेत देता है कि एक व्यक्ति खुद को दुनिया के सामने कैसे प्रस्तुत करता है और नए अनुभवों और स्थितियों को कैसे अपने लिए देखता है. चंद्रमा का प्रभाव ऊर्जा स्तर, प्रेरणा और उद्देश्य की भावना को बढ़ाने का काम करता है. जीवन के प्रति दृष्टिकोण को भी इसका विशेष सहयोग प्राप्त होता है. चंद्रमा पहले भाव में होने पर व्यक्ति में चंचलता और आकर्षण को भर देने वाला होता है. 

दूसरे भाव में चंद्रमा का प्रभाव  

चन्द्रमा अत्यंत आकर्षक ग्रह है और जब दूसरे भाव में होता है तो व्यक्ति में विशेष आकर्षण भर देता है. चेहरा मोहरा प्रभावित करने वाला होता है.व्यक्ति के चेहरे पर कोई निशान या तिल हो सकता है.  व्यक्ति वाणी में कोमल, नम्र बना देने में सहायक होता है. व्यक्ति भावुक स्वभाव का होता है, व्यक्ति को हमेशा अकेले खड़े रहना पसंद हो सकता है.  व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहना पसंद करता है और मूडी भी हो सकता है.  भीड़ से हट कर दिखने की प्रवृत्ति भी व्यक्ति में हो सकती है. व्यक्ति का मां से गहरा संबंध हो सकता है या उनसे लाभ मिल सकता है.  यदि चंद्रमा को किसी प्रकार का कष्ट हो तो जातक का माता के साथ जटिल संबंध हो सकता है. 

तीसरे भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

चंद्रमा के तीसरे भाव में होने पर इसका प्रभाव व्यक्ति को मिलनसार बनाने वाला हो सकता है. जब चंद्रमा तीसरे भाव में होता है, तो व्यक्ति पास रचनात्मक योग्यता एवं विशेषताएं होती हैं.  भौतिक धन से व्यक्ति का बहुत गहरा लगाव हो सकता है. चंद्रमा एक बढ़ता और घटता ग्रह है, जिसका अर्थ है कि यह एक अस्थिर ग्रह है. जब यह यहां होता है धन को लेकर अस्थिरता भी दे सकता है. यात्राएं भी देता है. बदलाव को लेकर व्यक्ति अधिक सोचता है. व्यक्ति को अपना पैसा कैसे खर्च करना चाहिए इस बारे में सोचने की अधिक आवश्यकता होगी. अपने भाई बंधुओं के साथ अच्छे मेल जोल को पाने में सफल रह सकता है. 

चतुर्थ भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

यहां चंद्रमा की स्थिति अच्छी मानी गई है. यहां चंद्रमा के होने पर व्यक्ति को कई तरह के सुख एवं लाभ मिलते हैं. व्यक्ति अपने जीवन का भरपूर आनंद उठा पाने में भी काफी सक्षम हो पाता है. व्यक्ति के पास अच्छे खान पान का सुख होता है वह अपनी माता का प्रेम पाता है उसके भाव जीवन मूल्यों का अच्छा गुण होता है और अच्छे संस्कार होते हैं. व्यक्ति आत्म-मूल्य रखने में विश्वास करता है. जीवन में अपने आत्म स्वाभिमान को लेकर वह सजग होता है.  अपने कैरियर को लेकर भी व्यक्ति अधिक जिज्ञासु होता है. चंद्रमा पोषण को दर्शाता है, इसलिए व्यक्ति का काम पोषण से संबंधित क्षेत्र में अधिक रह सकता है. अपने परिवार को लेकर वह भावनात्मक होता है और परिवार के लिए समर्पण का भाव भी रखता है. 

पंचम भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

पंचम भाव में चंद्रमा का होना यात्राओं, संचार, साहस, लेखन और संतान के साथ सुखों को जोड़ने वाला होता है.  व्यक्ति स्वयं के उद्यमों के लिए कोशिशें करता है. यहां चंद्रमा का होना एक रचनात्मक दिमाग प्रदान करता है. व्यक्ति किसी लेखन, कवि या फिर किसी रचनात्मक गुणों से प्रेरित रह सकता है. रचनात्मकता के माध्यम से आत्म-अभिव्यक्ति स्वाभाविक रूप से आ जाती है. यह चंद्रमा सहज, भावुक और दूसरों की भावनाओं के प्रति ग्रहणशील बनाता है. मल्टीटास्किंग भी मिल सकती है. 

छठे भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

चन्द्रमा के इस भाव में होने पर व्यक्ति को सुखों की कमी परेशानी दे सकती है. यह चंद्रमा के लिए खराब स्थान होता है. व्यक्ति स्वभाव से बिखरा हुआ सा लग सकता है. चीजें समय के अंदर काम नहीं कर पाती हैं. व्यक्ति स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान होता है लेकिन योग्यता का बेहद लाभ नहीं मिल पाता है. एक साथ कई काम करने के मौके मिल सकते हैं. एक साथ कई कलाओं में निपुणता भी मिल सकती है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी अधिक रह सकती है तथा व्यक्ति बहुत जिज्ञासु एवं बेचैन हो सकता है. 

सप्तम भाव में चन्द्रमा का प्रभाव 

चंद्रमा का यहां होना व्यक्ति को प्रभावशाली एवं आकर्षक बनाता है. व्यक्तियों को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. व्यक्ति को भूमि और निर्माण से बहुत लाभ मिल सकता . ऐसा जातक यदि भूमि या भवन निर्माण का कार्य करता है तो उसे खूब धन की प्राप्ति होती है. यदि चंद्रमा अच्छी स्थिति में है तो व्यक्ति के पास अपना घर और संपत्ति अच्छी हो सकती है. व्यक्ति पारिवारिक मूल्यों, मानदंडों, घर और विरासत से गहराई से जुड़ा हो सकता है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. व्यक्ति उदार और कोमल होता है. 

अष्टम भाव में चंद्रमा का प्रभाव   

आठवें भाव में चंद्रमा को निर्बल माना गया है. यहां चंद्रमा की स्थिति कुल मिलाकर व्यक्ति को भनात्मक रुप से परेशानी दे सकती है तथा माता के सुख को प्रभावित करने वाली होती है.  यदि यहां चंद्रमा मजबूत हो तो कुछ सकारात्मक भी दिखाता है. व्यक्ति को जीवन में कई तरह के संघर्ष दिखाई देते हैं लेकिन मजबूत चंद्रमा का प्रभाव उसे बचाव भी प्रदान करता है. स्वास्थ्य को लेकर कुछ अधिक सजग रहने कि आवश्यकता होती है तथा मानसिक रुप से मजबूत होना पड़ता है. 

नवम भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

नवम भाव में चंद्रमा के होने पर अपने पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त होता है. व्यक्ति को सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है. व्यक्ति को मौज-मस्ती करना और अन्य लोगों से मिलना पसंद हो सकता है. व्यक्ति मित्र बनाने में कुशल हो सकता है. लोगों के साथ रहना पसंद कर सकता है. सामाजिक रुप से काफी अग्रसर होता है. भीड़ के मध्य आकर्षण का केंद्र होता है. रचनात्मक एवं कलात्मक गुणों में सक्षम होता है. 

दसवें भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

दसवें घर को कर्म भाव के रूप में जाना जाता है, और यहां चंद्रमा व्यक्ति को कर्म के प्रति प्रयासरत बनाता है. करियर के क्षेत्र में कुछ बदलाव का संकेत भी चंद्रमा के कारण मिलता है. व्यक्ति चिकित्सा एवं जल से जुड़े कामों में शामिल हो सकता है. व्यक्ति का स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक झुकाव भी रख सकता है. विदेश और संस्कृतियों के प्रति आकर्षण भी इनमें अधिक रह सकता है. अनेक प्रकार की भाषाओं को सीखने में वह कुशल होता है. 

एकादश भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

एकादश भाव में चंद्रमा भावनाओं को दर्शाता है. व्यक्ति जीवन में कई तरह की चीजों को पाने के लिए प्रयास भी करता है. वह नवीनता से जुडा़व पसंद करने वाला होता है. व्यक्ति मानसिक रुप से कई चीजों में खुद को उलझा के रख सकता है. व्यक्ति भ्रमण का भी बहुत शौक रखता है. सामाजिक रुप से वह अग्रसर भी होता है. 

बारहवें भाव में चंद्रमा का प्रभाव 

बारहवें घर को मोक्ष भाव के रूप में जाना जाता है, और यह घर आध्यात्मिकता, अवचेतन मन का स्थान है.  चंद्रमा यहां मन एवं भावनाओं को अधिक उकसाने का काम करता है. मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालने वाला होता है. व्यक्ति की आध्यात्मिक विषयों में विशेष रुचि हो सकती है. भ्रमण के अवसर भी प्राप्त होते हैं कुछ पारंपरिक शैली से जुड़ने का मौका भी प्राप्त होता है. 

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कुंडली में पुष्कर नवांश का महत्व

पुष्कर नवांश एक शुभ नवांश है जो जन्म कुंडली में आशाजनक ऊर्जा लाता है. बृहस्पति एक लाभकारी ग्रह है और सौभाग्य, ज्ञान और ज्ञान का कारक है. पुष्कर नवांश और बृहस्पति के योग के अलावा अन्य ग्रहों की स्थिति का योगदान इस नवांश के फलों के रुप में मिलता. यह समग्र व्यक्तित्व को बढ़ाने में भी सहायक हो सकता है. पुष्कर नवांश की स्थिति का प्रभाव अच्छे फलों को देने में सहायक होता है. यह पोषण और ऊर्जा को प्रदान करने वाला होता है.यह नवांश विशेष ऊर्जा है जो पोषण करती है. पुष्कर शब्द का उपयोग शुभता के लिए भी होता है.  

पुष्कर नवांश कथा और बृहस्पति का संबंध 

पुष्कर ज्योतिष में एक बहुत ही पवित्र शब्द है इस से संबंधितत कुछ कथा भी ज्योतिष में प्राप्त होती है. जिस्के अनुसार पुष्कर एक ब्राह्मण था उसने बहुत तपस्या की और उसे वरदान मिला कि वह हमेशा शिव के साथ रहेगा. शिव ने इस ब्राह्मण के लिए एक महान स्थान नियमित किया जो जल के रूप में था. बृहस्पति, जो देवों के गुरु हैं, जल चाहते थे क्योंकि मानव जाति को जल की जरूरत थी, लेकिन पुष्कर देव गुरु के साथ नहीं जाना चाहता था. ब्रह्मा ने पुष्कर के लिए एक सीमित समय के लिए बृहस्पति के साथ रहने की शर्त रखी. पुष्कर पहले बारह दिनों में बृहस्पति के साथ रहेगा जब बृहस्पति एक राशि में प्रवेश करता है और अंतिम बारह दिनों में जब वह इसे छोड़ देता है. बीच की अवधि के बाकी दिनों में, पुष्कर दोपहर में दो मुहूर्त की अवधि के लिए बृहस्पति के साथ रहेगा. एक मुहूर्त 48 मिनट का होता है, तब पुष्कर ब्रह्मा और ब्रहस्पति दोनों के साथ हो सकता है.

बृहस्पति एक राशि में एक वर्ष तक रहता है और सभी राशियों की यात्रा पूरी करने में उसे बारह वर्ष लगते हैं. बृहस्पति सहित पुष्कर जब किसी राशि में प्रवेश करता है तो उसे आदिपुष्कर कहते हैं और जब बृहस्पति राशि को छोड़ते हैं तो उस पुष्कर को अंत्य पुष्कर कहते हैं. बाकी दिनों में पुष्कर 2 मुहूर्त बृहस्पति के पास रहता है और इस समय में जब लोग स्नान करते हैं तो उन्हें आशीर्वाद मिलता है और उनके पाप धुल जाते हैं. यह हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार है  पुष्कर का अर्थ है जो कुछ पोषण करता है. यह ज्योतिष में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है पुष्कर शब्द का अर्थ है पोषण करने वाली ऊर्जा. यह बृहस्पति के साथ पुष्कर का संबंध रहा है किंतु इसे अतिरिक्त शुक्र, बुध भी इसके साथ विशेष रुप से संबंध बनाते हैं. 

पुष्कर नवांश और इसका प्रभाव 

पुष्कर नवांश ग्रह वह ग्रह है जिसकी स्थिति कुंडली में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है. अस्त ग्रह को छोड़कर पुष्कर नवांश में ग्रह बहुत शुभ फल देने में सक्षम होता है.  ग्रह जब शुभ स्थिति में होता है तो बहुत अच्छा होता है, चाहे वह योगकारक हो, कारक ग्रह हो या कुंडली में कोई अन्य स्थिति में हो. पुष्कर नवमांश ग्रह की सबसे अच्छी विशेषताओं में से एक यह है कि यह पीड़ित है, जब यह शत्रु राशि में है, जब यह नीच राशि में है. यह तब भी शुभ फल देने में सहायक बनता है. यदि पुष्कर नवांश में बैठा ग्रह बलवान हो गया है या कोई राजयोग, शुभ योग बना रहा है तो काफी बेहतरीन परिणाम देने में सहायक माना गया है. 

कुंडली में पुष्कर नवांश में एक या एक से अधिक ग्रह एक साथ होते हैं. पुष्कर नवांश में जितने अधिक ग्रह होंगे, कुंडली उतनी ही अधिक बलशाली होगी. अब ऐसी स्थिति आती है कि कोई ग्रह पुष्कर नवांश में है, लेकिन उस ग्रह की स्थिति सही नहीं है, जैसे मकर लग्न में सूर्य अष्टम भाव में उच्च का होकर चतुर्थ भाव केंद्र में उच्च का होकर पुष्कर नवांश में होता है, तो यहां सूर्य कुछ दुखद स्थितियों के साथ भी शुभ फल देने में भी सहायक बनेगा. पहले इसके खराब फल मिलेंगे लेकिन बाद में शुभ फल भी प्राप्त हो सकेंगे. अष्टमेश होकर चतुर्थ भाव के केंद्र में विराजमान पुष्कर नवांश में बैठे ग्रह किस भाव के स्वामी के साथ क्या योग बना रहे हैं, यह स्थिति भी जिस भाव का स्वामी बैठा हो उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है. पुष्कर नवांश ग्रह के साथ बैठा हो जैसे पुष्कर नवांश नवांश में हो और पुष्कर सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में बैठा हो तो इसका शुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन पर भी अच्छा रह सकता है. ऐसी स्थिति में शुभ ग्रह बृहस्पति, शुक्र, बुध, चंद्र, तो स्थिति बेहतर मानी जाती है.

कोई ग्रह राशियों के अनुसार पुष्कर नवमांश में विराजमान है. इसमें अग्नि तत्व जिसमें मेष, सिंह, धनु, पृथ्वी तत्व शामिल है, इसके अलावा वृष, कन्या, मकर पथ्वी तत्व शामिल हैं, इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक, मीन कुम्भ, जल तत्व की राशियां भी हैं.कोई भी ग्रह जब अग्नि तत्व राशि मेष सिंह धनु राशि में 20 अंश से 23 अंश 20 अंश का होगा तो नवांश कुण्डली में वह ग्रह तुला राशि का होगा, ऐसे एक ग्रह पुष्कर नवांश में होगा.

इसी प्रकार जब कोई ग्रह पृथ्वी तत्व राशि वृष कन्या मकर में 6 डिग्री 40 डिग्री से 10 डिग्री के बीच होगा तो ऐसा ग्रह नवमांश कुंडली में वृष राशि में होगा जो पुष्कर नवांश में होगा.जब कोई ग्रह अंदर होगा वायु तत्व राशि मिथुन तुला कुम्भ 16 अंश 40 अंश यदि 20 अंश से 20 अंश हो तो ऐसा ग्रह नवमांश कुण्डली में मीन राशि में होगा अर्थात पुष्कर नवांश में होगा. अब जब कोई ग्रह 0 अंश से 0 अंश में होगा 3 डिग्री 20 डिग्री जल तत्व कर्क, वृश्चिक, मीन राशि में हो तो ऐसा ग्रह नवमांश कुंडली में कर्क राशि में होगा और ये जल तत्व राशि में 6 डिग्री 40 कला और 10 डिग्री के बीच में हो तो ऐसा ग्रह होगा नवमांश कुंडली में कन्या राशि का होगा, जो पुष्कर नवांश में होगा. इस प्रकार जब कोई ग्रह पुष्कर नवांश पर एक निश्चित डिग्री और एक निश्चित डिग्री के बीच होता है. वे आते हैं.

पुष्कर नवांश का योगकारी प्रभाव

पुष्कर नवांश ग्रह कोई भी राजयोग, धनयोग, विपरीत राजयोग या अन्य कोई शुभ योग बनाते हैं तो उनकी स्थिति काफी बेहतर हो जाती है. प्रबल योगकारक होने के कारण यह सफलता, उन्नति, उत्तम जीवन स्तर प्रदान करता है. अब शुक्र पुष्कर नवांश में होगा ऐसी स्थिति में शुक्र की दशा और सदा अनुकूल फल देने में सहायक होगी.  यदि ऐसे में शुक्र किसी अन्य प्रकार से राजयोग बनाता है या धन योग बनाता है, शुभता में वृद्धि का कारण बनता है. मकर लग्न में शुक्र की प्रधानता शुभ है, अभी शुक्र पुष्कर नवांश में बैठा है तो उसके फल बहुत अच्छे मिलेंगे, यदि शुक्र अन्य ग्रहों के साथ बैठकर कोई राजयोग बनाता है तो उसके शुभ फल कई गुना बढ़ जाते हैं. नीच राशि में हो, शत्रु राशि में हो या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो या कमजोर दिख रहा हो तो भी यह फल देगा. 

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