कुंडली में पुष्कर नवांश का महत्व

पुष्कर नवांश एक शुभ नवांश है जो जन्म कुंडली में आशाजनक ऊर्जा लाता है. बृहस्पति एक लाभकारी ग्रह है और सौभाग्य, ज्ञान और ज्ञान का कारक है. पुष्कर नवांश और बृहस्पति के योग के अलावा अन्य ग्रहों की स्थिति का योगदान इस नवांश के फलों के रुप में मिलता. यह समग्र व्यक्तित्व को बढ़ाने में भी सहायक हो सकता है. पुष्कर नवांश की स्थिति का प्रभाव अच्छे फलों को देने में सहायक होता है. यह पोषण और ऊर्जा को प्रदान करने वाला होता है.यह नवांश विशेष ऊर्जा है जो पोषण करती है. पुष्कर शब्द का उपयोग शुभता के लिए भी होता है.  

पुष्कर नवांश कथा और बृहस्पति का संबंध 

पुष्कर ज्योतिष में एक बहुत ही पवित्र शब्द है इस से संबंधितत कुछ कथा भी ज्योतिष में प्राप्त होती है. जिस्के अनुसार पुष्कर एक ब्राह्मण था उसने बहुत तपस्या की और उसे वरदान मिला कि वह हमेशा शिव के साथ रहेगा. शिव ने इस ब्राह्मण के लिए एक महान स्थान नियमित किया जो जल के रूप में था. बृहस्पति, जो देवों के गुरु हैं, जल चाहते थे क्योंकि मानव जाति को जल की जरूरत थी, लेकिन पुष्कर देव गुरु के साथ नहीं जाना चाहता था. ब्रह्मा ने पुष्कर के लिए एक सीमित समय के लिए बृहस्पति के साथ रहने की शर्त रखी. पुष्कर पहले बारह दिनों में बृहस्पति के साथ रहेगा जब बृहस्पति एक राशि में प्रवेश करता है और अंतिम बारह दिनों में जब वह इसे छोड़ देता है. बीच की अवधि के बाकी दिनों में, पुष्कर दोपहर में दो मुहूर्त की अवधि के लिए बृहस्पति के साथ रहेगा. एक मुहूर्त 48 मिनट का होता है, तब पुष्कर ब्रह्मा और ब्रहस्पति दोनों के साथ हो सकता है.

बृहस्पति एक राशि में एक वर्ष तक रहता है और सभी राशियों की यात्रा पूरी करने में उसे बारह वर्ष लगते हैं. बृहस्पति सहित पुष्कर जब किसी राशि में प्रवेश करता है तो उसे आदिपुष्कर कहते हैं और जब बृहस्पति राशि को छोड़ते हैं तो उस पुष्कर को अंत्य पुष्कर कहते हैं. बाकी दिनों में पुष्कर 2 मुहूर्त बृहस्पति के पास रहता है और इस समय में जब लोग स्नान करते हैं तो उन्हें आशीर्वाद मिलता है और उनके पाप धुल जाते हैं. यह हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार है  पुष्कर का अर्थ है जो कुछ पोषण करता है. यह ज्योतिष में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है पुष्कर शब्द का अर्थ है पोषण करने वाली ऊर्जा. यह बृहस्पति के साथ पुष्कर का संबंध रहा है किंतु इसे अतिरिक्त शुक्र, बुध भी इसके साथ विशेष रुप से संबंध बनाते हैं. 

पुष्कर नवांश और इसका प्रभाव 

पुष्कर नवांश ग्रह वह ग्रह है जिसकी स्थिति कुंडली में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है. अस्त ग्रह को छोड़कर पुष्कर नवांश में ग्रह बहुत शुभ फल देने में सक्षम होता है.  ग्रह जब शुभ स्थिति में होता है तो बहुत अच्छा होता है, चाहे वह योगकारक हो, कारक ग्रह हो या कुंडली में कोई अन्य स्थिति में हो. पुष्कर नवमांश ग्रह की सबसे अच्छी विशेषताओं में से एक यह है कि यह पीड़ित है, जब यह शत्रु राशि में है, जब यह नीच राशि में है. यह तब भी शुभ फल देने में सहायक बनता है. यदि पुष्कर नवांश में बैठा ग्रह बलवान हो गया है या कोई राजयोग, शुभ योग बना रहा है तो काफी बेहतरीन परिणाम देने में सहायक माना गया है. 

कुंडली में पुष्कर नवांश में एक या एक से अधिक ग्रह एक साथ होते हैं. पुष्कर नवांश में जितने अधिक ग्रह होंगे, कुंडली उतनी ही अधिक बलशाली होगी. अब ऐसी स्थिति आती है कि कोई ग्रह पुष्कर नवांश में है, लेकिन उस ग्रह की स्थिति सही नहीं है, जैसे मकर लग्न में सूर्य अष्टम भाव में उच्च का होकर चतुर्थ भाव केंद्र में उच्च का होकर पुष्कर नवांश में होता है, तो यहां सूर्य कुछ दुखद स्थितियों के साथ भी शुभ फल देने में भी सहायक बनेगा. पहले इसके खराब फल मिलेंगे लेकिन बाद में शुभ फल भी प्राप्त हो सकेंगे. अष्टमेश होकर चतुर्थ भाव के केंद्र में विराजमान पुष्कर नवांश में बैठे ग्रह किस भाव के स्वामी के साथ क्या योग बना रहे हैं, यह स्थिति भी जिस भाव का स्वामी बैठा हो उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है. पुष्कर नवांश ग्रह के साथ बैठा हो जैसे पुष्कर नवांश नवांश में हो और पुष्कर सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में बैठा हो तो इसका शुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन पर भी अच्छा रह सकता है. ऐसी स्थिति में शुभ ग्रह बृहस्पति, शुक्र, बुध, चंद्र, तो स्थिति बेहतर मानी जाती है.

कोई ग्रह राशियों के अनुसार पुष्कर नवमांश में विराजमान है. इसमें अग्नि तत्व जिसमें मेष, सिंह, धनु, पृथ्वी तत्व शामिल है, इसके अलावा वृष, कन्या, मकर पथ्वी तत्व शामिल हैं, इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक, मीन कुम्भ, जल तत्व की राशियां भी हैं.कोई भी ग्रह जब अग्नि तत्व राशि मेष सिंह धनु राशि में 20 अंश से 23 अंश 20 अंश का होगा तो नवांश कुण्डली में वह ग्रह तुला राशि का होगा, ऐसे एक ग्रह पुष्कर नवांश में होगा.

इसी प्रकार जब कोई ग्रह पृथ्वी तत्व राशि वृष कन्या मकर में 6 डिग्री 40 डिग्री से 10 डिग्री के बीच होगा तो ऐसा ग्रह नवमांश कुंडली में वृष राशि में होगा जो पुष्कर नवांश में होगा.जब कोई ग्रह अंदर होगा वायु तत्व राशि मिथुन तुला कुम्भ 16 अंश 40 अंश यदि 20 अंश से 20 अंश हो तो ऐसा ग्रह नवमांश कुण्डली में मीन राशि में होगा अर्थात पुष्कर नवांश में होगा. अब जब कोई ग्रह 0 अंश से 0 अंश में होगा 3 डिग्री 20 डिग्री जल तत्व कर्क, वृश्चिक, मीन राशि में हो तो ऐसा ग्रह नवमांश कुंडली में कर्क राशि में होगा और ये जल तत्व राशि में 6 डिग्री 40 कला और 10 डिग्री के बीच में हो तो ऐसा ग्रह होगा नवमांश कुंडली में कन्या राशि का होगा, जो पुष्कर नवांश में होगा. इस प्रकार जब कोई ग्रह पुष्कर नवांश पर एक निश्चित डिग्री और एक निश्चित डिग्री के बीच होता है. वे आते हैं.

पुष्कर नवांश का योगकारी प्रभाव

पुष्कर नवांश ग्रह कोई भी राजयोग, धनयोग, विपरीत राजयोग या अन्य कोई शुभ योग बनाते हैं तो उनकी स्थिति काफी बेहतर हो जाती है. प्रबल योगकारक होने के कारण यह सफलता, उन्नति, उत्तम जीवन स्तर प्रदान करता है. अब शुक्र पुष्कर नवांश में होगा ऐसी स्थिति में शुक्र की दशा और सदा अनुकूल फल देने में सहायक होगी.  यदि ऐसे में शुक्र किसी अन्य प्रकार से राजयोग बनाता है या धन योग बनाता है, शुभता में वृद्धि का कारण बनता है. मकर लग्न में शुक्र की प्रधानता शुभ है, अभी शुक्र पुष्कर नवांश में बैठा है तो उसके फल बहुत अच्छे मिलेंगे, यदि शुक्र अन्य ग्रहों के साथ बैठकर कोई राजयोग बनाता है तो उसके शुभ फल कई गुना बढ़ जाते हैं. नीच राशि में हो, शत्रु राशि में हो या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो या कमजोर दिख रहा हो तो भी यह फल देगा. 

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बृहस्पति की विवाह में भूमिका पर कैसे करें विचार

ग्रहों की शुभता की बात जब आती है तो बृहस्पति को सबसे अधिक शुभ ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है. यह सभी ग्रहों में विशेष होता है ओर अपनी शुभता का प्रभाव जब दिखाता है तो समय को पलट देने वाला भी होता है. बृहस्पति को वैदिक और पाश्चात्य ज्योतिष दोनों में ही सबसे शुभ और लाभ देने वाला ग्रह माना जाता है. कुंडली में इसके होने पर व्यक्ति के सिद्धांतों की प्रकृति और दृढ़ता का उचित रुप से पता चल पाता है. बृहस्पति को एक मार्गदर्शक के रुप में भी देखा जाता है. यह जीवन में सत्य की ओर इशारा करते हुए हमें कई तरह के रंग दिखाता है. जीवन के संपूर्ण पथ पर हमारे मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है.

अब जब बृहस्पति को विवाह के लिए देखा जाता है तो यह कारक के रुप में विशेष होता है. विवाह के एक महत्वपूर्ण कारक के रुप में इसे देखा जाता है. जीवन में वैवाहिक सुख के मिलने या उस पर लगने वाली रोक टोक को इस के द्वारा समझ पाना संभव होता है. अगर कुंडली में बृहस्पति शुभ अवस्था में है तो यह विवाह के अटकाव दूर कर देने वाला ग्रह है और एक अच्छे सुखी जीवन को देने में सक्षम है. किंतु गुरु अनुकूल नही है तो फिर विवाह का सुख प्राप्त कर पाना भी मुश्किल होता है. यहां यह जीवन के सुखद मार्ग को खराब कर देने वाला होता है. 

वैवाहिक जीवन में इसके शुभ और अशुभ पहलू 

बृहस्पति यह रचनात्मकता का ग्रह है. जीवन में विवाह की स्थिति और उसके द्वारा नवीन निर्माण इसके द्वारा प्रदान होने वाली बाहरी रचनात्मक गतिविधि का संकेत है. यह किस रूप में कार्य करता है वह किसी व्यक्ति की कुंडली में इसके स्थान प्रभाव द्वारा ही समझा जा सकता है. यह प्राकृतिक शुभ ग्रह है, लेकिन कई कुंडलियों में यह मारक और अशुभ ग्रह भी है. तब उन परिस्थितियों में इस ग्रह के विषय में जान पाना काफी मुश्किल है.  बृहस्पति द्वारा विवाह में मिलने वाले शुभ अशुभ फलों का असर जाना जा सकता है. जीवन साथी के साथ संबंध कैसा होगा इस के द्वारा समझा जा सकता है. यह ग्रह व्यक्ति को स्वयं को अभिव्यक्त करने की क्षमता भी प्रदान करता है, विभिन्न क्षेत्रों में स्वयं को प्रकट कर सकता है. बृहस्पति खुला और उदार है. वह विकास को बढ़ावा देता है और विकास के हर चरण में जब विवाह की बात आती है तो यह सुख दुख क पैमाने को काफी अच्छे से दिखाता है. 

बृहस्पति हमारे आंतरिक विकास को निर्धारित करता है. यह हमारे आध्यात्मिक जीवन को दर्शाता है. यह जीवन के आनंद और अच्छी आत्माओं का भी प्रतीक है. यह एक महान आशावादी ग्रह है. जो हर चीज में सकारात्मक पक्ष देखने में सक्षम है. यह किसी भी दुख और उदासी पर काबू पा लेने में सक्षम होता है. यह सौभाग्य, दया. कोमला और समृद्धि का ग्रह है. लेकिन कुंडली में स्थान के आधार पर यह अलग परिणाम ला सकता है. 

जब विवाह में इसकी भूमिका को देखा या समझा जाता है तो कुंडली के बारह भाव में इसके असर और भाव में कई तरह की विशेषताएं होती हैं. गुरु स्थान के आधार पर कुंडली में अलग-अलग फल देता है.

बृहस्पति का पहले भाव में विवाह प्रभाव  

जन्म कुंडली में. प्रत्येक ग्रह के लिए एक सर्वोत्तम स्थान होता है. जिसे दिक-बल कहा जाता है. पहला घर बृहस्पति के लिए सबसे अच्छा स्थान है. ऐसा माना जाता है कि पहले भाव में स्थित बृहस्पति व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में इसका असर शुभता प्रदान करने वाला होता है. यह खराब दुष्प्रभावों से बचाता है. बृहस्पति का असर सभी क्षेत्रों में पड़ता है. लेकिन विशेष रुप से प्रेम विवाह और सौभाग्य के लिए यह अच्छे परिणाम देता है. अपने जीवन साथी में यह बुद्धिमानी, आत्मविश्वासी, उदारता, दयालुता, आशावादी और भाग्यशाली होने का गुण पाता है. व्यक्ति के पास सब कुछ पर्याप्त भी होता है.

बृहस्पति का दूसरे भाव में विवाह प्रभाव 

दूसरे भाव में बृहस्पति का होना विवाह पर मिलेजुले असर डालता है. बृहस्पति जब दूसरे भाव में होता है तो वैवाहिक जीवन पर सामान्यत: अनुकूल असर ही दिखाता है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी की ओर से लाभ और सहयोग की प्राप्ति होती है. अपने ओर अपने परिवार की देखभाल करना पसंद करता है. अपने साथी की ओर से धन लाभ, सम्मान, प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है.लेकिन कुछ मायनों में यह साथी की ओर से दूरी भी दिखाता है. जीवन साथी की सेहत को लेकर भी चिंता रह सकती है. यौन संबंधों पर असर पड़ता है. अशुभ ग्रहों या वक्री ग्रहों के साथ होने पर बृहस्पति खराब फल देता है. आपसी संबंधों में अभिमान की स्थिति अधिक झलकती है. पारिवारिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं. 

बृहस्पति का छठे भाव में विवाह प्रभाव 

छठे भाव में बृहस्पति का होना विवाह पर खराब प्रभाव दिखाने वाला होता है. विवाह सुख के लिए बृहस्पति यहां  अशुभ स्थान पर होता है. जिसके कारण जीवन साथी आलसी,  सुस्त. दुखी, बुरी आदतों की प्रवृत्ति वाला हो सकता है. विशेषकर पुरुषों की कुंडली में ऎसा होना जीवन साथी को अक्सर बीमारियों के संपर्क में रखता है. व्यक्ति को अ[पने जीवन साथी का सहयोग कम ही मिल पाता है. विचारों का मतभेद बना रहता है. व्यर्थ के मुद्दे तनाव का कारण होते हैं. लेकिन यदि बृहस्पति की अच्छी स्थिति यहां हो जैसे वह स्वराशिगत हो या फिर प्रबल हो तब कुछ सकारात्मक परिणाम भी दे सकता है. ऎसे में विवाद होने पर निपटान भी संभव होता है. शत्रुओं को परास्त कर सकता है. कमजोर बृहस्पति के द्वारा आपसी टकराव हो सकता है. महिलाओं को अपने पति से परेशानी हो सकती है. साथी को यकृत रोग और आंतरिक अंगों के रोग दे सकता है. 

बृहस्पति का आठवें भाव में विवाह पर प्रभाव 

बृहस्पति का आठवें भाव में होना विवाह सुख की कमी को दर्शाता है. यह एक खराब भाव स्थान है जहां बृहस्पति जैसा शुभ ग्रह अनुकूलता की कमी को दर्शाता है. आठवें भाव में विवाह कारक बृहस्पति विवाह के सुख को देने में देरी भी कर सकता है. विवाह जीवन में मिलने वाले सुखों को कमजोर कर देने वाला होता है. यह स्थिति गुप्त विवाह रिश्तों पर भी अपना असर दिखाने वाली होती है.  यह बृहस्पति के लिए एक अशुभ स्थान है. जीवन साथी को स्वास्थ्य समस्याएं अक्सर उत्पन्न हो सकती हैं. रिश्तों में अनेक समस्याओं, आर्थिक कठिनाइयों, अपमान, असफलताओं से गुजरना पड़ सकता है. इस भाव स्थान में कुछ सकारात्मक पक्ष यदि देखें तो स्त्री अपने पति के माध्यम से विरासत में धन प्राप्त कर सकती है. कभी-कभी आठवें घर में स्थित बृहस्पति अनैतिक  संबंध भी दिखाता है. 

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यूरेनस का मेष राशि में होने का प्रभाव

जहां वैदिक ज्योतिष में नव ग्रहों का उल्लेख मिलता है उसी प्रकार पाश्चात्य ज्योतिष में तीन ग्रहों का विशेष रुप से उल्लेख मिलता है. यह तीन गर्ह बाहरी ग्रह के रुप में भी जाने जाते हैं. इनके नाम यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो हैं. इन ग्रहों का प्रभाव राशियों के साथ होने पर इनके परिणाम काफी गहरे रुप से अपना असर डालने वाले होते हैं. जब बात करते हैं यूरेनस ग्रह के बारे में तो इसकी अनेक ज्योतिषीय विशेषताएं हमारे सामने होती हैं. 

यह एक प्रगतिशील ग्रह के रुप में होता है. दिमागी ओर बौद्धिकता का गुण प्रदान करने वाला ग्रह है. यूरेनस को भारतीय ज्योतिष में हर्षल या प्रजापति के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यूरेनस और इसकी ऊर्जाओं को बहुत मजबूत माना जाता है. यह बुद्धिमत्ता का प्रतीक है और इसलिए यह अनुसंधान, तकनीकी उन्नति, सफलताओं और समग्र विकास के क्षेत्रों में बहुत योगदान देता है. अब इस ग्रह का प्रभाव जिस राशि के साथ स्थापित होता है उसी के अनुरुप यह अपने फलों को प्रदान भी करता है. 

यूरेनस का मेष राशि में होने का प्रभाव 

यूरेनस आकाश और स्वर्ग का देवता है और कुंभ राशि का शासक भी है, यूरेनस आगे देखने का प्रतीक है, लेकिन इसमें परंपरा भी शामिल है और मौलिकता और व्यक्तित्व का जश्न मनाती है, ऎसे में जब यूरेनस मेष में होता है तो उर्जाओं का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है यह मेल काफी विरोधाभास भी रखता है. यह व्यक्ति को नई चीजों से जोड़ता है जो प्रगतिशील है, यह आत्मज्ञान, निष्पक्षता, नवीनता और सरलता के लिए भी खड़ा दिखाई देता है. यूरेनस का मेष में होना कई तरह के सकारात्मक एवं नकारात्मक फलों के लिए विशेष होता है. 

यूरेनस की एक विशेषता है की यह नकारात्मक अभिव्यक्ति आदेश और गैरजिम्मेदारी के खिलाफ विद्रोह कर देने में समय नहीं लगाता है और मेष राशि में होने पर इसे अधिक मजबूती भी मिलती है. जब भी यूरेनस राशि चक्र की पहली राशि मेष में प्रवेश करता है, तो यह सामूहिक परिवर्तन को दिखाने वाला होता है. यह बदलाव का एक प्रमुख संकेत बनता है.

यह चौंकाने वाली घटनाओं के भी विशेष बन जाता है.  दुनिया को आश्चर्यजनक घटनाओं और व्यक्तिगत बदलावों से प्रभावित कर देने वाला होता है. मेष राशि में यूरेनस का समय हमें मानव इतिहास के एक नए युग में कदम की स्थिति को दर्शाता है. इसमें समस्याएं और समाधान दोनों ही बातें दिखाई देती हैं और चीजें तेजी से और समान रूप से अप्रत्याशित तरीके से सामने आ सकती हैं. 

यूरेनस का मेष में होना बदलाव का प्रतीक है

यूरेनस का स्वभाव पुरानी मान्यताओं, कठोर विचारों को तोड़ना और नई संरचनाओं को फिर से खोजने का होता है. यह बदलाव का समर्थक होता है. जब मेष में होता है तो यह कठोर रुप से भी फैसले ले सकता है. इसका प्रभाव चीजों के पुनर्निर्माण के लिए भी बेहद विशेष हो जाता है. मेष राशि में होने पर यूरेनस कुव्ह अत्यधिक क्रांतिकारी ग्रह भी बन सकता है. स्वतंत्र रुप से काम करने की इच्छा भी व्यक्ति में अधिक होती है. उसे अपने काम में और अपने फैसलों पर अधिक विश्वास होता है. मेष राशि में होने पर यह दूसरों का दबाव सहन नहीं कर पाता है. इसकी इच्छा स्वतंत्र होकर काम करने की अधिक रहती है. किसी के द्वारा हावी या प्रताड़ित होना इसकी सहनशक्ति से बाहर की बात होती है. मेष राशि में यूरेनस का होना किसी के वश या दबाव में कुछ नहीं करने को तैयार करता है. 

यह योग व्यक्ति में आगे बढ़ने की प्रेरणा को बढ़ावा देता है और जीतने की इच्छा को बढ़ाता है. हम जिस चीज के लिए तरस रहे हैं उसे पाने के लिए परिश्रम का गुण भी देता है. यह एक योद्धा जैसी स्थिति भी देता है. मेष राशि सभी से पहले स्थान पर रहनें या कहें शीर्ष पर आने का इरादा रखती है. चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े कोई भी कीमत क्यों न हो. ऎसे में यह योग भीतर की आग को भड़का सकता है. बेहतर या बदतर जो भी कुछ करवा सकता है. इसके कारण व्यक्ति खुद को अधिक प्रतिस्पर्धी और आत्मविश्वासी महसूस कर सकता है. साथ ही अधिक आवेगी और आक्रामक भी हो सकता है. इस योग का प्रभाव क्रोध पर काबू पाने की क्षमता को कमजोर बनाता है. अगर सावधानी से बदलाव को न संभाला जाए, तो यह वास्तव में काफी परेशानी का सबब भी  हो सकता है.

यूरेनस का मेष राशि में होना अविष्कार एवं अनुसंधान का समय 

इस ग्रह के मेष राशि में होने पर भविष्य के बारे में विचारधारा में कुछ ने क्रांतिकारी विचार सामने होते हैं. कट्टरपंथी विचार मेष राशि में यूरेनस के दौरान अधिक तेजी से उभर सकते हैं. ऎसा होने पर हम अपने मूल अस्तित्व के लिए विकास और धार्मिक व्याख्याओं के पुराने नियमों से अलग हो सकते हैं. यह समय नवीन खोजों का और पुरातन को हटा कर नवीनता को ग्रहण करने का भी होता है. यह एक ऐसी अवधि है जब मानवता स्वयं की समझ और एक दूसरे के साथ आपसी संबंधों में प्रमुख संशोधनों के साथ खुद को पुन: स्थापित करती दिखाई दे सकती है. यह जीवन के अगले चरण को जगाने के लिए साहस से फैसले लेने का समय भी होता है. व्यक्ति के भीतर कुछ अलग करने की चाह बहुत तीव्र होती है. अपनी जिज्ञासों को शांत करने के लिए वह विचारों से जूझता है ओर हर स्थिति का सामना करने के बाद आगे बढ़ता है. मेष राशि में यूरेनस का होना तंत्रिका तंत्र पर अपने गहरे असर के लिए महत्वपुर्ण होता है. चीजों को बेहतर बनाने और प्र्तिभा को दिखाने के लिए प्रेरणा देने वाला होता है. 

कुंडली में जब यूरेनस मेष राशि में होता है तो व्यक्ति पथप्रदर्शक के रुप में होता है. यूरेनस क्रांतिकारी दृष्टि का संकेत भी देता है. साहसपूर्वक परेशानियों से लड़ने की क्षमता देता है जहां पहले किसी ने जाने की हिम्मत नहीं की है, यह वहां आप को ले जाने वाला होता है. व्यक्ति नई अवधारणाओं और स्थितियों को आसानी से अपना लेने में भी सक्षम होता है. व्यक्ति की कंप्यूटिंग, चिकित्सा विज्ञान, एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी और अन्य प्रगति में अग्रणी चीजों पर अच्छी पकड़ होती है. व्यक्ति तकनीकी क्षेत्र में पुनर्जागरण के लिए आगे रहता है. 

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जन्म कुंडली में राहु कब देता है शुभ फल

जन्म कुंडली में सभी ग्रह अपने अनुसार शुभ फलों एवं अशुभ फलों को देने में आगे रहते हैं लेकिन जब बात आती है राहु की तो यह एक काफी गंभीर होता है. राहु ग्रह व्यक्ति को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला होता है. कुंडली में राहु जैसे ग्रह का प्रभाव व्यक्ति को शत्रुओं, कर्ज और व्याधियों से परेशानी देने वाला होता है. कई तरह की भ्रामक समस्या का असर राहु के समय पर सबसे अधिक गंभीर रहता है. राहु के अनेकों नकारात्मक पक्ष रह सकते हैं लेकिन इसके विपरित राहु कई तरह शुभ के फल देने का भी कारक बनता है और जीवन जब राहु देता है तो वह व्यक्ति को उन सभी चीजों को प्रदान करने वाला ग्रह होता हैं जो आसानी से प्राप्त नहीं हो सकती हैं.

राहु का असर जन्म कुंडली के कुछ स्थानों में बेहद अनुकूल प्रभाव देने के लिए विशेष रहा है. जन्म कुंडली में राहु की स्थिति कई विशेष योगों के होने से शुभ फल प्रदान करने वाली होती है इसी के साथ कुछ विशेष भाव स्थान पर राहु का होना सकारात्मक फलों को देने में बहुत सकारात्मक माना गया है. राहु जब इन स्थानों पर होता है तो कई तरह के शुभ प्रदान करने वाला होता है. 

कुंडली के तीसरे भाव में राहु का प्रभाव 

राहु का असर कुंडली के तीसरे भाव में बहुत अच्छा माना गया है. कुंडली का तीसरा घर साहस, पराक्रम, यात्राओं, बातचीत इत्यादि का भाव होता है. इस कारण से इस भाव में जब राहु मौजूद होता है तो वह इस भाव के गुणों में वृद्धि करता है. छाया ग्रह राहु ग्रह प्रणाली में सबसे नकारात्मक फल देने वाला ग्रह है, राहु कोई भौतिक ग्रह नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव बहुत अधिक दूरगामि होते हैं. इसका प्रभाव गहरा और शक्तिशाली होता है, राहु भौतिकवाद और बदलाव का प्रतीक है.

यह चोरी, सट्टा, बुरी आदतों जैसी चीजों में सदैव आगे रहता है. इस कारण से जब राहु तीसरे घर में प्रवेश करता है, तो यह वैदिक ज्योतिष के अनुसार तीसरे घर में गलत पहलुओं को तेज कर सकता है. तीसरे भाव में राहु का असर वर्जनाओं को तोड़ने वाले विचार दे सकता है. व्यक्ति क्रांतिकारी विचार रखने वाला भी हो सकता है. कानून का उपयोग अपने इस्तेमाल में करने के लिए उसकी समझ बेहद शानदार हो सकती है. गुप्त एवं गुढ़ समझ का भी उपयोग वह सभी को दर्शाता है. 

कुंडली के छठे भाव में राहु का प्रभाव 

जन्म कुंडली के छठे भाव में राहु का असर जब होता है व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय पाने का अच्छा मौका प्राप्त होता है. कुंडली के छठे भाव में राहु का होना कई मायनों में काफी अच्छे फल प्रदान करने वाला माना गया है. कुंडली में छठा भाव कर्ज, शत्रु और रोगों को दर्शाता है. यह एक खराब भाव स्थान के रुप में होता है जो जीवन के कष्टों को दिखाता है और उनके असर को जीवन पर डालने वाला होता है. अब एक पाप भाव में यदि कोई पप ग्रह होता है तो उसके द्वारा उस भाव के खराब फल नियंत्रण में रह पाते हैं. 

छठे भाव में राहु का नकारात्मक प्रभाव ही एक सकारात्मक गुण के रुप में दिखाई देता है. यह व्यक्ति का व्यक्तित्व निखारने में भी सहायक होता है. राहु छठे भाव में अनुकूल स्थिति में होता है, तो सफलता के लिए विशेष बन जाता है. इस स्थान पर पर राहु व्यक्ति को अपने विरोधियों के प्रति विजय दिलाने में सक्षम होता है. प्रतिस्पर्धाओं में व्यक्ति काफी अच्छा प्रदर्शन कर पाने में सक्षम होता है. अगर कोई शत्रु उसे परेशानी देता है तो वह उन सभी को समाप्त करने की योग्यता पाता है. सेहत के लिहाज से यदि कोई रोग उसे प्रभावित करता है तो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छे फल देने में सहायक होती है. 

राहु का प्रभाव सूक्ष्म परिजीवियों के रुप में भी पड़ता है और जब छठे में राहु होता है तो इस प्रकार की संभावनाओं से बचाव देने में सक्षम हो जाता है. स्वास्थ्य संबंधी बीमारी का तुरंत और प्रभावी ढंग से इलाज हो पाता है.  छठे भाव में राहु का प्रभाव यदि उचित रुप में है तो यह अत्यधिक सहायक और प्रभावी होगा. किसी भी बाधा को दूर करने और अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए काफी मजबूती प्राप्त होती है. अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए शक्तिशाली होने के साथ रणनीति में भी व्यक्ति सक्षम होता है. 

व्यक्ति स्वतंत्र उत्साही होता है ओर कार्यों को करने में वह साहस का परिचय भी देता है. कपड़ों पर खर्च करना और फिजूलखर्ची करना भी उसके स्वभाव में हो सकता है. बुद्धिमत्ता का गुण मिलता है जो साहस के साथ मिलकर कई उपलब्धियों को प्रदान करने में सहायक बनता है. छठे भाव में राहु की अनुकूल स्थिति अतिरिक्त काम का बोझ नहीं डालती है. व्यक्ति अपने सभी कामों को सहजता से करने में सक्षम होता है. आमतौर पर शांत और तनाव-मुक्त रह सकता है. जीवन को आनंद रुप में मुक्त होकर जीना पसंद करता है. जीवन जीने के अपने उत्साह और उत्साह के कारण, वे आमतौर पर सभी बाधाओं को आसानी से पार कर पाने में सफल हो सकता है. 

राहु का एकादश भाव प्रभाव 

राहु का एकादश भाव में होना व्यक्ति को प्रभावशाली एवं महत्वाकांक्षी बनाता है. व्यक्ति अपने समाज में कई तरह के बदलाव करने की क्षमता रखता है. व्यक्ति का दायरा काफी विस्तारित होता है. उसके मित्रों की संख्या अच्छी रहती है.  व्यक्ज्ति में श्रेष्ठ बनने और लोकप्रिय होने की भूख होती है. राहु के प्रभाव से व्यक्ति को  प्रकाशन, साहित्य, पत्रकारिता जैसे कामों में भी अच्छा अवसर मिल सकता है. वह यात्राएं करता है ओर उसमें कई तरह के नई चीजों से जुड़ता है. दूसरे के विचारों को धारण करने के लिए अपने अंतर्ज्ञान और मानसिक क्षमताओं का उपयोग करने में वह काफी सक्षम होगा.

व्यक्ति को अपने भाई-बहनों के साथ कुछ दिक्कत हो सकती है. एकादश भाव में राहु काफी अनुकूल हो सकता है, यह आध्यात्मिक रुप से भी काम करवाने में भी सहायक बनता है. शैक्षिक मामलों में रुचि दिखा सकता है राहु की स्थिति व्यक्ति को अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ और गौरवान्वित, साहसी बनाती है. व्यक्ति बुद्धिमान, आशावादी ओर साहसी भी होता है.  व्यक्ति कुछ नई कला सीखने और अच्छा पैसा कमाने में सक्षम हो सकते हैं. राहु भौतिक सुख-सुविधाओं को प्रदान करता है.व्यक्ति बहुत तेज होते हैं और दिमाग अशांत होता है. कुछ न कुछ करते रहने की इच्छा भी व्यक्ति में बहुत होती है. 

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चंद्रमा के साथ गुरु का योग भाग्य को बनाता है प्रबल

चंद्रमा के साथ गुरु का होना एक अनुकूल स्थिति का निर्देश देने वाला सिद्धांत है. यह दोनों ग्रह बेहद शुभ माने जाते हैं. चंद्रमा एक शीतल प्रधान ग्रह है वहीं गुरु शुभता प्रदान करने वाला ग्रह है. इन दोनों के मध्य भी आपसी संबंधों का रुप मित्र स्वरुप होता है. यह दोनों ग्रह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ते चले जाते हैं. चंद्रमा जहां हमारी भावनाओं को दिखाता है वहीं बृहस्पति हमारे ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है.

आईये जानते हैं कि चंद्रमा और बृहस्पति का एक साथ किसी भाव में होना किसी तरह के प्रभाव देने वाला हो सकता है :- 

कुंडली के प्रथम भाव में चंद्रमा और गुरु की युति

जब पहले भाव में चंद्रमा और गुरु साथ होते हैं तब यह एक कोमल और अड़िग व्यकित्व को दर्शाने वाला होता है. प्रथम भाव में चंद्रमा और गुरु का होना व्यक्ति की अभिव्यक्ति में उदारता के साथ साथ ज्ञान के उच्च स्तर को दर्शाने वाला होता है. व्यक्ति को यह योग एक प्रमुख व्यक्तित्व को प्रदान करने वाला था. व्यक्ति अपने काम में अग्रीण होता है. परिवार में सर्वोप्रमुख बनकर उभरता है. अपनी योग्यता के द्वारा वह जीवन में उच्च पदों को पाने में भी सक्षम होता है.

कुंडली के दूसरे भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

द्वितीय भाव में चंद्रमा और गुरु का योग काफी अच्छे असर दिखाता है. व्यक्ति अपने जीवन के आरंभिक दौर का अच्छा समय देखता है. व्यक्ति उच्च कुल में जन्म लेता है, वाणी का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. यह स्थिति व्यक्ति को बेहतरीन वक्ता बनाने वाली होती है. धन की कभी कमी नहीं होती है, ऐसे व्यक्ति की बात ध्यान से सुनी जाती है. लोगों को बदल देने वाला और मार्गदर्शक बनता है. व्यक्ति कथा वाचक और बड़े-बड़े लोगों के साथ उठता बैठता है. 

कुंडली के तीसरे भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

तीसरे भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को उच्च पद दिलाने में भी सहायक होता है. व्यक्ति अपनी मेहनत और अपनी प्रतिभा को पाने में सफल होता है. भाई-बहनों का सुख भी प्राप्त होता है. उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है. शक्तिशाली और सम्मानित स्थान प्राप्त होता है. नाम और यश की प्राप्ति होती है. व्यक्ति अपने जीवन में काफी व्यस्तता भी पाता है, व्यक्ति अपने दम पर नाम कमाता है. सामाजिक प्रतिष्ठा को पाता है.

कुंडली के चौथे भाव में चंद्रमा और गुरु योग

चतुर्थ भाव में चंद्रमा और बृहस्पति का प्रभाव व्यक्ति को माता से अत्यधिक प्यार और लाभ दिलाने वाला होता है. भूमि व वाहन का सुख मिलता है. परिवार का प्रेम और सहयोग भी इस के द्वारा प्राप्त होता है. जीवन के कुछ अनुभव काफी अग्रीण भूमिका निभाने वाले होते हैं. स्त्री पक्ष के सहयोग से व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता है, चल अचल संपत्ति का प्रबल लाभ मिलता है,

कुंडली के पंचम भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

पंचम भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को ज्ञान और धन देता है, व्यक्ति बुद्धिमान होता है, इस दौरान व्यक्ति एक अच्छा स्कूल शिक्षक या वैज्ञानिक हो सकता है, व्यक्ति उच्चकोटि का लेखक भी बन सकता है, व्यक्ति को पूर्ण संतान का सुख प्राप्त होता है तथा संतान के उच्च पद पर होने के योग भी बनते हैं, व्यक्ति अपनी बुद्धि, विवेक और विद्या के बल पर जीवन में नाम कमाता है,

कुंडली के छठे भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

छठे भाव में चंद्रमा और गुरु का योग थोड़ा कमजोर परिणाम देने वाला होता है. छठे भाव में गुरु शत्रु हो जाता है, शत्रु दबे रहते हैं साथ ही चंद्रमा मन और माता के लिए अच्छा नहीं होता है. यह स्थिति व्यक्ति को मानसिक रुप से बेचैन बना सकती है. उच्च पद प्राप्ति में कमी होती है. स्वास्थ्य खराब रहता है, यह भाव काफी कठोर स्थान होता है इस कारण यह दो कोमल ग्रह अपनी शक्तियों एवं गुणों को भरपूर रुप से दिखा नहीं पाते हैं. इसमें शुभ ग्रह बृहस्पति और चंद्रमा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रह पाती है.

कुंडली के सातवें भाव में चंद्रमा और गुरु योग

सप्तम भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को एक अच्छा जीवनसाथी देने में सहायक बनता है. वैवाहिक जीवन में साथी उच्च पद पर आसीन होता है. विवाह का सुख अनुकूल रहता है, जीवन साथी उच्च विचार वाला होता है. व्यक्ति को समाज में विशेष मान-सम्मान मिलता है. सामाजिक रुप से उच्च पद प्राप्ति एवं मान सम्मान भी प्राप्त होता है. वैवाहिक जीवन में भी प्रबल सुख मिलता है,

कुंडली के आठवें भाव में चंद्रमा और गुरु योग

अष्टम भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को गुप्त विद्याओं की ओर ले जाने वाला होता है. इसमें बड़े-बड़े तांत्रिक और साधु-संतों का व्यक्ति को सहयोग मिल सकता है. व्यक्ति की सोच आध्यात्मिक होती है. इस दौरान यह व्यक्ति को अप्रत्याशित धन प्रदान करता है और छिपे हुए धन की ओर भी इशारा करता है. जीवन में परेशानियां भी आती रहती हैं विशेष रुप से स्वास्थ्य को लेकर थोड़ा अधिक सजग रहना होता है और मानसिक रुप से मजबूती चाहिए होती है. 

 कुंडली के नवें भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

वम भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को कर्म से अधिक भाग्य का सुख प्रदान करता है. गुरु और चंद्रमा इस  भाग्य स्थान में धार्मिक गुणों को प्रदान करने वाले होते हैं. व्यक्ति भाग्यशाली होता है और आध्यात्मिक रुप से भी उसका रुझान अधिक रह सकता है. व्यक्ति धार्मिक होता है और समाज में अच्छा काम करता है, समाज के लिए परोपकारी कार्य करने से इन्हें जीवन में मान-सम्मान और धन की प्राप्ति होती है.

कुंडली के दसवें भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

दशम भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को उच्च पद प्रदान करने में सहायक होता है. व्यक्ति भाग्य से अधिक कर्म को महत्व देता है, उसे समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है, दशम भाव व्यवसाय का भी भाव है, व्यक्ति अपने करियर में ऊंचाइयों तक पहुंचता है,

कुंडली के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

एकादश भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को आय के एक से अधिक स्रोत देता है, व्यक्ति को कई तरह से आय प्राप्त होती है, यह कम मेहनत में अधिक धन प्राप्ति का संकेत है, ऐसा व्यक्ति घर बैठे धन अर्जन करता है, व्यक्ति को एक से अधिक माध्यमों से धन प्राप्ति की संभावना बनती है. ब्याज पर धन देकर धन कमा सकते हैं और 

कुंडली के बारहवें भाव में चंद्रमा और गुरु योग 

एकादश भाव में चंद्रमा और गुरु का योग व्यक्ति को कमजोर प्रभाव देने वाला होता है. है, जो व्यक्ति घर से दूर धार्मिक कार्यों पर धन खर्च करता है वह सफलता का सूचक होता है, इस दौरान व्यक्ति जन्म स्थान से दूर रहकर ही तरक्की हासिल कर सकता है, धर्म और कर्म के कार्यों में व्यक्ति का नेतृत्व करता है,

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कुंभ राशि में शनि के अस्त होने का प्रभाव

शनि का गोचर या स्थिति जब कुंभ राशि में अस्त होती है तो इसका असर काफी धीमे रुप से मिलने वाले परिणाम के रुप में दिखाई देता है. कुंभ राशि शनि की स्वराशि है ओर यह शनि के स्वामित्व की मूलत्रिकोण राशि भी है. शनि का इस राशि में होना एक शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव वाला माना जाता है. शनि का अस्त होना कुंभ राशि में होने पर यह स्थिति उन फलों को नहीं दे पाती है जो मिलने की संभावना अधिक होती है. 

मेष राशि के लिए अस्त शनि का प्रभाव 

शनि मेष राशि से एकादश भाव में गोचर करते हुए अस्त होंगे. शनि की यह स्थिति लाभ में कुछ धीमापन दे सकती है. कार्य क्षेत्र पर चली आ रही अनिश्चितता का अभी समापन होना मुश्किल होगा. इस समय सामाजिक रुप से काम करते हुए भी अधिक मान सम्मान की प्राप्ति नहीं हो पाएगी. व्यर्थ की यात्राएं कुछ ज्यादा हो सकती हैं. आय के नए स्रोत खुलने की संभावना कुछ समय के लिए रुक सकती है. ये समय अपनी इच्छाओं को लेकर भी अधिक उत्साह नहीं दिखाई दे पाएगा. कभी-कभी कार्यों के होने में देरी होगी जिससे आपको धैर्य की थोड़ी कमी महसूस होने की संभावना है. दंपति के मध्य तालमेल की कमी रह सकती है. आलस्य और काम में लापरवाही का असर अधिक पड़ सकता है. 

वृष राशि के लिए शनि का अस्त प्रभव 

शनि वृष राशि से दसवें भाव में अस्त होगा. शनि का कर्म क्षेत्र में अस्त होना मिश्रित प्रभाव देने वाला होगा. अपने काम के प्रति काफी गंभीर रह सकते हैं लेकिन दूसरों के द्वारा परेशानी उत्पन्न की जा सकती है. ध्यान केंद्रित कर पाएंगे. कार्यक्षेत्र में आप अपनी मेहनत के दम पर आगे बढ़ने में सफल रहेंगे. आपको अपने काम में अपने वरिष्ठ अधिकारी का कुछ हस्तक्षेप महसूस हो सकता है. आपके अप्रत्याशित ख़र्चों में कुछ वृद्धि होगी, लेकिन आय और ख़र्चों में संतुलन बना रहेगा. जमीन व वाहन आदि में निवेश की योजना पर काम करने का समय होगा अभी इन में लाभ पाने के लिए कुछ अधिक इंतजार करना पड़ सकता है. 

मिथुन राशि के लिए शनि अस्त का प्रभाव  

शनि मिथुन राशि के लिए नवम भाव में अस्त होगा. कुंभ राशि के नवम भाव स्थान में होने और वहां शनि के अस्त होने पर भाग्य का मिलने वाला सहयोग भी अटकाव में होगा. शनि के अस्त होने की यह स्थिति आत्मचिंतन की ओर ले जाने वाली भी होगी. यहां अब कई तरह के अनुभवों से होकर गुजरना होगा. गलतियां दूर करने की कोशिश भी होगी. वहीं कुछ चल रहे काम रुकेंगे भी. आध्यात्मिक रुप से यात्राओं का समय अधिक रहेगा. आत्मविश्वास में कुछ कमी रह सकती है. दूसरों के हस्तक्षे बढ़ेगा. आपकी आध्यात्मिक उन्नति के रास्ते खुलने की भी संभावना रहेगी. महत्वपूर्ण कार्यों में भाग्य साथ कम ही दे पाएगा. कुछ लम्बी दूरी की यात्राएं अभी स्थगित हो सकती हैं. इस समय पिता के साथ सहमति की कमी रहने वाली है. 

कर्क राशि के लिए अस्त शनि प्रभाव 

शनि कर्क राशि से अष्टम भाव में अस्त स्थिति में होगा. इस समय के दौरान पर अपने काम को लेकर अब कुछ ज्यादा लापरवाही भी अपना असर डालने वाली होगी. शनि के अस्त होने से  आत्मविश्लेषण और आत्मनिरीक्षण का समय होगा, जिसके द्वारा अपनी गलतियों को ढूंढ पाने में सक्षम होंगे. अपने विषय पर ध्यान केंद्रित करने का समय होगा. अपने काम में कुशलता से काम कर पाएंगे, लेकिन धैर्य का अभाव होगा. इसलिए धैर्य रखने की जरूरत है तभी लाभ प्राप्त करने के बेहतर अवसर आपके पास होंगे. गहरे रहस्यों को खोजने की ओर भी आपका ध्यान अभी कुछ कम रहने वाला है. शोध से जुड़े छात्रों को इस समय अपने काम में ज्यादा सफलता न मिल पाए. वाहन चलाते समय  सावधान रहने की आवश्यकता होगी. कुछ लंबी दूरी की यात्रा की योजना भी बना सकते हैं जिसे भविष्य में पूरा करने का मौका मिलेगा. नई निवेश योजनाओं के मामले में आपको सावधान रहना चाहिए.

सिंह राशि के लिए अस्त शनि का प्रभाव 

शनि सिंह राशि के लिए सप्तम भाव में अस्त स्थिति में होने के कारण रिश्तों पर से ध्यान कुछ समय के लिए हटा रहने वाला है. इस समय स्थिति मिलीजुली रहेगी. अविवाहित जातकों के विवाह में कुछ देरी महसूस हो सकती है. संयुक्त उद्यमों या संयुक्त व्यवसाय में नए निवेश के मामले में इस समय जल्दबाजी से बचने की जरुरत होगी. सावधान रहना होगा. अपने पार्टनर के साथ किसी भी तरह की बेवजह की बहस से बचना ही आवश्यक होगा. पारिवारिक जीवन में कुछ रूखापन आने की संभावना रह सकती है. मन अधिक उचाट भी रह सकता है. जीवनसाथी के साथ भी रिश्ते की गर्माहट कम महसूस होगी. रूखेपन पर काबू रखने की आवश्यकता होगी. आपको अपने प्रोजेक्ट के मामले में अपने भाग्य का साथ मिलेगा.

कन्या राशि के लिए शनि अस्त का प्रभाव 

शनि कन्या राशि से छठे भाव में अस्त होने पर व्यक्ति को अपने विरोधियों के साथ कुछ समय के लिए राहत का संकेत मिलेगा. यह स्थिति मिलीजुली रहेगी और पुराने विवाद खुलने की संभावना रहेगी, इसलिए किसी भी समय व्यर्थ की बहसबाजी करने से बचने की आवश्यकता होगी. छिपे हुए शत्रु और वैचारिक विरोधियों में वृद्धि होने की संभावना है लेकिन उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम होंगे. अपने पुराने रोगों का इलाज मिलने के आसार रहेंगे. जीवनसाथी के साथ कुछ अनबन रहेगी जिससे परिवार में खुशी का माहौल कम रहेगा इसलिए अभी किसी प्रकार के निर्णय को जल्दबाजी में न लेना ही उचित होगा. नौकरीपेशा लोग मौजूदा नौकरी में बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं.

तुला राशि के लिए अस्त शनि का प्रभाव 

शनि तुला राशि के लिए पंचम भाव में अस्त स्थिति में होगा. इस समय में सकारात्मक रुप से चीजें कम दिखाई दे सकती हैं. अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने में अभी कमजोर रह सकते हैं.  यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले हैं तो मेहनत के बल पर सफलता की उम्मीद की जा सकती है. आय के नए स्रोत खुलने की उम्मीद रहेगी. लाभ के मामले में आपको कई मौके मिलेंगे, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा. प्यार के मामले में साथी की ओर से दूरी अधिक देखने को मिल सकती है. सच्चा जीवनसाथी मिलने की उम्मीद अभी कम है. विवाहित जोड़े परिवार में एक नए बच्चे का स्वागत करने की उम्मीद कर सकते हैं. स्वास्थ्य को लेकर अभी अधिक सजग रहना होगा.

वृश्चिक राशि के लिए शनि का प्रभाव 

शनि वृश्चिक राशि के लिए चतुर्थ भाव में अस्त दिखाई देने वाले हैं. इस समय कई सारे कामों को थोड़ा धीमी गति से करना अनुकूल होगा. नए काम की शुरुआत अधिक अनुकूल नहीं है. यह  समय धैर्य के साथ अपने काम के प्रति ध्यान केंद्रित करने का है. अपने आसपास के सकारात्मक लोगों से संपर्क बनाए रखने की आवश्यकता होगी, ताकि निर्णय लेते समय भ्रम से बचने में सफल हो सकें. कोई भी नया निवेश करने के लिए समय लेना जरुरी है. अपने निर्णय को जल्दबाजी में लेने से रोकना होगा. नए घर में प्रवेश करने की योजना बना रहे हैं तो अभी कुछ समय के लिए रुकना बेहतर होगा. इस समय किसी पुराने निवेश अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है.

धनु राशि के लिए शनि का अस्त होना

शनि धनु राशि के लिए तीसरे भाव में अस्त स्थिति में होंगे. यह समय कुछ शुभ फल देने में सक्षम कम ही रह सकता है. अपने प्रयासों में सफलता मिलने की उम्मीद कुछ लम्बा समय ले सकती है.  जिससे आप कुछ निराशा का अनुभव भी कर सकते हैं. भाग्य का साथ समय पर मिलने में अभी विलंब होगा. भाई-बहनों से जुड़े विवादों में कमी आएगी. पुराने रोगों में कुछ राहत मिल सकती है. छोटी यात्राओं की भी उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन इसमें धन अधिक खर्च हो सकता है.  जिससे आपका पेशेवर नेटवर्क बढ़ेगा. अगर आप नौकरी में बदलाव या स्थानांतरण की उम्मीद कर रहे हैं तो यह एक अच्छा समय होगा.

मकर राशि के लिए अस्त शनि का प्रभाव 

शनि मकर राशि के लिए दूसरे भाव में अस्त स्थिति में होंगे. जिससे मकर राशि वालों को अपने आर्थिक मसलों को लेकर अधिक सावधान रहना होगा. शनि क्क़ा अस्त होना कमाई के साधनों में कुछ धीमापन ला सकता है. अप्रत्याशित खर्चे नियंत्रण में रह पाना मुश्किल होगा. कलात्मक वस्तुओं को घर लाने की योजना बना सकते हैं. लेकिन जमीन-जायदाद से जुड़े निवेश में सावधानी बरतने की जरूरत होगी. अपने परिवार में कुछ आयोजनों का आनंद उठा सकेंगे. लेकिन आपको अपने आसपास के लोगों के साथ संवाद करते समय अपने बोलने के तरीके को नियंत्रित करने की आवश्यकता होगी. घर से दुरी भी बन सकती है इस समय मन अशांत रह सकता है.

कुंभ राशि के लिए अस्त शनि प्रभाव

कुंभ राशि के लिए शनि लग्न में ही अस्त होने वाले हैं अत: इस कारण से काम में देरी होने की भी संभावना रहेगी. शनि के अस्त होने का कुंभ राशि पर असर मिलाजुला रहने वाला है. काम से जुड़ी छोटी यात्राओं के योग बनेंगे, जिसमें खर्च भी अधिक रहने वाला है.  पेशेवर नेटवर्क बढ़ेगा. लेकिन भाई-बहनों के साथ किसी भी तरह के वाद-विवाद से बचने की जरूरत होगी. जीवनसाथी के साथ किसी भी तरह के वाद-विवाद से भी बचना होगा. अप्रत्याशित चीजों का होना परेशानी दे सकता है लेकिन सफलता मिलने की संभावना है. काम की अधिकता के कारण आप स्वास्थ्य के मामले में सावधान रहना होगा. कमाई के नए स्रोत खुलने की संभावना है, आपकी आर्थिक स्थिति में संतुलन स्थापित होगा. यदि किसी नए कार्य में प्रवेश करने की योजना बना रहे हैं तो अभी थोड़ा समय रुकना बेहतर होगा.

मीन राशि के लिए अस्त शनि का प्रभाव 

शनि का अस्त होना मीन राशि के लिए बारहवें भाव में दिखाई देगा. मीन राशि वालों के लिए लाभ की स्थिति कुछ कमजोर रह सकती है. अपने कार्यों में बाधाओं का अनुभव हो सकता है, लेकिन भाग्य भी अपना साथ देगा. कई मौकों पर आप अपने फैसलों को लेकर असमंजस में रहेंगे, लेकिन भाग्य की मदद से आप इस स्थिति से बाहर आने में सफल रहेंगे. अप्रत्याशित ख़र्चों में वृद्धि होगी, लम्बी यात्राएं थकान बढ़ा सकती हैं. नए स्रोत भी मिलेंगे. आर्थिक पक्ष संतुलित रह सकता है. किसी धार्मिक यात्रा पर जाने की योजना भी बना सकते हैं. विदेश यात्रा के भी योग बनेंगे.

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गुरु आदित्य योग का कुंडली में क्या होता है असर

वैदिक ज्योतिष के अनुसार गुरु के साथ आदित्य अर्थात सूर्य का होना गुरु आदित्य योग का निर्माण करता है. सूर्य राजा ग्रह है. सूर्य आत्मा, अधिकार, अहंकार, पिता और आत्मविश्वास का प्रतिनिधित्व करता है. बृहस्पति धन, ज्ञान और खुशी का प्रतिनिधित्व करता है. इन दोनों का प्रभाव जीवन में शिक्षकों और गुरुओं का भी प्रतिनिधित्व करता है.

वैदिक ज्योतिष में सूर्य और गुरु को ज्ञान से संबंधित ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है. इन दोनों का एक साथ होना गुरु आदित्य योग का निर्माण करता है. इस युति को बहुत शुभ माना जाता है. यह योग आत्मविश्वास और अधिकार का विस्तार करने वाला होता है तथ आत्मविश्वासी एवं ज्ञानवान बनाता है. 

गुरु आदित्य योग पहले भाव में प्रभाव

यह योग जब पहले भाव में बनता है तो अच्छा माना जाता है. व्यक्ति के न्यायिक सेवाओं में शामिल होने के उच्च अवसर होते हैं. वह न्याय करने में योग्य होता है. वरिष्ठ एवं कुल का वाहक होता है.  पद प्राप्ति की उच्च संभावना है. अंतर्राष्ट्रीय संगठन में काम करने की काफी संभावना होती है. व्यक्ति आकर्षक दिखने वाला व्यक्ति होता है. आकर्षक व्यक्तित्व होता है. जीवन भर अच्छे स्वास्थ्य का आनंद पाने में सक्षम होते हैं. 

गुरु आदित्य योग दूसरे भाव में प्रभाव

दूसरे भाव में इस योग का प्रभाव होने पर व्यक्ति अच्छे कुल में जन्म लेता है. ईमानदार और आकर्षक व्यक्तित्व प्राप्त होता है. व्यकित खुद को अपना बॉस मानता है. वाक्पटु होता और वाणी में नेतृत्व के गुण होते हैं. द्वितीय भाव में इस योग का प्रभाव एक शाही और प्रसिद्ध परिवार दिलाता है. पिता बहुत ही प्रतिष्ठित और जाने-माने व्यक्ति होते हैं. जीवन के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण हो सकता है और मानसिक तनाव से पीड़ित हो सकता है.

गुरु आदित्य योग तीसरे भाव में प्रभाव

तीसरे भाव में इस योग के होने पर व्यक्ति प्रतिभाशाली होता है, बहादुर और स्वाभिमान से भरा होता है. प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित होता है. दुष्ट और आक्रामक स्वभाव का हो सकता है. सामान्यतः समाज में अच्छा सम्मान पाता है. आर्थिक रुप से मजबूत होता है. धनवान हो सकता हैं. संपत्ति को अपनी मेहनत से हासिल करता है. कुछ मामलों में व्यक्ति बहुत लालची होता है. प्रतियोगिताओं में अच्छी सफलता पाता है. मार्गदर्शक और उच्च सलाहकार भी हो सकता है. इस भाव में इस योग का शुभ प्रभाव व्यक्ति को सामाजिक रुप से प्रतिष्ठा दिलाने में सहायक होता है. व्यक्ति को लेखन एवं पत्र पत्रिकाओं में भागीदारी का अवसर भी प्राप्त होता है. 

गुरु आदित्य योग चतुर्थ भाव में प्रभाव

गुरु आदित्य योग का प्रभाव जब चतुर्थ भाव से जुड़ता है तो यह कई तरह के सकारात्मक असर को दिखाता है. व्यक्ति को इसके द्वारा परिवार में समृद्धि का योग भी प्राप्त होता है. व्यक्ति प्राय: बुद्धिमान और सजग होता है. जीवन में कई तरह की उपलब्धियों को पाने में भी सक्षम होता है. एक समृद्ध और शानदार जीवन जीने का सुख भी उसे प्राप्त होता है. सरकार की ओर से बेहतर सकारात्मक रुख की प्राप्ति भी होती है. सरकारी कार्यों में अच्छा प्रदर्शन करने वाला होता है. सत्ता से लाभ मिलता है. अपने परिश्रम एवं कर्म के द्वारा व्यक्ति बहुत प्रसिद्ध होता है. माता-पिता का  प्रेम मिलता है अनुशासन भी उनकी ओर से कठोर रह सकता है. आध्यात्मिक और धार्मिक होने का गुण भी माता-पिता से प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति पर अपनी पैतृक संपत्ति में से कुछ लाभ को प्राप्त करने में सफल होता है. अर्थशास्त्र और प्रबंधन के कार्यों में रुचि रखने वाले होते हैं.

गुरु आदित्य योग पंचम भाव में प्रभाव

गुरु आदित्य योग का प्रभाव पंचम भाव में होने पर व्यक्ति को अपने जीवन में शिक्षा एवं ज्ञान को प्राप्त करने के अनुकूल मौके प्राप्त होते हैं. इस योग के द्वारा कला हो या फिर गणनात्मक य अफिर विज्ञान सभी में प्रगति के मौके मिल सकते हैं. कुछ मामलों में व्यक्ति को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ सकता है. एक से अधिक रुझान होने पर स्थिति इस तरह से अपना असर डालने वाली होती है. संतान सुख की प्राप्ति में यह योग कुछ देरी दे सकता है, अथवा परेशानी हो सकती है. व्यक्ति के आस-पास के लोग उसे एक बुद्धिमान व्यक्ति मानते हैं. वे बहुत ज्ञानी होता है तथा अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने के लिए भी उसमें काफी जिज्ञासा बनी रहती है. सरकार के लिए काम करने के अवसर भी व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. स्वास्थ्य के लिहाज से थोड़ा संभल कर रहने की आवश्यकता होती है. पाचन संबंधी दिक्कतों और लीवर से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर, शुगर और डायबिटीज जैसी रक्त संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. इसलिए सेहत से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक होता है. 

गुरु आदित्य योग छठे भाव में प्रभाव

गुरु आदित्य योग का छठे भाव में होना मिलेजुले असर को दिखाने वाला होता है. यह स्थिति व्यक्ति को चतुर बनाती है. व्यक्ति अपने काम में बुद्धिमान तो होता है लेकिन साथ ही साहस भी उसमें खूब होता है. अपने विरोधियों को परास्त करने में उसे अच्छी योग्यता भी प्राप्त होती है. व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों को संभालने और उन्हें अपने पक्ष में बदलने में माहिर होता हैं. अपने शत्रुओं पर विजयी होने का लाभ इस योग के द्वारा उसे मिल सकता है. प्रशासनिक कार्यों में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता उनमें होती है. व्यक्ति विनम्र और दयालु होता है. धन संचय करने की ओर झुकाव हो सकता है और इसके लिए वे कड़ी मेहनत भी करता है. हृदय एवं उदर संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. 

गुरु आदित्य योग सप्तम भाव में प्रभाव

सप्तम भाव में गुरु आदित्य योग का होना व्यक्ति के आपसी समझौतों पर असर डालने वाला होगा. व्यक्ति अपनी विचारधारा को दूसरों पर आरोपित करने वाला होता है. राजनितिक एवं सामाजिक क्षेत्र में काम करने के लिए अवसर मिलेंगे. जीवनसाथी प्रभावशाली स्वभाव का हो सकता है. व्यक्ति के अपने सहकर्मियों के साथ संबंध अधिक अनुकूल नहीं रह पाते हैं. यहां विचारधाराओं को लेकर मतभेद की स्थिति बनी रह सकती है. व्यक्ति कुछ दयालु और उदार हो सकता है. दूसरों के साथ संवाद करने में उसे सफलता मिलती है. व्यक्ति के बेहतर परामर्श देने में भी सक्षम होता है. विवाह के बाद भाग्य में वृद्धि का योग भी बनता है. अभिमान एवं अहंकार के कारण आपसी संबंधों में समस्या आ सकती है. आमतौर पर व्यक्ति का स्वभाव बहुत ही आलोचनात्मक होता है. राजनीति में इनकी रुचि होती है तथा सफल राजनयिक बनने में आगे रहते हैं. 

गुरु आदित्य योग नवम भाव में प्रभाव

गुरु आदित्य योग के नवम भाव एक अच्छा योग माना गया है. इस स्थान पर इन दोनों का प्रभाव व्यक्ति को प्रसिद्धि और समृद्धि दिलाने वाला होता है. व्यक्ति कई विषयों के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहता है और दूसरों को पढ़ाने की भी इच्छा रखता है. आशावादी होता है और हमेशा लोगों को स्थिति का अनुकूल पक्ष दूसरों को दिखाने वाला होता है. व्यक्ति के लिए नैतिकता और सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण हैं. अपनी परंपराओं के लिए काम करने वाला होता है. दर्शन शास्त्र, इतिहास एवं ज्योतिष जैसी शिक्षाओं को अर्जित करने के साथ साथ दूसरों को भी इनसे जोड़ता है. लोग अक्सर बड़े सपने देखते हैं, उन्हें पूरा करने में सफल हो सकते हैं. अपने पिता एवं वरिष्ठ लोगों की इच्छा का पालन करते हैं. उनके बच्चों में महान गुण होते हैं और वे बहुत गुणी होते हैं, और बड़े होने पर वे बहुत प्रसिद्ध हो सकते हैं.

गुरु आदित्य योग दशम भाव में प्रभाव

दशम भाव में सूर्य और गुरु की युति जातक को समाज में अच्छा नाम और सम्मान देती है. वे शक्तिशाली और अत्यधिक प्रतिष्ठित हो सकते हैं. आरामदायक और शानदार जीवन जीने में सफल होते हैं. अधिकांश क्षेत्रों में सफल होते हैं. वे सामाजिक कल्याण से संबंधित गतिविधियों में बहुत सक्रिय हैं इसमें नाम भी कमाते हैं. मेहनती होते हैं और अपने प्रयासों से कई संपत्तियां हासिल करते हैं. इसके अतिरिक्त, वे राजनीति के विषय में भी रुचि रखते हैं. व्यक्ति अपने जीवन में करियर को लेकर सफलता भी पाता है. 

गुरु आदित्य योग ग्यारहवें भाव में प्रभाव
गुरु आदित्य योग का प्रभाव एकादश भाव में होने पर व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए आतुर रहता है. सामाजिक रुप से उसका दायरा मजबूत होता है. उसकी बातों को दूसरे लोग मान सम्मान देने वाले होते हैं. व्यक्ति जीवन भर अच्छी जीवन शक्ति और अच्छा स्वास्थ्य भी पाने में सफल रहता है. दयालु और मददगार होता है दूसरों के लिए सहयोगी रहता है. अपनी दोस्ती के मामले में बहुत खुशकिस्मत होता हैं. कई वफादार दोस्त और अच्छे सामाजिक मित्र होते हैं. आर्थिक रुप से व्यक्ति धनवान और होता है, जीवन में मूलभूत आवश्यकताओं को लेकर सजग होता है और शानदार वस्तुओं को पाता है. जीवन में आसानी से सफलता मिल जाती है, खासकर शेयर बाजारों के क्षेत्र में अच्छे लाभ पाते हैं. ज़िम्मेदार व्यक्ति होते हैं, ख़ासकर अपने परिवारों को लेकर इनका दृष्टिकोण काफी मजबूत होता है.

गुरु आदित्य योग बारहवें भाव में प्रभाव
गुरु आदित्य योग का प्रभाव बारहवें भाव में होना बाहरी संपर्क द्वारा लाभ ओर चुनौतियों को दर्शाता है. इस युति के असर द्वारा व्यक्ति दयालु और दानशील बनता है. धार्मिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों से जुड़ता है और सामाजिक रुप से कई तरह के कार्य करता है. व्यक्ति के विचारों में विद्रोह की भावना भी अधिक होती है. कई बार व्यक्ति विवाद में अधिक शामिल दिखाई दे सकता है. उसमें नैतिकता की कमी हो सकती है. संकीर्ण सोच का प्रभाव भी व्यक्ति में अधिक रह सकता है. अपमानजनक भाषा का प्रयोग कर सकता है. आर्थिक रुप से परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है.

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संकटा दशा का आपकी कुंडली पर असर

संकटा दशा का समय काफी चुनौतियों एवं जीवन में होने वाले बदलावों से भरा माना गया है. संकटा दशा का समय आठ वर्ष का होता है. यह समय जिन कार्यों को करते हैं या जो फैसले लेते हैं उन सभी पर दूरगामी असर दिखाता है.  इस दशा में प्रसिद्धि मिलती है लेकिन साथ ही अपयश भी मिलता है क्योंकि छोटी सी गलती भी इस समय पर काफी बड़े रुप में सामने आती है.  यह दशा धन, यश और पद प्रतिष्ठा पर अधिक असर डने वाली होती है. आइये जानें इस दशा का संबंध कुंडली के किस भाव से कैसे असर दिखाता है. 

संकटा दशा और इसके कुंडली प्रभाव

किसी व्यक्ति के भाग्य पर संकटा का प्रभाव और जन्म कुंडली में उसकी ऊर्जाओं का प्रकट होने का समय होता है. यह दशा व्यक्ति में कई तरह के उत्साह और काम करने की इच्छ अभी प्रदान करती है.  संकटा की दशा को समझने के लिए अपने दृष्टिकोण को कई तरह से बदलना पड़ता है. भाग्य, कर्म यह दोनों बातें इस दशा पर जोर डालती हैं. यह दशा कुछ असामान्य प्रकृति, विनाश और विस्तार की प्रकृति को दिखाती है. संकटा की स्थिति दुखों के कारणों, जीवन में समस्याओं का एहसास करने और उन्हें हल करने के तरीके खोजने के लिए भी संभव बनाती है.  संकटा दशा एक सर्प की भांति होती है, हम उसे भगवान शिव के गले में लिपटे हुए देख सकते हैं. संकटा वह है जो सभी प्रकार के विष और नशीले पदार्थों का प्रतिनिधित्व करता है. यह संकटा की जहरीली प्रकृति है जो कुंडली में उसके संपर्क में आने वाली हर चीज को नष्ट कर सकती है.संकटा का उन भावों और ग्रहों पर भी विषैला प्रभाव पड़ता है जो उसके साथ में होते हैं. 

संकटा दशा भाव प्रभाव

दूसरी ओर, संकटा का प्रभाव जिस भाव में स्थित होता है, वह असीम शक्ति का स्थान होता है, एक ऐसा स्थान जहाँ साहस, दृढ़ता, अपने आप में दृढ़ विश्वास और अपनी ताकत दिखाते हुए व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों को विकास की ओर ले जाने में सक्षम होता है. इसीलिए इस दशा में जो भाव आता है, वह भाग्य का क्षेत्र है, विकास का स्थान होता है. और सभी जानते हैं कि विकास कमजोरियों और बाधाओं पर काबू पाने से ही मिलता है. जिस भाव में संकटा दशा का असर अधिक होता है उस भाव को असीमित संभावनाओं से भरा देखा जा सकता है.

संकटा के प्रभाव का भाव में उसकी उपस्थिति, जीवन के उन क्षेत्रों को साझा कर सकती है जिनके साथ वह संपर्क में आती है. उदाहरण के लिए, संकटाीअगर पंचम भाव से संबंधित है तो संतान के साथ विचारों में होने वाले मतभेद दे सकती है, अलगाव का कारण बन सकती है, गुढ़ शिक्षा के लिए प्रेरित कर सकती है. सप्तम भाव पर संकटा की होना जीवनसाथी या साझेदारों के साथ अलगाव का कारण बन सकता है. संकटा के नवम भाव पर प्रभाव पिता या गुरु से अलगाव हो सकता है, व्यक्ति नई परंपराओं से जुड़ सकता है. 

प्रथम भाव में संकटा 

पहले भाव में संकटा व्यक्ति को अहंकार की तीव्र भावना देने वाला समय होता है. इस दशा का प्रभाव व्यक्ति को अधिक बातूनी और बहुत मुखर भी बना सकता है. व्यक्ति को निर्भीक और साहसी भी बनता है. अक्सर व्यक्ति शेयर मार्किट, लाटरी जैसे कामों में शामिल भी हो सकता है. इस समय व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा शक्ति को दूसरों पर थोपने की कोशिश भी कर सकता है. दुर्घटनाओं और चिंताओं का दौर भी इस दशा में विशेष होता है. 

दूसरे भाव में संकटा दशा प्रभाव 

इस समय के दौरान आर्थिक मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं. इस समय फूसरे लोगों की  गलत धारणा का सामना भी करना पड़ सकता है. विपरीत परिस्थितियों पर व्यक्ति अपनों से दूर हो सकता है.  व्यक्ति की बचत और धन की स्थिति के लिए हानिकारक समय होता है, दूसरे घर में संकटा सकारात्मक रूप से धीरे-धीरे सुधार देती है. संयम और सब्र का परिणाम लाभ के रुप में मिलता है. स्वास्थ्य को लेकर सजग रहने की आवश्यकता होती है. 

संकटा तीसरे भाव में

संकटा का प्रभाव तीसरे भाव पर होने से ये समय क्रियात्मकता में तेजी लाता है. व्यक्ति को सफलता का अवसर मिलता है कई बार जिस कार्य को हाथ में लेता है उसमें सफलता प्राप्त होती है. यह डींग मारने और शेखी बघारने का गुण भी देता है और ये व्यक्ति इस गुण को सर्वश्रेष्ठ बनाते हैं. भ्रमण के अधिक मौके मिलते हैं. कई अलग अलग लोगों के साथ मेल जोल का समय भी होता है. 

चतुर्थ भाव में संकटा

यह समय मिलेजुले रुप से असर डालता हैअच्छी या बुरी दोनों तरह की परिस्थितियां होती है. व्यक्ति प्राय: करियर में अपने उत्थान, पर्याप्त अचल संपत्ति के मालिक होने का सुख पाता है. किंतु सुख की कमी झेलता है. बहुत महत्वाकांक्षी होता है. अपने सुख स्थान से दूर चला जा सकता है. परिवार के लोगों के साथ तनाव होता है माता का सुख प्रभावित होता है. 

पंचम भाव में संकटा

यह घर शिक्षा, ज्ञान, बुद्धि और संतान से संबंधित है. और पंचम भाव में संकटा अहंकार की अतिरिक्त भावना देने वाला समय होता है. अति आत्मविश्वासी बनाता है. यह गर्भावस्था के दौरान भी समस्या पैदा करता है और अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है. यह स्थिति प्रबंधन में सैद्धांतिक दक्षता देती है न कि व्यावहारिक. व्यर्थ के मुद्दों से दूर रहने की आवश्यकता होती है. 

छठे भाव में संकटा

यइस भाव से संबंधित होने पर कई तरह के बदलाव और चुनौतियां होती हैं. अनुकूल स्थिति मिलती है जो शत्रुओं को हराने के काम आती है. लेकिन अकेलापन अधिक देती है. स्वास्थ्य को लेकर चिंता बनी रहती है. चिंताएं अधिक होती हैं और काम की अधिकता भी रहती है. 

सातवें घर में संकटा

इस दशा का असर वैवाहिक जीवन पर पड़ता है. साझेदारी के काम तनाव बढ़ा देने वाले होते हैं. अक्सर जीवनसाथी में अहंकार की तीव्र भावना होती है, और वैवाहिक जीवन में सामंजस्य कम हो जाता है. व्यापारिक लेन-देन में संकटा दशा के समय यह सुनिश्चित करना होता है कि सौदे में खरीदार और विक्रेता दोनों सीधे हों और मामले में कोई अनैतिक व्यवहार शामिल न हो अन्यथा कानूनी मसले असर डालते हैं. 

आठवें घर में संकटा

आठवें घर में संकटा सबसे पहले व्यक्ति को अवांछित परेशानियों को देने वाली होती है. स्वास्थ्य पर विशेष रूप से संकटा की महादशा के दौरान चिंता बढ़ जाती है. व्यक्ति की पृष्ठभूमि में बदलाव होगा. खान पान में बदलाव का असर सेहत पर होगा. व्यर्थ के झूठे आरोप लग सकते हैं. गलत काम या व्यवसाय की ओर रुझान भी हो सकता है.  

नवम भाव में संकटा

संकटा अकेला बहुत प्रभावी नहीं है, जब तक कि यह किसी अन्य ग्रह के साथ न हो या यह नवम भाव के स्वामी से सीधे दृष्टि प्राप्त न करता हो. नवम भाव या नवम भाव के स्वामी के ग्रह के अनुसार व्यक्ति व्यवहार करता है और रंग बदलता है. धार्मिक यात्राएं होगी. अलग संक्सृति के साथ जुड़ाव होगा. भाग्य कुछ कम साथ दे पाएगा. पिता को लेकर सुख प्रभावित होता है. लोगों के साथ तर्क वितर्क बढ़ता है.

दसवें भाव में संकटा

यह समय संकटा दशा के लिए बहुत प्रभावी होता है. इस समय व्यक्ति अपने करियर को लेकर कई नवीन बातों में व्यस्थ होता है. व्यक्ति स्वतंत्र रूप से कार्य करता है. समाज में उनकी स्थिति भी मजबूत होती है. व्यक्ति को विरोधियों की ओर से अटकाव अधिक झेलने पड़ सकते हैं. अहंकार की उच्च भावना होती है. कई बार स्वभाव की कठोरता विवाद को बढ़ावा देने वाली होती है. 

ग्यारहवें भाव में संकटा

इस भाव में जब इस दशा का संबंध ब राशि कोई भी हो और घर का स्वामी कोई भी हो, संकटा हमेशा एकादश भाव में शुभ असर दिखाने वाली भी मानी जाती है. इस समय व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अधिक उत्साहित होता है. परिश्रम करता है. भाग्य का साथ मिलने से व्यक्ति को कभी भी धन की कमी नहीं होती है, लेकिन ये समय धन के खर्च को भी दिखाता है  

बारहवें भाव में संकटा

इस भाव में अकेले बहुत प्रभावशाली नहीं है. यह दान और सामाजिक कार्यों के लिए धन खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करने वाली दशा है. इस समय शरीर, कंधे, गर्दन और छाती से संबंधित रोग अधिक परेशान कर सकते हैं. विदेश गमन का अवसर भी प्राप्त होता है. 

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अपनी कुंडली से जाने ग्रहों के असर को और दूर करें सारे भ्रम

ज्योतिष के थोड़े से ज्ञान के साथ भी सभी जानते होंगे कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक कुंडली में बारह भाव और नौ ग्रह होते हैं. लेकिन इन भाव और ग्रहों के संबंध को समझ कर ही हम अपनी कुंडली का सही से रहस्य जान पाने में सक्षम हो सकते हैं. कई बर कुंडली में खराब ग्रह ही इतने अच्छे परिणाम दे जाते हैं जो कोई शुभ ग्रह नहीं दे पाता है तो कुछ कुंडलियों में ग्रहों की शुभता भी अधिक असर नहीं दे पाती है. अब इन सभी बातों को जान पाना तभी संभव होता है जब कुंडली में ग्रहों की शक्ति एवं उनकी स्थिति का बोध हो. कई बार जीवन में होने वाली परेशानियों के लिए लोग किसी विशेष ग्रह को दोष देना शुरू कर देते हैं लेकिन यह उचित नहीं है क्योंकि ग्रहों का असर हमारे कर्म एवं प्रारब्ध से भी जुड़ा होता है. शनि, मंगल, राहु और केतु यहां सबसे ज्यादा दोष लेने वाले ग्रह हैं लेकिन इन ग्रहों की भूमिका को जाने बिना इन पर दोष लगाना उचित नहीं है. 

किसी भी कुंडली में केवल अच्छे या बुरे ग्रह नहीं होते हैं. कोई भी ग्रह किसी भी घर में हो, चाहे वह बलवान हो या निर्बल, अपने आप कोई परिणाम नहीं देता है. सैद्धांतिक रूप से कुंडली में विभिन्न ग्रहों की भूमिका समान रहती है. व्यक्ति के जीवन में बदलाव के साथ-साथ कुंडली में विभिन्न ग्रहों का महत्व बदलता रहता है इसलिए बेहतर होगा कि अपने जीवन के किसी खास पड़ाव पर किसी ग्रह की भूमिका को समझ ली जाए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जन्म कुंडली में अलग-अलग ग्रहों का परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी स्वतंत्र इच्छा एवं कर्मों से ग्रहों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं. कुंडली में ग्रह आपके जन्म के समय किसी विशेष क्षण में नक्षत्र में ग्रहों की स्थिति पर आधारित होते हैं. जन्म का यह विशेष क्षण भगवान ब्रह्मा द्वारा तय किया जाता है. भगवान ब्रह्मा यह कैसे तय करते हैं यह सब आपके पिछले जन्मों के कर्मों पर आधारित है. तो एक तरह से आप खुद ही अपनी कुंडली बनाते हैं. 

सूर्य ग्रह 

कुंडली में सूर्य सबसे महत्वपूर्ण ग्रह होता है क्योंकि यह कुंडली का प्रथम आधार होता है. सूर्य सभी ग्रहों में प्रमुख है और व्यक्ति की आत्मा है. इसमें विभिन्न सकारात्मक गुण होते हैं जैसे कि एक पिता के रूप में होना, अपार शक्ति होना, स्वाभिमान और अधिकार दिखाना. जीवन को किस दिशा में किस रुप में जीना है यह सूर्य द्वारा संचालित होता है. सूर्य संसार में मिलने वाली उपाधियों, मान सम्मान का द्योतक होता है. इसके द्वारा ही व्यक्ति को बड़े अधिकार मिलते हैं. सूर्य यह दिखाता है कि कोई व्यक्ति खुद को दुनिया के सामने कैसे प्रस्तुत करता है. एक मजबूत सूर्य ऊर्जा और अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है, तो एक कमजोर सूर्य व्यक्ति को अहं से भरपूर अति-आत्मविश्वासी बना सकता है. जब अच्छे करियर की बात आती है तो मजबूत सूर्य की आवश्यकता होती है, लेकिन निजी संबंधों के मामले में यह अधिकार को बढ़ा कर परेशानी देता है. 

चंद्रमा ग्रह 

चंद्रमा दूसरा ग्रह है जो सूर्य के बाद आता है. हमारी सभी भावनाओं पर इसका प्रभाव पड़ता है यह दोनों ग्रह दृष्य होते हुए नियमित रुप से हमारे सामने आते हैं. चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है, सभी की मां के रूप में कार्य करता है, प्यार, मन की शांति, सकारात्मकता और भावनाएं प्रदान करता है. एक मजबूत चंद्रमा व्यक्ति के जीवन के सभी चरणों में मदद करता है, लेकिन एक कमजोर चंद्रमा चंचल मन या यहां तक कि अवसाद जैसी परेशानियां भी ला सकता है.

मंगल ग्रह 

मंगल साहस, जुनून, बहादुरी, शक्ति और आत्मविश्वास को दर्शाता है. जीवन के कई पहलुओं में, हमें इन सभी की समान रूप से आवश्यकता नहीं होती है. एक मजबूत मंगल आपके करियर और आत्मविश्वस में मदद कर सकता है लेकिन वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. इसलिए कुंडली में कहां इसकी स्थिति किस रुप में है इसे देख कर ही उचित निर्णय कर पाना सही होगा. मंगल यदि कमजोर होगा तब भी यह आपके साहस को कम कर देगा और सफलताओं को पाने के लिए व्यवधान भी देने वाला होगा.

शुक्र ग्रह 

शुक्र शुभ एवं कोमल ग्रह के रुप में स्थान पाता है. यह विशेष रुप से प्रेम, संबंध, रोमांस, सौंदर्य, यौन जीवन, संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है. रिश्ता चाहे किसी भी रुप में हो चाहे वह जीवनसाथी के साथ में हो, प्रेमी के साथ का हो या फिर व्यावसायिक सहयोगियों के साथ हो. बहुत से लोग नहीं जानते होंगे, लेकिन एक अच्छा शुक्र आपके करियर के जीवन का सार भी है. तो किस स्तर पर शुक्र के सहयोग की आवश्यकता है, यह कुंडली के द्वारा और हमारे काम की स्थिति से भी तय होता है. शुक्र यदि शुभ है तो जीवन में आपकी भावनात्मक प्रतिक्रिया को काफी सजग रखता है और इसके प्रति जागरुक बनाता है. लेकिन कमजोर है तो नीरस होने का भाव भी दे सकता है.

बुध ग्रह 

बुध तेजी से चलने वाला और बुध वाणी, बुद्धि, ग्रहण शक्ति, सतर्कता और तर्क का प्रतिनिधित्व करता है. बुध जीवन भर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन शिक्षा के प्रारंभिक चरण में यह अधिक महत्व रखता है. अगर बुद्धि उचित हो तो निर्णय भी उचित रुप से लिए जा सकते हैं. लेकिन यही अगर भ्रम में हो तो विचारधारा भटकती है. बुध ही हमारी खुशी, मौजमस्ती और वाक पटुता को भी दिखाता है. एक अच्छा बुध लोकप्रिय बनाता है अब यह किस रुप में कुंडली में है उसे देख कर ही अपनी ख्याती को जान सकते हैं. 

बृहस्पति ग्रह 

बृहस्पति एक अन्य शुभ ग्रह होता है. यह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. यह एक व्यक्ति की अधिक मदद करता है जब वह शिक्षा और करियर के स्तर तक पहुंचता है, इसलिए व्यक्ति की शुरुआती उम्र में या कहें कि शुरुआती समय में उतना महत्वपूर्ण नहीं होता लेकिन बाद के समय में यह विशेष प्रभाव रखता है. इसके द्वारा ही जीवन कि दिशा का बोध भी संभव होता है. उच्च ज्ञान की प्राप्ति का आधार ही यह बनता है. 

राहु ग्रह
राहु नाम और प्रसिद्धि लाता है, लेकिन बिगड़ा हुआ राहु अपमान लाता है. राहु सांसारिक इच्छाओं, हेरफेर के अलावा उससे जुड़े कई अन्य अर्थों का ग्रह है. जीवन के प्रारंभिक समय में राहु का भारी प्रभाव एक व्यक्ति को मोबाइल, फोन, इंटरनेट से संबंधित गतिविधियों में बहुत अधिक शामिल कर सकता है. राहु एक छायादार और रहस्यमय ग्रह है, जो यदि नकारात्मक कार्य करता है, तो व्यक्ति को अति-महत्वाकांक्षी, अति-आत्मविश्वासी बनाता है,. यह एक व्यक्ति को कोई सीमा से पार ले जाने का काम करता है, तो कुंडली में इसका उपयोग कैसे करते हैं यह हम पर निर्भर करता है. नियंत्रण में रहेगे तो, राहु अच्छी भूमिका निभाएगा, शेखी बघारें या हद से आगे बढ़ते हैं तो राहु तबाही मचाएगा.

केतु ग्रह
केतु आध्यात्मिकता तो दिखाता है लेकिन वैराग्य भी. यह राहु की भांति ही एक छाया ग्रह है और बिना भौतिक अस्तित्व वाला ग्रह है. केतु को सांसारिक इच्छाओं के लिए हानिकारक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है. केतु का एक प्रतिकूल प्रभाव एक व्यक्ति को सांसारिक और सांसारिक इच्छाओं से दूर कर सकता है, जिसमें प्यार और रोमांस भी शामिल है, उस उम्र में जब आपको उनकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है.

शनि ग्रह
शनि एक कर्म ग्रह है जो व्यावहारिक रूप से किसी व्यक्ति के जीवन को उस प्रकार के कर्मों के साथ धारण करता है जो वह करता है. अधिक महत्वाकांक्षी बनते हैं, या गलत कार्य करते हैं तो शनि दंड देगा. शनि एक शिक्षक और एक कानून का पालन कराने वाले की भूमिका निभाता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि शनि का कुंडली पर कैसा असर है. एक ग्रह के रूप में शनि की इतनी व्यापक व्याख्या है कि मैं इसे संक्षेप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता. अब इन सभी ग्रहों की स्थिति को कुंडली में देख कर जान सकते हैं की व्यक्ति किस दिशा की ओर अधिक बढ़ सकता है ओर कहां उसे नियंत्रण की आवश्यकता होती है.

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सूर्य षडबल में अगर मजबूत हो तो क्या होगा उसका असर

किसी भी ग्रह की शक्ति या उसके बल को जानना होता है तो उसे उक्त ग्रह की विभिन्न स्थितियों का विश्लेषण करके जाना जा सकता है. यह विभिन्न पद ग्रह शक्ति के विभिन्न स्रोत हैं जिन्हें षडबल के नाम से जाना जाता है. षडबल की गणना के तरीके ग्रहों और कुंडली में मौजूद भावों की स्थिति के बारे में जानकारी विस्तार से देते हैं. इसी में जब सूर्य को षडबल में अच्छा शक्ति बल मिलता है तो उसका प्रभाव कई तरह से व्यक्ति को प्राप्त होता है. सूर्य के षडबल में मजबूत होने का असर कई तरह से मिलता है. 

सूर्य का षडबल में मजबूत होने का कुंडली पर असर 

वैदिक ज्योतिष में सूर्य एक विशेष ग्रह है. इसका प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ साथ जीवन पर भी पड़ता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि आपकी जन्म कुंडली में सूर्य शक्तिशाली है तो यह शक्ति, पद और अधिकार देने में सहायक बनता है. जन्म कुण्डली में सूर्य के बली होने से का करियर एवं सम्मान का फल अवश्य प्राप्त होता है. ज्योतिष अनुसार सूर्य की अलग-अलग स्थिति होती है. यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिए अलग असर दिखाने वाला होता है. जन्म कुंडली में षडबल में यदि सूर्य शक्तिशाली होता है, तब इसके प्रभाव में कई प्रकार के फल प्राप्त होते हैं. सूर्य का षडबल में मजबूत होना व्यक्ति के जीवन पर चमक बिखेरने का काम करता है. इसके असर द्वारा व्यक्ति शक्तिशाली, गतिशील, अधिकार सम्पन्न और प्रभावशाली होता है. व्यक्ति में नेतृत्व के गुण भी होते हैं. वह साहसी होता है, लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र बनता है.

वैदिक ज्योतिष में सूर्य का प्रभाव  

जब किसी की जन्म कुंडली में सूर्य कमजोर होता है, तो उनके पास सफल करियर या मान सम्मान की कमी बनी रहती है. जब किसी राशि में सूर्य कमजोर होता है, तो व्यक्ति असफल करियर का अनुभव कर सकता है. व्यक्ति में आत्मबल भी कमजोर होता है. सूर्य से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी उसे हो सकती हैं. हृदय, हड्ड़ी, त्वचा और नेत्र रोग भी हो सकते हैं. इसके विपरित यदि सूर्य अच्छी स्थिति में है तो उसका असर सफलता ओर स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी के रुप में देखा जाता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशियों में प्रत्येक ग्रह का अपना भाव एवं राशि होती है. इसी प्रकार सूर्य का सिंह राशि में स्थान होता है मेष राशि उसका उच्च बल स्थान होता है. लग्न दशम भाव में वह अच्छी मजबूत स्थिति को पाता है. जब सूर्य षडबल में इन्हीं स्थिति को पाता है तो व्यक्ति स्वतंत्र, बलवान, गतिशील, आज्ञाकारी और जिद्दी होता है. प्रचलित मान्यता के अनुसार ज्ञानवान, अभिमानी, स्वतंत्र और सुखमय जीवन व्यतीत करने वाला होता है.

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य पीड़ित हो तो उसका जीवन संघर्षमय बना देता है. किसी को उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए उचित श्रेय नहीं मिल पाता है. लोगों के साथ उसके अच्छे संबंध नहीं हो सकते हैं. मंगल, शनि, राहु और केतु के अशुभ प्रभाव से सूर्य आमतौर पर पीड़ित होता है. यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य पीड़ित हो तो उसे कष्ट होता है. सूर्य को अपना राशि चक्र पूरा करने में एक वर्ष लगता है. प्रत्येक राशि में इसे एक मास कहते हैं. मकर से मिथुन राशि में सूर्य का गमन उत्तरायण अर्थात उत्तर की ओर गति करता है और कर्क से धनु राशि में गोचर दक्षिणायन अर्थात दक्षिणावर्त गति करने वाला होता है. सूर्य की इस गति के कारण ऋतु चक्र होता है. सूर्य जब मकर और कुम्भ को रोकता है तो शीतकाल होता है. जब यह मीन और मेष राशि में होता है, तो मौसम बसंत होता है; वृष और मिथुन राशि में, मौसम गर्मी का होता है; जब कर्क और सिंह राशि में, यह मानसून है; कन्या और तुला राशि में, यह शरद ऋतु है, और जब सूर्य वृश्चिक और धनु राशि में होता है, तो यह शरद ऋतु और सर्दियों के बीच का समय होता है.

षडबल में सूर्य का सकारात्मक प्रभाव 

सूर्य अगर षडबल में मजबूत हो तब उसका असर प्रेरित करने वाला होता है. व्यक्ति बिना किसी हिचकिचाहट के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है. व्यक्ति अपने निर्णयों और कार्यों में आवेगी होता है लेकिन आत्मविश्वास एवं सहजता से भी पूर्ण होता है. दृढ़ता और अभिमान भी उसमें अधिक होता है. उसका जुनून ही सफलता सुनिश्चित करने वाला होता है. व्यक्ति सक्रिय रुप से चीजों में शामिल रहने वाला, रोमांच, खेल इत्यादि से जुड़े कामों में उन्मुख होता है. वह तब तक बेचैन रहता है जब तक कि वे लगातार अपनी सफलता में आगे न रहे और क्रियाशील होकर काम न करे. षडबल में सूर्य का अच्छा होना व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद भी प्रदान करता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी रहती है. व्यक्ति के पास जो कुछ भी है उसमें साहस जरूर दिखाता है, और कठिनाइयों का सामना करने पर भी वे जल्दी से हिम्मत नहीं हारता. व्यक्ति जन्म से ही नेता होता हैं. दूसरों पर अपना नियंत्रण करना चाहेंगे. हर चीज में प्रथम बनना चाहेंगे. उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा भी उनमें होती है. जीतने के लिए कुछ भी करने वाला होता है लेकिन गलत कार्यों से नहीं बल्कि बेहतर रुप से आगे बढ़ने वाला होता है. अपने रिश्तों के लिए भावुक होता है. 

षडबल में उच्च प्रभाव के कुछ नकारात्मक प्रभाव 

षडबल में मजबूत सूर्य भी कहीं न कहीं नकारात्मक रुप से अपना असर भी देता है. अपनी विभिन्न गतिविधियों में बहुत अधिक व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होता है लेकिन अभिमान और क्रोध की स्थिति भी अधिक असर डालने वाली होती है. क्रोध एवं उत्साह की अधिकता कभी-कभी दूसरों के लिए आक्रामक भी सकता है. क्रूर व्यवहार और निर्दयी लगता है. सूर्य का मजबूत प्रभाव आवेगपूर्ण व्यवहार देता है. व्यवहार अक्सर किसी और की सुविचारित योजना के रास्ते में आ जाता है. जब वे असहमत होते हैं, तो वे खुले तौर पर ऐसा करता है. इस प्रकार मजबूत सूर्य के कुछ प्रभाव नकारात्मक लक्षण के रुप में भी षडबल में देखे जा सकते हैं. 

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