मीन राशि में शनि : सिंह राशि पर शनि का प्रभाव 2025

सिंह राशि वालों के लिए शनि का गोचर कई बातों में विशेष होता है. सूर्य और शनि का संबंध अनुकूलता की कमी के चलते गोचर में भी ऎसी स्थिति को दिखाता है. मीन राशि में शनि का होना यानि आठवें भाव पर शनि का विराजमान हो जाना क्योंकि सिंह राशि के लिए मीन राशि आठवें भाव की राशि है. अब इस गोचर के मायने भी होंगे बहुत विशेष ओर जीवन में उथल पुथल को लाने के काम करने वाले होंगे.

अष्टम का शनि देगा बदलाव का समय
सिंह राशि वाले अपने जीवन में इस गोचर के कारण काफी प्रभाव में रहेंगे जीवन का हर पक्ष इस गोचर से प्रभावित होगा. 2025 से 2028 तक के समय में आठवें भाव में बैठा शनि बड़े चेंज दिखाएगा. शनि के कुंडली में 8वें भाव में गोचर करने के कारण सिंह राशि वाले ढैया के प्रभाव में रहेंगे. अपने करियर की योजना बनाएंगे लेकिन सफलता के लिए संघर्ष होगा.

अधिक झुकाव के साथ कोई भी काम मानसिक चिंता देगा क्योंकि अब शनि देव सिंह वालों के दृढ़ संकल्प की परीक्षा लेंगे. इस समय के दौरान परिस्थितियों का सामना करने के लिए अधिकसाहसी और आत्मविश्वासी बनने की जरूरत होगी.

शनि 29 मार्च 2025 से मीन राशि में प्रवेश करने जा रहा है. शनि को सेवक, अनुशासनप्रिय और स्वाभाविक रूप से पाप ग्रह माना जाता है. गोचर में इसे लगभग ढ़ाई साल लगते हैं और 12 राशियों का भ्रमण करने में 30 साल.

इस बार सिंह राशि वालों की कुंडली में शनि का आठवें भाव में प्रवेश होगा. यह भाव दीर्घायु, अचानक होने वाले घटनाक्रमों, अपमान और विरासत का कारक है. शनि का यह गोचर आपको अपने काम में अस्त व्यस्त माहौल देगा. कठिनाइयों के रूप में परीक्षणों से भी गुज़ारना होगा. सिंह राशि वाले इससे कैसे बाहर निकलते हैं, यह उनके प्रयासों और समझ की मदद से निर्धारित होगा. गोचर के कारण आपको चीजों का विश्लेषण करने और प्रसिद्धि पाने में गति प्राप्त करने में मदद मिल सकती है. विवाहित व्यक्तियों को जीवन-साथी पर ध्यान देना सीखा होगा और अविवाहितों के लिए, अपने व्यक्तित्व को बेहतर बनाने के अवसर होंगे. अंतिम चरण आपके जीवन में कुछ विश्वास संबंधी मुद्दे लेकर आ सकता है, शनि गोचर आपको अपने जीवन के मूल्यों का एहसास कराएगा.

शनि गोचर के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिए अपनी व्यक्तिगत शनि रिपोर्ट प्राप्त करें. https://astrobix.com/horoscope/saturnsadesati/

सिंह राशि पर शनि ढैय्या गोचर का प्रभाव
सिंह राशि वाले शनि की ढैय्या के प्रभाव में होंगे क्योंकि शनि जन्म के चंद्रमा से अष्टम भाव में गोचर कर रहा है. इसलिए करियर की योजना बनानी होगी क्योंकि गोचर शनि आपकी हिम्मत और धैर्य की परीक्षा लेगा. पर्याप्त धैर्य के साथ ईमानदार प्रयास महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेंगे. किसी भी संसाधन के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए बल्कि अधिक धन संचय करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए. अतीत में सीखे गए सबक अब किसी भी कठिन परिस्थिति को सुलझाने में मदद करेंगे. अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच समान संतुलन बनाए रखना शायद मुश्किल लगे. साथ ही, आप आध्यात्मिक शिक्षा की ओर प्रवृत्त होंगे जो आपको आध्यात्मिक रूप से खुद को ऊपर उठाने में मदद करेगी.

मीन राशि में शनि का गोचर आपके जीवन का थोड़ा कठिन दौर होने वाला है. व्यक्तिगत जीवन के मामले में विभिन्न उतार-चढ़ावों से गुज़रेंगे. इसके लिए सिंह राशि वालों को साहसी होने और मामलों से निपटने के दौरान अत्यधिक समझदारी दिखाने की आवश्यकता होगी. करियर पर शनि गोचर 2025 का प्रभाव परिस्थितियों पर विजय पाने के लिए दृढ़ संकल्प और एकाग्रता की मांग करेगा. आत्मविश्वास भी होना होगा क्योंकि परिस्थितियां कुछ कमजोर बना सकती हैं. अपने कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने का आनंद नहीं ले पाएंगे. यह चरण आपको वरिष्ठों के साथ व्यवहार करते समय शांत स्वभाव बनाए रखने की भी मांग करेगा. सहकर्मी आपका सहयोग करेंगे.

आपका वातावरण शांतिपूर्ण रहेगा और आप अपनी इच्छानुसार योजनाओं और कार्यों को क्रियान्वित कर सकते हैं.गोचर अवधि के दौरान नौकरी में बदलाव या आपकी भूमिका और जिम्मेदारियों में कुछ सकारात्मक बदलाव की संभावना है. कोई भी नई नौकरी चुनते समय व्यावहारिक बनें.

शनि गोचर 2025 का व्यावसायिक जीवन पर प्रभाव
व्यवसाय के मोर्चे पर चीज़ें तेज़ होंगी और आप अपने प्रयासों से सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं. आपकी पहल और परिश्रम को देखते हुए आपका लाभ संतोषजनक रहेगा. कभी-कभी, आपके लिए व्यावसायिक आवश्यकताओं का सामना करना मुश्किल हो सकता है.
कर्मचारियों से अच्छे समर्थन और महत्वपूर्ण मामलों में भाग्य के साथ, आपको आगे बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उन कार्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करें जो अन्यथा कठिन हो सकते हैं.
आपके आस-पास के लोग अधिक सहयोगी होने लगेंगे और जब भी आवश्यकता हो, मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं. आपको अपने व्यवसाय में मुख्य बिंदुओं और चुनौतियों को खोजने पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया जाता है.

शनि पारगमन 2025 का आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
वित्तीय लाभ के नए रास्ते खुलते नज़र आ सकते हैं. आपके द्वारा किए गए कार्य लक्षित समय सीमा के भीतर पूरे न हो पाएं क्यौंकि आठवां घर विलंब का स्थान भी है. परिस्थितियों और योजनाओं की अपनी गहरी समझ से दूसरों को समझाने में सक्षम होंगे. नेक कामों और दान में शामिल होने की संभावना के कारण कुछ सकारात्मक प्रभाव मिल सकते हैं. आय में वृद्धि होगी, और वरिष्ठ या सरकारी अधिकारियों के साथ आपका संपर्क बेहतर होगा. अपने कौशल की मदद से आप विपरीत परिस्थितियों को भी संभालने में सक्षम होंगे. आप कई अनुकूल परिस्थितियों में आएँगे. आपको पैसे की आमद के बारे में ज़्यादा चिंता नहीं करनी पड़ेगी. यात्रा पर पैसे खर्च होने की संभावना और तीर्थ स्थानों की यात्रा से संबंधित खर्च होंगे.

शनि गोचर 2025 का जीवन पर प्रभाव
इस समय विवाद रह सकते हैं लेकिन सिंह राशि वाले अपने प्रियजनों और परिवार के सदस्यों के साथ सार्थक बातचीत के माध्यम से समझ विकसित करना चाह सकते हैं. प्रियजन और करीबी आपकी मदद करने में सक्षम होंगे क्योंकि आप उनकी मदद करते हैं. आपके जीवनसाथी को आपकी संगति, संवेदनशीलता और समझ की आवश्यकता हो सकती है. एक प्रभावी संतुलन बनाने के लिए आपको अपना सामंजस्य बनाए रखना चाहिए. अपने प्रियजनों के साथ आपकी सैर आपके जीवन में खुशियाँ बढ़ाएगी. इस तरह, आप अपने प्रियजनों के लिए समय निकालकर उन्हें खुश कर पाएंगे.

स्वास्थ्य पर शनि गोचर 2025 का प्रभाव
मानसिक तनाव से बचने के लिए आपको इस अवधि में उच्च धैर्य और एकाग्रता का स्तर विकसित करने की आवश्यकता होगी. आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा. अपनी ऊर्जा को बहुत सारी गतिविधियों में बिखेर सकते हैं. खान पान में सख्त अनुशासन का पालन करना होगा. चीजों को पूरी तरह से नियंत्रण में रखने के लिए अपने स्वास्थ्य की बारीकी से निगरानी रखनी होगी.

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विवाह के लिए अशुभ नक्षत्र और योग

ज्योतिष शास्त्र अनुसार विवाह ज्योतिष में कुछ ऎसे सूत्रों के बारे में बताया गया है जिन्हें अपनाकर वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से बचा जा सकता है. शादी विवाह में शुभता को पाने के लिए जरुरी है की मुहूर्त विचार भी सही तरह से किया जाए. इस के अलावा कुछ ऎसे योग, नक्षत्र प्रभाव होते हैं जिनमें शादी विवाह को करना उचित नहीं माना गया है. ज्योतिष सूत्रों के अनुसार नक्षत्र गणना, मुहूर्त, शुभ ग्रहों की स्थिति का विचार बेहद विशेष है. तो चलिये जान लेते हैं विवाह में किन-किन बातों का रखा जाता है ध्यान. 

ज्योतिष के अनुसार कुछ विशेष ग्रह स्थिति, नक्षत्र और तिथि आदि में विवाह वर्जित माना जाता है. इन स्थितियों में विवाह करने से भविष्य में परेशानियां आ सकती हैं. इनमें से कुछ नक्षत्र ऐसे हैं जो शुभ फल देते हैं, लेकिन इनमें विवाह भी शुभ नहीं माना जाता है. हिंदू धर्म में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है. विवाह सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि संस्कारों में से एक है. किसी के भी विवाह के लिए शुभ मुहूर्त निकालने से पहले कई बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे ग्रहों की स्थिति, नक्षत्र, दिन, तिथि आदि. अगर इन सभी का उचित रुप से पालन किया जाए तो विवाह में आने वाली परेशानियां कभी भी हमारे सामने खड़ी नहीं दिखाई देती हैं. 

विवाह के लिए विशेष ज्योतिषीय नियम 

 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्रों में कुछ ऐसे नक्षत्र हैं, जिनमें विवाह करना वर्जित माना गया है. जैसे कि अर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति आदि. अगर इन नक्षत्रों में से कोई भी नक्षत्र हो या सूर्य सिंह राशि में बृहस्पति के नवमांश में गोचर कर रहा हो तो विवाह बिलकुल भी नहीं करना चाहिए. 

पुष्य नक्षत्र और उत्तराफाल्गुनी को बेहद शुभ नक्षत्र का स्थान मिलता है लेकिन इसके बावजूद भी इन दोनों नक्षत्रों को विवाह के लिए शुभ नहीं माना गया है. कहा जाता है कि पुष्य नक्षत्र के शुभ होने पर भी उसे विवाह के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए. कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री शारदा का विवाह गुरु पुष्य में करने का निर्णय लिया था, लेकिन वे स्वयं अपनी पुत्री के रूप और सौंदर्य पर मोहित हो गए थे. कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि पुष्य नक्षत्र को ब्रह्मा जी का श्राप प्राप्त है, इसलिए इस नक्षत्र को विवाह के लिए वर्जित माना गया है.

माता पार्वती ने भी विवाह के समय शिव से मिले श्राप के कारण इस नक्षत्र को विवाह के लिए वर्जित माना था. हालांकि पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों में श्रेष्ठ माना गया है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी नक्षत्र में माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था. ऋग्वेद में इसे वृद्धिकर्ता, मंगलकर्ता और आनंदकर्ता कहा गया है. मान्यता है कि इस नक्षत्र में शुरू किया गया सभी कार्य पुष्टिदायक, सर्वार्थसिद्धिदायक और निश्चित रूप से फल देने वाला होता है. इस नक्षत्र में खरीदी गई वस्तुएं भी शनि के प्रभाव के कारण स्थाई रहती हैं. चंद्र वर्ष के अनुसार हर माह में एक दिन चंद्रमा का मिलन पुष्य नक्षत्र से होता है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है. पुष्य नक्षत्र में जन्मे लोग दानशील, गुणी और बहुत भाग्यशाली होते हैं

इसी तरह उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र को भी विवाह के लिए अनुकूल नहीं माना गया है, माना गया है कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में श्री राम जी का सीता जी के साथ विवाह हुआ था लेकिन उन्हें अपने वैवाहिक जीवन में बहुत कष्ट जेलने पड़े इसी कारण इस नक्षत्र को विवाह के लिए अनुकूल नहीं माना गया है. 

अपने बड़े बच्चे का विवाह विवाह तिथि को जन्म नक्षत्र से 10वें, 16वें या 23वें नक्षत्र में नहीं करना चाहिए.

नक्षत्र वेध विचार 

विवाह के लिए नक्षत्र वेध विचार करना बेहद जरुरी होता है.पंचशलाका चक्र के अनुसार इसे देखा जाता है. इस नक्षत्र वेध के अनुसार जिस नक्षत्र का जिस नक्षत्र से वेध हो रहा हो  उस नक्षत्र में विवाह वाले दिन अगर कोई ग्रह बैठा हुआ हो तो उस दिन विवाह करना उचित नहीं माना जाता है. 

त्रिज्येष्ठा योग में विवाह वज्रित 

एक योग ऐसा भी है जो विवाह के लिए वर्जित माना गया है, जिसे त्रिज्येष्ठा कहते हैं. इसमें बड़ी संतान का विवाह ज्येष्ठ माह में नहीं करना चाहिए तथा ज्येष्ठ माह में जन्मे लड़के या लड़की का विवाह भी ज्येष्ठ माह में नहीं करना चाहिए.

शुक्र ग्रह विचार 

विवाह का मुख्य कारक शुक्र है, इसलिए जब शुक्र बाल अवस्था में हो या कमजोर हो तो विवाह सुख का कारण नहीं बनता. शुक्र पूर्व में उदय होने के बाद 3 दिन तक बाल अवस्था में रहता है और पश्चिम में होने पर 10 दिन तक बाल अवस्था में रहता है. शुक्र अस्त होने से पहले 15 दिन तक कमजोर अवस्था में रहता है और शुक्र अस्त होने से 5 दिन पहले वृद्ध अवस्था में रहता है. इस अवधि में विवाह नहीं करना चाहिए.

गुरु ग्रह विचार 

विवाह में बृहस्पति की भी अहम भूमिका होती है, इसलिए बृहस्पति का मजबूत होना भी जरूरी है. यदि बृहस्पति बाल्यावस्था, वृद्धावस्था या कमजोर हो तो भी विवाह जैसे शुभ कार्य करना उचित नहीं होता. गुरु उदय और अस्त दोनों ही अवस्थाओं में 15-15 दिन तक बाल्यावस्था और वृद्धावस्था में रहता है. इस अवधि में विवाह करना भी उचित नहीं होता.

त्रिबल शुद्धि विचार

इसमें यदि कन्या की जन्म राशि से प्रथम, अष्टम और द्वादश भाव में गुरु ग्रह गोचर कर रहा हो तो विवाह करना शुभ नहीं होता. यदि कन्या की जन्म राशि से मिथुन, कर्क, कन्या और मकर राशि में गुरु ग्रह गोचर कर रहा हो तो यह विवाह कन्या के लिए लाभकारी नहीं होता. गुरु के अलावा सूर्य और चंद्रमा का गोचर भी शुभ होना चाहिए.

चंद्रमा के गोचर का विचार

चंद्रमा मन का कारक है, इसलिए विवाह में चंद्रमा की शुभता और अशुभता पर विशेष ध्यान देना चाहिए. अमावस्या से तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक चंद्रमा बाल्यावस्था में रहता है. इस समय चंद्रमा अपना फल देने में असमर्थ होता है. चतुर्थ और अष्टम भाव को छोड़कर सभी भावों में चंद्रमा का गोचर शुभ होता है. विवाह तभी करना चाहिए जब चंद्रमा पखवाड़े में बलवान, त्रिकोण में, स्वराशि में, उच्च का और मित्र भाव में हो.

गंडांत विचार 

विवाह में गंडांत मूल का भी विचार करना चाहिए. उदाहरण के लिए मूल नक्षत्र में जन्मी लड़की अपने ससुर के लिए कष्टकारी मानी जाती है. आश्लेषा नक्षत्र में जन्मी लड़की अपनी सास के लिए अशुभ होती है. ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी लड़की अपने बड़े भाई के लिए अशुभ होती है. इन नक्षत्रों में जन्मी लड़की से विवाह करने से पहले इन दोषों को अवश्य दूर कर लेना चाहिए.

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मंगल की होरा और ज्योतिष प्रभाव

होरा का प्रभाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है. ज्योतिष में होरा का प्रभाव जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है. ऐसे में होरा आर्थिक जीवन, विवाह, सुख या मुहूर्त आदि को प्रभावित करती है. मुहूर्त शास्त्र में होरा की भूमिका बहुत खास होती है. अब मंगल की होरा का प्रभाव कई मायनों में खास होता है. मंगल की होरा में जन्म लेने वाला व्यक्ति मंगल की तरह ही अधिक उत्साहित और आगे बढ़ता हुआ नजर आएगा. मंगल की होरा व्यक्ति के व्यवहार, उसके काम और उसकी जीवनशैली को भी प्रभावित करती है. जब मंगल की होरा का प्रभाव होता है तो इसका असर व्यक्ति के काम पर भी देखने को मिलता है.

मंगल की होरा में जन्म लेने वाले व्यक्ति का जीवन मंगल के प्रभावों से जुड़ा होता है. उसमें क्रोध, उत्साह, तेज, अभिमान, स्वाभिमान जैसे गुण होते हैं. मंगल की होरा व्यक्ति के जीवन को कई तरह से प्रभावित करती है.

मंगल की होरा का जीवन पर प्रभाव

मंगल की होरा को समझने से पहले मंगल के गुणों और उसके कारक तत्वों को समझने की अधिक आवश्यकता है. ज्योतिष शास्त्र में मंगल सबसे प्रमुख ग्रह है, मंगल स्वयं का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें पुरुष ऊर्जा है, यह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है. मंगल एक उग्र ग्रह है और इसमें साहस, सरकार, सेना, पद, नेतृत्व, सहने की क्षमता, रक्त, ओज, प्रसिद्धि, भरोसेमंदता, उदार रवैया, सम्मान, विश्वसनीयता जैसे गुण हैं, मंगल भाई-बहनों का प्रतीक है, सेनापति का पद प्राप्त करता है. यह शक्ति और अधिकार के लिए विशेष है.

अब मंगल एक ऐसा प्रमुख ग्रह है और यदि जन्म कुंडली में मंगल अच्छी स्थिति में है, तो यह बुद्धि, दृढ़ इच्छाशक्ति, चरित्र, जीवन शक्ति, अधिकार, साहस, आत्मविश्वास और नेतृत्व प्रदान करने वाला ग्रह बन जाता है. साथ ही, यदि मंगल बहुत मजबूत स्थिति में है, तो यह गर्व, अहंकार और अति आत्मविश्वास, आत्म-केंद्रित स्वभाव, सभी से आगे निकलने की प्रवृत्ति का परिणाम है. कमजोर स्थिति में मंगल व्यक्ति को कमजोर बना सकता है, आत्मविश्वास की कमी दे सकता है. कम आत्मसम्मान, विनम्रता की कमी, दूसरों पर हावी होने की इच्छा और ऊर्जा की कमी इस समय अधिक देखी जा सकती है. व्यक्तित्व पर मंगल की होरा का प्रभाव

मंगल होरा और विशेषताएं

मंगल की स्थिति जुनून, नेतृत्व, गतिशीलता, कौशल, संचार और प्रबंधकीय कौशल को दर्शाती है. व्यक्ति चीजों को सीखने में अच्छा होता है. वह टीम वर्क में बहुत अच्छा होता है. इन गुणों में से, मंगल की होरा में पैदा हुआ व्यक्ति इन चीजों से प्रभावित होता है. उसकी कार्य स्थिति इन चीजों से अधिक प्रभावित होती है. मंगल की होरा के प्रभाव से व्यक्ति अपने आस-पास की चीजों के प्रति जागरूक होता है लेकिन वह कभी-कभी उन पर लापरवाही से काम करता है. मंगल की होरा में होने से व्यक्ति एक स्वाभाविक कलाकार होता है. वह अपने आस-पास के लोगों को खुश और संतुष्ट रखने के लिए इन गुणों का उपयोग करने में आगे हो सकता है. मंगल की होरा में होने से व्यक्ति अपने पसंदीदा काम के प्रति समर्पित होता है.

वह बिना रुके आगे बढ़ने के लिए उत्सुक रहता है. किसी भी काम में खुद को गहराई से शामिल करने का उसका एक बड़ा गुण होता है. हर समय काम करना और बेहद व्यस्त रहना उसके लिए अच्छा होता है. वह कड़ी मेहनत से आगे बढ़ता है. मंगल की होरा का प्रभाव व्यक्ति को भावुक बनाता है. ये लोग जो भी काम करते हैं, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने की इच्छा रखते हैं. निष्ठा और ईमानदारी भी करियर की सबसे बड़ी ताकत है. मंगल होरा वाला व्यक्ति काम समेत हर काम में प्रचंड तीव्रता के साथ आगे बढ़ता है, ये लोग जो कर रहे हैं उस पर विश्वास करते हैं. इसी आत्मविश्वास के कारण इन्हें कोई नहीं रोक सकता. ये लोग विलासिता पसंद करते हैं. ये अधिक धन कमाने और जीवन को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत भी करते हैं.

मंगल होरा का करियर पर प्रभाव

मंगल होरा का प्रभाव व्यक्ति को धन कमाने में रुचि रखता है. ये लोग अच्छी जीवनशैली को लेकर भी काफी उत्साहित देखे जा सकते हैं. मंगल होरा का प्रभाव ऐसा होता है कि यह सेना या सरकार में शक्तिशाली पद प्रदान करता है. इस होरा में जन्म लेने वाला व्यक्ति अच्छे करियर की ओर उन्मुख दिखाई देता है. इन्हें अपने काम में बंधन पसंद नहीं आएगा. जब भी वे जहां भी काम करते हैं वहां खुश और संतुष्ट महसूस करने की उनकी इच्छा बाधित होती है, तो वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं. मंगल होरा के प्रभाव के कारण ये एक अच्छे व्यवसायी हो सकते हैं. इसके साथ ही इनमें मजबूत संचार और प्रबंधकीय कौशल भी होते हैं. ये कंपनी के अध्यक्ष, निदेशक या प्रबंधक के रूप में बेहतरीन काम करते हैं.

इनके काम में नेतृत्व और शक्तिशाली स्थिति दिखाई देती है. ये एक बेहतरीन आयोजक और विश्लेषक के रूप में भी काम कर सकते हैं, इसलिए ये नई परियोजनाओं के लिए आधार अच्छी तरह से तैयार करते हैं. इनका आत्म-दृष्टिकोण भी मजबूत होता है. ये औद्योगिक क्षेत्र में नौकरी के लिए उपयुक्त होते हैं. ये आकर्षण से भरपूर होते हैं और लोगों से बात करना पसंद करते हैं. ये एक अच्छे वक्ता और कूटनीतिज्ञ हो सकते हैं. आप सैनिक या सर्जन भी बन सकते हैं. आपका झुकाव इंजीनियरिंग, वास्तुकला, कानून या प्रशासनिक सेवाओं, कृषि, परिवहन और चिकित्सा की ओर हो सकता है.

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मिथुन लग्न तो जान लें कौन सी दशा है शुभ और कौन सी है अशुभ

मिथुन लग्न वालों के लिए नौ ग्रह अपनी दशा और अपना प्रभाव दिखाते हैं। मिथुन लग्न के लोगों को शुक्र, बुध और चंद्रमा की दशा में अच्छे और अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं, लेकिन मंगल और बृहस्पति की दशाएं बहुत सहायक नहीं होती हैं। इसी तरह शनि और सूर्य की दशाएं मध्यम तरीके से अपना प्रभाव दिखाती हैं।

मिथुन लग्न के लिए कुछ ग्रह शुभ हो सकते हैं, जबकि कुछ ग्रह बहुत बुरे हो सकते हैं। आमतौर पर इस लग्न के लोगों के लिए ग्रह इस प्रकार की भूमिका निभाते हैं। मिथुन लग्न पर बुध का प्रभाव होता है क्योंकि इस लग्न का स्वामी बुध होता है। अब बुध के मित्र और शत्रु ग्रहों की स्थिति के अलावा इस लग्न के लिए शुभ और अशुभ ग्रहों को जानने के बाद ही उनके दशा परिणामों को समझना संभव है। आइए देखें कि इस लग्न के लिए कौन से ग्रह शुभ और अशुभ ग्रह बनते हैं और वे अपनी दशा का प्रभाव कैसे दिखाते हैं।

शुक्र महादशा

मिथुन लग्न के लिए शुक्र महादशा को अनुकूल शुक्र दशा के रूप में देखा जाता है। इस दौरान व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं लेकिन यह व्यक्ति के आर्थिक पक्ष को भी प्रभावित करता है। इस समय जातक अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में सक्षम होता है। यह जीवन में नई चीजों की प्राप्ति के साथ-साथ नए रोमांच का समय होता है। जातक अपने आस-पास के लोगों से घुल-मिल जाता है और कई नए रिश्ते भी बनाता है। वह स्वभाव से अच्छा रह पाता है और समय कुछ हद तक भाग्यशाली साबित हो सकता है। अधिकांश लाभ दूसरों के प्रयासों से भी प्राप्त होते हैं। लेखन, अभिनय, नृत्य, संगीत से जुड़ने का अवसर मिलता है। वह इन जगहों पर अधिक शामिल हो पाता है। जीवन में सफलता का स्वाद चखने और लोकप्रिय होने का अवसर मिलता है।

बुध महादशा
मिथुन लग्न के बुध महादशा का प्रभाव शुभ होता है। बुध इस लग्न का स्वामी है। इसलिए यह अच्छा है। इस समय जातक समाज में असाधारण रूप से आगे बढ़ सकता है। जातक सुख-सुविधाओं, भोजन, स्वास्थ्य और रखरखाव पर अधिक धन खर्च करता है। वह सौंदर्य प्रसाधनों और कपड़ों पर बहुत अधिक खर्च कर सकता है। जातक इस समय अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत अधिक धन अर्जित करने में सक्षम होता है। यह दशा व्यवसाय में चमक लाती है। इस दशा के दौरान व्यक्ति का झुकाव कला और रचनात्मक चीजों की ओर भी होता है। जातक को अपने प्रियजनों से अधिक लगाव होता है। तकनीकी कार्यों में निखार आता है। किसी व्यवसाय में भागीदार के रूप में शामिल होने का भी मौका मिलता है। जातक को शिक्षण संस्थाओं और समाज कल्याण या धर्मार्थ ट्रस्ट से जुड़ने का अवसर मिलता है। कुछ लोगों को पाचन तंत्र और त्वचा रोगों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

शनि महादशा
शनि मिथुन लग्न के लिए भाग्येश होने के साथ अष्टम भी होता है. अब इस स्थिति शनि अपने फलों को मिश्रित रुप में देता है. शनि वैसे बुध का मित्र होता है ऎसे में यह दशा कुछ सकारात्मक भी होती है. शनि की दशा में व्यापार में तीव्र उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है. इस समय व्यक्ति परिणामों को धीमे रुप में पाता है. लोहा, इस्पात, धातु, कृषि व्यवसाय जैसी चीजों में जुड़ सकता है. व्यक्ति को विदेशी मुद्रा का लाभ भी इस समय पर मिल सकता है. ऋण चुकाने में व्यक्ति को लम्बा समय लग जाता है. कई बार दूसरों के कारण अपना हिस्सा खोना पड़ सकता है. कुछ नकली या जाली दस्तावेज के कारण भी परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है. सेहत के मामले में कोई ऎसी व्याधी इस समय यदि हो जाए तो वह लम्बी व्याधी बन सकती है. इस दशा के दौरान मजबूत मित्रों और रिश्तेदारों का सहयोग प्राप्त होगा. साझेदारों को धोखा देने के कारण बदनामी हो सकती है.

मंगल महादशा
मिथुन लग्न के लिए मंगल दशा काफी उतार-चढ़ाव ला सकती है. इस दशा के दौरान कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. कर्ज को लेकर परेशान रह सकते हैं या धन का अचानक से नुकसान झेलना पड़ सकता है, अपने उधार चुकाने के लिए संघर्ष अधिक रहता है. हीं चुका पाते हैं. समाज में अच्छा नाम होगा लेकिन कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है. इस समय विशेष रुप से साहस में वृद्धि होती है. व्यक्ति कठोर कार्यों को कर पाने में सक्षम होता है. सेहत की समस्याओं से भी दो-चार होना पड़ सकता है. इस दशा के दौरान कुछ दुष्प्रभाव को कम करने के लिए, दशा के दौरान कम से कम दशा शांति कर लेना अनुकूल रहता है.

चंद्रमा महादशा
मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा की दशा का प्रभाव न्यूट्रल रुप में अधिक देखा जाता है. यह दशा विदेश यात्रा धन लाभ के मौके देते हैं. इस समय के दोरान व्यक्ति सभाव से काफी चंचल भी रह सकता है. एक निर्णय पर टिक पाना मुश्किल होता है. इच्छाओं की अधिकता रहती है. परिवार के साथ सहयोग मिलता है. व्यक्ति इस समय पर ऎसे कार्यों में लाभ पाता है जो चंद्रमा से संबंधित होते हैं. इसके अलावा शिक्षण संस्थान, सिनेमा, सोशल मीडिया में व्यक्ति अधिक शामिल रह सकता है. इस दौरान व्यक्ति को जलीय यात्राओं को करने का मौका मिलता है. स्वास्थ्य को लेकर कफ एवं वात की समस्या अधिक प्रभावित कर सकती है.

सूर्य महादशा
सूर्य की दशा व्यक्ति के लिए साहस और परिश्रम का समय दिखाती है. इस समय व्यक्ति अपने रिश्तों एवं अपने कार्य को लेकर अधिक भागदौड़ करता है. भाई बंधुओं की ओर से जीवन अधिक प्रभावित होता है. अपने कार्य क्षेत्र में उसे सफलता मिलती है. व्यवसाय फलता-फूलता है. इस समय नकारात्मक रुप से उसक अक्रोध और जिद परेशानी अधिक रह सकती है. नेत्र दृष्टि पर भी असर पड़ सकता है. पारिवारिक जीवन में स्थिति साधारण रह सकती है. मित्र की ओर से कुछ धोखा मिल सकता है अथवा अधिकारी परेशानी बन सकते हैं. कानून के अनुसार बाधाएँ खड़ी हो सकती हैं.

गुरु महादशा
मिथुन लग्न के लिए गुरु की दशा अधिक सहयोगात्मक नहीं बन पाती है. इस समय के दौरान ज्ञान तो होता है लेकिन उसका उपयोग सही रुप से नहीं हो पाता है. श्वास संबंधी समस्या, दमा कुछ परेशानी पैदा कर सकता है. स्त्रियों से लाभ होता है लेकिन गुरु जनों से स्खत निर्देश मिलते हैं. धन लाभ होता है मातृपक्ष से सहयोग मिलता है. कुछ लोगों को पैतृक संपत्तियों को कम दरों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ज्ञान और बुद्धि होने के बावजूद शिक्षा में परिणाम मध्यम ही रह पाते हैं. खराब परिणामों के बावजूद व्यक्ति का आत्मविश्वास ऊंचा रहता है. कई स्थितियों में अपने नेतृत्व के कारण अच्छ अप्रदर्शन कर पाते हैं.

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सूर्य-शनि का समसप्तक योग : दुर्घटनाओं और असहमति का समय

सूर्य और शनि से बबने वाले योगों का असर कष्ट और परेशानी को अधिक देने वाला होता है. जब भी इन दो विरोधी ग्रहों का योग किसी भी तरह से हो रहा हो तब तब परिस्थितियां बेहद पेचीदा दिखाई देने लगती हैं. अब इसी में एक योग है सूर्य शनि समसप्तक योग. ज्योतिष में इस योग तब बनता है जब भी सूर्य शनि आमने सामने आते हैं. इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं की जब सूर्य किसी राशि में हो तब  उसके सामने वाली राशि में शनि विराजमान हो तो इस स्थिति को समसप्तक योग कहा जाता है. 

क्या होता है समसप्तक योग ? 

वैसे तो ग्रहों का विपरीत स्थिति में होना एक मजबूत योग माना जाता है. जब दो ग्रह विपरीत स्थिति में होते हैं तो समसप्तक योग बनता है. इसमें दोनों के मध्य का अंतर 180 डिग्री का कोण होता है.यह ज्योतिष अनुसार दूसरा सबसे शक्तिशाली दृष्टि प्रभाव होता है. यह योग जैसा दिखता है लेकिन अंतर यह है कि विरोध में होने की स्थिति अतिशयोक्ति का कारण बन जाती है क्योंकि यह युति योग की तरह एक साथ ग्रह की स्थिति नहीं होता है बल्कि उससे अलग काफी प्रबल होता है. इसलिए समसप्तक योग में शामिल ग्रहों के बीच एक गतिशील और उच्च ऊर्जा बनी रहती है, लेकिन अगर शुभता की कमी हो तब ऎसे में यह दो राशियों और ग्रहों के बीच तनाव, संघर्ष या टकराव का संकेत हो सकता है. अगर सही तरीके से समझा जाए तो इसे रचनात्मक और ऊर्जावान शक्ति स्रोत के रूप में इस्तेमाल कर सकता है.

सूर्य-शनि समसप्तक योग का महत्व

सूर्य और शनि जब बिल्कुल परस्पर आमने सामने होते हैं तब इस योग का निर्माण होता है. ज्योतिष शास्त्र में ये दोनों परस्पर विरोधी ग्रह हैं और जब समसप्तक योग बनाते हैं तो चिंताओं को बढ़ा देते हैं.  यह योग धन, स्वास्थ्य और महत्वपूर्ण ऊर्जा की हानि के रूप में परिणाम दे सकता है. यहां कोई शुभ ग्रहों की उपस्थिति कुछ हद तक बुरे प्रभावों को कम कर सकती है लेकिन अगर ऎसा नहीं है तब तनाव अधिक रहता है. ज्योतिष में सूर्य और शनि का समसप्तक योग अर्थव्यवस्था और उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. यहां तक ​​कि यात्रा और आतिथ्य उद्योग भी सूर्य-शनि समसप्तक योग से प्रभावित होते हैं. 

समसप्तक योग का सकारात्मक प्रभाव सामाजिक कल्याण और धर्मार्थ संगठनों पर पड़ता है. इस योग का पिता पर बुरा प्रभाव पड़ता है, खासकर उनके स्वास्थ्य पर. लेकिन यह तब और भी बुरा हो जाता है जब यह योग नवम या दशम भाव में बनता है. यह रिश्तों के बीच दरार पैदा करता है. व्यक्ति में अभिव्यक्ति और भावनाओं की कमी होती है. ऐसे  योग वाले व्यक्ति मेहनती होते हैं, लेकिन वास्तविक परिणाम तब मिलते हैं जब जातक 30 वर्ष की आयु पार कर जाता है.  अच्छे प्रशासक और अनुशासित माने जाते हैं.  

सूर्य और शनि का समसप्तक योग प्रभाव  

सूर्य और शनि का यह योग विशेष असर दिखाता है. ऐसा माना जाता है कि जब भी सूर्य और शनि एक दूसरे के इतने विरोध में होते हैं, तो वे हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में गहरा बदलाव और परिवर्तन लाते हैं. सूर्य-शनि के यह योग साल में एक बार बनता है और एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना का समय होता है. यह योग तब होती है जब सूर्य और शनि राशि चक्र केांअमने सामने होते हैं यह एक दुर्लभ घटना है, जब सूर्य और शनि आमने सामने होते हैं. वैदिक ज्योतिष में सूर्य और शनि समसप्तक योग दिलचस्प लेकिन अक्सर खराब भयावह घटनाक्रम को देने वाला होता है. 

सूर्य शनि का यह योग सीमाओं को निर्धारित करने, ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता देने, लक्ष्यों पर विचार करने, प्रतिबद्धताओं का मूल्यांकन करने और जीवन में लक्ष्यों को सुव्यवस्थित करने के लिए आवश्यक समय होता है. यह समय किसी व्यक्ति के लिए सीमाओं का सामना करने, चुनौतियों का सामना करने और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी लेने का अवसर होता है. इस प्रकार, यह घटना सम्मान और चुनौती दोनों हो सकती है, क्योंकि यह हमें मूल्यवान सबक और विकास के अवसर प्रदान करता है.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, सूर्य और शनि को कट्टर दुश्मन माना जाता है. सूर्य को पिता माना जाता है जबकि शनि को पुत्र माना जाता है. सूर्य अधिकार का प्रतीक है जबकि उसी समय, शनि वास्तविकता, अनुशासन और जीवन की सीमाओं को दर्शाता है और कर्म का प्रतिनिधित्व करता है. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की जन्म कुंडली में यह योग होता है, वे अपनी उम्र से बहुत पहले परिपक्व हो जाते हैं.

ज्योतिष के अनुसार, सूर्य किसी व्यक्ति  की पहचान और जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. अहंकार, रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति का प्रतीक है. इस बीच, शनि अनुशासन, संरचना और जिम्मेदारी का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए इसे राशि चक्र का कार्यपालक कहा जाता है. जब इन दो ग्रहों की ऊर्जा आमने सामने से मिलती है, तो वे व्यक्तिगत विकास और परिवर्तन का एक अलग रंग दिखाती है. 

कुंडली में सूर्य शनि समसप्तक योग 

सूर्य शनि का यह समसप्तक योग गोचर एवं जन्म कुंडली में निर्मित होने पर अपने कई तरह के परिणाम देता है.  इस योग में शनि जो करता है वह यह है कि यह पिता के पक्ष को दूर कर देता है. यह समय पिता द्वारा प्रदान किया जाने वाला वह समर्थन छीन लेता है और व्यक्ति को जीवन के शुरुआती दौर में खुद संघर्ष करने देता है. ऐसा जरूरी नहीं है कि पिता के साथ कड़वे संबंधों के कारण ऐसा हुआ हो, यह पिता के स्वास्थ्य की चिंता, असमय मृत्यु जैसा भी हो सकता है, या फिर संतान ने ऐसा नया काम चुन लिया हो जिसमें पिता को भूमिका या कोई विशेषज्ञता नहीं है और वह संतान की मदद नहीं कर सकता. 

इस समसप्तक योग में सूर्य का अहंकार और दृढ़ संकल्प इतना बड़ा है कि यह जातक को परिस्थितियों के सामने आत्मसमर्पण करने की अनुमति नहीं देता है और उसे अपनी स्थिति को ऊपर उठाने और दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए बार-बार कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर करता है. तो मूल रूप से यह व्यक्ति को कम उम्र में बहुत परिपक्व और मेहनती बनाता है और किसी के समर्थन के बिना अकेले समस्याओं से निपटने की प्रवृत्ति देता है और यही कारण है कि यह सफलता में देरी भी करता है. और 30 की उम्र के बाद शनि व्यक्ति से अपनी पकड़ ढीली कर देता है और व्यक्ति को जीवन के शुरुआती दौर में सीखे गए कौशल का उपयोग करने देता है. 

सूर्य शनि समसप्तक योग में एक बात जो हमेशा सामने आती है वह है पिता के साथ संबंध को लेकर यह स्थिति  पिता के साथ संबंधों में कड़वाहट देता है लेकिन बहुत स्पष्ट रूप से पिता के साथ संबंध तभी खराब होंगे जब सूर्य त्रिक भाव में हो या राह, केतु, मंगल द्वारा पीड़ित हो. पर इसके अलावा अगर पिता के साथ संबंध अच्छे भी हों तो एक बात तो यह है कि पिता के साथ रिश्ते में दूरी किसी अन्य रुप में देखने को मिल जाएगी. जरूरी नहीं कि यह कटु संबंधों के कारण हो, बल्कि पिता की व्यावसायिक मजबूरियों के कारण उसे परिवार से दूर रहना पड़ता है या हो सकता है कि व्यक्ति किसी दूसरे स्थान में काम करता हो और पिता किसी दूसरे स्थान में रहता हो.

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Signature Astrology: सिग्‍नेचर हस्ताक्षर ज्योतिष खोल सकता है आपकी पर्सनालिटी के राज

ज्योतिष की विभिन्न शाखाओं में सिग्‍नेचर ज्योतिष जिसे हस्ताक्षर ज्योतिष के नाम से भी जाना जाता है, आपके जीवन पर असर दालता है. आपके व्यक्तित्व को समझने में मदद करता है. हस्ताक्षर ज्योतिष काफी गहन विश्लेषण पर आधारित है. हस्ताक्षर हमारी राशि से जुड़ते हैं और, इससे लोगों को बेहतर तरीके से जानने और समझने में मदद मिलती है. नाम के आधार पर आपके हस्ताक्षर में जो भी उत्तार-चढ़ाव होते हैं या जिस भी तरीके से लोग अपने हस्ताक्षर करते हैं वह व्यक्ति के व्यवहार एवं उसके भविष्य को बदल देने वाली संभावनाओं का भी पैमाना बनता है. 

सिग्‍नेचर ज्योतिष बहुत कुछ बताता है. यह स्थितियों को ठीक से समझने में मदद करता है। हस्ताक्षर ज्योतिष लोगों के व्यक्तित्व, ताकत और कमजोरियों को निर्धारित करने और यह जानने के लिए एक अच्छा साधन भी है कि कोई क्या पसंद करता है या उसे क्या नापसंद है। इस के अलावा सिग्‍नेचर का प्रभाव भविष्य से मिलने वाले अच्छे और खराब प्रभावों को भी बताता है. आइए ज्योतिष में हस्ताक्षर विश्लेषण के महत्व के बारे में अधिक विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं. 

हस्ताक्षर और उनके विभिन्न प्रकार

हस्ताक्षर कई तरह के होते हैं. कुछ आसानी से पढ़े जा सकते हैं तो कुछ इतने गोल मोल होते हैं की समझ से परे दिखाई देते हैं. कुछ लोग बड़े साइन करना पसंद करते हैं तो कुछ को छोटे से अल्प साइन ही अच्छे लगते हैं. कुछ लोग पूरा नाम लिखर सिग्नेचर करते हैं तो कुछ आधे नाम से ही इसे करते हैं. ऎसे में इन सभी का कुछ न कुछ अर्थ अवश्य होता है. इन अलग अलग आकृतियों में बने सिग्नेचर का महत्व बेहद खास होता है. आइए विभिन्न प्रकार के चिह्नों को देखते हैं और सामान्य तौर पर आपका हस्ताक्षर आपके बारे में क्या कहता है.

बड़े और बोल्ड हस्ताक्षर

बड़े और आत्मविश्वास से भरे हस्ताक्षर व्यक्ति के महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व को दर्शाते हैं – बाहर जाने वाले लोग जो ध्यान का केंद्र बनना पसंद करते हैं. इसके अलावा, यह सफल होने की इच्छा के कारण काम में लगे रहने वाले व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है.

छोटे हस्ताक्षर

साफ और स्वच्छ हस्ताक्षर जो एक विनम्र स्वभाव को दर्शाते हैं और यह भी कि आप एक अंतर्मुखी होना पसंद करते हैं. करीबी रिश्तों को प्राथमिकता देना इन्हें पसंद होता है. इसके अलावा, आपके पास जो आंतरिक आत्मविश्वास है उसे दिखाने के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता है.

अस्पष्ट हस्ताक्षर

अस्पष्ट ज्योतिषीय हस्ताक्षर व्यक्ति की जल्दी से फैसला लेने के लिए उकसाते हैं, रचनात्मकता हो सकते हैं लेकि दिशा बोध का ज्ञान कम होता है इसके अलावा, इसमें विवरणों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति होती है. कुछ मामलों में गुप्त एवं गोपनीयता को प्राथमिकता देते हैं. 

हस्ताक्षर में बिंदु या लाइन

हस्ताक्षर में बिंदु जोड़ना गंभीरता और आत्म-जागरूकता का प्रतिनिधित्व करता है.यह आत्मविश्वास और दूसरों द्वारा ध्यान दिए जाने की इच्छा को दर्शाता है. यह कभी-कभी भाग्य भी लाता है.

हस्ताक्षर में लाइन या रेखा को जोड़ना मजबूत छवि और मान्यता की आवश्यकता को दिखाता है. सभी से महत्व की मांग को दर्शाता है. सफल और सम्मानित होने की इच्छा को दर्शाता है. साथ ही, यह उच्च आत्मसम्मान को दर्शाता है.

ज्योतिषीय हस्ताक्षर और राशि प्रभाव 

ज्योतिष में हस्ताक्षर का विश्लेषण आत्मविश्वास, संवेदनशीलता और महत्वाकांक्षा जैसे गुणों को भी दर्शाता है. इससे करियर के चुनाव करने, व्यक्तिगत विकास में सहायता करने, रिश्तों में गहरे संबंध बनाने और अपने भीतर के संस्करण को जानने में मदद मिलती है. प्रत्येक राशि चार तत्वों अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल में से एक और तीन समूहों चर स्थिर द्विस्वभाव में से एक से संबंधित है.  

इन सभी के गुण धर्म का हस्ताक्षर पर भी प्रभाव होता है. जन्म कुंडली में इन तत्वों का प्रभाव देखने को मिलता. जब हस्ताक्षर राशि ज्योतिष के बारे में बात करते हैं तो प्रत्येक राशि के लोगों के हस्ताक्षर से उनके जीवन को समझने में मदद मिलती है.

मेष राशि  हस्ताक्षर 

 मेष राशि के लिए हस्ताक्षर विश्लेषण उनके साहस और स्वतंत्र भावना को दर्शाता है. इसलिए, यह आपके आधिकारिक स्वभाव को भी दर्शाता है और आप उन चीजों को कैसे संभालते हैं जिनके लिए आप जिम्मेदार हैं. 

वृषभ राशि  हस्ताक्षर

वृषभ राशि के जातकों का ज्योतिषीय हस्ताक्षर आपकी अत्यधिक वफ़ादारी को दर्शाता है. इसके अलावा, यह उन लोगों के दयालु स्वभाव को भी दर्शाता है जिनकी आप परवाह करते हैं. यह आपके कई बार जिद्दीपन को भी दर्शाता है.

मिथुन राशि  हस्ताक्षर

मिथुन राशि के जातकों का ज्योतिषीय हस्ताक्षर लोगों के प्रति उनके प्यार को दर्शाता है और आप कैसे चाहते हैं कि वे सभी खुश और एक साथ रहें. दूसरी ओर, आपको जानकारी सुनना और साझा करना भी पसंद है.

कर्क राशि  हस्ताक्षर

कर्क राशि के जातकों के हस्ताक्षर उनके देखभाल करने वाले स्वभाव को दर्शाते हैं. यह यह भी दर्शाता है कि आप अपनी ज़रूरतों से पहले दूसरों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देते हैं.

सिंह राशि  हस्ताक्षर  

सिंह राशि के जातकों के लिए हस्ताक्षर विश्लेषण से पता चलता है कि आपका व्यक्तित्व बहुत बड़ा है. इतना ही नहीं, बल्कि आपके पास कितनी रचनात्मकता है. नेता बनना कुछ ऐसा है जो आपको खुश करता है.

कन्या राशि  हस्ताक्षर

कन्या राशि के लोगों के हस्ताक्षर दर्शाते हैं कि कन्या राशि के लोगों का दिमाग बहुत ही व्यावहारिक होता है, जो उन्हें किसी भी परिस्थिति को तार्किक रूप से समझने में मदद करता है.

तुला राशि  हस्ताक्षर

तुला राशि के लोगों के हस्ताक्षर में बीच का रास्ता निकालने की क्षमता होती है, जहाँ वे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करने में अच्छे होते हैं.

वृश्चिक राशि  हस्ताक्षर

वृश्चिक राशि हस्ताक्षर से पता चलता है कि समर्पित होते हैं. कड़ी मेहनत करते हैं. ऐसे व्यक्ति होते हैं जो दूसरों की सफलता के लिए भी प्रार्थना करते हैं.

धनु राशि  हस्ताक्षर

धनु राशि के लोगों के हस्ताक्षर विश्लेषण उनके बारे में बहुत कुछ कहते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका दिमाग हमेशा विकसित और विकसित होता रहता है.

मकर राशि  हस्ताक्षर

इस राशि के लिए मकर राशि के हस्ताक्षर ज्योतिष में बताया गया है कि वे चीजों को बनाए रखने और आंतरिक शक्ति को प्रबल रखते हैं.

कुंभ राशि  हस्ताक्षर

स्वतंत्र भावना और उनके अंदर छिपे बच्चे के व्यक्तित्व को दर्शाता है. यह उन्हें अपने समूहों में खास बनाता है.

मीन राशि  हस्ताक्षर

मीन राशि के हस्ताक्षर अधिक सहज बनाते हैं. आत्म-जागरूकता होती है. इससे उन्हें किसी भी चीज़ से ज़्यादा अपनी आंतरिक भावना पर भरोसा करने में मदद मिलती है.

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मांगलिक दोष के बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए कुंभ विवाह कितना कारगर

हम सभी ने  प्रसिद्ध मांगलिक दोष के बारे में सुना है. ज्योतिष भविष्यवाणियों में जब भी मंगल दोष की बात आती है तो इसको सुनकर एक तरह का डर भी देखने को अधिक मिलता है. लोग मंगल दोष से सबसे अधिक डरते हैं. लेकिन क्या सच में यह इतने डरने की बात है? क्योंकि मंगल दोष का प्रभाव उसका असर आखिर कैसे शांत हो सकता है और मंगल दोष कैसे शुभ प्रभाव दे सकता है, इन बातों को जान लेने पर मंगल दोष उतना परेशान नहीं करता है.

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मंगल दोष के प्रभावों पर विचार करते हुए इसे शांत करने के कुछ उपायों पर भी नज़र डालेंगे. तो, चलिए शुरू करते हैं क्या है मंगल दोष और क्या कुंभ या घट विवाह जैसी बातें इसे शांत कर पाती हैं. 

मांगलिक योग या मांगलिक दोष  

सबसे पहले सम लेना जरूरी है की ये योग है या दोष. जन्म कुंडली में मंगल की स्थिति को कुछ खास भावों से जोड़ा गया है. ज्योतिशः मांगलिक दोष के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है. यह किसी व्यक्ति के जीवन को कैसे प्रभावित करता है.  मांगलिक दोष उन लोगों के लिए है जो मंगल के प्रभाव में पैदा हुए हैं. इसका मतलब है कि उनकी कुंडली में मंगल ग्रह अधिक स्वामित्व रखता है और प्रमुख ग्रह है.  जब जन्म के समय किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ग्रह 1, 4, 7, 8 या 12वें भाव में होता है, तो उस व्यक्ति को मांगलिक दोष होता है.

मंगल इन भावों में जहां भी बैठे वह सातवें भाव ओर आठवें भाव पर अपना असर डालता है.किसी व्यक्ति की कुंडली में सातवां भाव व्यक्ति के जीवन के विवाह और जीवनसाथी को नियंत्रित करता है. मंगल सातवें भाव में होता है, तो यह खराब होता है.  इस प्रकार, इस भाव में मंगल की स्थिति नकारात्मक और कठोर परिणाम देती है. कभी-कभी, साथी का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है. आम तौर पर, मांगलिक दोष दो प्रकार के होते हैं. इनमें अंशिक दोष और पूर्ण मांगलिक दोष शामिल हैं. आइए इन मांगलिक दोषों पर विस्तार से नज़र डालें.

आंशिक मांगलिक

यह दोष चंद्रमा के प्रभाव से बनता है जो बहुत अधिक प्रभावि नहीं होता है. इसके अलावा आंशिक मांगलिक का प्रभाव तब भी निर्मित होता है जब मंगल कि स्थिति जन्म कुंडली में शांतो हो रही है. कुंडली में कुछ विशेष योगों के कारण मंगल आंशिक मांगलिक का फल देता है. पूजा या कुछ अनुष्ठान करके इसका समाधान किया जा सकता है. आंशिक मांगलिक दोष के कुछ उदाहरण हैं: विवाह समारोह के बाद, सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं. दूल्हा और दुल्हन के बीच छोटे-मोटे विवाद होते हैं. विवाहित महिलाओं को संतान होने में कठिनाई होती है. परिवार में तनाव होता है.

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पूर्ण मांगलिक दोष

पूर्ण मांगलिक दोष यह काफी हानिकारक माना  है और विवाहित जीवन पर कुछ घातक प्रभाव डालता है. अगर मांगलिक दोष वाली लड़की की शादी किसी ऐसे लड़के से हो जो मांगलिक नहीं है, तो लड़की के मांगलिक दोष का लड़के के जीवन पर असर पड़ता है. इस स्थिति में मांगलिक की माम्गलिक से शादी उचित है. इसके अलावा कुंभ विवाह का उपाय इसमें विशेष होता है. शास्त्रों में इसे प्रमाणिक माना गया है.

मंगल दोष का प्रबल होना शादी के बाद गंभीर रिश्ते की समस्याएँ दे सकता हे, जीवन साथी की अचानक और अप्रत्याशित मृत्यु का कारण बन सकता है, आपसी विवाद को अधिक देता है, अलगाव का कष्ट देता है. कोई बड़ी दुर्घटना या बीमारी.

मंगलिक दोष के उपाय क्या कुंभ पूजा से मिलता है लाभ ? 

मंगल दोष के नकारात्मक और बुरे प्रभावों पर प्रकाश डाला है, अब इसके लिए कुछ उपायों पर नज़र डालते हैं.  इन उपायों को वैदिक रुप से बेहतरीन माना गया है. अगर आपको मांगलिक दोष है, तो मंगल दोष वाले व्यक्ति से शादी करें. इससे मांगलिक दोष के प्रभाव को बेअसर करने में मदद मिलती है. मंगल दोष के लिए विशेष पूजा करने से भी मदद मिलती है.

इनमें मंगल कवचम पूजा और मंगल उपासना शामिल हो सकती है. उपयुक्त रत्न पहनने से भी इस दोष के प्रभाव कम होते हैं. अगर आपकी कुंडली में मंगल दोष है, तो आप अपने घर में मंगल यंत्र भी रख सकते हैं. इसके अलावा, आप यंत्र को पहन सकते हैं. मंगलवार का व्रत रखना भी इस दोष के लिए लाभकारी उपाय है.  

कुंभ विवाह: मांगलिक दोष को दूर करने का एक महत्वपूर्ण उपाय

मांगलिक दोष कुंडली में एक संरचना है जो विवाह समारोह के बाद विवाहित जोड़े के जीवन को प्रभावित करती है. मंगल दोष एक ऐसा दोष है जो विवाह के बाद अपने वास्तविक रंगों को दर्शाता है. कुंभ विवाह निश्चित रूप से एक साधारण विवाह की तरह है. अगर किसी महिला में मांगलिक दोष है, तो उसे यह अनुष्ठान पूरा करना होगा. सब कुछ एक असली शादी की तरह होता है. माता-पिता “कन्या दान” करते हैं और मिट्टी के बर्तन के साथ “फेरे” लेते हैं. पंडित मंत्र जाप करते हुए विवाह पूरी रस्म संपन्न करते हैं.

बाद में बर्तन को किसी नदी या तालाब में डुबो दिया जाता है. एक बार अनुष्ठान पूरा हो जाने के बाद, मांगलिक दोष से मुक्त होते है, और विवाह कर सकती है. यह पूजा सुनिश्चित करती है कि विवाहित जोड़े को शादी के बाद गंभीर समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा. इसका यह भी अर्थ है कि लड़की का होने वाला पति अब उसके मंगल दोष से मुक्त हो गया है. 

मांगलिक योग के लाभ 

मंगल का असर व्यक्ति को क्रोधी ओर जोश से भरने वाला होता है. इसके अलावा, उनका व्यक्तित्व मजबूत होता है. दुनिया से अपनी दूरी बनाए रखने की कोशिश करती हैं. इसके साथ ही, एक मांगलिक लड़की का करियर बहुत अच्छा होगा. जहां मांगलिक योग की मुश्किलें जीवन को काफी प्रभावित करती हैं, लेकिन इसके दूसरी ओर मंगल दोष के कुछ लाभ भी हैं.

इनमें एक सफल करियर के साथ-साथ एक शक्तिशाली व्यक्तित्व भी शामिल है. इसके अलावा, व्यक्ति स्वभाव से बहुत अनुशासित और ईमानदार भी होता है. आध्यात्मिक रूप से इच्छुक होंगे. मंगल दोष व्यक्ति को साहस और ऊर्जाओं से भर देने वाला होता है. यही ऊर्जा जीवन को रंग देती है और विकास के मार्ग को दिखाती है. 

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कुंडली के कौन से भाव और ग्रह बनाते हैं कर्ज की संभावना

आर्थिक संकट जब कर्ज के रुप में आता है तो बहुत बड़ी समस्या होता है. जीवन में होने वाले घाटे और कर्ज के लिए कुंडली के कुछ भाव और ग्रह विशेष रुप से जिम्मेदार होते हैं. कर्ज की स्थिति किसी भी रुप में बन सकती है. तंगी के पीछे कोई भी कारण हो सकता है. कुछ लोगों को यह जन्म से ही होता है तो कुछ के साथ यह एक खास समय पर होने वाली गंभीर घटना भी होती है. 

कुंडली में कर्ज के योगों से मुक्ति के लिए ज्योतिष परामर्श : – https://astrobix.com/discuss/index

जीवन में आर्थिक स्थिति को लेकर हर कोई किसी न किसी तरह से प्रयास करता नजर आता है. आर्थिक उन्नति की चाहत हर किसी के अंदर मौजूद होती है. लेकिन हर किसी को एक जैसी स्थिति महसूस नहीं होती. कहीं न कहीं पैसों की कमी इतनी ज्यादा रहती है कि व्यक्ति कर्ज लेने पर मजबूर हो जाता है. 

वहीं दूसरी ओर अगर वह कर्ज लेता है तो भी वह उसे चुकाने में सक्षम होता है. लेकिन कुछ मामलों में कर्ज से छुटकारा पाना नामुमकिन होता है. कभी-कभी यह स्थिति पीढ़ियों पर भी अपना प्रभाव छोड़ने वाली होती है.

कुंडली में पाप ग्रहों का प्रभाव देता है कर्ज की परेशानी 

बहुत से लोग जन्म कुंडली के पाप ग्रहों के प्रभाव से कर्ज को पाते हैं. वहीं शुभ ग्रहों के द्वारा सकारात्मक सुख पाते हैं कर्ज से मुक्ति मिलती है. मंगल, शनि, राहु केतु जैसे नकारात्मक ग्रहों के कारण निराशा हाथ लगती है. इसके अलावा कुंडली में बनने वाले योग भी आपके भविष्य का परिणाम होते हैं. 

कुंडली में शुभ योग धन लाभ के संकेत देते हैं 

नकारात्मक ग्रह वर्तमान जीवन में समस्या देते हैं लेकिन सुधार के अवसर भी देते हैं जो पहले नहीं हो सका. कुंडली के दूसरे, नौवें, दसवें और ग्यारहवें घर में कुछ अच्छे ग्रहों की युति आर्थिक लाभ देती है. सबसे पहले ग्रह और भाव पर ध्यान देना जरूरी है, साथ ही धन हानि संबंधी योगों पर भी नजर रखना जरूरी है. कुंडली में बनने वाले धन लक्ष्मी योग से व्यक्ति को आर्थिक उन्नति भी मिलती है.

कुंडली में कर्ज के भाव और उनका फल 

जिस घर पर कर्ज का पता चलता है, वह घर धन प्राप्ति में बाधा बनता है. धन भाव का छठे भाव या बारहवें भाव से संबंध भी आर्थिक स्थिति को कमजोर करता है. कुंडली का दूसरा भाव व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और धन संचय करने की क्षमता को दर्शाता है. इससे पता चलता है कि जीवन में कितना धन एकत्रित होगा. 

लग्न कुंडली का वह स्थान है जो व्यक्ति की योग्यता से धन अर्जन को दर्शाता है. इसके अलावा धन और लाभ की स्थिति भी धन को दर्शाती है. इस प्रकार यदि किसी कुंडली में द्वितीय भाव, द्वितीयेश और कारक बृहस्पति मजबूत स्थिति में हों तो यह भाव जातक को आर्थिक समृद्धि प्रदान करता है. लेकिन यदि यह भाव कमजोर हो तो स्वाभाविक रूप से व्यक्ति को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है.

कर्ज का भाव और उससे मुक्ति के उपाय

कुंडली में छठा भाव कर्ज की स्थिति के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार होता है. इस भाव को ऋण का स्थान भी कहा जाता है. 

यह कर्ज व्यक्ति पर किसी भी रुप में हो सकता है. कई बार यह ऋण पैतृक रुप से दिखाई देता है तो कई बार इस कर्ज की मुक्ति भी संभव हो सकती है. 

कर्ज किस रुप में हमें प्राप्त होता है उसके लिए जरूरी है की यह देखा जाए कि इस भाव से किन ग्रहों का संबंध बनता है और इस भाव का स्वामी किन किन स्थानों को प्रभावित कर रहा होता है. 

कुंडली में मौजूद ऋण का स्थान व्यक्ति के कर्ज की स्थिति को किस रुप में समाप्त कर पाएगा या नहीं यह बात हमें कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति के द्वारा एवं अन्य प्रकार के योगों से देखने को मिलती है. 

कुंडली में मौजूद द्वादश भाव की स्थिति भी कर्ज के प्रभाव को दिखाती है. जीवन में मौजूद कई तरह के असर इस भाव के द्वारा संचालित होते हैं. यदि कुंडली में कर्ज की स्थिति को देखना समझना है तो उसके लिए इन भाव स्थानों का विश्लेषण करना भी बेहद जरूरी होता है. 

कर्ज से मुक्ति के उपायों के लिए मंगल के ऋणमोचन स्त्रोत का जाप उत्तम माना गया है.

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वृश्चिक राशि में सूर्य का गोचर , इन राशियों के लिए रहेगा परेशानी का समय

सूर्य का नवंबर माह मध्य में वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है. सूर्य तुला राशि से निकल कर नवंबर मध्य में वृश्चिक राशि में चले जाते हैं. सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में ग्रह प्रवेश करता है तो इसके काफी प्रभाव उस दौरान देखने को मिलते हैं. आइये जान लेते हैं सूर्य जब वृश्चिक में जाता है तो कैसे राशियों को प्रभावित करता है.

सूर्य 16 नवंबर 2025 को वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे ओर फिर एक माह इसी राशि में गोचर करेगा. सूर्य के वृश्चिक राशि का विशेष प्रभाव तुला राशि, वृश्चिक राशि, वृष राशि और सिंह राशि पर पड़ता है. इसका कारण यह है कि इस समय सूर्य तुला राशि से निकल जाते हैं, वृश्चिक में आते हैं वृश्चिक में बैठ कर वृष राशि को देखते हैं और सिंह राशि के स्वामी होते हैं. अब इस तरह से इन कुछ को सबसे अधिक बदलाव प्रभावित करते हैं. इसके पश्चात नक्षत्र प्रभाव और अन्य ग्रहों का युति योग सभी को प्रभावित करता है.

वृश्चिक राशि में सूर्य का गोचर 2025: डेट और टाइम

सूर्य 16 नवंबर 2025 को वृश्चिक राशि में गोचर करेगा.
सूर्य का वृश्चिक राशि प्रवेश समय – 13:36 सुबह
सूर्य का वृश्चिक संक्रांति समय भी यही होगा.

सूर्य गोचर का विभिन्न राशियों पर प्रभाव परिवार, करियर और रोमांस, शिक्षा, आर्थिक स्थिति इत्यादि बातों पर रहेगा. सूर्य को अन्य नौ ग्रहों में से एक मुख्य ग्रह माना जाता है. सूर्य एक बहुत मजबूत ग्रह है, जो सभी मनुष्यों को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है. यह बहुत शक्तिशाली है और साहस, आत्मविश्वास, इच्छा शक्ति, अच्छी दृष्टि, मजबूत दिल का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन केवल तभी जब सूर्य की स्थिति अनुकूल भाव में हो. इस बार सूर्य वृश्चिक राशि में गोचर करेगा और इसी महीने सूर्य ग्रह 16 नवंबर 2025 को तुला राशि से वृश्चिक राशि में गोचर करेगा.

वृश्चिक राशि में सूर्य का गोचर 2025: सभी राशियों पर इसका प्रभाव

मेष राशि
मेष राशि वालों के आठवें भाव में सूर्य की स्थिति आपके करियर, व्यवसाय या रोमांटिक जीवन में कुछ कठिनाइयाँ दे सकती है. अप्रत्याशित वित्तीय लाभ और आपको पैतृक संपत्ति मिल सकती है. इस दौरान आप बेचैन महसूस कर सकते हैं और घर में शांति से रहना मुश्किल हो सकता है.

वृष राशि
सूर्य वृषभ राशि के सातवें भाव में प्रवेश करेगा. यह साझेदारी और व्यावसायिक प्रयासों में सफलता के साथ-साथ एक पूर्ण रोमांटिक जीवन की ओर ले जा सकता है. दूसरी ओर, आपके जीवनसाथी या साथी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं. इस दौरान आपको वह मिल सकता है जो आप चाहते हैं और आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं.

मिथुन राशि
सूर्य के मिथुन राशि छठे भाव में गोचर के कारण आप अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. लोग शैक्षणिक रूप से असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, और आप अपने पेशेवर जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं. खेल से जुड़े लोग धनवान और प्रसिद्ध हो सकते हैं, और कुछ मिथुन राशि के लोगों को सरकारी नौकरी मिल सकती है.

कर्क राशि
सूर्य कर्क राशि वालों के लिए सूर्य पंचम भाव में प्रवेश करेगा, कर्क राशि के लोगों को फिर से प्यार हो सकता है. जिन लोगों का ब्रेकअप हो चुका है, उनमें से कुछ लोग अपने जीवनसाथी के साथ सुलह कर सकते हैं. गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं. आपकी इच्छाएँ पूरी होंगी और भाग्य आपका साथ देगा. इस दौरान, आप कुल मिलाकर और विभिन्न स्रोतों से अधिक धन कमा सकते हैं.

सिंह राशि
सिंह राशि के लिए जब सूर्य, चौथे भाव में होंगे, तो सिंह राशि के जातक घर में सद्भाव और शांति का अनुभव कर सकते हैं. कुछ टकराव हो सकते हैं, लेकिन अंत में, सब कुछ आपके व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करेगा. छात्र परीक्षाओं में असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.

कन्या राशि
कन्या राशि के लिए सूर्य तीसरे भाव में होगा, कन्या राशि के लोगों को रोजगार या प्रयासों से लाभ हो सकता है और अधिकारियों या अपने वरिष्ठों से अनुग्रह प्राप्त हो सकता है. बैंकिंग, मीडिया, संचार, शिक्षण और खेल उद्योग के पेशेवर इस अवधि के दौरान अत्यधिक सफल हो सकते हैं. इस समय आप अपनी मेहनत और लगन के कारण अच्छा जीवनयापन कर सकते हैं.

तुला राशि
तुला राशि के लिए सूर्य का दूसरे भाव में होगा. घर में शांति और सौहार्द नहीं लाएगा, लेकिन नवविवाहितों के लिए यह एक सुखद समय होगा. आपके पास विभिन्न स्रोतों से धन आ सकता है, और आपके व्यवसाय और परिवार की संपत्ति में वृद्धि हो सकती है. यह समय सीमा समुदाय में प्रतिष्ठा, शक्ति और सम्मान ला सकती है.

वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के लोगों के लिए सूर्य लग्न में होगा. सूर्य के पहले भाव में होने के कारण करियर और व्यवसाय में सफलता मिल सकती है, और उनकी लोकप्रियता में वृद्धि हो सकती है. वृश्चिक राशि के लोगों को सरकारी नौकरी मिल सकती है या अधिकार वाले पद मिल सकते हैं. उन्हें मनोरंजन और खेल उद्योग में काम मिल सकता है.

धनु राशि
धनु राशि के लिए सूर्य का गोचर द्वादश भाव में होगा. कुछ लोगों को सूर्य के बारहवें भाव में होने के कारण त्वचा, बाल या आँखों से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं. आप लंबी यात्राओं पर जा सकते हैं. भले ही आपके खर्चे अधिक होंगे, लेकिन धन की कमी नहीं होगी.

मकर राशि
सूर्य के ग्यारहवें भाव में होने से मकर राशि के लोगों को सौभाग्य और रिश्तों, साझेदारी, गेमिंग, दोस्तों और भाई-बहनों से लाभ मिल सकता है. इस दौरान आपकी आय में वृद्धि हो सकती है और आपको कई स्रोतों से आय प्राप्त हो सकती है. आपके व्यावसायिक उपक्रमों से वित्तीय सफलता मिल सकती है, और आपके आराम और विलासिता का स्तर बढ़ सकता है.

कुंभ राशि
दसवें घर में सूर्य की स्थिति कुंभ राशि वालों को उनके कार्यक्षेत्र में सफलता और उन्नति को बढ़ावा देकर लाभान्वित कर सकती है. मनोरंजन और खेल उद्योग में लोग प्रसिद्ध और सफल हो सकते हैं, और आपको अपने करियर में अच्छे अवसर मिलेंगे. इस दौरान बिना नौकरी वाले लोगों को काम मिल सकता है.

मीन राशि
मीन राशि के लोगों को शैक्षणिक उपलब्धि और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के मामले में नौवें घर में सूर्य की चाल से लाभ हो सकता है. वे विदेश यात्रा भी कर सकते हैं और कुछ लोग वहां काम या छात्रवृत्ति भी पा सकते हैं. इस दौरान आपकी वित्तीय स्थिति और करियर बेहतर हो सकता है.

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चंद्रमा कब और कैसे सेहत पर डालता है असर

ज्योतिष की एक शाखा ज्योतिष चिकित्सा ज्योतिष, ज्योतिष भैषज्य के नाम से है. इस चिकित्सा ज्योतिष द्वारा सेहत ओर रोग व्याधियों के बारे में जानकारी पता चल पाती है. सेहत पर पडने वाला किसी भी तरह का नकारात्मक प्रभाव जने के लिए चिकित्सा ज्योतिष बेहद कारगर सुत्र के रुप में काम करती है. रोग ज्योतिष अनुसर सभी ग्रहों की अपनी अपनी एक खास भूमिका है लेकिन इन सभी में चंद्रमा का रोल काफी अहम बन जाता है. स्वास्थ्य और रोग की अवधारणा में आइये जानते हैं कैसे चंद्रमा अपना प्रभाव दिखाता है. 

चिकित्सा ज्योतिष अनुसर चंद्रमा का प्रभाव 

चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है “चंद्रमा मनसो जाताः”. पृथ्वी के सबसे निकट होने के कारण, चंद्रमा पृथ्वी की वनस्पतियों और जीवों में जल की मात्रा को दर्शाता है और प्रभावित करता है. चंद्रमा प्रजनन और वृद्धि के लिए सहायक होता है, यह मातृ कारक भी है. सबसे तेज़ गति से चलने वाले ग्रह के रूप में, चंद्रमा मानव मनोदशा में उतार-चढ़ाव के लिए भी जिम्मेदार है इसी कारण मनोरोग से जुड़े सभी रोगों के साथ चंद्रमा अवश्य जुड़ा होता है. 

चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च का होता है और इसके विपरीत राशि वृश्चिक में नीच का होता है. इसे शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशमी तक मध्यम शक्ति का माना जाता है. शुक्ल एकादशी से कृष्ण पंचमी तक मजबूत, और कृष्ण षष्ठी से अमावस्या तक कमजोर माना गया है.

जब चंद्रमा बलवान, अशुभ प्रभाव से मुक्त और शुभ ग्रहों से युक्त होता है, तो यह सभी दोषों को दूर कर देता है और  व्यक्ति को स्वस्थ, प्रसन्न और समृद्ध बनाता है. अनुसार चंद्रमा का बल अन्य सभी ग्रहों की शक्ति को बढ़ा देती है. चंद्रमा मुख्य रूप से जीवन के बचपन की अवधि को नियंत्रित करता है. इसलिए, जब जन्म के समय चंद्रमा कमजोर हो, राशि संधि में हो, पाप ग्रहों से युक्त हो और बिना किसी शुभ पहलू के हो या केंद्र में कोई शुभ न हो, तो यह बच्चे के जीवन के लिए खतरा दर्शाता है.  

राशियों में चंद्रमा का सेहत को लेकर प्रभाव 

मेष राशि में चंद्रमा

स्वास्थ्य औसत रहता है. चंद्रमा पर प्रतिकूल प्रभाव फेफड़ों के रोग, सांस लेने में समस्या और रक्त संबंधी बीमारियों का कारण बनता है.

वृष राशि में चंद्रमा

उच्च का होने के कारण चंद्रमा अच्छा स्वास्थ्य और सहनशक्ति देता है. पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंख, गला, टॉन्सिल, वाणी और गर्दन के रोग होते हैं.

मिथुन राशि में चंद्रमा

व्यक्ति स्वस्थ होता है, लेकिन चंद्रमा के पीड़ित होने से फेफड़े, सांस लेने में समस्या और रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं.

कर्क राशि में चंद्रमा 

यहां चंद्रमा अपनी राशि में होने के कारण अच्छा स्वास्थ्य देता है. पीड़ित होने पर यह छाती, पेट और रक्त के रोग देता है.

सिंह राशि में चंद्रमा 

व्यक्ति स्वस्थ होता है. पीड़ित होने पर व्यक्ति को चक्कर, हृदय और रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं.

कन्या राशि में चंद्रमा 

व्यक्ति स्वस्थ होता है और उसमें रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता होती है. पीड़ित चंद्रमा पेट, पाचन और त्वचा संबंधी समस्याएं पैदा करता है.

तुला राशि में चंद्रमा 

व्यक्ति स्वस्थ होता है और उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है. पीड़ित होने पर व्यक्ति को गुर्दे, रक्त, मूत्र और पीठ की समस्याएं होती हैं. उसे सिर और पेट की बीमारियां भी हो सकती हैं.

वृश्चिक राशि में चंद्रमा 

यहां चंद्रमा कमजोर होता है और इसलिए व्यक्ति अक्सर बीमार पड़ता है. बचपन में स्वास्थ्य ज़्यादातर कमज़ोर होता है. उसे मूत्र संबंधी परेशानियाँ और गुप्तांगों के रोग होते हैं.

धनु राशि में चंद्रमा

व्यक्ति का शरीर मज़बूत होता है, लेकिन अगर चंद्रमा पीड़ित हो तो उसे रक्त, यकृत और तंत्रिका संबंधी बीमारियाँ, साइटिका और कटिवात के दर्द होते हैं.

मकर राशि में चंद्रमा

व्यक्ति में रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, जिसके कारण उसे लंबे समय तक बीमार रहना पड़ता है. उसे कब्ज़, पित्त और गठिया की समस्या होती है.

कुंभ राशि में चंद्रमा

व्यक्ति में प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, लेकिन अगर चंद्रमा पीड़ित हो तो उसे एनीमिया, चक्कर आना और कमज़ोरी होती है. नेत्र, तंत्रिका संबंधी शिकायतों से भी जूझना पड़ सकता है.

मीन राशि में चंद्रमा

यहाँ चंद्रमा बीमारियों को आकर्षित करता है और व्यक्ति को संक्रमण जल्दी होता है. उसे रक्त संबंधी बीमारियाँ, पैरों रोग होते हैं. 

चंद्रमा के साथ ग्रह युति का स्वास्थ पर प्रभाव 

कुंडली में कमजोर और पीड़ित चन्द्रमा का असर सेहत को कमजोर बनाता ही है.

अगर चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ हो, तो भी व्यक्ति को किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होना पड़ सकता है.

जन्म कुंडली में केन्द्र में कोई शुभ ग्रह न हो तब सेहत के संदर्भ में बार बार रोगों का प्रभाव झेलना पड़ सकता है. 

चन्द्रमा दूसरे या बारहवें भाव का स्वामी होने पर शनि या अन्य पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो नेत्र रोगों से प्रभावित कर सकता है. 

चंद्रमा का राहु के साथ संबंध होना और इस पर खराब भावों का योग भी बने, तो व्यक्ति मानसिक रुप से किसी न किसी आघात के कारण प्रभावित होता है. 

स्वास्थ्य और रोग व्याधि में चंद्रमा के गोचर का महत्व 

जन्मकालीन चंद्रमा से अलग-अलग घरों में ग्रहों के गोचर से चंद्रमा के घर और गोचर करने वाले ग्रह के कारकत्व से संबंधित बीमारी होती है. जन्म के चंद्रमा से बीमारी का कारण बनने वाले ग्रह का नाम सूर्य दुसरे भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव और बारहवां भाव. 

  • चंद्रमा चतुर्थ भाव या आठवां भा, या बारहवां भाव 
  • मंगल पहला भाव, दुसरा भाव, चौथा भाव, पाम्चवां भाव, सातवां भाव, आठवां भाव, दसवां भाव, बारहवां भाव, 
  • बुध तीसरा भाव, सातवां भाव, नवां भाव या बारहवां भाव. 
  • बृहस्पति तीसरा भाव, छठा भाव, आठवां भाव, या बारहवां भाव
  • शुक्र छठा भाव, सातवां भाव, दसवां भाव. 
  • शनि पहला भाव, दूसरा भाव, चौथा भाव, सातवां भाव, आठवां भाव या बारहवां भाव.
  • राहु पहला भाव, पांचवां भाव, सातवां भाव, आठवां भाव, नवां भाव, बारहवां भाव. 
  • केतु  पहला भाव, चौथा भाव, सातवां भाव, आठवां भाव, दसवां भाव, बारहवां भाव. 

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