कुंडली में प्रथम भाव को लग्न भाव, पहला भाव, तनु भाव, केन्द्र और त्रिकोण भाव के रुप में जाना जाता है. लग्न को सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है. लग्न व्यक्ति की विशेषताओं, व्यक्तित्व लक्षणों, शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति आदि के बारे में बताता है. लग्न के अलावा लग्न का स्वामी भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. कुंडली के जिस भी भाव में लग्न होता है उसका परिणाम और प्रभाव उसी अनुरुप देखने को मिलता है. कुंडली में लग्न और लग्नेश मजबूत है, तो व्यक्ति जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं को पार करने में सक्षम होता है.

इस भाव में लग्न के स्वामी के बारे में स्थिति अच्छी होती है तो कुछ भावों में इसकी स्थिति इसके विपतित दिखाई दे सकती है. लग्न के स्वामी के कारण, स्वास्थ्य अच्छा रहता है, लंबी आयु का लाभ मिल सकता है. मानसिक और शारीरिक रूप से मजबती देखने को मिलती है. जीवन में खुश और सफल होते है. कोई भी कदम उठाने से पहले हमेशा अच्छी तरह सोचते हैं, बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं.ऎसे में लग्न के स्वामी और लग्न को समझना बहुत आवश्यक होता है. कुंडली में लग्न की स्थिति और लग्नेश की स्थिति फलित को प्रभावित करती है. 

लग्नेश का कुंडली के सभी भावों पर प्रभाव 

प्रथम भाव के स्वामी का प्रथम भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का प्रथम भाव में होना काफी अच्छा माना गया है. इसके द्वारा शुभ केन्द्र का लाभ मिलता है. व्यक्ति शारीरिक सुख को पाता है. पराक्रम से संपन्न होता है. बुद्धिमान, चंचल स्वभाव का होता है. वैवाहिक जीवन काफी प्रभावित होता है रिश्तों में संपर्क की स्थिति प्रभाव डालती है. 

दूसरे भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना

दूसरे भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना धन को देने वाला होता है. आर्थिक रुप से व्यक्ति अधिक विचारशील होता है. व्यक्ति लाभ कमाने वाला, विद्वान, सुखी, अच्छे गुणों से संपन्न, धार्मिक, सम्मान प्रतिष्ठा के लिए उत्साही होता है.जीवन के अनेक पड़ावों पर उसकी स्थिति परेशानी और जोश को देने वाली होती है.

प्रथम भाव के स्वामी का तीसरे भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का तीसरे भाव में होना साहस को देने वाला होगा. व्यक्ति जीवन में कई तरह के बेहतर परिणाम पाता है. व्यक्ति पराक्रम में काफी बेहतरीन होता है मान सम्मान पाता है.  सभी प्रकार की सम्पत्ति से संपन्न होता है, सम्माननीय होता है,  बुद्धिमान और सुखी संपन्न होता है. 

प्रथम भाव के स्वामी का चौथे भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का चौथे भाव में होना व्यक्ति को घर परिवार के प्रति अधिक उत्साही बनाता है. व्यक्ति को पैतृक और मातृ सुख प्राप्त होगा, उसके कई भाई होंगे, वह कामुक, गुणी और आकर्षक हो सकता है. संपत्ति के अर्जन को लेकर उसका उत्साह काफी अधिक रहता है. 

प्रथम भाव के स्वामी का पांचवें भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का पांचवें भाव में होना शुभता को देने वाला होता है. व्यक्ति को संतान सुख सामान्य होगा, वह अपनी पहली संतान को खो सकता है लेकिन अगर पाप प्रभाव हो तब यह होता है. प्रेम को लेकर अधिक उत्साही होता है. क्रोध अधिक करने वाला होगा, अधिकारियों के साथ अच्छे संबंध होते हैं. 

प्रथम भाव के स्वामी का छठे भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का छठे भाव में होना व्यक्ति को काफी कुशल बनता है. सेहत पर असर रहता है और यह तब अधिक होता है जब लग्न के स्वामी का संबंध पाप ग्रह से हो तो व्यक्ति शारीरिक सुख से वंचित रहेगा और यदि शुभ दृष्टि न हो तो शत्रुओं से परेशान रहेगा.

प्रथम भाव के स्वामी का सातवें भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का सातवें भाव में होना व्यक्ति के रिश्तों के लिए विशेष होता है. जीवन साथी के साथ संबंध प्रभवित होते हैं. यदि संबंधित ग्रह शुभ है तो व्यक्ति लक्ष्यहीन भटकेगा, दरिद्रता का सामना करेगा और उदास रहेगा. वह दूसरों के लिए विश्वासपात्र बन जाएगा अगर ग्रह मजबूत है तो.

प्रथम भाव के स्वामी का अष्टम भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का अष्टम भाव में फल विशेष होता है. इस भाव के प्रभाव के कारण व्यक्ति विद्वान तो होगा लेकिन रोग से भी प्रभावित होता है. पाप ग्रहों का असर पड़ने पर चोर, क्रोधी, जुआरी, दूसरों की पत्नियों से युक्त हो सकता है.

प्रथम भाव के स्वामी का नवम भाव में होना

प्रथम भाव के स्वामी का नवम भाव में होना कई मायनों में विशेष बन जाता है. व्यक्ति भाग्यशाली, लोगों का प्रिय, श्री विष्णु का भक्त, कुशल, वाकपटु, पत्नी, पुत्र और धन से संपन्न होता है. व्य्क्ति उन चीजों को पाने में सक्षम होता है जो भाग्य में उसके लिए विशेष मायने रखती हैं. 

दसवें भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना

दसवें भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना अनुकूल स्थिति को देने में सक्षम होता है. व्यक्ति को पैतृक सुख, राजसी सम्मान, पुरुषों के बीच प्रसिद्धि मिलेगी और निस्संदेह उसके पास स्वयं अर्जित धन होता है. बाहरी संपर्क से वह खुद के लिए कई विशेष संपत्तियों को अर्जित कर सकता है. 

एकादश भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना

एकादश भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना व्यक्ति को लाभ की ओर खिंचता है. व्यक्ति हमेशा लाभ, अच्छे गुणों, प्रसिद्धि और कई पत्नियों से संपन्न होता है. जीवन में उसे कई पहलुओं पर विजय की प्राप्ति होती है. सामाजिक क्षेत्र में उसकी स्थिति कई बातों से प्रभावित हो सकती है.

द्वादश भाव में प्रथम भाव के स्वामी का होना

द्वादश भाव यानि के बारहवें भाव में लग्न का स्वामी है तो खर्चों की अधिकता देने वाला होता है. शुभ दृष्टि या युति न हो, तो व्यक्ति शारीरिक सुख से वंचित होगा, बेकार खर्च करेगा और बहुत क्रोधी हो सकता है. इस भाव की स्थिति व्यक्ति को परिवार से कुछ दूर ले जा सकती है. विदेश में निवास का सुख मिल सकता है.