शुक्र की राशि और उसका आपके जीवन पर असर

ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रहों की दो-दो राशियां हैं. इस प्रकार जब हम किसी एक ग्रह की दोनों राशियों का आंकलन करते हैं तो उसमें विभिन्नता स्वभाविक रूप से विद्यमान रहती है. इन राशियों की अपनी विशेषताएं होती हैं और इनके तत्वों की विभिन्नता भी इन्हें काफी हद तक अलग स्वभाव देती है. इस लिए जब जातक पर किसी एक ग्रह की दो राशियों का प्रभाव पड़ता है तो स्वभाव में अंतर अवश्य झलकता है. यहां हम शुक्र की राशियों वृष और तुला से इस अंतर को समझने का प्रयास करेंगे. क्योंकि इन दोनों ही राशियों के ग्रह स्वामी शुक्र क्यों न हों किंतु इन राशियों का स्वभाव ओर तत्व इत्यादि में अलगाव दिखाई पड़ता है

वृषभ राशि निर्धारण | Taurus Sign Analysis

वृष राशि शुक्र ग्रह की राशि हैं, यह पृथ्वी तत्व राशि होती है. यह स्थिर राशि भी मानी जाती है. शुक्र ग्रह के प्रभाव स्वरूप यह एक सौम्य राशि है और इसके प्रभावस्वरूप जातक में सौम्यता के गुण देखे जा सकते हैं. विचारों में स्थिरता और परिपक्वता होती है, यह राशि जातक को शांत चित वाला बनाती है. जातक कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं करते हैं. इससे प्रभावित होने पर आप एक सशक्त और भरोसेमंद व्यक्ति होते हैं. परिश्रमी होने के गुण भी समाहित होते हैं व परिश्रम का फल अवश्य मिलता है. जल्दबाजी या हड़बडी़ में कोई निर्णय लेने से बचते हैं. यह खूबसुरत और अच्छी वस्तुओं के शौकीन होते हैं.

वृष राशि के प्रभाव के कारण व्यक्ति का झुकाव भौतिकता की ओर अधिक रह सकता है. जीवन में स्पर्श का अत्यधिक महत्व होता है. यह जब किसी वस्तु को स्पर्श करते हैं तो उसकी अनुभूति को अधिक बेहतर तरह से समझ सकते हैं. यह परंपराओं तथा रूढियों को मानने वाले व्यक्ति होते हैं. जीवन में स्थिर रहना ज्यादा पसंद होता है इसलिए आसानी से आगे नहीं बढ़ पाते हैं. जहां टिक गए वहां से हिलना इनके लिए बहुत ही मुशकिल होता है.

स्थिरता और मजबूत विचारधार वाले | They Are Stable And Determined

यह एक विश्वसनीय व्यक्ति होते हैं. वृष राशि का चिन्ह बैल होता है और बैल के समान ही इनकी विचारधार भी मजबूत हो सकती है. इसलिए यह कभी कभी जिद्दी भी हो सकते हैं. यदि किसी बात पर अड़ जाएं तो अड़ ही जाते हैं तब इन्हें कोई भी हिला नहीं सकता. यह जब एक काम आरंभ करते हैं तो तब तक उसे करते रहते हैं जब तक कि किसी नतिजे पर न पहुँच जाएं. इन्हें रचनात्मक कार्यों को करने में आनंद आता है. अगर कोई उबाऊ काम भी होगा तो उसे भी रचनात्मक बना ही देते हैं. यह हर कोई काम अपने हाथों से ही करना चाहते हैं यदि किसी से काम करवाते भी हैं तो अंतिम रूप खुद ही देते हैं.

प्रेम संबंधों में स्थायित्व बनाए रखने की चाह रखते हैं. इनके संपर्क में जब कोई आता है तो इन्हें उसका स्पर्श ही अधिक आकर्षित ओर मोहित करने वाला होता है. सामने वाले के रंग रूप आकार प्रकार से कुछ लेना देना नहीं होता क्योंकि यह मन की भावनाओं को अधिक महत्व देने वाले होते हैं. जो व्यक्ति इनके समान सामाजिक दायरे के हैं और इन्हीं के समान ही जिनका जीवन स्तर होता है वही लोग इनके व्यक्तित्व से मेल खा सकते हैं, अन्य व्यक्तियों को इन्हें तालमेल बिठाने में दिक्कत पैदा हो सकती है.

व्यवहारिक होते हैं | They Are Stable And Determined

यह किसी भी समस्या का समाधान व्यवहारिक तौर पर करते हैं ओर तब किसी ठोस निर्णय पर पहुंचते हैं. जब किसी पर भरोसा करके मित्र बन जाते हैं तब बहुत लम्बे समय तक इस मित्रता को बखूबी निभाते भी हैं.

यह धीरज धरने वाले व्यक्ति हैं. धैर्य इनका विशिष्ट गुण है. इनकी संगीत में रूचि रहती है. व्यवहारिक व्यक्ति होते हैं. इनकी बागवानी में भी रूचि रह सकती है. अच्छे फैशनेबल कपडों का शौक हो सकता है और ब्रांडेड कपडे़ पहनना ज्यादा पसंद कर सकते हैं. सभी काम अपने हाथों से ही करना चाहते हैं.

बहुत ही जिद्दी व्यक्ति होते हैं, अधिकतर मामलों में किसी तरह का कोई समझौता नहीं करते हैं .किसी काम की अगर योजना बना ली तो यदि कोई परिवर्तन करना पड़ जाए तो तब इनका मन खराब हो सकता है. अचानक बदलाव इन्हें बिलकुल पसंद नहीं आता है.

तुला राशि निर्धारण | Libra Sign Analysis

शुक्र की दूसरी राशि तुला राशि है, यह वायु तत्व राशि मानी जाती है. इसके प्रभाव स्वरूप जातक शांतिप्रिय, न्यायवादी तथा संतुलित व्यक्ति होता है. इन्हें अकेले रहना बिलकुल पसंद नहीं होता. यह अपने जीवन में अपने साथ रहने वाले व्यक्ति को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं, विशेषरूप से जिन्हें यह चाहते हैं उनका यह विशेष आदर सम्मान करते हैं, इनका व्यक्तित्व दूसरों का दिल जीतने वाला होता है. यह सभी को अपना पूर्ण सहओग प्रदान करते हैं. यह एकाकी माहौल में नहीं रह सकते हैं इन्हें भीड़भाड़ में सभी के मध्य रहना अच्छा लगता है.

कम व्यवहारिक होते हैं | They Do Not Have Stability In Life

व्यवहारिक कम होते हैं और ख्यालों की उडा़न ज्यादा भरते हैं. मन में असंतोष व्याप्त रहता है और शोर शराबे की बजाय शांत रहना ज्यादा पसंद करते हैं. एक ही चीज बार-बार होने से यह जल्द ही उकता जाते हैं, इन्हें एकरसता अच्छी नहीं लगती है.

अपने प्रेम के अंदर भी बहुत सी खूबियों को तलाशते हैं. इनकी चाहत एक आदर्श जीवनसाथी पाने की होती है. अगर यह किसी से प्रेम करते हैं तब आप उसे शांतिपूर्ण तरीके से निभाते हैं और रिश्ते के मध्य पूर्ण रूप से सामंजस्य बनाकर आगे बढ़ते हैं. यदि इन्हें अकेला रहना पड़ जाए तो यह जल्द उदास हो जाते हैं और दूसरों से जुड़ने का प्रयास करते हैं. यह अच्छा तालमेल बिठाने वाले, रचनात्मक और अपने भावों को भली प्रकार से दूसरों के समक्ष पेश करने वाले व्यक्ति होते हैं.

निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रहते हैं और अकसर अपने कामों में लेट भी हो जाते हैं. फिर भी अपने दोस्तों तथा परिवार में प्रिय व्यक्ति बनते हैं. दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ समय व्यतीत करना अच्छा लगता है. किंतु निर्णय लेने में देरी लगाते हैं और हवाई किले अधिक बनाते हैं. किसी भी तरह का टकराव पसंद नहीं है. स्वयं पर तरस खाने की आदत होती है.

जब भी अपने प्रेमी के साथ होते हैं तब उसे हर प्रकार से संतुष्ट रखने का प्रयास करते हैं. इनका आकर्षण और अदभुत तरीके से दूसरों के साथ तालमेल बिठाने की कला से ही यह एक उत्तम साथी सिद्ध होते हैं. दूसरों की मदद करना और जीवन में मौजमस्ती करने की इनकी आदत होती है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

कर्क, सिंह और कन्या राशि पर चंद्रमा का असर

कर्कस्थ चंद्रफल | Moon Aspecting Cancer

चंद्रमा का कर्क में स्थित होना चंद्रमा की स्थिति को प्रबल बनाने में सहायक होता है. यह स्थिति व्यक्ति की मानसिकता और व्यक्तिगत भावनाओं में संतुलन लाने का प्रयास करती है. यह स्थिति काफी अनुकूल मानी जाती है जिसमें जातक के लिए सौभाग्य का फलादेश मिलता है और उसके कर्मों में भी शुभता आती है. अपने में धैर्य और सहनशीलता के गुणों को भी पाने में सहायक बनता है.

व्यक्ति को मित्रों का साथ मिलता है, लोगों के साथ मेल जोड़ बढा़ने में यह तत्पर रहता है. इन्हें घूमने फिरने का शौक भी खूब होता है. देश और दुनिया की सैर भी करते हैं. विद्वानों का साथ मिलता है और सभी में सम्मान का स्थान भी मिलता है. यह जातक सद कर्मों में युक्त और सदाचार को निभाने में विश्वास रखने वाला होता है. शुभ कृर्त्यों को करने में इनकी रूचि होती है. किसी भी स्थान में बनने वाले इनके अपने प्रभा मंडल का प्रभाव भी खूब होता है.

इस रूप में अच्छी तरह से दूसरों के साथ और उनकी भावनाओं के साथ संपर्क में रहने वाले होते हैं किसी के कथन को सुनने में वह बहुत ही ध्यान में लीन हो जाते हैं कि उनकी भावनाओं के साथ संपर्क बनने लगता है.

विशेष रूप से भावनात्मक बातों से अधिक जुड़ते हैं. यह अपने घर, अपने परिवार और दोस्तों सभी से जुड़े हुए होते हैं. शांति और शांत स्वभाव अधिक भाता है और परिवर्तन के बड़े प्रशंसक नहीं हैं स्थिरता अपना लेते हैं.

समर्पित और मिलनसार होते हैं, अल्पज्ञता इन्हें पसंद नहीं है. असुरक्षा की भावना से डरते हैं सभी के साथ रहना अच्छा लगता है और अपनी बातों को भी दूसरों के साथ बांटते हैं. सभी के समक्ष स्वयं को अभिव्यक्त करने की क्षमता रखते हैं. कृतज्ञता की भावना से युक्त होते हैं. सत्य वचनों को बोलने वाले होते हैं. कभी कभी अपने व्यवहार से काफी मूडी हो सकते हैं या विक्षिप्त जैसा व्यवहार भी कर सकते हैं. बहुत भरोसेमंद, मिलनसार, रचनात्मक और संवेदनशील होते हैं. कलात्मक प्रतिभा से युक्त होते हैं.

सिंहगत चंद्रमा का फल | Moon Aspecting Leo

चंद्रमा के सिंह में होने पर व्यक्ति में दूसरों को नियंत्रण में रखने की जन्मजात प्रवृत्ति देखी जा सकती है. ऎसे जातक को हमेशा सुर्खियों में रहना पसंद होता है. यह लोग अक्सर प्रतिभाशाली आयोजकों के रूप में देखे जा सकते हैं. असल में वह चीजों को आकार देने के लिए भी उत्सुक रहते हैं और मनोरंजन रूप में दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते हैं. अक्सर लोगों के आसपास मालिक की तरह व्यवहार करते दिखाई देते हैं. अच्छी तरह से उत्कृष्टता पूर्ण किए गए कामों को करने में जो दूसरों के लिए नौकरियों और कार्यों को सौंपने के लिए होते हैं तथा इनके गतिशील व्यक्तित्व के कारण यह लोगों के बीच लोकप्रिय होते हैं,

सिंह राशि में चंद्रमा के साथ व्यक्तियों को लोगों के बीच लोकप्रिय हैं और एक गतिशील, आकर्षक व्यक्तित्व देता है. अक्सर यह लोग दूसरों के लिए उदार रहते हैं, बहुत भावुक होते हैं और आम तौर पर दूसरों की खुशी को पूरा करने के लिए अपने जीवन जीते हैं. जन्मजात नेता होते हैं और आराम पसंद भी होते हैं. साथ सत्ता संभाल सकते हैं. ऐसे व्यक्तियों में अखंडता बहुत होती है. न्याय के एक मजबूत भावना लिए होते हैं. इस तरह के व्यक्तिय स्वभाव में बहुत आदर्शवादी हो जाते हैं और अगर जरूरत पड़ने पर व्यक्तिगत बलिदान करने में भी संकोच नहीं करते.

इनमें कुछ कमियां भी रह सकती हैं जैसे कि यह खुद को नेतृत्व में देखना चाहते हैं और दूसरों के आदेशों को अपने उपर नहीं सह पाते हैं. शायद ही कभी दूसरों के अधिकार को स्वयं पर अमल नहीं करना चाहते हैं. यह भौतिकवादी हो सकता है, लेकिन अपनी जिम्मेदारी को निभाना जानते हैं. समर्पण और सम्मान के साथ कार्यों को पूरा करने की चेष्ठा रखते हैं. इनका एक सकारात्मक गुण यह भी है कि बुरे समय में भी धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ काम करते हैं. दूसरों के साथ अपनी खुशी को साझा करने के लिए तैयार हैं और इस तरह चारों ओर खुशी बिखेरते हैं.

कन्यागत चंद्रमा का फल | Moon Aspecting Virgo

कन्यागत चंद्रमा के होने से जातक अपनी खुशी और सुरक्षा के लिए जीवन में छोटी चीजें करने के लिए लगे ही रहते हैं. कोमलता स्वभाव में स्पष्ट रूप से झलकेगी. कन्या में चंद्रमा के होने पर जातक कोमल हृदय का और भावुक होता है. आम तौर पर किसी और की मदद करने के लिए स्वयंसेवक के रूप में जाने जाते हैं. इनका जीवन सादगी पूर्ण रह सकता है. इस कारण से अधिक ऊंचाईयों को छूने की महत्वकांक्षांओं में भी कमी आती है. अपनी सुविधा के स्तर के भीतर रहना इन्हें पसंद होता है और सीमित दायरों में रहने से भी खुश रहते हैं.

इस राशि में चंद्रमा के होने से जातक स्त्रियों के प्रति चंचल मन वाला होता है. लम्बी भुजाओं वाला सुंदर और कलात्मक गुणों से युक्त होता है. विद्वान होता है है आचार्यों के समान स्वभाव वाला होता है. प्रियभाषी ओर सत्यवादी होता है. धैर्यशील और सत्त्वगुणों से युक्त होता है, अधिक कन्याओं वाला होता है दयालु ओर मन से काफी भावुक होता है.

इन जातकों में प्रेम की भावना बहुत रहती है यदि अनुकूल प्रेम स्नेह न मिल पाए तो मन से व्यथित रह सकते हैं. भरोसेमंद, विश्वसनीय हैं और सलाह के अच्छे स्रोत हैं. उनकी व्यावहारिकता उन्हें बहुत उपयोगी बनाती है. दूसरों को दिलासा देने और उन्हें बेहतर महसूस कराने में बहुत प्रतिभाशाली होते हैं, क्योंकि यह उत्कृष्ट सलाहकार भी होते हैं.

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 1”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 3”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 4”

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

ये है सही तरीका कुंडली देखने का, जानें कैसे देखते हैं कुण्डली

आप में से अधिकतर लोगो ने जन्म कुंडली के बारे में अवश्य ही सुन रखा होगा. जन्म कुंडली या जन्मपत्री व्यक्ति के जीवन की घटनाओ की संभावना बताती है. जीवन में कौन सा समय अच्छा तो कौन सा समय व्यक्ति के लिए बुरा हो सकता है आदि बातों की का पूर्वानुमान इस विद्या के द्वारा लगाया जा सकता है. जन्म कुण्डली में होता क्या है, यह बनती कैसे है और इसे किस तरह से पढ़ा जाना चाहिए.

जन्म कुंडली का परिचय | Janma Kundali Introduction

जन्म कुंडली को पढ़ने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जाता है. आइए सबसे पहले उन बातो को आपके सामने रखने का प्रयास करें. जन्मकुंडली बच्चे के जन्म के समय विशेष पर आकाश का एक नक्शा है.

जन्म कुंडली में एक समय विशेष पर ग्रहो की स्थिति तथा चाल का पता चलता है. जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है. जन्म कुण्डली अलग – अलग स्थानो पर अलग-अलग तरह से बनती है. जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति. भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय तथा पूर्वी भारत में बनी कुंडली भिन्न होती है.

जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है, जो मेष से मीन राशि तक होती हैं. बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है. एक भाव में एक राशि ही आती है. जन्म के समय भचक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आती है.

अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा(एंटी क्लॉक वाइज) में चलती है. माना पहले भाव में मिथुन राशि आती है तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी. अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि आती है.

भाव का परिचय | Introduction to Houses

जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है़.

सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है.

बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है.

ग्रहो की स्थिति | Position of Planets

जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने़. ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है.

पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें. फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है. जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें.

जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें. जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग हैं.

कुंडली का फलकथन | Predictions through a Kundali

फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है.

कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है. जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी.

तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी. यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

दशा का अध्ययन | Analysis of Dashas

अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ् नहीं मिलता है. आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है.

जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भाव रखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें.

कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें. महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखें.

गोचर का अध्ययन | Analysis of Transits

सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें. दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है. कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं.

किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | 14 Comments

वक्री ग्रह से अरिष्ट का विचार | Analysis of Arishta Yoga through Retrograde Planets

वक्री ग्रहों के बारे में यह विचार करना की वह किस प्रकार के फलों को देने वाले होते हैं, इस तथ्य की पुष्टी में कई विचारों का समावेश मिलता है. इसके विषय में प्राचीन ज्योतिषी ग्रंथों में कुछ बातें कहीं गई हैं कुछ के अनुसार वक्री ग्रह अपने फलों को पूर्ण रूप से देने वाले बनते हैं.

वक्री को पूर्ण बल प्राप्त होता है अत: जब वह अपने फल को देते हैं उसमें पूर्णता: रखते हैं. इसी के साथ कुछ के अनुसार यह ग्रह शुभ हों तो शुभता को और अधिक बढा़ देते हैं किंतु यदि यह अशुभ हैं तो अशुभता में वृद्धि कर देते हैं. परंतु कहीं कहीं इस बात के विषय में भी अनेक मतभेद प्राप्त होते हैं जिनके अनुसार ग्रहों के वक्री होने पर उनके शुभ या अशुभ होने पर फल वैसे नहीं मिलते जैसे वह होते हैं अपितु इसके स्वामित्व और दृष्टि प्रभाव के अनुरूप ही फल मिल पाते हैं.

वक्री ग्रहों से अरिष्ट का प्रभाव | Effects of Arishta through Retrograde Planets

वक्री ग्रहों के द्वारा अरिष्ट का आंकलन करने में भी काफी सहायता मिलती है. कुंडली में वक्री ग्रह स्थिति, गोचर तथा वक्री ग्रह दशा-अन्तर्दशा से अरिष्ट योगों को समझा जा सकता है. रोगों का विचार अष्टमेश और आठवें भाव में स्थित निर्बल ग्रहों से किया जाता है. अप्रत्यक्ष कारणों से होने वाले रोगों का विचार षष्ठेश, छठे भाव में स्थित वक्री ग्रहों तथा जनमकुंडली में पीड़ित राशि व पीड़ित ग्रहों से किया जाता है.

  • शुभ ग्रह 6 या 8वें भाव में वक्री पाप ग्रहों से दृष्टि संबंध बना रहे हों और साथ ही साथ इन पर कोई शुभ दृष्टि नहीं पड़ रही हो तो जातक को बहुत कष्ट और मृत्यु तुल्य कष्ट मिल सकता है.
  • इसके अतिरिक्त लग्न से दूसरे, बारहवें, या छठे और आठवें भाव में पाप ग्रह दोनों और स्थित हों या कहें कि पाप कर्तरी में हों तथा इन पर कोई भी शुभता दृष्टि नही डाल रही हो तो ऎसी स्थिति में जातक को कष्ट की प्राप्ति होती है.
  • जन्म कुण्डली का लग्नेश व जन्म राशीश दोनों ही अस्त हो रखें हो तथा छठे, आठवें और बारहवें भावों में कहीं भी स्थित हों तो जिस राशि में स्थित हो उतनी ही संख्या के वर्षों में जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है.
  • लग्नेश सप्तम भाव में अगर पाप ग्रहों से ग्रह युद्ध में पराजित हो रहा हो या चंद्रमा अथवा जन्म राशीश सप्तम में पाप ग्रह पराजित हो और यहां किसी भी शुभ दृष्टि का प्रभाव नही हो तो यह स्थिति एक वर्ष के दौरान अरिष्ट से मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाली बनती है.
  • चंद्रमा के साथ सूर्य व मंगल दूसरे व पांचवें भाव में स्थित हों और शुभ दृष्टि से प्रभावित नहीं हों तो नवें वर्ष में जातक को अरिष्ट का भय रहता है.
  • लग्नेश यदि आठवें भाव में स्थित हो और उसे सभी या कई पाप ग्रह मजबूत होकर देख रहे हों तो यह स्थिति अच्छी नहीं होती ओर अरिष्ट का कारण बनती है.
  • चंद्रमा सिंह राशि में स्थित हो और जन्म राशीश सूर्य वक्री शनि के साथ आठवें भाव में स्थित हो और उसे वक्री शुक्र देख रहा हो तो जातक को अरिष्ट की संभावना बनी रहती है और उसके लिए यह समय बहुत नाजुक होता है.

वक्री ग्रहों के साथ ही कुंडली में जो भाव या राशि पाप ग्रह से पीड़ित हो या जिसका स्वामी बुरे भाव मे हो तो उक्त राशि तथा भाव से संबंधित रोग जातक के लिए घातक हो सकते हैं. छठा भाव एक खराब भाव बनकर रोगों का भाव बनता है. इसे शुभ भाव नहीं कहा जाता है. जब वक्री लगनेश का संबंध इस भाव से होता है तो जातक को कई प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ सकता है.

अरिष्ट होने की संभावनाओं में वृद्धि बनी रहती है. जब वक्री लग्नेश का संबंध अष्टम भाव से होता है तब स्वास्थ्य के खराब होने का योग बनता है. अष्टम भाव अर्थात आयु जिस पर किसी वक्री पाप ग्रह का संबंध बने तो व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का कारण बनता है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

तीसरे भाव से कुण्डली का आंकलन | Analysis of Your Kundali through Third House

जातक की जन्म कूण्डली में तीसरा भाव उसके पराक्रम और साहस की कहानी बताता है. इसके साथ साथ इन प्रमुख बातों के अतिरिक्त इस भाव से भई बहनों का सुख और यात्राओं के बारे में भी जाना जा सकता है. पराक्रम भाव होने पर व्यक्ति के बाहु बल का विचार किया जाता है. साहस, वीरता आदि के लिये भी तीसरे भाव देखा जाता है. कुण्डली में यदि तीसरा भाव कमजोर हो तो व्यक्ति के साहस में कमी देखी जा सकती है.

जातक की मानसिक स्थिति की मजबूती भी यही भाव उसे देता है. इससे जातक कि रुचि व शौक देखे जाते है. यह घर लेखन की भी जानकारी देता है. इस भाव से जातक में संगीत के प्रति लगाव को भी देखा जाता है. इस घर में जो भी राशि होती है उसके गुणों के अनुसार व्यक्ति का शौक होता है.

कुण्डली में तीसरे भाव का महत्व | Importance of Third House in Your Kundali

तीसरे घर से लेखन तथा कम दूरी की यात्राओं का विचार किया जाता है. बुद्धि तथा पराक्रम होने से सभी काम सरलता से पूरा जाता हैं. इसलिए इस भाव से कार्य कुशलता के विषय में भी जाना जा सकात है. कम्युनिकेशन के लिए, सभी प्रकार के समाचार पत्र, मीडिया व संप्रेषण संबन्धी कार्य इसी घर से देखे जाते है, प्रकाशन संस्थाएं भी इस भाव के अन्तर्गत आती है.

भाई-बन्धुओं में कमी के लिये इस घर से विचार किया जाता है यह उनके स्वास्थ्य का बोध भी कराता है. पड़ोसियों से सम्बन्ध का भी विचार इससे घर से किया जा सकता है. कार्य क्षेत्र में बदलाव का कारण भी बन सकता है. खेल-कूद में सफलता के लिए भी इसी घर से विचार किया जाता है.

इस भाव को अपोक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषढाय के नाम से भी जाना जाता है. यह भाव गरदन, भुजाएं, छाती का ऊपरी भाग, कान, स्नायुतंत्र इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव दायें कान, दायें बाजू, जननांग का दायें भाव की व्याख्या करता है.

तृतीय भाव से कुण्डली के बारे में जानने हेतु जातक के इस भाव में किस ग्रह की युति है और किस भाव से इसका संबंध आ रहा है इन सभी बातों को समझना आवश्यक होता है, किसी जातक के जीवन काल में उसकेभाईयों तथा दोस्तों से होने वाले लाभ तथा हानि के बारे में जानकारी प्राप्त करने केलिए कुंडली के इस भाव का ध्यानपूर्वक अध्ययन में यह देखा होता है कि कुंडली में तीसरा भाव कितना मजबूत है.

कुण्डली के तृतीय भाव का फल कथन | Predictions through Third House in Your Kundali

यदि तीसरा भाव मजबूत हो और किसी अच्छे ग्रह के प्रभाव में हो तो ऎसी स्थिति में जातक परिश्रम करने से अपने जीवन काल में अपने भाईयों, दोस्तों की सहायता भी खूब पाता है. अपनी मेहन और साहस से जातक खूब सफलताएं पाता है. लोगों का पूर्ण सहयोग भी जातक को ऊंचाईयां छूने में मददगार होता है.

समर्थकों के सहयोग से सफलतायें प्राप्त करते हैं, जबकि दूसरी ओर यदि जातक की कुंडली में तीसरे भाव पर अशुभ बुरे ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों तथा दोस्तों के कारण बार-बार हानि उठाते हैं तथा इनके दोस्त या भाई इनके साथ बहुत जरुरत के समय पर विश्वासघात भी कर सकते हैं.

शरीर के कुछ हिस्सों तथा श्वास लेने की प्रणाली को भी दर्शाता है तथा इस भाव पर किसी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली धारक को मस्तिष्क संबंधित रोगों अथवा श्व्सन संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है।

कुण्डली का तृतीय भाव यदि राहु केतु से प्रभावित हो तो जातक संतान रूप में अपने घर में ज्येष्ठ या अनुज होता है. साथ ही उसमें भाव में राहु और केतु का प्रभाव पड़ने से परेशानी भी आती है. यह संबंधों में तनाव को भी ला सकता है. तीसरा भाव उच्चता लिए हो तो स्वाभिमान में बल आता है जातक को लोगों का सामना करने की हिम्मत मिलती है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

कर्क लग्न का नौवां नवांश | Ninth Navansh of Cancer Ascendant

कर्क लग्न का नौवां नवांश मीन राशि का होता है. मीन राशि के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं. बृहस्पति के प्रभाव में होने से और इस नवांश का काफी अनुकूल प्रभाव जातक को प्रभावशाली फल देने वाला होता है. इसके प्रभाव से जातक का व्यक्तिव आकर्षण से युक्त होता है. जातक के गुणों में शुभता का प्रभाव स्पष्ट रूप से फलित होगा. जातक दूसरों को प्रभावित करने में पूर्ण रूप से सक्षम होता है. आर्थिक रूप से भी उसे बहुत लाभ मिलता है. यह भाग्य भाव में वृद्धि का संकेत भी देता है.

यह दिखने में सुंदर और कोमल प्रतीत होता है. शरीर से बलिष्ठ व त्वचा मुलायम व सुंदर होती है. जातक प्रतिभावान और दिमागी होता है. उसके कार्यों में बौद्धिकता के गुण स्पष्ट नज़र आते हैं, वह अपने गुरूओं से सम्मान पाता है. जातक के इन्हीं विशेष गुणों के द्वारा समाज में यह अपनी स्थिति को उन्नत करने में सक्षम होता है. किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता को करने में अग्रसर रहता है और जीवन में जातक को आगे बढ़ने की चाह बनी रहती है. जातक को गुरूजनों का पूर्ण साथ मिलता है.

कर्क लग्न के नौवें नवांश का प्रभाव | Effects of Cancer Ascendant’s Ninth Navansh

कर्क लग्न के नवें नवांश में जन्मा जातक जीवन के क्षेत्र में भाग्य का साथ पाने वाला होता है. व्यक्ति को अपने पिता व गुरू समान व्यक्ति का साथ मिलता है. इसके जीवन में विद्वान लोगों का प्रभाव भी खूब रहता है. पिता से इनके संबंधों का प्रभाव अधिक प्रतिफलित होता है. परंतु जातक में जिद्दीपन भी देखा जा सकता है, बाहरी रूप से यह कठोर प्रतीत हो सकता है.

इनकी प्रवृत्ति धार्म कार्यों में भागीदारी की बनी रहने वाली होती है. अपने काम को लेकर यह क्रमठ बने रहते हैं, कभी-कभी उदासीन हो सकते हैं. अपनी परंपराओं के प्रति काफी सचेत रहने वाले होते हैं. शारीरिक रूप से मध्यम आकार के मोटे, साँवले रंग के होते हैं. आमतौर पर, सिद्धांतों के अनुयायी रूढ़िवादी होते हैं. धार्मिक रिवाजों और प्रथाओं के पालन में अंधविश्वासी, कठोर भी हो सकते हैं. महत्वाकांक्षी, पैसे खर्च करने में मितव्ययी होते हैं. आत्मविश्वास की कमी भी होती है.

इन्हें अत्यधिक पारम्परिक होने से बचना चाहिए, आधुनिक विचारों का स्वागत करने की प्रवृति स्वयं में लाने कि कोशिश करें. स्वभाव में धैर्य की कमी को दूर करने का प्रयास करें तथा स्वभाव में अहं का भाव न आने दें. इसके अतिरिक्त क्रोध में कमी करना भी हितकारी रहेगा. व्यवसाय की अच्छी समझ होती है इनमें, साझेदारी में हों या स्वयं द्वारा कार्य करते हों दोनों ही क्षेत्रों में इनका रूतबा अच्छा रहता है. इन पर दूसरे लोगों का विश्वास बना रहता है. घटनाओं का पूर्वाभास करने की कला भी इनमें खूब होती है.

कर्क लग्न के नवें नवांश का फल | Results of Cancer Ascendant’s Ninth Navansh

इनके ज्ञान में हमेशा वृद्धि होती है, यह धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप काम करने वाले व्यक्ति होते हैं. किसी का अहित करने की चाह इनमें नहीं होती है अपितु अपने शत्रुओं को भी यह क्षमा कर देते हैं. अपने साथियों के प्रति इनकी भावनाएं बहुत उत्साहवर्धक और अच्छी होती हैं. इसी कारण इनके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है, सभी के समक्ष यह आदर पाते हैं.

यह कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और किसी भी कार्य को करने में आपकी योग्यता अवश्य झलकती है. अपनी वाणी के प्रभाव से यह दूसरों को अपने प्रभाव से प्रभावित रखते हैं सभी इनके बोलने की कुशलता से प्रभावित रहते हैं. मनोविनोद की अच्छी समझ होती है, यह बोलने में स्पष्ट और प्रभावशाली होते हैं.

इनका जीवन साथी व्यवहार कुशल होगा, आर्थिक मामलों को समझने में दक्ष होगा. अपने सामाजिक और पारिवारिक कार्यों में उसका पूर्ण सहयोग उसे मिल सकेगा. स्वास्थ्य की दृष्टि से वह सामान्यत: कुछ कमी का अनुभव कर सकता है. इस लग्न के प्रभाव स्वरूप जो भी फल जातक को मिलते हैं वह ग्रहों की स्थिति के अनुरूप ही प्रभाव डालने वाले होते हैं जातक इन्ही की स्थिति व युति द्वारा फलों को पाता है.

इन्हें बहुमूल्य वस्तुओं का शौक होता है, आभुषणों और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित रहने की चाह रखते हैं. अपने कामों में सदगुणों के साथ आगे चलता है. महत्वकांक्षाओं के पक्के होते हैं घूमने-फिरने, आराम करने की प्रवृत्ति रहती है.

Posted in Navamsa Kundli, Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

सिंह लग्न का पहला नवांश | First Navansh of Leo Ascendant

सिंह लग्न का चौथा नवांश मेष राशि का होता है. यह नवांश मे जन्मे बच्चे पर मंगल ग्रह का प्रभाव भी रहता है क्योंकि मेष नवांश के स्वामी ग्रह मंगल हैं. नवांश लग्न के प्रभाव के कारण जातक का रंग मध्यम, कमर पतली और आंखें भूरापन लिए होती हैं. देह से शक्तिशाली होते हैं. शत्रु इनसे परास्त रहते हैं और यह उन पर विजय पाते हैं. जातक के हृदय में बदला लेने की भावना होती है किंतु किसी का अहित नहीं करना चाहता, जातक का स्वभाव काफी उग्र भी हो सकता है क्रोध अधिक आता है जिस कारण लोग आपसे असहज भी हो सकते हैं.

इनमें क्रोध अधिक रह सकता है जरा सी बात भी इन्हें ठेस पहुंचा सकती है और यह बदला लेने के लिए आतुर हो सकते हैं. यह शांत स्वभाव के नहीं होते इन्हें जल्द ही गुस्सा आ जाता है. अकेले रहना अधिक पसंद हो सकता है. अपनी योजनाओं को पूरा करने में परिश्रम से लगे रहते हैं. यह योग्यता और कौशल का सही उपयोग करना जानते हैं. पारिवारिक व सामाजिक सुख शांति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं. कुछ मामलों में एक दूसरे से उदासीनता का भाव भी झेलना पड़ता है लेकिन तालमेल से जीवन की राह आसान बना ही लेते हैं.

सिंह लग्न का पहला नवांश प्रभाव | Effects of Leo Ascendant’s First Navansh

जीवन में भाग्य का अहम रोल आता है. अचानक होने वाली घटनाएं भी जीवन को प्रभावित करती है. पैतृक धन लाभ भी मिलता है अपनी आथिक जीवन को मजबूत करने में लगे रहते हैं, सहनशीलता में कमी रह सकती है क्रोध के कारण लोगों से दूरी भी बन सकती है. जातक को अपने वरिष्ठजनों का साथ मिलता है और जीवन में आगे बढ़ते रहने की चाह भी रहती है, खर्चे भी अधिक होते हैं, इस कारण धन की लालसा बनी रहती है.

जातक की कद काठी मजबूत व कंधे चौडे़ होते हैं. व्यक्तित्व आकर्षक होता है जिस कारण अन्य लोग भी इनकी ओर खिंचे चले आते हैं. प्रभावशाली भाव अभिव्यक्ति के फलस्वरुप आपको अन्य लोगों का साथ भी मिलता है. अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की योग्यता रखते हैं. इससे प्रभावित जातक में विलासिता के प्रति भी आकर्षण होना स्वभाविक होता है. साज सम्मान व सौंदर्य से इन्हें विशेष प्रेम होता है.

जीवन साथी का स्वभाव कुछ तेज होता है. योजनाओं को पूर्ण करने में खूब मेहनत करेंगे और जीवन कि परेशानियों से निपटने की पूरी कोशिश करेंगे. शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्ति अपना अच्छा प्रदर्शन करने की कोशिश करता है और उसे सफलता भी मिलती है. प्रतियोगिता में यह अपने प्रयासों से काफी बेहतर स्थान पाता है. जातक अपनी शिक्षा के लिए विदेश भी जा सकता है और इसी के साथ साथ उसे बहुत मेहनत भी करनी पड़ती है.

कई बार व्यवधानों के आने से उसे रूकावट का सामना करना पड़ सकता है व्यर्थ के अटकाव जातक के लिए काफी परेशानी वाले रह सकते हैं साथ ही उसे इन सब से कई बार निराशा भी हाथ लग सकती है किंतु यदि जातक प्रयासरत रहे तो वह अपनी राह को पाने में काफि हद तक सफल हो सकता है.

सिंह लग्न के पहले नवांश का महत्व | Importance of Leo Ascendant’s First Navansh

जातक व्यापार करने में काफी रूचि रखने वाला रह सकता है. खेल कूद में भी इनकी रूचि बनी रहती है. अनेक प्रकार की भाषाओं को सीखने की चाह भी इनमें रहती है. वाद विवाद को सफलता पूर्वक अपने पक्ष में कर लेना इनकी विचारधारा की परिपक्कवता को दर्शाता है. विद्वता का रूप आपके प्रयासों एवं आपके कामों में स्पष्ट रूप से झलकता है. बौद्धिक गुणों से विकसित जातक कार्यों में ऊँचाईयों को छूने वाला होता है.

जातक की बुद्धि काफी प्रखर होती है, परिवार की परंपराओं के प्रति इनकी आस्था रहती है जो इन्हें संस्कारों से युक्त रखने में सहायक बनती है. अपने काम को बढाने में लगे रहने कि चाह इनमें खूब होती है. दांपत्य जीवन में साथी का साथ मिलता है और गुणवान जीवन साथी की प्राप्ति भी होती है.

दांपत्य जीवन में यह काफी संतुष्ट होते हैं. जीवन साथी से आप अधिक सहयोग प्राप्त करते हैं. जीवन साथी तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है. और जीवन से सुख शांति बनाए रखने का प्रयास करता है किंतु वैचारिक मतभेदों की अधिकता विवाद का रूप ले सकती है कई बार एक दूसरे को न समझ पाने की स्थिति भी इनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है.

Posted in Navamsa Kundli, Vedic Astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

व्यवसाय में सफलता दिलाने में सूर्य ग्रह का महत्व

व्यवसाय क्षेत्र में व्यक्ति का रुझान किस ओर रह सकता है या कौन सा ग्रह जातक के व्यवसाय के लिए अनुकूल रह सकता है इन बातों को जानने से पूर्व ग्रहों की व्यवसाय क्षेत्र में महत्ता को समझने की आवश्यकता होती है. कौन सा ग्रह किस व्यवसाय के लिए अनुकूल रह सकता है इस बात को समझना अत्यंत आवश्यक होता है कौन सा ग्रह कौन सी आजीविका तय करता है. तभी व्यवसाय क्षेत्र का निर्धारण करने में आसानी होती है. इस विषय का आंकलन ज्योतिष द्वारा किया जा सकता है.

सूर्य ग्रह का व्यवसाय निर्धारण में योगदान | Contribution of Sun In Determining Success In Business

सूर्य सूर्य उन्न्त दर्जे के काम धंधे को दर्शाता है. बहुत स्थानों से संबंधित होने वाला होता है. सूर्य स्वयं राजा है व राजपुरूष है इसलिए जब सूर्य से संबंधित व्यवसाय के बारे में विचार किया जाता है तो उन कार्यों का संबंध राज्य से अवश्य आता है. अगर सूर्य बलवान है तो सरकार से अच्छे लाभ की प्राप्ति में सहायक बनता है. यदि मध्यम बली हो तो व्यक्ति को राज्याधिकारी बनता है, इसी के साथ यदि सूर्य लग्न, लग्नेश, चंद्र राशीश के साथ मजबूत संबंध बनाता है तो व्यक्ति मंत्र पद, मंत्रालय का काम या अन्य प्रकार के उच्च स्तरीय कार्य देता है.

सूर्य अग्नि तत्व है मंगल और केतु के साथ मिलकर अग्नि संबंधी कामों जैसे बिजली के सामान का काम, तोप या बंदुक का काम, रेस्टोरेंर या हलवाई संबंधी कार्य दे सकता है. सूर्य के साथ पंचमेश या नवमेश का संबंध बनता हो तो जातक अपने पिता या पारीवारिक काम को आगे बढ़ सकता है.

सूर्य वैद्यक से भी संबंधित होता है अत: जब कुण्डली में चिकित्सा संबंधी योगों का निर्माण हो रहा हो और उनके साथ सूर्य संबंध बना रहा हो तो जातक डाक्टर अथवा वैद्य क्षेत्र में भी काम कर सकता है. सूर्य एक सात्विक ग्रह है अत: जब यह गुरू या नवमेश आदि ग्रहों के साथ हो तो धार्मिक काम धन्धों का भी कारक बन सकता है. मंदिर का पुजारी या धर्म संस्था से जुडा़ हो सकता है.

सूर्य लकडी़ का भी कारक है अत: जब सूर्य चतुर्थेश होता है या चौथे भाव से संबंध बनाता है तो जातक लकडी़ बेचने के काम को भी कर सकता है, फर्नीचर बेचने वाला या इमारती लकडी़ बनाने का काम कर सकता है. चौथे भाव से घर के पुर्ननिर्माण इत्यादि से संबंधित होता है जहां इसका योगदान हो सकता है.

सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है. इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन अधिकारी, उच्च पद पर आसीन अधिकारी, प्रशासक, समय के साथ उन्नति करने वाला, निर्माता, कार्यो का निरिक्षण करने वाला बनाता है. आईए भचक्र में सूर्य से परिचय करते है.

कुण्डली में सूर्य के बल के मुताबिक जीवन में शक्ति होती है जिस कुंडली में सूर्य कमजोर रहता है वह जातक शारीरिक रूप से कमजोर होता है इसलिए वह पूर्ण फल नहीं दे पाता. कुंडली का अध्ययन करते समय कुंडली में सूर्य की स्थिति, बल तथा कुंडली के दूसरे शुभ तथा अशुभ ग्रहों के सूर्य पर प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक होता है.

सूर्य कि कुंडली में मजबूत स्थिति व्यक्ति को कुछ अधिक सशक्त बना देती है. ग्रहों में सबसे प्रमुख हैं. आध्यात्मिक विद्या, अग्नि एवं तेज है, किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता, वह आदेश देता है अपने महत्व एवं मर्यादा को समझता हैं. जिसका सूर्य बलवान है, वह उन्नति, वृद्धि, निर्माण करने वाला होता है.

व्यक्ति भावनाओं को नियंत्रण में रखना जानता है कोई भी निर्णय सोच विचार कर ही लेता है भावनाओं में बहकर नहीं लेता अपने निर्णय पर अड़िग रहते हुए कभी कभी कठोर प्रतीत होता है. व्यवसाय से संबंध रखने पर इन सभी का होना महत्वपूर्ण व आवश्यक हो जाता है. सूर्य का बली होना व्यक्ति में जिम्मेदारियों को उठाने वाले बनाता है. यह ज्वलंत ग्रह है सूर्य कर्ता है, राजा है और मुखिया है.

सूर्य नेतृत्व और प्रभुत्व का भाव दर्शाता है इसलिए यह उन लोगों से जुडा़ हो सकता है जो उच्चाधिकारी, नेता, प्रतिष्ठित व्यक्ति हों. सोने का काम करने वाले, जौहरी, फाईनान्सर, प्रबन्धक इत्यादि़. व्यवसायों का संबंध सूर्य से आने पर व्यक्ति को मेहनत व प्रयास करने से सफलता मिलती है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

चन्द्रमा का मेष, वृष और मिथुन राशि पर गोचर का फल

मेषगत चंद्रमा योग फल | Moon Aspecting Aries Sign

मेषगत चंद्रमा के होने पर चंद्रमा इसके तत्वों में स्वयं को समाहित पाता है. चंद्रमा के साथ इसका समायोजन होने से व्यक्ति में सौंदर्य का आगमन होता है. वह आकर्षक रंग रूप का और गौरवर्ण का होता है. त्वचा में निखार रहता है और आकर्षण में भी वृद्धि होती है. जातक को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और वह अपने जीवन में अनेक लाभ भी पाने में सक्षम होता है. आर्थिक स्थिति में सदृढ़ता की प्राप्ति होती है अपने कामों से भी उसे अच्छे शुभ लाभ मिलते हैं.

व्यक्ति साहसी होता है और कार्यों को पूरा करने में भी पूरी हिम्मत से लगा रहता है. इसी के साथ वह अपने कर्मो में निष्ठा के साथ कार्यरत रहता है. स्वाभिमान से ओत-प्रोत रहता है और अपने जीवन में किसी भी निंदा को सुनने की क्षमता नहीं होती है. अपने द्वारा किए गए कार्यों में अच्छा स्वरूप देने की कोशिश भी करता है. इसी के साथ जातक में अंह की कुछ भावना भी झलक सकती है किंतु दूसरों के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने की चाह नहीं होती है. व्यक्ति अपने लक्ष्यों को सफलता से पूरा करता है.

यह स्थिति जातक को तीव्र बु​द्धि सुन्दर व सुग​ठित शरीर, चंचल तथा अस्थिर प्रकृ​ति वाला भी बनाती है. स्नेह से भरपूर होता है और सभी के साथ मित्रतायुक्त व्यवहार करने वाला बनाता है. समाज में सम्मान और अच्छे पद की प्राप्ति में भी सहायक होता है. अपने उदारपूर्ण कामों से यह दूसरों की मदद करने वाला बनता है.

धर्म कर्म के कामों में बढ़चढ़ कर भाग लेता है. अपनी धार्मिक निष्ठा से यह सात्विक कर्मों की ओर प्रवृत्त रहता है. किंतु यदि यह किसी पाप ग्रहों से युक्त हो या दृष्ट हो रहा हो तो फलों में बदलाव भी बना रहता है. कार्य तथा व्यवसाय में उतार चढ़ाव झेलने पड़ सकते हैं और मन कई अबूझ ​चिन्ताओं से ग्रस्त रह सकता है.

व्यक्ति में कामुकता रहती है, कमल के समान उसके हाथ पैर होते हैं. और नेत्र गोल और बडे़ होते हें. पुत्र संतान की प्राप्ति होती है और उनका सुख मिलता है. जल से भय रह सकता है तथा स्त्री पक्ष से पराजय भी झेलनी पड़ सकती है. इसी के साथ कई प्रकार के अन्य बातों का विचार होता है.

वृषगत चंद्रमा योग फल | Moon Aspecting Taurus

वृषगत चंद्रमा की स्थिति में उच्चता की ओर उन्मुख होता चंद्रमा शुभ फलों को देने में बहुत योग्य होता है. यह स्थिति व्यक्ति के मन:स्थिति को मजबूती देने वाली बनाती है और उसके स्वभाव में भी दृढ़ता आती है. जातक शारीरिक ऊप से मजबूत होता है कंधे चौडे़ और मजबूत होते हैं. चंद्रमा का सामान्य चरित्र परिवर्तनशील है और इस राशि में आकर वह स्थिरता का भाव भी पाता है इस कारण से जातक में अधिक चंचलता नहीं होती है.

यह जन-सामान्य में व्यक्ति को जनप्रिय बनाने में सहायक बनता है. व्यक्‍तित्व में मजबूती आती है और लोगों के मध्य में सम्मानित स्थान भी मिलता है. राजनीति में सफलता देता है , सामान्यतः जन-संपर्क में सहायक बातों का भी द्योतक बनता है. कल्पनाशीलता में वृद्धि होती है काव्य-रचना, संगीत व कला में इत्यादि कामों में व्यक्ति सफलता प्राप्त करने में सफलता भी पाता है. इससे मस्तिष्क लगनशील, धैर्यवान, कल्पनाशील और आशावादी बनता है.

जातक दानशील बनता है और अपने उदारता पूर्ण कामों से सभी के मन को भाता है. उमंग और उत्साह वाला बनता है, परोपकार, वात्सल्य भाव का प्रादुर्भाव होता है. विशिष्ट कार्य सिद्धि के साथ आत्मबल में भी वृद्धि होती है. व्यक्ति आर्थिक स्थिति से संतुष्ट रहता है और अपने धन में वृद्धि भी करता है.

सुंदर केश होते हैं हंसमुख स्वभाव होता है. जातक की चाल में विशेष आकर्षण देखा जा सकता है, नेत्र काफी सुंदर होते हैं. सभी अच्छे भोगों को भोगने कि चाह रखने वाला बनता है और मध्य अवस्था के पश्चात सुख वैभव को पाने में सफल भी रहता है. क्षमाशीलता इनका प्रमुख गुण होता है जातक अपने इसी गुण से शत्रुओं को भी अपने वश में करने के योग्य बनता है.

मिथुनगत चंद्रमा का फल | Moon Aspecting Gemini

मिथुन में स्थित चंद्रमा के होने पर जातक की बौद्धिक क्षमता की वृद्धि होती है. जातक मन में अनेक कल्पनाएं जन्म लेती रहती हैं. इस के साथ-साथ ही जातक का मन भी अनेक नई योजनाओं से भरा रहता है. इसमें होने पर जातक में स्वाभिमान की भावना भी खूब होती है. देखने में सुंदर और प्रभावशाली होता है और समाज में अग्रीण स्थान भी पाता है.

परिवर्तनशीलता बनी रहती है और जातक कुछ न कुछ बदलाव की चाह में लगा रहता है. किसी भी स्थितियों के लिए प्रतिक्रियाओं से भरपूर रहता है. अपने कर्मों से यह सभी को प्रभाव में डालने में सक्षम होता है. उल्लेखनीय सफलताओं को पाने में भी सफल होता है. सवाल-जवाब में अग्रसर और मजाकिया प्रतिक्रियाओं से भरपूर रहता है. एक सीधे सूत्री सादगी पसंद लघु, प्रासंगिक जवाब सामने रखने में काफी बेहतर होता है.

मन में बेचैनी और लगातार परिवर्तन की चाह से मन भी थक सकता है यह स्थिति एक समस्या भी बन सकती है, स्वाभाविक प्रतिक्रिया कोई रास्ता नहीं बचता है. एक सहज ज्ञान युक्त या भावनात्मक रूप में योग्य व्यक्ति बनता है. अपने आप में यह सबसे तार्किक, बौद्धिक केंद्रित तर्क से सीधे प्रश्न करने में बेजौड़ होता है. अंतर्ज्ञान से सहज होता है.

मिथुन में चंद्रमा के होने पर जातक की चाह उन्नत रहती है. लोगों की प्रतिक्रिया को समझने में सक्षम होता है. काव्यात्मक कलाओं की अभिव्यक्ति सहज ही इनमें होती है. कला से संबंधी कार्य, लेखन व वाक चातुर्य अच्छा होता है. जातक सभी सुखों को भोगने में सफल होता है. सौभाग्य की प्राप्ति होती है. हास्य व्यंग में रूचि रखने वाला होता है, स्त्रियों के सम्मुख प्रिय और उनसे दबने वाला होता है.

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 2”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 3”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 4”

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

कर्क लग्न का चौथा नवांश | Fourth Navamsha of Cancer Ascendant

कर्क लग्न का चौथा नवांश तुला राशि का होता है. यह नवांश जातक के सुख स्थान संबंधी परिस्थितियों का स्थान बी होता है जिससे जुडी़ सभी बातें जातक के लिए आवश्यक होती हैं और जीवन भर वह इन सभी के विषय में अधिक सोच-विचार भी करता है.

कर्क लग्न के चौथे नवांश तुला के स्वामी शुक्र हैं . इस नवांश में जातक का जन्म होने के कारण इनकी काया छरहरी रहती है. भौहें काली ओर आकर्षक आकार में ढली हुई होती हैं. छाती चौडी और कन्धे उठे हुए होते हैं. नाक उँची और नैन नक्श अच्छे होते हैं और पैनी दृष्टि होती है.

जातक में योग्यता होती है वह किसी भी कार्य को करने में शालीनता की भावना जरूर रखेगा और उसके काम में उसकी कलात्मकता का भी अनुभव होता है. यह अपने काम में एकाग्रता रखते हैं लेकिन कहीं-कहीं इनकी एकाग्रता टूट भी सकति है क्योंकि मन में चंचलता बहुत रहती है लेकिन फिर भी विचारों की उडा़न होने पर यह अपने लक्ष्य को पाने में सदैव तत्पर रहते हैं.

एक अच्छे रूप में यह अपनी प्रतिभा को निखारने की कोशिश भी करते हैं जिससे इनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है. इन्हें किसी एक जगह पर रहकर काम करने में मजा नहीं आता यह अपने स्थान में परिवर्तन की चाह भी रखते हैं जिस कारण इनके पूर्ण प्रदर्शन में कमी आ सकती है.

मित्रता निभाने में भी अच्छे रहते हैं किसी कि सहायता करने में इनका झुकाव बहुत रहता है और यह अपने सहानभूति पूर्ण कामों से दूसरों के लिए मददगार सिद्ध होते हैं. विचारों में उलझन होने पर भी यह शांत स्वभाव के होते हैं अपनी बात को समजाने का पूरा प्रयास करते हैं पर किसी भी बात को भूलते नहीं हैं बातें उनके अंत: मन में पूरी तरह से बस जाती हैं ओर सभी कुछ उनके विचारों को भी प्रभावित करता है. यह लोग स्थिरता और सुरक्षा में अच्छा प्रदर्शन करते हैं.

इस नवांश के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति ऐश्वर्य और आराम पसंद करने वाला होता है. वह साजो सामान खरीदने कि चाह रखने वाला होता है और महंगी वस्तुओं का शौकीन हो सकता है. वैभव में जीना तथा विलास पूर्ण ठाट-बाट की चाह रख सकता है. व्यक्ति के काम में भी सौंदर्य और सजावट का अनोखा मेल दिखाई दे सकता है.

इनके संबंध समय के साथ धीरे – धीरे विकसित होते जाते हैं. प्रारंभ में यह किसी रिश्ते में कुछ अलग से दिखाई दे सकते हैं लेकिन जब यह किसी से अच्छी तरह से परिचित हो जाते हैं तो संबंधों में मजबूती आने लगती है और दूसरों की प्रशंसा के पात्र भी बनते हैं.

कर्क लग्न के चौथे नवांश का महत्व | Importance of Fourth Navamsha of Cancer Ascendant

व्यक्ति का भावनात्मक और बौद्धिक स्तर अच्छा रहता है. इनमें भावनाओं का ज्वार बना रहता है व बहुत उच्च अभिलाषी भी रहता है. इनके करिश्माई और विनम्र स्वभाव से सभी इनसे मोहित रहते हैं. किसी भी विपरित स्थिति को समझने में इन्हें देर नहीं लगती है और यह परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढालने में काफी सफल रहते हैं.

जातक में चालाकी और समझ का अच्छा संगम होता है वह किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले एक स्थिति के सभी पहलुओं पर विचार करते हैं और यदि कभी स्थिति असमंजस की बनी हो तो दृढ़ संकल्प और दृढ़ता द्वारा उसे करने में भी पूरी तत्परता रखते हैं.

इस नवांश के प्रभाव से जातक को संपन्नता की प्राप्ति होती है. वह सुख के साथ जीवन यापन करता है. अपने काम को आगे बढा़ने में लगा रहता है. जातक अपने वर्ग के लोगों को आगे ले जाने में काफी सहायक बनते हैं. यह लोग काव्य व साहित्य के क्षेत्र में भी काफी अच्छे प्रयास करते हैं.

इनका ऎसे लोगों के साथ मेल जोल भी बना रहता है जो साहित्य प्रेमी होते हैं. इनकी पसंद काफी उत्कृष्ट होती है तथा लोग इनकी तारीफ भी करते हैं. जीवन साथी के रूप में इन्हें कभी कभी विचारों का मतभेद झेलना पड़ सकता है लेकिन प्रेम की कमी नहीं रहती है. आपमें समर्पण का पूरा भाव बना रहता है.

Posted in Navamsa Kundli, Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment