कर्क लग्न का सातवां नवांश | Seventh Navamsha of Cancer Ascendant

कर्क लग्न का सातवां नवांश मकर राशि का होता है यह शनि की राशि का नवांश है. जातक की कुण्डली में यह जन्म कुण्डली के नवांश में सप्तम भाव का उदय है इस स्थिति में जातक के जीवन का यह भाग उसे अधिक प्रभावित करने वाला रह सकता है. जातक का यह लग्न उसके रूप में समझदारी को दर्शाता है. जातक का रंग रूप देखने में उम्र से अधिक लग सकता है. इस नवांश के फल स्वरूप उसका रंग कुछ गेहुआं सा हो सकता है. उसके व्यवहार में तर्क संगता दिखाई देती है काफी गंभीर लग सकता है.

इस नवांश के अंतर्गत उक्त राशि के नक्षत्र के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए जिससे जातक के जीवन के सभी पहलुओं को समझना आसान हो सकेगा. जातक के आकर्षक नैन- नक्श होंगे. यह शांतिप्रिय, धार्मिक और सिद्धान्तवादी हो सकता है. इन्जिनियरिंग और टेक्नोलाजी के क्षेत्र में काम करने में माहिर हो सकता है. इनका परिवार का जीवन सीधा और सरल होता है. परंतु शांति और सकुन की कमी खल सकती है.

कर्क लग्न के इस नवांश में मकर राशि के जातक शिक्षा और पठन पाठन में रूचि रखने वाले होते हैं इन्हें संगीत और नृत्य भी काफ़ी पसंद होता है. जिसमें यह प्रसिद्धि पाने की चाह रख सकते हैं. जातक अपने विचारों में मजबूत होता है यह जल्दी से फैसले बदलने की इच्छा नहीं रखता किंतु इसके जीवन में अनेक प्रकार की बातें इन्हें अपने फैसले बदलने के लिए मजबूर कर सकती है. शिक्षा के संदर्भ में यह कुछ बदलाव भी कर सकते हैं आरंभिक शिक्षा से हटकर यह अपने लिए कुछ नया करने का विचार भी कर सकते हैं.

नवांश के प्रभाव स्वरूप जातक सेवा कार्य को करने वाला रह सकता है. दूसरों की मदद एवं सहायता के लिए प्रयास करने वाला हो सकता है. जातक में नौकरशाही का स्वरूप दिख सकता है यह अपने कार्यों में एक रसता से भी परेशान हो सकते हैं इसलिए कई बार काम में बदलाव का सोच सकते हैं. काम में अपने सहकर्मियों की मदद के लिए यह तैयार रहते हैं. इनके अधिक मित्र न भी हों तो भी यह अपने में खुश रहने वाले होते हैं.

कर्क लग्न के सातवें नवांश महत्व | Significance of Seventh Navamsha of Cancer Ascendant

समाजिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी देने की इनकी कोशिश लगी रहती है. यह कुछ जन कल्याण के कार्यों में भी भागिदारी करते हैं. किसी निर्माण कार्य में इनका योगदान रह सकता है भूमि संबंधी कामों में यह अच्छा कर सकते हैं जिनसे इन्हें लाभ भी मिल सकता है इसी के साथ यह जिस जगह काम करते हैं वहां की स्थिति को अच्छा रूप देने की चाह भी रखते हैं इनके भीतर कुछ कलात्मकता छुपी हो सकती है.

यह जीवन में उच्च और उच्चतम शिखर तक पंहुचने की चाह रखने वाले होते हैं. इन्हें स्वयं पर विश्वास रहता है कि यह अपने लिए निर्धारित उच्च लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे. इसी के कारण आप सफल भी रहते हैं और जीवन के उतार-चढावों से गुजरते हुए अपने कामों में ऊंचाईयां भी पाते हैं. इनकी इस बात के लिए दूसरे इनका सम्मान करते हैं. यह जोखिम लेने से हिचकते नहीं हैं. अपने कार्यों को पुर्वनियोजित तरीके से करते हैं. संबंधों के मामले में आप कुछ परेशान रह सकते हैं, रिश्ते जटिल हो सकते हैं व यह कुछ स्वार्थी हो सकते हैं.

जातक आत्म प्रेरित हो सकता है और किसी भी तरह जरुरत के हिसाब से मौकों को खोजने की कोशिश में लगे रहते हैं. इनमें एकाग्रता की अच्छी शक्ति होती है. मकर नवांश के स्वामी ग्रह के प्रभाव स्वरूप जातक को उसके कर्मों के अनुरूप ही फल मिलता है. जातक जिसके लायक है वही पा सकेगा. जीवन में जल्दबाजी या किसी छोटे मार्ग की ओर जाने से कुछ हासिल नहीं हो पाता है. यदि जातक ईमानदारी से काम करते हुए अपने मार्ग को नहीं छोड़ता तो उसे शुभ फलों की प्राप्ति अवश्य होती है. यह अपने सामाजिक और व्यावसायिक स्थिति की तलाश करने के लिए इसी शक्ति पर निर्भर कर सकते हैं.

इस नवांश के अनुरूप इससे प्रभावित व्यक्ति जहां भी होता हैं शांति और सौहार्द बनाये रखने में योगदान देता है. जातक के जीवन में परिश्रम और चिंता अधिक लगी होती है. परिवार कि ओर से भी इन्हें विशेष सहयोग नहीं मिल पाता है और भाग्य देर से जागता है इसलिए मेहनत का फल भी देर से मिलता है किंतु निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि फल का मिलना तो तय है.

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वर्षफल में लग्न, सूर्य, चंद्र और मंगल दशा विचार ऎसे करें

वर्षफल में दशा विचार के लिए कुछ सिद्धांतों को समझते हुए वर्षफल कुण्डली को जानने में सहायता मिलती है. यदि दशा में भाव और ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो तो फल भी अच्छे प्राप्त होते हैं और जातक को जीवन में सुख एवं संतोष की प्राप्ति होती है.

लग्न दशा | Ascendant’s Dasha

लग्न दशा मिलने में एक सामान्य सिद्धांत का सदैव लागू होता है कि यह दशा जातक के लिए अनुकूल मानी गई है लेकिन यदि इसे सुक्ष्म स्तर पर जांचने का प्रयास करें तो हम जान सकेंगे कि यहां यदि लग्न बलिष्ठ स्थिति में हो तो बहुत अच्छे फल देने में तत्पर रहता है. जातक का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और जीवन में स्फूर्ति व रोमांच बना रहता है. समाज में अपनी प्रतिष्ठा में अनुकूलता पाता है उसे समाज में सम्मान की प्राप्ति होती है.

लोगों में उसकी महत्ता को आगे तक जाने में मदद मिलती है. परिवार और कार्य सभी ओर से प्रशंसा प्राप्त होती है. वहीं जब लग्न कुछ कमजोर होता है और वह निर्बल होता है तो इसके विपरित स्थितियां सामने आने लगती हैं. मानसिक चिंताओं से व्यक्ति घिरा रहने लगता है. धन की बचत करने की चिंता रह सकती है व कुछ मनमुटाव जीवन में उभरने लगते हैं. लग्नेश के बल का अनुमान द्रेष्कोण में उसकी स्थिति के द्वारा ही किया जाता है जिससे सही स्थिति का पता लगाया जा सके.

लग्न यदि चर राशि से युक्त होने पर पहले द्रेष्कोण का शुभ फल मिलता है, दूसरे में मध्यम और तीसरे में खराब फल मिलते हैं. लग्न अगर स्थिर राशि से युक्त हो तो पहले द्रेष्काण होने पर अशुभ फल मिलते हैं, दूसरे द्रेष्काण में शुभ फल मिलते हैं और तीसरे में मध्यम फलों की प्राप्ति होती है. वहीं अगर लग्न द्विस्वभाव राशि से युक्त हो तो पहला द्रेष्काण में खराब फल मिलते हैं दूसरे में मिलेजुले फल और तीसरे में शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

लग्न या लग्नेश शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो भी प्रभावों में शुभता देखने को मिल सकती है और यदि लग्न और लग्नेश अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो रहा हो तो फलों में न्यूनता आ जाती है और सामान्यत: परेशानियां बनी ही रहती हैं.

सूर्य दशा | Sun’s Dasha

सूर्य की स्थिति के अनुरूप जातक को फलों की प्राप्ति होती है. सूर्य के मजबूत या अच्छी स्थिति में होने पर जातक को सरकार और राज्य की ओर से आगे बढ़ने के अवसर मिलते हैं. धर्म कर्म के कार्यों में व्यक्ति उत्साह से भाग लेता है. सात्विकता का पालन करने की चेष्ठा भी रखता है. सामाजिक जीवन में अपना एक विशेष स्थान होता है.

वहीं दूसरी ओर कमजोर सूर्य की दशा झगडे़, विवाद, नेत्र रोग, पित्त संबंधि विकार प्रदान करती है. तीसरे, छठे, आठवें ओर एकादश भाव में सूर्य अनुकूल फल देने वाला रहता है यदि वह कमजोर भी हो तो भी इन स्थानों में जातक को अनुकूल फल देने में सक्षम होता है.

चंद्रमा दशा | Moon’s Dasha

चंद्रमा एक सौम्य ग्रह जो शीतला से पूर्ण व सौम्यता देता है. इसकी दशा में जातक अच्छे व्यवहार व शांत स्वभाव से युक्त होगा, जातक को सौंदर्य पूर्वक रहने की चाह भरता है. संपत्ति से युक्त करता है. शयन सुख और अच्छे वस्त्रों की प्राप्ति करने में मददगार होता है.

कमजोर होने पर मित्रों से तनाव की स्थिति, मन में भय की स्थिति व चंचलता देता है, असंतोष का भाव लाता है. धन की हानि और भोजन में अरूचि जगाता है, मन से असंतुष्ट रहने वाला होता है. सुखों में कमी आने लगती है.

मंगल दशा | Mars’ Dasha

मंगल की दशा मजबूत होने पर जतक में साहस और निर्भयता आती है, जातक अपने परिश्रम के द्वारा अपने को सफलता की ओर ले जाता है. व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाता है. नेतृत्व करने में आगे रहता है, भू संपत्ति में समृद्धि मिलती है.

कमजोर स्थिति में व्यक्ति को भय की स्थिति परेशान करती है, जातक को रक्त संबंधि विकार हो सकते हैं क्रोध की अधिकता व चिड़चिडा़पन बना रह सकता है. चोई का भय ओर अजनबियों से हानि होती है. 3, 6 और 11 भाव में अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है.

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सूर्य का 12 भावों पर प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में हर ग्रह अच्छे और बुरे दोनो ही प्रकार के फल प्रदान करने में सक्षम होता है. यह फल ग्रह की कुंडली में स्थित पर निर्भर करते हैं कि वह कि किसी कुंडली विशेष के लिए शुभ है या अशुभ है अथवा शुभ होकर कमजोर तो नहीं है. आज हम सूर्य की स्थिति विभिन्न भावों में होने पर उसके द्वारा प्रदान अशुभ फलों की चर्चा करेगें. इन भावों में सूर्य जब अशुभ स्थिति में होगा तभी बुरे फल प्रदान करेगा अन्यथा नहीं करेगा.

सूर्य की स्थिति पहले तथा दूसरे भाव में | Sun’s Effects in First and Second House

जन्म कुंडली के प्रथम तथा दूसरे भाव में अशुभ सूर्य के परिणाम बताने का प्रयास करते हैं. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम भाव में अशुभ या निर्बल सूर्य स्थित है तब उसे जीवन में बहुत से अवरोधों तथा बाधाओ का सामना करना पड़ता है.

जन्म कुंडली में पहले भाव का सूर्य व्यक्ति के सिर के बाल बहुत कम करता हैं और उसे हड्डियो से जुड़े रोग भी प्रदान करता है. ऎसे व्यक्ति को क्षय रोग होने की संभावना बनती है और क्रोध भी अधिक आता है.

दूसरे भाव में सूर्य की स्थिति जीवनसाथी तथा माता दोनो के लिए अशुभ मानी गई है. दूसरा भाव कुटुम्ब तथा धन के लिए भी देखा जाता है. सूर्य पृथकतावादी ग्रह है इसलिए इस भाव में सूर्य की स्थिति परिवार से व्यक्ति को अलग करा सकती है और धन संबंधी बातों के लिए भी शुभ नहीं माना गया है. व्यक्ति को मलाशय से जुड़े रोग होने की संभावना बनती हैं.

सूर्य की स्थिति तीसरे तथा चतुर्थ भाव में | Sun’s Results in Third and Fourth House

अब तीसरे व चतुर्थ भाव में सूर्य के प्रभावों के बारे में चर्चा करते हैं. जन्म कुंडली के तीसरे भाव का सूर्य मामा के लिए शुभ नहीं माना गया है. व्यक्ति के पड़ौसियों के साथ भी मधुर संबंध नहीं होते हैं और संचार में कमी रहती है.

व्यक्ति के चरित्र में कमी हो सकती है तथा वह बुरी लतो का भी शिकार हो सकता है. तीसरे भाव का सूर्य चोरी का भय देता है. चतुर्थ भाव का सूर्य माता से अलगाव पैदा करता है. व्यक्ति बुरी आदतो का त्याग बिलकुल भी नहीं करता है. व्यक्ति की अपने ससुराल वालों से निभती तथा बनती नहीं है. यदि व्यक्ति लोभी अथवा लालची होता है तब वह अपना सभी कुछ गँवा सकता है.

पंचम व षष्ठ भाव में सूर्य का प्रभाव | Sun’s Bad Effects in Fifth and Sixth House

इस भाग में हम पांचवें तथा छठे भाव के सूर्य की बात करेगें. पांचवें भाव में सूर्य होने से व्यक्ति की शिक्षा प्रभावित हो सकती है. पंचम भाव से संतान प्राप्ति को भी देखा जाता है. इस भाव में सूर्य के होने से संतान प्राप्ति में बाधा हो सकती है अथवा व्यक्ति का किन्हीं कारणो से बच्चो से अलगाव हो सकता है.

पंचम भाव के सूर्य से कई बार व्यक्ति पुत्र प्राप्ति के बाद ही जीवन में तरक्की करता है लेकिन आधुनिक समय में यह बात कुछ अटपटी सी लग सकती है क्योकि आजकल अभिभावक एक या दो से अधिक संतान चाहते ही नहीं है.

आइए छठे भाव के सूर्य की बात करते हैं. छठे भाव का सूर्य स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव देता है, हो सकता है व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की शिकायत रहे. व्यक्ति को ननिहाल पक्ष के लोगो से प्रथक कर सकता है अथवा नाना-नानी के स्वस्थ्य के लिए प्रतिकूल हो सकता है.

सातवें भाव तथा आठवें भाव का सूर्य | Sun’s Position in Seventh and Eighth House

इस भाग में हम सातवें तथा आठवें भाव के सूर्य की बात करेगें. सातवें भाव का सूर्य व्यक्ति को जीवनसाथी से अलग करा सकता है. जातक का अपना स्वयं का स्वास्थ्य प्रभावित रह सकता है. उसे क्षयरोग, ल्यूकोडर्मा अथवा कोई ऎसा रोग हो सकता है जो चिकित्सक की पकड़ में ना आ पाए.

व्यक्ति पैसे का अपव्यय कर सकता है जिससे उसके परिवार को भुगतना पड़ सकता है. आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है. आठवें भाव के सूर्य की चर्चा करते हैं. आठवें भाव का सूर्य व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है. यदि किसी व्यक्ति के विवाहेतर संबंध है तब उसे उन संबंधो का बुरा प्रभाव जीवन पर देखने को मिल सकता है.

नवम तथा दशम भाव का सूर्य | Sun’s Effects in Ninth and Tenth House

नवम तथा दशम भाव के सूर्य की ओर बढ़ते हैं. नवम भाव का अशुभ सूर्य पिता से अलगाव कराता है. नवम भाव एक बली धर्म त्रिकोण है. इस भाव का अशुभ सूर्य धर्म के प्रति अरुचि पैदा करता है.

दशम भाव में सूर्य के प्रभावों को जानते हैं. दशम भाव का सूर्य परिवार की शांति को भंग कर सकता है. अशुभ सूर्य की स्थिति व्यवसाय में अनिश्चितता प्रदान करती है. व्यक्ति को घुटनों की तकलीफ भी दशम का अशुभ सूर्य देत सकता है.

एकादश तथा द्वादश भाव के सूर्य का परिणाम

एकादश तथा द्वादश भाव के सूर्य की स्थिति पर विचार करते हैं. एकादश का अशुभ सूर्य व्यक्ति की उम्र पर प्रभाव डालता है. व्यक्ति की आय, अपने बनाए घर तथा मान-सम्मान सभी पर अशुभ सूर्य का बुरा प्रभाव पड़ता है.

द्वादश भाव के सूर्य की बात करते हैं. द्वादश भाव का सूर्य व्यक्ति के विचारों में कमी देता है अर्थात सोचने समझने की क्षमता में कुछ कमी रह सकती है. द्वादश भाव का सूर्य नींद में खलल पैदा करता है और शैय्या सुख भी कम हो सकती है. इस भाव का सूर्य बांई आंख से संबंधित बीमारी भी दे सकता है.

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चंद्रमा का तुला-वृश्चिक और धनु राशि को देखने का फल

तुलागत चंद्रफल | Moon Aspecting Libra Sign

चंद्रमा के तुला राशि में होने से जातक का मन ख्यालों और कल्पनाओं की उडा़न में लगा रहता है. तुलागत चंद्रमा होने से व्यक्ति अकेले रहना पसंद नहीं करता है उसे सभी के साथ तथा साझेदारी में पनपने की चाह होती है.सामाजिक होते हैं और सभी के साथ सहानुभूति रखते हैं और वे एक गर्मजोशी से प्रेम की अभिव्यक्ति भी रखते हैं. उन्होंने कहा कि वह साथ एक बौद्धिक और भावनात्मक संबंध महसूस कर सकते हैं.

तुलागत चंद्रमा के होने से हर समय उनके साथ किसी का होना तथा वह किसी से जुडे़ रहें इस बात की चाह बनी रहती है. वह किसी के साथ होने पर अपने साहस में और ताकत पर विश्वास करते हैं. आम तौर पर बहुत कोमल और व्यवहार में परिष्कृत होते हैं. आसानी से दोस्त बना लेते हैं और मन व व्यवहार से चंचल हो सकते हैं.

तुला में चंद्रमा अपनी तरह से काम करने की चाह रखते हैं. दूसरों की सहायता के साथ अपने लक्ष्यों को पूरा करेते हैं. उत्कृष्ट योजनाकारों बन सकते हैं.यह अक्सर अनिश्चित व्यवहार वाले हो सकते हैं. इनका मूड, पल – पल को बदल सकता है. यह सभी परिवर्तनों के दौरान शांत और आमतौर पर प्रसन्न होते हैं.अपनी भावनाओं को छिपाना इनके लिए काफी कठिन होता है. अपने व्यक्तित्व को बदल सकते हैं. यह कौशल नहीं अपितु इनकी एक चाल है. यह समय पर किसी को भी भ्रमित कर सकते हैं. ललित कलाओं के प्रति जातक की विशेष रूचि होती है.

वृश्चिकगत चंद्रफल | Moon Aspecting Scorpio Sign

वृश्चिक चंद्रमा के होने पर व्यक्ति में भावनात्मक तीव्रता अधिक होती है. यह एक योद्धा का रूप होते हैं. अपने अंतरतम भावनाओं को दिखाने में विश्वास नही रखते हैं. किसी के सहारे की अधिक आवश्यकता इन्हें नहीं होती है. यह कुछ लोगों के लिए और दूसरों के लिए साज़िश जैसे काम से उन्हें परेशान भी कर सकते हैं. परिवर्तन की चाह इनमें खूब रहती है. जीवन को अपने नियंत्रण से बाहर नहीं जाने देना चाहते हैं.

वृश्चिक चंद्रमा सब करना चाहता है, प्रतिबद्धता चाहते हैं. जातक शर्मीले होते हैं, अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के का गुण इन्हें समझने की आवश्यकता होती है. यह अपने स्वयं के लाभ के लिए अपनी सोच का पूर्ण इस्तेमाल करने के लिए तैयार रहते हैं. भावुक और निडर होते हैं. मन की जटिलताओं को समझने में माहिर होते हैं इसलिए एक अच्छा मनोवैज्ञानिक बन सकते हैं.

वृश्चिक चंद्रमा दृढ़ होते हैं और जो कुछ करना चाहते हैं उसे करके ही दम लेते हैं. इनकी जिद के कारण यह खुद के लिए भी परेशानी खडी़ कर सकते हैं. भावनात्मक भौतिकवादी, कामुक और गोपनीय होते हैं. दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर सकने की क्षमता जानते हैं. इन्हें आलोचना सुनना पसंद नहीं होता है. इससे प्रभावित होने पर जातक कुछ लोभी भी हो सकता है. कठोर शरीर वाला होता है, क्रूर कर्मों की ओर प्रवृत्त भी रह सकता है. इनमें घमंड की भावना भी दिखाई देती है जिस कारण लोग इनसे दूरी बना सकते हैं.

धनुगत चन्द्रफल | Moon Aspecting Sagittarius

धनु गत चंद्रमा के होने से जातक मजबूत देह वाला होता है, इनके बाल घने होते हैं, यह जीवन की हर कठिनाई को झेलने की कोशिश में लगे रहते हैं, जूझारू होते हैं. इनकी आँखों में विशेष चमक होती है जो दूसरों को इनकी ओर आकर्षित करती है. इनके चाल-ढाल में बेचैनी आ जाती है, यह उदार प्रकृति और दूसरों की मदद करने वाले लोग होते हैं. इन्हे बदलती परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढलना आता है.

यह कोई भी आदत आसानी से नहीं बनाते और किसी भी चीज के लिए इनकी आदत एक तो बनती नहीं हैं और एक बार बन जाती है तो फिर उससे हटते भी नहीं हैं. यह क्रोध अधिक करते हैं और कभी कभी कुछ क्रूर भी हो सकते हैं. यह धन के बारे में अधिक सोच विचार नहीं करते हैं.यह खूब खर्च भी करते हैं इस कारण धन की कमी भी बन सकती है. अगर अपने खर्चों में कुछ कटौती करें तो आर्थिक तंगी से बच सकते हैं.

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 1”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 2”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 4”

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कर्क लग्न का पांचवां नवांश | Fifth Navamsha of Cancer Ascendant

कर्क लग्न का पांचवां नवांश वृश्चिक राशि का होता है. जातक गम्भीर, प्रखर बुद्धि का आदर्शवादी, उत्साही व चंचल प्रकृति का होता है. इस नवांश वाले जातक सौम्य प्रकृति के होते हैं. इस नवांश का स्वामी मंगल है और यह एक जलतत्व की राशि में होने से जातक तुनक मिजाजी, स्पष्टवक्ता होता है जातक के बोलने का अंदाज दुसरों के लिए कष्ट कारक भी बन सकता है क्योंकि यह प्रतिक्रिया बहुत जल्दी करते हैं अत: इनकी यह प्रतिक्रिया कठोर हो सकती है जिस कारण दूसरे इनसे आहत भी हो सकते हैं.

यह मजबूत कंधे, तीखे नैन-नक्श, हष्ट-पुष्ट शरीर वाले होते हैं. इनकी आवाज में आकर्षण और आत्मविश्वास होता है और यह मुंहफट भी हो सकते हैं. इनकी प्रकृति काफी गोपनीय,गंभीर और शांत होती हैं जिस करण इनके मन की थाह ले पाना मुशकिल होता है.

यह अपने विचारों को जल्द से दूसरों के समक्ष नहीं रखते काफी विचारशील रहते हैं और मन में अनेक बातें सोचते रहते हैं. उपरी तौर पर यह काफी मजबूत दिखते हैं और आंडबर रहित होते हैं. इसलिए कभी कभी लोग इन्हें ठीक प्रकार से समझ नहीं पाते हैं.

इस नवांश के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति में योद्धा होने के गुण होते हैं वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए जूझारू बना रहता है. किसी भी काम को करने में वह प्रयासरत रहते हुए अपने काम को पूरा करने की लगन इनमें खूब होती है. स्वभाव में किसी भी वस्तु को पाने की जब ललक पैदा होती है तो जातक में बदले की भावना भी उत्पन्न हो सकती है.

इनकी यह आदत दुर्भाग्यपूर्ण हो सकती है जिस कारण इन्हें लोगों से दूरी भी झेलने वाली होती है. इन्हें प्यार, खुशी और विश्वास जो इन्हे इनके प्रियजनों से मिलना चाहिए था उससे दूर भी कर सकता है. यदि यह अपने भीतर क्रोध और विद्वेष को दूर करने का प्रयास करें तो इनका व्यक्तित्व और भी अधिक बेहतर रूप से सामने आ सकता है.इनमें असाधारण इच्छा शक्ति होती है जिस कारण यह अपने प्रयासों में सफलता भी पा लेते हैं.

यह लोग जटिलताओं से बचने के लिए गम्भीर रह सकते हैं इनका व्यक्तित्व रहस्यमय हो सकता है कुछ पता चल पाना आसान नहीं होता है. इनकी प्रकृति उतार-चढ़ाव वाली इनके मूड को समझ पाना मुशकिल है. यह लोग सभी से उदारता की भावना से प्रेम करते हैं और मददगार भी होते हैं.

जातक शक्तिशाली व स्पष्टवादी होता है जिसके कारण लोगों से ठीक से पटती नहीं है. ये गुप्त तथा कठिन विषयों को जानने की कोशिश में लगे रहते हैं गूढ़ विषयों में अध्ययन की चाह रखते हैं. अपने नियमों और सिद्धान्तों के पक्के होते हैं और संघर्ष करने से पिछे नहीं हटते हालांकि, यह शिकायत कर सकते हैं कि सहयोगी ही इनके तनाव का सबसे बड़ा कारण व अटकाव हैं.

इस नवांश से प्रभावित होने पर जातक अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहने वाला होता है और जीवन का आनंद लेने की चाह रखता है. इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहती हैं, जिस कारण यह बीमारी से जल्द ही निजात पा लेते हैं.

इनमें जोखिम लेने की प्रवृत्ति खूब होती है इसलिए इन्हें दुर्घटनाओं के प्रति सावधान रहना चाहिए तथा इन्हे उचित सावधानियां लेने की जरूरत रहती है. यह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से बचते हैं जो इनका एक और कमजोर पक्ष हो सकता हैं जिस कारण मानसिक दबाव बना रह सकता है इसलिए अपने को सीमित न रखें अपनी इच्छाओं को भी दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करें.

जातक कि चाह रहती है की दूसरे लोग इन्हे जाने व समझे, परंतु अपनी शर्तो तथा बुद्धिमता को सर्वश्रेष्ठ मानने के कारण ही अन्य लोगों के साथ इनका तालमेल सही नहीं बैठ पाता है और यह शीघ्र ही असन्तुष्ट व दुःखी हो जाते है. शक्ति के प्रशंसक व कड़े प्रतियोगी होते है. इन्हें अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं होती है. यह अपने व्यक्तित्व के बल पर ही अपने शत्रुओं को हावी नहीं होने देते हैं.

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सूर्य अगर इन राशियों में होगा तो देगा ये फल

वैदिक ज्योतिष में हर राशि में हरेक ग्रह का अपना भिन्न प्रभाव होता है. राशि के कारकत्व तथा ग्रह के कारकत्व मिलकर ही व्यक्ति को फलों की प्राप्ति कराते हैं. कई बार शुभ तो कई बार अशुभ फलों की प्राप्ति होती है. कुछ राशि में ग्रह अनुकूल फल प्रदान करते हैं तो कुछ में प्रतिकूल फल भी प्रदान करते हैं. आज हम सूर्य की स्थिति का आंकलन सिंह, कन्या, तुला तथा वृश्चिक राशि में करेगें. सूर्य इन राशियों में किस तरह के फल देने में सक्षम होता है उसका सामान्य अध्ययन किया जाएगा.

सिंह राशि में सूर्य की स्थिति | Sun’s effects in Leo Sign

हम सबसे पहले सूर्य की स्थिति का सिंह राशि में अवलोकन करेगें. सिंह राशि सूर्य की स्वराशि होती है और यही राशि सूर्य की मूलत्रिकोण राशि भी होती है. आप दूसरों से सच्चा प्रेम व अनुराग रखने वाले व्यक्ति होगें. आपको एक बार जिससे अनुराग हो गया तब आप उसे बहुत अच्छे से निभाते भी हैं.

सिंह राशि का स्वामी सूर्य है जो ग्रहों में राजा होता है और सिंह राशि का प्रतीक चिन्ह शेर होता है जो जंगल का राजा माना जाता है. इन्हीं गुणो के कारण आप निडर व साहसी व्यक्तित्व के होगें. सिंह राशि अग्नितत्व होती है इसलिए आपके व्यक्तित्व में तुनक मिजाजी भी हो सकती है अर्थात आप हर बात पर बहुत जल्दी ही तुनक कर पड़ते हैं.

आप अत्यधिक महत्वाकांक्षी होगें और जीवन में बहुत कुछ पाने की चाह रखने वाले होगें. आपके अंदर अभिमान तथा घमंड भी ज्यादा रहने की संभावना बनती है. आप आत्म केन्द्रित रहने वाले व्यक्ति होगें और इस कारण आप स्वयं में ही ज्यादा खोये से रह सकते हैं.

सूर्य का कन्या राशि में स्थित होना | Sun’s Position in Virgo Sign

अब हम कन्या राशि में सूर्य के प्रभाव का वर्णन करेगें. कन्या राशि में सूर्य होने से आप शर्मीले स्वभाव के होगें. आप बहुत शीघ्रता से किसी के साथ घुलने-मिलने वाले नही होगें. आप अपने मन की बात कम ही सुनेगें और अपनी बुद्धि का उपयोग अधिक करेगें. आपके अधिकतर फैसले दिमाग से लिये गये होते हैं. आप दिल की भावनाओ को मस्तिष्क पर हावी नहीं होने देगें.

आप अच्छे रंग-रुप वाले होगें और अच्छा व्यक्तित्व भी होगा. आपकी वाणी भी मीठी होगी और आप सभी से मीठा ही बोलना पसंद भी करते हैं. आप हर समय चिन्ता करने वाले हो सकते हैं अर्थात आप किसी ना किसी चिन्ता में स्वयं को पा सकते हैं. आपको आदत भी होगी जरा जरा सी बात पर चिन्तित रहने की.

आपको विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण रहने की संभावना बनती है. आप उनमें रुचि रख सकते हैं. आप बातचीत करने में अत्यधिक वाकपटु व निपुण हो सकते हैं. आपको संगीत में रुचि होगी और आपको संगीत सभाओ में रुचि बनी रह सकती है.

आप बहुत ज्यादा बोलने वाले हो सकते हैं, आपको किसी भी विषय पर बोलने के लिए यदि कहा जाए तो आप बोल सकते हैं.

तुला राशि में सूर्य | Sun in Libra Sign

सूर्य की स्थिति का वर्णन अब हम तुला राशि में करते हैं. इस राशि में सूर्य नीच का होता है. तुला राशि में सूर्य के नीच होने इसकी स्थिति शुभ नहीं मानी जाती है. यहाँ सूर्य कुछ निर्बली माने जाते हैं.

तुला राशि का स्वामी ग्रह शुक्र होता है जिसे सौन्दर्य से संबंधित माना जाता है इसलिए आप सुंदरता के प्रेमी होगें. आप सभी कार्यो को सुरुचिपूर्ण और योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं.

आप न्यायप्रिय व्यक्ति होते हैं और आपको अन्याय पसंद नहीं होता है. आप कभी किसी के साथ भूलकर भी अन्यय नहीं करते हैं. आप सदा दूसरों का उपकार करने वाले होते हैं और उनकी सहायता करते हैं.

आप दूरदृष्टि रखते हैं और सूक्ष्मछिन्द्रान्वेषी होते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी बात के बारे में आगे आने वाले समय तक में उसके लाभ – हानि की बात आप सोच लेगें. हर बात को आप बहुत ही सूक्ष्मता से देखते हैं कि यह कैसे होगी, कब होगी, इसे कैसे कर सकते हैं आदि बातों का सोच विचार कर ही आगे बढ़ते हैं.

सूर्य अग्नितत्व ग्रह है और तुला राशि चर राशि मानी गई है इसलिए आपका मस्तिष्क कई बार ज्यादा ही भागने लगता है और बुद्धि में अस्थिरता सी रहती है.

वृश्चिक राशि में सूर्य की विशेषता | Sun’s Characteristics in Scorpio Sign

अंत में अब हम सूर्य की स्थिति का अवलोकन वृश्चिक राशि में करेगें. वृश्चिक राशि सूर्य की मित्र राशि मानी जाती है क्योकि वृश्चिक राशि के स्वामी ग्रह मंगल होते हैं जो सूर्य के मित्र होते हैं.

किसी भी जन्म कुंडली में सूर्य यदि वृश्चिक राशि में स्थित है तब वह अपनी सिंह राशि से दशम भाव में स्थित होता है. किसी भी ग्रह का अपने से केन्द्र या त्रिकोण भाव में जाना शुभ ही माना जाता है.

वृश्चिक राशि जल तत्व राशि होती है इसलिए जब सूर्य यहाँ स्थित होता है तब आपके अंदर भावनाएँ बहुत होती हैं. आप बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति होते हैं और भावनाएँ आपके भीतर कूट – कूटकर भरी होती हैं.

इस राशि में सूर्य के होने से आपकी छाती चौड़ी होती है. आप धन खर्च करने में थोड़े से कंजूस व्यक्ति होते हैं. यदि धन खर्च करना हो तो बहुत ही सोच – समझकर योजनाबद्ध रुप से करते हैं. वृश्चिक राशि के सूर्य के कारण आप जीवनभर नाखुश से रहते है अर्थात आप कभी भी किसी बात से संतुष्ट नहीं होते हैं.

“सूर्य का विभिन्न राशियों में स्थिति पर विचार – भाग 1”

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कुण्डली में पायलट व एयर होस्टेस बनने के योग | Yogas To Become Pilot and Air Hostess

जन्म कुण्डली द्वारा जातक के कैरियर के बारे में जानकारी प्राप्त करने में योगों का बहुत योगदान रहता है आज के समय में देश-विदेशों के साथ संपर्क साधना बहुत आसान हो गया है ग्लोबलाईजेशन के इस युग में हवाई जहाजों द्वारा देश विदेश मे आवागमन बढते जाने के कारण विमान चालकों अर्थात पायलट और परिचारिकाओं अर्थात एयर होस्टेस की मांग बहुत बढ़ रही है. युवाओं में भी इस नौकरी का आकर्षण खूब है एक ग्लैमर और रोमांच से जुडा़ यह काम युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने वाला बनता है.

कुण्डली में अनेक प्रकार के ऎसे योग बनते हैं जो पायलट बनने के क्षेत्र में काफी सहयोगी होते हैं जिनके बनने से जातक इस कैरियर को आसानी से अपना सकता है. ज्योतिष के माध्यम से यह जाना जा सकता ही बच्चा इस क्षेत्र में कुछ कर सकता है या नहीं. निचे दिए गए कई प्रकार के योग इस काम के करने में प्रबल सहायक बनते हैं.

  • पायलेट जैसे काम को करने के लिए सर्वप्रथम व्यक्ति में साहस और पराक्रम, बौद्धिकता, खूब होना चाहिए अत: कुण्डली में लग्न, तीसरे भाव, कर्म भाव, अष्टम स्थान और द्वादश भाव की भूमिका तय कि जाती है जिसके आधार पर इस कार्य को करने की योग्यता एवं ग्रह योग का निर्धारण किया जाता है.
  • लग्न, पराक्रम भाव, कर्म भाव और अष्टम भाव को वायु तत्व व आकाश तत्व वाली राशियों से संबंधित होना चाहिए. इसके अतिरिक्त इन भावों में चर रशियां अथवा द्विस्वभाव वाली राशियों का होना अनुकूल माना जाता है.
  • कर्म भाव अर्थात दशम भाव में शुक्र की राशि स्थित हो और इस भाव पर भाग्येश, लग्नेश व लाभेश इत्यादि का किसी भी प्रकार से संबंध बन रहा हो.
  • वायु कारक राहु का चंद्रमा के साथ व्यय भाव में या चतुर्थ भाव में हो या इनसे संबंध बना रहा हो तथा दशमेश शुभ स्थिति में त्रिकोण स्थान में स्थित हो तो व्यक्ति को हवाई यात्राओं से संबंधित काम करने को मिलता है.
  • यदि जन्म कुण्डली के लग्न भाव में चर राशि का राहु स्थित हो तथा वह तृतीयेश के साथ दृष्टि संबंध बना रहा हो. दशमेश चंद्रमा का संबंध बारहवें भाव या तीसरे भाव से हो रहा हो. दशम भाव को किसी भी रूप में लग्नेश और भाग्येश प्रभावित करते हों तो इस स्थिति में भी जातक हवाई उडा़न से संबंधित कमों में रूचि रखता है और इस क्षेत्र में नाम कमा सकता है.
  • लग्न चर राशि का हो और वह दशमेश राहु के साथ युति संबंध बनाते हुए तीसरे भाव, बारहवें या अष्टम भाव में बैठा हो. शुक्र कर्म भाव को किसी भी तरह से प्रभावित करता हो और तृतीयेश का संबंध पंचमेश अथवा भाग्येश से हो रहा हो तथा मंगल लग्न या कर्म भाव से संबंध बना रहा हो तो जातक पायलट बन सकता है अथवा हवाई यात्रा से संबंधित अन्य कामों को भी कर सकता है.
  • जन्म कुण्डली में राहु द्वादश भाव में स्थित होकर शुक्र को प्रभावित करता हो तथा द्वादश भाव का स्वामी दशम भाव में स्थित हो या उसे प्रभावित करे, कर्मेश का संबंध सप्तमेश के साथ हो व मंगल और चंद्रमा भी प्रभावित हो रहे हों तो जातक पायल या एयर होस्टेस का कार्य कर सकता है.
  • शुक्र और राहु लग्न, तृतीय भाव, दशम भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव या द्वादश भाव से संबंध बनाए और लग्नेश का संबंध भी अष्टम भाव, द्वादश भाव या तीसरे भाव या दशम भाव से संबंध बना रहा हो तो जातक हवाई यात्रा में रूचि रख सकता है.
  • द्वादशेश का संबंध पंचमेश से हो रहा हो, भाग्येश व कर्मेश का संबंध तृतीयेश या अष्टमेश से हो रहा हो और दशम भाव का राहु या शुक्र द्वादशेश से प्रभावित हो रहा हो तो जातक पायलट या एयरहोस्टेस का काम कर सकता है.

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कर्क लग्न का छठा नवांश | Sixth Navamsha of Cancer Ascendant

कर्क लग्न का छठा नवांश धनु राशि का होता है. यह नवांश गुरू के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करता है. साथ ही यह नवांश जातक के स्वरूप को भी एक ओजपूर्ण व्यक्तित्व देने वाला होता है. जातक का रंग गौरवर्ण का होता है उसकी आंखे सुंदर व बडी़ होती हैं. कद लम्बा व शरीर हष्ट-पुष्ट होता है. इनकी वाणी से लोग प्रभावित रह सकते हैं. यह एक कुशल वक्ता के रूप में विचारों को दूसरों के मन में छाप छोड़ने वाला रह सकता है.

इसके प्रभाव से जातक में शालिनता के साथ साथ विशेष आकर्षण भी रहता है जो जातक को दूसरों के मध्य अलग बनाता है. जातक धनवान होगा, उसकी प्रसिद्धि बनी रहेगी वह अपने कार्यों द्वारा दूसरों के हित के लिए प्रयास भी कर सकता है. उसमें उदारता का गुण सहज ही रहता है वह बाहर से चाहे कठोर दिखे किंतु उसके अंत:मन में एक कोमल हृदय सदैव वास करता है. दूसरों के दुख में दुखी और दूसरों की खुशि से खुश वह लोगों का हितैषी रह सकता है.

शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्ति अपना अच्छा प्रदर्शन करने की कोशिश करता है और उसे सफलता भी मिलती है. प्रतियोगिता में यह अपने प्रयासों से काफी बेहतर स्थान पाता है. जातक अपनी शिक्षा के लिए विदेश भी जा सकता है और इसी के साथ साथ उसे बहुत मेहनत भी करनी पड़ती है कई बार व्यवधानों के आने से उसे रूकावट का सामना करना पड़ सकता है व्यर्थ के अटकाव जातक के लिए काफी परेशानी वाले रह सकते हैं साथ ही उसे इन सब से कई बार निराशा भी हाथ लग सकती है किंतु यदि जातक प्रयासरत रहे तो वह अपनी राह को पाने में काफि हद तक सफल हो सकता है.

धनु नवांश से प्रभावित होने के कारण जातक में साहस भी खूब रहेगा. वह अपने द्वारा कई प्रकार के प्रयास करेगा वह सनकी स्वभाव का भी हो सकता है तथा कई बार उसका यह स्वभाव दूसरों के लिए परेशानी पैदा करने वाला रह सकता है. जातक अपने शौर्य को दिखाने से भी पिछे नहीं रहता कई बार दिखावा भी कर सकता है जो उसके लिए अनुकूल न रह पाए. इसी के साथ वह अपने परिश्रम और सूझबूझ से भी कई कामों को सफलता दिलाने में मददगार रह सकता है.

कर्क लग्न के छठे नवांश का महत्व | Significance of Sixth Navamsha Of Cancer Ascendant

इस नवांश से प्रभावित जातक चंचल हो सकते हैं वह किसी भी काम को करने में काफी जल्दबाजी दिखा सकते हैं जो उनके काम के लिए शायद अच्छा न भी हो. यह अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए पूरी तरह से अभिलाषी रहेंगे और किसी भी तरह उस चाहत को पूरा होते देखने की इच्छा रख सकते हैं. तुरंत निर्णय लेने की आदत और जल्दबाजी के कारण आपको कई बार हानी भी उठानी पड़ सकती है. इस कारण लोग आपको स्वार्थी और अपनी करने वाला कह सकते हैं. लेकिन आप एक मेहनती और अपने लक्ष्य को पाने वाला व्यक्ति बनने में जरूर कामयाब भी रहेंगे.

यह खुली विचारधार वाले व्यक्ति हो सकते हैं और अपने काम में स्वतंत्रता की चाह रखते हैं. इन्हें किसी प्रकार की रोक टोक अच्छी नहीं लगती है. यदि इनके साथ ज्यादा पाबंदी लगाई जाए तो यह एक विद्रोही भी बन सकते हैं. यह लोगों के साथ घुलने मिलने वाले और प्रेम की चाह रखने वाले व्यक्ति होते हैं इनके जीवन में कई बार बाधाएं आकर इनके मार्ग का अवरोध बन सकती हैं इन्हें आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ सकती है जिस कारण किसी कर्जे की नौबत भी बन सकती है किंतु यदि यह संभल कर चलें तो ऎसी बाते इन पर हावि नहीं हो सकेंगी.

व्यक्ति में प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति अधिक रह सकती है और यह बदला लेने कि भावना से भी ग्रस्त हो सकते हैं इसी कारण आपके शत्रु आपसे दूर ही रहने का प्रयास करेंगे. इनकी प्रकृत्ति कुछ अभिमानी हो सकती है जिस कारण इनमें अंह की भावना भी देखी जा सकती है. निरंकुश रहना इन्हें अच्छा लगता है. संतान की ओर से इन्हें पूर्ण संतुष्टि नहीं मिल पाती है. जीवन साथी योग्य और बुद्धिमान होता है किंतु विचारों में तकरार बनी रह सकती है.

दोनों में अपनि बौधिकता का गुमान रहता है इस कारण से यह एक दूसरे को अच्छे से समझ नहीं पाते. लेकिन जीवन साथी का पुर्ण सहयोग मिल ही जाता है दोनों मिलकर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करते ही रहते है,

स्वास्थ्य की दृष्टि से साथी कुछ अधिक सेहतमंद न हो पाए. धार्मिक होकर वह धर्म कर्म के कामों में उत्साह के साथ काम करने वाला हो सकता है और दोनों मिलकर कुछ धार्मिक यात्राओं का आनंद भी उठा सकते हैं.

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सूर्य का मकर और कुम्भ राशि को देखना आपके लिए बढ़ा सकता है परेशानियां

मकरस्थ सूर्य का फल | Sun Aspecting Capricorn

मकर में स्थित सूर्य का फल कुछ कम ही होता है. मकर जोकि शनि की राशि है अत: इस राशि में स्थित होने पर सूर्य कुछ अधिक अच्छे फल नहीं दे पाता है. मकर राशि में प्रवेश ही उत्तरायण के प्रारंभ का समय होता है. मकर राशि मे सूर्य के होने पर व्यक्ति के मन में अंह का भाव आ सकता है, इसी के साथ जातक अपने काम को सर्वप्रमुख बताकर अन्य के कामों नहीं समझ पाता है. किसी गलत काम में भी लग सकता है. लोभ की इच्छा बल पकड़ सकती है किसी भी कार्य के पिछे अच्छा मुनाफा पाना इनकी चाह भी बन सकती है.

स्त्री से प्रेम करने वाला परंतु चरित्र की ओर इसका ध्यान नहीं जाता है. गलत कामों में अधिक लग सकता है और इस मार्ग में उसके सभी काम भी आगे बढ़ सकते हैं. एक से अधिक कामों में लगा रहने वाला होता है जिससे अधिक लाभ भी पाता है. इनमें यह गुण भी हो सकता है कि वह अपने कामों में अधिकता से थकावट भी महसूस करे. कुछ असंतोष भी रह सकता है मन में अजीब सी बेचैनी बनी ही रह सकती है जिस कारण जातक को मानसिक सुख में कमी मिले.

जातक घूमने का खूब शौकिन हो सकता है, अपने सभी ओर को देखने और समझने की चाह उसमें रहती है. कुछ कामों में उसका मनोबल उतना साथ नहीं देता जितने की उसे आवश्यकता होती है क्योंकि उसके मनोबल में कमी होने से फैसलों को सही प्रक्लार से पूर्ण भी नहीं कर पाता है. लोगों इसके कुछ कामों से इनसे नाराज भी रह सकते हैं किंतु इन्हें इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता है. अपने कामों में यह ओरों को नाराज़ भी कर सकता है.

अपनों की नाराज़्गी से इसे कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है इसलिए हो सके तो सभी को साथ में लेकर चलने से सभी मामले सुलझ सकते हैं. खाने का खूब शौकिन होता है और विभिन्न व्यंजनों का स्वाद चखने कि चाह भी रखता है.

कुम्भस्थ सूर्य का फल | Sun Aspecting Aquarius

कुम्भ राशि में सूर्य के स्थित होने पर व्यक्ति दिखने में सुन्दर और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है. व्यक्ति का मनोबल अच्छा होता है कई प्रकार के कामों में वह अपनी इसी इच्छा शक्ति से आगे बढ़ता है. क्रोध की अधिकता होती है अंदर से काफी क्रोधी होता है इस कारण से यदि कोई छोटी सी भी बात मन को लग जाती है तो सह नहींपाता है. सज्जनों द्वारा उचित सम्मान नहीं मिल पाता कुछ न कुछ कमी बनी ही रहती है.

मन से व्यथित रह सकता है. विचारों का द्वंद चलता ही रहता है किसी न किसी बात से मन में उधेड़बुन बनी ही रहती है. मित्रता में भी पूर्णता नहीं मिल पाती, लम्बे समय तक मित्रता नहीं रह पाती है साथ छुटता जाता है. व्यक्ति अपने काम के विषय में काफी निश्चित होता है. मन में जो भी बात सोच लेता है वह उसे पूर्ण करके ही छोड़ता है अपने कार्य के प्रति काफी सजग रहता है.

कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है. मुख्यत: हृदय रोग का होना इसमें शामिल रहता है. जीवनसाथी सुन्दर और सहयोगी होता है. यदा कदा आपस में विवाद होता है. मित्रों एवं साझेदारों से सहयोग व लाभ मिलता है. व्यापार एवं कारोबार में जल्दी कामयाबी मिलती है. आर्थिक स्थिति सामान्य रहती है. यदि गुस्से मे हो तो बिना सोचे विचारे कुछ भी बोल सकता है. अनाप शनाप शब्दों का उपयोग करने की वजह से लोगों के मध्य खराब छवि बना सकता है.

इस राशि में सूर्य जातक को परिवार मे बडे़ होने का रूतबा देता है. व्यक्ति राजकीय सेवा मे ऊंचे पद पर जाने का अधिकारी भी बन सकता है. व्यक्ति अक्सर लाभ के मामले मे ठेकेदारी और इसी प्रकार के काम करने का शौकीन होता है. पत्नी परिवार की प्रताणना भी सहन करनी पड़ सकती है और कई प्रकार से विरोधों को भी सहना पड़ सकता है.

मीनगत सूर्य का फल | Sun Aspecting Pisces

मीन राशि में सूर्य व्यक्ति को स्वस्थ और निरोग बनाने में सहायक होता है. इस राशि में सूर्य अपने मित्र की राशि में होता है जिसके फलस्वरूप उसमें आध्यात्मिकता का आगमन भी होता है. व्यक्ति अपने को धर्म से जुडा़ पाता है. उसे गुरूओं और विद्वान लोगों से सहायता और ज्ञान की प्राप्ति होती है. कुण्डली में यह स्थिति व्यक्ति को आत्मविश्वासी और परिश्रमी बनाने में सहायक होती है. जातक अपने काम को करने में लगन और खूब साहस भी दिखाता है. जिस कारण उसे काफी हद तक अपने कामों में कुछ सफलता भी मिल ही जाती है.

किसी भी कार्य को पूरे मनोयोग से करने पर जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति भी मिलती है. शत्रुओं और विरोधियो से भय नहीं रखता और अपने साहस से उन्हें परास्त करने की काबिलियत भी रखता है. समाज में सम्मानित स्थान पाने में भी काफी हद तक सफल हो सकता है. राज्य में उसे अच्छा पद भी मिल सकता है. व्यक्ति व्यापार की अपेक्षा नौकरी में अधिक कामयाबी प्राप्त कर सकता है.

इस राशि का सूर्य दिमागी रूप से उत्तेजना देने का कारक बन सक्लता है. व्यक्ति के भीतर राजसी गुण शामिल होते हैं और वह अपने कामों में अच्छा प्रदर्शन करने की योग्यता रखता है. परिवार में सदस्यों से कुछ तनाव रह सकता है लेकिन यदि अपनी उचित बौद्धिकता का प्रदर्शन करे तो सभी को साथ लेकर चल सकता है. वैवाहिक जीवन में जीवनसाथी से अनबन के कारण गृहस्थी का सुख प्रभावित होता है. दाहिनी आंख मे दिक्कत का हो सकती है साथ ही यात्रायें और खर्चा भी बहुत होता है, पिता से अक्सर दूरियां ही बनी रह सकती हैं.

सूर्य दृष्टि योग फल भाग -1 देखने के लिए यहां क्लिक करें

सूर्य दृष्टि योग फल भाग – 2 देखने के लिए यहां क्लिक करें

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दशाफल विचार | Analysis of Dasha Phal – Part 1

वैदिक ज्योतिष में किसी भी ग्रह की शुभता या अशुभता जन्म कुंडली के लग्न पर निर्भर करती है क्योकि हर लग्न के लिए सभी ग्रहों का फल भिन्न होता है. यदि एक ग्रह किसी के लिए शुभ है तब यह जरुरी नहीं कि वह दूसरे के लिए भी शुभ ही हो. इसलिए शुभता व अशुभता का विश्लेषण ध्यान से करना चाहिए. ग्रहों की यह शुभता-अशुभता दशा के समय दिखाई देती है. ग्रह प्रभावशाली रुप में अपनी दशा/अन्तर्दशा में फल प्रदान करते हैं और यह फल कुंडली की बहुत सी अन्य बातों पर निर्भर करते हैं. आइए ग्रहों की दशा/अन्तर्दशा के विभिन्न घटकों पर विचार करते हैं कि यह कब शुभ होगी और कब अशुभ हो सकती है.

जब भी कुंडली की विवेचना की जाती है तब सबसे पहले नैसर्गिक शुभ तथा नैसर्गिक अशुभ ग्रहों के स्वाभाविक गुण, जिन भावों का स्वामी है वह, जहाँ स्थित है वह, लग्न से क्या संबंध है वह, अन्य ग्रहों से तथा भावों से संबंध आदि बातों का आंकलन ग्रह की दशा के समय किया जाना जरुरी है. उसी के आधार पर दशा के फलों के बारे में बताया जा सकता है.

  • यदि एक नैसर्गिक शुभ ग्रह केन्द्राधिपति दोष होने पर यदि बली अवस्था में स्थित है तब अपनी दशा/अन्तर्दशा में वह शुभ फल देने में सफल नहीं होता है.
  • यदि कुंडली में चंद्रमा स्वराशि, मित्रराशि, उच्च राशि का है और दशानाथ से त्रिकोण भाव मे, सातवें भाव या उपचय भाव में हो तब इसकी दशा शुभ होती है.
  • यदि एक नैसर्गिक शुभ ग्रह केन्द्राधिपति होने के साथ-साथ तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव का स्वामी हो तब भी शुभ परिणाम नहीं देते हैं और ऎसा ग्रह नैसर्गिक अशुभ ग्रह से भी अधिक बुरे परिणाम प्रदान कर सकता हैं.
  • एक नैसर्गिक शुभ ग्रह केन्द्राधिपति होकर यदि अपने केन्द्र भाव से तीसरे अथवा ग्यारहवें भाव में होता है तब वह श्रेष्ठ फल प्रदान करता है क्योकि तब उस ग्रह के केन्द्राधिपति दोष का निवारण हो जाता है.
  • एक नैसर्गिक शुभ ग्रह केन्द्राधिपति होकर यदि दूसरे या सातवें का भी स्वामी होता है या इन भावों में स्थित होता है तब यह ग्रह अपनी दशा/अन्तर्दशा में घातक फल दे सकता है.
  • यदि एक योगकारक ग्रह की दशा/अन्तर्दशा चल रही हो तब वह अपनी दशा में अतिशुभ फलों को देने में सक्षम होता है.
  • यदि त्रिकोणेश, त्रिक भाव में स्थित है तब वह अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल ही देगा लेकिन यह शुभ फल संघर्षो, प्रयासों तथा परिश्रम के बाद ही मिलते हैं.
  • यदि कुंडली में कोई ग्रह त्रिकोण भाव के साथ तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है तब उस ग्रह की आरंभ की दशा कठिनाईयों से भरी हो सकती है, लेकिन विफलताओ के बाद ही व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि होती है.
  • यदि जन्म कुंडली में नैसर्गिक अशुभ ग्रह त्रिकोणेश होता है तो उसकी बजाय नैसर्गिक शुभ ग्रह के त्रिकोणेश होने पर ज्यादा शुभ फल मिलने की संभावना बनती है.
  • जिस ग्रह की दशा जन्म कुंडली में चल रही हो तो वह ग्रह उस भाव के भी फल देता है जिसमें वह स्थित होता है और उनका भी फल देता है जिनका वह कारक होता है.
  • यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह किन्ही दो अशुभ भावों का स्वामी हो जाता है तब वह अतिपापी बन जाता है. तीसरा, छठा तथा ग्यारहवाँ भाव शुभ नहीं माने जाते हैं. यदि इन तीनो भावों में से किन्ही दो भावों का स्वामी एक ही ग्रह बन जाता है तब वह अति अशुभ बन जाता है. जैसे तुला लग्न के लिए बृहस्पति तीसरे व छठे भाव के स्वामी होकर अति अशुभ बन जाते हैं और अपनी दशा में अशुभ परिणाम देते हैं.
  • जन्म कुंडली के आठवें भाव के स्वामी को सदा ही अशुभ माना गया है लेकिन द्वादशेश का फल उसकी युति पर निर्भर करता है. अष्टमेश जिस भाव में बैठता है उस भाव को खराब करता है और जिस ग्रह के साथ स्थित होता है उसे बिगाड़ता है.
  • द्वादशेश के फल कुंडली में उसकी स्थिति पर निर्भर करते हैं. यह ग्रह कहां स्थित है और किन ग्रहों के साथ संबंध बना रहा है, तब जाकर दशा में इसके फल दिखाई देते हैं.
  • बाधकस्थान में बैठा दशानाथ अपनी दशा में रोग तथा तनाव देता है और यदि यह ग्रह बाधकस्थान से केन्द्र में स्थित है तब जातक को विदेश गमन देता है. जातक इस दशा में अधिकतर समय परेशान तथा अप्रसन्न ही रहता है.
  • यदि कोई भी दो कट्टर विरोधी ग्रह एक-दूसरे को देख रहे हो तब उनकी दशा में अशुभ परिणाम मिलने की संभावना अधिक होती है.
  • जन्म कुंडली में जब भी कोई दो ग्रह आपस में राशि परिवर्तन करते हैं तब उनके गुणों व विशेषताओं का भी आपस में परिवर्तन होता है.

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