नक्षत्र द्वारा रोग मुक्ति का निर्धारण – भाग 2 | Analysis of Nakshatras For Salvation – Part 2

ज्योतिष में चिकित्सा विज्ञान पर कई शोध किए गए हैं जिनके द्वारा जन्म कुण्डली से इस बात को जानने में बहुत सहायता मिलती है कि व्यक्ति को कौन सा रोग अधिक प्रभावित कर सकता है. इसी के साथ नक्षत्रों का भी रोग विचार करने में महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसमें रोग की अवधि और उसके ठीक होने के समय को भी जाना जा सकता है.

  • यदि जातक की बीमारी आरंभ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ हो तो जातक की बीमारी सात से इक्कीस दिनों के भीतर समाप्त होने का समय लेती है. इस स्थिति में जातक को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
  • व्यक्ति का रोग यदि हस्त नक्षत्र के समय आरंभ हुआ हो तो स्वास्थ्य लाभ पाने में व्यक्ति को पंद्रह से बीस दिन का समय लग सकता है. स्वास्थ्य लाभ में सुधार हेतु व्यक्ति को नक्षत्र संबंधी उपाय करने चाहिए जिससे की उसे कुछ राहत प्राप्त हो सके.
  • यदि किसी व्यक्ति की बीमारी चित्रा नक्षत्र के समय आरंभ हुई हो तो उसकी एक सप्ताह में समाप्त हो सकती है जातक को जल्द ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है वह रोग से लड़ने कि क्षमता को जागृत पाता है और उसे अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती है.
  • इसी प्रकार यदि व्यक्ति का स्वास्थ्य स्वाती नक्षत्र के समय खराब हुआ हो तो रोग दो माह के समय तक रह सकता है स्वास्थ्य लाभ मिलने में दिक्कत आती है. जातक को स्वास्थ्य लाभ में देरी होने से मृत्यु तुल्य कष्ट भी सहन करना पड़ सकता है अत: ऎसी स्थिति में अपना अधिक ध्यान रखना चाहिए और समय समय पर डाक्टरी जांच कराते रहना चाहिए.
  • व्यक्ति का स्वास्थ्य विशाखा नक्षत्र के आरंभ होने के साथ ही खराब हुआ हो तो उस जातक को जल्द ही स्वास्थ्य लाभ मिलता है. इस नक्षत्र के अधिक खराब प्रभाव नहीं झेलने पड़ते और व्यक्ति को शीघ्र राहत मिलती है.
  • व्यक्ति को यदि बीमारी अनुराधा नक्षत्र के समय पर आरंभ हुई हो तो जातक के स्वास्थ्य में सुधार 17 दिनों में होता है. इस नक्षत्र के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति को अधिक कष्ट की अनुभूति नहीं होती है और रोग नियंत्रण में आने लगता है.
  • अगर किसी व्यक्ति की बीमारी ज्येष्ठा नक्षत्र के समय पर आरंभ हुई हो तो बीमारी 15 दिनों के अंदर ठीक हो सकती है अन्यथा व्यक्ति को मृत्युतुल्य कष्ट होता है.
  • मूल नक्षत्र के समय पर आरंभ हुई ठीक होने में लम्बा समय लेती है. कई प्रकार से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें परेशान कर सकती है साथ ही अन्य रोग भी उभर सकने का भय बना रह सकता है.
  • यदि किसी व्यक्ति का रोग पूर्वाषाढा नक्षत्र के समय पर उभर कर सामने आता है तो स्वास्थ्य लाभ में एक माह तक का समय लगता है.
  • उत्तराषाठा नक्षत्र में आरंभ हुई बीमारी ठीक होने में एक माह तक का समय ले सकती है.
  • श्रवण नक्षत्र के आरंभ में यदि जातक को कोई रोग होता है तो जल्द ही बीमारी से मुक्ति मिलती है.
  • यदि जातक को धनिष्ठा नक्षत्र में रोगग्रस्त हुआ हो तो स्वास्थ्य लाभ मिलने में दो माह तक का समय लग सकता है.
  • शतभिषा नक्षत्र में आरंभ हुआ रोग समाप्त होने में कम से कम 11 दिन या चार माह तक का समय ले लेता है.
  • पूर्वा भाद्रपद में आरंभ हुई बीमारी को ठीक होने में 20 दिनों तक का समय लग सकता है.
  • व्यक्ति का रोग यदि उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के समय आरंभ हुआ हो तो स्वास्थ्य लाभ पाने में एक सप्ताह का समय लग जाता है.
  • यदि किसी व्यक्ति की बीमारी रेवती नक्षत्र के समय आरंभ हुई हो तो जातक को जल्द ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है वह रोग से लड़ने कि क्षमता को जागृत पाता है और उसे अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती है.

“नक्षत्र द्वारा रोग मुक्ति का निर्धारण – भाग 1”

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सिंह लग्न का दूसरा नवांश | Second Navansh of Leo Ascendant

सिंह लग्न का दूसरा नवांश वृष राशि का होता है. इस राशि के नवांश स्वरूप जातक को जीवन में कार्य क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान देना होगा उसका जीवन अपएन काम के विस्तार और उसमें उन्नती पाने की चाह में व्यतीत होगा. जीवन में उसका व्यवसाय उसके लिए खूब महत्वपूर्ण रहेग तथा उसे इस ओर से सुख की प्राप्ति संभव हो सकेगी या नहीं इसी बात का निश्चय करने में उसका मन चिंतित रह सकता है.

इस नवांश में जन्म लेने के कारण जातक देखने में हष्ट-पुष्ट व बलशाली हो सकता है. उसमें संयम तो रहेगा साथ ही स्थिरता की चाह भी बनी रहेगी. शुक्र व सूर्य के प्रभाव से जातक अपने जीवन में वैभवता की चाह से युक्त हो सकता है. जातक की त्वचा कोमल और सुंदर होती है. कद काठी अच्छी होती है. इनके स्वभाव में गहन चिंतन-मनन करने वाला होता है.

जातक का स्वभाव सामान्यत: स्थिर और क्रोधी होता है. इनकी वाणी में मधुरता के साथ भारीपन भी होता है. यह सत्यवादी होते हैं तथा व्यवहार से स्पष्ट वक्ता होते हैं. अपने कामों को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने की कोशिश करते हैं. जीवन में धन भी खूब अर्जित करते हैं तथा किसी की अधिनता को स्विकार नहीं कर पाते हैं. विभिन्न धर्म कर्म के कामों में भागीदारी करते हैं और धर्मार्थ के द्वारा यश प्राप्ति भी करते हैं.

सिंह लग्न के दूसरे नवांश का प्रभाव | Effects of Second Navansh of Leo Ascendant

साथियों के प्रति इनकी भावनाएं बहुत उत्साहवर्धक और अच्छी होती हैं, सभी के समक्ष यह आदर पाते हैं. इन्हें बहुमूल्य वस्तुओं का शौक होता है, खर्चों पर रोक नहीं लगाते हैं. इन्हें कारोबार में अच्छी सफलता मिलती है. जीवन को आनन्द और उल्लास के साथ जीने की कोशिश करते हैं. इन्हें सरकार की ओर से भी कुछ सहायता मिल सकती है. इनकी पसंद काफी उत्कृष्ट होती है तथा लोग इनकी तारीफ भी करते हैं. जीवन साथी के रूप में इन्हें कभी कभी विचारों का मतभेद झेलना पड़ सकता है लेकिन प्रेम की कमी नहीं रहती है. आपमें समर्पण का पूरा भाव बना रहता है.

किसी भी कार्य में धन की स्थिति तो प्राय: बनी ही रहती है. कुछ आर्थिक स्थितियों के उतार-चढा़व होने पर जातक को जीवन में अनेक परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है किंतु अपनी बल और शक्ति सामर्थ्य द्वारा यहअपनी स्थिति को सदृढ़ बनाने में भी सफल हो सकते हैं. इनकी भावनाएं सभी के लिए ही उत्साहवर्धक रहती हैं इसलिए इनसे अधिक देर तक कोई दूर नहीं रह सकता है.

इनके जीवन साथी का स्वभाव मिला जुला सा होता है वह भी धार्मिक प्रवृत्ति वाला तथा आध्यात्मवादी सोच रखने वाला होता है. सहन शक्ति होती है इस कारण से कई प्रकार के विवादों में पडने से बचे रहते हैं. विवाह के पश्चात जातक के काम में अधिक वृद्धि होती है और उसकी योजनाएं भी पूर्ण होती हैं.

सिंह लग्न के दूसरे नवांश का महत्व | Importance of Second Navansh of Leo Ascendant

यह नवांश जातक के काम में आने वाले उतार-चढावों को दिखाने वाला होता है. अपने क्षेत्र में किस प्रकार से जातक आगे बढ़गा इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. जब यह किसी से अच्छी तरह से परिचित हो जाते हैं तो संबंधों में मजबूती आने लगती है और दूसरों की प्रशंसा के पात्र भी बनते हैं. किसी भी काम को करने में यह अपनी कलात्मकता का परिचय अवश्य देने का प्रयास करते हैं और जीवन भर वह इन सभी के विषय में अधिक सोच-विचार भी करते हैं. यह अपने काम में एकाग्रता रखते हैं तथा कल्पानों की उडा़न होने पर यह अपने लक्ष्य को पाने में सदैव तत्पर रहते हैं.

एक अच्छे रूप में यह अपनी प्रतिभा को निखारने की कोशिश भी करते हैं जिससे इनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है. यह अपने काम में स्वतंत्रता की चाह रखते हैं किसी का अधिक हस्तक्षेप पसंद नहीं आता है. जातक ऐश्वर्य और आराम पसंद करने वाला होता है. किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले एक स्थिति के सभी पहलुओं पर विचार करते हैं व दृढ़ता द्वारा उसे करने में भी पूरी तत्परता रखते हैं.

व्यक्ति वाक कुशलता से पूर्ण व दूसरों पर अपनी छाप छोड़ने वाला होगा. इनकी विचारधार काफी गंभीर और सहजता से युक्त होती है. यह अपने कथन में स्पष्ट और प्रभावशाली होते हैं. एक अच्छे वक्ता के गुण इनमें होते हैं, समूह को अपनी वाक कुशलता द्वारा खिंच लेने की कला इन्हें खूब अच्छे से आती है. तर्क वितर्क करने में माहिर होते हैं और किसी को आसानी से अपने समक्ष टिकने नहीं देते हैं.

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मेष राशि के गुरू को अगर सूर्य-चंद्रमा-मंगल देखते हों तो ये होगा असर

धर्मिष्ठमनृतभीरूं विख्यातसुतं महाभाग्यं।

भौमगृहे रविदृष्टो ह्मतिरोमचितं गुरू: कुरूते ।।

मेष राशि में स्थित गुरू पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक कर्म करने वाला सदाचरण से युक्त होता है. व्यक्ति सभी के साथ मित्रता पूर्ण व्यवहार करता है. स्वभाव से अधिक साहसी नहीं होता, व्यर्थ के विवादों से दूर रहने की कोशिश ही करता है. संतान की ओर से संतुष्ट रहता है तथा यश की प्राप्ति में संतान बहुत सहायक बनती है है. भाग्य का साथ पाता है तथा भाग्यवान कहलाता है.

मेष में स्थित गुरू पर जब सूर्य का दृष्टि संबंध बनता है तो जातक के गौरवस्वरूप का परिचय प्राप्त होता है. जातक अपने काम में तत्पर रहते हुए सभी के साथ मिलकर काम करने में बहुत सफल रहता है. जातक के शरीर पर बाल अधिक हो सकते हैं. वह समाज कल्याण के कामों में लगा रहता है और इस ओर अपना पूर्ण सहयोग देने की कोशिश करता है.

जातक में भीरूपन होता है वह जल्द से किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहता. सोच विचार करते हुए अपने कामों को करने की कोशिश करता है. जातक के वचनों में झूठ नहीं होता है. वह असत्य से दूर रहने का प्रयास करता है उसे झूठ बोलने से डर लगता है जिस कारण से उसकी सत्यता प्रभावित नहीं होती है.

मेष राशि में स्थित गुरू पर चंद्र का दृष्टि प्रभाव | Effects of Moon’s Aspect on Jupiter in Aries Sign

मेष में स्थित गुरू पर यदि चंद्रमा दृष्टि डाले तो जातक धन संपन्नता से युक्त होता है. आचरण से योग्य व शिष्ट प्रवृत्ति का होता है. इतिहास व काव्य लेखन में कुशल होता है. कोमल वचन बोलने वाला होता है और अन्य लोग इसकी ओर स्वत: ही खिंचे चले आते हैं. जातक व्यवहार द्वारा काफी सजग होता है और दूसरों के हितों को ध्यान में रखते हैं. जातक रत्नों आभूषणों से युक्त होता है. स्त्रियों के मध्य सम्मान और प्रेम पाने वाला होता है.

अपनी योग्यता द्वारा जातक राजा तुल्य व्यक्ति से सम्मान पाता है तथा विद्वान लोगों द्वारा सम्मानित व प्रोत्साहित होता है. गुरू के चंद्र दृष्टि से प्रभावित ओने पर जातक के गुणों में जो आक्रामकता होती वह कम होने लगती है वह व्यर्थ के झगडों से स्वयं को दूर रखने की पूरी कोशिश करता है. इस प्रभाव से जातक धन धान्य से युक्त बन सनता है परिश्रम द्वारा अपने भाग्य को संवारने का प्रयास भी करता है.

आर्थिक रूप से सक्षम होने पर जातक अपने साथ साथ दूसरों के हितों को भी समझने का प्रयास करत अहै अन्य के दुख में दुखी होने वाला होता है. जीवन में कुछ नकारत्मका का भाव यदि आने भी लगे तो वह उसे दूर करते हुए स्वयं को आशावादी बनाते हुए काम करता जाता है और सफलत अको पाने में सफल भी होता है.

मेष राशि में स्थित गुरू पर मंगल का दृष्टि प्रभाव | Effects of Mars’ Aspect on Jupiter in Aries Sign

नृपपुरूषशूरमुग्रं नयविनय समन्वितं च धनिनं च ।

अविधेयभृत्यदारं जनयति वक्रेक्षितो जीव:।।

मेष राशि में स्थित गुरू पर मंगल का दृष्टि प्रभाव होने पर यह स्थिति उसके लिए मजबूत स्थिति बनाती यहां मंगल को प्रबलता प्राप्त होती है उसके बल में वृद्धि होती है जिस कारण उक्त राशि के गुणों में वृद्धि देखी जा सकती है. इसके प्रभाव स्वरूप जातक का व्यवहार क्रोध से युक्त हो सकता है उसे गुस्सा अधिक आ सकता है तथा वह अपने विचारों से काफी दृढ़ हो सकता है. ऎसी स्थिति में जातक में कुछ कठोरता का भाव भी देखा जा सकता है.

इन गुणों के साथ ही जातक में नीतिवान होने के शुभ गुण भी समाहित होते हैं वह गलत कार्यों से नहीं अपितु नीति युक्त व्यवहार करने वाला हो सकता है. किसी के साथ खराब व्यवहार न करते हुए वह विनय युक्त होता है. धनवान होता है तथा वैभव का जीवन जीने में सक्षम होता है.

व्यक्ति के कठोर होने पर भी वह अपने अधिकारों से चह दूसरे के हितों को प्रभावित नहीं करता है. उसके अधिनस्थ लोगों पर उसका अधिक नियंत्रण नहीं हो पाता है. जीवन साथी के साथ भी सामंजस्य का व्यवहार ही रहता है वह उसके नियंत्रण से दूर ही रहता है. जातक राजकीय पुरूष हो सकता है या ऎसे स्थान द्वारा सम्मानित हो सकता है.

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मंगल जब तुला, वृश्चिक, धनु राशि को देखता है तो देता है ये फल

तुलागत मंगल फल | Mars Aspecting Libra

तुलागत मंगल के होने पर जातक अधिकतम यात्राओं में अपना समय व्यतीत करता है. जहां एक ओर मंगल आक्रामक ग्रह के रूप में जाना जाता है इस राशि में उसका स्वरूप ऎसा नहीं रहता है. जब तक परिस्थिति अनियंत्रित न हो जाए तब तक जातक प्रतिक्रिया नहीं करता है. जातक मानसिक रूप से काफी सोच विचार कर सकता है. किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले उसे समय अधिक लगता है. इनमें सभी के साथ सद्भाव के साथ कार्य करने की क्षमता होती है. दूसरों पर ध्यान देने कि बजाय स्वयं पर अधिक सोच विचार कर सकते हैं. काम में निशाना साधते हुए और संतुलन बहाल करने की पूरी कोशिश भी करते हैं.

जातक में सफलता पूर्वक व्यापार करने का गुण भी होता है. इस क्षेत्र में उसे काफी सफलता भी मिल सकती है. जातक में रिस्क लेने की क्षमता होती है. यह एक अच्छा वक्ता बनता है और सुंदर व आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है. जातक स्वयं की बडाई करने वाला हो सकता है. शारिरीक रूप से जातक कमजोर हो सकता है किंतु साहस में कमी नहीं होती है.

जातक को स्त्री पक्ष और मित्रों से सम्मान की प्राप्ति होती है उनका प्रिय होता है, गुरूजनों से भी सम्मान पाता है. बुरे कामों में लिप्त होने से इसे आर्थिक क्षती व सम्मान की हानी भी झेलनी पड़ सकती है. सहयोगात्मक रूप से काम करने वाला होता है, विशेष रूप से साझेदारी का हिस्सा बनकर काम में प्रगती करता है. साथ ही अपने विचारों को समझने में भी सफल होता है. अभिनय करना खूब आता है. जीवन साथी के साथ संबंधों में काफी अग्रसर रहते हैं.

वृश्चिकगत मंगल फल | Mars Aspecting Scorpio

अपनी इस राशि में होने के कारण जातक को कई क्षेत्रों में लाभ मिलता है. समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है. घर-परिवार में भी इनका प्रभाव बढ़ता रहता है.शत्रुओं से किसी प्रकार का भय नहीं रहता है. वृश्चिक में मंगल ग्रह के स्थित होने से जातक में उत्साह खूब होता है. यह जो कुछ भी करने का मन बना लें तो उस कार्य को सफलता से पूरा भी कर सकते हैं. ध्यान केंद्रित करने और कुछ भी हासिल करने के लिए इनमे एक मजबूत इच्छा शक्ति होती है.

वृश्चिक लग्न व राशि वालों के लिए लग्न से ही भ्रमण करने से साहस बल में वृद्धि होती है. दूसरों पर प्रभाव बढ़ता है. बिगड़े कार्य बनते हैं. इनमें जिद्दीपन भी देखा जा सकता है. हालांकि यह विरोधियों को सह नहीं पाते फिर भी शांत रहकर मामलों को सुलझाने की कोशिश अवश्य करते हैं. वृश्चिक में मंगल ग्रह होने से जातक व्यापार और वेदादि तत्वों में स्क्त रहने वाला हो सकता है. अपने कार्यों को पूरी चतुराई के साथ करता है और कभी कभी अपनी प्रतिभा द्वरा दूसरों को दबाने की कोशिश भी कर सकता है.

वृश्चिक में मंगल ग्रह शक्तिशाली इच्छाओं और भावनाओं के साथ उच्च ऊर्जा का स्तर पाता है, जातक मजबूत, कुशल, आत्मनिर्भर और आत्म – अनुशासित होता है. साधारणत: क्रोध को दबाते हैं लेकिन जब एक बार गुस्सा आ जाए तो आपे से बाहर हो जाते हैं. आसानी से किसी को माफ भी नहीं करते हैं ओर पलट कर वार करने वाले हो सकते हैं. बातों को याद रखने कि अच्छी क्षमता होती है. बहुत भावुक और कामुक हो सकते हैम. विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षित रह सकते हैं. अपने साथी के प्रति पूर्ण वफादार होते हैं.

धनुर्गत मंगल फल | Mars Aspecting Sagittarius

धनु राशि में मंगल के स्थित होने पर जातक काफी आक्रामक हो सकता है. इसमें गुस्से की भावना अधिक देखी जा सकती है. जातक को चोट अधिक लग सकती है बोलने में काफी कठोर हो सकता है जिस कारण दूसरों को इसके वचनों से कष्ट भी हो सकता है. लडाई में पारंगत होता है और अस्त्रों से सुशोभित रहने वाला होता है.

मेहनत करने पर ही उचित फल की प्राप्ति हो पाती है. युद्ध कार्य में काफी निपुणता पाता है. क्रोध और मनमुटाव होने से जातक को हानि का सामना करना पड़ सकता है. स्वतन्त्र रूप से काम करना इन्हें पसंद होता है और इनके लिए सामान्य से अधिक फलदायी भी हो सकता है.

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 1”

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 2”

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 4”

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सिंह लग्न का तीसरा नवांश | Third Navansh of Leo Ascendant

सिंह लग्न का तीसरा नवांश मिथुन राशि का होता है, इस नवांश के स्वामी ग्रह बुध हैं. सिंह लग्न के तीसरे नवांश में जन्म लेने के प्रभावस्वरूप जातक की बनावट सुंदर होती है जातक के कंधे चौडे़ व भुजाएं लम्बी होती हैं, त्वचा मुलायम तथा आंखें सुंदर गोल व छोटी होती हैं. इनके व्यवहार में व्यग्रता स्पष्ट रूप से झलकती है. यह स्वभाव से हंसमुख होते हैं तथा अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत रहते हैं. इनके मित्रों की संख्या अधिक नहीं होती है. परंतु जो भी यह मित्र बनाते हैं उनके साथ सदैव रहने की चाह भी रखते हैं. यह जातक क्रोधी हो सकता है और अपने निर्णयों को लेकर काफी संजीदा रह सकता है. यह लोग अनेक कार्यों में दक्षता रखने वाले होते हैं.

जातक को अपने वरिष्ठजनों का साथ मिलता है और जीवन में आगे बढ़ते रहने की चाह भी रहती है, यह जब किसी कार्य को करना आरंभ करते हैं तो उसे समाप्त करने की पूरी कोशिश करते हैं. अपने काम में ही इनका ध्यान लगा रहता है उस समय यह कहीं ओर अपना ध्यान नहीं भटकने देते हैं. इस कारण इन्हें अपने कामों में सफलता भी मिल जाती है लेकिन इनकी यह स्थिति इन्हें कई बार परेशानी में भी डाल सकती है. क्योंकि किसी एक ही बात के पिछे पड़ जाना दूसरों के लिए परेशानी का सबब भी बन सकता है.

इनके खर्चे भी अधिक होते हैं जिस कारण धन की लालसा बनी रहती है. परिवार की परंपराओं के प्रति इनकी आस्था बेहद अच्छी होती है जो इन्हें संस्कारों से युक्त रखने में सहायक बनती है. अपने काम को बढाने में लगे रहने कि चाह इनमें खूब होती है. शत्रुओं पर इनका रौब रहता है और यह उन पर विजय पाते हैं. दांपत्य जीवन से संतोष पाते हैं. जीवन साथी से अधिक अपेक्षाएं नहीं रखते हैं. पारिवारिक व सामाजिक सुख शांति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं. कुछ मामलों में एक दूसरे से उदासीनता का भाव भी झेलना पड़ता है लेकिन तालमेल से जीवन की राह आसान बना ही लेते हैं.

इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है जिस कारण अन्य लोग भी इनकी ओर खिंचे चले आते हैं. प्रभावशाली भाव अभिव्यक्ति के फलस्वरुप आपको अन्य लोगों का साथ भी मिलता है.समाज में सम्मानित व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, बोलने में मधुरभाषी होते हैं ओर अपनी भाव अभिव्यक्ति से दूसरों को संतुष्ट रखने कि क्षमता रखते हैं. किसी के दुख में बराबर के भागीदार बनते हुए अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की योग्यता रखते हैं.

सिंह लग्न के तीसरे नवांश का महत्व | Importance of Third Navansh of Leo Ascendant

इस नवांश से प्रभावित जातक सभी से प्रेम करने वाला होता है किंतु यह किसी के साथ आत्मिक मोह से नहीं बंधना चाहता. यह अनैतिक कार्यों से दूर ही रहते हैं. धार्मिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने की कोशिश करते हैं तथा धार्मिक आयोजनों को करते रहते हैं. यह किसी धार्मिक संस्था की स्थापना भी कर सकते हैं. यह न्याय प्रिय, प्रतापी होते हैं. शत्रुओं से इनकी दूरी बनी ही रहती है. व्यवसाय में आप काफी चतुर होते हैं अपने प्रयासों से आप व्यवसाय को आगे बढा़ने में सफल भी रहते हैं.

परिश्रम से पूर्ण कार्यों को करने से दूर नहीं हटते हैं परंतु लाभ की चाह इनके मन में सदैव बनी रहती है. काम में अच्छे मुनाफे को ध्यान में रखते हुए ही योजनाएं बनाते हैं. खेल कूद में भी इनकी रूचि बनी रहती है. वाद विवाद को सफलता पूर्वक अपने पक्ष में कर लेना इनकी विचारधारा की परिपक्कवता को दर्शाता है. विद्वता का रूप आपके प्रयासों एवं आपके कामों में स्पष्ट रूप से झलकता है. बौद्धिक गुणों से विकसित जातक कार्यों में ऊँचाईयों को छूने वाला होता है.

आपका जीवन साथी व्यवहारिक तथा सदाचारी आचरण वाला होता है. शारीरिक रूप से वह प्राय: सामान्य दिखने वाला होता है. वह आपके साथ मिलकर धर्म कर्म के कार्यों में विशेष रूचि रखता है. आप दोनों मिलकर सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करने में सफल होते हैं. आपके जीवन साथी को ललित कलाओं का शौक होता है तथा आर्थिक व्यवस्था को सही ढ़ंग से निभाने में सक्षम होता है.

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कैसा होगा मंगल दृष्टि का मेष वृष और मिथुन राशि पर असर

मेषस्थ मंगल योगफल | Mars Aspecting Aries Sign

मेष में स्थित होने पर मंगल अपने ही स्वामित्व को पाकर बली बन जाता है. यह स्थिति मंगल को अधिक बल देने में सहायक बनती है. मंगल रूक्ष व दाहक माना जाता है अत: इस स्थान पर होने पर वह अपने प्रभावों में अधिक तेज होता है. जातक तेजस्वी व्यक्तित्व का स्वामी होता है.

सत्यवादी होता है, रक्त वर्ण के समान वह दिखाई देता है. जातक में क्रोध की अधिकता रह सकती है लेकिन अधिक देर तक बना नही रहता जल्द ही शांत भी हो जाते हैं तथा सहनशक्ति में कमी देखी जा सकता है. यह एक निड़रता और साहस का परिचय देता है यहां होने पर व्यक्ति में अदभूत साहस देखा जा सकता है.

भय का उसके लिए कोई स्थान नहीं होता, अपने कामों में भी वह पूर्ण साहस के साथ देखा जा सकता है. इसमें मंगल ग्रह का एक बहुत आवेगी रूप देखने को मिलता है. व्यवहार में बदलाव की स्थिति बनी रहती है. एक साथ पर टिककर बैठना इन्हें पसंद नहीं होता है, तुरंत ही प्रतिक्रिया करते हैं,यह लोग अतीत में नहीं रहते और न ही कोई शिकायत करते हैं

नेतृत्व की खूबी होती है इनमें भीड़ को अपने साथ आगे ले जाने की अच्छी क्षमता होती है इनमें. शूरवीर होते हैं और अपने लोगों के समक्ष सम्मान पाते हैं. कर्म में आलस्य नहीं लाते सेना जैसे कार्यों में इनका बल देखते ही बनता है. प्रसन्नचित होते हैं व दान धर्म में विश्वास भी रखते हैं.

अपने सहज ज्ञान से पूर्ण होते हैं और आमतौर पर तेजी से और अच्छे निर्णय लेने वाले बनते हैं. जातक नए विचारों व नई योजनाओं में अग्रणी कार्रवाई शुरू करने का आनंद लेते हैं. आम तौर पर चुनौतियों का सामना करना इन्हें पसंद होता है. इनके साथ रिश्ते रोमांचक हो सकते हैं. यह सीधे सपाट बात करना पसंद करते हैं और लाग लपेट इन्हें पसंद नहीं आता है.

वृषस्थ मंगल योगफल | Mars Aspecting Taurus

वृष राशि में मंगल के होने पर जातक धीमे और स्थिरता लिए हो सकता है. यह लक्ष्य की ओर उन्मुख रहते हुए अपनी गति के अनुरूप चलते रहते हैं. यहां पर शक्ति के साथ स्थाईत्व की भावना भी दिखाई देते है. यह आम तौर पर शांत स्वभाव और अल्हड़ किस्म के लोग होते हैं वृषभ में मजबूती है तो मंगल इसे शक्ति से और भी अधिक संपन्न बनाने में सहायक बनता है. दूसरों के लिए भी सहायक बनते हैं.

वृषभ लोग मूल्य ताकत और स्थिरता को समझते हैं ओर किसी भी कार्य को करने से पिछे नहीं हटते हैं,यह सुरक्षा और निजी संपत्ति के लिए एक प्रति विशिष्ट स्नेह से रखते हैं. ज्यादातर वह क्या चाहते हैं उन्हें इस बात का पता होता है.

यह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उसमें लगे रहते हैं यहां समय अधिक लग सकता है परंतु उसके लिए भी तैयार रहते हैं. काफी विश्वसनीय और मजबूत व्यक्तित्व के भी होते हैं. व्यावहारिक और धैर्यवान होते हैं. भावुक होते हैं, समर्पण और अनुशासन द्वारा आगे बढ़ना जानते हैं.

यह जातक अधिक कामुक हो सकते हैं. प्रेम को गहराई के साथ महसुस करते हैं ओर पूर्णता: के साथ निभाने की चाह भी रखते हैं. सबसे अच्छी तरह से दीर्घकालिक लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प रहते हैं. एक साथ अनेक कामों को नहीं करते अपितु एक-एक करके उन्हें पूरा करने के बारे में सोचते हैं. पर साथ ही जिस पर मन लगा देते हैं उससे फिर असानी से हटते नहीं हैं.

मिथुनगत मंगल का योगफल | Mars Aspecting Gemini

मिथुनगत मंगल के होने पर जातक गौरवर्ण का आकर्षण से युक्त होता है. बहुत से विषयों में जानकारी रखने वाला होता है. जातक में अनुशासन प्रियता होती है. काव्यविधान में निपुण होता है. एक अच्छे आलोचक के हुण भी विद्यमान होते हैं. मिथुन के साथ मिलकर इसमें जूनून और नियमों की अनोखी समझ आती है. परिवर्तनशील और कल्पनाओं की उडा़न भी खूब होती है.

जातक में सहनशक्ति भी होती है. परंतु विचारों से काफी दृढ़ हो सकता है. लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने वाला होता है. मित्रों के सहयोग का पात्र बनता है. कई कामों में संलग्न रहने वाला होता है. व्यवहार में सौम्यता का प्रदर्शन होता है.

मनोहर व्यक्तित्व वाला और कलाओं से पूर्ण होता है अथवा इनमें लगाव की सहजवृति देखने को मिलती है. धर्म के कार्यों को करने में तत्पर रहता है, दयालुता के गुण भी होते हैं. मेधावी होता है और गुणों से युक्त होता है शिल्प ज्ञान का बोध होता है. कार्यों को कुशलता पूर्वक करने वाला होता है.

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 2”

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 3”

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 4”

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तुला, वृश्चिक और धनु को जब भी देखे बुध तो मिलते हैं ये फल

तुलागत बुधफल | Mercury Aspecting Libra

तुलागत बुध के होने पर जातक को शिल्पकला में बहुत रूचि हो सकती है और उसे इसका अच्छा ज्ञान भी होता है. जातक की वाणी में कलात्मकता का पुट साफ झलकता होगा. वह अपने कार्यों में भी काफी साज सज्जा का ख्याल रखने वाला होगा. जातक को वाकपटु व वाचाल बनाता है वह संगीत में निपुण व कला का प्रेमी होता है.

जातक बोलने चतुर होता वह अपने काम में निपुण होता है और सभी कुछ अच्छे रूप से करने की चाह भी रखता है उसे निरसता पसंद नहीं होती है. वह अपनी मन की कल्पनाओं से नए नए रंग भरते हैं ओर जीवन में एक नई सोच लेकर आगे बढ़ने की चाह रखते हैं. यह जातक भाषा के धनी होते हैं. जिस कारण सभी इनकी ओर आकर्षित हुए बिना रह नहीं पाते हैं.

यह लोग ज्ञान पिपासु होते हैं, बुद्धिमान होते हैं, मगर जल्दबाज व अधीर भी रहते हैं. काव्य लेखन में इनकी विशेष रुचि होती है. व्यापार बुद्धि भी इनमें खूब होती है. इन्हें किसी वस्तु के निर्माण कार्य का शौक भी खूब होता है. जातक में एक अच्छे व्यापारी बनने के गुण होते हैं. बड़ी कंपनियों में नौकरी करने वाला रहता है. यह एक अच्छे समालोचक बनाते हैं.

वृश्चिकगत बुधफल | Mercury Aspecting Scorpio

वृश्चिकगत बुध के होने पर व्यक्ति बहुत मेहनती बनता है वह काम को लेकर टाल मटोल नहीं करता है. जातक निर्भीक, सत्यप्रिय व मर्मभेदी होता है. इसके कार्यों में इसकी यही छाप अधिक दिखाई पड़ती है. जातक व्यर्थ बातों में समय नहीं गँवाता है. कला व साहित्य में श्रेष्ठ अभिरुचि रखता है किंतु अधिक समय अपने कठोर कर्म को देता है. जातक स्पष्टवादी व तीखी भाषा का उपयोग करने वाला हो सकता है.

जातक बुद्धिमान, आकर्षक और अल्हड़ व्यक्तित्व वाले होते हैं. जातक गंभीर प्रतिबद्धताओं में विश्वास नहीं करते प्यार के दिखावे में अनुकूल हो सकते हैं. प्रेम सच्चा होता है, जिद्दी और दृढ संकल्पी होते हैं और अगर यह चाहें तो प्यार और रिश्ते का वास्तविक अर्थ जानते हैं. जातक चुनौतियां और खतरा उठाना पसंद करते हैं. इसलिए यह एक उबाऊ रिश्ता नहीं हो सकता. इसमें अलग अलग गुण हैं और अगर इनका रचनात्मक इस्तेमाल किया जाए तो एक सुखद रिश्ता हो सकता है.

जातक में तुनकमिजाजी भी रह सकती है. व्यक्ति सज्जनों की निंदा कर सकता है. धर्म कर्म में इनकी अधिक रूची नहीं रहती है व किसी काम को करने में अधिक सोचते विचारते भी नहीं हैं. भावुक और प्रतिशोधी भी होते हैं इसलिए संबंधों को मजबूत बनाने में समय लगता है. इनमें अहं की भावना खूब होती है जिस कारण इनको दूसरों से परेशानी भी झेलनी पड़ सकती है.लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश करते हैं तभी सफल हो सकते हैं.

धनुगत योगफल | Mercury Aspecting Sagittarius

जातक में बेचैनी खूब होती है और यह बहस करने में आगे रखता है. इनके लिए लंबे समय तक एक जगह या एक व्यक्ति के साथ जुड़े रहना कठिन होता है. जीवन को जिस रूप में मिलता है उसी रूप में जीता है परंतु साथ ही जीवन के बारे में बहुत दार्शनिक होते हैं. लेकिन इसकी अनुकूलता में कोई समस्या नहीं आएगी यह लचीले और अनुकूलनीय स्वभाव के रहते हैं.

जातक विख्यात और उदार गुणों वाला होता है. वेदशास्त्रों में रूचि रखने वाले हैं. चरित्र से उन्नत होते हैं. मंत्रणां और सलाहकारिता देने वाले होते हैं. जीवन में वैभवशाली रहते हैं. मिलनसार व्यक्तित्व और बहुर्मुखी स्वभाव स्वतंत्र भावना से युक्त होते हैं. नए स्थानों की यात्रा करना पसंद करते हैं. यह सार्थक बातचीत में शामिल होना पसंद करते हैं.

दान पुण्य व धार्मिक कार्यों से जुडे़ रहते हैं और सदकामों को करने की कोशिश करते हैं. किसी भी विचार को पूरा करने से पूर्ण अपना ध्यान केन्द्रित रखते हैं ओर फैसलों को उचित प्रकार से पूरा करने का प्रयास भी करते हैं.

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 1”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 2”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 4”

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बुध दृष्टि फलकथन : कर्क-सिंह-कन्या राशि को बुध का देखना कर सकता है बेचैन

कर्कस्थ बुध योगफल | Mercury Aspecting Cancer

कर्कस्थ राशिगत में बुध के होने पर जातक में वाक चातुर्य के साथ एक हास्यात्मक पुट भी आता है जो उसकी शैली को अलग ही अंदाज देता है. इस प्रभाव में जातक में हास्य और व्यंग की चाटुकारिता आती है. जिससे सभी के समक्ष वह अपनी अलग ही पहचान पाता है. विद्वता में उसके चमक बढ़ती है और वह अपने वाक्यों से सभी को चकित कर सकता है. अपने पांडित्य से वह सभा को सम्मोहित करने की कला जानता है.

कर्कस्थ बुधफल के अनुरूप व्यक्ति को विदेश से अधिक प्रेम होता है, वह परदेस गमन की चाह भी खूब रखता है. जातक की चाह विदेश में जाकर कार्य करने की व अध्ययन करने की होती है वह उच्च शिक्षा की चाह के लिए इन स्थानों पर जाने का इच्छुक होता है. व्यक्ति की तर्क संगत बातों के समक्ष सभी विचारवान रहते हैं तथा उसकी विद्वता के प्रशंसक होते हैं.

कलात्मकता की ओर झुकाव बना रहता है. मन से चंचल होता है टिक कर रह पाना इनके लिए आसान नहीं है कुछ न कुछ करने की कोशिश करते रहते हैं. बहुत बोलने वाला हो सकता है. बहुत से कार्यों में लगा रहने वाला होता है कुछ न कुछ नया करने की चाहत बनी रहती है. प्रसिद्धि पाता है और वंश के नाम को आगे बढाता है. पर साथ ही जातक में अपने नाम और किर्ति को अच्छे से अभिव्यक्त करने कि कला होती है उसके बल पर वह अपने काम भी निकलवाना जानता है.

सिंहस्थ बुधयोगफल | Mercury Aspecting Leo

सिंहगत बुध के होने पर जातक में ज्ञान और कला की अच्छी समझ होती है. अपनी योग्यता से धनार्जन भी करते हैं और प्रसिद्धि भी पाते हैं. जातक में साहस होता है वह अपने फैसलों के बारे निश्चिंत रहता है. जातक में झुठ बोलने की प्रवृति भी देखी जा सकती है. स्मरण शक्ति में भी कुछ कमी रह सकती है. अपने में अधिक मस्त रहने वाला होता है दूसरों की छाप से अलग अपनी पहचान बनाने की चाह रखने वाला होता है.

इस स्थान पर होने से बुध जातक को ज्ञान में भरपूर उन्नत बनाता है. शिक्षा के क्षेत्र में जातक काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकता है. उसकी मौलिक सूझबूझ अच्छी रहती है ओर वह अपने ज्ञान से दूसरों को प्रभावित करता है. प्रतियोगिता में अच्छा कर सकता है ओर सभी से आगे भी जा सकता है प्रसिद्धि खूब पाता है उसके कामों में योग्यता की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है.

आर्थिक रूप से काफी संतुष्ट रहता है ओर धन की आमद बनी रहती है. यह स्वतंत्र रहकर काम करने की चाह रखते हैं दूसरों का हस्तक्षेप इन्हें पसंद नहीं होता है. भाई बंधुओं का सहयोग अधिक नहीं मिल पाता है या वह होते ही नहीं हैं स्त्रियों से दूरी ही अधिक रहती है. समान्यत: समाज में इनकी छवि अच्छी बनी रहती है.

कन्यास्थ बुधफल | Mercury Aspecting Virgo

कन्या में बुध के होने से जातक न्याय प्रिय होता है और किसी के साथ बुरा न करने की कोशिश करता है. यहां बुध की स्थिति उच्चता को पाती है. इस कारण से यहां स्थित होने पर यह जातके मौलिक गुणों को बढा़ने में सहयोग करता है. जातक वाणी में ओज रहता है वह भावों को अभिव्यक्त करने में भी सहयोगी रहती है. वाचाल होता है हर बात का जवाब है इनके पास, भाषण देने में काफी प्रभावशाली रह सकता है.

लेखन संबंधी कार्यों से जातक अच्छा नाम कमाता है, लेखन में उसकी दक्षता अच्छी होती है विचारों को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से लेखने द्वारा अभिव्यक्त कर सकता है. कविता इत्यादि में भी जातक का रूझान हो सकता है. विज्ञान व अन्य कलाओं का जानकार हो सकता है. बोलने में मधुर होता है भाई बंधुओं में बडा़ हो सकता है, मित्रों की अधिकता पाता है और उनसे प्रेम भी पाता है. स्वाभिमानी होता है तथा विनीत भाषण करने वाला, उदारगुणों से युक्त योग्य व्यक्तित्व का स्वामी होता है.

कन्या राशि में स्थित होने से बुध बलशाली होता है तथा अतिरिक्त बल प्राप्त होता है जातक सामान्यतया व्यवहार कुशल होता है व कठिन परिस्थितियों व गंभीर मसलों को कूटनीति से सुलझा लेता है. जातक शांत स्वभाव का होते हैं कार्यों को पूरा करने में चतुराई से काम लेता है. जातक सांसारिक जीवन जीने में सफल होते हैं तथा अपनी धुन के बहुत पक्के होते हैं तथा लोगों की कही बातों पर विचार न करके अपने काम में रमे रहते हैं.

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 1”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 3”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 4”

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दूसरे भाव से कुण्डली का आंकलन | Analysis of Kundali through Second House

जन्म कुण्डली के लग्न भाव के बाद दूसरा भाव आता है. दूसरे भाव को द्वितीय भाव, धनभाव, कुटुम्ब स्थान, वाणी स्थान, पनफर और मारक स्थान भी कहा जाता है. दूसरे भाव की कई बाते हैं जिनके द्वारा कुण्डली को समझने में सहायता प्राप्त होती है और उसके द्वारा जातक को अनेक बातों का पता चलता है.

दूसरे भाव को धन भाव कहते हैं अत: इस भाव से जातक को परिवार से मिलने वाला धन देखा जाता है उसकी पारिवारिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है. एक जातक जिस परिवार में पैदा होता है वह उस परिवार की धन संपत्ति क भागिदार बन जाता है इसलिए इस भाव से कुटुभ्ब का धन पता चलता है. इसी के साथ यह भाव वाणी और दाईं आंख के विषय में भी बताता है.

दूसरे भाव की स्वाभाविक विशेषताएं | Natural Characteristics of Second House

दूसरे भाव का कारक ग्रह गुरु को माना जाता है इस भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का विचार किया जाता है. यह भाव परिवार और धन का प्रतिनिधित्व करता है. कुछ अन्य बातें जैसे मृत्यु, परिवार, विचार, संचित सम्पति, शिक्षा, प्रथम स्कूली शिक्षा, स्वयं के द्वारा संचित धन, चेहरा, भौतिक कल्याण, दूसरा विवाह, अध्यापक, मित्र, रोकड, प्रलेख, गिरवी वस्तुएं.

बैंक में जमा धन, जवाहरात, आभूषण, धन से जुडे मामलें, वकील, बैंकर्स, बाँण्ड, जमापूंजी, स्टाक और शेयर बाजार, स्व-प्रयासों से संचित धन, नाखुन, संसारिक, प्राप्तियां, दान्त, जीभ इत्यादि के बारे में भी इसी भाव से देखा जाता है. द्वितीय भाव से व्यक्ति के परिवार से संबन्ध की जांच की जाती है. इसी भाव से छोटे भाई के द्वारा उपहार आदि का विश्लेषण भी किया जा सकता है. द्रेष्कोणों के अनुसार इस भाव से दाईं आंख, दायां कन्धा, जननांग का दायां भाग आदि की जांच में भी इसकी सहायता ली जाती है.

दूसरे भाव की शुभ स्थिति | Conditions for Auspiciousness of Second House

  • दूसरे भाव में जब शुभ ग्रह बैठे हो.
  • दूसरे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो.
  • दूसरा भाव शुभ ग्रहों के मध्य स्थित हो.
  • दूसरे भाव को द्वितीयेश देखता हो.
  • द्वितीयेश में द्वितीय में ही स्थित हो.
  • दूसरा भाव शुभ कर्तरी में हो.
  • वर्ग कुण्डली में अनुकूल स्थिति में हो.
  • दूसरे भाव पर किसी की दृष्टि नहीं हो.

इनमें से कोई भी स्थिति कुंण्डली में बन रही हो तो लग्न भाव मजबूती को पाता है. जब यह स्थितियां जातक की जन्म कुण्डली में बन रही हों तो जातक को धन लाभ दिलाने में सहायक होती हैं तथा जातक की भाषा भी मधुरता पाती है. व्यक्ति दूसरों का मन मोह सकता है और परिवार में आदरणीय स्थिति पाता है.

व्यक्ति के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होती है. द्वितीयेश शुभ ग्रहों के मध्य हों, शुभ ग्रहों से दृष्टि या युति संबंध बनाता हो या वह उच्च राशि में स्थित हो, मित्र नवांश में, मित्र ग्रह के द्रेष्कोण, केन्द्र या त्रिकोण भाव में, मित्र ग्रह की राशि में हो तो यह दूसरे भाव को मजबूती देने वाले बनते हैं. कुण्डली के दूसरे भाव में स्वगृही स्थिति होने पर जातक को बल व साहस की प्राप्ति होती है.

दूसरे भाव की अशुभ स्थिति | Conditions for Inauspiciousness of Second House

  • दूसरा भाव पाप कर्तरी में हो.
  • अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो.
  • शत्रु राशि में.
  • अशुभ ग्रहों की युति में हो.
  • अशुभ ग्रहों के मध्य स्थित हो.
  • नीच राशिस्थ या अस्त हो.
  • बाधक ग्रह का प्रभाव हो,
  • शत्रु नवांश या द्रेष्कोण में हो तो यह स्थितियां भाव को कमजोर बनाती हैं.

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संतान प्राप्ति का समय – एक विश्लेषण | Time of Conception – An Analysis

वैदिक ज्योतिष में किसी बात के निर्धारण के लिए सबसे पहले कुंडली के योगो को देखा जाता है. फिर उस बात से संबंधित दशा/अन्तर्दशा का विश्लेषण किया जाता है. अंत में गोचर के ग्रहों को देखा जाता है कि वह कब हरी झंडी दिखाएंगे. आज हम एक महिला की कुंडली के माध्यम से इन सभी बातो को संतान प्राप्ति के माध्यम से समझने का प्रयास करेगें. एक महिला जातक की कुंडली में संतान प्राप्ति के योग फिर दशा और अंत में गोचर का अध्ययन किया जाएगा.

जन्म कुंडली | Janma Kundali

इस महिला जातक की कुंडली का कन्या लग्न है और मिथुन राशि है. विवाह के एक वर्ष के भीतर इन्हें अपनी प्रथम संतान के रुप में पुत्री की प्राप्ति हुई और फिर इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इनका विवाह मई माह के प्रथम सप्ताह में 1997 में संपन्न हुआ और फरवरी 1998 में प्रथम संतान का जन्म हुआ. सबसे पहले हम इस कुंडली में संतान प्राप्ति के योग देखते हैं कि वह है तो कैसे हैं. कन्या लग्न की कुंडली में लग्न में ही बुध, मंगल तथा सूर्य स्थित है. चतुर्थ भाव में बृहस्पति अपनी मूल त्रिकोण राशि में राहु के साथ हैं. शनि पंचमेश होकर नवम भाव में स्थित है. दशम भाव में चंद्रमा तथा केतु हैं. एकादश भाव में शुक्र स्थित है.

शनि इनकी कुण्डली में पंचमेश होकर नवम भाव में स्थित है और उन पर किसी का भी कोई पाप प्रभाव या किसी भी ग्रह की दृष्टि नही है और किसी तरह का कोई भी संबंध अन्य ग्रह से नहीं बन रहा है अर्थात पंचमेश बली है और अत्यधिक शुभ तथा बली भाव में स्थित है. पंचम भाव पर एक शुभ ग्रह शुक्र की दृष्टि भी आ रही है जो एकादश भाव में है. शुक्र भाग्येश होकर इस भाव को दृष्ट कर रहे हैं. पंचम भाव तथा पंचमेश बली हैं. कारक ग्रह बृहस्पति राहु/केतु अक्ष पर स्थित है लेकिन बृहस्पति पर एक शुभ ग्रह चंद्रमा की दृष्टि भी आ रही है जो एकादशेश भी हैं. बृहस्पति अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित है. राहु तथा बृहस्पति भले ही युति में है लेकिन अंशो में काफी दूरी है. राहु 29 अंश का है तो बृहस्पति 9 अंश का है. वैसे भी कहा गया है कि राहु जिस भाव तथा भावेश से संबंध बनाते हैं उनके अनुसार फल प्रदान करते हैं. यहाँ राहु ने बृहस्पति के गुणों को अपना लिया है और केन्द्र मे स्थित होने से अपनी अशुभता भूलकर तटस्थ हो गया है.

नवांश कुंडली | Navansh Kundali

नवांश कुंडली को अगर देखें तो मकर लग्न की कुंडली बनती है अर्थात जन्म कुंडली का पंचम भाव ही लग्न बन गया है. नवांश कुंडली का पंचमेश शुक्र बनता है और वह तीसरे भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित है. जन्म कुण्डली का पंचमेश शनि यहाँ भी अपनी मित्र राशि में भाग्य भाव में ही स्थित है.

सप्ताँश कुंडली | Saptansh Kundali

सप्ताँश कुंडली का लग्न मीन है और इसका स्वामी बृहस्पति एकादश भाव में स्थित है. सप्ताँश कुंडली के लग्न तथा लग्नेश का अध्ययन किया जाता है. बृहस्पति अपनी राशि में है लेकिन एकादश भाव में नीच का ग्रह भी शुभ फल प्रदान करता हैं. इसलिए लाभ में गया लग्नेश शुभ ही है.

दशा | Dasha

जिस समय संतान की प्राप्ति हुई उस समय बृहस्पति/बुध की दशा थी. उससे पहले बृहस्पति/शनि में गर्भ धारण हो गया था. आइए अब महादशानाथ को जन्म कुंडली और वर्ग कुण्डली, सप्ताँश में देखते हैं. महादशानाथ बृहस्पति संतान प्राप्ति के नैसर्गिक कारक ग्रह हैं जो जन्म कुंडली में अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित है. गर्भ धारण के समय बृहस्पति में शनि की अन्तर्दशा थी जो अक्तूबर 1997 तक रही. शनि जन्म कुंडली के पंचमेश है और पंचम से पंचम अर्थात नवम भाव में स्थित है. इसका अर्थ यह हुआ कि दशा ने प्रॉमिस दिया और विवाह के तुरंत बाद ही गर्भ ठहर भी गया. सप्तांश कुण्डली के लग्नेश बृहस्पति ही हैं और वह एकादश भाव में स्थित होकर पंचम को देख रहे हैं. अन्तर्दशानाथ शनि हैं जो सप्तांश कुंडली में तीसरे भाव में स्थित है और बृहस्पति से दृष्ट भी हैं और शनि स्वयं सप्ताँश कुंडली के पंचम भाव को भी देख रहे हैं.

संतान के जन्म के समय बृहस्पति/बुध/बुध की दशा थी. बृहस्पति का वर्णन हम कर चुके हैं. अब बुध को देखते हैं. बुध जन्म कुंडली के लग्नेश है और लग्नेश की दशा में कुंडली के किसी भाव के फल मिलने की संभावना होती है. सप्ताँश कुंडली में बुध पंचम भाव में ही स्थित है और संतान के कारक बृहस्पति से दृष्ट हैं.

गोचर | Transits

जन्म कुंडली में कोई भी काम बृहस्पति तथा शनि के दोहरे गोचर के बिना नहीं होता है. संतान प्राप्ति में भी गोचर के गुरु व शनि का दोहरा गोचर पंचम भाव व पंचमेश पर होने पर ही संतान प्राप्त होगी यदि दशा भी संतान प्राप्ति की चल रही हो तो. यदि बच्चे के जन्म से नौ माह पहले का शनि व बृहस्पति का गोचर देखें तो शनि मीन राशि में स्थित थे और बृहस्पति मकर राशि में स्थित थे. शनि मीन राशि से पंचमेश शनि को देख रहे हैं और बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित है और पंचमेश शनि को भी देख रहे हैं. यहाँ दोहरा गोचर अपने पूरे फल प्रदान कर रहा है.

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दशा और गोचर जब किसी एक भाव से संबंधित होता है तब उस भाव से संबंधित फल मिलते हैं बशर्ते कि कुंडली में योग भी होने चाहिए.

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