दिवारात्रि बली ग्रह का फल | Result of Strong Diva Ratri Planets | Strong Diva Ratri Planets

दिवारात्रि बली ग्रह में जातक को धन ऎश्वर्य और आभूषणों की प्राप्ति होती है. भू-संपदा की प्राप्ति में सफलता मिलती है. वाहन सुख तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. व्यक्ति के बल व पराक्रम में वृद्धि होती है. तथा शतुओं से बचाव होता है. जातक साहस से सभी कठिनाईयों को पार कर लेने में सक्षम होता है.

सूर्य | Sun

सूर्य के दिवा बली होने पर जातक को कर्म क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है. वह अपने उच्च अधिकारियों का सहयोग व सम्मान पाने में सफल रहता है. जातक के कार्यक्षेत्र में विस्तार होता है उसे आय के अनेक स्रोत प्राप्त होते हैं. जीवन में भाग्य की स्थिति उन्नत बनती है जातक अपने परिश्रम द्वारा अपने अच्छे भाग्य का निर्माण करने में लगा रहता है. जीवन के क्षेत्र में जो भी बाधाएं आने का प्रयास करती हैं वह उनमें सफलता से पार कर लेता है. जातक उदार हृदय का चित से स्नेही होता है. भाग्य का साथ बना रहता है तथा शत्रुओं को परास्त करने में सफल होता है.

चंद्रमा | Moon

चंद्रमा के रात्रि बली होने पर जातक का मन परोपकारी कार्यों की ओर लगा रहता है. वह किसी न किसी रूप से दूसरों के हित तथा परमार्थ का विचार करता है. दान-पुण्य करने वाला होता है तथा किसी न किसी रूप में जातक की भागीदारी अच्छे कार्यों की ओर लगी रहती है. जातक तेजस्वी तथा यशस्वी बनता है. वस्त्रादि व धन आदि से संतुष्ट रहता है. माता की ओर से भरपूर स्नेह की प्राप्ति होती है.जातक सौम्य चरित्र का निर्मल हृदय का होता है. दूसरों के दुख में द्रवित हो जाना इसकी प्रकृति में शुमार होता है. कीर्तिवान तथा उच्च कुल से संबंध रखने वाला होता है.

मंगल | Mars

मंगल के दिवारात्रि बली होने पर जातक में परोपकारीता का गुण आता है. वह निर्बलों की सहायता करने वाला होता है. जातक में साहस और निर्भयता के गुण होते हैं वह कार्यों को करने में अपनी पूर्ण ऊर्जा शक्ति लगा देता है. उसके सभी कार्य शक्ति संपन्न होते हैं. सौभाग्य का साथ मिलता है किंतु उसमें क्रोध अधिक होने से वह अपने लिए सभी के मन में प्रेम जागृत करने में अधिक सफल नहीं हो पाता है. अपनी बात पर अडिग रहते हुए वह कभी-कभी दूसरों की अवहेलना कर सकता है. जातक को स्त्री व पुत्र संतती का सुख मिलता है अपने भाई बंधुओं का साथ भी पाता है.

बुध | Mercury

बुध को सर्वथा व सदैव बली माना जाता है. बुध के दिवारात्रि बली होने पर जातक व्यवसाय में उच्च स्तर का प्रदर्शन करने में सक्षम रहता है. समाज के उच्च कुलिन लोगों का साथ उसे प्राप्त होता है. जातक में व्यापार कार्य की अच्छी समझ होती है. वह दूसरों के समक्ष अपनी बुद्धि तथा योग्यता का प्रदर्शन करने की क्षमता रखता है. जातक को मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है. सजने-संवरने का खूब शौक होता है तथा मिष्ठानों का शौक रहेगा. सेवा कार्य करने में व्यक्ति कुशल होता है. जातक को वाक चातुर्य का ज्ञान होता है जिससे वह दूसरों के समक्ष अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने में सफल रहता है तथा वाणी के ओजस्वी प्रभाव से दूसरों के मन में स्थान पाने में सफल रहता है.

बृहस्पति | Jupitor

बृहस्पति के दिवारात्रि बली होने पर जातक गुणवान सदचरित्र वाला व्यक्ति होगा. उसे सम्मान एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी. वह समाज में धनी मानी यशस्वी व्यक्ति होगा. प्रसन्नचित रहते हुए कार्यों को करने में निपुण होगा. ज्योतिष शास्त्र एवं वेद ज्ञान का जानकार होगा. व्यक्ति को मान-सम्मान, धन सम्पत्ति प्राप्त होती है. पिता व गुरूजनों का साथ मिलता है उनसे शुभ गुणों एवं अच्छे कर्मों को करने की शिक्षा प्राप्त tहोती है. संतान सुख मिलता है तथा दांपत्य जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है. शिक्षा में उन्नती मिलती है. व्यवसाय में अधिकारियों का सहयोग बना रहता है.. समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करने वाला होता है.

शुक्र | Venus

शुक्र के रात्रि बली होने पर यह भौतिक दृष्टि से यह शुभता का प्रतीक बनता है. पारिवारिक एवं गृहस्थ जीवन का सुख मिलता है. स्त्री पक्ष से एवं मित्रों से लाभ होता है. व्यक्ति का सामाजिक दायरा विस्तृत होता है. यह स्थिति गृहस्थ जीवन की खुशी में सहायक होती है. जातक के व्यक्तित्व में निखार लाता है और व्यक्ति मानवीय गुणों से परिपूर्ण होता है. जातक को कामयाबी, यश और धन की प्राप्ति होती है. भवन एवं वाहन का सुख मिलता है. रत्नों व आभूषणों की प्राप्ति होती है. शुक्र जातक को सुन्दरता भोगविलास सौन्दर्य, प्रेम, कला संगीत इत्यादि सभी सुख सुविधाओं को प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है. व्यक्ति में शिष्टाचार आता है वह धैर्य ,शान्ति जैसे गुणों को समझने वाला होता है.

शनि | Saturn

शनि के रात्रि बली होने पर जातक में भोगभाव होने की प्रवृत्ति अधिक देखी जा सकती है. जातक प्रेम संबंधों को लेकर संवेदनशील होते हैं. जातक एश्वर्यों का भोग करने की चाह रखता है. जातक को तपाकर उसके विचारों को शुद्ध कर देता है. व्यक्ति को तपस्वी बना देता है तथा विचारों को शुद्ध करते हुए मन और शरीर पर पूर्ण नियंत्रण रखता है. व्यक्ति की अध्यात्म में रुचि बढ़ती है. दाम्पत्य सुख को क्षीण करने वाला भी होता है किंतु शनि विचारों में शुद्धता लाता है व जातक को दृढ़ता भी प्रदान करता है.

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सिंह लग्न का नौवां नवांश | Ninth Navansh of Leo Ascendant

सिंह लग्न का नौवां नवांश धनु राशि का होता है जिसके स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं. इस नवांश के अनुरूप जातक के जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. जातक का रूप रंग आकर्षक होता है, उसमें बाहुबल की अधिकता होती है. वह कार्यों को करने में सूझबूझ से काम लेता है. जातक की आवाज भारीपन लिए हुए प्रभावशाली होती है. इनका चेहरा लम्बा होता है व नाक उठी हुई होती है.

आंखें काली व मनमोहक होती हैं. कमर पतली तथा पैर मजबूत होते हैं, इनकी चाल में तेजी देखी जा सकती हैं. व्यक्ति रौबिला होता है तथा दूसरों पर इनका खूब प्रभाव पड़ता है. परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने में यह बहुत सहायक रहते हैं इन्हें मुख्य स्थान की चाहत रहती है. यह स्वयं की सत्ता का अनुसरण करने की इच्छा रखने वाले होते हैं.

व्यक्ति कम बात करने वाला लेकिन गंभीरता के साथ प्रत्येक स्थिति पर विचार करने वाले होते हैं. अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए यह हर संभव प्रयास करने वाले होते हैं. आथिक मामलों में यह सीमित प्रवृत्ति का प्रदर्शन करने वाले होते हैं. धन संबंधी मामलों में संतुष्ट दिखाई दे सकते हैं. यह किसी भी कार्य में योजनाबद्ध तरीके से काम करते हैं तथा धन भी योजना अनुरूप व्यय करते हैं जिस कारण आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है.

सिंह लग्न के नौवें नवांश का प्रभाव | Effect of Ninth Navamsha of Leo Ascendant

जातक की स्थिति सम्मान जनक होती है समाजिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं. समाज कल्याण के कार्यों से जुड़ते हैं तथा सभी क्षेत्रों में अपनी भूमिका का निर्वाह कराने वाले होते हैं. इनके कार्यों की समाज में प्रशंसा होती है तथा गणमान्य व्यक्तियों के मध्य इन्हें उच्च स्थान प्राप्त होता है. जातक में योग्यता होती है और वह अपनी कार्य कुशलता द्वारा सभी के मध्य आकर्षण का केन्द्र बनता है.

जातक अधिक मेल-जोल के होते हुए भी स्वयं को सीमित रखने का प्रयास करता है. यह किसी भी जल्दबाजी़ से दूर ही रहने का प्रयास करते हैं. इनके बारे में समझ पाना कठिन नहीं होता. इनके मित्रों की संख्या कम ही होती है, किंतु जो भी मित्र होते हैं वह इनके साथ निष्ठावान रहने वाले होते हैं.

संतान पक्ष की ओर से इन्हें संतोष की प्राप्ति होती हैं, इनकी संतान योग्य व आज्ञाकारी रह सकती है तथा उनके द्वारा इन्हें सम्मान की भी प्राप्ति होती है. शुभ आचरण और धर्मगत व्यवहार करने वाले होंगे. व्यक्ति अपनी संतान के विषय में अधिक विचारशील रह सकता है. उनकी शिक्षा व व्यवसाय के प्रति इनका ध्यान बना रहता है. यह अपना अधिकांश समय बच्चों के विकास और उनके उज्जवल भविष्य के निर्माण हेतु लगा देते हैं.

जीवन साथी के रूप में इन्हें सुयोग्य साथी की प्राप्ति होती है. इनका साथी कार्यकुशल व व्यवहार में चतुर होता है. वह शिल्प कला इत्यादि में प्रवीण हो सकता है तथा गृहस्थ जीवन के प्रति सजग रहने वाला होता है. धार्मिक क्रियाकलापों को करने में आगे रहने वाला होता है. वह भ्रमण करने का शौकिन हो सकता है. अपनी जिम्मेदारियों के प्रति काफी सजग रहता है. यह जातक के साथ परस्पर सहयोगात्मक रूप से काम करने वाला हो सकता है.

सिंह लग्न के नौवें नवांश का महत्व | Significance of Ninth Navamsha of Leo Ascendant

सिंह लग्न के नवें नवांश में जन्मा जातक साहसी व अपने कार्यं को करने में प्रयासरत रहने वाला हो सकता है. परंतु जातक में स्वयं को अग्रीण रखने की स्थिति कभी-कभी संतोषजनक नहीं रह पाती है. जातक की कल्पना शक्ति अधिक होती है वह नए-नए रूप से स्वयं को अभिव्यक्त करने की चाह रख सकता है. दोहरी विचारधाराओं से जुड़ते हुए जातक अपनी समझ का दायरा विस्तृत रखने वाला होता है.

जातक को विज्ञ जन का साथ मिलता है तथा गुरू समान व्यक्तियों का सानिध्य पाता है. अपने कार्यक्षेत्र में यह अपने शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम रहता है. अपने विनम्र स्वभाव के कारण जातक अन्य लोगों के साथ सहज हो जाता है. व्यवहार कुशलता बनी रहती है तथा जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखता है.

जातक के चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहती है. जातक कि उपस्थिति उल्लासपूर्ण और अनौपचारिक होती हैं लेकिन उदार प्रकृति के होने के कारण यह सभी के लिए प्रिय होते हैं. इन्हें बदलती परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को ढलना आता है. यह कोई भी आदत आसानी से नहीं बनाते यह स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं तथा उसके अनुसार काम करने का प्रयास भी करते हैं. कभी-कभी यह क्रोधी हो सकते हैं जिस कारण इन्हें शांत कर पाना कठिन हो जाता है.

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सूर्य का मंगल के द्रेष्काण में स्थिति का आंकलन | Analysis of Sun In Mars’s Drekkana

ज्योतिष में द्रेष्काण की महत्ता के बारे में काफी कुछ बताया गया है. द्रेष्काण में किस ग्रह का क्या प्रभाव पड़ता है, इस बात को समझने के लिए ग्रहों की प्रवृत्ति को समझने की आवश्यकता होती है. जिनके अनुरूप फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है तथा जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में होने वाली बदलावों और घटनाओं को समझ पाना आसान होता है.

सूर्य का मंगल के द्रेष्काण में जाने का नियम | Rules For Sun Entering Mars’s Dreshkona

सूर्य का मंगल के द्रेष्काण में होना एक मैत्री स्थिति को दर्शाने वाला है दोनों ग्रह एक दूसरे के लिए मित्र भाव रखते हैं. यह जातक की स्थिति को उन्नत बनाए रखने में सक्षम होती है. जातक की कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है इस स्थिति से ग्रह को बल प्राप्त होता है जिससे उसके प्रभावों में दृढ़ता आती है. ग्रह की यह स्थिति जातक में उसके गुणों की अधिकता देने वाली होती है. जातक के जीवन में इस स्थिति का प्रभावशाली रूप उभर कर सामने आता है. ग्रह की शुभता को बढ़ाने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में सहायक होती है.

सूर्य का मंगल के द्रेष्काण में जाने का स्वरूप निम्न प्रकार से समझा जा सकता है.

पहला – जब सूर्य कुण्डली में मेष राशि में ही 0 से 10 अंशों के मध्य में होता है.
दूसरा – जब सूर्य धनु राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य में होता है.
तीसरा – जब सूर्य सिंह राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य होता है.
चौथा – जब सूर्य वृश्चिक राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य होता है.
पांचवां – जब सूर्य कर्क राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य होता है.
छठा – जब सूर्य मीन राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य होता है.

सूर्य का मंगल के द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effect Of Sun In Mars’s Dreskona

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार किसी भी ग्रह का अपने मित्र के द्रेष्काण में जाना सामान्यत: अच्छा माना जाता है. सूर्य का मंगल के द्रेष्काण में होना सूर्य को मित्रता की स्थिति देता है. यह स्थिति सूर्य और मंगल के गुणों को मिलकर देने वाली बनती है. मित्र के द्रेष्काण में होने पर यह स्थिति उसके प्रभावों में वृद्धि करने वाली होती है.

सूर्य, मेष राशि में ही 0 से 10 अंशों तक | Sun In Aries Sign 0-10 Degree

सूर्य जब जन्म कुण्डली में मेष राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होता है तो वह मंगक के द्रेष्काण में स्थान पाता है. यह स्थति के प्रभावसवरूप जातक के स्वभाव में क्रोद्ध की अधिकता देखी जा सकती है. इसमें जातक को दो अग्नि स्वरूप ग्रहों का प्रभाव मिलता है और इस राशि में सूर्य अपनी उच्च स्थिति को पाता है जिसके फलस्वरूप उसके तेज में ताप देखा जा सकता है.

व्यक्ति अपनी कृतियों और रचनाओं के कारण काफी प्रसिद्धि पाने में सक्षम होता है. वह नेतृत्व में कुशल व शस्त्रों का जानकार होता है. व्यक्ति युद्धप्रिय हो सकता है ऎसे अनेक कौशल जिसमें शक्ति का उपयोग हो उसे अच्छे लग सकते हैं. ओजस्विता युक्त व्यक्तित्व का धनी होता है.

सूर्य धनु राशि में 10 से 20 अंशों तक | Sun In Sagittarius Sign 10-20 Degree

सूर्य यदि धनु राशि में 10 से 20 अंशों तक हो तो वह मंगल के द्रेष्काण को पाता है. इससे प्रभावित होने पर व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत होता है. राज्य की ओर से उसे सम्मान और उपाधि भी मिल सकती है. जन सेवक बनकर लोक कल्याण के कार्यों में भी लगा रहता है. हथियार चलाने में निपुणता मिलती है, मजबूत देह वाला है तथा सत्य की और अग्रसर रहने वाला भी होता है. व्यक्ति में स्वतंत्र रहने की इच्छा होती है और वह अपने कामों को अपने मन के अनुरूप करना चाहता है. परिवर्तन की चाह रखते हुए विचारों से दार्शनिक और अन्वेषक हो सकता है. अनेक स्थानों में विचरण करने की चाह उसमें रह सकती है साहसिक कार्यों में रूचि रख सकता है. सूर्य की तेजी और अग्नि जातक को प्रभावित करती है.

सूर्य सिंह राशि में 20 से 30 अंशों तक | Sun In Leo Sign 20-30 Degree

सूर्य का सिंह राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में होने पर सूर्य मंगल के द्रेष्काण में जाता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति के चेहरे पर तेज रहता है. वह राज्य व पिता से सम्मान की प्राप्त करने में सफल होता है. साहसी और शत्रु का नाश करने वाला होता है. स्वभाव से क्रोधी होता है.

क्रियाओं में निपुण होता है तथा विभिन्न प्रकार के कामों को में प्रविणता पाने में सक्षम होता है. कार्यस्थल में पदोन्नती पाता है ओर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के मध्य विचरण करता है. प्रकृति से प्रेम करने वाला होता है, वनों पर्वतों में विचरण करना अच्छा लगता है, मस्त और जीवन को सकारात्मक रूप से जीने की कोशिश करने वाला होता है.

सूर्य वृश्चिक राशि में 0 से 10 अंशों तक | Sun In Scorpio Sign 0-10 Degree

सूर्य का वृश्चिक राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य होने पर यह मंगल के द्रेष्काण में जाता है. शौर्य से पूर्ण कामों को करने की चाह रखने वाला होता, शूरवीर और तेजस्वी होता है. कटाक्ष करने में आगे रहता है. बिना सोचे विचारे किसी के मन को ठेस पहुंचाने वाले कथन कह सकता है. अपनी बातों पर अडिग, नेतृत्व की चाह रखने वाला कुछ अंहकारी भी हो सकता है. अधिक सोच विचार में नहीं लगा रहता. भीड़ से अलग ने की चाह भी रखता है, बोलने में कुशल और धार्मिक गुणों से युक्त होता है.

सूर्य कर्क राशि में 10 से 20 अंशों तक | Sun In Cancer Sign 10-20 Degree

सूर्य कर्क राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य हो तो सूर्य मंगल के द्रष्काण में जाता है. इसके प्रभावस्परूप व्यक्ति समाज में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ने वाला होता है. धन से युक्त होता है अपने बूते पर काफी कुछ अर्जित भी कर सकता है. स्वभाव में चंचलता देखी जा सकती है. गौर वर्ण युक्त व लालिमा लिए हुए होता है. अपने सुसंस्कृत कार्यों द्वारा सभी के मध्य सम्मान पाने में सफल होता है. अच्छे परिवार में जन्मा व संपन्नता से युक्त होता है.

सूर्य मीन राशि में 20 से 30 अंशों तक | Sun In Pisces Sign 20-30 Degree

सूर्य मीन राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होने पर मंगल के द्रेष्काण में जाता है. इस स्थिति के प्रभावस्वरूप जातक को धैर्यवान बनाता है. जातक धर्म कर्म के प्रति रूझान रखने वाला होता है. धार्मिक गतिविधियों से जुडा़ रहता है और अपने कौशल द्वारा सभी के सम्मुख सम्मान पाता है.

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कुंडली के प्रकार | Types of Kundalis

जन्म के समय आकाशीय ग्रहों का नक्शा कुंडली कहलाता है. समय विशेष पर ग्रहों को कुंडली में अंकित किया जाता है. हर स्थान पर कुंडली बनाने का तरीका अलग होता है, लेकिन ग्रह नौ ही होते हैं और राशियाँ भी बारह ही होती हैं. भारतवर्ष में भी कई प्रकार की कुंडलियाँ बनाने का प्रचलन है. जैसे उत्तर भारतीय पद्धति, दक्षिणी भारतीय पद्धति और पूर्वीय भारतीय पद्धति, इन तीन प्रकार की कुंडलियों का निर्माण भारतवर्ष में किया जाता है.

उत्तर भारतीय पद्धति | North Indian System

उत्तर भारतीय पद्धति में भाव स्थिर रहते हैं अर्थात एक से बारह भाव तक स्थिर होते हैं पर लग्न उदय के साथ राशियाँ बदल जाती है. जिस समय जो लग्न उदय होता है उसे सदा पहले भाव में लिखा जाता है और उसके बाद बाकि सभी राशियों को क्रम से लिखा जाता है. राशियों को बाईं ओर क्रम से लिखा जाता है, माना पहले भाव में कर्क राशि है तब बाईं ओर दूसरे भाव में सिंह राशि और तीसरे भाव में कन्या और बाकि सभी इसी क्रम में चलती जाएगी.

दक्षिण भारतीय पद्धति | South Indian System

दक्षिण भारतीय पद्धति में प्रचलित कुंडली में राशियाँ स्थिर रहती है और भाव बदल जाते हैं. पूरी कुंडली में लग्न भाव कहीं भी आ सकता है जबकि उत्तर भारतीय पद्धति में ऎसा नहीं है. दोनो की कुंडली बनाने का तरीका भी भिन्न होता है. जिस भाव में लग्न राशि आती है उसे दो तिरछी रेखाएँ खींचकर चिन्हित कर दिया जाता है. लग्न को पहला भाव मानते हैं और बाकी भाव दाईं ओर आते हैं. इस पद्धति में राशि स्थिर होती है, इसलिए राशि संख्या को कुंडली में दिखाया नहीं जाता है.

पूर्व भारत की कुंडली | East Indian System

देश के पूर्वी भागों में प्रचलित कुंडली में उत्तर व दक्षिणी भारत दोनों का स्वरुप देखने को मिलता है, लेकिन कुंडली का प्रारुप अलग ही होता है. दक्षिण भारतीय पद्धति की तरह इसमें राशियाँ स्थिर होती हैं लेकिन राशियों को क्रम से उत्तर भारतीय पद्धति के अनुसार बाईं ओर से लिखा जाता है. भाव योजना लग्नानुसार बदल जाती है.

पाश्चात्य देशों की कुंडली | Kundalis in Western Countries

पाश्चात्य देशों में वृत्ताकार कुंडली बनाने का प्रचलन है. लग्न से आरंभ करने पर कुंडली बारह भावों में बंट जाती है. लग्न स्पष्ट को प्रथम भाव का आरंभ माना जाता है. लेकिन भारतीय पद्धति में लग्न स्पष्ट को प्रथम भाव का भाव मध्य माना जाता है. इसमें भावों को बांई ओर से क्रम से रखा जाता है.

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सूर्य का चंद्रमा के द्रेष्काण में स्थिति का आंकलन | Analysis Of Sun In Moon’s Drekkana

ज्योतिष में द्रेष्काण की महत्ता के बारे में काफी कुछ बताया गया है. द्रेष्काण में किस ग्रह का क्या प्रभाव पड़ता है, इस बात को समझने के लिए ग्रहों की प्रवृत्ति को समझने की आवश्यकता होती है. जिनके अनुरूप फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है तथा जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में होने वाली बदलावों और घटनाओं को समझ पाना आसान होता है.

सूर्य का चंद्रमा के द्रेष्काण में जाने का नियम | Rules For Sun Entering Moon’s Dreshkona

सूर्य का चंद्रमा के द्रेष्काण में होना एक मैत्री स्थिति को दर्शाने वाला है दोनों ग्रह एक दूसरे के लिए मित्र भाव रखते हैं. यह जातक की स्थिति को बेहतर बनाए रखने में सक्षम होती है. जातक की कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है. यह स्थिति ग्रह को बली बनाने में सहायक होती है. जातक के जीवन में इस स्थिति का प्रभावशाली रूप उभर कर सामने आता है. इस स्थिति के कारण ग्रहों को बल मिलता है तथा ग्रह की शुभता को बढ़ाने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में सहायक होती है.

सूर्य यदि चंद्रमा के द्रेष्काण में जाए तो इस स्थिति को इस प्रकार समझा जा सकता है पहला कारण की सूर्य जब कर्क राशि में 0 से 10 अंशों तक का हो दूसरा कारण कि सूर्य जब मीन राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा और तीसरा कारण कि सूर्य वृश्चिक राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित हो. कुण्डली में बनने वाली यह स्थिति सूर्य को बली बनाती है.

सूर्य का चंद्रमा के द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effect Of Sun In Moon’s Dreskona

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार किसी भी ग्रह का अपने मित्र के द्रेष्काण में जाना सामान्यत: अच्छा माना जाता है. सूर्य का चंद्रमा के द्रेष्काण में होना सूर्य को मित्रता की स्थिति देता है. यह स्थिति सूर्य और चंद्रराशि के गुणों को मिलकर देने वाली बनती है. मित्र के द्रेष्काण में होने पर यह स्थिति उसके क्रूर प्रभावों में भी कमी करने की कोशिश कर सकती है.जहां एक ओर सूर्य सात्विक ग्रह है वहीं चंद्रमा में भी यही सात्विकता देखी जा सकती है यह दोनों ग्रह राजा और रानी के जैसा व्यवहार करने वाले होते हैं.

सूर्य कर्क राशि में 0 से 10 अंशों तक | Sun In Cancer Sign 0-10 Degree

सूर्य जब कर्क राशि में स्थित होगा 0 से 10 अंशों तक, तब वह चंद्रमा के द्रेष्काण से संबंधित होगा. इस द्रेष्काण में प्रभावित होने से जातक को दो ग्रहों की सामंजस्यता प्रभावित कर सकती है. जातक के जीवन में होने वाले परिवर्तनों पर इन दोनों ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. इस द्रेष्काण में होने पर जातक के क्रोध को कुछ हद तक नियंत्रण भी प्राप्त होगा. व्यक्ति का कार्यक्षेत्र में मिले जुले फलों को देने वाला रह सकता है, उसमें धर्मात्मा के मिले जुले गुण रह सकते हैं.

व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति में कुछ सौम्यता का भी प्रभाव दिखलाने वाला होता है परंतु साथ ही जातक में इस द्रेष्काण का बली रूप देखने को मिल सकता है क्योंकि सूर्य का चंद्रमा के द्रेष्काण में होना सूर्य की मित्र राशि में स्थिति को दर्शाता है ऎसे में चंद्रमा के शांत तत्वों को सूर्य के गुणों से मिला-जुला रूप देखने को मिलता ही है. इसी के साथ-साथ सूर्य और चंद्रमा के सात्विक भाव तत्वों की सारगर्भिता देखने को मिलती है.

जातक काम में अधिक जल्दबाजी दिखाने वाला हो सकता है, अपने किए हुए कामों संतुष्टि कम रह सकती है क्योंकि किसी एक निश्चय के साथ टिके रहने में इन्हें दिक्कत हो सकती है. मन में बदलाव की स्थिति कुछ बातों को लेकर असमंजस पैदा कर सकती है.

सूर्य मीन राशि में 10 से 20 अंशों तक | Sun In Pisces Sign 10-20 Degree

सूर्य का मीन राशि में 10 से 20 अंशों तक होना चंद्रमा के द्रेष्काण की स्थिति देने वाला बनता है. इस स्थिति में होने पर भी सूर्य अपनी मित्र स्थिति को पाते हुए ही चंद्रमा के द्रेष्काण में जाता है. यहां गुरू की राशि में स्थित होने पर सूर्य चंद्रमा का द्रेष्काण पाता है. जातक में संस्कारों के प्रति सम्मान की भावना बनी रहती है. वह अपने गुणों को संभालते हुए आगे बढ़ता जाता है. अपनी धरोहर के प्रति उसका आकर्षण बहुत रहता है.

जातक आध्यात्मिकता के प्रति जागरूक रहता है. अपने गुरूजनों और गणमान्य लोगों से उसे शुभ फल की प्राप्ति होती है. अपने बंधुओं को आदर व सम्मान देने की चाह रखता है. आत्मस्मान से जीवन जीने की चाह रखता है, अपने परिश्रम द्वारा लोगों के मध्य साख बनाने में कामयाब होता है. जातक अपने काम को करने में लगन और खूब साहस भी दिखाता है.

किसी भी काम में लगन और एकाग्रता लाने की चेष्टा इनमें बनी रहती है. अपने विरोधियों से भय नहीं रखता तथा उन्हें परास्त करने में सफल भी होता है. समाज की ओर से जातक को शुभता की प्राप्ति होती है और वह अपने नाम में यश की भी प्राप्ति करता है. भावनात्मक रूप से काफी विचारशील होता है कई बार फैसले लेने में देरी भी कर सकता है.

सूर्य वृश्चिक राशि में 20 से 30 अंशों तक | Sun In Scorpio Sign 20-30 Degree

सूर्य के कुण्डली में वृश्चिक राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य होने पर यह चंद्रमा के द्रेष्काण को पाता है. इस राशि में सूर्य फिर से मित्र ग्रह की राशि में जाता है जिससे वह चंद्रमा के द्रेष्काण में स्थिति होता है. अब यहां की स्थिति पहली दो स्थितियों से भिन्न बनती है क्योंकि यहां पर सूर्य मंगल की राशि में होता है और कर्क का स्थान पाता है इसलिए जातक के स्वभाव में अधिक तेजी का होना स्पष्ट रूप से प्रतिफलित होता है.

जातक अधिक क्रोध करने वाला और एक योद्धा के रूप में उभर कर सामने आता है. इसलिए उसके इस व्यवहार में अधिक तेजी का रूप होने से वह मेहनती और बाहुबल का अधिक उपयोग करने वाला बनता है. अपनी पराजय स्वीकार नहीं कर सकता है और अपनी योग्यता से वह सफल होने का मार्ग बनाने की पूरी कोशिश करता है.

जातक में अधिक तेजी बनी रहती है और वह अपने इस जल्दबाजी वाले व्यवहार में कुछ गलत निर्णय भी ले सकता है इसलिए उसे अपने कार्यों को उचित प्रकर से समझ लेना चाहिए जिससे कि वह कोई भी फैसला लेते समय उसके सभी पहलुओं पर विचार कर ले और उचित मार्ग का अनुसरण कर सके.

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ग्रहों का दिग्बल | Digbala of Planets | Digbal of Planets

दिग्बली ग्रह जातक को अपनी दिशा में ले जाकर कई प्रकार से लाभ देने में सहायक बनते हैं. यह जातक को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने में सहायक होते हैं तथा आभूषणों, भूमि-भवन एवं वाहन सुख देते हैं. व्यक्ति को वैभवता की प्राप्ति हो सकती है. जातक यशस्वी तथा सम्मानित व्यक्ति बनता है.

सूर्य | Sun

सूर्य के दिगबली होने पर व्यक्ति को आत्मिक रूप से मजबूत अंतर्मन की प्राप्ति होती है. वह अपने फैसलों के प्रति काफी सदृढ़ होता है. व्यक्ति में कार्यों को पूर्ण करने की जो स्वेच्छा उत्पन्न होती है वह बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. व्यक्ति अन्य लोगों के लिए भी मार्गदर्शक बनकर उभरता है. सभी के लिए एक बेहतर उदाहरण रूप में वह समाज के लिए सहायक सिद्ध होता है. जन समाज कल्याण की चाह उसमें रहती है. व्यक्ति अपने निर्देशों का कडा़ई से पालन कराने की इच्छा रखता है. वह अपने कामों में सुस्ती नहीं दिखाता है उसकी यह प्रतिभा उसे आगे रखते हुए सभी के समक्ष सम्मानित कराती है.

चंद्रमा | Moon

चंद्रमा के दिग्बली होने पर व्यक्ति का मन शांत भाव से सभी कामों को करने की ओर लगा रहता है. जातक के मन में अनेक भावनाएं हर पल जन्म लेती रहती हैं. वह अपने मन को नियंत्रित करना जानता है जिस कारण वह उचित रूप से दूसरों के समक्ष स्वयं को प्रदर्शित करने की कला का जानकार होता है. जातक धन वैभव से युक्त होता है. रत्नों एवं वस्त्राभूषणों का सुख प्राप्त होता है. सरकार की कृपा प्राप्त होती है तथा समानित स्थान मिलता है. व्यक्ति का आकर्षण एवं दूसरों के साथ आत्मिक रूप से जुड़ जाना बहुत प्रबल होता है, इसी कारण यह जल्द ही दूसरों के चहेते बन जाते हैं. बंधु-बांधवों के चहेते होते हैं उनसे स्नेह प्राप्त करते हैं. जातक मान मर्यादा का पालन करने वाला होता है.

मंगल | Mars

मंगल ग्रह के दिग्बली होने पर व्यक्ति का साहस और शौर्य बढ़ता है. व्यक्ति भय की भावना से मुक्त होता है और वह किसि भी कार्य को करने से भय नहीं खाता है. जातक अपने मार्ग को स्वयं सुनिश्चित करने वाला होता है वह अपने नियमों तथा वचनों का पक्का होता है. वह विद्वान लोगों का आदर करने वाला होता है तथा दूसरों के लिए मददगार सिद्ध होता है. उसके कामों में स्वेच्छा अधिक झलकती है. किसी अन्य के कथनों को मानने में उसे कष्ट होता है. वह अपने नेतृत्व क चाह रखने वाला होता है वह चाहता है की दूसरे भी उसकी इच्छा का आदर करें और उसके निर्देशों का पालन करने वाले हों. जातक में धर्मिकता का आचरण करने की इच्छा रहती है वह अनेक व्यक्तियों को आश्रय देने वाला होता है.

बुध | Mercury

बुध के दिग्बली होने पर जातक का स्वभाव काफी प्रभावशाली बनता है. उसमें स्वयं के लिए विशेष अनुभूति प्रकट होती है. वह अपने अनुसार जीवन जीने की चाह रखने वाला होता है तथा किसी के आदेशों को सुनने की चाह उसमें नहीं होती है. व्यक्ति में चातुर्य का गुण प्रबल होता है, अपनी वाणी के प्रभाव द्वारा लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. जातक में स्नेह और सौहार्दय भी होता है वह दूसरों को अपने साथ जोड़ने वाला होता है तथा प्रेम की चाह रखता है. जातक जीवन में सुख सुविधाओं की चाह रखने वाला होता है वह जीवन को सामर्थ्य पूर्ण जीना चाहता है. हास-परिहास में पारंगत होता है और प्रसन्नचित रहने वाला वाक-कुशलता से युक्त होता है.

बृहस्पति | Jupiter

बृहस्पति के दिग्बली होने पर जातक को सुखों की प्राप्ति होती है. देह से स्वस्थ रहता है तथा मन से मजबूत होता है. हितकारी होता है तथा विद्वेष की भावना से मुक्त रहते हुए काम करने वाला होता है. जातक दूसरों के सहयोग के लिए प्रयासरत रहता है और मददगार होता है. जातक को विद्वान लोगों की संगति मिलती है तथा गुरूजनों की सेवा करके प्रसन्न रहता है. अन्न वस्त्र इत्यादि का सुख भोगने वाला होता है आर्थिक रूप से संतुष्ट रहता है. शत्रुओं के भय से मुक्त रहता है तथा निर्भयता से काम करने वाला होता है. जातक के विचारों को सभी लोग बहुत सम्मान देते हैं तथा प्रजा की दृष्टि में उसे सम्मान की प्राप्ति होती है.

शुक्र | Venus

शुक्र के दिगबली होने पर जातक के जीवन में सौंदर्य का आकर्षण प्रबल होता है. साजो सामान के प्रति उसे बहुत लगाव रहता है तथा वह अपने रहन सहन को भी बहुत उन्नत किस्म का जीने की चाहत रखने वाला होता है. व्यक्ति को स्वयं को सजाने संवारने की इच्छा खूब होती है वह अपने बनाव श्रृंगार पर खूब समय व्यतीत कर सकता है. जातक दूसरों के आकर्षण का आधार भी होता है. लोग इनकी ओर स्वत: ही खिंचे चले आते हैं. जातक देश-विदेश में प्रतिष्ठित होता है और धनार्जन करता है. उदार मन का तथा दूसरों के लिए समर्पण का भाव भी रखता है.

शनि | Saturn

शनि के दिग्बली होने पर जातक ब्राह्मण व देवताओं का भक्त तथा सेवक होता है. वह दूसरों के लिए सेवाकार्य करने वाला होता है. सहायक बनता है. भोग-विलास की इच्छा करने वाला होता है. गीत संगीत तथा नृत्य इत्यादि में व्यक्ति की की रूचि होती है. चतुरता पूर्ण कार्यों को अंजाम देने की कला का जानकार होता है तथा व्यापार कार्यों में निपुण रहता है.

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काल बल ग्रह का फल | Result of Kaal Bal Planets

ग्रह के काल बली होने पर वह जातक को धन व मान सम्मान देने में सहायक बनता है. व्यक्ति की कार्यकुशला में निखार आता है जिससे वह अपने मार्ग में प्रगति को पाने में सफल होता है. काल बल जातक के शुभ समय के आगमन का बोध कराने वाला होता है. जातक को भाग्य का साथ मिलता है जिससे वह उच्च प्रगति करने में सहायक होता है. व्यक्ति का यश व मान बढ़ता है.

सूर्य | Sun

काल बली सूर्य की दशा में व्यक्ति को राज्य से सम्मान मिल सकता है. व्यक्ति को अपने काम में काफी सहायता मिलती है, वह आजीविका के कई स्रोतों को पाने में सफल रहता है. उसे पद प्रतिष्ठा की भी प्राप्ति होती है. कृषि द्वारा लाभ तथा स्वर्ण वस्तुओं की प्राप्ति होती है तथा इनसे लाभ भी मिलता है. जातक भू-संपदा बनाने में कुशल रहता है उसे पैतृक संपत्ति की भी प्राप्ति हो सकती है. जीवन में अपने मार्गों की शुभता को समझते हुए आगे बढ़ता जाता है तथा दूसरों के लिए भी हितकारी होता है. जीवन में जो बाधाएं बनी हुई होती हैं उन्हें अपने साहस व पराक्रम द्वारा परास्त करने की योग्यता पाता है. व्यक्ति के कार्यों में उसकी सात्विक भावना निहीत रहती है. वह ज्ञान प्राप्ति तथा धार्मिक कार्यों से युक्त होते हुए आगे बढ़ता जाता है.

चंद्रमा | Moon

काल बली चंद्रमा की दशा में जातक का मन अधिकांशत: अपने एकांत को पाने में लगा रह सकता है. वह पशुधन पाता है उसे वाहन सुख तथा परिवार के सुख की प्राप्ति होती है. वह अपने कार्यों द्वारा दूसरों के लिए हितकारी रहता है और शांत रूप से सभी के दुख-दर्द को समझने की कोशिश करता है. व्यक्ति जल मार्ग द्वारा यात्राओं पर जा सकता है अन्यथा वह जल से लाभ भी पाने में सफल होता है.

व्यक्ति की उन्नती में स्त्रियों का साथ उल्लेखनीय होता है. व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं जिनके लिए वह सदैव तत्पर रहता है उनकी सहायतार्थ उसका हृदय सदैव त्याग की भावना से युक्त रहता है. जातक को आभूषणों तथा आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है. वह अपने कार्यों द्वारा परोपकारी कार्यों में लगा रहता है. उसे रात्रि काल का समय प्रिय हो सकता है और वह इस समय के दौरान अधिक कार्यशील रह सकता है.

मंगल | Mars

मंगल के काल बली होने पर इस दशा में जातक का व्यवहार काफी आक्रामक रहता है. उसके विचारों में जोश का भाव निहित होता है. वह अपने कार्यों द्वारा समाज को बदलने की कोशिश करता है. उसमें जो तेजी होती है वह उसके कामों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. इस दशा के दौरान जातक को भूमि संपदा की प्राप्ति होती है, कृषि कर्म द्वारा जातक उच्च स्तर का धनी मानी व्यक्ति बनता है. व्यक्ति को अधिकारों की प्राप्ति होती है उसे एकाधिपत्य मिलता है वह अपने कार्यों को करने में स्वतंत्रता का अनुभव करता है उसके नेतृत्व में कार्य की रणनीति बनाई जाती है. जातक का बाहुबल बढ़ता है उसमें साहस और निड़रता आती है वह किसी भी कार्य को मुक्त रूप से करने वाला होता है.

बुध | Mercury

बुध के काल बली होने पर जातक का स्वास्थ्य उत्तम स्तर का होता है. वह सभी के समक्ष सम्मानित स्थान पाता है. उसके समक्ष कोई ठहर नहीं सकता है. उसकी योग्यता आर्थिक स्थिति को उन्नत बनाने में काफी सहायक बनती है. जातक की अतिरिक्त कलात्मक अभिव्यक्तियां बहुत प्रबल रूप से सामने आती हैं. जातक लेखन के कार्य व सामाजिक गतिविधियों तथा कलात्मक स्तर की कार्यशैली में अच्छे रूप से सहायक हो सकती है. व्यक्ति का कथन वाचन बहुत प्रभावी होता है वह एक सलाहकार या मध्यस्थ के रूप में दूसरों के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है सभी इसके विचारों को बेहतर रूप से समझ पाते हैं. व्यक्ति का आचरण अन्य के लिए मेल-जोल की स्थिति देने वाला होता है इस अवधि में उसे सरकारी पक्ष से नौकरी के अवसर भी मिल सकते हैं. संतान की ओर से सहायता भी प्राप्त होती है.

बृहस्पति | Jupitor

जातक को बृहस्पति के काल बली होने पर बहुत सा सम्मान और आदर मिलता है. व्यक्ति अपने गुणों और अपने शुभ कर्मों द्वारा लोगों के मध्य आदरणीय स्थान पाता है. राजानुग्रह द्वारा व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में उत्थान आता है. जातक को योग्य संतान की प्राप्ति होती है तथा सुख समृद्धि में वृद्धि मिलती है. समाज के उच्च वर्ग के लोगों के साथ व्यक्ति का मेल जोल बढ़ता है वह किसी न किसी रूप में लोगों के लिए मदगार होता है. जातक के पास ज्ञान का विस्तार होता है तथा उसे विज्ञ लोगों का साथ मिलता है. परिवार के लोगों के प्रति उसकी समझ परिपक्कव होती है और पिता का पूर्ण स्नेह प्राप्त होता है. गुरू जनों से मान व यश का आशिर्वाद मिलता है. महा सम्मेलनों की अध्यक्षता करने की योग्यता पाता है तथा उच्च पद प्राप्ति होती है.

शुक्र | Venus

शुक्र के काल बली होने पर जातक के जीवन में अनेक प्रकार के भौतिक सुखों का आगमन होता है. वह आन-बान के साथ जीवन व्यतीत करता है. उसे प्रेम की प्राप्ति होती है तथा वह सौमद्र्य के प्रति आकर्षित होता है. धन, वस्त्र, आभूषण इत्यादि की प्राप्ति होती है. समाज के अभिजात्य वर्ग में व्यक्ति को स्थान मिलता है वह कलात्मक वस्तुओं की प्राप्ति करता है तथा उसे इस अवधि के दौरान संगीत, नृत्य इत्यादि के प्रति रूचि जागृत होती है. जातक दीर्घायु सुंदर, ऐश्वर्यवान, मधुर भाषी बनता है, भोगी, विलास की चाह बलवती होती है, जातक विद्वान, यशस्वी, साहसी होता है. वह भाग्यवान एवं पर्यटनशील होता है उसे कई स्थानों पर भ्रमण करने की चाह रहती है. वह सद्गुणी, न्यायप्रिय कामों की ओर लगा रह्ने का प्रयास करता है, आस्तिक होते हुए दान-पुण्य करने में सक्षम होता है. प्रतिभाशाली वक्ता और उच्च वर्ग का व्यवसायी भी हो सकता है.

शनि | Saturn

शनि के काल बली होने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है जातक में हठ और क्रोध की अधिकता हो सकती है. यह व्यक्ति को अनुकूलता की ओर ले जाने में सहायक बन सकता है. व्यक्ति सत्य भाषण करने वाला, विश्वासपात्र होता है. अपने स्वार्थ के लिए किसी को धोखा नही देता है. जातक काफी चतुर और शक्तिशाली होता है. का बली स्थिति व्यक्ति को दुःसाहसी बनाने वाली होती है. जातक राजनीति एवं कुटनीतिक क्षेत्र में विशेष सफलता पाता है. समाज के लिए दया और सद्भावना बनी रहती है. जातक का साहित्य, संगीत के प्रति विशेष लगाव रहता है. जातक जिद्दी और अपने कार्य को पूर्ण कर लेने वाला हो सकता है. कभी कभी दूसरों से ईर्ष्या करने वाला व स्वार्थ की भावना से ग्रस्त भी रह सकता है. पारिवारिक जीवन में उथल-पुथल, मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है.

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कैसा होगा चंद्रमा का मकर-कुंभ और मीन राशि को देखने का फल

मकरस्थ चंद्रफल | Moon Aspecting Capricorn Sign

मकरस्थ चंद्रमा के होने पर जातक में भावनाओं का ज्वार रहता है जिसमें वह निरंतर मंथन करता रहता है. वह किसी जोखिम से दूर ही रहना चाहता है. अपने यथार्थवादी लक्ष्यों और स्पष्ट सीमाओं को समेटे हुए कार्य करताहै. वह ज्यादा सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और हर स्थिति के लिए आगे की योजना बनाकर चलने वाला होता है. किसी गलत कार्यों को करने की चाह उसमें नहीं होती है. यहां व्यक्ति अपना ही सबसे बड़ा आलोचक बनता है.

यह स्थिति उसके लिए काफी मुश्किल भी हो सकती है. वह अक्सर एक कटु व्यवहार वाला व्यक्ति हो सकता है परंतु यह इसलिए कि वह खुद की संवेदनशीलता को छिपाने की कोशिश करता है. वह अपनी गलतियों और कमजोरियों का दर्द जानता हैं, और उन्हें दूर करने के प्रयास भी करता है जिससे सही कार्य पूर्ण किया जा सके.

व्यक्ति को गीत संगीत को समझने की चाह बनी रहती है. सत्य व धर्मपालक के रूप में भी कार्य कर सकता है. क्रोध अधिक नहीं करता है. परंतु वासनाओं से ग्रस्त भी रह सकता है. इनमें उत्साह की कमी देखी जा सकती है. विचारों और प्रक्रत्ति से शांत स्वभाव वाला हो सकता है. लेकिन वास्तविकता में वह सिर्फ अपनी भावनाओं को सार्वजनिक रूप से दर्शाने में संकोच करता है.

दूसरों की आँखों में सम्मानजनक होना चाहते हैं. रोगी और बहुत थोड़ा सहन करने में सक्षम, कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होते हैं. महत्वाकांक्षी और इच्छाशक्ति की मजबूत स्थिति इनमें होती है. भावनाओं के साथ सौदा नहीं करते है क्योंकि ऎसा होने पर खुद के भीतर बीमारी या अवसाद का कारण बन सकता है. मकर राशि में चंद्रमा के सम्मानजनक और दृढ़ होने की बात कही गई है.ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हैं और बेकार कार्यों में समय खराब करना पसंद नहीं है. वह दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं.

कुंभस्थ चंद्रफल | Moon Aspecting Aquarius

कुंभस्थ चंद्रमा के होने पर व्यक्ति बहुत चौकस रहता है. वह दृढ़ चरित्र का कुछ अहंकारी हो सकता है. वह दूसरों से हटकर अपने में रहने वाला रह सकता है मुख्यधार से खुद को अलग करता है. आदर्शवादी और प्रगतिशील हो सकता है. उसके मन में ईर्ष्या, भय और अधिकार की भावनाएं नहीं रहती है. वह किसी भी तरह से इस तरह की क्षुद्र भावनाओं से ऊपर हैं.

इससे प्रभावित होने पर जातक बहुत जिद्दी हो सकता है.स्वतंत्र रहकर कार्य करने की चाह रखता है. अपने परिवार में बहुत सम्मान पाते हैं और अक्सर उनकी उपलब्धियों की बड़ाई होती है. विचारों में रूढ़िवादीता भी देखने को मिल सकती है.

कुंभ राशि में चंद्रमा के होने पर जातक में क्रोध हो सकता है. दूसरों की मंशा और व्यवहार को समझने में योग्य होता है. अक्सर अपने खुद के साथ संपर्क खो देते हैं. कभी-कभी वास्तविकता से भी दूर हो सकता है. आलस्य भी इनमें खूब होता है. आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति को पाते हैं. व्यक्ति में उदारता भी देखी जा सकती है.व्यक्ति तीव्र और सहज होता है. बौद्धिक क्षमता अच्छी रहती है.मन से चंचल स्वभाव का बच्चों के समान होता है. हास्य और मनोविनोद की प्रवृत्ति इनमें रहती है.

मीनगत चंद्रफल | Moon Aspecting Pisces Sign

वफादार और भरोसेमंद हैं और दोस्त बनाते हैं. आलोचना परेशान नहीं होते. मीनस्थ चंद्रमा के होने पर जातक में मजबूत मानसिक क्षमताओं की संभावनाएं होती है. व्यवहार से दयालु और प्यार से भरे हुए होते हैं. मनुष्य धीर गंभीर भी होता है. वाकपटुता अच्छी होती है.

यह अक्सर अपने सपनों में खोए से रहते हैं. वास्तविकता के साथ अभिभूत हो सकता है. दूसरों के बारे में परवाह करने वाले होते हैं. बहुत प्रतिभाशाली कलाकारों में स्थान पाते हैं. चीजों को समझने की एक अलौकिक क्षमता होती है. जातक एक प्रतिभाशाली लेखक, संगीतकार या कलाकार हो सकता है.साहचर्य की जरूरत है, बहुत संवेदनशील होते हैं, आसानी से अपमान, अस्वीकृति और आलोचना से आहत हो सकते हैं.

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 1”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 2”

“चंद्रराशि दृष्टि योगफल – भाग 3”

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तुला, वृश्चिक और धनु में गुरु के गोचर का फल

तुलागत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Libra

तुला में स्थित गुरू के प्रभाव में जातक मेधावी बनता है. वह जो भी कार्य करता है उसमें उसकी योग्यता का बेहतरीन रूप देखने को मिलता है. वह अपने काम में एक सौंदर्य का रूप दर्शाने में सफल होता है. किसी भी काम में जो उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति होती है वह बहुत प्रभावशाली होती है. अपनी कथनी से वह दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. इसके अतिरिक्त समाज में सभी सम्मनित होता है. लोगों के लिए सहायक का काम करने वाला बनता है. संतान का सुख भोगने वाला होता है और संतान की ओर से सहायता पाता है.

जातक शिक्षा में बहुत उज्जवल स्थान पाता है. उसे अपनी प्रतिभा का उपयोग करना पता होता है. अपनी शिक्षा में उच्च स्थान पाता है तथा गुरूजनों से सम्मानित होता है. विदेश यात्राओं में जाने वाला बनता है तथा विदेशों में कमाई के साधन जुटाने में सफल होता है. अच्छे सुख वैभव में जीने की चाह भी रखता है. व्यवहार में विनीत पूर्ण होता है तथा कोमल और सरल हृदय का होता है. शास्त्रों का जानकार तथा उनके प्रति जिज्ञासा से परिपूर्ण रहता है. अपनी इन्हीं खूबियों द्वारा जातक के मित्रों की संख्या भी खूब होती है.

कला से जुडे़ हुए कामों द्वारा अच्छा लाभ कमा सकता है. नाट्य इत्यादि खूबियों को करने वाला होता है सुंदर और आकर्षक होता है. शास्त्रानुगामी होता है, व्यापारियों में इनकी पैठ अच्छी होती है. संघ का मुख्य बन सकता है देवताओं और अतिथियों का सत्कार करने वाला होता है, बुद्धिमान परंतु भावुकता में बहने वाला होता है. किसी भी प्रकार से अपने कामों की पूर्ति से यह शुभ कर्म करने की चाह रखता है तथा जीवन में सकारात्मकता को पाना चाहता है.

वृश्चिकगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Scorpio

वृश्चिकगत गुरू के होने पर व्यक्ति काफी उज्जवल स्वरूप वाला होता है. उसमें लड़ने की क्षमता अच्छी होती है किसी भी स्थिति से दूर नहीं भागते हैं और उसका डटकर सामना करते हैं. जातक का व्यवहार कुछ कठोर हो सकता है परंतु वह अपने नियमों को मानने के कारण ऎसा होता है. परंतु दूसरों का सहयोगी और सहायक बनता है.

जातक में क्रोध हो सकता है तथा वह अपने में स्वतंत्र और सापेक्ष हो सकता है. शास्त्रों की जानकारी रखने वाला तथा उनमें कुशल भी होता है. किसी भी प्रकार से वह अपने प्रभाव को दिखाने में सहायक भी बनता है. ग्रथों का भाष्यकार और उन्हें समझने वाला होता है. देवालय जैसे उत्तम स्थलों में निवास करने वाला बनता है.

जातक अपने काम में कठिन और क्रूर अधिक हो सकता है. दिखावे के लिए धर्म कर्म में काम करने वाला होता है. कई बार किसी के प्रति अवहेलना का भाव भी रख सकता है. बुरे कर्म करने की ओर भी प्रवृत्त हो सकता है. जातक में अधिक उदारवादिता कम ही देखने को मिलती है.

धनुगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Sagittarius

धनुगत बृहस्पति हो तो व्यक्ति पराक्रम में निपुण परिश्रम से युक्त कामों को करने में आगे रहने वाला होता है. आचार्य तुल्य होता है तथा दीक्षा व यज्ञादि करने वाला होता है. व्यक्ति के जानकार बहुत होते हैं और मित्रों की भी संख्या अच्छी खासी होती है. संस्कारों और रूढीवादी विचारों को मानने वाला होता है. किसी भी प्रकार से आपके लिए कोई भी

राशि के प्रभावस्वरूप जातक लक्ष्मीवान होता है, आर्थिक रूप से सदृढ़ बनता है और अपने नियमों और योजनाओं पर खरा उतरने की कोशिश भी करता है. देशों में भ्रमण करने की चह भी इन जातकों में खूब रहती है. अपने परिश्रम द्वारा यह उच्च कोटी की सफलता पाने में भी सफल होते हैं.

जातक को एकांत में निवास करन भी अच्छा लगता है. प्रकृत्ति के मध्य जाकर इन्हें जीवन के प्रति प्रेम बढ़ता है. यह प्रेम की चाह रखते हैं और किसी का अहित करने की चाह भी नहीं रखते हैं गणमान्य लोगों द्वारा इन्हें सहायता भी प्राप्त हो सकती है. अपनी योग्यता में सक्षम यह भागदोड़ करने में भी आगे रहते हैं.

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 1”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 2”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 4”

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शनि देव अपनी राशि में होने पर देते हैं शुभफल

मकरगत शनि का योगफल | Saturn Aspecting Capricorn

मकरगत शनि के होने पर जातक दूसरों की वस्तुओं पर अधिकार जमाने वाला होता है. वह अच्छे व बुरे दोनों कामों का अनुसरण करने में तत्पर रहता है. वैदिक आचार और गुणों से संपन्न होता है. इनके प्रति उसकी रूचि बनी रहती है. शिल्प कला का हुनर होता है तथा बहुत गुणी कारीगर होता है, किस भी काम को करने में पूर्ण तल्लिनता का भाव दिखाता है. अपने अपने वंश में श्रेष्ठ तथा सम्मानित व्यक्ति होता है. जातक को दूसरे की स्त्री के प्रति अधिक सहानभूति रहती है.

व्यक्ति के मन में कई सारी इच्छाएं व्याप्त रहती हैं जिनकी पूर्ति के लिए वह कोशिशों को कम नहीं होने देना चाहता है. जातक को सजने संवरने का खूब शौक होता है. वह कार्य संपन्न करने की कला का जानकार होता है और सभी विचारों के द्वारा ही वह अपने कार्य को आगे तक ले जाने की पहल करता है. प्रवास में अधिकांश समय व्यतीत करने वाला होता है तथा घर से दूर रहकर ही इसके जीवन में प्रगती देखी जा सकती है. शौर्य व साहस के साथ किसी भी काम को उसके अंजाम तक पहुंचाने की योगयता रखता है जिस कारण से दूसरों के सम्मुख हार नहीं पाता है.

जातक के मन में संसार से विरक्ति का भाव जागृत होता है और वह अध्यात्म की ओर अग्रसर रह सकता है. जातक की माता का स्वास्थ्य प्रभावित रह सकता है. जातक का लालन-पालन किसी अन्य द्वारा हो सकता है. जातक को स्नायु तंत्र की परेशानियों से जूझना पड़ सकता है. शरीर रोगी तथा चेहरा निस्तेज रह सकता है. जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु प्रवृत्ति का हो सकता है.आर्थिक संपन्नता नहीं मिल पाती, नौकरी में पदोन्नति देरी से होती है, विवाह देर से होता है व दांपत्य जीवन सुखी नहीं रह पाता. जीवन में अनेक परेशानियां रह सकती हैं लेकिन फिर भी जातक इन सब से बाहर आने की कोशिश में लगा रहता है और उसके द्वारा किए गए प्रयास सफल भी होते हैं.

कुम्भगत शनि का योगफल | Saturn Aspecting Aquarius

कुम्भगत शनि के होने पर जातक वचन से झूठा हो सकता है. किसी प्रकार के व्यसनों का शिकार हो सकता है. उसके आचरण में धूर्तता का भाव दिखाई देता है. जातक को अच्छे मित्रों की संगती नहीं मिल पाती वह दुर्जनों का साथी बनकर अपनी प्रतिभा को खराब मार्ग पर ले जाता है. जातक की इच्छा शक्ति प्रबल होती है जिसके आधार पर वह अपने प्रयासों में सफलता हासिल कर लेने में सफल रहता है. अपनी स्थिति और अपनी अभिव्यक्ति के तर्ज पर जातक के व्यवहार में काफी सारे बदलाव होते रहते हैं उसे बदलाव की चाह भी रहती है. जातक खर्च अधिक करता है इस कारण जातक को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है वह कर्ज ले सकता है. जीवन में सुख की कमी बनी रहते है मन किसी न किसी बात से व्यथित रह सकता है.

व्यक्ति बचपन में आर्थिक कठिनाईयों से त्रस्त रह सकता है. उसे पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है लेकिन वह मिलने में बाधा आ सकती है. जातक की वाणी में कटुता रह सकती है. धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है. जीवन के उत्तरार्द्ध में आर्थिक स्थिति ठीक रह सकती है. दांत, गला एवं कान में बीमारी की संभावना अधिक बनी रहती है. शिक्षा में कोई व्यवधान उतपन्न हो सकता है. वह नौकरी से धन कमाता है, उसे भाई-बहनों के साथ संबंधों में कटुता का अनुभव भी करना पड़ सकता है. नौकरों का साथ मिल सकता है. लेकिन सेवक कुछ न कुछ विश्वासघात कर सकते हैं. यात्रा में विघ्न आते हैं, श्वांस के रोग होने की संभावना रहती है. जातक अपने जन्म स्थान को छोड़कर कहीं दूर जाकर कार्य करना पड़ सकता है. मध्यम आयु में आय कुछ ठीक रहती है, स्वयं से दुखी दरिद्र रहता है किंतु दीर्घ आयु पाता है. वैवाहिक सुख में कमी रहती है.

मीनगत शनि का योगफल | Saturn Aspecting Pisces

मीनगत शनि के होने पर जातक उच्च स्तर का शिल्पकार बन सकता है उसमें कला को समझने की योग्यता होती है. जातक का मन उच्च विचारों एवं सात्विकता से युक्त होता है. व्यक्ति की क्रूरता में कमी आती है और व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. व्यक्ति के लिए बहुत ही उत्तम और शुभफलदायी हो सकती है . इसके प्रभाव से व्यक्ति यश, मान-सम्मान, धन सम्पत्ति प्राप्त करता है. किंतु पिता पक्ष से मिलने वाले सुख में कमी आ सकती है. संतान की ओर से भी चिंता जनक स्थिति रह सकती है. शिक्षा, सुख, कारोबार के सम्बन्ध में कुछ न कुछ परेशानियों का होना स्वभाविक ही होता है.

जातक नीतिसंगत बातों का साथ देने वाला होता है. वह गुणों का पारखी बनता है. सही गलत के निर्णयों को समझने की बुद्धि उसमें होती है. रत्नों व आभूषणों की परख करने वाला होता है. धर्मानुसार व्यवहार करने वाला होता है. जातक का आचरण विनयशील होता है वह दूसरों के समक्ष अपनी प्रतिभा को दर्शाने में सफल रहता है. जातक को वृद्धावस्था में विशेष सम्मान की प्राप्ति होती है.

“शनिगत स्थिति का योगफल – भाग 1”

“शनिगत स्थिति का योगफल – भाग 2”

“शनिगत स्थिति का योगफल – भाग 3”

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