मार्च 2025 में इस समय करें वाहन की खरीदारी तो होगा फायदा | March 2025 Auspicious Dates and Timings to Buy Vehicle

नए और अच्छे वाहन की चाहत तो सभी के मन में रहती है, पर इसके साथ ही जो वस्तु हम ले रहे हैं वो सही रहे कोई दिक्कत न आई और हमारे लिए शुभदायक हो यह सभी बातें मन में चलती ही रहती हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही हमारे आचार्यों ने कुछ मुहूर्तों व शुभ समय का निर्धारण किया है. ऎसे में अगर हम कोई वस्तु विशेष का चयन करते हैं और साथ ही इन मुहूर्त को भी ध्यान में रखते हुए काम करते हैं तो उक्त कार्यों में हमें सफलता की संभावना दिखती है.

इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम आपको मार्च माह में वाहन खरीदने के शुभ मुहूर्त का समय यहां दे रहे हैं. यदि आप इस समय पर कोई नया वाहन खरिदते हैं तो यह आपके लिए लाभदायक होगा. पर इन सभी के साथ कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखा जाए तो शुभ फलों में वृद्धि की प्राप्ति ही होती है. जैसे की जिस दिन आप वाहन ले रहे हैं उस दिन राहुकाल के समय को त्यागना चाहिए, चौघडि़या की शुभ, लाभ, अमृत, चर घडी़ का चयन करना चाहिए. वाहन से पूर्ण लाभ पाने के लिए वाहन खरीदने वाले व्यक्ति का चंद्रमा भी 4,8,12 भाव में उस दिन नहीं होना चाहिए.

एक शुभ समय और दशा में खरीदा गया वाहन आपको कष्ट से बचाने वाला और आपके लिए लाभदायक बन सकता है.

मार्च 2025 में में वाहन खरीदने का शुभ मुहूर्त

दिनांक दिन नक्षत्र हिन्दु माह शुभ समय
06 मार्च गुरुवार रोहिणी फाल्गुन शुक्ल सप्तमी मेष, वृष लग्न, अभिजित
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कुंडली में कर्क राशि का गुरु बदल सकता है आपका जीवन

गुरू का गोचर मुख्यत स्वराशि, उच्च और नीच राशि स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला होता है. जब गुरू कर्क राशि में गोचर करता है तो वह अपनी उच्च स्थिति एवं अनुकूल स्थिति को दर्शाने वाला होता है. इस स्थिति में गुरू के गोचर का प्रभाव जातक के जीवन में कई रूप से प्रभावित करने वाला होता है.

गुरू के उच्च्स्थ रूप में विभिन्न लग्नों पर इसका प्रभाव विशेष रूप से पड़ने वाला होता है. गुरू कुण्डली में किसी भी स्थान पर स्थित हों वह अपनी सप्तम, पंचम और नवम दृष्टि से अन्य भावों को अवश्य देखते हैं. इस स्थिति में गुरू का प्रभाव जातक के जीवन के अनेक क्षेत्रों पर स्पष्ट रूप से पड़ता दिखाई दे सकता है.

मेष लग्न प्रभाव – Aries Ascendant

कर्क राशि पर गुरू का गोचर मेष लग्न वालों के छठे भाव पर होने से गुरू वहां से दसवें, बारहवें और दूसरे भाव पर दृष्टि देते हैं. इस स्थिति में गुरू महाराज इन भावों पर दृष्टि देते हुए जातके कर्म क्षेत्र, व्यय भाव और कुटुम्ब भाव को शुभता देने वाले गुरू रहेंगे. जातक को उच्च पद प्राप्ति, योग्य स्थान की प्राप्ति होगी. भ्रमण के मौके मिल सकते हैं साथ ही परिवार के लोगों का सहयोग और प्रेम भी प्राप्त होगा यदि कोई परेशानी उत्पन्न होती है तो काफी हद तक उसे सुलझाने की भी योग्यता प्राप्त होगी.

वृषभ लग्न प्रभाव – Taurus Ascendant

वृषभ लग्न के लिए गुरू तीसरे भाव में गोचर करेंगे और वहां से सप्तम भाव, नवम भाव और एकादश भाव पर दृष्टि डालेंगे. यहां गुरू जातक के दांपत्य जीवन और वैवाहिक संबंधों के आरंभ की स्थिति को दर्शाते हैं, नवम पर दृष्टि डालते हुए भाग्य को मजबूती देने वाले बनते हैं और प्रयास द्वारा भग्य को बेहतर स्थिति देने की कोशिशों में लगते दिखाई देते हैं वहीं एकादश भाव में दृष्टि होने से आर्थिक स्थिति को स्थाई बनाने में सहायता करते हैं.

मिथुन लग्न प्रभाव – Gemini Ascendant

मिथुन लग्न वालों के लिए गुरू दूसरे भाव पर गोचर करेंगे यहां पर गुरू जातक के परिवार के सुख को बनाए रखने में मददगार होंगे. इस स्थान पर बैठकर गुरू छठे भाव, आठवें भाव और दशम भाव पर दृष्टि डालेंगे. इसके प्रभाव से जातक अपने शत्रुओं को दबाने में सक्षम होगा उसके जीवन में चले आ रहें विवाद कुछ सुधार की तरफ अग्रसर हो सकते हैं कानूनी कार्यवाही इत्यादि में कुछ राहत मिलने की संभावना बनती है. वहीं जीवन में अचानक से घटने वाली स्थितियों एवं लम्बी व्याधी से कुछ राहत मिलने की उम्मीद की जा सकती है. कार्यक्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखाने के कुछ बेहतर मौके मिल सकते हैं.

कर्क लग्न प्रभाव – Cancer Ascendant

कर्क लग्न वालों के लग्न भाव पर गुरू का गोचर होगा. यहां स्थित गुरू लग्न से पंचम भाव, सप्तम भाव और नवम भाव को देखेंगे. जातक को शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे परिणाम मिल सकते हैं साथ ही संतान पक्ष की ओर से भी कुछ संतोषजनक फल मिलेंगे. वैवाहिक प्रस्तावों की प्राप्ति होगी और नए संबंधों की शुरूआत हो सकती है. भाग्य का साथ मिलेगा, धार्मिक क्षेत्र मंत्र साधना इत्यादि कामों में आपका रूझान उत्पन्न हो सकता है.

सिंह लग्न प्रभाव – Leo ascendant

सिंह लग्न के जातकों के लिए गुरू का गोचर बारहवें भाव पर होगा. यहां पर स्थित गुरू चतुर्थ भाव, छठे भाव और अष्टम भाव पर दृष्टि देंगे. जीवन में इस गोचर के कारण मकान, वाहन, वस्त्र इत्यादि पर आपका खर्च बढ़ सकता है. प्रतिद्वंदिता और आगे बढ़ने की ललक बनी रहेगी. कुछ गुप्त योजनाओं पर भी आपका धन व्यय हो सकता है साथ ही पैतृक संपत्ति इत्यादि के मुद्दे भी उभर सकते हैं.

कन्या लग्न – Virgo ascendant

कन्या लग्न वालों के एकादश भाव पर गुरू का गोचर होगा. यहां से गुरू तृतीय भाव, पंचम भाव और सातवें भाव पर दृष्टिपात करेंगे. यहां आपका खर्च और लाभ अपने प्रयासों, शिक्षा, भाई बहनों, यात्राओं, संतान और दांपत्य जीवन व सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाने से संबंधित होगा. गुरू के प्रभाव में आपके यह क्षेत्र प्रभावित होंगे और जीवन के अनेक रास्तों में आपके मार्ग दर्शक बनेंगे.

तुला लग्न प्रभाव – Libra Ascendant

तुला लग्न पर गुरू का गोचर दशम भाव पर होगा यहां स्थित गुरू दूसरे भाव, चौथे भाव और छठे भाव पर दृष्टि देंगे. अत: कर्म की प्रधानता के साथ ही घर के सुख की ओर आपका मन रहेगा और कार्यक्षेत्र की अधिकता से आपके समक्ष स्पर्धा की स्थिति उभरेगी.

वृश्चिक लग्न प्रभाव – Scorpio Ascendant

वृश्चिक लग्न पर गुरू का गोचर इनके नवें भाव पर होने से भाग्य का उदय होगा. पिता और वरिष्ठ लोगों की ओर से सहायता प्राप्त होगी. यहां स्थित गुरू लग्न, तृतीय भाव और पंचम भाव पर दृष्टि देंगे. जातक के जीवन में शुभ समाचारों का आगमन होगा. कुछ मामलों में आप आलस्य की स्थिति को दिखाने वाले रह सकते हैं अगर आप ऎसा करते हैं तो आपके प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाएंगे.

धनु लग्न प्रभाव – Sagittarius Ascendant

धनु लग्न वालों पर गुरू का गोचर कुण्डली के आठवें स्थान पर होगा यहां आपके लिए काफी संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. आपके प्रयास भी पूर्ण सिद्ध न हो सकें साथ आपके खर्चों में भी वृद्धि रह सकती है. आपके कुटुम्ब भाव पर दृष्टि करते हुए कहीं से अचानक धन की प्राप्ति या धन का व्यय होना दोनों ही स्थितियां देखने को मिलती हैं.

मकर लग्न प्रभाव – Capricorn Ascendant

मकर लग्न के सातवें भाव, तृतीय भाव और लग्न पर गुरू की दृष्टि पड़ रही है. मकर लग्न वालों के जीवन में नए प्रेम संबंधों का सूत्रपात हो सकता है. आपका मन अन्य लोगों की भागीदारी को पसंद करने वाला होगा. इस संदर्भ में आपके द्वारा किए गए प्रयास काफी सफल रह सकते हैं. इस समय आपकी सामाजिक गतिविधियां भी तेज रहेंगी.

कुम्भ लग्न प्रभाव – Aquarius Ascendant

कुम्भ लग्न वालों के छठे भाव, दशम भाव और द्वादश भाव पर गुरू का गोचर होगा. आपकी कार्यक्षेत्र में अच्छी स्थिति बनेगी. उच्च पद प्राप्ति कि स्थिति बनती दिखाई देती है. यहां द्वादश से संबंधित फलों से भी प्रभावित दिखाई देगा.

मीन लग्न प्रभाव | Pisces Ascendant

मीन लग्न वालों पर गुरू का गोचर उनके पंचम भाव पर होगा. यहां से गुरू नवम भाव, एकादश भाव और लग्न भाव पर दृष्टि डालेंगे. संतान पर खर्च बढ़ सकता है और भाग्य द्वारा कुछ अच्छे फल मिल सकते हैं. इस समय जातक की गतिविधियों में नई चिजों से जुड़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है धार्मिक पहलू मजबूत होकर उभरेगा.

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सूर्य का गुरु के द्रेष्काण में ऎसा होगा फल

ज्योतिष में द्रेष्काण की महत्ता के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है. द्रेष्काण में किस ग्रह का क्या प्रभाव पड़ता है, इस बात को समझने के लिए ग्रहों की प्रवृति को समझने की आवश्यकता होती है. जिनके अनुरूप फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है तथा जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में होने वाली बदलावों और घटनाओं को समझ पाना आसान होता है. ग्रहों की शुभता व क्रूरता का प्रभाव अवश्य पड़ता है जिसके प्रभाव स्वरूप व्यक्ति पर इनका असर होते देखा जा सकता है.

सूर्य का बृहस्पति के द्रेष्काण में जाने का नियम

सूर्य का बृहस्पति के द्रेष्काण में होना मित्रता की स्थिति को दर्शाने वाला होता है, इनके शुभ फलों से जातक में ज्ञान की अच्छी अभिव्यक्ति होती है. जातक अपने को संपूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने का सामर्थ भी दिखाता है. कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है. यह स्थिति ग्रह के अनुकूल फल देने में सहायक बन सकती है. व्यक्ति के धार्मिक व सामाजिक स्तर का पता चलता है. जातक के जीवन में इस स्थिति का प्रभावशाली रूप उभर कर सामने आता है. इस स्थिति के कारण ग्रहों को बल मिलता है तथा ग्रह की शुभता को बढ़ाने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में सहायक होती है.

सूर्य का बृहस्पति के द्रेष्काण में जाने का नियम इस प्रकार से समझा जा सकता है:-

पहला – सूर्य जब धनु राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो बृहस्पति के ही द्रेष्काण धनु राशि में रहेगा.

दूसरा – सूर्य जब सिंह राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो बृहस्पति के द्रेष्काण धनु राशि में जाएगा.

तीसरा – सूर्य जब मेष राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो बृहस्पति के द्रेष्काण धनु राशि में जाएगा.

चौथा – सूर्य जब मीन राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो बृहस्पति के द्रेष्काण मीन राशि में ही जाएगा.

पांचवां – सूर्य जब वृश्चिक राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य स्थित होगा तो बृहस्पति के द्रेष्काण मीन राशि में जाएगा.

छठा – सूर्य जब कर्क राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य स्थित होगा तो बृहस्पति के द्रेष्काण मीन राशि में जाएगा.

सूर्य का बृहस्पति के द्रेष्काण में होने का प्रभाव

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार किसी भी ग्रह का अपने मित्र भाव के द्रेष्काण में जाना सामान्यत: अनुकूल फल देने वाला माना जाता है. जातक के ज्ञान को शुद्ध व सात्विक भाव मिलता है, वह विद्वानों की संगती पाता है. कहीं न कहीं यह संबंध जातक के गुणों में सात्विकता देने में भी सहायक होता है. यदि सूर्य बृहस्पति के द्रेष्काण में हो तो जातक गुरूजनों का सम्मान करने वाला, पिता व अपने से बडे़ लोगों के प्रति आदर भावना रखने वाला होता है. जातक विनयशील, अतिथि का सत्कार करने वाला, गुणवान, मेधावी व वाकपटु होता है.

सूर्य धनु राशि में 0 से 10 अंशों तक

राजा का प्रिय होता और सरकार से लाभ पाता है. शस्त्र ज्ञान का जानकार, बंधुओं का हितकारी होता है. सत्व बल से युक्त होता है. स्वतंत्रता की चाह रखने वाल होता है, रोमांच के साथ जीवन जीने की चाह रखता है.  परिवर्तन की लालसा रखने वाला दार्शनिक और अन्वेषक होता है. उत्साहजनक, सकारात्मक प्रकृति का और दोस्त बनाने में भी आगे रहता हैं. जीवन में साहसिक जीवन शैली और रोमांचक जीवन के अनुभवों की कोई कमी नहीं होती है.

सूर्य सिंह राशि में 10 से 20 अंशों तक

सूर्य के इससे प्रभावित होने पर जातक युद्ध में कुशल और विजय पाता है. स्वभाव से कुछ क्रूर हो सकता है, वेदसम्मत मार्ग से दूर रहने वाला हो सकता, बुद्धिमान, मिलनसार और विनम्र होता है. कल्पनाशील होते हैं, अपने अंतर्ज्ञान का उपयोग करने में माहिर होता है.

सूर्य मेष राशि में 20 से 30 अंशों तक

जातक अपनी कृतियों और रचनाओं के कारण काफी प्रसिद्धि पाने में सक्षम होता है. जातक को क्रोध अधिक आता है, वह युद्धप्रिय हो सकता है. उसमें कौशल व शक्ति का समावेश हो सकता है. सात्विकता से युक्त अनुकूल आचरण करने वाला होता है. अनेक स्थानों में घूमने का शौकिन होता है. स्थाईत्व का अभाव रह सकता है. साहसिक कार्यों में रूचि रख सकता है.

सूर्य मीन राशि में 0 से 10 अंशों तक

जातक का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. आध्यात्मिकता के प्रति रूझान बना रहता है. धर्म कर्म के कार्यों से जुडा़ पाता है. जातक आत्मविश्वासी और परिश्रमी बनता है. वह अपने कार्यों को लगन और साहस के साथ करता है. किसी भी कार्य को पूरे मनोयोग से करने पर जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति भी मिलती है. शत्रुओं और विरोधियों से भय नहीं रखता है. समाज में सम्मानित स्थान पाने में भी काफी हद तक सफल हो सकता है.

सूर्य वृश्चिक राशि में 10 से 20 अंशों तक

विश्लेषणात्मक कौशल का अच्छा ज्ञान होता है. प्रतिहिंसक होना, जोड़ तोड़ की कारगुजारी करना या दूसरों से जलन की भावना भी हो सकती है. विद्रोही हो सकता है, आक्रामक, अभिमानी भी हो सकता है. अपने साथियों के प्रति वफादार होता है.

सूर्य कर्क राशि में 20 से 30 अंशों तक

शुभ गुणों से युक्त होता है और प्रसिद्धि पाने वाला होता है. काम को लेकर काफी जल्दबाजी दिखाता है. आकर्षक और सुंदर होते हैं. किसी को भी अपनी ओर करने की कला अच्छे से जानता है. मन से कोमल तथा दूसरों के प्रति उदारता का भाव रखता है. आर्थिक रूप से समृद्ध होता है. विचारशील होता है और सभी बातों को जानने की चाह रखता है.

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बुध ग्रह से जाने कैसी होगी आपकी नौकरी और कैसा रहेगा आपका व्यवसाय

बुध के कारक तत्वों में जातक को कई अनेक प्रकार के व्यवसायों की प्राप्ति दिखाई देती है. बुध एक पूर्ण वैश्य रूप का ग्रह है. व्यापार से जुडे़ होने वाला एक ग्रह है जो जातक को उसके कारक तत्वों से पुष्ट करने में सहायक बनता है. इसी के साथ व्यक्ति को अपनी बौधिकता का बोध भी हो पाता है और उसे सभी दृष्टियों से कार्यक्षेत्र में व्यापार करने वाला बनाता है.

बुध राजकुमार है अत: काम में भी यही भाव भी दिखाई देता है. किसी के समक्ष भी यह जातक को कम नहीं होने देता है. अपने काम में व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त होती है और जातक किसी के अधीन बंधे नहीं रहना चाहता है. यदि इस ओर अधिक ध्यान दिया जाए तो व्यक्ति को स्वतंत्र विचारधारा वाला बनाता है. जातक अपने ज्ञान कर्म में अधिक सृजनशील होता है और पहल करने में भी आगे रहता है.

  • यदि कुण्डली में बुध ग्रह दूसरे, पांचवें और नवम भाव इत्यादि बुद्धि स्थानों का स्वामी बनता हुआ व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करे अर्थात लग्न-लग्नेश को चंद्रमा और सूर्य को प्रभावित करता हो तो व्यक्ति बुद्धिजीवी होता है. जातक शिक्षा द्वारा धनोपार्जन करता है.
  • बुध को वाणी का कारक कहा गया है अत: दूसरे स्थान या पंचम स्थान में बुध की स्थिति उत्तम हो तो व्यक्ति अपनी वाणी द्वारा कार्य-क्षेत्र अथवा सामाजिक क्षेत्र दोनों में ही दूसरों द्वारा प्रशंसित होता है और लोगों को अपनी वाक कुशला से प्रभावित करता है. व्यक्ति वकील, कलाकार, सलाहकार, प्रवक्ता इत्यादि कामों द्वारा अनुकूल फल प्राप्त करने में सफल रहता है.
  • बुध व्यक्ति के काम में व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है. अगर कुण्डली में बुध ग्रह शनि व शुक्र जैसे व्यापार से प्रभावित ग्रहों के साथ संबंध बनाता है तो जातक व्यापार के क्षेत्र में अच्छे काम करने की चाह रख सकता है. बुध की प्रबलता जातक को इन ग्रहों के साथ मिलकर प्रभावित करने में सक्षम होती है
  • बुध और शुक्र दोनों बलवान हों तो जातक को वस्त्र उद्योग में अच्छी सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
  • बुध लेखन का कार्य देता है यदि यह सूर्य जो राज्य से संबंधित होता है उससे प्रभावित हो तो जातक किसी लेखन संस्था से जुड़ सकता है. आशुलिपिक या बुध अधिक बली हो तो लेखा अधिकारी भी बना सकता है. बुध यदि तीसरे स्थान का स्वामी होकर दशम से संबंध बनाता है अथवा लग्न लग्नेश अपना प्रभाव डालता है तो जातक लेखक बनकर धनोपार्जन कर सकता है.
  • जन्म कुण्डली में यदि बुध मंगल के साथ बली अवस्था में स्थित हो तथा कर्म स्थल का द्योतक बनता है तो व्यक्ति गणित के क्षेत्र में अथवा यान्त्रिक विभाग में कार्यरत होता है.
  • बुध विनोद प्रिय है इसलिए जब कुण्डली में यह चतुर्थेश, पंचमेश या शुक्र से संबंध बनाता हुआ दशम भाव को प्रभावित करता है तो जातक मनोविनोद के कार्यों व कलात्मक अभिव्यक्ति से आजीविका कमा सकता है.
  • बुध एक सलाहकार व मध्यस्थ व एजेंट की भांति भी कार्य करने में तत्पर रहता है, यदि बुध दशम भाव को प्रभावित करते हुए चतुर्थेश और मंगल से प्रभावित होता है तो जातक भूमि भवन का एजेन्ट हो सकता है.
  • बुध बुद्धि का कारक ग्रह है अत: व्यक्ति ऎसे क्षेत्रों में अधिक देखा जा सकता है जहां पर बुद्धिजीवीयों का स्थान होता है वहां यह अपना स्थान बनाता है. इसी के साथ साथ यदि जातक को अपनी शैक्षिक संस्था का निर्माण करने की चाह हो तो गुरू और बुध का संबंध होने पर यह सहायक बनता है.
  • व्यवसाय के दृष्टिकोण में बुध एक बहुत अच्छा व्यवसायी होता है. इसके संदर्भ में व्यक्ति को वाक कुशलता और बुद्धि चातुर्य मिलता है. कुण्डली में बुध की स्थिति उत्तम होने पर जातक को इसके दूरगामी परिणाम प्राप्त होते हैं.
  • बुध के प्रभाव से जातक न्याय प्रिय होता है और किसी के साथ बुरा न करने की कोशिश करता है. यदि कुण्डली में बुध की स्थिति उच्चता को पाती है तो व्यक्ति मौलिक गुणों को बढा़ने में सहयोग करता है. जातक वाणी में ओज रहता है वह भावों को अभिव्यक्त करने में भी सहयोगी रहती है. वाचाल होता है हर बात का जवाब है इनके पास, भाषण देने में काफी प्रभावशाली रह सकता है.

व्यवसाय में बुध का प्रभाव । Significance Of Mercury In Business

बुध की अभिव्यक्ति मिलने से व्यक्ति में काम काज करने की समझ विकसित होती है. जातक में दूसरों के साथ समझ का दायरा भी विकसित होता है. वह अपनी कार्यक्षमता को अच्छे रूप से दूसरों के समक्ष रखने में कामयाब रहता है. बुध के गुणों में जो भी प्रभाव फलित होते हैं वह उसके अनुकूल स्थिति पर होने से मिल सकते हैं. इसी के अनुरूप यदि बुध के साथ अन्य ग्रहों का संबंध बनता जाता है तो उसी के अनुरूप फलों की प्राप्ति भी होती जाती है.

विचारों को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से लेखन द्वारा अभिव्यक्त कर सकता है. कविता इत्यादि में भी जातक का रूझान हो सकता है. विज्ञान व अन्य कलाओं का जानकार हो सकता है. बोलने में मधुर होता है और प्रेम भी पाता है. जातक सामान्यतया व्यवहार कुशल होता है व कठिन परिस्थितियों व गंभीर मसलों को कूटनीति से सुलझा लेता है. जातक शांत स्वभाव का होते हैं कार्यों को पूरा करने में चतुराई से काम लेता है. जातक सांसारिक जीवन जीने में सफल होते हैं तथा अपनी धुन के बहुत पक्के होते हैं तथा लोगों की कही बातों पर विचार न करके अपने काम में रमे रहते हैं.

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चंद्रमा की शुक्र के द्रेष्काण में स्थिति का आंकलन | Analysis of Moon In Venus Drekkana

जातक के जीवन में ग्रहों की द्रेष्काण में स्थिति उसके जीवन पर बहुत प्रभाव डालने वाली होती है. ग्रह का समक्षेत्री, मित्र क्षेत्री होना स्वराशि में होना बहुत अनुकूल फल देने में सक्षम माना जाता है. जातक के जीवन में आने वाले उतार-चढावों को वर्गों में ग्रहों की स्थिति से समझा जा सकता है. चंद्रमा का शुक्र के द्रेष्काण में होना उसे तो सम भाव देता है किंतु शुक्र के लिए यह शत्रु स्थिति होती है. इसलिए इस परिस्थिति में चंद्रमा का प्रभाव उतना प्रतिफलित नहीं होगा जितना होना चाहिए. किंतु फिर भी जातक को आर्थिक रूप स्तर पर संतोषजनक फल मिल सकते हैं. जातक की महत्वकांक्षाएं बहुत प्रबल होती हैं जिन्हें पूरा करना व प्राप्त कर लेना उसकी प्राथमिकता में शुमार होता है.

चंद्रमा का शुक्र के द्रेष्काण में जाने का नियम | Rules For Moon Entering Venus Dreshkona

चंद्रमा यदि शुक्र के द्रेष्काण में जाए तो इस स्थिति को इस प्रकार समझा जा सकता है :-

चंद्रमा जब वृष राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो शुक्र के ही द्रेष्काण वृष राशि में रहता है.

चंद्रमा जब मकर राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो शुक्र के द्रेष्काण वृष राशि में जाएगा.

चंद्रमा जब कन्या राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण वृष राशि में जाएगा.

चंद्रमा जब तुला राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण तुला राशि में ही जाएगा.

चंद्रमा जब मिथुन राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण तुला राशि में जाएगा.

चंद्रमा जब कुम्भ राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण तुला राशि में जाएगा.

चंद्रमा का शुक्र के द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effect Of Moon In Venus Dreskona

चंद्रमा का शुक्र के द्रेष्काण में स्थित होना सौम्यता और अलंकार को पुष्ट करने वाला होता है. व्यक्ति का मन चंचल रह सकता है उसकी कलात्मकता के प्रति रूचि जागृत हो सकती है. जातक में स्वयं को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्यता होती है. कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है.

चंद्रमा जब वृष राशि में 0 से 10 अंशों तक | Moon In Taurus Sign 0-10 Degree

जन्म कुण्डली में चंद्रमा जब वृष राशि में 0 से 10 अंशों तक होता है तो वह शुक्र के ही द्रेष्काण वृष राशि में जाता है. वर्ग मे मिलने वाली यह स्थिति उसे प्रबल बनाती है. उसका यह प्रभाव किसी भी ओर रहे परंतु उसे इसके शुभ या अशुभ चाहे जो भी फल हों वह प्रभावशाली रूप में प्राप्त होते हैं. इस स्थिति में चंद्रमा की शक्ति में भी उच्चता आती है और जातक का मन भी मजबूत बनता है. वह भावुक होते हुए भी भावनाओं में बहता नहीं है अपितु उचित-अनुचित का निर्णय करते हुए ही आगे बढ़ता है. जातक को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है वह जीवन में मान सम्मान कमाता है.

चंद्रमा जब मकर राशि में 10 से 20 अंशों तक | Moon In Capricorn Sign 10-20 Degree

जन्म कुण्डली में चंद्रमा जब मकर राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो शुक्र के द्रेष्काण वृष राशि में जाता है. यहां व्यक्ति को जीवन में परिश्रम करना होता है. वह भाग्य का निर्माण अपने प्रयासों द्वारा ही कर सकता है. उसके स्वभाव में एक कटुता व चालाकी का भाव देखा जा सकता है. व्यक्ति मन से काफी दृढ़ रहता है. उसके मनोभावों को समझ पाना आसान नहीं होता है. जातक की कार्य कुशलता में सूझबूझ का समन्वय देखा जा सकता है.

चंद्रमा जब कन्या राशि में 20 से 30 अंशों तक | Moon In Virgo Sign 20-30 Degree

चंद्रमा जब कन्या राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण वृष राशि में जाएगा. इस राशि में होने पर जातक का व्यवहार काफी हंसमुख तथा कला कौशल से युक्त हो सकता है. जातक के मित्रों की संख्या बहुत होती है यह जल्द से दोस्त बनाने वाले होते हैं और कला वर्ग में अपनी धाक जमाने की कोशिशों में लगे रहते हैं. जातक में अच्छी प्रतिभाएं होती हैं जो उसे सभी के सम्मुख प्रशंसा दिलाने में सहायक होती हैं.

चंद्रमा जब तुला राशि में 0 से 10 अंशों तक | Moon In Libra Sign 0-10 Degree

जन्म कुण्डली में चंद्रमा जब तुला राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण तुला राशि में ही जाता है. इससे प्रभावित जातक सुंदर व आकर्षण से युक्त होता है. व्यक्ति का व्यवहार सौंदर्य की अनुभूति में दिखाई देता है. जातक का मन सपनों को संजोता है और उन्हीं में रहना उसे पसंद आता है. वह स्वयं पर पूरा ध्यान देता है तथा अपनी इच्छाओं को पूरा करने में लगा रहता है.

चंद्रमा जब मिथुन राशि में 10 से 20 अंशों तक | Moon In Gemini Sign 10-20 Degree

जन्म कुण्डली में जब चंद्रमा मिथुन राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण तुला राशि में जाता है. व्यक्ति में वाककुशला होती है उससे बातों में कोई जीत नहीं सकता, तर्क वितर्क करने वाला होता है. उसे कई प्रकार से सफलताएं मिलती हैं वह व्यवसायिक क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है.

चंद्रमा जब कुम्भ राशि में 20 से 30 अंशों तक | Moon In Aquarius Sign 20-30 Degree

जन्म कुण्डली में चंद्रमा जब कुम्भ राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शुक्र के द्रेष्काण तुला राशि में जाता है. जातक का स्वभाव स्वयं में सीमित हो सकता है. वह परंपराओं का पालन करने वाला होता है. उसके जीवन में नैतिक मूल्यों का बहुत महत्व होता है. वह धर्म कर्म में विश्वास रखने वाला होता है तथा मन से उदार व सरल हृदय का होता है.

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चंद्रमा की शनि के द्रेष्काण में स्थिति का आंकलन | Analysis of Moon In Saturn Drekkana

जातक के जीवन में ग्रहों की द्रेष्काण में स्थिति उसके जीवन पर बहुत प्रभाव डालने वाली होती है. ग्रह का समक्षेत्री, मित्र क्षेत्री होना स्वराशि में होना बहुत अनुकूल फल देने में सक्षम माना जाता है. किंतु शत्रु राशि या पिडी़त होना अनुकूल नहीं होता है. जातक के जीवन में आने वाले उतार-चढावों को वर्गों में ग्रहों की स्थिति से समझा जा सकता है. चंद्रमा का शनि के द्रेष्काण में होना उसे तो सम भाव देता है किंतु शनि के लिए यह शत्रु स्थिति होती है.

इसलिए इस परिस्थिति में चंद्रमा का प्रभाव उतना प्रतिफलित नहीं होगा जितना होना चाहिए. जातक के मन में वैर भाव तथा कुटीलता पनप सकती है. व्यक्ति गलत कामों द्वारा धनार्जन कर सकता है तथा दूसरों के प्रति अधिक सहानभूति नहीं रख पाता है. जातक की महत्वकांक्षाएं बहुत प्रबल होती हैं जिन्हें पूरा करना व प्राप्त कर लेना उसकी प्राथमिकता में शुमार होता है जिसके लिए चाहे किसी भी प्रकार कि निति का अनुसरण करना पडे़.

चंद्रमा का शनि के द्रेष्काण में जाने का नियम | Rules For Moon Entering Saturn Dreshkona

चंद्रमा यदि शनि के द्रेष्काण में जाए तो इस स्थिति को इस प्रकार समझा जा सकता है :-

चंद्रमा जब मकर राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो शनि के ही द्रेष्काण मकर राशि में रहता है.

चंद्रमा जब कन्या राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो शनि के द्रेष्काण मकर राशि में जाएगा.

चंद्रमा जब वृष राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण मकर राशि में जाएगा.

चंद्रमा जब कुम्भ राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण कुम्भ राशि में ही जाएगा.

चंद्रमा जब तुला राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण कुम्भ राशि में जाएगा.

चंद्रमा जब मिथुन राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण कुम्भ राशि में जाएगा.

चंद्रमा का शनि के द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effect Of Moon In Saturn Dreskona

चंद्रमा का शनि के द्रेष्काण में स्थित होने पर जातक क्रूर हो सकता है वह कामों में निष्टुरता करने वाला होता है. उसके कार्यों में अनेक प्रकार के नए-नए प्रपंच देखने को मिल सकते हैं. वह लालच की भावना से पुष्ट हो सकता है. नीच कर्म को करने वाला तथा आलसी हो सकता है. व्यक्ति विश्वासपात्र नहीं होता व जल्द से भरोसा नहीं किया जा सकता. जातक का मन चंचल रह सकता है उसकी कलात्मकता के प्रति रूचि जागृत हो सकती है.

चंद्रमा मकर राशि में 0 से 10 अंशों तक | Moon In Capricorn Sign 0-10 Degree

चंद्रमा जब मकर राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य तक स्थित होता है तो शनि के ही द्रेष्काण मकर राशि में स्थान पाता है. यहां पर चंद्रमा का प्रभाव शनि के स्वरूप में अधिकता से घुलमिल सकता है. जिसके प्रभाव स्वरूप जातक मन से अनेकों विचारशील तथ्यों को समझने की कोशिश में लगा रहता है. जातक में सोचने की प्रवृत्ति अधिक होती है. वह अपनी कल्पनाओं को सभी के समक्ष उजागर नहीं करता है.

चंद्रमा कन्या राशि में 10 से 20 अंशों तक | Moon In Virgo Sign 10-20 Degree

जन्म कुण्डली में चंद्रमा जब कन्या राशि में 10 से 20 अंशों तक के मध्य स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण मकर राशि में स्थान पाता है. किसी भी ग्रह का किसी अन्य के द्रेष्काण में होना ग्रह की विशेषताओं को तो स्वत: ही प्रभावित करने वाला होगा. यहां पर तीन प्रभाव प्रतिफलित होते हैं जिनके संयोग द्वारा जातक को फलों की प्राप्ति ओती है. यह प्रभाव जातक के ज्ञान क्षेत्र को विस्तृत करने में सक्षम होता है. जातक को साहित्य का ज्ञान प्राप्त होता है. व्यक्ति आध्यात्मिक रूचि बढ़ती है, वह रूढ़ीवादी हो सकता है.

चंद्रमा वृष राशि में 20 से 30 अंशों तक | Moon In Taurus Sign 20-30 Degree

चंद्रमा जब वृष राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण मकर राशि में जाता है. यहां जातक का मन चकाचौंध की ओर आकर्षित हो सकता है. वह अपने को बनाव श्रृंगार में व्यस्त रख सकता है. उसकी मानसिक संवेदनाएं बढ़ सकती हैं तथा वह हृदय से व्याकुल भाव लिए रह सकता है.

चंद्रमा कुम्भ राशि में 0 से 10 अंशों | Moon In Aquarius Sign 0-10 Degree

जन्म कुण्डली में चंद्रमा जब कुम्भ राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होता है तो शनि के द्रेष्काण कुम्भ राशि में ही जाता है. व्यक्ति परंपराओं का पालन करने वाला होता है. उसके स्वभाव में जिद्द का भाव देखा जा सकता है. जातक दूसरों के विचारों को समझने वाला होता है. यह सहानुभूति रखने वाले उदार भाव के व्यक्ति होते हैं. कुछ संकोची रह सकते हैं. मन में अनेकों भावनाएं और कल्पनाएं जन्म लेती रहती हैं. भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं जल्द ही किसी भी माहौल में ढ़ल जाते हैं.

चंद्रमा तुला राशि में 10 से 20 अंशों | Moon In Libra Sign 10-20 Degree

चंद्रमा जब तुला राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण कुम्भ राशि में जाता है. वैभववान और संचित पुण्य से सुखी होता है. खर्चों पर नियंत्रण नहीं लग पाता है. मानसिक चिंताएं अधिक रहती हैं. कई स्त्रियों के साथ संबंध रहता है. व्यावसायिक क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करता है. ससुराल पक्ष से लाभ होने की संभावना रहती है. भावुक होते हुए कई निर्णय लेते हैं जिनमें विचार की कमी दिकाई पड़ सकती है. जातक को स्वयं पर संयम रखना चाहिए जिससे की उनका मन व्यर्थ में न भटके.

चंद्रमा मिथुन राशि में 20 से 30 अंशों | Moon In Gemini Sign 20-30 Degree

चंद्रमा जब मिथुन राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य स्थित होगा तो शनि के द्रेष्काण कुम्भ राशि में जाएगा. परंपराओं के प्रति सजग होते हैं और धर्म कर्म में रूचि रखने वाले होते हैं. भाग्य में तथा संपत्ति में वृद्धि होती है. जातक कई प्रकार की चालों को चलने में प्रयासरत रहता है वह महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सभी कदम उठाने से पिछे नहीं हटता है. देविकृपा या अनजान शक्तियों का साथ मिलता है. तीर्थयात्रा करता है तथा परोपकारी कार्यों में रूचि रखता है. सामाजिक मान- सम्मान मिलता है. प्रकाशन के व्यवसाय में लाभ मिलता है. नई आकांक्षाओं से भरा होता है तथा स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेने में सक्षम होता हैं. परिश्रमी होते हैं. लेकिन कुछ मामलों में आप बातूनी भी खूब होते हैं.

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सूर्य का बुध के द्रेष्काण में स्थिति का आंकलन | Analysis of Sun In Mercury Drekkana

ज्योतिष में द्रेष्काण की महत्ता के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है. द्रेष्काण में किस ग्रह का क्या प्रभाव पड़ता है, इस बात को समझने के लिए ग्रहों की प्रवृत्ति को समझने की आवश्यकता होती है. जिनके अनुरूप फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है तथा जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में होने वाले बदलावों और घटनाओं को समझ पाना आसान होता है. ग्रहों की शुभता व क्रूरता का प्रभाव अवश्य पड़ता है जिसके प्रभाव स्वरूप व्यक्ति पर इनका असर होते देखा जा सकता है.

सूर्य का बुध के द्रेष्काण में जाने का नियम | Rules For Sun Entering Mercury Dreshkona

सूर्य का बुध के द्रेष्काण में होना समता की स्थिति को दर्शाने वाला होता है, जहां एक ओर गुरू है वहीं दूसरी ओर शिष्य है दोनों इस स्थान पर गुरू शिष्य का स्वरूप दिखाने वाले होते हैं. इनकी स्थिति में व्यक्ति को ज्ञान समझने की उचित बुद्धि प्राप्त होती है. वह अपने को संपूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने की सामर्थ्यता भी दिखाता है. कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है.

यह स्थिति ग्रह के अनुकूल फल देने में सहायक बन सकती है. व्यक्ति के धार्मिक व सामाजिक स्तर का पता चलता है. जातक के जीवन में इस स्थिति का प्रभावशाली रूप उभर कर सामने आता है. इस स्थिति के कारण ग्रहों को बल मिलता है तथा ग्रह की शुभता को बढ़ाने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में सहायक होती है.

सूर्य यदि बुध के द्रेष्काण में जाए तो इस स्थिति को इस प्रकार समझा जा सकता है.

सूर्य जब मिथुन राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो बुध के ही द्रेष्काण मिथुन राशि में रहेगा.

सूर्य जब तुला राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो बुध के द्रेष्काण मिथुन राशि में जाएगा.

सूर्य जब कुम्भ राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो बुध के द्रेष्काण मिथुन राशि में जाएगा.

सूर्य जब कन्या राशि में 0 से 10 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो बुध के द्रेष्काण कन्या राशि में ही जाएगा.

सूर्य जब मकर राशि में 10 से 20 अंशों के मध्य स्थित होगा तो बुध के द्रेष्काण कन्या राशि में जाएगा.

सूर्य जब वृष राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य स्थित होगा तो बुध के द्रेष्काण कन्या राशि में जाएगा.

सूर्य का बुध के द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effect Of Sun In Mercury Dreskona

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार किसी भी ग्रह का अपने सम भाव के द्रेष्काण में जाना सामान्यत: अनुकूल माना जाता है. एक शुभ ग्रह के साथ क्रूर ग्रह की युति होने पर मिले जुले फलों की प्राप्ति होती है. यह मिलन जातक की बुद्धि को तीव्र करने में सहायक बनता है. कहीं न कही यह संबंध जातक के गुणों में कलात्मकता का पुट देने में भी सहायक होता है. यदि सूर्य बुध के द्रेष्काण में हो तो जातक शत्रुओं का नाश करने वाला होता है. नीच संगती के कारण उसके स्वभाव में वैचारिक मतभेद भी आ सकते हैं. उसकी भाषा में एक अलग ही विचित्रता का समावेश होता है जिसके प्रभावस्वरूप व्यक्ति अपने गुणों से सम्मान पाता है. देवों और ब्राह्मणों का समान करता है.

सूर्य मिथुन राशि में 0 से 10 अंशों तक | Sun In Gemini Sign 0-10 Degree

सूर्य जब मिथुन राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो बुध के द्रेष्काण में जाएगा. बुध के इस स्थिति में होने पर व्यक्ति का पांडित्य और उसमें कुशलता का पुट आता है. इस स्थिति में सूर्य को मजबूती मिलत है वर्गों में उसी राशि में होने पर ग्रह की अभिव्यक्ति भी बढ़ती है.

सूर्य तुला राशि में 10 से 20 अंशों तक | Sun In Libra Sign 10-20 Degree

सूर्य जब तुला राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो बुध के द्रेष्काण में जाएगा. इस स्थिति के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति का कला कौशल उभर कर सामने आता है. वह अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति में संतुष्ट होता है. जातक के विचारों में कल्पनाओं की उडा़न रहती है. वह मन से चंचल होता है और प्रेम में मग्न रहने की चाह रखता है. स्त्रियों के मध्य प्रसिद्ध रहते हैं.

सूर्य कुम्भ राशि में 20 से 30 अंशों तक | Sun In Aquarius Sign 20-30 Degree

सूर्य जब कुम्भ राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो बुध के द्रेष्काण में जाएगा. इस राशि में सूर्य की स्थिति होने से जातक में व्यवहार कुशलता आती है. वह समझ के दायरे को बढा़ने वाला होता है लेकिन कभी-कभी अहंकार से युक्त भी हो सकता है. अपने कर्म के प्रति अधिक प्रयासरत रहते हुए भी कई बार मनोकुल फल नहीं मिल पाते हैं.

सूर्य कन्या राशि में 0 से 10 अंशों तक | Sun In Virgo Sign 0-10 Degree

जातक के व्यवहार में स्त्रीवत कोमलता होती है. यह मध्यस्थ बनकर गंभीर मसलों को भी आसानी सुलझा सकते हैं. जातक मेधावी होता है, वेद शास्त्रों को पढ़ने का इच्छुक हो सकता है. बोलने में कुशलता पाता है, हंसमुख विचारों से युक्त, मनोवोनोद प्रवृत्ति वाला,गुरू की सेवा करने वाला व धर्म के प्रति आसक्त होता है. शर्मिला व सौम्य गुणों से युक्त होता है. सेवा कार्यों को कुशलता से करने वाला होता है. कला के क्षेत्र से लगाव रखने वाला होता है.

सूर्य मकर राशि में 10 से 20 अंशों तक | Sun In Capricorn Sign 10-20 Degree

जातक अपने काम को सर्वप्रमुख मानता है. गलत काम की ओर जल्द ही आकर्षित होता है. लोभ की इच्छा अधिक रह सकती है किसी भी कार्य के पीछे अच्छा मुनाफा पाना इनकी चाह भी बन सकती है. स्त्री से प्रेम करने वाला.एक से अधिक कामों को करने में तत्पर रहता है जिससे अधिक लाभ भी पाता है. कुछ असंतोष भी रह सकता है जातक को मानसिक सुख में कमी का अनुभव भी होता है.

सूर्य वृष राशि में 20 से 30 अंशों तक | Sun In Taurus Sign 20-30 Degree

सूर्य का प्रभाव कलात्मकता से युक्त होता है. जातक अच्छी वस्तुओं का शौकीन होता है. सलीके से युक्त बातचीत में निपुण होता है. सुगंधित वस्तुओं का प्रेमी, गीत संगीत व नृत्य आदि कलाओं का शौकिन होता है. जातक जल से भयभीत रह सकता है, मुंह व नेत्र संबंधी विकार हो सकते हैं. सुंदर और पतला होता है.

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द्रेष्काण से जाने शरीर के अंग और कौन सा अंग होगा प्रभावित

वैदिक ज्योतिष में शरीर के अंगों के विषय में अनेकों विचारधाराओं को बताया गया जिसमें जातक के रंग-रूप, आचार-विचार, व्यवहार, उसकी भावनात्मक स्थिति इत्यादि बातों को बोध कराने में वैदिक ज्योतिषाचार्यों नें बहुत से तथ्यों का प्रतिपादन किया. इस सभी के अनुरूप व्यक्ति के व्यक्तित्व की विचारधारा एवं उसकी आकृति को समझने में बहुत सहायता प्राप्त होती है. जन्म कुण्डली के अतिरिक्त वर्ग कुण्डली द्वारा भी जातक के बाहरी रूप को समझने में बहुत मदद मिलती है. यहां हम द्रेष्काण कुण्डली के बारे में बात करेंगे जिसके द्वारा काफी हद तक व्यक्ति के शरीर के वर्ण, काया स्वरूप इत्यादि का विचार किया जा सकता है.

उदितं तत्क्षणं लग्नाद् वाममंगमथाबलम् ।

सव्यार्धादितरत्तस्य नोद्गतं सबलं च तत् ।।

उक्त शब्दों इसका अर्थ है कि वर्तमान लग्न से पीछे की छ: राशियां उदित कही जाती है और यह वाम अंग की प्रतिनिधि मानी गई हैं. इसी प्रकार लग्न से आगे की राशियां अनुदित अर्थात जो उदित न हुई हों तथा दक्षिण कही जाती हैं. इनमें से वामांग निर्बल व दक्षिणांग को सबल माना गया है.

इसके अतिरिक्त एक अन्य उदाहरण में श्लोक द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों की व्याख्या कि गई है जिसके अनुसार:-

मूर्धालोचनकर्णगन्धवहनं गण्डौ हनुश्चाननं,

ग्रीवास्कन्धभुजं तु पाश्वर्ह्रदयक्रोडानि नाभि:पुन:।

बस्तिर्लिगंगुदे च मुष्कयुगलं चोरूद्वयं जानुनी,

जंघे पादयुगं विलग्नभवनत्र्यंशैश्च त्रेधा क्रमात् ।।

इस श्लोक के अर्थ अनुसार यदि प्रथम द्रेष्काण हो अर्थात 0 से 10 अंशों के मध्य द्रेष्काण स्थित हो तो:-

  • प्रथम भाव से सिर का विचार करना चाहिए.
  • द्वितीय और द्वादश भाव से नेत्रों का विचार करना चाहिए.
  • तृतीय और एकादश भाव से कान का विचार किया जाता है.
  • चतुर्थ और दशम भाव से नासिका का विचार होता है.
  • पंचम और नवम भाव से गाल का विचार किया जाता है.
  • षष्ठ और अष्टम भाव से ठुड्डी का विचार करना चाहिए.
  • सप्तम भाव प्रथम का विपरित है इसलिए यहां से मुख का विचार करना चाहिए.

यदि दूसरा द्रेष्काण हो अर्थात 10 से 20 अंशों तक के मध्य में स्थित हो तो:-
प्रथम भाव से गर्दन का विचार करना चाहिए.

  • द्वितीय और द्वादश भाव से कन्धे का विचार करना चाहिए.
  • तृतीय और एकादश भाव से भुजा का विचार किया जाता है.
  • चतुर्थ और दशम भाव से बगलें(कांख) का विचार होता है.
  • पंचम और नवम भाव से ह्रदय का विचार किया जाता है.
  • षष्ठ और अष्टम भाव से पेट का विचार किया जाता है.
  • सप्तम भाव से नाभि का विचार किया जाता है.

यदि तीसरा द्रेष्काण हो अर्थात 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित हो तो :-

  • प्रथम भाव से बस्ति का विचार करना चाहिए.
  • द्वितीय और द्वादश भाव से लिंग व गुदा का विचार करना चाहिए.
  • तृतीय और एकादश भाव से अण्डकोष का विचार किया जाता है.
  • चतुर्थ और दशम भाव से जांघ का विचार होता है.
  • पंचम और नवम भाव से घुटने का विचार किया जाता है.
  • षष्ठ और अष्टम भाव से पिण्डली का विचार किया जाता है.
  • सप्तम भाव से पैरों का विचार किया जाता है.

इस प्रकार द्रेष्काण के प्रमुख भाग निम्न प्रकार से व्यक्ति के शरीर के अंगों का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं. जातक के नेत्र कैसे हैं वह छोटे हैं या बडे़ हैं उनका आकर्षण कैसा है उनका रंग कैसा है, जातक के कान बडे़ हैं या छोटे, दिखने में कैसे प्रतीत होते हैं. इसी प्रकार जातक की नाक कैसी है, लम्बी है या छोटी किस आकृति में है इत्यादि बातों को उक्त भावों से देखने पर समझा जा सकता है.

गालों का विचार करते हुए उनकी रंगत व गोल पन या सपाटता को देखा जा सकता है. जातक की ग्रीवा लम्बी है या छोटी. किस प्रकार की उसकी आकृति है. कंधे मजबूत हैं या कमजोर, चौडे हैं या झुके हुए. बोझ सहने की क्षमता रखते हैं या नहीं इत्यादि बातें इस भाव से समझी जा सकती हैं. जातक की बाजुओं में कैसा बल है वह अपने कार्यों को करने में सफल रहेगा या नहीं उसे किसी अन्य की सहायता न लेनी पडे़ ऎसे अनेकों विचारों का प्रतिपादन हम द्रेष्काण द्वारा कर सकते हैं.

जातक के बाहुबल और साहस में द्रेष्काण में आनेवाली राशियों और ग्रहों का बहुत प्रभाव रहता है. जातक के अंगों में कोई दोष इत्यादि तो व्याप्त नहीं है, वह भी इस द्रेष्काण की स्थिति द्वारा समझने में सहायता मिलती है. जन्म कुण्डली से बाहरी रूप में एक खाका तैयार हो जाता है जिसे द्रेष्काण की सहायता से सूक्ष्मता से समझने में सहायता मिलती है.

द्रेष्काण में सभी अंगों की स्थापना की जाती है. जिस प्रकार अंगों को द्रेष्काण की सहायता से समझा जा सकता है उसी प्रकार से लग्न कुण्डली में अंग कल्पित करके उनसे तिल इत्यादि चिन्हों को भी समझा जा सकता है. द्रेष्काण के भावों के स्वामित्व एवं ग्रहों की स्थिति के आधार पर शरीर के अंगों को समझने में बहुत सहायता प्रप्त होती है, यदि इनका सू़क्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाए तो जातक की बनावट एवं उसकी शारीरिक संरचना को समझा जा सकता है.

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चंद्र द्रेष्काण:चंद्रमा के द्रेष्काण में मंगल का फल

द्रेष्काण द्वारा ग्रहों की युति का जातक के जीवन में बहुत गहरा प्रभाव प्रतिफलित होता है. इसके साथ ही जातक के जीवन में होने वाले बदलावों को भी इसी से समझने में बहुत आसानी रहती है. देष्काण कुण्डली का प्रभाव ग्रहों की स्थिति को समझने में तथा उनसे मिलने वाले फलों को जानने के लिए बेहद उपयोगी माना गया है. इस स्थिति में व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र किस प्रकार का है इसे सफलता पूर्वक समझा जाता है.

द्रेष्काण में ग्रह का समक्षेत्री, मित्र क्षेत्री होना स्वराशि में होना अनुकूल फल देने वाला माना गया है. इससे ग्रहों की स्थिति एवं उनके द्वारा जीवन में आने वाले उतार-चढावों को समझने में आसानी होती है. वर्गों में ग्रहों की स्थिति से समझा जा सकता है कि ग्रह किस प्रकार का फल देने में सक्षम होगा और उसकी युति का प्रभाव कितना पड़ने वाला है. ग्रह का मित्र द्रेष्काण में जाना अनुकूलता का कारण माना गया है परंतु यदि वह इसके विपरीत हो तो ग्रह की शुभता में कमी का अभाव रह सकता है. कुण्डली में यह स्थिति ग्रह के प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है.

मंगल का चंद्रमा के द्रेष्काण में जाने का नियम | Rules For Mars Entering Moon Dreshkona

मंगल यदि चंद्रमा के द्रेष्काण में जाए तो इस स्थिति को इस प्रकार समझा जा सकता है :-

मंगल यदि कर्क राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो चंद्रमा के ही द्रेष्काण कर्क राशि में जाएगा.

मंगल यदि मीन राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो चंद्रमा के द्रेष्काण कर्क राशि में ही जाएगा.

मंगल यदि वृश्चिक राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो चंद्रमा के द्रेष्काण कर्क राशि में जाएगा.

मंगल का चंद्र द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effect Of Mars In Moon Dreskona

मंगल का चंद्रमा के द्रेष्काण में होना मंगल की स्थिति को मजबूत बनाने में सहायक होता है. यह स्थिति किस भाव में बन रही है यह देखने पर ही ग्रहों के प्रभावों को समझा जा सकता है जो एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है, मंगल और चंद्रमा का संबंध नैसर्गिक मित्रता वाला होता है. मंगल यदि चंद्रमा के द्रेष्काण में हो तो जातक धनवान किंतु व्यस्नों से ग्रस्त हो सकता है. दुष्टता से पूर्ण काम करने वाला हो सकता है. मन से द्वेषी रह सकता है तथा राजाओं में प्रख्यात हो सकता है. गुणों से युक्त तथा मित्रों की अधिकता पाता है. स्त्रियों की संगत में रहने वाला हो सकता है.

मंगल कर्क राशि में 0 से 10 अंशों तक | Mars In Cancer Sign 0-10 Degree

मंगल यदि कर्क राशि में 0 से 10 अंशों तक होगा तो चंद्रमा के ही द्रेष्काण कर्क राशि में जाएगा. उक्त स्थान पर पुनरावृत्ति होने के कारण मंगल को अधिक मजबूती एवं बल की प्राप्ति होती है. जातक अपने किसी भी प्रयास में कोताही नहीं बरतता है. वह कार्यस्थल पर अपनी स्थिति को प्रबल रूप से सामने लेकर आता है. विचारों के द्वंद में होते हुए भी वह स्थिति की गंभीरता को समझता है और उसके अनुरूप कार्य करने की कोशिश भी करता है. जातक में कठोरता हो सकती है तथा उसका मन गंभीर विषयों की उन्मुख रहते हुए अव्यवस्थित सा रह सकता है.

मंगल मीन राशि में 10 से 20 अंशों तक | Mars In Pisces Sign 10-20 Degree

मंगल यदि मीन राशि में 10 से 20 अंशों तक का होगा तो चंद्रमा के द्रेष्काण कर्क राशि में ही जाता है. जातक में धर्म कर्म के प्रति अधिक उत्सुकता देखी जा सकती है वह धार्मिक क्रिया कलापों को करने में निपुण रहता है. संरक्षक के रूप में वह दूसरों के लिए सेवा भाव से जुडा़ होता है. व्यक्ति के मन में निरंतर कल्पनाएं जन्म लेती रहती हैं मन से यह बेचैन हो सकते हैं. अपने संबंधों के प्रति संवेदनशील होते हैं यह प्रेम को भावनात्मक स्तर पर चाहते हैं.

मंगल वृश्चिक राशि में 20 से 30 अंशों तक | Mars In Scorpio Sign 20-30 Degree

मंगल यदि वृश्चिक राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित होगा तो चंद्रमा के द्रेष्काण कर्क राशि में जाएगा. यहां जातक का स्वभाव कुछ आक्रामक व उग्र हो सकता है. वह अपने विचारों पर अडिग रह सकता है और किसी भी प्रकार से अपना प्रतिकार नहीं सह पाता है. जातक में बार-बार प्रयास करते रहने की कोशिश देखी जा सकती है. वह अपने विचारों के समक्ष दूसरों के हितों को स्थान नहीं दे पाता तथा स्वयं को सर्वप्रमुख मान सकता है. मन से काफी विचलित रह सकता है.

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जन्म कुंडली में भाग्य स्थान का महत्व

किसी भी व्यक्ति के लिए उसका भाग्य बली होना शुभ माना जाता है. भाग्य के बली होने पर ही व्यक्ति जीवन में ऊंचाईयों को छू पाने में सफल रहता है. यदि भाग्य ही निर्बल हो जाए तब अत्यधिक प्रयास के बावजूद व्यक्ति को संतोषजनक परिणाम नहीं मिलते हैं. किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में उसका भाग्य भाव, भाग्येश, तथा भाग्य भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह महत्व रखते हैं. जन्म कुंडली में नवम भाव से भाग्य का आंकलन किया जाता है.

किसी भी जन्म कुण्डली में जन्म लग्न से नौवीं राशि व चंद्र लग्न से नौंवी राशि महत्वपूर्ण होती है. क्योकि यह राशि भाग्य भाव अर्थात नवम भाव में आती है. जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न में से जो लग्न बली होता है उससे भाग्य भाव की गणना की जानी चाहिए. जन्म कुंडली में भाग्य भाव का स्वामी किस भाव में गया है आदि बातों का विचार करना चाहिए. भाग्येश का केन्द्र अथवा त्रिकोण आदि भावों में जाना शुभ प्रदान करने वाला माना गया है. भाग्येश चाहे बली हो अथवा अल्पबली हो तब भी वह योगकारक ही कहा जाता है.

नवम भाव अथवा नवमेश का संबंध किसी भी तरह से केन्द्र, त्रिकोण, धन भाव आदि से बन रहा हो तब इसे अत्यधिक शुभ माना गया है. यह उत्तम अवस्था होती है, 3 व 11 भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर यह मध्यम स्थिति बनती है और छठे, आठवें व बारहवें भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर सबसे खराब स्थिति मानी गई है. एक बात लेकिन तय है कि भाग्येश अति शुभ या अति अशुभ हो, वह सदा शुभ फल देने वाला ही माना जाता है.

भाग्योदय कहाँ हो सकता है | Bhagyodaya in Janam Kundli

हर व्यक्ति के भाग्योदय का स्थान अलग होता है, कोई अपने जन्म स्थान पर ही भाग्य का उदय पाता है तो किसी का अपने जन्म स्थान के नजदीक भाग्य का उदय होता है तो किसी का जन्म स्थान से बहुत दूर लेकिन अपने ही देश में होता है और कुछ लोगों का भाग्योदय अपने देश से बाहर विदेशो में होने की संभावना बनती है.

  • बादनारायण मुनियों के अनुसार, भाग्य भाव पर अपने स्वामी ग्रह की ही दृष्टि हो अथवा भाग्य भाव में ही भाग्येश स्थित हो तब व्यक्ति का भाग्योदय उसके अपने ही देश में होता है.
  • यदि भाग्य भाव पर उसके स्वामी की दृष्टि ना हो, योग भी ना हो अथवा अन्य किसी भी ग्रह की दृष्टि ना हो तब व्यक्ति का भाग्योदय अपने जन्म स्थान से दूर परदेश में होता है.
  • यदि कोई बली कारक ग्रह तृतीय भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे या लग्न अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे तब व्यक्ति के भाग्य में विशेष रुप से वृद्धि होती है. लग्न अथवा पंचम से तो केवल बृहस्पति ही नवम भाव को दृष्ट करेगा.

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