बाधक ग्रह | Badhak Graha | Badhakesh Planet

वैदिक ज्योतिष के अन्तर्गत अनगिनत योगों का उल्लेख मिलता है. बहुत से योग अच्छे हैं तो बहुत से योग खराब भी हैं. जन्म कुंडली में अरिष्ट की व्याख्या भावों के आधार पर भी की जाती है. कुछ भाव ऎसे हैं जो जीवन में बाधा उत्पन्न करने का काम करते हैं. इन भावों के स्वामियो को बाधक ग्रह अथवा बाधकेश का नाम दिया गया है.

हर लग्न के लिए भिन्न – भिन्न भावों के स्वामी बाधक होते हैं. इसमें सभी बारह राशियों के स्वभाव के आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया जाता है. आज हम बाधकेश की चर्चा करेगें कि वह किस तरह से जीवन में बाधाएँ पहुंचाने का काम करता है.

जन्म लग्न के अनुसार राशियों का वर्गीकरण | Categorization of astrological signs on the basis of Ascendant

वैदिक ज्योतिष में हर लग्न के अनुसार बाधक ग्रह का निर्णय किया गया है. सभी लग्नों के लिए अलग-अलग ग्रह बाधक होते हैं. सभी 12 राशियों को उनके स्वभाव के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है और फिर उसके आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया जाता है.

मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी गई हैं. चर अर्थात चलायमान रहती है.वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी गई हैं. स्थिर अर्थात ठहराव रहता है. मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनो का समावेश इनमें होता है.

जन्म लग्न के अनुसार बाधक ग्रह का निर्णय | Determination of Badhak planet by Birth Ascendant

आइए अब जन्म लग्न में स्थित राशि के आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय करते हैं. जन्म लग्न में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हैं तब एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.

जन्म लग्न में स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित है तब नवम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है. यदि जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन स्थित है तब सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है. बहुत से विद्वानो के मतानुसार बाधक भावों – एकादश, नवम व सप्तम में बैठे ग्रह भी बाधकेश की भूमिका अदा करते हैं.

बाधक ग्रह का काम | Characteristics of Badhak Planet

अब हम बाधक ग्रह के कारकत्वों के बारे में जानेगें कि वह किस तरह से काम करता है. जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, बाधक ग्रह अपनी दशा/अन्तर्दशा में बाधा व रुकावट पहुंचाने का काम करते हैं.

व्यक्ति के जीवन में जब बाधक ग्रह की दशा आती है तब वह बाधक ग्रह स्वयं ज्यादा हानि पहुंचाते हैं या वह जिन भावों में स्थित हैं वहाँ के कारकत्वों में कमी कर सकता है. व्यक्ति विशेष की कुंडली में बाधक ग्रह जब कुंडली के अशुभ भावों के साथ मिलते हैं तब ज्यादा अशुभ हो जाते हैं.

यही बाधक ग्रह जब जन्म कुंडली के शुभ ग्रहों के साथ मिलते हैं तब उनकी शुभता में कमी भी कर सकते हैं. बाधक ग्रह सबसे ज्यादा अशुभ तब होते हैं जब वह दूसरे भाव, सप्तम भाव या अष्टम भाव के स्वामी के साथ स्थित होते हैं.

बाधक सदैव बाधक नहीं होते | Badhak Planets are not always Badhak

आइए बाधक ग्रह के संदर्भ में कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्यो को जानने का प्रयास करें. वैदिक ज्योतिष में बाधक ग्रह का जिक्र किया गया है तो कुछ ना कुछ अरिष्ट होता ही होगा, लेकिन इन अनिष्टकारी बातों का अध्ययन बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए. कुंडली की सभी बातों का बारीकी से अध्ययन करने के बात ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए.

व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में बाधक ग्रह का सूक्ष्मता से अध्ययन आवश्यक है कि वह कब अरिष्टकारी हो सकते हैं. हर कुंडली में यह अरिष्टकारी ग्रह सुनिश्चित होते ही हैं. इसलिए पहले यह निर्धारित करना चाहिए कि ये कब अशुभ फल प्रदान कर सकते हैं.

एकादश भाव को जन्म कुंडली का लाभ स्थान का लाभ स्थान माना गया है. कुंडली के नवम भाव को भाग्य स्थान के रुप में भी जाना जाता है और जन्म कुंडली के सप्तम भाव से हर तरह की साझेदारी देखी जाती है. जीवनसाथी का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है.

जन्म कुंडली में जब एकादश भाव की दशा या अन्तर्दशा आती है तब यही माना जाता है कि व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति होगी तो क्या हमें यह समझना चाइए कि चर लग्न के व्यक्ति को एकादशेश के बाधक होने से कोई लाभ नहीं मिलेगा? इसलिए एक ज्योतिषी को बिना सोचे समझे किसी नतीझे पर नहीं पहुंचना चाहिए.

इसी तरह से स्थिर लग्न के व्यक्ति की जन्म कुंडली में यदि नवमेश को सबसे बली त्रिकोण माना गया है और भाग्येश है तब यह कैसे अशुभ हो सकता है? सप्तम भाव अगर बाधक का काम करेगा तब तो किसी भी व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय हो ही नहीं सकता है. इसका अर्थ यह हुआ कि द्वि-स्वभाव के लग्न वाले व्यक्तियों के जीवन में सदा ही बाधा बनी रह सकती हैं. बाधक ग्रह के विषय में आँख मूंदकर बोलने से पहले कुंडली का निरीक्षण भली-भाँति करना जरूरी है.

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क्या आपका भी सूर्य गुरु या शनि की राशि में है ?: जाने इसका प्रभाव

आज हम सूर्य की स्थिति को धनु, मकर, कुंभ तथा मीन राशियों में देखेगें. इन चारों राशियों में सूर्य के क्या फल व्यक्ति को मिलते हैं इस बात पर चर्चा की जाएगी.

सूर्य की धनु राशि में विशेषता | Characteristics of Sun in Sagittarius Sign

आज हम आरंभ में हम धनु राशि के सूर्य के फलों को जानेगें कि यह आपको गुणो को किस तरह से प्रभावित करते हैं. आप अच्छी विचारधारा रखने वाले व्यक्ति होते हैं. आपकी विचारधारा से अन्य लोग भी प्रभावित रहते हैं.

आप शांतिप्रिय व्यक्ति होगें और कलह से दूर ही रहने का प्रयास करते हैं. आप स्वतंत्रता व आजादी को चाहने वाले होते हैं इसलिए किसी तरह के बंधन में बंधकर रहना नहीं चाहते हैं. आप सदा दूसरों पर परोपकार करने वाले तथा समाज के सम्मानीय व्यक्ति होते हैं.

आप आशावादी रहते हैं और नकारात्मक विचारों से दूर रहते हैं. आप निष्कपट भावना रखते हैं, कभी छल कपट की बात अपने मन में नहीं लाते हैं. आप अपने सगे संबंधियों की सहायता दिलो जान से करने वाले होते हैं. धनु राशि अग्नि तत्व राशि है और सूर्य भी अग्नि तत्व है इसलिए आप अति शीघ्र उत्तेजित होने वाले व्यक्ति होते हैं.

सूर्य मकर राशि में | Sun in Capricorn Sign

इस भाग में हम अब सूर्य के फलों का मकर राशि के जातक पर प्रभाव देखेगें. मकर राशि को पृथ्वी तत्व राशि माना जाता है, अत: इसके प्रभाव से आप अत्यधिक व्यवहार कुशल व्यक्ति होगें.

आप मजाकिया किस्म के व्यक्ति होगे जिसे हंसना व मजाक करना पसंद होगा. मजाकिया होने के साथ आप थोड़े चुलबुले व्यक्ति भी होगें. आप सदा सक्रिय रहने वाले होते है और किसी ना किसी काम में संलग्न रहते हैं क्योकि मकर राशि चर राशि है. आप कर्मठ व्यक्ति होते हैं इसलिए कभी भी एक स्थान पर टिककर बैठ नहीं सकते हैं.

बहुत बार ऎसा भी होगा कि आपकी सोच में संकीर्णता समाई रह सकती है. आपकी बुद्धि में चंचलता हो सकती है क्योकि मकर रशि चर होने से चंचल मानी जाती है. आप अनुग्रहकारी व्यक्ति होते हैं अर्थात आप उपकार करने वाले तथा शिष्टाचार युक्त व्यक्ति हैं. कोई आपके लिए परोपकार करता है तो आप सदा उसके ऋणी रहते हैं.

सूर्य का फल कुंभ राशि में | Sun’s Results in Aquarius Sign

अब हम आपको कुंभ राशि के सूर्य के फलों के बारे में बताने का प्रयास करेगें. इस राशि में सूर्य के होने से आपके अंदर शारीरिक बल अधिक हो सकता है और आप बलवान व्यक्ति हो सकते हैं.

आप मिलनसार व्यक्तित्व के होते हैं इससे सभी आपसे प्रसन्न रहते हैं. इस राशि में सूर्य के होने से आपको अधिकतर बातों में विरक्ति सी रहती है. आप सांसारिकता से बहुत बार स्वयं को विमुख सा पाते हैं.

आप अन्तर्ज्ञान रखने वाले होते हैं इसलिए घटनाओं का पूर्वाभास भी कर लेते हैं. सदा ही मानव मूल्यो को बढ़ावा देने वाले होते हैं, मानवतावादी होते हैं. आप स्वाभिमानी होते है और इसके लिए किसी से कोई समझौता नहीं करते हैं. आप अति शीघ्र उत्तेजित होने वाले व्यक्ति होते हैं लेकिन आपको अपनी इस आदत पर काबू पाना चाहिए. उत्तेजना में लिया गया फैसला कई बार गलत हो सकता है.

मीन राशि के सूर्य का फल | Sun’s Effects in Pisces Sign

अंत में हम मीन राशि के सूर्य की बात करेगें. इस राशि में सूर्य स्थित होने पर आप धार्मिक तथा सुशिक्षित व्यक्ति होते हैं. धर्म – कर्म को मानने वाले और धार्मिक क्रिया कलापों में लिप्त व्यक्ति होगें.

आप अति संवेदनशील व्यक्ति होते हैं. जरा सी बात से भी आपके दिल को ठेस पहुंचती है. आप स्वभाव से शांत ही होते हैं तथा सभी के साथ मित्रवत व्यवहार करने वाले होते हैं. आपके भीतर सभी बातों को ग्रहण करने की क्षमता होती है और आप शीघ्रता से उन्हें अपना लेते हैं.

आपकी सोच में अधिकाँश समय अस्थिरता ही बनी रहती है. आप जीवन में धन-संपत्ति के साथ – साथ प्रसिद्धि भी पाते हैं. आपका जीवनसाथी अच्छा होता है तथा आपको संतान सुख की प्राप्ति भी होती हैं.

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अष्टकवर्ग से जाने ग्रहों के गोचर का फल

अष्टकवर्ग में किसी राशि या भाव के साथ – साथ ग्रहों पर पड़ने वाली इन आठ प्रकार की ऊर्जाओं को समझने के लिए राशि के 30 अंशों को 3 अंश 45 कला में विभाजित किया गया है. इन्हें ही कक्ष्याएं कहा जाता है. 3 डिग्री 45 मिनट का एक भाग एक कक्ष्या कहलाता है. प्रत्येक कक्ष्या का एक स्वामी होता है जो सभी राशियों में समान होता है. यहां नीचे सारिणी में प्रत्येक कक्ष्या का विस्तार और उसके स्वामी को दर्शाया गया है.

कक्ष्या क्रम राशि में कक्ष्या विस्तार कक्ष्या स्वामी ग्रह की कक्ष्या में रहने समय
1 00 से 3 डिग्री 45 मिनट तक शनि 112 दिन
2 3 डिग्री 45 मिनट से 7 डिग्री 30 मिनट तक बृहस्पति 45 दिन
3 7 डीग्री 30 मिनट से 11 डिग्री 15 मिनट तक मंगल 7 दिन
4 11 डिग्री 15 मिनट से 15 डिग्री 00 मिनट तक सूर्य 3.8 दिन
5 15 डिग्री 00 मिन्ट से 18 डिग्री 45 मिनट तक शुक्र 2.3 दिन
6 18 डिग्री 45 मिनट से 22 डिग्री 30 मिनट तक बुध 22 घंटे
7 22 डिग्री 30 मिनट से 26 डिग्री 15 मिनट तक चंद्रमा 6.9 घंटे
8 26 डिग्री 15 मिनट से 30 डिग्री 00 मिनट तक लग्न


यहां इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि कक्ष्याओं का स्वामित्व पृथ्वी से ग्रहों की दूरी के आधार पर सुनश्चित किया जाता है तथा ग्रहों को सोरमण्डल में उनकी भ्रमण करने की गति के आधार पर कक्ष्याओं का स्वामित्व दिया जाता है. कोई ग्रह जब किसी भी राशि में प्रवेश करता है तो सबसे पहले वह शनि की कक्ष्या में प्रवेश करता है उसके पश्चात गुरू, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्रमा और लग्न में प्रवेश करके शनि को पार करता है.

कोई ग्रह जब किसी ऎसी राशि में गोचर करता है जिसके स्वामी ने उसमें शुभ बिन्दु दिए हों तो उसके द्वारा प्राप्त परिणाम शुभ होते हैं. किसी भी ग्रह ने बिन्दु प्रदान किया है या नहीं उसे प्रस्थारक वर्ग से समझा जा सकता है.

कक्ष्या में गोचर विचार | Analysis Of Transit in Different Sections

कोई ग्रह जब किसी ऎसी कक्ष्या में गोचर करता है जिसके स्वामी ने उसमें बिन्दु देता है तो गोचर का वह ग्रह शुभ प्रभाव देने वाला होता है. अगर एक साथ यदि इस कक्ष्या में एक साथ कई गोचर करते हैं तो अच्छे फल मिलने निश्चित होते हैं.

जब कोई ग्रह किसी ऎसी कक्ष्या में गोचर करता है जिसमें कक्ष्या का स्वामी बिन्दु नहीं देता तो फलों में अशुभता का होना देखा जा सकता है या कोई भी शुभ ग्रह अनुकूल फल नहीं देता है.

ग्रह का ऎसी राशि में गोचर जिसमें यह बिन्दु प्राप्त करता है तो यह धनदायक बनता है. कोई भी ग्रह कुण्डली में अपने स्वामित्व और अपने कारक तत्वों के आधार पर फल देता है.

गोचरस्थ ग्रह और कक्ष्या का स्वामी मित्र हों तो फलों में शुभता बढ़ जाती है. अष्टकवर्ग में यदि दशा व अंतर्दशा का स्वामी ऎसि कक्ष्या में गोचर करता है जिसके स्वामी ने बिन्दु दिए हों तो वह समय विशेष में शुभ फल देते है.

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जैमिनी ज्योतिष सूत्र: ऎसे करते हैं जैमिनी ज्योतिष से फलकथन

प्राचीनतम विद्याओं में बहुत सी गूढ़ विद्याओ का उल्लेख मिलता है. जिनमें वैदिक ज्योतिष का महत्व सबसे मुख्य माना जाता है. इसके अतिरिक्त कृष्णमूर्ति, लाल किताब, हस्तरेखा, अंक शास्त्र आदि अनेको विद्याएँ हैं जिनके द्वारा हम भविष्य कथन करते हैं. इन्हीं विद्याओं में जैमिनी ज्योतिष का भी अपना महत्व है. जैमिनी ज्योतिष वैदिक ज्योतिष भिन्न होती है. इसमें ग्रहों की दशाएँ ना होकर राशियों की दशाएँ होती है. सभी 12 राशियों का दशाक्रम चलता है. ग्रहो में केवल सात ग्रहों को महत्व दिया गया है. जैमिनी दशा की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि यदि व्यक्ति का जन्म समय सही नही है तब भी उसका फलकथन बिलकुल सही किया जा सकता है.

आज हम आपको जैमिनी ज्योतिष की सामान्य बातों की चर्चा करेगें कि यह किस तरह से काम करती हैं.

जैमिनी ज्योतिष में चर दशा | Char (Moving) Dasha in Jaimini Astrology

जैमिनी ज्योतिष भी जन्म कुंडली आंकने की एक प्राचीन विद्या है. इस पद्धति में बहुत सी दशाओं का वर्णन मिलता है. जैसे जैमिनी चर दशा, मंडूक दशा, जैमिनी स्थिर दशा, नवांश दशा आदि. इनके अलावा भी बहुत सी दशाएँ हैं लेकिन इन्ही का उपयोग ज्यादा किया जाता है.

जैमिनी ज्योतिष में सर्वाधिक लोकप्रिय जैमिनी चर दशा है. अन्य सभी दशाओं से यह दशा ज्यादा प्रचलन में है. जैमिनी ज्योतिष में हर दशा की गणना भिन्न होती है. लेकिन एक बात यह समान है दशा राशियों की ही होती है.

जैमिनी ज्योतिष में सभी दशाओं में राशियों की दशा होती है. इसमें सभी बारह राशियों की दशा क्रमानुसार आती है. जन्म के समय लग्न में जो राशि होती है उसी राशि की सबसे पहली महादशा होती है. दशा के वर्ष निर्धारित करने का तरीका भिन्न होता है उसे आने वाली प्रेजेन्टेशन में विस्तार से बताया जाएगा.

इस पद्धति में राशियाँ का स्थान प्रमुख होता है और ग्रहों की गणना केवल कारकों के रुप में की जाती है. इस जैमिनी पद्धति में राहु/केतु को कारको में कोई भी स्थान नही दिया गया है.

जैमिनी ज्योतिष में कारक | Karak Elements in Jaimini Astrology

आइए अब जैमिनी ज्योतिष में कारको पर एक नजर डालते हैं. जैमिनी ज्योतिष में राहु/केतु को छोड़कर सभी सातों ग्रहों को सात कारको में बांटा गया है. इस पद्धति में कारक स्थिर नही होते हैं, ग्रहों का उनके अंशो के आधार पर कारकों के रुप में वर्गीकृत किया जाता है. कोई सा भी ग्रह किसी भी भाव का कारक बन सकता है़.

सभी सातों ग्रहों को उनके अंशो के आधार पर कारको की श्रेणी में रखा जाता है. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक की उपाधि दी जाती है अर्थात जन्म कुंडली में राहु/केतु को छोड़कर अन्य जिस भी ग्रह के अंश सबसे अधिक होगें वह आत्मकारक ग्रह कहलाएगा.

अन्य ग्रह क्रम से अमात्यकारक, भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और सबसे कम अंश वाले को दाराकारक ग्रह की उपाधि दी जाती है. यदि किसी ग्रह के अंश समान हैं तब उसके कारक का निर्धारण मिनटो के आधार पर किया जाएगा और यदि किसी कुंडली में अंश व मिनट दोनो ही समान हैं तब उसका निर्धारण फिर सेकंड के आधार पर किया जाएगा.

जैमिनी ज्योतिष मे कारको का अर्थ | Meaning of Karak Elements in Jaimini Astrology

जैमिनी ज्योतिष में सभी सातों कारको का अर्थ भिन्न होता है. हर कारक जन्म कुंडली के विशेष भाव का प्रतिनिधित्व करता है. आत्मकारक से लग्न का विश्लेषण करते हैं. जिस तरह से लग्न से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है ठीक उसी तरह से आत्मकारक ग्रह व्यक्ति के बारे में बताता है कि कैसा होगा, स्वास्थ्य कैसा रहेगा, आत्मविश्वास कैसा होगा आदि बातों को आत्मकारक से देखा जाएगा.

जन्म कुंडली में जिस ग्रह को अमात्यकारक की उपाधि दी गई है उससे व्यवसाय का विश्लेषण किया जाएगा. भ्रातृकारक बने ग्रह से तीसरे भाव से संबंधित कारकों का आंकलन किया जाएगा. मातृकारक ग्रह से चौथे भाव के कारकत्वो का आंकलन किया जाता है.

पुत्रकारक ग्रह से पांचवें भाव के कारकत्व जैसे शिक्षा, संतान व प्रेम संबंधो को देखा जाएगा. ज्ञातिकारक बने ग्रह से छठे भाव से संबंधित बातों का विश्लेषण किया जाएगा जैसे रोग, ऋण, शत्रु, प्रतिस्पर्धाएँ आदि बाते देखी जाएगी और अंत में दाराकारक बने ग्रह से सप्तम भाव से संबंधित बातों को देखा जाता है.

जैमिनी ज्योतिष में सभी कारको को छोटे नाम से भी पुकारा जाता है. जैसे अमात्यकारक को AK, अमात्यकारक को AMK, भ्रातृकारक को BK मातृकारक को MK कहते हैं. पुत्रकारक को PK, ज्ञातिकारक को GK, दाराकारक को DK भी कहा जाता हैं.

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विदेश में निवास करने के योग | Yogas That Make You Settle Or Travel Abroad

जन्म कुंडली में बहुत से योग मौजूद होते हैं, कुछ शुभ होते हैं तो कुछ योग अशुभ भी होते हैं. कई व्यक्ति अपने ही जन्म स्थान में जीवनभर बने रहते हैं तो कुछ लोगो को जन्म स्थान से दूर रहकर ही सुख की प्राप्ति होती है. कुछ अपना भाग्य आजमाने जन्म स्थान से दूर भी जाते हैं लेकिन कुछ समय बाद किन्ही कारणों से फिर वापिस लौट आते हैं. बहुत से लोग ज्यादा पैसे कमाने की धुन में अपने देश को ही छोड़कर विदेशों में बसना चाहते हैं और बहुत से कामयाब हो जाते हैं लेकिन कुछ ऎसे भी होते हैं जो कुछ समय बाद थोड़ा सा धन कमाकर वापिस स्वदेश आ जाते हैं. आइए कुंडली के उन योगों की चर्चा करें जिसके आधार पर हम यह कह सकें कि व्यक्ति विशेष विदेश में स्थाई रुप से निवास करेगा या नहीं.

  • यदि जन्म कुंडली में लग्नेश व चतुर्थेश बारहवें भाव में स्थित हों तब व्यक्ति विदेश में स्थाई तौर पर निवास करता है.
  • यदि कुंडली के चतुर्थ भाव में बारहवें भाव का स्वामी बैठा हो तब व्यक्ति अपने ही देश में निवास करता है.
  • कुंडली में चतुर्थेश, बारहवें भाव में स्थित हो या चौथा भाव, बारहवें भाव के घटको से प्रभावित हो रहा हो तब जातक लम्बे समय तक विदेश में ही रहता है.
  • लग्नेश व द्वादशेश का आपस में राशि परिवर्तन होना व्यक्ति का विदेश में निवास को दर्शाता है.
  • यदि कुंडली में बारहवें भाव का स्वामी लग्न से केन्द्र या त्रिकोण में स्थित है तब जातक विदेश में समृद्धशाली बनता है.
  • यदि कुंडली में लग्नेश, कमजोर द्वादशेश को देखे जो कि निर्बल या अस्त है तब ऎसा व्यक्ति बहुत दूर स्थान पर अकेले निवास करने वाला होता है. यदि द्वादशेश बली है तब व्यक्ति मेट्रोपोलिटिन शहर में ही निवास करता है.
  • जन्म कुंडली में चंद्रमा का बल देखना बहुत आवश्यक होता है. चंद्रमा मन होता है और कुंडली में लम्बी यात्राओं का प्रतिनिधित्व भी करता है. अगर कुंडली में विदेश से संबंधित योग बली है लेकिन चंद्रमा कमजोर है तब व्यक्ति विदेश यात्रा नहीं कर पाएगा.
  • यदि व्यक्ति चंद्रमा अथवा शुक्र की दशा में विदेश यात्रा जाता है तब वह सैर सपाटे अथवा मौज-मस्ती के लिए विदेश जाता है.
  • जन्म कुंडली में विदेश यात्रा का निर्णय आठवें भाव/आठवें भाव के स्वामी ग्रह और बारहवें भाव अथवा उसके स्वामी ग्रह से करना चाहिए. आठवां भाव निर्वासन का भाव माना गया है.
  • जन्म कुंडली में राहु आठवें भाव में स्थित हो और अष्टमेश दसवें भाव में स्थित हो तब विदेश यात्राएँ होती हैं.

प्रश्न कुंडली से विदेश यात्रा का निर्णय | Determination of Foreign Travel Through Prashna Kundli

कई बार ज्योतिषी के पास व्यक्ति प्रश्न लेकर तो आता है लेकिन उनके पास अपने जन्म का सही विवरण नही होता है. ऎसे में कुशल ज्योतिषी प्रश्न कुंडली का सहारा लेता है और व्यक्ति के सवालों का उत्तर देता है. आइए प्रश्न कुंडली के योगो को जानें.

  • यदि प्रश्न कुंडली के लग्न में चर राशि स्थित है और चर राशि ही नवांश के लग्न में हो या द्रेष्काण के लग्न में आती हो तब व्यक्ति का प्रश्न विदेश से संबंधित हो सकता है और अगर उसका प्रश्न जाने के लिए है तब वह विदेश जा सकता है.
  • यदि प्रश्न कुंडली का लग्नेश, आठवें या नवम भाव में स्थित हो तब भी विदेश से संबंधित प्रश्न हो सकता है और व्यक्ति जा सकता है.
  • प्रश्न कुंडली के लग्न, सातवें व नवम भाव में शुभ ग्रह प्रश्नकर्ता की इच्छा की पूर्ति बताते हैं.
  • प्रश्न कुंडली के लग्न, सातवें व नवम भाव में पापी ग्रह प्रश्नकर्त्ता की विदेश यात्रा में परेशानियों का अनुभव बताते हैं.
  • प्रश्न कुंडली के आठवें भाव में शुभ ग्रह हों तब विदेश में पहुंचने पर व्यक्ति विशेष को लाभ मिलता है.
  • प्रश्न कुंडली के सातवें भाव में सूर्य स्थित हो तब व्यक्ति विदेश से शीघ्र वापिस आएगा.
  • प्रश्न कुंडली के नवम भाव में मंगल स्थित हो तब विदेश यात्रा में व्यक्ति के सामान की हानि हो सकती है और यदि मंगल आठवें भाव में हो तब चोट अथवा दुर्घटना का भय रहता है.
  • प्रश्न कुंडली के सातवें भाव में मंगल स्थित हो तब व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित होने की संभावना बनती है.
  • प्रश्न कुंडली में राहु या शनि सातवें, आठवें या नवम भाव में स्थित हो तब व्यक्ति को बीमारी हो सकती है.
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बारह आदित्यों के नाम | 12 Names of Lord Aditya | 12 Names of Surya

भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य के नाम से भी जाना जाता है. इनके बारह नामों में से एक नाम है. इनके बारह नामों में इनके विभिन्न स्वरूपों की झलक मिलती है. इनका हर रूप एक दूसरे से अलग होता है जो अपने आप में एक अलग महत्व रखता है. यह बारह आदित्य इस प्रकार हैं:-

इन्द्र | Indra

यह भगवान सूर्य का प्रथम रूप है. यह देवाधिपति इन्द्र को दर्शाता है. देवों के राज के रूप में आदित्य स्वरूप हैं. इनकी शक्ति असीम हैं इन्द्रियों पर इनका अधिकार है. शत्रुओं का दमन और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है.

धाता | Dhata

दूसरे आदित्य धाता हैं जिन्हें श्री विग्रह के रूप में जाना जाता है. यह प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है, सामाजिक नियमों का पालन ध्यान इनका कर्तव्य रहता है. इन्हें सृष्टि कर्ता भी कहा जाता है.

पर्जन्य | Parjanya

तीसर आदित्य का नाम पर्जन्य है. यह मेघों में निवास करते हैं. इनका मेघों पर नियंत्रण हैं. वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है.

त्वष्टा | Twashtha

आदित्यों में चौथा नाम श्री त्वष्टा का आता है. इनका निवास स्थान वनस्पति में हैं पेड़ पोधों में यही व्याप्त हैं औषधियों में निवास करने वाले हैं. अपने तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है.

पूषा | Pusha

पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है. समस्त प्रकार के धान्यों में यह विराजमान हैं. इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं उर्जा आती है. अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है.

अर्यमा | Aryama

आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है. यह वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करते हैं.चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं. प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं.

भग | Bhag

सातवें आदित्य हैं भग, प्राणियों की देह में अंग रूप में विध्यमान हैं यह भग देव शरीर में चेतना, उर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करते हैं.

विवस्वान | Vivswana

आठवें आदित्य हैं विवस्वान हैं. यह अग्नि देव हैं, इनमें जो तेज व उष्मा व्याप्त है वह सूर्य से. कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी अगिन द्वारा होता है.

विष्णु | Vishnu

नवें आदित्य हैं विष्णु, देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव विष्णु हैं. संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं.

अंशुमान | Anshumaan

वायु रूप में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वहीं दसवें आदित्य अंशुमान हैं. इन्हीं से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है.

वरूण | Varuna

जल तत्व का प्रतीक हैं वरूण देव. यह ग्यारहवें आदित्य हैं. मनुष्य में विराजमान हैं जीवन बनकर समस्त प्रकृत्ति में के जीवन का आधार हैं. जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है.

मित्र | Mitra

बारहवें आदित्य हैं मित्र. विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, ब्रह्माण का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले हैं मित्र देवता हैं. यह बारह आदित्य सृष्टि के विकासक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

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कुंडली से जानिए कब जा सकते हैं विदेश यात्रा के लिए

वर्तमान समय में हर व्यक्ति विदेश यात्रा करने का इच्छुक है लेकिन कितने लोग जा पाते हैं यह एक भिन्न बात हो जाती है. जिनकी कुंडली में विदेश यात्रा के योग होते हैं,संबंधित दशा व गोचर भी अनुकूल होने पर वह विदेश यात्रा अवश्य करते हैं. तीसरा भाव से छोटी यात्राएँ, सातवें भाव से यात्राएँ और नवें भाव से लम्बी विदेश यात्राएँ देखी जाती है. आठवाँ भाव, बारहवें से नवाँ भाव बन जाता है इसलिए यह देश निकाला दर्शाता है. बारहवाँ भाव आपका पूरी रुप से परिवर्तन दिखाता है और विदेश जाने के लिए व्यक्ति को घर छोड़कर ही जाना पड़ता है. शनि और राहु विदेश यात्रा के कारक ग्रह हैं और अधिकतर ग्रहों का चर राशियों में होना विदेश यात्रा दिखाता है.

विदेश यात्रा के लिए बारहवाँ भाव और बारहवें भाव का स्वामी देखा जाता है. नवम भाव और नवम भाव का स्वामी देखते हैं. लग्नेश या नवें भाव से द्वादश भाव का आंकलन किया जाता है. चंद्र लग्न से नवम और बारहवें भाव का आंकलन किया जाता है.

विदेश यात्रा होने की संभावना | Yogas For Travel In Foreign Countries

  • जन्म कुंडली में बारहवें और नवें भाव में चर राशि हो या इन भावों के स्वामी चर राशियों में स्थित हों.
  • जन्म कुंडली में केतु नवम या बारहवें भाव में जलीय राशि में स्थित हो.
  • कुंडली में चंद्रमा चर राशि में हो या नवम भाव से संबंधित हो या बारहवें भाव से संबंध बना रहा हो तब भी विदेश यात्रा की संभावना बनती है.
  • बारहवाँ भाव या बारहवें भाव का स्वामी अष्टमेश से दृष्ट हो रहा हो.
  • कुंडली में लग्नेश, नवमेश और द्वादशेश से मित्र संबंध रखता हो.
  • जन्म कुंडली का लग्न व लग्नेश दोनो ही चर राशियों में हो और चर राशियों में बैठे ग्रहों से दृष्ट हो रहे हों.
  • बारहवाँ भाव या इसका स्वामी, योगकारक ग्रह से या किसी एक शुभ ग्रह से दृष्ट हो रहा हो या अपनी मूल त्रिकोण राशि से दृष्ट हो रहा हो या अपनी उच्च राशि से दृष्ट हो रहा हो.
  • बारहवें भाव का स्वामी उच्च का हो या अपनी मूलत्रिकोण राशि में एक शुभ ग्रह के साथ हो.
  • कुण्डली में बारहवें भाव के स्वामी की पाप ग्रहों से युति हो रही हो और पाप ग्रह से दृष्ट भी हो रहा हो तब विदेश यात्रा की संभावना बनती है.
  • कुंडली में लग्नेश, आठवें भाव में बैठा हो तब भी विदेश यात्रा होती है क्योकि आठवाँ भाव, बारहवें से नवाँ है.
  • नवम भाव का स्वामी बारहवें भाव को देख रहा हो और द्वादशेश या नवमेश चर राशि में बैठा हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है.
  • बारहवें भाव का स्वामी, नवम भाव को देख रहा हो और द्वादशेश या नवमेश बली होकर चर राशि में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा होती है.
  • जन्म कुंडली में द्वादशेश, बारहवें भाव से नवम भाव में हो और चर राशि में स्थित हो.
  • लग्नेश व चतुर्थेश बारहवें भाव में स्थित हो तब वुदेश यात्रा होती है और व्यक्ति स्थाई रुप से वहाँ निवास भी कर सकता है.
  • द्वादशेश अपनी ही भाव में स्थित हो और लग्नेश व नवमेश लग्न से केन्द्र स्थान में स्थित हो.
  • नवमेश या द्वादशेश कुंडली में राहु या केतु के साथ चर राशि में स्थित हो, विदेश यात्रा के योग होते हैं.
  • राहु कुंडली में बारहवें भाव में हो या बारहवें भाव से चौथे या नवम भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग होते हैं.
  • लग्नेश, नवमेश, या द्वादशेश जल राशियों(4,8,12) या वायु राशियों(3,7,11) में स्थित हों.
  • दशम भाव के स्वामी का तीसरे भाव या बारहवें भाव या इनके स्वामियों से संबंध बन रहा हो, तब ऎसे व्यक्ति की आय का संबंध विदेश से अवश्य बनता है.
  • जन्म कुंडली में सप्तमेश का बारहवें भाव में पड़ने वाली चर राशि या द्वि-स्वभाव राशि से संबंध बन रहा हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं.
  • चतुर्थेश कुंडली में बली होकर बारहवें भाव में स्थित होकर शनि या राहु से दृष्ट हो रहा हो.
  • उपरोक्त योगों के साथ विदेश जाने से संबंधित दशा व गोचर भी जब अनुकूल होता है तब व्यक्ति विदेश जाता है.

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    शुक्र के भिनाष्टकवर्ग का विवेचन | Analysis of Bheenashtakvarga of Venus

    शुक्र के भिनाष्टकवर्ग से जन्म कुण्डली के जातक को शुक्र से प्राप्त होने वाले शुभाशुभ परिणामों की विवेचना के लिए उससे प्राप्त बिन्दुओं की संख्या को जानने की आवश्यकता होती है. शुक्र को वैभव, विलासिता और ऎश्चर्य का कारक माना गया है. कुण्डली में यदि यह खराब होकर 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित हो तो अपने शुभ कारकों में कमी करता है.

    जन्म कुण्डली में शुक्र 4 बिन्दुओं के साथ स्थित होने पर औसत स्तर का फल देता है. अपने मिले जुले फलों के अनुसार उसके परिणामों को प्राप्त किया जाता है. लेकिन 5 से 8 बिन्दुओं के साथ होने पर यह शुभता में वृद्धि करने वाला होता है.

    शुक्र 4 या इससे ज्यादा बिन्दुओं के साथ उच्च के नवांश में हो और मंगल से दृष्ट हो तो जातक जीवनशक्ति से परिपूर्ण दिखाई देता है. अपनी समस्याओं के प्रति सजग रहते हुए उनसे निपटने के लिए तत्पर भी रहता है.

    शुक्र यदि 6, 8 या 12 भाव में 3 से कम बिन्दुओं के साथ हो तो जातक अनैतिक कार्यों की ओर भी अग्रसर रह सकता है. और इस कारण से वह अनैतिक कार्यों के अपराध का कारण भी बन सकता है.

    शुक्र 5 से 8 बिन्दुओं के साथ केन्द्र या त्रिकोण में बैठा हो तो जातक सेना प्रमुख जैसे पदों पर स्थित हो सकता है. जातक वाहन एवं धन से पूर्ण होता है. शुक्र जब अधिक बिन्दुओं वाली किसी राशि में गोचर करता है तो उक्त स्थिति में जातक को साजो सामान की चाह व प्राप्ति हो सकती है, विवाह, कला के प्रति लगाव सुख का अनुभ हो सकता है.

    जन्म कुण्डली में अशुभ ग्रहों से प्रभावित हुए बिना और अधिक बिन्दुओं के यदि शुक्र स्थित है तो इससे जातक को वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है, जीवन साथी के साथ सुखद पलों को बिताने के अवसर मिलते हैं.

    कुण्डली में शुक्र का राशिश 5 या उससे अधिक बिन्दुओं के साथ हो तो सम्पति, वाहन सुख की प्राप्ति होती है. मंगल की राशि में स्थित शुक्र अगर 5 या उससे अधिक बिन्दुओं के साथ हो तो भू-संपदा की प्राप्ति होती है.

    शुक्र के अष्टकवर्ग में अधिकतम बिन्दुओं वाली कक्ष्या में जब भी शुक्र का गोचर होता है तो उस स्थिति विशेष में जातक की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती दिखाई देती है, कन्या संतान का सुख मिलता है. कई प्रकार की अन्य गतिविधियों में शामिल होता है.

    शुक्र 5 से अधिक बिन्दुओं के साथ लग्न में स्थित हो होने पर जातक में आकर्षण का भाव देखा जा सकता है उसका रूप मोहित करने वाला होता है. इसी के सतह केन्द्र में स्थित अधिक बिन्दुओं के साथ शुक्र आकर्षक व्यक्तित्व देता है. कला संगीत के प्रति झुकाव बना रहता है.

    केन्द्र अथवा त्रिकोण भाव में 8 बिन्दुओं के साथ शुक्र स्थित होने पर जातक में योद्धा का रूप विकसित होता है. वायु तत्व वाली राशियों में होने पर जातक वायु सेना में सेना प्रमुख हो सकता है. दीर्घायु का संकेत भी इसी से मिलता है. यदि शुक्र नीच राशि में सातवें आठवें या बारहवें भाव में 7 या 8 बिन्दुओं के साथ हो तो जातक के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं होती.

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    कुंडली के 12 भावों में कमजोर शुक्र ग्रह का फल

    कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो जाते हैं. इसके बलहहीन होने के प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों मेंतनाव को उत्पन्न कर सकते हैं.स्त्रियों की कुंडली में शुक्र के बलहीन होने पर उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. जातक के भीतर शारीरिक वासनाओं को आवश्यकता से अधिक बढ़ा भी सकता है अथवा जातक किसी गुप्त रोग से पीड़ित भी हो सकता है.

    जन्म कुण्डली के लग्न में बैठा शुक्र यदि कमजोर हो तो व्यक्ति अपने आप को अधिक बेहतर समझने वाला होगा. स्वंय पर खर्च करने वाला और दिखावा भी कर सकता है. भाग्य के भरोसे रहने वाला होता है.

    दूसरे भाव में स्थित कमजोर शुक्र होने से जातक बातों में गुमावदार हो सकता है. बड़-चढ़कर बोलने वाला, मिथ्याभाषी भी हो सकता है. संपत्ति के सद-उपयोग नहीं कर पाता है.

    तृतीय भाव में बलहीण शुक्र के होने से व्यक्ति में मोह अधिक रहता है. भाई बहनों से युक्त होता है. किंतु उनसे प्रतिद्वंदिता बनी रह सकती है.

    चतुर्थ भाव में बलहीन चंद्रमा के होने पर माता के सुख में कमी आती है, माता को कष्ट या दूरी हो सकता है. वाहनों का सुख पूर्णता नहीं मिल पात अकोई न कोई परेशानी बनी रह सकती है.

    पंचम भाव में शुक्र के बलहीन होने पर जातक के लव-अफेयर अधिक हो सकते हैं. प्रेम संबंधों में कई बार उतार-चढा़व की स्थिति बनी रहती है. जातक को प्रेम संबंधों में संतुष्टि का अनुभव नहीं मिल पाता है.

    छठे भाव में बलहीन शुक्र के होने पर व्यक्ति बुरे लोगों की संगत में पड़ सकता है. व्यसनों का आदि हो सकता है. इस भाव में शुक्र के बलहिण होने पर व्यक्ति पर लांछन लगने की स्थिति भी बनी रह सकती है.

    सप्तम भाव में कमजोर शुक्र के होने पर जातक के विवाह में देरी हो सकती है. जातक के संबंध एक से अधिक भी रह सकते हैं वैवाहिक सुख में कमी भी रहती है.

    आठवें भाव में शुक्र के कमजोर होने पर जातक का व्यवहार काफी सीमित हो सकता है धर्म से विमुख भी हो सकता है तथा अपने में गुप्त रहने वाला अपनी बातों को सभी के समझ न कहने वाला हो सकता है. जातक को गुप्त रोग भी प्रभावित कर सकते हैं.

    नवम भाव में कमजोर शुक्र के होने से जातक यात्राओं से परेशानी झेल सकता है. तीर्थयात्राओं में अधिक रूचि नहीं लेता. भगय भाव में कमी का अनुभव रहता धर्म के प्रति उदासीन रह सकता है.

    दशम भाव में कमजोर शुक्र के होने पर व्यवसाय में जैसे पानी से संबंधी या कपडे के व्यापार में मुनाफा नहीं मिल पाता. प्रतिद्वंदियों का हस्तक्षेप बना रह सकता है.

    एकादश भाव में बलहीन शुक्र के होने पर गुणों से रहित संतान की ओर से परेशानी झेलनी पड़ सकती है. लाभ में कमी बनी रहती धन का अनावश्यक खर्च होता है

    द्वादश भाव में शुक्र की स्थिति व्यक्ति के सुखों में कमी लाती है. उसे भौतिक सुखों में कमी का अनुभव होता है. ज्योति प्रभावित हो सकती है.

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    कमजोर बृहस्पति के फल | Effects of Weak Jupiter in Different Houses

    कोई ग्रह कुण्डली में किस अवस्था में है यदि ग्रह नीच का है, वक्री है, पाप ग्रहों के साथ है या इनसे दृष्ट है, खराब भावों में स्थित है, षडबल में कमजोर है, अन्य अवस्थाओं में निर्बल हो इत्यादि तथ्यों से ग्रह के कमजोर होने कि स्थिति का पता लगाया जा सकता है. ग्रह के कमजोर या बलहीन होने पर उसके शुभत्व में कमी आती है और उक्त ग्रह अपने पूर्ण प्रभाव को देने में सक्षम नहीं हो पाता.

    बृहस्पति के प्रथम भाव में कमजोर होने पर होने के कारण जातक के आत्मविश्वास में कमी रहती है. फैसले लेने में संकोची होता है. बलहीन गुरू ज्ञान में कमी देता है व्यक्ति में समझ का दायरा सीमित रह सकता है.

    दूसरे भाव में स्थित बलहीन गुरू के होने पर पैतृक संपति का विवाद झेलना पड़ सकता है. धन की हानि हो सकती है. जातक को अपने परिश्रम द्वारा ही कुछ लाभ मिल सकता है. व्यक्ति में वाक चातुर्य नहीं आ पाता. परिवार मे विवाद बने रहते हैं.

    तीसरे भाव में बलहीन गुरू के होने पर भाई बहनों का सुख नहीं मिलता या भाई बहनों की स्थिति ठीक नहीं रहती. परिश्रम करने से बचने का प्रयास करता है.

    चतुर्थ भाव में होने पर बलहीन गुरू इस भाव के शुभ तत्वों में कमी आती है. इसके प्रभाव से माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. मन में अशांति का भाव भी बना होता है. सुख सुविधाओं में कमी का अनुभव हो सकता है. माता से दूरी हो सकती है.

    पंचम भाव में कमजोर चंद्रमा के होने से जातक को शिक्षा में कमी का अनुभव करना पड़ सकता है. बौद्धिकता का स्तर कम रहता है. एकाग्रता में कमी भी हो सकती है. संतान की ओर से दुख की प्राप्ति होती है. पांचवा भाव कमजोर स्थिति को पाता है.

    छठे भाव में बलहीन गुरू के होने से जातक का मामा पक्ष से दूरी रह सकती है. रोग,ऋण व शत्रु आप पर हावी हो सकते हैं. आपका शौर्य कम होता है.

    सातवें भाव में बलहीन गुरू के होने से विवाह विलंब से हो सकता है, जीवन साथी के साथ अनबन एवं मतभेद उभर सकते हैं, साथी के सुख में कमी आती है या जीवन साथी से दूरी भी रह सकती है. सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने में काफी परिश्रम करना पड़ता है.

    आठवें भाव में गुरू बलहीन होकर ससुराल पक्ष से तनाव की स्थिति दे सकता है. कार्यों में रूकावट देता है, दुर्बलता व स्वास्थ्य में कमी होती है. आयुष को खतरा बना रहता हैं.

    नवम भाव कमजोर बृहस्पति के होने से धार्मिक कार्यो मे रुचि नहीं रहती तथा भाग्य में अड़चनें आती हैं. पिता को तनाव या स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. गलत कार्यों की ओर झुकाव रख सकता है.

    दसवें भाव में बलहीन सूर्य के होने से व्यवसाय के क्षेत्र में उतार चढाव बने रह सकते हैं. कार्य मे सफलता नहीं मिलती हो, काम बदलते रहते हो और एक कार्य में टिकाव नहीं मिल पाता.

    एकादश भाव में बलहीन गुरू के होने पर बड़े भाई से तनाव या दूरी रह सकती है. लाभ में कमी होती है.

    द्वादश भाव में कमजोर गुरू के होने पर खर्चों में वृद्धि रह सकती है. नेत्र संबंधी तकलीफ भी हो सकती है. शय्या सुख में कमी आती है.

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