अष्टकवर्ग में इन्दु लग्न का उपयोग | Use of Indu Lagna in Ashtakavarga

अष्टकवर्ग में इन्दु लग्न द्वारा जातक के आर्थिक स्तर का पता लगाया जाता है. सर्वाष्टकवर्ग का प्रयोग कुण्डली में भाव और भावेश के बल का पता लगाने के लिए किया जाता है. सामान्यत: कुण्डली में लग्न समेत समस्त भावों का विश्लेषण करते हुए इस सबके एक दूसरे के साथ संबंधों द्वारा बनने वाले धन योगों की व्याख्या की जाती है. किंतु इन्दु लग्न से आर्थिक सम्पन्नता का पता लगाने के लिए इससे दूसरे और ग्यारहवें भाव और उसके भावेशों की स्थिति देखनी चाहिए. सर्वाष्टकवर्ग में अगर इन भावों से प्राप्त बिन्दुओं को भी शामिल करते हैं तो धन एवं समृद्धि के स्तर को समझने में सहायता मिल सकेगी.

लग्न और चतुर्थ भाव में यदि 33 बिन्दु हों तथा इनके स्वामी भाव परिवर्तन की स्थिति में हों तो इस स्थिति में जातक को धन की प्राप्ति बनती है.

दसवें भाव और बारहवें भावों की अपेक्षा एकादश भाव में अधिक बिन्दु होने पर यह स्थिति अनुकूल मानी जाती है इसमें जातक को आर्थिक स्थिति में संतोष का अनुभव होता है. इसी के साथ साथ यदि लग्न में बारहवें भाव से ज्यादा बिन्दु हों तो जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है और वह अपनी सामाजिक स्थिति में मजबूती पाता है.

लग्न, नवम, दशम और एकादश भावों में 30 या इससे अधिक बिन्दु हों तो ऎसा जातक जीवन के सभी क्षेत्रों में आर्थिक लाभ की प्राप्ति करता है जीवन पर्यंत धन की प्राप्ति होती है. यदि लग्न, नवम, दशम और एकादश भावों में 25 से कम बिन्दु हों व पाप ग्रह त्रिकोण भावों में स्थित हों तो जातक को धन की भारी किल्लत उठानी पड़ती है. आर्थिक क्षेत्र में उसें परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है.

लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, नवम, दशम और एकादश भावों में बिन्दुओं का योग यदि 164 से ज्यदा बनता हो तो ऎसा जातक धन से युक्त होता है. अपनी सुख सुविधाओं के प्रति खर्च भी करता है. इसके अतिरिक्त यदि 6, 8 और 12वें भाव के बिन्दुओं का योग 76 से कम बनता है तो जातक को के कर्चे सीमित रहते हैं या कह सकते हैं कि खर्चों से अधिक मुनाफा मिलता है.

दूसरे भाव में यदि बारहवें भाव से ज्यादा बिन्दु हों तो जातक अपने धन को कम खर्च करता है. अपने सुख के लिए भी अधिक पैसों का उपयोग नहीं करता है. उसकी प्रवृत्ति धन का संचय करने की ओर अधिक होती है.

बारहवें भाव में एकादश भाव से अधिक बिन्दु होने पर जातक के खर्चे अधिक रहते हैं. साथ ही साथ यह भी होता है कि वह विदेशों से भी धन लाभ करता है. पर इन सभी व्याख्याओं में कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि इन सभी में हमें पराशर जी के सिद्धांतों का भी पालन करना चाहिए जिससे की पूर्ण रूप से फलों की प्राप्ति संभव हो सके. कई ज्योतिषी आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए दूसरे भाव और एकादश भाव से भी इन्दु लग्न की गणना करते हैं. इस गणना में लग्न से दुसरे और चंद्रमा से दूसरे भाव में नवमेंशों अर्थात लग्न और चंद्रमा के दशमेशों की कलाओं का योग करके संख्या प्राप्त की जाती है.

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ऎसे पढ़ते हैं जन्म कुंडली, और जान सकते हैं अपनी कुंडली के राज

जन्म कुंडली का विश्लेषण करने से पूर्व किसी भी कुशल ज्योतिषी को पहले कुंडली की कुछ बातो का अध्ययन करना चाहिए. जैसे ग्रह का पूरा अध्ययन, भावों का अध्ययन, दशा/अन्तर्दशा, गोचर आदि बातों को देखकर ही फलकथन कहना चाहिए. आज इस लेख के माध्यम से हम कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाए सीखने का प्रयास करेगें.

जन्म कुंडली में ग्रह को समझने के लिए कुछ बातों पर विचार किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं.

  • सबसे पहले यह देखें कि ग्रह किस भाव में स्थित है और किन भावों का स्वामी है.
  • ग्रह के कारकत्व क्या-क्या होते हैं.
  • ग्रहों का नैसर्गिक रुप से शुभ व अशुभ होना देखेगें.
  • ग्रह का बलाबल देखेगें.
  • ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा देखेगें कि कब आ रही है.
  • जन्म कालीन ग्रह पर गोचर के ग्रहों का प्रभाव.
  • ग्रह पर अन्य किन ग्रहों की दृष्टियाँ प्रभाव डाल रही हैं.
  • ग्रह जिस राशि में स्थित है उस राशि स्वामी की जन्म कुण्डली में स्थिति देखेगें और उसका बल भी देखेगें.
  • ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति के बाद जन्म कुंडली के साथ अन्य कुछ और कुंडलियों का अवलोकन किया जाएगा, जो निम्न हैं.

  • जन्म कुंडली के साथ चंद्र कुंडली का अध्ययन किया जाना चाहिए.
  • भाव चलित कुंडली को देखें कि वहाँ ग्रहों की क्या स्थिति बन रही है.
  • जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के बलों का आंकलन व योगों को नवांश कुंडली में देखा जाना चाहिए.
  • जिस भाव से संबंधित फल चाहिए होते हैं उससे संबंधित वर्ग कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. जैसे व्यवसाय के लिए दशमांश कुंडली और संतान प्राप्ति के लिए सप्ताँश कुंडली. ऎसे ही अन्य कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए.
  • वर्ष कुंडली का अध्ययन करना चाहिए जिस वर्ष में घटना की संभावना बनती हो.
  • ग्रहों का गोचर जन्म से व चंद्र लग्न से करना चाहिए.
  • अंत में कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक कुशल ज्योतिषी अथवा कुंडली का विश्लेषण करने वाले को अवश्य ही अपने मन-मस्तिष्क में बिठाकर चलना चाहिए.

  • जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहो की अंशात्मक युति देखनी चाहिए और भावों की अंशात्मक स्थित भी देखनी चाहिए कि क्या है. जैसे कि ग्रह का बल, दृष्टि बल, नक्षत्रों की स्थिति और वर्ष कुंडली में ताजिक दृष्टि आदि देखनी चाहिए.
  • जिस समय कुंडली विश्लेषण के लिए आती है उस समय की महादशा/अन्तर्दशा/प्रत्यन्तर दशा को अच्छी तरह से जांचा जाना चाहिए.
  • जिस समय कुंडली का अवलोकन किया जाए उस समय के गोचर के ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए.
  • आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है.

  • जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है.
  • उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं.
  • भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है.
  • भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें.
  • जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें.
  • भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है.
  • भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें.
  • भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें.
  • भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें.
  • भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें.
  • भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली – भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है.

  • उपरोक्त बातों के साथ हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किसी भी कुंडली का सामान्य रुप से अध्ययन करने के लिए लग्न, लग्नेश, राशिश, इन पर पड़ने वाली दृष्टियाँ और अन्य ग्रहो के साथ होने वाली युतियों पर ध्यान देना चाहिए. इसके बाद नवम भाव व नवमेश को देखना चाहिए कि उसकी कुंडली में क्या स्थिति है क्योकि यही से व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण होता है. लग्न के साथ चंद्रमा से भी नवम भाव व नवमेश का अध्ययन किया जाना चाहिए. इससे कुंडली के बल का पता चलता है कि कितनी बली है. जन्म कुंडली में बनने वाले योगो का बल नवाँश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए. नवाँश कुंडली के लग्न तथा लग्नेश का बल भी आंकना जरुरी है.

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    नक्षत्र और शरीर के अंग | Relation Between Nakshatra and Body Parts

    वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों को भी शरीर के आधार पर वर्गीकृत किया गया है. सभी नक्षत्र शरीर के किसी ना किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते ही हैं और इन अंगों से संबंधित परेशानी भी व्यक्ति को हो जाती हैं. जो नक्षत्र जन्म कुंडली में पीड़ित होता है उससे संबंधित बीमारी व्यक्ति को होने की संभावना बनती है अथवा जब कोई नक्षत्र गोचर में भी पीड़ित अवस्था में चल रहा हो तब उससे संबंधित परेशानी होने की भी संभावना बनती है. इस लेख के माध्यम से आज आपके सामने नक्षत्र व उससे संबंधित शरीर के अंगों के बारे में बताया जाएगा.

    अश्विनी | Ashwini Nakshatra

    अश्विनी नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. यह पहला नक्षत्र है और इसलिए यह सिर का प्रतिनिधित्व करता है. मस्तिष्क संबंधित जितनी भी बाते हैं उन सभी को अश्विनी नक्षत्र से देखा जाता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं से संबंधित बीमारियों का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है.

    भरणी | Bharani Nakshatra

    भरणी नक्षत्र दूसरे स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और शुक्र इसके इसके अधिकार क्षेत्र में मस्तिष्क का क्षेत्र, सिर के अंदर का भाग व आँखे आती है. जन्म कुंडली या गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

    कृत्तिका | Krittika Nakshatra

    यह तीसरा नक्षत्र है और सूर्य इसके स्वामी हैं. इस नक्षत्र के अन्तर्गत, सिर, आँखें, मस्तिष्क, चेहरा, गर्दन, कण्ठनली, टाँसिल व निचला जबड़ा आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर आपको इससे संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है.

    रोहिणी | Rohini Nakshatra

    यह चौथा नक्षत्र है और इसके स्वामी चंद्रमा है. इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में चेहरा, मुख, जीभ, टांसिल, गरदन, तालु, ग्रीवा, कशेरुका, अनुमस्तिष्क आते हैं. जन्मकालीन रोहिणी नक्षत्र अथवा गोचर का यह नक्षत्र जब पीड़ित होता है तब इन अंगो में पीड़ा का अनुभव व्यक्ति को होता है.

    मृगशिरा | Mrigasira Nakshatra

    यह नक्षत्र पांचवें स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह मंगल है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में ठोढ़ी, गाल, स्वरयंत्र, तालु, रक्त वाहिनियाँ, टांसिल, ग्रीवा की नसें आती हैं. तीसरे व चौथे चरण में गला आता है और गले की आवाज आती है. बाजु व कंधे आते हैं, कान आता है. ऊपरी पसलियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित समस्या से जूझना पड़ता है.

    आर्द्रा | Ardra Nakshatra

    यह छठे स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. इस नक्षत्र के अधिकार में गला आता है, बाजुएँ आती है और कंधे आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है.

    पुनर्वसु | Punarvasu Nakshatra

    यह सातवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बृहस्पति है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे भाग के अधिकार में कान, गला व कंधे की हड्डियाँ आती हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में फेफड़े, श्वसन प्रणाली, छाती, पेट, पेट के बीच का भाग, पेनक्रियाज, जिगर तथा वक्ष आता है. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इस नक्षत्र से संबंधित भागों में बीमारी होने की संभावाना बनती है.

    पुष्य | Pushya Nakshatra

    यह भचक्र का आठवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी शनि है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफ़ड़े, पेट तथा पसलियाँ आती हैं. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इससे संबंधित शरीर के अंग में पीड़ा पहुंचती है.

    आश्लेषा | Ashlesha Nakshatra

    यह नौवां नक्षत्र है और इसका स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफड़े, इसोफेगेस, जिगर, पेट का मध्य भाग, पेनक्रियाज आता है. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को होती हैं.

    मघा | Magha Nakshatra

    यह भचक्र का दसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत पीठ, दिल, रीढ़ की हड्डी, स्पलीन, महाधमनी, मेरुदंड का पृष्ठीय भाग आते हैं. जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होगा तब व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से होकर गुजरना पड़ेगा.

    पूर्वाफाल्गुनी | Poorva Phalguni Nakshatra

    यह ग्यारहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत मेरुदंड व दिल आता है और जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन दोनो से संबंधित कोई शारीरिक समस्या हो सकती है.

    उत्तराफाल्गुनी | Uttara Phalguni Nakshatra

    यह बारहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में मेरुदंड आता है. दूसरे, तीसरे व चौथे चरण में आंते आती है, अंतड़ियाँ आती हैं और इसका निचला भाग आता है. जन्म कुंडली में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है.

    हस्त | Hasta Nakshatra

    यह तेरहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी चंद्रमा है. इसके अधिकार में आंते, अंतड़ियाँ, अंत:स्त्राव ग्रंथियाँ, इंजाइम्स आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों में पीड़ा होने की संभावना बनती है.

    चित्रा | Chitra Nakshatra

    यह भचक्र का चौदहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी मंगल ग्रह है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में उदर का निचला भाग आता है, तीसरे व चौथे चरण में गुरदे, कटि क्षेत्र, हर्निया, मेरुदंड का निचला भाग, नसों की गति आदि आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों में कष्ट होता है.

    स्वाति | Swati Nakshatra

    यह भचक्र का पंद्रहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. त्वचा, गॉल ब्लैडर, गुरदे, मूत्रवाहिनी इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से जुड़ी बीमारी होने की संभावना बनती है.

    विशाखा | Vishaka Nakshatra

    यह सोलहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी बृहस्पति हैं. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे चरण में पेट का निचला हिस्सा, गॉल ब्लैडर के आसपास के अंग, गुरदा, पेनक्रियाज संबंधित ग्रंथि आती है. चौथे चरण में ब्लैडर, मूत्रमार्ग, गुदा, गुप्तांग तथा प्रौस्टेट ग्रंथि आती है.

    अनुराधा | Anuradha Nakshatra

    यह भचक्र का सत्रहवाँ नक्षत्र है और शनि इसका स्वामी है. ब्लैडर, मलाशय, गुप्तांग, गुप्तांगों के पास की हड्डियाँ, नाक की हड्डियाँ आदि सभी इस नक्षत्र के अंदर आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित समस्याओं से होकर गुजरना पड़ता है.

    ज्येष्ठा | Jyeshta Nakshatra

    यह भचक्र का अठारहवाँ नक्षत्र है और बुध इसका स्वामी है. गुदा, जननेन्द्रियाँ, बृहदआंत्र, अंडाशय तथा गर्भ ज्येष्ठा नक्षत्र में आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.

    मूल | Moola Nakshatra

    यह भचक्र का उन्नीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अंतर्गत कूल्हे, जांघे, गठिया की नसें, ऊर्वस्थि, श्रांणिफलक आदि अंग आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़े रोग हो सकते हैं.

    पूर्वाषाढ़ा | Poorvashada Nakshatra

    यह भचक्र का बीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है. इसके अन्तर्गत कूल्हे, जांघे, नसें, श्रोणीय रक्त ग्रंथियाँ, मेरुदंड का सेक्रमी क्षेत्र आदि अंग आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगो से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.

    उत्तराषाढ़ा | Uttarashada Nakshatra

    यह इक्कीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में जांघे आती हैं, ऊर्वस्थि रक्त वाहिनियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के दूसरे, तीसरे व चौथे चरण में घुटने व त्वचा आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है.

    श्रवण | Shravana Nakshatra

    यह भचक्र का बाईसवाँ नक्षत्र है और चंद्रमा इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत घुटने, लसीका वाहिनियाँ तथा त्वचा आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.

    धनिष्ठा | Dhanishta Nakshatra

    यह भचक्र का तेईसवाँ नक्षत्र है और मंगल इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में घुटने की ऊपर की हड्डी आती है जो टोपी के समान दिखती है. तीसरे व चतुर्थ चरण में टखने, टखने और घुटनों के बीच का भाग आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों में परेशानी का अनुभव होता है.

    शतभिषा | Satabhisha Nakshatra

    यह भचक्र का चौबीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी राहु है. घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस पेशियाँ इस नक्षत्र के अन्तर्गत आती हैं. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.

    पूर्वाभाद्रपद | Purva Bhadrapada Nakshatra

    यह भचक्र का पच्चीसवाँ नक्षत्र है और बृहस्पति इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे चरण में टखने आते हैं. चतुर्थ चरण में पंजे व पांव की अंगुलियाँ आती है. जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होगा तब इन अंगों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.

    उत्तराभाद्रपद | Uttara Bhadrapada Nakshatra

    यह भचक्र का छब्बीसवाँ नक्षत्र है और शनि इसके स्वामी है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत पैर के पंजे आते हैं. जन्म कुंडली में अथवा गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को पंजों से संबंधित परेशानी से गुजरना पड़ सकता है.

    रेवती | Revati Nakshatra

    यह भचक्र का सत्ताईसवाँ व अंतिम नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अधिकार में पंजे व पैर की अंगुलियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़ी बीमारी हो सकती है.

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    जन्म कुंडली में राजभंग योग | Raj Bhang Yoga in Janam Kundali

    वैदिक ज्योतिष में बहुत से योगो का वर्णन मिलता है. बहुत से अच्छे होते हैं और बहुत से बुरे योग भी होते हैं. कुछ व्यक्तियों को जीवनभर अच्छे योग ही मिलते हैं तो कुछ दुर्भाग्यशाली होते हैं और पूरा जीवन संघर्षों में बीत जाता है. यह उनके पूर्व जन्मों के फल के कारण भी हो सकता है. कुछ व्यक्ति जीवन में मिश्रित फलों को पाते हैं. सभी व्यक्तियों की कुंडली में शुभ व अशुभ योग बने होते हैं. जिन योगो की अधिकता होती है वही जीवन में मिलते है. कई जन्म कुंडलियाँ ऎसी भी होती है जिनमें राजयोग तो बना होता है लेकिन वह बनने के साथ ही भंग भी हो जाता है इस कारण उन राजयोगों का फल व्यक्ति को उनकी दशा आने पर भी नहीं मिलता है.

    आइए आज इस लेख के माध्यम से हम जन्म कुंडली में राजयोगो के भंग होने के बारे में जाने कि वह कौन से योग हैं जिनके कारण राजयोग भंग हो जाता है.

    • यदि जन्म कुंडली में सूर्य अपनी उच्च राशि में स्थित है लेकिन नवांश कुंडली में सूर्य नीच राशि तुला में चला गया है और पाप ग्रह से दृष्ट हो या संबंध बना रहा हो तब यह राजयोग भंग हो जाता है. सूर्य को जो शुभ फल देने चाहिए वह उन्हें नही देता है.
    • कुंडली में नवमेश द्वादश भाव में यदि पाप या अशुभ ग्रहों के साथ स्थित हो तब भी शुभ फल नहीं मिलते हैं.
    • जन्म कुंडली के केन्द्र स्थान में शनि स्थित हो, लग्न में चंद्रमा और द्वादश भाव में बृहस्पति स्थित हो तब भी कुंडली के शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • जन्म कुंडली और नवांश कुंडली दोनो में ही शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में स्थित हो तब भी कुंडली के शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • जन्म कुंडली के छठे भाव में यदि सूर्य व चंद्रमा एक साथ स्थित हों और शनि का इनसे संबंध बन रहा हो तब भी कुंडली के शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • कुंडली में मेष राशि में चंद्रमा, मंगल के साथ स्थित होकर शनि से दृष्ट हो लेकिन किसी भी शुभ ग्रह का उनके साथ संबंध ना बन रहा हो.
    • जन्म कुंडली के केन्द्र में सूर्य, चंद्रमा व शनि स्थित हो तब भी राजयोग भंग होने की संभावना बनती है.
    • जन्म कुंडली के दूसरे भाव में शनि अपने परम नीच अंशो में स्थित हो तब कुंडली के शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • कुंडली में पंचम भाव में परम नीच अंशो पर शुक्र स्थित होने से भी कुंडली के अन्य शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • जन्म कुंडली में बृहस्पति अपनी नीच राशि में स्थित हो और कोई अन्य नीच का ग्रह उसे देख रहा हो.
    • जन्म कुंडली में लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त हो और बृहस्पति व शुक्र अस्त हों.
    • कुंडली में चतुर्थेश पाप ग्रहों से युत होकर अस्त भी हो तब भी शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • कुंडली में नवमेश अस्त हो द्वितीयेश व लग्नेश नीच राशि में स्थित हो तब शुभ योग भंग हो जाते हैं.
    • कुंडली में लग्नेश कमजोर अवस्था में स्थित हो और अष्टमेश देख रहा हो तथा बृहस्पति अस्त हो तब भी शुभ योग भंग हो जाते हैं.

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    जन्म कुंडली में मकान बनाने के योग | Yogas for Acquiring Property in a Kundali

    एक अच्छा घर बनाने की इच्छा हर व्यक्ति के जीवन की चाह होती है. व्यक्ति किसी ना किसी तरह से जोड़-तोड़ कर के घर बनाने के लिए प्रयास करता ही है. कुछ ऎसे व्यक्ति भी होते हैं जो जीवन भर प्रयास करते हैं लेकिन किन्हीं कारणो से अपना घर फिर भी नहीं बना पाते हैं. कुछ ऎसे भी होते हैं जिन्हें संपत्ति विरासत में मिलती है और वह स्वयं कुछ भी नहीं करते हैं. बहुत से अपनी मेहनत से एक से अधिक संपत्ति बनाने में कामयाब हो जाते हैं. जन्म कुंडली के ऎसे कौन से योग हैं जो मकान अथवा भूमि अर्जित करने में सहायक होते हैं, उनके बारे में आज इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेगें.

    • स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, तभी व्यक्ति घर बना पाता है.
    • मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है, इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए.
    • मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है.
    • मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है.
    • मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है. इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है.
    • चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है.
    • चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है.
    • चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं. एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं.
    • यदि चतुर्थेश, एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है.
    • कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं.
    • जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं.
    • चतुर्थ, अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं.
    • चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है.
    • जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए.
    • भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं.
    • चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश, चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए. यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है.
    • मकान अथवा भूमि से संबंधित सभी योगो का आंकलन जन्म कुंडली, नवांश कुंडली व चतुर्थांश कुंडली में भी देखा जाता है. यदि तीनों में ही बली योग हैं तब बिना किसी के रुकावटों के घर बन जाता है. जितने बली योग होगें उतना अच्छा घर और योग जितने कमजोर होते जाएंगे, घर बनाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
    • जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है. उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा. बहुत ज्यादा घर बदल सकता है.
    • चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है.
    • वर्तमान समय में चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बनने पर व्यक्ति बैंक से लोन लेकर या किसी अन्य स्थान से लोन लेकर घर बनाता है.
    • चतुर्थ भाव का संबंध यदि दूसरे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपनी माता की ओर से भूमि लाभ होता है.
    • चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है.
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    मीन लग्न | Pisces Ascendant | Characteristics of Pisces Sign

    लग्नों की श्रृंखला में आपको सभी ग्यारह लग्नों के बारे में बताया गया है. उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम आज भचक्र के अंतिम लग्न अर्थात मीन लग्न की बात करेगें. इस लग्न के लिए शुभ्-अशुभ ग्रहों के बारे में बताया जाएगा. कौन से रत्न आपके लिए उपयोगी रहेगें, इसकी जानकारी भी दी जाएगी.

    मीन राशि की विशेषताएँ | Characteristics of Pisces Ascendant

    मीन राशि भचक्र की अंतिम राशि है. इसका विस्तार 330 अंश से 360 अंश तक फैला हुआ है. इस राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति है और इसे भचक्र की सबसे शुभ व पवित्र राशि माना गया है.

    इस राशि का प्रतीक चिन्ह दो मछलियाँ हैं जो परस्पर एक्-दूसरे के विपरीत मुख कर के स्थित है. यह जलतत्व राशि है और स्वभाव से यह द्वि-स्वभाव मानी गई है. मीन राशि में बुध नीच का होता है तो शुक्र उच्च का हो जाता है.

    मीन लग्न का व्यक्तित्व | Pisces Ascendant and Your Characteristics

    मीन लग्न होने से आपके व्यक्तित्व के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बाते बताने का प्रयास करते हैं. आपका लग्न मीन होने से आप धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति होगें. आप संयमी, ज्ञानी, अन्तर्मुखी व कृतज्ञ व्यक्ति होते हैं. आपके अंदर सहनशक्ति होती है और आपके अंदर ज्ञान का भंडार होता है. आपका स्वभाव अन्तर्मुखी होने से आप कम ही बोलते हैं.

    मीन लग्न जलतत्व होने से आप दूसरों से सरलता से प्रभावित हो जाते हैं. आप जीवन में सदा परिवर्तन की चाह रखते हैं क्योकि आपका लग्न द्वि-स्वभाव है इसलिए आप शीघ्र ही एक चीज से ऊब जाते हैं. अधिकांश समय आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है.

    मीन लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Pisces Ascendant

    मीन लग्न के लिए शुभ ग्रहों की बात करते हैं. इस लग्न के लिए सबसे अधिक शुभ मंगल व चंद्रमा होते हैं. मंगल धनेश व भाग्येश होते हैं और चंद्रमा पंचम भाव के स्वामी होकर शुभ होते हैं. बृहस्पति लग्नेश है लेकिन मीन लग्न के लिए यह केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होता है इसलिए ज्यादा शुभ फल नही दे पाता. जन्म कुंडली में बृहस्पति यदि अत्यधिक बली अवस्था में स्थित है तब शुभ फल दे सकता है.

    मीन लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Pisces Ascendant

    मीन लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में चर्चा करें. इस लग्न के लिए सूर्य षष्ठेश होकर अशुभ माना गया है. बुध चतुर्थेश व सप्तमेश होकर ज्यादा शुभ नहीं है. इसे केन्द्राधिपति होने का दोष लगता है. शनि एकादशेश व द्वादशेश होकर शुभ नहीं हैं. मीन लग्न के लिए शुक्र बिलकुल अशुभ होता है. यह तीसरे व अष्टम भाव के स्वामी होते हैं.

    मीन लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Pisces Ascendant

    अंत में हम आपको शुभ रत्नों के बारे में जानकारी देना चाहेगें. मीन लग्न के लिए बृहस्पति लग्नेश होता है इसलिए इसका पुखराज धारण करना शुभ होता है. मंगल ग्रह के लिए मूंगा पहन सकते हैं. मंगल नवम भाव अर्थात भाग्य भाव के स्वामी होते हैं.

    चंद्रमा आपकी कुंडली में पंचम भाव के स्वामी होते हैं तो आप इसके लिए मोती पहन सकते हैं. जन्म कुंडली में जब शुभ ग्रह कमजोर हों तभी आप उनका रत्न पहनें अन्यथा नहीं. जन्म कुंडली में यदि अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब मंत्र जाप नियमित रुप से करना चाहिए. इससे अशुभ फलों में कमी आती है.

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    कुंभ लग्न | Aquarius Ascendant | Characteristics of Aquarius Sign

    वैदिक ज्योतिष एक अथाह सागर है जिसे जानने के लिए सारी उम्र भी कम है. लेकिन हम यदि दिल से सीखना चाहें तो काफी कुछ सामान्य ज्ञान पा ही सकते हैं. इसके लिए वैदिक ज्योतिष की मूल बातों को समझना आवश्यक है. इसके लिए हम अपनी पिछली वेबकास्ट में काफी कुछ बता चुके हैं और आगे भी आपको जानकारी देते रहेगें. आज इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आपको कुंभ लग्न के बारे में जानकारी दी जाएगी. कुंभ लग्न की विशेषता, शुभ तथा अशुभ ग्रहों के बारे में बताया जाएगा.

    कुंभ राशि का परिचय | An Introduction to Aquarius Sign

    कुंभ राशि भचक्र की ग्यारहवें स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार 300 अंशो से 330 अंशो तक फैला हुआ है. इस राशि का स्वामी ग्रह शनि है. इस राशि की गणना वायु तत्व राशि में होती है. स्वभाव से इस राशि को स्थिर राशि में रखा गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक व्यक्ति है जिसके कंधे पर घड़ा है. व्यक्ति ने नीचे धोती पहनी हुई है और ऊपर कुछ नही है. घड़े मे से पानी छलक व्यक्ति के ऊपर भी गिर रहा है.

    कुंभ लग्न की विशेषताएँ | Characteristics of Aquarius Ascendant

    आइए अब कुंभ लग्न के बारे में बात करते है, आपका व्यक्तित्व आकर्षक होता है और लोग आपकी ओर आकर्षित हो ही जाते हैं. आप जीवन में एक बार जो सिद्धांत बना लेते हैं फिर उन्हें बदलना कठिन ही होता है. आप सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति होते हैं.

    आप अपने जीवनसाथी के प्रति निष्ठावान रहते हैं और पूर्ण रुप से उसके प्रति समर्पित रहते हैं. आपको समझना अन्य लोगो के लिए कठिन काम होता है क्योकि कुंभ का अर्थ घड़ा होता है, जब तक उसके भीतर तक ना झांका जाए तब तक पता ही नहीं चलता है कि कितना खाली है और कितना भरा हुआ है. इसलिए जो लोग आपके बेहद ही करीब होते हैं वही समझ सकते हैं.

    कुंभ लग्न स्थिर लग्न होता है इसलिए आपके जीवन में भी स्थिरता बनी रहती है और आप अपने स्थायी निशान सभी जगह छोड़ते जाते हैं. आप हवा की तरह स्वतंत्र विचार वाले होते हैं, आप बहुत सी इच्छाओ को मन में पालकर रखते हैं. मानवतावादी विचारो वाले तथा मानव कल्याण चाहने वाले होते हैं. आप एक ईमानदार व्यक्ति भी होते हैं.

    आपका लग्न वायु तत्व होने से आप सोचते बहुत हैं और गंभीर चिंतन में डूबे रहते हैं. स्वभाव से कुछ शर्मीले भी होते हैं और अपनी बातों को आसानी से किसी से बांटते भी नही हैं.

    कुंभ लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Aquarius Ascendant

    आइए अब आपको कुंभ लग्न के लिए शुभ ग्रहो के बारे में बताने का प्रयास करते हैं. इस लग्न के शनि लग्नेश होकर शुभ होता है. यदि शनि आपकी कुंडली में लग्नेश होकर कमजोर है तब आप नीलम धारण कर सकते है.

    यदि आपको नीलम महंगा लगता है तब आप इसकी जगह नीली या लाजवर्त भी पहन सकते हैं. आपके लिए पन्ना व डायमंड भी उपयोगी रत्न है. पन्ना बुध के लिए और शुक्र के लिए डायमंड पहन सकते हैं. आप डायमंड की जगह इसका कोई भी उपरत्न ओपल या जर्कन भी पहन सकते हैं.

    कुंभ लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Aquarius Ascendant

    आइए अब आपको कुंभ लग्न के लिए शुभ ग्रहों के बारे में जानकारी देने का प्रयास करते हैं. कुंभ लग्न का स्वामी ग्रह शनि लग्नेश होकर शुभ होता है.

    बुध पंचमेश होने से शुभ होता है हालांकि इसकी दूसरी राशि अष्टम भाव में पड़ती है. इसलिए बुध यदि कुंडली में निर्बल है तब शायद शुभ देने में असमर्थ हो सकता है और यदि बुध शुभ स्थिति में है तब यह पंचम भाव से संबंधित शुभ फल प्रदान करेगा.

    शुक्र चतुर्थेश व नवमेश होकर योगकारी ग्रह बन जाते हैं. चतुर्थ भाव केन्द्र तो नवम भाव बली त्रिकोण भाव होता है और केन्द्र्/त्रिकोण का संबंध बनने पर ग्रह शुभ हो जाता है.

    कुंभ लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Aquarius Ascendant

    आइए अंत में कुंभ लग्न के लिए अशुभ ग्रहों की बात करते हैं. कुंभ लग्न के लिए बृहस्पति शुभ नहीं माने जाते हैं. बृहस्पति मारक भाव तथा त्रिषडाय भाव के स्वामी होते हैं. कुंभ लग्न में कर्क राशि छठे भाव में पड़ती है और चंद्रमा इसके स्वामी होते हैं इसलिए चंद्रमा षष्ठेश होकर अशुभ हो जाते हैं.

    इस लग्न के लिए सूर्य मारक भाव अर्थात सप्तम भाव के स्वामी बनते हैं हालांकि मारक का दोष लगता नहीं है. इस लग्न के लिए मंगल तीसरे व दशम भाव के स्वामी होते हैं. मंगल की गिनती भी शुभ ग्रहों में नहीं होती है.

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    सूर्य महादशा में बुध की अन्तर्दशा होने पर मिलते हैं ये फल

    सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशा जातक के बौद्धिक व आत्मिक स्वरूप का विकास करने में सहायक होती है. इन दोनों ग्रहों का आपस में समभाव रहता है. बुध ग्रह को सूर्य से ही शिक्षा एवं आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है. सूर्य की दशा गुरू रुप में बुध का मार्गदर्शन करती सी प्रतीत होती है. बुध सदैव सूर्य के समीपस्थ रहने वाले हैं इनका महत्व इनसे भी प्रभावित रहता है. सूर्य के साथ रहने पर यह इन्हीं के प्रकाश से दीप्तमान रहते हैं.

    सूर्य में बुध की इस दशा में जातक का भाषा पर अच्छा नियंत्रण होता है जिसके चलते वह लोगों पर अपना प्रभाव रख पाने में सफल भी हो सकता है. जब सूर्य का साथ इसे मिलता है तो यह उस वाणी में ओजस भाव को लाता है. बुद्धि तथा वाणी कौशल के द्वारा कठिन परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने में सफल हो सकता है. बुद्धि कौशल और वाक चातुर्य के द्वारा कार्यों को करने में सहज व लोगों द्वारा कार्य कराने में पारंगत होता है.

    किसी तर्क-वितर्क में इनसे जीत पाना आसान नहीं होता बोलने की आदत इनमें खूब होती है. बुध वाणी, चातुर्य, गणना की आवश्यकता वाले क्षेत्रों तथा उनसे जुड़े लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें सफलता प्राप्त करने के लिए चतुर हो जैसे वकील, सलाहकार, मध्यस्थ और अनुसंधान, मार्किटिंग, व्यापार राजनयिक, अध्यापक, लेखक, ज्योतिषि से जुड़े लोग इनमें बुद्ध से प्रभावित रह सकते हैं

    बुध को नपुंसक ग्रह माना गया है, बुध वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. बुध के प्रबल होने पर व्यक्ति व्यवहार कुशल होता है व कूटनीति से भी काम लेता है. अपने व्यवहार के कारण यह कई बार स्वार्थी लग सकते हैं परंतु अपनी धुन के पक्के होने के कारण हीं इनका ऎसा व्यवहार दिखाई देने लगता है.

    बुध कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी बलहीन हो सकते हैं जिसके कारण जातक को दिमागी परेशानी व चर्म रोग से संबंधित समस्याओं से पीड़ित होना पड़ सकता है.सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशाके विष्य में कहा गया है कि यह महादशा परेशानियों व दुख को देने वाली होती है, चर्म रोगों का भय बनता है, किंतु एक तर्क के आधारपर हम संपूर्ण दशा के फलाकर्म को खराब तो नहीं कह सकते है.

    इसलिए दशाओं के प्रभाव में हमें ग्रहों की स्थिति को भी समझना होगा. क्योंकि मिलेजुले फलों कि प्रतिरूप है यह दशा फल, ज्ञान व ज्ञान का अंह दोनों अलग बातें हैं जो इस समय समझने में बहुत मददगार होती हैं क्योंकी शुभ स्थानों के स्वामित्व के कारण व्यक्ति का कार्य शुभ कर्मों की ओर अधिक ही रहता है लेकिन यदि भावों में अनुकूलता शुभता नहीं हो तो कई प्रकार की समस्याओं से दो चार होना ही पड़ जाता है तथा ज्ञान की अंह भावना से परेशानियां स्वाभाविक ही होती हैं.

    सूर्य में बुध का अंतर जातक को राजनीति से जुडे़ कामों में झुकाव लाने वाला होता है, व्यक्ति में एक अलग सोच निर्मित होने लगती है, समाज में गतिविधियां तेज होने लगती हैं, आने वाले कामोम में जल्दबाजी अधिक हो जाती है. किसी भी काम में कुछ सोच विचार की आवश्यकता होती है इसलिए इस समय जातक अपने कामों की ओर अधिक सतर्क होने लगता है. अग्नि के साथ वायु का मेल अग्नि को फैलाने का काम करता है.

    इस स्थिति में जातक के मन में द्वंद और उत्तेजना ई स्थिति उभर सकती है, वह अपने आप में उन्मुक्त रह सकता है और इस कारण अलग थलग भी पड़ सकता है, किसी भी रिश्ते में इनकी मौजूदगी एक अलग ही रूप में दिखाई देती है. सूर्य की ऊर्जा लेकर बुध जहाँ एक ओर बुद्धि को प्रखर बनाने में सहायक होते हैं तथा अनुशासन में रहने की आदत भी पाते हैं. बुध स्वभाव में जो लचीलापन देते हैं वह कभी-कभी नियमों व कायदों के उल्लंघन का कारण भी बन जाता है, ऎसे में सूर्य उन्हें नियमों का चलन बताने में सहायक होते हैं.

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    वृष लग्न | Tauras Ascendant | Characteristics of Taurus Sign

    वैदिक ज्योतिष में सभी राशियों का अपना महत्व होता है और सभी के अलग कारकत्व होते हैं. कुछ राशि शुभ तो कुछ अशुभ मानी जाती है. भिन्न लग्नों की कुंडलियों की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम आज वृषभ राशि की बात करेगें. इस राशि की विशेषताओं के बारे में जानेगें. यदि आपका वृष लग्न है तब आपके लिए कौन से ग्रह शुभ होगें और कौन से ग्रह अशुभ होगें, उन सब के बारे में चर्चा करेगें.

    वृषभ राशि के गुण | Qualities of Taurus Sign

    वृष राशि भचक्र की दूसरी राशि है और इसका विस्तार 30 से 60 अंश के मध्य माना गय है. इस राशि का स्वामी ग्रह शुक्र को माना गया है और शुक्र सौम्य ग्रह होने से यह राशि भी सौम्य कहलाती है. इस राशि की गणना स्त्री संज्ञक राशि में की जाती है.

    इस राशि का रंग सफेद माना गया है, शायद इसी कारण इस राशि के व्यक्ति सुंदर व गौर वर्ण के होते हैं. इस राशि का प्रतीक चिन्ह इसके नामानुसार वृष अर्थात बैल है. बैल जैसा अड़ियल रुख इस राशि के जातकों में दिखाई देता है.

    यह स्थिर स्वभाव की राशि होती है और इसी कारण इस राशि में ठहराव देखने को मिलता है. इस राशि के लोगो को जल्दबाजी पसंद नहीं होती है. यह पृष्ठोदय राशि है अर्थात आगे से उठने वाली राशि है. यह राशि पृथ्वी तत्व के अन्तर्गत आती है.

    वृष लग्न के व्यक्ति का व्यक्तित्व | Your Characteristics with Taurus Ascendant

    अब आपके व्यक्तित्व के बारे में बात करते हैं. वृष लग्न होने से आप स्वभाव से शांत व गंभीर व्यक्ति होते हैं. आपको ज्यादा भाग दौड़ पसंद नहीं होती है. आप जल्दबाजी में कभी कोई निर्णय नहीं लेते हैं. दूरगामी परिणामो को जांचने के बाद ही आप किसी नतीजे पर पहुंचते हैं.

    आपको अपने जीवन में बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव पसंद नहीं होगा. इसलिए आप आसनी से स्थान परिवर्तन नहीं करते हैं. एक ही जगह पर बहुत समय तक बने रहते हैं. शुक्र का प्रभाव होने से आप सौन्दर्य प्रेमी होते हैं. आपको सुंदर और कलात्मक चीजें पसंद होती है. आप स्वभाव से रोमांटिक भी होते हैं.

    वैसे तो आपको क्रोध कम आएगा लेकिन जब आएगा तब अत्यधिक आएगा, तब आपको शांत करना सरल नही होगा. आप स्वभाव से उदार हृदय होते हैं लेकिन आप एकांतप्रिय होगें. आपको ज्यादा भीड़ भाड़ कम ही पसंद होगी. आप जीवन में धन कमाने की इच्छा रखते है और धन एकत्रित करने में सफल भी होते हैं.

    वृष लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Taurus Ascendant

    आइए अब आपके लिए शुभ ग्रहो का वर्ण्न कर दें. वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह होता है और इसकी दूसरी राशि छठे भाव में पड़ती है. छठे भाव को अच्छा नहीं माना जाता है. बेशक छठा भाव शुभ नहीं होता है लेकिन दूसरी राशि छठे में पड़ने पर भी शुक्र को लग्नेश होने के कारण शुभ ही माना जाता है.

    बुध इस लग्न के लिए धनेश व पंचमेश होने से आपको शुभ फल प्रदान करेगा, बशर्ते कि वह कुंडली में पीड़ित अवस्था मे ना हो. शनि इस लग्न के लिए योगकारी ग्रह होने से अत्यंत शुभ होता है. आपका लग्न वृष होने से शनि नवमेश व दशमेश होकर केन्द्र/त्रिकोण का स्वामी बन जाता है और शुभ फल प्रदान करता है. शनि आपकी जन्म कुण्डली में सबसे बली केन्द्र का स्वामी होता है और सबसे बली त्रिकोण के भी स्वामी बन जाते है.

    वृष लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Taurus Ascendant

    आइए अब आपको अशुभ ग्रहों के बारे में बता दें. आपका वृष लग्न होने से चंद्रमा तृतीयेश होकर अशुभ बन जाता है. सूर्य चतुर्थेश होने से सम हो जाते है क्योकि चतुर्थ भाव आपके केन्द्र स्थान में पड़ता है और यह सम स्थान होता है.

    आपकी कुंडली में मंगल सप्तमेश व द्वादशेश होने से अत्यंत अशुभ माना गया हैं. गुरु भी अष्टमेश व एकादशेश होने से अशुभ होता है. आठवाँ भाव बाधाओं व रुकावटो का होता है. यह त्रिक स्थान भी है.

    वृष लग्न के व्यक्ति के लिए शुभ रत्न व मंत्र जाप | Remedies for Taurus Ascendant

    अंत में हम आपको शुभ रत्नो के बारे में बताना चाहेगें. वृष लग्न होने से आपके लिए डायमंड, पन्ना व नीलम शुभ रत्न है. डायमंड शुक्र के लिए, पन्ना बुध के लिए और नीलम रत्न शनि के लिए होता है.

    यदि आप महंगा रत्न नही खरीद सकते हैं तब आप इन रत्नों के उपरत्न पहन सकते हैं. यदि आपकी कुंडली में शुभ ग्रह कमजोर हैं तभी उनका रत्न पहने अन्यथा नही पहने. आपके लिए शनि और बुध के मंत्र जाप करना सदा शुभ रहेगा. शनि आपका भाग्येश है और बुध आपको सुख, समृद्धि व धन प्रदान करने वाला ग्रह है.

    आपकी कुंडली में जिस ग्रह की महादशा जीवन में चलेगी उसके मंत्र जाप जरुर करें. आपकी कुंडली में चलने वाली महादशा के अनुकूल आपको फलों की प्राप्ति होगी.

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    मेष लग्न | Aries Ascendant | Characteristics of Aries Sign

    वैदिक ज्योतिष का मुख्य आधार जन्म कुंडली और उसमें स्थापित नौ ग्रह, बारह राशियाँ व 27 नक्षत्र हैं. इन्हीं के आपसी संबंध से योग बनते हैं और इन्हीं के आधार पर दशाएँ होती है. ज्योतिष में बारह राशियों का अपना ही स्वतंत्र महत्व होता है. भचक्र में बारह राशियाँ एक कल्पित पट्टी पर आधारित हैं. यह काल्पनिक पट्टी भचक्र के दोनो ओर नौ – नौ अंशों की है. इसमें बारह राशियाँ स्थित होती है. मेष राशि को भचक्र की पहली राशि माना गया है. आज हम मेष लग्न के बारे में बात करेगें. मेष राशि के स्वरुप व उसकी विशेषताओं के बारे में बात करेगें.

    मेष राशि की विशेषता | Characteristics of Mesha Rashi

    मेष राशि भचक्र की पहली राशि के रुप में जानी जाती है और भचक्र पर इसका विस्तार 0 से 30 अंश तक माना गया है. यह अग्नितत्व राशि मानी गई है और मंगल ग्रह को इसका स्वामी माना गया है.

    यह राशि चर राशि के रुप में जानी जाती है इसलिए मेष लग्न के जातक सदा चलायमान रहते हैं. कभी एक स्थान पर टिककर बैठ नहीं सकते हैं. मेष राशि का चिन्ह “मेढ़ा” माना गया है. यह तेज व बहुत ही पैना जानवर होता है जो पहाड़ी इलाको में पाया जाता है. इसलिए इस राशि को भी चरागाहों वाले पहाड़ी स्थान पसंद हो सकते हैं.

    इस राशि का रंग लाल माना जाता है तभी इनमें अत्यधिक तीव्रता होती है. यह राशि अत्यधिक ऊर्जावान राशि मानी जाती है और सदा जोश व चुस्ती भरी होती है.

    मेष लग्न के जातक की विशेषता | Characteristics of Aries Natives

    आइए अब मेष लग्न होने से आपकी विशेषताओं के बारे में जानने का प्रयास करें. आप साहसी व पराक्रमी होते हैं. आपके भीतर नेतृत्व का गुण होता है और आप अपनी टीम को बहुत अच्छे से चलाने की क्षमता भी रखते हैं.

    मेष लग्न चर लग्न है और अग्नितत्व भी है इसलिए आप सदा जल्दबाजी में रहते हैं और निर्णय लेने में एक पल नहीं लगाते हैं जबकि आपको एक बार दूरगामी परिणामो पर ही एक नजर डालनी चाहिए.

    मेष लग्न होने से आप आदेश सुनना कतई पसंद नहीं करते हैं और अपनी मनमानी ही चलाते हैं लेकिन आप बात सभी की सुनेगे लेकिन करेगें वही जो आपके मन में होता है. आपको किसी के दबाव में रहना नही भाता है और स्वतंत्र रुप से रहना पसंद करते हैं. अपनी स्वतंत्रता के साथ किसी तरह का कोई समझौता आप नहीं करते हैं.

    आपको अति शीघ्र ही क्रोध भी आता है और आप एकदम से आक्रामक हो जाते हैं. यहाँ तक की मरने – मारने तक पर आप उतारू हो जाते हैं लेकिन आपके भीतर दया की भावना भी मौजूद रहती है.

    आप दृढ़ निश्चयी होते हैं, आप व्यवहार कुशल भी होते हैं. आप जो भी बात कहते हैं उसे बिना किसी लाग लपेट के स्पष्ट शब्दों में कह डालते हैं. चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा लगे. इससे कई बार आपको लोग अव्यवहारिक भी समझते हैं.

    आप बहुत जिद्दी होते हैं और आवेगी भी होते हैं और आवेश में कई बार मुसीबत भी मोल ले लेते हैं. आपको अपनी इस कमी को नियंत्रित करना चाहिए.

    मेष लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets For Aries Ascendant

    अब हम मेष लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करेगें कि कौन से ग्रह इस लग्न के अच्छे फल दे सकते हैं. मेष लग्न के लिए मंगल लग्नेश होने से शुभ ही माना जाएगा. हालांकि मेष लग्न में मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक अष्टम भाव में होती है जो कि एक अशुभ भाव है और बाधाओं का भाव माना गया है.

    मेष राशि मंगल की मूल त्रिकोण राशि भी है और केन्द्र में है इसलिए बेशक मंगल की दूसरी राशि अष्टम भाव में स्थित हो पर मंगल आपके लिए शुभ ही माना जाएगा. आपका लग्न मेष होने से आपके लिए सूर्य भी शुभ होगा क्योकि सिंह राशि पंचम भाव में स्थित होती है और यह एक शुभ त्रिकोण माना गया है.

    आपके लिए बृहस्पति को भी शुभ माना जाएगा क्योकि इसकी मूल त्रिकोण राशि धनु नवम भाव में स्थित होती है और नवम भाव आपका भाग्य भाव होता है और सबसे बली त्रिकोण भी है. चंद्रमा मेष लग्न के लिए सम होगा क्योकि इसकी राशि चतुर्थ भाव, केन्द्र में पड़ती है और केन्द्र तटस्थ माने जाते हैं.

    मेष लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets For Aries Ascendant

    मेष लग्न के कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में जाने. आपके लिए शुक्र अशुभ माना जाएगा. शुक्र आपकी कुंडली में दूसरे व सप्तम भाव का स्वामी होने से प्रबल मारक हो जाता है. इसलिए इसे अशुभ ही माना जाता है.

    आपकी कुंडली में शनि भी दसवें और एकादश का स्वामी होने से अशुभ ही माना जाता है. दसवाँ भाव केन्द्र होने से तटस्थ हो जाता है और एकादश भाव त्रिषडाय भावों में से एक है. आपकी कुंडली में शनि बाधक का काम भी करता है क्योकि यह एकादश भाव का स्वामी है. आपकी कुंडली के लग्न में चर राशि मेष स्थित है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक होता है. आपकी कुंडली के लिए बुध अति अशुभ है क्योकि यह तीसरे और छठे भाव का स्वामी होता है.

    मेष लग्न के लिए पूजा व रत्न | Remedies and Gemstones For Aries Ascendant

    आइए अंत में अब हम मेष लग्न के जातको के लिए पूजा व रत्नों के बारे में बता दें कि उनके लिए क्या उचित रहेगा. आपके लिए हनुमान जी की पूजा करना अत्यंत लाभदायक होगा. आपको नियमित रुप से हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. इसके लिए आप हनुमान चालीसा आदि का पाठ कर सकते हैं. मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ भी आपके लिए शुभ रहेगा.

    आपकी जन्म कुंडली में सूर्य पांचवें भाव का स्वामी होता है और पांचवां भाव त्रिकोण भाव है. इस भाव से हम संतान, शिक्षा व प्रेम संबंध देखते हैं. इसलिए आपको सूर्य को जल अवश्य देना चाहिए और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना आपके लिए शुभ होगा. आपकी जन्म कुंडली में आपके भाग्य भाव के स्वामी बृहस्पति देव हैं. यदि भाग्य अगर कमजोर है तब विष्णु जी की पूजा नियमित रुप से आपको करनी चाहिए.

    आप नियमित रुप से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें. यह आपके लिए अत्यंत लाभदायक होगा.मेष लग्न होने से आपके लिए मूंगा, माणिक्य और पुखराज शुभ रत्न हैं. आप इन्हें धारण कर सकते हैं.

    इसके अतिरिक्त कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही होती है उसके मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए क्योकि जन्म कुंडली में जिस ग्रह की दशा चलती है उसी के अनुसार जीवन में फलों की प्राप्ति होती है.

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