बुध का मकर, कुम्भ और मीन राशि के जातकों पर कैसा रहेगा असर आईये जानते हैं

मकरगत बुध का योगफल | Mercury Aspecting Capricorn

बुध के मकर में होने पर शनि की इस राशि में बुध का प्रभाव व्यक्ति की शिक्षा के लिए अच्छा माना जाता है. जातक को अपने क्षेत्र में सफलता भी प्राप्त होती है. जातक अपने ज्ञान में अनुकूल होता है और विद्या में भी श्रेष्ठ कार्य करता है. इन्हें समाज में मान-सम्मान भी प्राप्त होता है. बुध के प्रभाव से ऐसे लोग सुंदर, स्वाभिमानी, सुखी और धनवान बन सकते हैं

इस राशि में बुध होने पर व्यक्ति अपने शत्रुओं से हार नहीं मानता वह अपने पराक्रम द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करता है. जातक अपनी समझ और बुद्धि से अन्य लोगों पर प्रभाव जमाने में सफल होता है. साथ ही वह दूसरों से अपना काम निकालने की कला भी जानता है. जातक को अपने ननिहाल पक्ष से भी लाभ प्राप्त होता है. अधिक सुंदर नहीं होता परंतु प्रभावित करना जानता है.

जातक दुसरों का काम करने वाला होता है और सेवा कर्म में लगा रह सकता है. पिता की ओर से अधिक सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है. जातक सपनों, कल्पनाओं की दुनिया में अधिक जीना चाहता है. मन में इसके बेचैनी रह सकती है और इसकी अस्थिरता इसे परेशान कर सकती है. लोगों के साथ मतभेदों एवं गलतफहमियों का शिकार हो सकता है.

कुम्भगत बुध का योगफल | Mercury Aspecting Aquarius

जिस व्यक्ति के कुम्भ राशि में बुध होता है तो वह उसकी बौधिकता में शुभ कर्मों की कमी कर सकता है. जातक कुछ गलत कामों की ओर लिप्त रह सकता है. उसका धर्म कर्म के कामों में अधिक लगाव न हो सके क्योंकि उसकी चिंतन शैली अस्थिर रह सकती है. वह अपने फैसलों में अधिक अडिग न रह पाए. शास्त्रों के संबंध में उसका मत काफी आलोचनात्मक रूख अपना सकता है. और वह इन विचारों से अधिक सहमत भी न हो पाए.

जातक का वैवाहिक जीवन में प्रेम की जगह क्लेश फलता फूलता है. मकर और कुम्भ शनि की राशि हैं और बुध शनि का मित्र है फिर भी दोनों में मन मुटाव का कारण यह है कि शनि स्त्री ग्रह है जिससे बुध का स्वभाव भी स्त्री के समान हो जाता है जिसके कारण पति पत्नी में असंतोष पैदा होता है जो दाम्पत्य जीवन में असंतुष्टि और क्लेश लाता है.

जातक के बोलने में भी दोष रह सकता है वह कठोर भाषा का उपयोग कर सकता है. साहस से दूर रहने वाला और अधिक संघर्ष से बचने की चाह ही रखता है. जातक का व्यक्तिगत स्वरूप अधिक प्रभावशाली नहीं बन पाता है. वह मलिनता की ओर अधिक अग्रसर रह सकता है. जीवन तनाव, आंदोलन, बाधाओं एवं अनोखी चिंताओं से बुरी तरह अस्तव्यस्त हो सकता है. लेकिन यह इस बात से अधिक प्रभावित नहीं होंगे बल्कि खुद को बदलते हुए वातावरण एवं परिस्थितियों के अनुसार न ढाल पाने के कारण निराश हो सकते हैं.

मीनगत बुध का योगफल | Mercury Aspecting Pisces

मीनगत बुध के होने पर बुध इस स्थान पर अपना बल खो देता है ओर यह अवस्था उसकी नीच अवस्था की ओर संकेत देती है. जिसके फलस्वरूप जातक को अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं हो पाती है. वह अपने विचारों से दूसरों को परेशान कर सकता है. परंतु जातक का आचरण शील पूर्ण होता है वह मुहंफट हो सकता है किंतु पवित्रता का साथ पाता है. धर्म के प्रति अधिक रूचि नहीं रखता है. वैदिक विधियों से रहित होता है. तथा आर्थिक रूप से कमी झेल सकता है.

जातक को जीवन साथी का सहयोग मिलता है किंतु उसे संतान की ओर से कष्ट सहन करने पड़ सकते हैं और संतान सुख में बाधा भी झेल सकता है. जातक पेट, गले या नर्वस तंत्र से संबंधित समस्याओं अथवा बिमारियों से पीड़ित हो सकता है.

जीवन में संघर्ष एवं उतार-चढ़ाव दे सकता है. जातक के सोचने और समझने की शक्ति कमजोर होती है भ्रम की स्थिति अधिक बनी रह सकती है. व्यापार में भी बार-बार घाटा हो सकता है या व्यापार बदलाव की स्थिति बनी रहती है.

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 1”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 2”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 3”

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मंगल से जाने कैसी होगी आपकी नौकरी या व्यवसाय

मंगल ग्रह अग्नि तत्व का ग्रह तथा भूमि का कारक माना गया है. इस ग्रह के संदर्भ में सेना संबंधी कार्यों और पुलिस विभाग से जुडे़ कामों को देखा जा सकता है. इस ग्रह के प्रभाव स्वरूप जातक में साहस और शौर्य के गुणों का निष्पादन होता है. इसके उन्नत प्रभाव के कारण ही जातक में निड़रता की भावना देखी जा सकती है किंतु यदि यह ग्रह किसी कारण से पिडी़त हो तो व्यक्ति में साहस और शक्ति की कमी होना स्वभाविक होता है.

  • यदि कार्य क्षेत्र का स्वामी होते हुए मंगल केतु, सूर्य जैसे अग्नि युक्त ग्रहों से संबंध बनाता है तो व्यक्ति अग्नि संबंधि कामों से धनोपार्जन करता है. भठ्ठी के काम, बिजली के काम, भोजन बनाने संबंधी काम या कल-कारखानों में काम कर सकता है.
  • साहस और क्रोध की अधिकता से युक्त यह ग्रह हिंसात्मक प्रभाव भी देने में सक्षम होता है. बाहुबल से युक्त कामों में इसका होना आवश्यक माना जाता है. इसलिए कर्म क्षेत्र से इसका संबंध बनने पर जातक रक्षा विभाग से जुड़ सकता है. सेना के क्षेत्र में जाकर सैन्य सुरक्षा बल में काम कर सकता है.
  • भू संपदा से संबंधित कामों में भी मंगल का प्रभुत्व रहता है. भूमि, जायदाद, मकान से इसका संबंध बनता है. जब मंगल चतुर्थेश के साथ मिलकर संबंध बना रहा होता है तो व्यक्ति भूमि किराया आदि से आय या धन पाता है. मंगल के कारण व्यक्ति प्रोपर्टी से संबंधित कामों को भी करने वाला होता है और इस क्षेत्र में उसे अच्छा लाभ भी मिलता है. दशम में स्थित होकर चौथे भाव पर दृष्टि दे रहा होता है.
  • मंगल की लग्नेश व चतुर्थेश पर दृष्टि हो और मंगल कर्म क्षेत्र का स्वामी बनकर स्थित हो तो जातक क्रूर क्रम करने की ओर प्रवृत्त रह सकता है.
  • जातक में प्रबंधन के गुण भी इस ग्रह से देखे जा सकते हैं. जब यह कर्म क्षेत्र को दर्शाता है तो व्यक्ति में प्रबंधक की योग्यता देखी जा सकती है. व्यक्ति दूसरों से काम लेने की कला जानता है और उसके गुण द्वारा वह अपने कर्मचारियों को बांधे रखने में भी सफल होता है.
  • मंगल तार्किक भाषा से युक्त होता है व्यर्थके भटकाव में नहीं रहता है. यह समझ के दायरे को विकसित करने में सहायक होता है. मंगल का पंचम भाव पर प्रभाव जातक को तीव्र बुद्धि वाला और तार्किक बनाने में सहायक होता है. जब कुण्डली में मंगल पंचम भाव का स्वामी होकर मजबूत स्थिति में होता है और व्यवसाय भाव से प्रभावित होता है तो व्यक्ति को शासक व मंत्री पद दिलाने में सहायक बनता है.
  • मंगल सेनापति है और योद्धा है, ऎसे में जब यह सूर्य ग्रह के साथ संबंध बन रहा होता है तो जातक राज्य से संबंधित कामों जैसे की रक्षा विभाग इत्यादि से जुडा़ हो सकता है. चतुर्थ भाव का स्वामी होकर मंगल चंद्र या शुक्र से प्रभावित होते हुए व्यवसाय का द्योतक बनता हो तो व्यक्ति को घर से आमदनी होती है, जायदाद का सुख मिलता है.

ज्योतिष में मंगल को सेनापती के रुप में दर्शाया गया है. यह ताकत व साहस का कारक है. मंगल ग्रह शारीरिक व मानसिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल के प्रभाव से व्यक्ति में लड़ने की क्षमता का भाव आता है. मंगल के प्रभावस्वरुप जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकता. मंगल के द्वारा साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता प्राप्त होती है. पुलिस, सेना, अग्नि-शमन सेवाओं के क्षेत्र में मंगल का अधिकार है खेल कूद इत्यादि में जोश और उत्साह मंगल के प्रभाव से ही प्राप्त होता है. मंगल को ज्योतिष शास्त्र में अचल सम्पति, भूमि, अग्नि, रक्षा इत्यादि का कारक ग्रह है. मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है. मंगल व्यक्ति को यौद्धाओं का गुण देता है, निरंकुश, तानाशाही प्रकृति का बनाने वाला बनता है.

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कुंडली खोलेगी आपके जन्म लग्न का रहस्य

तुला से मीन लग्न तक | Libra to Pisces Ascendant

तुला लग्न में जन्मा जातक चंचल प्रवृत्ति का होता है. यह कल्पनाओं की उडा़न में व्यस्त रहते हैं. न्यायप्रिय होते हैं तथा मेधावी होते हैं. गोरे रंग के, मध्यम आकार के कद वाले, आवेगहीन, सुस्त स्वभाव वाले होते हैं. आर्थिक रूप से संपन्न रहते हैं, वैभवता की चाह रख सकते हैं. धर्म कर्म में अधिक निपुण नहीं होते. राज मान्य तथा सत्यवक्ता होते हैं. दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले होते हैं. यह थोड़े बेचैन और असंतुष्ट भी हो सकते हैं. इनमें गहरी दूरदर्शिता के साथ यथार्थवादी भी होती है.

वृश्चिक लग्न में जन्म होने के कारण जातक क्रोधी स्वभाव का व प्रतिशोधी भी हो सकता है. राज्य से सम्मान पाता है तथा गुणवान लोगों की संगती मिलती है. जातक व्यंग्यात्मक और आवेगी होता है. तेजस्वी व्यहार का योद्धा स्वरूप परंतु कुटील भी होता है. अत्यधिक चंचल प्रवृति का तथा प्रेम में अधिक उत्साहित होता है.यह जातक कामुक सुख की ओर अधिक प्रवृत्त रहता है. क्रूर कर्म करने वाला हो सकता है. स्वतन्त्र रुप से कार्य करने की चाह रखता है. दूसरों का हस्तक्षेप इसे कतई पसन्द नहीं होता है. यह जीवन को अपने अनुसार जीने की चाह रखता है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं और परिश्रम द्वारा अपने कार्यों को अंजाम तक पहुंचाते हैं.

धनु लग्न में जन्म होने के कारण जातक धैर्यवान और न्याय को मानने वाला होता है. आश्रितों का पालक होता है. युद्ध में कुशल तथा शत्रुओं पर विजय पाने वाला होता है. पारंपरिक रुप से मान्यताओं का सूचक है, दार्शनिक विचारधरा वाला तथा अपने कार्यों में कुशल होता है. जातक कभी कभी क्रोध में आवेगी हो सकता है. पराकर्म करने में तत्पर तथा अपने काम में सफल होने के लिए प्रयासरत रहता है. कुछ सुस्त स्वभाव भी हो सकता है. कभी-कभी अधिक बेचैन और चिंतित भी रहते हैं. इनमें दिखावे की चाह नहीं होती धर्म-कर्म में रूचि रखने वाले होते हैं.

मकर लग्न में जन्में जातक का व्यवहार शांत तथा सहानुभूति पूर्ण होता है. जातक डरपोक स्वभाव का हो सकता है. उदार हृदय का होता है. संकोची स्वभाव के कारण जातक अपने मनोभावों को खुलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाता है. तामसिक प्रवृत्ति से ग्रस्त रह सकता है और अपने कामों को चालाकी से पूरा कर ही लेता है. यह लंबे कद के पतले होते हैं चहरे पर लालिमा लिए होते हैं. खुद को परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लेते हैं. इनके स्वभाव में दिखावे की प्रवृत्ति भी होती है. अल्पबली होता है तथा शुभ गुणों में कमी हो सकती है.

जातक का जन्म कुंभ लग्न में होने के कारण जातक पर शनि ग्रह का प्रभाव अधिक पड़ता है. कुम्भ लग्न के प्रभाव स्वरूप जातक दार्शनिक स्वभाव का और उदार व्यक्तित्व का धनी होता है. दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने वाला रहता है. शिष्टाचार द्वारा यह दूसरों के सम्मुख प्रसिद्धि भी पाते हैं. जातक का स्वभाव काफी स्थिर होता है किंतु विचारों की उडा़न खूब रहती है. कुल प्रधान व धन से युक्त होता है. यह मित्र बनाने में जल्दी करते हैं इनके मित्रों की संख्या भी अच्छी होती है. यह ही गुस्सा और चिड़चिड़ा जाते हैं लेकिन शांत भी जल्द ही हो जाते हैं. बातें बनाना खूब आता है और अच्छे वक्ता बन सकते हैं.

जन्म कुण्डली का लग्न मीन राशि का होने पर जातक भाग्यवान होता है. विद्वानों की संगत पाता है तथा दोहरी विचारधारा से प्रभावित हो सकता है. जातक में जिद्दीपन उभर सकता है अपनी बात को अत्यधिक महत्वपूर्ण रखने की चेष्ठा बनी रहती है. जातक धर्म कर्म के कार्यों के प्रति उन्मुख रहता है तथा विचारों से कुछ रूढ़िवादी हो सकता है. मीन लग्न से प्रभावित व्यक्ति शारीरिक रूप से मध्यम आकार के मोटे, साँवले रंग के होते हैं. सिद्धांतों पर बने रहने की इनकी कोशिश बनी रहती है. यह महत्वाकांक्षी होते हैं अपने काम में प्रमुखता पाने की चाह रखते हैं.

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कौन से ग्रह की होरा देगी क्या फल यहां जानिये

ज्योतिष में होरा को तीन रूपों में विभाजित किया गया है. होरा से आशय इस बात का है कि किसी भी राशि के दो समान हिस्सों में विभाजन से लिया गया है.प्रत्येक राशि तीस अंशों की होती है और किसी राशि के पहले 15 अंश उसकी पहली होरा को बताते हैं और दूसरे 15 अंश उसका दूसरी होरा को बताते हैं. विषम राशि का पहली होरा सूर्य की होती है व सम राशियों की प्रथम होरा चंद्रमा की मानी गई है. इसलिए होरानुसार ग्रहों के फलों में अंतर देखा जा सकता है.

राश्यंश होरा की उपयोगिता | Use Of Rashyansha Hora

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि की होरा में अनेक प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है.

सूर्य-सूर्य की होरा में | Sun-Sun Hora

सूर्य यदि अपनी ही होरा में हो तो यह स्थिति के फलस्वरूप जातक के व्यवहार में क्रोध की अधिकता देखी जा सकती है वह उद्दंड व्यवहार कर सकता है. पित्त की अधिकता रहने से पित्तरोग हो सकता है. नेत्र रोग परेशान कर सकते हैं या दृष्टि में कमी रह सकती है.

सूर्य-चंद्रमा की होरा में | Sun-Moon Hora

यदि सूर्य चंद्रमा की होरा में स्थित हो तो जातक को रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है वह निरोगी रहता है. शत्रुओं का उस पर प्रहार नहीं होता ओर उनसे हीन रहता है. अतिथियों का आदर सत्कार करने की चाह उसमें रहती है. वह दूसरों की निंदा नहीं करता है. कुल की प्रसिद्धि बढा़ने वाला होगा तथा स्वभाव से विनम्र होता है.

मंगल सूर्य की होरा में | Sun – Mars Hora

कुण्डली में यदि मंगल सूर्य की होरा में हो तो जातक योद्धा, लडा़कू, हिंसक प्रवृत्ति का हो सकता है. जातक साहसिक कामों को करने में जोश के साथ लगा रहता है. उसे रोग का भय अधिक बना रह सकता है तथा पित्त दोष का प्रभाव भी अधिक रह सकता है.

मंगल चंद्रमा की होरा में | Mars-Moon Hora

मंगल के चंद्रमा की होरा में होने पर जातक में साहस खूब रहता है साथ ही वह विनम्र स्वभाव का भी होता है. जातक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है वह धन से युक्त होता है. व्यवहार में कुशलता का अच्छा समावेश रहता है जिससे लोग उससे प्रभावित रहते हैं.

बुध सूर्य की होरा में | Mercury – Sun Hora

यदि बुध सूर्य की होरा में स्थित हो तो व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता उन्नत होती है. वह अपनी योग्यता का कुशलता पूर्वक उपयोग करता है. सम्मान से रहने वाला और सुख की चाह में प्रयासरत रहता है. क्रोध अधिक होता है और चतुरता का भाव भी रहता है. शौर्य की कमी हो सकती है. साथ ही जातक किसी व्यसनों से ग्रस्त भी रह सकता है.

बुध चंद्रमा की होरा में | Mercury – Moon Hora

बुध ग्रह अगर चंद्रमा की होरा में है तो जातक भाग्य में वृद्धि पाता है. उसमें मेधावी योग्यता रहती है और वह अपने कामों में संपूर्णता को दर्शाता है. गुणवान होता है तथा मनोविनोद की प्रवृत्ति वाला होता है.

बृहस्पति सूर्य की होरा में | Jupiter -Sun Hora

बृहस्पति के सूर्य की होरा में होने पर जातक में क्रोध और अभिमान की अधिकता हो सकती है. स्वभाव में लालच जागृत हो सकता है तथा कलह करने वाला हो सकता है. बोलने में परेशानी हो सकती है. या वह अपने कर्मों में कुछ गलत करने की ओर भी अग्रसर हो सकता है.

बृहस्पति चंद्रमा की होरा में | Jupiter -Moon Hora

बृहस्पति के चंद्रमा की होरा में होने पर जातक को भाग्य का साथ मिलता है, उससे विद्वानों लोगों तथा गुरू की संगती मिलती है. धन धान्य की पूर्ति बनी रहती है तथा दूसरों का हितैषी भी रहता है.

शुक्र सूर्य की होरा में | enus-Sun Hora

शुक्र का सूर्य की होरा में होने पर जातक की दृष्टि प्रभावित हो सकती है. मूर्खता पूर्ण आचरण करने वाला हो सकता है. उग्रता लिए हुए होता है. कर्त्तव्यों को पूरा न कर सके.

शुक्र चंद्रमा की होरा में | Venus – Moon Hora

शुक्र के चंद्रमा की होरा में होने पर जातक लोकप्रिय बन सकता है. कला में रूचि रखने वाला हो सकता है. धनवान और इछाओं से भरपूर रहता है. लोगों का प्रिय तथा वाक कुशल होता है.

शनि सूर्य की होरा में | Saturn-Sun Hora

सूर्य का शनि की होरा में होने पर जातक के शत्रुओं में वृद्धि होती है. वह कटु व निर्दयी भी हो सकता है. किसी भी कार्य में न्याय का पक्ष समझते हुए आगे बढ़ता है.

शनि चंद्रमा की होरा में | Saturn-Moon Hora

शनि के चंद्रमा की होरा में होने पर जातक के स्वभाव में चालाकी का भाव रह सकता है. वह अपने काम को निकलवाना जानता है. अपने कार्यों द्वारा लोगों के समक्ष नाम भी पाता है. लोकप्रिय और जनप्रतिनिधि बनता है.

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द्रेष्काण की उपयोगिता | Use of Drekkana | What is Drekkana

ज्योतिष में कुण्डली की उपयोगिता को समझने हेतु अन्य तथ्यों के आधारभूत सिद्धांतों को जानकर ही फलित करने में सहायता प्राप्त होती है. षडवर्ग राशि, द्रेष्काण, नवांश, द्वादशांश और त्रिशांश में राशि तथा द्रेष्काण दो ऎसे वर्ग होते हैं जिनका उपयोग पाश्चात्य ज्योतिष में भी किया जाता है. द्रेष्काण के अनुरूप होने पर जातक घूमने फिरने का पता चलता है तथा उसे अपने बंधुओं से सुख की कैसी प्राप्ति होती है इस बात को समझा जा सकता है.

द्रेष्काण विचार द्वारा जातक के भाई बहनों की प्राप्ति का पता चलाया जा सकता है उसके भाई होंगे या बहनें अधिक होंगी. किस का साथ उसे अधिक प्राप्त होगा या किस के साथ वह अधिक दूरी रखने वाला हो सकता है. इसी के साथ आर्थिक संपन्नता में वह कैसे सहायक बन सकते हैं या उनसे जातक को क्या शुभ लाभ प्राप्त हो सकते हैं इत्यादि तत्थों के समझने हेतु द्रेष्काण बहुत उपयोगी माना जाता है.

द्रेष्काण तालिका | Dreshkona Table

राशि पहला द्रेष्काण (0 से 10 अंश तक) दूसरा द्रेष्काण (10 से 20 अंशों तक) तीसरा द्रेष्काण (20 से 30 अंशों तक)
मेष मेष(मंगल) सिंह(सूर्य) धनु(गुरू)
वृष वृष(शुक्र) कन्या(बुध) मकर(शनि)
मिथुन मिथुन(बुध) तुला(शुक्र) कुम्भ(शनि)
कर्क कर्क(चंद्रमा) वृश्चिक(मंगल) मीन(गुरू)
सिंह सिंह(सूर्य) धनु(गुरू) मेष(मंगल)
कन्या कन्या(बुध) मकर(शनि) वृष(शुक्र)
तुला तुला(शुक्र) कुम्भ(शनि) मिथुन(बुध)
वृश्चिक वृश्चिक(मंगल) मीन(गुरू) कर्क(चंद्रमा)
धनु धनु(गुरू) मेष(मंगल) सिंह(सूर्य)
मकर मकर(शनि) वृष(शुक्र) कन्या(बुध)
कुम्भ कुम्भ(शनि) मिथुन(बुध) तुला(शुक्र)
मीन मीन(गुरू) कर्क(चंद्रमा) वृश्चिक(मंगल)

जन्म कुण्डली में 0 से 10 अंश के बीच में कोई ग्रह है तो वह द्रेष्काण कुण्डली में उसी राशि में स्थित माना जाता है जिस राशि में वह जन्म कुण्डली में होता है. इसके दूसरे द्रेष्काण में कुण्डली में10 से 20 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो वह अपनी राशि से पाँचवीं राशि में जाता है और तीसरे द्रेष्काण में यदि कोई ग्रह कुण्डली में 20 से 30 अंश के मध्य स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में वह ग्रह अपनी राशि से नवम राशि में जाता है.

पहला द्रेष्काण नारद कहलाता है, दूसरा द्रेष्काण अगस्त्य कहा जाता है तथा तीसरा द्रेष्काण दुर्वासा कहलाता है. द्रेष्काण कुण्डली से छोटे बहन भाइयों के बारे में विचार किया जाता है. द्रेष्काण द्वारा जातक के भी बहनों के सुख व उने साथ संबंधों के बारे में समझा जा सकता है. इसके अतिरिक्त जातक के संबंधों का पता चलता है.

इन द्रेष्काण में ग्रहों की भूमिका का भी अपना विशेष महत्व होता है. ग्रहों के अनुरूप जातक को फलों की प्राप्ति होती है. जैसे पहले द्रेष्काण को समझने पर इससे जातक के स्वभाव उसके सहयोगात्मक व्यवहार के बारे में जाना जा सकता है. यह द्रेष्काण व्यक्ति को सरल हृदय का देश विदेश में भ्रमण करने वाला बना सकता है व्यक्ति की प्रवृत्ति भी खूब चंचल हो सकती है तथा स्वभाव से वाचाल हो सकता है.

वह कथन अभिव्यक्ति में प्रवीणता पा सकता है तथा धर्मार्थ के कामों को करने की इच्छा रख सकता है. इसी के अनुरूप दूसरे द्रेष्काण में होने पर व्यक्ति साहस से पुर्ण और दूसरों का हितैषी होता है. मन से मजबूत व दृढ़ संकल्प करने वाला होता है. शुभता वाला आचरण करने वाला हो सकता है तथा परोपकार के कार्यों की ओर अग्रसर रहता है.

इसी प्रकार तीसरे द्रेष्काण में जातक का स्वभाव क्रोध से युक्त हो सकता है जिस कारण संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो सकता है. व्यक्ति मुंहफट भी हो सकता है उसमें धैर्य की कमी रह सकती है. जातक में लोक कल्याण की भावना भी खूब होती है और वह अपनी मेहनत परिश्रम के बल से सफलता पाने में भी सफल होता है.

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इस कारण मिलता है नौकरी में प्रमोशन : क्या आपकी कुंडली में भी ये योग ?

वर्तमान समय में व्यक्ति के व्यवसाय का प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण बन चुका है. नौकरी लगने पर भी व्यक्ति उसमें पदोन्नति व सम्मान की चाह रखता ही है. आज हम आपको पदोन्नति के कारकत्व तथा पदोन्नति में होने वाले विलंब के बारे में बताना चाहेंगे.

पदोन्नति के कारकत्व | Karak Elements related to Promotion

आरंभ हम पदोन्नति के लिए आवश्यक कारकत्वों से करेंगे. जन्म कुंडली व चंद्र कुंडली दोनो से दशम भाव का आंकलन किया जाना चाहिए क्योकि दशम भाव का संबंध आजीविका से जोड़ा गया है.

सूर्य सत्ता का कारक होने से कार्यक्षेत्र की उन्नति दिखाता है. सूर्य सत्ता का, उच्चाधिकारों का तथा मान प्रतिष्ठा का कारक माना गया है इसलिए यह मुख्य कारकत्व माना गया है. दशमेश, दशम भाव में स्थित ग्रह का आंकलन किया जाता है.

जन्म कुंडली में दशम भाव तथा दशमेश से संबंध रखने वाले ग्रहो का आंकलन भी किया जाना बहुत जरुरी होता है. जन्म कुंडली में सूर्य के साथ गुरु व शनि पर भी विचार किया जाता है. सूर्य सत्ता व अधिकार तो गुरु से धन, सम्मान तथा प्रतिष्ठा को देखा जाता है. शनि नौकरी का कारक ग्रह है ही और इससे कार्य कुशलता तथा परिश्रम देखा जाता है. इसलिए इन तीनो के बल व शुभाशुभ को देखना जरुरी होता है.

जन्म लग्न, चंद्र तथा सूर्य से षष्ठेश तथा दशमेश की स्थिति का आंकलन किया जाता है. इन दोनो की कुंडली में स्थिति, बल तथा शुभाशुभ का आंकलन जरुरी होता है. इनके बल का आंकलन नवांश तथा दशमांश कुंडली में भी किया जाता है. कुछ विद्वान शनि व गुरु से दशम भाव का आंकलन भी जरुरी मानते हैं.

दूसरे, नवम तथा एकादश भाव का बल व शुभत्व भी आजीविका के लिए देखा जाता है. दूसरा भाव धन का है तो एकादश भाव लाभ का माना गया है और नवम भाव लक्ष्मी स्थान होने के साथ भाग्य भाव भी है. भिन्न-भिन्न लग्नों के कारक ग्रह यदि लग्न, लग्नेश, दशम या दशमेश से संबंध बनाए तो वेतन में वृद्धि तथा पदोन्नति होती है.

पदोन्नति में विलंब के योग | Yogas for Delay in Promotion

इस भाग में हम पदोन्नति में होने वाले विलंब के कारणो पर एक नजर डालने का प्रयास करेंगे. जन्म कुंडली का छठा, नवम, दशम भाव व भावेश यदि पाप ग्रहों के चंगुल में स्थित है तब यह आजीविका में बाधा देते हैं.

जन्म कुंडली में दशमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा षष्ठेश शत्रु ग्रह से युति कर रहा हो तब पदोन्नति होने में विलंब होता है. जन्म कुंडली में यदि षष्ठेश पाप ग्रहो से युत है तो बली दशमेश भी पदोन्नति में कुछ नहीं कर पाता है. कुंडली में शत्रु राशि में स्थित शनि दशम भाव में व अष्टमेश नवम भाव में होने पर पदोन्नति में बाधा आती है.

मानहानि तथा आजीविका के दुर्योग | Yogas related to Defamation

अंतिम भाग में हम आजीविका के क्षेत्र में होने वाली मानहानि तथा दुर्योगो की बात करेंगे. जन्म कुंडली में जब दशमेश पाप ग्रहों से युत होकर लग्न में और लग्न, लग्नेश शुभ ग्रहों से वंचित हों तब मानहानि की संभावना बनती है क्योकि लग्न व्यक्ति का शरीर होता है और दशमेश से आजीविका देखी जाती है. इसलिए लग्न व दशमेश का पाप प्रभाव में होना अशुभ दशा में निराशा दे सकता है.

दशमेश पाप ग्रहों के नवांश में हो और एकादश भाव में पाप ग्रह स्थित हो. एकादश भाव में पाप ग्रह की स्थिति अनैतिक रुप से लाभ पाने की प्रवृति व्यक्ति विशेष को देती है. अगर दशमेश भी पाप नवांश में हो व्यक्ति के द्वारा किया पाप छिपता नहीं है और उसे दंड अवश्य मिलता ही है. दशमेश, अष्टम भाव में अष्टमेश से ही युत भी हो और पाप ग्रहो से दृष्ट भी हो तब बुरी दशा आने पर अवनति व आजीविका के क्षेत्र में कलंक लगता है.

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आपका लग्न क्या है और कैसे होंगे आप खुद जाने

जन्म कुण्डली के लग्न द्वारा जातक के जीवन के विषय में प्रभावशाली तरीके से फलित का निर्धारण किया जाता है. लग्न संपूर्ण कुण्डली की पृष्ठभूमि होता है इसके द्वारा व्यक्ति के गुणों व अवगुणों का अवलोकन करने में सहायता प्राप्त होती है. किसी भी व्यक्ति विशेष के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज में उदित होने वाली राशि जातक का लग्न मानी जाती है.

जन्म कुण्डली में लग्न स्थान का महत्व सबसे अधिक होता है जातक के स्वभाव तथा चारित्रिक विशेषताओं के बारे में जानने के लिए यह घर बहुत महत्वपूर्ण रहता है. लग्न जातक के अच्छे-बुरे कर्मों तथा जीवन में इन कर्मों के कारण मिलने वाले फलों के बारे में बताता है. लग्न के बलवान होने पर कुंडली के कई दोष स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं. जातक को जीवन का सुख भोगने में आनंद की अनुभूति होती है

जन्म कुण्डली के लग्न में मेष राशि उदय हो रही हो तो जातक का लग्न मेष लग्न होता है. मेष लग्न में जन्मा जातक मंगल के प्रभाव से प्रभावित रहता है. इस लग्न द्वारा जातक क स्वभाव में क्रोध की अधिकता रह सकती है. वह स्वयं को अग्रीण मानते हुए नेतृत्व करने के की चाह रख सकता है. प्रवासप्रिय, चंचल मन वाला, धनवान और ऎशवर्य की चाह रखने वाला हो सकता है. पित्त प्रकृति से युक्त हो सकता है.

जन्म कुण्डली में जब वृष राशि उदय हो रही होती है तो जातक का लग्न वृष लग्न होता है. इस लग्न के स्वामी शुक्र का व्यक्ति पर प्रभाव रहेगा. जिसके फलस्वरूप जातक भाग्यशाली होते हैं. जातक का स्वभाव स्थिरता लिए होता है वह काफी धैर्यशील होता है. यह ज़िम्मेदारी और कर्तव्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखते हैं. इनके स्वभाव में ईमानदारी का गुण विद्यमान रहता है. परिवार और बड़े बुजुर्गों के प्रति आदर का भाव रखते हैं. इनकी शारीरिक बनावट आकर्षक होती है कंधे चौड़े, छाती मजबूत व आँखें बडी़-बडी़ होती हैं. यह साहसी और हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति होते हैं और किसी भी परिस्थिति को संभालने में सक्षम होते हैं.

जन्म कुण्डली के लग्न भाव में मिथुन राशि के उदय होने के कारण जातक का जन्म मिथुन लग्न का माना जाता है. इस लग्न के स्वामी ग्रह बुध होते हैं. बुध के प्रभाव स्वरूप जातक की बौद्धिक क्षमता प्रभावित होती है. जातक प्रिय भाषी व लोगों के मध्य सम्मान पाता है. इनमें जटिल परिस्थितियों से निपटने की योग्यता रहती है यह बाहुबल से ज्यादा बौद्धिकक्षमता का उपयोग करने की कोशिश करते हैं. इनका स्वभाव विनोदी होता है तथा यह चुलबुले हो सकते हैं. व्यवहार में कुशलता व लचीलापन स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. जातक दोहरे स्वभाव वाले होते हैं. वाक कुशलता और संगीत व नृत्य में इनकी अभिरूचि रहती है.

जन्म के समय में लग्न में उदय होने वाली कर्क राशि के कारण जातक का जन्म कर्क लग्न में होता है. कर्क लग्न पुष्य नक्षत्र में आता है यह एक भाग्यशाली लग्न माना जाता है. इस लग्न में जन्म लेने के करण जातक अत्यंत भावुक व अस्थिर मन वाला हो सकता है. जातक बेहद संवेदनशील, जिज्ञासु होते हैं. यह अपने परिवार और दोस्तों के लिए समर्पण का भाव रखते हैं. इनकी शारीरिक बनावट मध्यम आकार की होती है. गौर वर्ण के व लंबी भुजाओं वाले होते हैं. यह बुद्धिमान, उज्ज्वल व्यक्तित्व वाले हैं.

सिंह लग्न होने पर जातक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला होता है. स्वभाव से निडर और साहसी होते है इनमें नेतृत्व की अदभुत क्षमता होती है. इनमें क्रोध की अधिकता भी रहती है. यह स्वभाव से दृढ़ निश्चयी हो सकते हैं. एकांत प्रिय होते हैं, राजा से आदर पाने वाला होता है. गंभीर प्रवृत्ति का तथा रचनात्मकता का भाव लिए होता है. यह काम को जोश के साथ करता है सिद्धान्तों व अनुशासित ढंग से कार्य करना इनकी प्रवृत्ति है. जातक महत्वाकांक्षी हैं और कभी-कभी लालची भी हो सकता है. स्वतंत्र विचारक हैं तथा रूढ़िवादी भी हो सकता है.

जन्म कुण्डली का कन्या लग्न होने पर जातक वात व कफ रोगों से ग्रसित हो सकता है. व्यवहार से कोमल व सुशील होता है. कन्या लग्न बौद्धिकता और ज्ञान से परिपूर्ण होता है. जातक कि कला व साहित्य में अधिक रूचि रहती है. जातक व्यवहारिक प्रकृति का, आवेगी तथा भावुक होता है. यह स्वभाव से अन्तर्मुखी है तथा कूटनीतिक विचारधारा वाला हो सकता है. जातक संगीत, चित्रकला तथा शिल्पकला के जानकार होते हैं. अच्छे व्यापारी बनते हैं. कन्या संततिवाले होते हैं, विदेश यात्राओं में भ्रमणशील रहते हैं.

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सिंह लग्न का चौथा नवांश | Fourth Navansh of Leo Ascendant

सिंह लग्न के चौथे नवांश का स्वामी कर्क है इस नवांश में जन्मे जातक पर सूर्य व चंद्रमा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है. इस नवांश से प्रभावित होने पर जातक के जीवन पर द्वादश भाव से संबंधित बातें जुडी़ रह सकती हैं. इस नवांश में जन्मे जातक का स्वभाव मिला जुला होगा किंतु सोच विचार अधिक करने वाला होगा. जातक के जीवन में स्वयं का आधार केन्द्र में रहेगा, साथ ही उसके लिए वस्तुओं का विचार की स्थिति का ही आधार बना रहेगा अर्थात वह इनके विषयों से ही अधिक सोच विचार करेगा. अन्य स्थिति पर उसका अधिक ध्यान कम ही रहेगा जितना खुद के लिए उसका ध्यान बना रहेगा.

जातक का इस लग्न में जन्म होने पर वह शाररिक रूप से हष्ट-पुष्ट, सुंदर नेत्रों वाला होता है. टांगें मजबूत और पांव बडे़ होते हैं. इनकी आवाज में कुछ भारीपन हो सकता है. देखने में सुंदर और गौर वर्ण का हो सकता है. इनका शरीर सामान्यता कुछ मोटा और आकर्षक दिखाई देता है. सभी स्थितियों में समायोजन करने की कोशिश करते हैं. परिस्थितियों में स्वयं को ढालने का प्रयास करते हैं. जातक का मन काफी विचारशील रहेगा. उसके मन में अनेक विचारों की उथल पुथल बनी रह सकती है. परंतु फिर भी जीवन के प्रति सकारात्मक स्थिति को लेकर चलने वाला होता है

सिंह लग्न के चौथे नवांश का प्रभाव | Effects of Fourth Navansh of Leo Ascendant

इस नवांश के प्रभाव कारण जातक की त्वचा कोमल होती है परंतु तैलिय भी हो सकती है. इनकी खुराक कम होती है तथा इन्हें तेल युक्त भोजन अधिक पसंद आता है. जीवन को ऎश्वर्यपूर्ण रूप में जीना चाहते हैं. किंतु साथी ही जातक में धार्मिक भावना भी खूब होती है वह धर्म कर्म के कार्यों को करने में रूचि रखता है. यह सभी के साथ जान पहचान बनाने की चाह रखने वाले होते हैं. इनके मित्रों की संख्या कम ही होती है. इन्हें आर्थिक रूप से स्वयं को मजबूती देने की चाह रखते हैं, किसी भी तरह अपने नाम को सभी के सम्मुख समानित कराने की चाह इनमें बनी रहती है.

कोमल हृदय के होते हैं संवेदनाओं से भरपूर होते हैं इस कारण से यह किसी बात को आसानी से भूल नहीं पाते हैं. संवेदनाओं के प्रति पूर्ण सजग होते हैं. दूसरों की भावनाओं को समझने वाले होते हैं. इनका स्वभाव स्नेही होता है और मिलनसार भी होते हैं. यह नवांश होने से जातक धैर्यवान होते हैं कठिन से कठिन समय में सोच विचार कर आगे बढ़ते हैं और घबराते नहीं बल्की साहस से सामना करते हैं.

यह आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं किंतु खर्चों की अधिकता से यह इस ओर से परेशान भी हो सकते हैं. इन्हें अपने मित्रों व अतिथियों पर धन खर्च करना अच्छा लगता है. महंगी वस्तुओं की खरीद करते हैं कई बार बिना सोचे विचारे भी वस्तुओं को एकत्रित करने में लगे रहते हैं. जिस कारण धन का अपव्यय होता है.

इनकी व्यवसाय क्षेत्र में पकड़ मजबूत रहती है. राजनीतिक क्षेत्रों में इनकी कार्य-कुशलता देखते ही बनती है. इन कामों में इनका रूतबा बढ़ता है और व्यक्ति को इस ओर से लाभ भी प्राप्त होता है. आपकी इच्छाएं सहजता से पूर्ण हो जाती हैं. जातक के संपर्क भी अधिक लोगों के साथ बनते हैं और वह किसी न किसी रूप से उनसे मित्रता पाते हैं.

इस नवांश से प्रभावित जातक में कोमलता और सहृदयता के गुण भी मौजुद होते हैं. कर्क नवांश के प्रभाव से जातक अति संवेदनशील होते हैं. यह प्रभाव जलतत्त्व और चंद्रमा से प्रभावित होने के कारण ही होता है, जातक अपने मार्ग को किसी न किसी प्रकार से हासिल करके ही दम लेता है. यह अपना कार्य निकाल अच्छे से जानते हैं. इनके स्वभाव में परिवर्तन देखने को मिलता है जिस कारण लगातार कार्य में लगे रहना इनके व्यवहार में शामिल होता है.

इनका दांपत्य जीवन सामान्य ही रहता है जीवन साथी का व्यवहार काफी चंचल हो सकता है, कुछ स्वार्थी भी हो सकता है अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सदैव प्रयासरत लगा रहता है, इनमें गुस्सा भी अधिक हो सकता है, इस कारण सामंजस्य बनाए रखने में कुछ दिक्कतें उभर सकती हैं. परंतु साथी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने की योग्यता भी रखता है इस प्रकार जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं.

जातक धुन के पक्के होते हैं. लगातार कार्य करना और नई-नई कल्पनाओं को साकार करने की चाह भी इनमें खूब रहती है. इन्हें अपने स्वास्थ्य का भी खूब ध्यान रखना चाहिए. इन्हें अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने की भी जरूरत है अपने आराम को भी कुछ प्रमुखता देनी चाहिए जिससे मन में स्फूर्ति बनी रह सके.

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आपकी कुंडली में ग्रह युति होने पर मिलेगा ये फल

दो ग्रहों का एक साथ युति का प्रभाव कुण्डली के अनेक प्रभावों को दिखाने में सहायक होता है. इसके प्रभाव से ग्रहों की युति का संबंध होने पर ग्रह मिलजुल कर फल देने में सक्षम होते हैं. किसी भी ग्रह की यह स्थिति उसे आपस में मिलकर प्रभावशाली फल देने वाली बनती है. यहां एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि जब दो ग्रह एक साथ युति संबंध में आ रहे हों तो वह चाहे मित्र हों या शत्रु उनके समान कारक अवश्य दिखाई देंगे.

इस प्रकार जैसे मंगल और शनि ग्रह की युति को देखें तो यह दोनों एक दूसरे के शत्रु माने जाएंगे तथा दोनों ही ही क्रूर ग्रह होते हैं इसलिए यहां पर दोनों के कारक तत्वों की समानता यदि देखी जाए तो दोनों ग्रह क्रूरता को दर्शाते हैं तथा जातक के स्वभाव में भी कुछ न कुछ गर्मी अवश्य दर्शाएंगे.

ग्रहों की युति का महत्व | Significance Of Conjunction of Planets

ग्रह युति का संबंध भाव में ग्रहों की युति से है तथा इसके अतिरिक्त अंशात्मक युति को भी यहां ग्रहों के एक दूसरे के साथ संबंधों के लिए देखा जा सकता है क्योंकि एक दूसरे से एक भाव आगे पिछे होने पर भी जातक को इन ग्रहों की युति प्राप्त हो जाती है जो प्रभावशाली फल देती है.

अपनी दशा में जब संबंधी और सहधर्मी ग्रहों की अन्तर्दशा आती है. तो जातक को अनेक प्रकार के फलों को भोगना पड़ता है. जिसके फलस्वरूप सभी ग्रहों के अपने कारक तत्वों का समान होना उनकी अंशात्मक युति से भी प्रभावित होता है.

ग्रहों की प्रभावशालिता के कारण जातक को अनेक प्रकार के फल झेलने पड़ सकते हैं. उसे कई तरह की परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं. वह असमान रूप से ग्रहों की युति का प्रभाव झेलता है और उसके इस रूप में दोनों ही तरह के संपर्कों का आगमन होना स्वाभाविक होता है.

जब कोई ग्रह की अपनी दशा में सहधर्मि ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आती है तो ग्रह अपना संपूर्ण फल देने में सक्षम होते हैं. इस प्रकार जातक को इनके फलों की प्राप्ति होती है और वह अपने जीवन में आने वाले अनेक प्रभावों से प्रभावित होता है. किसी भी प्रकार से होने वाले उतार-चढाव उसके लिए काफी प्रभावशाली हो सकते हैं परंतु इस के साथ साथ इस बात को भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि जातक को कौन से भावों की दशा मिल रही है इस का भी असर ग्रहों पर दिखाई देता है.

ग्रह युति का प्रभाव | Effects Of Conjunction of Planets

इसके साथ साथ 1, 2, 5, 7, 9, 11 में अगर ग्रह बैठे हैं तो व्यक्ति में निर्णय लेने की अच्छी क्षमता होती है. व्यक्ति अपनी बात कहने की क्षमता रखता है, ऊर्जावान और दृढ़ निश्चय ही होता है. अपनी भावनाओं को बहुत ज्यादा अभिव्यक्ति करने वाला होता है. उसे हर छोटी बात प्रभावित कर सकती है. वह अपने मनोभावों को बढा़-चढा़ कर कहने वाला होता है. उसे किसी भी तरह से वह कहने के लिए स्वतंत्रता की चाह रखता है.

कुण्डली में यदि कोई ग्रह 2, 4, 6, 8, 10 भावों में हो तो व्यक्ति सहनशील होता है, उसका व्यवहार रक्षात्मक होता है और वह ज्यादा प्रेरित होता है. इस स्थानों पर ग्रहों की युति होने से जातक को स्वयं के लिए रक्षात्मक होना बढ़ जाता है.

कुण्डली में 1, 5 और 9वें भाव में ग्रहों की बनने वाली युतियां जातक को स्वतंत्रपूर्ण और साहस से युक्त बनाती हैं. जातक क्रियाशील और इच्छावान बनता है. व्यक्ति में स्फूर्ति भी बनी रहती है. इसी के साथ जातक में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है. वह रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत स्थिति में पाता है.
कुण्डली में 2, 6, 10 भावों में ग्रहों के होने पर जातक को स्थिरता प्राप्त होती है. धन संपन्नता बनी रहती है जातक को सम्मान की प्राप्ति है. स्वास्थ्य अच्छा रहता है, जातक के जीवन में सफलता बनी रहती है और वह आगे बढ़ता जाता है. व्यक्ति व्यवहारिक होने लगता है तथा अपने में ही सिमटे रहने की चाह रखता है.

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जन्म कुंडली में पदोन्नति के विभिन्न योग | Yogas related to Promotion in Janma Kundali

हर व्यक्ति जीवन में किसी ना किसी रुप में अपनी आजीविका कमाता है. कोई अपना व्यवसाय करता है तो कोई नौकरी कर के जीवनयापन करता है. नौकरी में भी व्यक्ति समय – समय पर अपनी तरक्की व पदोन्नति की चाह रखता है. आज हम नौकरी में अचानक होने वाली तरक्की तथा पदोन्नति के सूत्रों पर विचार करेंगे.

अनायास पदोन्नति के योग | Yogas for an Effortless Promotion

आज हम व्यक्ति के जीवन में होने वाली अचानक पदोन्नति के योगों से करेंगे अर्थात जन्म कुंडली के ऎसे योगो की चर्चा की जाएगी जिनके बनने पर व्यक्ति अपने जीवन में अनायास पदोन्नति पाता है. जन्म कुंडली के दशम भाव में दशमेश व नवमेश की युति हो और षष्ठेश व एकादशेश की दशम भाव पर दृष्टि, सप्तमेश की दृष्टि नवम भाव पर होने से व्यक्ति की पदोन्नति उसकी उम्मीद से बढ़कर होती है.

जन्म कुंडली में दशमेश नवम भाव में हो, नवमेश दूसरे भाव में हो, षष्ठेश लग्न में तथा धनेश व लाभेश की युति दशम भाव में होने पर व्यक्ति को अचानक पदोन्नति मिल जाती है. जन्म कुंडली में लग्नेश, नवमेश व दशमेश की युति, एकादश या दूसरे भाव में हो और षष्ठेश केन्द्र स्थान में स्थित हो.

दशम भाव पर नवमेश की दृष्टि और द्वित्तीयेश, षष्ठेश, लाभेश तीनो पाप प्रभाव में ना हो और केन्द्र से संबंध बना रहे हों. षष्ठेश व लाभेश की दृष्टि दशम भाव पर हो और दशमेश, नवम, दशम या एकादश भाव को देखे, नवमेश दशम भाव में स्थित हो तब व्यक्ति को अचानक पदोन्नति मिल सकती है.

षष्ठेश व दशमेश की परस्पर दृष्टि या युति हो तथा दशमेश, लाभ अथवा धन भाव में हो तब भी व्यक्ति अचानक पदोन्नति पाता है. जन्म कुंडली में मकर या कुंभ राशि में बृहस्पति स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो, स्वग्रही मंगल को सूर्य देख रहा हो तब व्यक्ति जीवन में अनायास ही पदोन्नति पा लेता है.

कुंडली में मिथुन या कन्या राशि में शुक्र स्थित हो, स्वग्रही मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो तब भी अचानक पदोन्नति के बनते हैं. जन्म कुंडली में तृतीयेश या षष्ठेश नीच का होकर, लग्न पर दृष्टि डालें तब भी अचानक पदोन्नति हो सकती है.

जन्म कुंडली में नीच राशि का कोई भी ग्रह तीसरे या छठे भाव में स्थित होकर, चंद्रमा से दृष्ट हो रहा हो तब भी अचानक पदोन्नति होती है. कुंडली में दशमेश की द्वितीयेश से युति हो रही हो तथा पंचमेश या नवमेश, दशम भाव में स्थित हो तथा षष्ठेश की दशम भाव पर दृष्टि हो तब भी व्यक्ति अचानक तरक्की पाता है.

जन्म कुंडली में लग्नेश, पंचमेश व भाग्येश की युति दशम भाव में हो रही हो तथा दशमेश पाप ग्रह के प्रभाव में ना हो तब व्यक्ति जीवन में अचानक तरक्की पाता है.

पदोन्नति होने के योग | Yogas for Promotion

आइए अब पदोन्नति के कुछ अन्य योगों की बात करते हैं. जन्म कुण्डली में षष्ठेश व दशमेश का संबंध शुभ ग्रहों से तथा नवम, दशम व एकादश भाव या भाव स्वामी से हो तब व्यक्ति आजीविका के क्षेत्र में उन्नति करता है.

लेकिन जब जन्म कुंडली में षष्ठेश या दशमेश, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो और शुभ ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध ना बन रहा हो तब व्यक्ति को आजीविका क्षेत्र में बाधाएँ आती हैं.

नियमित पदोन्नति के नियम | Yogas for Governed Promotion

आइए अब हम जन्म कुंडली में नियमित रुप से होने वाली पदोन्नति के विषय में बात करते हैं. कुंडली में दशम भाव पर लग्नेश या शुभ ग्रह की दृष्टि हो तथा द्वादश भाव में दशमेश स्थित हो और लाभेश व धनेश से दृष्ट भी हो रहा हो तब व्यक्ति नियमित रुप से तरक्की करता है.

कुंडली में नवम भाव पर लग्नेश की दृष्टि हो तथा धनेश, छठे भाव में स्थित होकर लाभेश से दृष्ट हो रहा हो तथा द्वादश भाव में दशमेश स्थित हो तब व्यक्ति नियमित तरक्की पाता है. दशम भाव पर धनेश अथवा लाभेश व षष्ठेश की दृष्टि होने पर भी व्यक्ति नियमित रुप से पदोन्नति पाता है.

जन्म कुंडली में दशमेश तथा षष्ठेश से धनेश या लाभेश का दृष्टि संबंध या युति संबंध बन रहा हो तब नियमित पदोन्नति होती है. षष्ठेश पर दशमेश की दृष्टि हो तथा दशमेश या दशम भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर जीवन में नियमबद्ध रुप से पदोन्नति होती है.

जन्म कुंडली में षष्ठेश या छठे भाव का संबंध योग कारक ग्रह से होने पर भी नियमित रुप से पदोन्नति होती रहती है. जन्म कुंडली में शुभ व बली गुरु की दृष्टि दशमेश पर होने से नियमित पदोन्नति होती है.

यदि कुंडली में दशमेश आठवें भाव में हो तथा षष्ठेश भी नीच का हो लेकिन छठे भाव या षष्ठेश पर दशमेश की दृष्टि थोड़ी बाधा व विलंब के बाद पदोन्नति दे ही देती है.

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