कर्क, सिंह और कन्या राशि पर मंगल की दृष्टि का फल

कर्कस्थ मंगल फल | Mars Aspecting Cancer

कर्क राशि में मंगल के स्थित होने पर जातक को अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है. मित्र राशि में रहकर मंगल को कुछ शीतलता का अनुभव भी होता है. मंगल के आक्रामक और उग्र स्वभाव में कुछ कमी आती है. यह स्थिति कर्क में विपरित फल देने वाली बनती है जातक को परिवर्तन अधिक पसंद नहीं होता है. वह स्थिरता में विश्वास रखने वाला होता है. मानसिक द्वंद की स्थिति इनमें अधिक रहती हैं मन के आवेगों को रोक पाना काफी मुशकिल होता है. इस कारण से व्यक्ति में विकलता का भाव निहित होता है.

व्यक्ति में उत्त्म भोजन ओर वस्त्रों की चाह रहती है, आर्थिक स्तर को बेहतर बनाने की कोशिशों में सफलता पाता है. मंगल की कर्क में स्थिति आर्थिक संपन्नता की परिचायक बनती है. इस स्थिति के द्वारा जातक को जीवन में ऎश्वर्य और संपन्नता की प्राप्ति होती है. जातक अपने साथ-साथ दूसरों को भी समृद्ध बनाने में सहायक होता है. कोमलता और दया भावना इनमें बहुत होती है.

दोनों ग्रहों का मित्रवत संबन्ध इस योग में और भी शुभता ला रहा है. आजीविका, स्वास्थय और संचय के साथ- साथ परिवार पर इसका अनुकुल प्रभाव पड़ता है. जोश, उत्साह की स्थिति कुछ कम होती है. कार्यो को त्रुटि रहित रखना इनके स्वभाव का अंग बन सकता है. कुछ करने के लिए कमजोर दिखाई दे सकते हैं, लेकिन पूरी मजबूती का परिचय देते हैं. इनकी ताकत इनकी दृढ़ता में निहित होती है. बहुत भावनात्मक होते हैं संबंधों में भावनात्मक संबंधों को अधिक महत्व देते हैं. आश्वासन और विश्वास के साथ, सुरक्षा में सहायक और भरोसेमंद होते हैं. शांति से और नम्रता से स्थितियों को संभालने के की कोशिश करते हैं.

सिंहस्थ मंगल का फल | Mars Aspecting Leo

सिंह राशि में मंगल ग्रह महत्वपूर्ण हो सकता है और एक स्थायी छाप बनाना चाहता है. भावुक होते हैं और मजबूत इरादों वाले भी होते हैं. जोखिम लेने और महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए तैयार रहते हैं.इनमें अधिकार और व्यक्तिगत आकर्षण की एक मजबूत स्थिति होती है.

अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है. इनमें अहंकार भी आ सकता है सिंह राशि में मंगल ग्रह शारीरिक ऊर्जा को बढा़ने का काम करता है. जातक काफी व्यावहारिक होता है, आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बनता है. इन जातकों में नेतृत्व करने की खूबी अच्छी होती है. एक योग्य नेता के रूप में सफल भी हो सकता है.

अपनी राय के साथ अडिग रहने वाला होता है. कभी-कभी उसका व्यवहार दबंग और जिद्दी हो सकता है. अधि स्वाभिमान उनके लिए पतन का कारण भी बन सकता है अत: इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. जातक एक बेहतर खिलाड़ी के रूप में भी नाम कमा सकता है इसमें हास्य की अच्छी समझ होती है, और इनके वचन गर्मजोशी से भरे हुए होते हैं. यह अपने कार्यों के माध्यम से एक विरासत छोड़ना चाहते हैं. जातक में उदारता होती जिस कारण वह एक अच्छे साथी के रूप में उभर कर सामने आता है.

कन्याराशिगत मंगल का फल | Mars Aspecting Virgo

कन्या राशि में मंगल के होने से जातक सज्जनों द्वारा प्रशंसित होता है. जातक काफी व्यवहारिक होता है और जीवन में लक्षय के प्रति सदैव सजग रहता है. यह कई चिजों को एक साथ करने में लगे रहते हैं और इन सभी बातों को संभालने की कला भी इन्हें अच्छे से आती है. कन्या राशि में मंगल की स्थिति जातक को कभी कभी आलोचनात्मक भी बना देती है जिस कारण लोगों से द्वेष की स्थिति भी उभर सकती है. आम तौर पर तार्किक और अनुशासित हैं. जिद्दी हो सकता है, लेकिन वे आक्रामक नहीं होता. आसानी से नर्वस हो सकता है. चीजों को अपने तरीके से करना पसंद करता है.

गुस्सा होने पर यह जल्द ही चिडचिडे़ भी हो जाते हैं. यह कार्यों को अपने अनुसार करने की चाह रखते हैं ओर मेहनत से पिछे नहीं हटते. परंतु तुरंत किसी भी बात पर इनका प्रतिक्रिया करना काफी असहज सा होता है जो स्थिति को खराब भी कर सकता है. यह एक योधा के समान होते हैं और किसी एक बात पर अधिक समय तक लगे नहीं रह सकते.

आथिक स्थित से सपन्न रहता है, संगीत के प्रति लगाव रहता है. बोलने में मधुर होते हैं. जातक धन का अपव्यय भी खूब करता है. विद्वान होता है और धर्म के अनुसार आचरण करने वाला होता है. बहुत से विषयों में जानकार रखने वाला होता है. सुम्दर वस्त्राभूषणों से युक्त होता है तथा सुंदर आकर्षक व्यक्तितव का स्वामी होता है.

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 1”

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 3”

“मंगलराशि दृष्टि योगफल – भाग 4”

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संकटा योगिनी दशा | Sankata Yogini Dasha

संकटा दशा राहु की दशा होती है इस दशा की अवधि आठ वर्ष की मानी गई है. यह दशा धन, यश और पद प्रतिष्ठा की हानि करती है. परिवार से वियोग कष्ट प्राप्त होता है. जातक में मनमानी व हठ की प्रवृत्ति अधिक रहती है. इस दशा में व्यक्ति को संघर्ष की स्थिति का सामना करना करना पड़ सकता है और जातक में गुस्से की स्थिति बनी रहती है.

देह कष्ट, मनोव्यथा व जैसी समस्याओं का अनुमोदन किया है. ज्योतिष विद्वानों नें राहु को एक पाप ग्रह की संज्ञा दी है. इस कारण संकटा योगिनी दशा में जातक को अनेक प्रकार की राहु से संबंधित प्रभावों को भी अपने में देखना मिल जाता है. संकटा दशा में जातक की बुद्धि भ्रमित रह सकती है तथा मन में द्वंद की स्थिति देखी जा सकती है. अनैतिक आचरण और गलत कामों द्वारा धन कमाने की ओर अग्रसर रह सकते हैं. इसी के साथ कुसंगति में होने पर धन का नाश व मान समान की हानि का सामना करना पड़ सकता है. जो व्यक्ति के लिए संताप को बढा़ने वाला हो सकता है.

कुछ विद्वान संकटा दशा का संबंध विष संबंधि दुर्घटनाओं, वरिष्ठ जनों के सहयोग से होने वाले कामों में सफलता मिलना, न्याय करने वाला होना, काम के प्रति रात दिन को एकाकार कर देना, धन की प्राप्ति, भ्रमण इत्यादि से जोड़ते हैं. परिवार से संताप मिलता है व कष्ट की अनुभूति बढ़ जाती है.

दया व परोपकारित के कामों में उन्मुख होना तथा अधिकार एवं सत्ता के सुख व सेवकों को पाना भी संकटा दशा के दौरान हो सकता है. इन दो विचधारों के मध्य संकटा दशा एक तथ्य को तो अवश्य दर्शाती है कि राहु से संबंधित फलों के मिलने की दशा प्रबल होती है इस समय में जातक परंपरा से हट कर कामों को करने की ओर उन्मुख रह सकता है. गुढ विद्याओं के प्रति आसक्त हो सकता है.

संकटा योगिनी दशा में व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है. व्यक्ति को शस्त्र या जहर का प्रकोप प्रभावित कर सकता है. व्यक्ति में क्रोद्ध करने की प्रवृत्ति अधिक बढ़ सकती है और शांति से कार्यों को निपटाने की शक्ति कम होने लगती है. जिसके कारण मन अशांत रहने लगता है. यह दशा उपद्रव व अशांति को बढा़ती है. अग्नि एवं दुर्घटना से भय दिलाती है. इस अवधि में अशुभता के लक्ष्णों को अधिकता में बताया गया है.

व्यक्ति अनैतिक आचरण और गलत कामों द्वारा धन कमाने की ओर अग्रसर रह सकता है. इसी के साथ कुसंगति में होने पर धन का नाश व मान समान की हानि का सामना करना पड़ सकता है. जो व्यक्ति के लिए संताप को बढा़ने वाला हो सकता है.संतान की ओर से चिंता का सामना करना पड़ता है.

दया व परोपकारिता के कामों में उन्मुख होना तथा अधिकार एवं सत्ता के सुख को पाना भी संकटा दशा के दौरान हो सकता है. जातक में बहस या जिद्दीपन आ सकता है. यह दशा व्यक्ति को उच्च पद प्राप्ति में भी सहायक होती है. इस दौरान विदेश यात्रा का भी संयोग बन सकता है. निम्न वर्ग के लोगों के साथ काम करने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है. कार्य में स्थानांतरण या न चाहते हुए भी स्थान से अलग होना पड़ सकता है. जातक अपनी समझदारी से अपने साहस एवं कौशल द्वारा अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के प्रयास में लगा रहता है.

यदि जातक शांत एवं सूझबूझ से काम ले तो वह सरकार से सम्मान एवं अपनी सफलता को सुनिश्चित कर सकता है. मेहनत एवं कडे़ संघर्ष द्वारा व्यक्ति धनी मानी व्यक्तियों की कृपा से लाभ प्राप्त करने में काफी हद तक सफल होता है.
नए संबंधों की ओर झुकाव महसूस कर सकता है. बिना सोचे समझे कुछ अनचाहे फैसले भी वह ले सकता है, जिस कारण उसे परेशानियों का सामना भी करना पडे़. ऎसे समय में चाहिए की वह अपनी सोच को विस्तृत करे ओर सभी पहलुओं पर विचार करते हुए किसी फैसले पर पहुंचे. ऎसा करने से वह अपनी कई परेशानियों पर काबू पाने में सफल हो सकता है और दशा के फलों को सहने योग्य स्वयं को बना सकता है.

व्यक्ति की कुण्डली के योग दशाओं में जाकर फल देते है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर अनेक योग बन रहे हैं लेकिन फिर भी वह व्यक्ति साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहा है. तो समझ जाना चाहिए. की उस व्यक्ति को योगों से जुडे ग्रहों की दशाएं अभी तक नहीं मिली है. यदि व्यक्ति को उचित दशाएं सही समय पर मिल जाती है यो उस व्यक्ति को जीवन में सरलता से सफलता के दर्शन हो जाते है. क्योकी यह दशाओं का ही खेल है की व्यक्ति फल प्रदान करने में सहायक होता है.

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सिंह लग्न का पांचवां नवांश होता है देता है शुभ फल

सिंह लग्न का पांचवां नवांश वर्गोत्तम होता है यह सिंह राशि का ही होता है. इस लग्न के नवांश की यह स्थिति त्रिकोण की अवस्था की द्योतक है. इस नवांश में जातक का जन्म होने पर वह बुद्धिमान और योग्य स्थिति पाता है. इस नवांश के स्वामी सूर्य हैं और यह एक उत्तम स्थिति को दर्शाता है. वर्गोत्तम स्थिति श्रेष्ठ और अनुकूल मानी जाती है और ग्रह को इससे बल की प्राप्ति होती है.

ग्रह की बली अवस्था में जातक को स्थिरता और संतोष की प्राप्ति होती है. वह अपने कार्यों में निपुणता का परिचय देता है. इसी प्रकार सिंह नवांश में जातक को दृढ़ता साहस और शौर्य की प्राप्ति होती है वह कार्य को करने में निड़रता का परिचय देता है. सिंह लग्न के पांचवें नवांश में जन्म लेने पर जातक का शरीर मजबूत होता है, इनके शरीर के सभी अंग प्राय: बडे़ होते हैं इनका चेहरा और पेट बडा़ होता है.

छाती चौडी़ और भुजाएं सामान्य आकार की होती हैं. इनके सिर पर बाल कम होते हैं व त्वचा रूखी होती है. जातक में शारीरिक शक्ति और ऊर्जा का भंडार होता है. जातक कायों को करने में पूर्णता का प्रदर्शन करने वाले होते हैं, लेकिन जल्द ही किसी के द्वारा भावुक भी हो जाते हैं और जोश में आकर काम कर बैठते हैं.

सिंह लग्न के पांचवें नवांश का प्रभाव | Effect of Fifth Navamsha of Leo Ascendant

यह दिर्घायु होते हैं और धन व समृद्धि पाने वाले होते हैं. युवा अवस्था उपरांत यह अच्छी प्रगति करते हैं. इनकी भाषा में दृढ़ता का भाव होता है. यह जो भी वक्तव्य कहते हैं उसे जोश और ऊर्जा के साथ अभिव्यक्त करते हैं. इनकी वाणी में भारीपन होता है तथा अधिकारयुक्त होती है. यह जो भी बात कहते हैं वह अदेशात्मक का भाव लिए होती है.

यह मेहनत करने वाले होते हैं और लम्बी दूरी को पैदल ही पूरा कर लेने में सक्षम होते हैं जल्दी थकावट अनुभव नहीं होती है. यदि इन्हें गलत संगत मिलती है तो यह अपने को संभालने में सक्षम नहीं हो पाते हैं जिस कारण इनके ऊपर बुरे प्रभाव भी पड़ते हैं. इन्हें साथी के रूप में सुंदर, हंसमुख और सहभागिता से पूर्ण व्यक्ति की प्राप्ति हो सकती है. साथ व्यवहार कुशल व चतुर होता है.

वचन से सत्यवादी होता है और अपने कर्मठ द्वारा आगे बढ़ने में सक्षम रहता है. पारिवारिक जिम्मेवारियों को समझने वाला होता है. दोनों के विचारों में कई बार तनाव की स्थिति हो सकती है लेकिन साथी के अनुकूल व्यवहार से यह शांत हो जाते हैं. इन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है जिससे इनके वचनों में कठोरता का भाव कम रहे और यह अन्य के साथ सहयोगात्मक रवैया अपना सकें.

सिंह लग्न के पांचवें नवांश का महत्व | Significance of Fifth Navamsha of Leo Ascendant

यह हृदय से उदार होते हैं और सहायता के लिए तत्पर रहते हैं. यह नेतृत्व की चाह रखने वाले होते हैं और कार्यों में अग्रीण भूमिका निभाना चाहते हैं. रचनात्मकता के गुणों से युक्त होते हैं. सिद्धान्तों व अनुशासित ढंग से कार्य करना इनकी प्रकृति में होता है. महत्वाकांक्षी होते हैं और कभी-कभी लालची भी हो सकते हैं. स्वतंत्र विचारक किंतु रूढ़िवादी भी होते हैं. धर्म के प्रति उदार भावना रखते हैं, धर्म का पालन पूर्ण श्रद्धा के साथ करते हैं. मित्रभाव रखते हैं किसी पर इनका प्रभाव शीघ्रता के साथ पड़ता है.

अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं. व्यवसाय में लेने वाले निर्णयों को बहुत खूबी के साथ लेने का प्रयास करते हैं. जीवन में कभी-कभी आर्थिक रूप से तंगी भी आ सकती है इसके लिए तैयार रहने की आवश्यकता होती है ऎसे समय में यदि धैर्य के साथ कम लेते हैं तो इन समस्याओं से निजात भी जल्द ही मिल जाती है. साझेदारी में किए गए कार्यों से यह स्वयं को बंधा हुआ महसूस कर सकते हैं इन्हें स्वच्छंद रहने की चाह होती है. इसलिए अपने काम में हस्तक्षेप को अधिक सहन नहीं कर पाते हैं.

इन सभी मिले जुले फलों के मध्य चलते हुए सिंह नवांश के जातक में यदि एक बात देखी जाए तो वह उनकी स्थिरता को दर्शाने वाली होती है क्योंकि इन्हें अधिक बदलाव की चाह नहीं रहती है यह अपने को सीमित रूप से भी दिखाने में सक्षम होते हैं. इन्हें अधिक शोर पसंद नहीं यह एकांत में भी प्रसन्न रह सकते हैं. इन्हें संतान की चिंता भी रह सकती है, लेकिन उसके गुणों द्वारा यह अपने सम्मान की वृद्धि भी पाने में सफल रहते हैं.

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कब हो सकता है धन लाभ या होगी हानि अपनी कुंडली से जाने

वैदिक ज्योतिष में बनने वाले योगों द्वारा धन संबंधी मामलों को समझने में बहुत आसानी होती है. जैसे की जातक के जीवन में कौन सी ग्रह दशाएं ऎसी हैं जो उस धन प्राप्ति में मददगार हो सकती हैं और कौन सी उसके लिए आर्थिक हानि का कारण बन सकती है. व्यक्ति में यह जानने की चाह तो सदैव ही बनी रहती है की उसकी आर्थिक स्थिति कब बेहतर बनेगी या उसे अपनी आर्थिक समस्याओं कब राहत मिल सकेगी. इसके लिए यह समझना जरूरी है कि जन्म कुण्डली में कौन सी दशाएं लाभ देने वाली होती हैं और कौन से ग्रहों के प्रभाव से उसे परेशानियों और अचानक से होने वाले नुकसान को सहना पड़ सकता है.

  • वैदिक ज्योतिष में पराशरी नियमों को समझने का प्रयास करें तो हम काफी हद तक इस तथ्य को समझ सकेंगे कि आर्थिक स्थिति का निर्धारण किस प्रकार से किया जाए. पराशर जी के नियमानुसार जो ग्रह केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी होते हैं तथा अन्य शुभ भावों के स्वामी हो तो कुण्डली में बनने वाली यह स्थिति जातक को वांछित सुख की प्राप्ति कराने में सहायक होती है.
  • पराशरीय राजयोग कारक अथवा अन्य पराशरी शुभ ग्रह उन ग्रहों की अपेक्षा जो ऎसे राज योगकारक या शुभ नहीं हैं अधिक धन दे सकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
  • कुण्डली में जो भाव पाप प्रभाव वाले अथवा खराब कहे जाते हैं वह और उनके स्वामी अगर केवल पाप प्रभाव में हों तो भी पापत्व के नाश द्वारा शुभ तत्व और धन की प्राप्ति में बहुत सहायक बन सकते हैं.
  • अच्छे और बुरे ग्रहों का निर्धारण करने पर हम उन ग्रहों की महत्ता को समझ सकते हैं. इसलिए ग्रहों के मूल्यांकन समय इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि एक ही लग्न के योग कारकों का स्तर अलग- अलग हो सकता है क्योंकि जहां एक कुण्डली में योगकारक साधारणत: बली अवस्था में है वहीं दूसरी स्थिति में वह तीनों ही लग्नों से योगकारक निकलता है और प्रमुख रूप से मजबूत स्थिति को पाता है.
  • किसी भी कुण्डली में आर्थिक स्थिति का स्तर जांचने हेतु इन बातों को समझने के लिए शुभ धनदायक योगों में से कितने योग उस कुण्डली में उपस्थित हैं और जो योग हैं उन योगों की संख्या जितनी ज्यादा होगी उतना जी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार रहेगा.
  • जन्म कुण्डली में लग्न का, दूसरे भाव, नवें भाव और एकादश भाव के स्वामियों का मजबूत स्थिति में होकर परस्पर एक दूसरे को युति अथवा दृष्टि संबंधों द्वारा प्रभावित करना आर्थिक स्थिति के लिए उत्तम माना जाता है.
  • एक अन्य नियम अनुसार बुरे भावों का अर्थात 3, 6, 8, और 12 के स्वामियों का अपनी राशियों से अनिष्ट भावों में बैठना या दूसरे बुरे भावों में बैठना तथा पाप ग्रहों द्वारा ही संबंध बनाने से विपरित राजयोग जैसे फलों की प्राप्ति संभव हो सकती है.
  • लग्न के स्वामी और चंद्र लग्न के स्वामी तथा सूर्य लग्न के स्वामियों का परस्पर एक दूसरे से युति में होना अथवा दृष्टि संबंध बनाना एक अच्छे धन योग को दर्शाने में सहायक होता है.
  • चार या चार से अधिक भावों का अपने स्वामियों द्वारा दृष्ट होना भी कुण्डली की मजबूती और धन योग में सहायक बनता है.
  • किसी भी उच्च ग्रह का शुभ स्थान में होना और उस स्थान के स्वामी का स्थान भी उच्चता वाला हो जाना ऎसी स्थिति में ग्रह अधिक शुभ आर्थिक स्थिति लाभ देने में सक्षम हो जाता है.
  • ग्रहों की स्थिति का मूल्यांकन उनकी महादशा में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. यह मूल्यांकन विभिन्न प्रकार से घटता-बढ़ता जाता है यदि कोई ग्रह बुरे स्थान में होने के कारण अथवा शत्रु राशि में स्थित हो या बहुत कम अंशों में हो तथा पाप युति या दृष्टि से प्रभावित हो तो उक्त ग्रह की दशा परेशानी और धन हानि का संकेत दे सकती है.

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विभिन्न ग्रहों का स्थान बल में प्रभाव | Effects of Strongly Placed Planets

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कोई भी ग्रह मित्र राशि में, उच्चराशिस्थ, मूल त्रिकोण या स्वक्षेत्री होने से अधिक बल प्राप्त करता है. स्थान बल के अंतर्गत पांच प्रकार के बलों को शामिल किया गया है. जिसमें उच्च बल, सप्तवर्ग, ओजयुग्म बल, केन्द्र बल, द्रेष्काण बल आते हैं.

ग्रह को स्थान बल मिलने पर जातक धैर्यवान, स्थिर व शांत चित का होता है. अपने कामों में स्वतंत्रता की इच्छा रखने वाला होता है. स्वतंत्र व स्वावलंबी होता है. भाग्य का साथ पाता है और मित्रों के सहयोग से सुख को बनाए रखने में सफल रहता है.

स्थान बली ग्रहों का महत्व | Significance Of Strongly Placed Planets In A Horoscope

सूर्य | Sun

सूर्य के स्थान बली होने पर जातक को मित्र व बंधुओं से सहयोग व प्रेम की प्राप्ति होती है. कृषि व पशुधन का लाभ होता है. अच्छे संस्कारों की प्राप्ति होती है. व्यापार में व्यक्ति अच्छी प्रगति पाता है और अपने कार्यों में सम्मान की स्थिति देखता है. धन की प्राप्ति और राज्य से समान एवं सुख मिलता है. धर्माचरण करने वाला और आत्मा से पवित्र होता है.

स्थान बल से कमजोर होने पर जातक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता है. पिता के लिए चिंता व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. सरकार की ओर से सहायता में कमी रह सकती है तथा स्वास्थ्य में कमी झेलनी पड़ सकती है.

चंद्रमा | Moon

स्थान बली होने पर जातक को सुख की प्राप्ति मानसिक सुख की प्राप्ति होती है. कीर्ति फैलती है. जातक को कृषि या दुग्ध उत्पादों से लाभ मिलता है. वस्त्राभूषण व भोग पदार्थों की प्राप्ति होती है. माता का सुख बना ता है तथा अपने बंधुओं से प्रेम की प्राप्ति होती है. स्त्री का सुख मिलता है व सौभाग्य में वृद्धि होती है.

चंद्रमा का स्थान बल से हीन होने पर जातक को कृषि की हानि या अनाज की कमी झेलनी पड़ सकती है. मन:स्थिति बेचैन बनी रहती है. किसी न किसी कारण मन अशांत रहता है व तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ सकता है. माता व स्त्री को कष्ट की अनुभूति हो सकती है. बंधु जनों से वाद-विवाद की स्थिति परेशान कर सकती है.

मंगल | Mars

मंगल के स्थान बली होने पर भूमि-भवन की प्राप्ति होती है. काम में सफलता मिलती है. साहस और बल में वृद्धि होती है. निर्भय होकर काम करता है. रक रूप में सहायक बनता है. अधिकारों से पूर्ण होता है तथा स्वतंत्र होकर अपने कार्यों को अंजाम देता है.

मंगल के स्थान बल से हीन होने पर अधिकार व पद की प्राप्ति में रूकावट आती है. साहस में कमी तथा अधिक परिश्रमी नहीं हो पाता है. अधिक उग्र तथा नीच कर्म की ओर प्रवृत्त रह सकता है.

बुध | Mercury

बुध के स्थान बली होने पर जातक को बौद्धिकता की प्राप्ति होती है वह विचारों से शील होता है तथा हंसमुख स्वभाव का होता है. मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. उच्च पद व अधिकारों की प्राप्ति होती है. जातक धैर्यवान व उत्साही होता है. तर्क वितर्क करने में अग्रसर रहता है तथा अपने मत को सदैव आगे बढ़कर प्रस्तुत करने की चह रखता है.

स्थान बल से हीन होने पर जातक स्त्री व संतान की चिंता से ग्रस्त रह सकता है. बुद्धि कुतर्क में अधिक लग सकती है. समझ में कंइ आ सकती है. उचित-अनुचित का बोध नहीं कर पाता है. स्थान से दूर जाकर काम करता है अथवा पद से अवनती भी झेलनी पड़ सकती है.

गुरू | Jupiter

गुरू के स्थान बली होने पर जातक आशावादी बनाता है, सभी को साथ में लेकर चलने की चाह रखने वाला होता है. ज्योतिषी, वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता होता है.जातक प्रसिद्धि, खुशहाली को पाता है. गुरू जनों का साथ मिलता है, विद्वता व सदगुणों में विकास होता है.जीवन में यश-कीर्ति पाता है. जातक को राजा तुल्य जीवन जीने का अवसर मिलता है. स्त्रियों से सुख व संतान दायक बनता है.

गुरू के स्थान बल में कमजोर होने पर धन सम्पत्ति की हानि, स्वास्थ्य में कमी, सहयोगियों से मनमुटाव की स्थिति उभर सकती है. आत्मविश्वास में कमी रहती है, फैसले लेने में संकोची होता है. ज्ञान में कमी अती है तथा व्यक्ति में समझ का दायरा सीमित रहता है. पैतृक संपति का विवाद झेलना पड़ सकता है.

शुक्र | Venus

शुक्र के स्थान बली होने पर जातक शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक होता है. आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति में सहायक बनता है. जातक आराम पसन्द हो सकता है. प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे वस्त्र, , नृ्त्य, संगीत, गाना बजाना, विलासिता का शौकिन होता है. पति- पत्नी का सुख मिलता है. कला के साथ जुड़े क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करता है.

शुक्र के स्थान बल से हीन होने पर वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों में तनाव की स्थिति बनी रह सकती है. उत्पन्न कर सकते हैं. प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. अनैतिक आचरण करने वाला हो सकता है. स्वयं को अधिक बेहतर समझने वाला होगा तथा दिखावे की प्रवृत्ति हो सकती है. भाग्य के भरोसे रहने वाला होता है. मिथ्याभाषी भी हो सकता है. संपत्ति के सद-उपयोग नहीं कर पाता है. वाहनों का सुख नहीं मिल पात है.

शनि | Saturn

शनि के स्थान बली होने पर सेवकों का सुख मिलता है. श्रमिक, चालक तथा निर्माण कर्ता के रुप प्रसिद्धि पाता है. जातक वकील, नेता का काम करने वाला तथा गुढ़ विद्याओं में रुचि रखने वाला बना सकता है.

शनि के स्थान बल से हीन होने पर जातक अपने कार्य क्षेत्र में पहले से अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं. लाभ प्राप्ति के लिए एक से अधिक बार परिश्रम करना पड़ सकता है. शिक्षा तथा कार्यक्षेत्र में अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है. भाग्य साथ देने में थोडा़ अधिक समय लग सकता है. अचानक होने वाली घटनाएं हो सकती है. सुख को बनाए रखने के लिए आपको अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं.

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गुरु अगर कर्क, सिंह और कन्या में हो कैसा होता है असर

कर्कस्थ गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Cancer

कर्कस्थत होती है और वह अपने कर्मों द्वारा समाज में शुभता लाता है. किसी के हृदय को नहीं दुखाता है और सभी के लिए अच्छे काम करने की चाह रखता है. कर्क में गुरू के होने पर जातक विद्वानों का साथ पाता है. इस स्थान पर गुरू अधिक बल पाता है यहां गुरू को उच्चता प्राप्त होती है. इस स्थान में होने पर गुरू के फलों में वृद्धि होती है उसकी शुभता में वृद्धि होती है ओर शुभता से जातक सदाचारी बनता है. गुरू की यह स्थिति जातक के लिए उत्तम मानी जाती है. इसके शुभ फलों से व्यक्ति जीवन में तरक्की को पाता है तथा कार्यक्षेत्र में सफल होता है.

इसके प्रभाव स्वरूप व्यक्ति को अच्छे लोगों की संगती का साथ पाता है, उसे गुरू से दीक्षा प्राप्त होती है जो उसके सुचरित्र को जागृत करने में सहायक बनती है. देखने में सुंदर होता है आकर्षण से युक्त होते हुए वह सभी के मन को भाने वाला होता है. व्यक्ति अपने साथ-साथ दूसरों के हितों की भी रक्षा करता है और प्रेम के मार्ग पर चलने की चाह रखता है. द्वेष से दूर रहकर वह सज्जनों की संगती में उन्नती को पाता है. बुद्धिमान होने के साथ साथ योग्य भी होता है, व्यक्ति मुश्किल से मुश्किल विषयों को आसानी से समझ लेने वाला होता है, सृजनात्मक कार्य करने की ओर इनका रूझान बहुत होता है. इन्हें अपने कामों द्वारा समाज में एक विशेष स्थान प्राप्त होता है.

जातक स्वस्थ व मजबूत होता है. व्यवहार से दयालु होता है और धार्मिक तथा नैतिक मूल्यों को समझने वाला होता है. धन का आगमन बना रहता है. आर्थिक हानी की संभावनाएं न के बराबर रहती हैं. जीवन में तंगी की स्थिति नहीं उभरती है. जातक सामान्यत: विनोदी स्वभाव का हो सकता है. जीवन के प्रति इनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है तथा जीवन में आने वाली समस्याओं से विचलित नहीं होते और सकारात्मकता से कठिनाईयों को सुलझाते जाते हैं.

सिंहस्थ गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Leo

सिंहस्थ गुरू के होने पर जातक व्यवहार स्वरूप सभी के लिए समान होता है उसके साथ जो जैसा करता है वह उसी के अनुरूप उनके साथ होता है. शत्रुओं के साथ शत्रुतापूर्ण ओर मित्रों के साथ मित्रता पूर्ण होता है. दोस्तों का साथ इन्हें खूब मिलता है और यह मित्रता भी अच्छे से निभाने वाला होता है. धनवान होता है और अपनी मेहनत से आर्थिक स्थिति को उन्नत बनाने वाला होता है. शिष्ट लोगों से सम्मानित होता है और उनका साथ पाता है.

आजीविका के क्षेत्र में सभी प्रकार की परेशानियां धीरे-धीरे कम होती जाती हैं और कामयाबी का रास्ता साफ होता है, आर्थिक परेशानियां भी दूर होती हैं और समृद्धि के मार्ग बनते जाते हैं. पारिवारिक समस्याएं भी बातचीत व समझदारी से सुलझा सकते हैं. जातक सगे-सम्बन्धियों से सहयोग प्राप्त करता है. राजा जैसा या राजा के समान सामर्थ्य वाला होता है. इनका व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है तथा यह लोग अपनी छाप छोड़ने में सफल रहते हैं.

इस राशि स्थान के प्रभाव से जातक शौर्यवान होता है. सभा में अलग ही पहचान में आता है, अपने दोष से शत्रुओं का सदैव नाश करने में सफल होता है. मजबूत देह का स्वामी व स्वस्थ होता है. उच्च कुल का तथा सुंदर भवन में जन्म लेने वाला होता है. जातक को परिवार और पिता की ओर से स्नेह की प्राप्ति होती है.

कन्या राशिगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Virgo

कन्यागत गुरू के होने पर जातक बुद्धिमान और योग्य निर्णय लेने में दक्षता पाता है. धर्मपरायण होता है अपनी कार्यकुशलता द्वारा जातक सभी के समक्ष सम्मान अर्जित करने में सफल रहता है. ह्रदय से कोमल और शुभ विचारों वाला होता है. व्यक्ति अपने काम के प्रति पूर्ण निष्ठावान होता है. वह अपने काम में अग्रसर बना रहता है, जातक के जीवन में बहुत कठिनाईयां आती हैं लेकिन वह अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हुए आगे बढ़ता जाता है.

व्यक्ति शास्त्रों का जानकार होता है. अपनी उच्च क्षमता द्वारा वह कई तथ्यों से फलिभूत होता है. शिल्प कला में कुशल होता है. विभिन्न लिपियों का जानकार भी होता है. दान कर्म करने वाला और अपने पुण्यों द्वारा सफलता की बुलंदियों को छुने में सफल होता है. चरित्र से श्रेष्ठ होता है, धनवान और समृद्धशाली होता है. जातक अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में योग्य होगा और दायित्वों को निभाने वाला होगा.

जातक अपने साथ साथ अन्य लोगों पर भी प्रभाव छोड़ने वाला होता है. किसी भी प्रकार से वह अपने काम को पूर्ण करके ही दूर हटता है. अपने कार्यों में निपुणता पाता है. कुछ बातों का विचार करके देखा जाए तो यह जातक की चारित्रिक बलता में भी बल देने वाली स्थिति होती है. व्यक्ति का स्वभाव लचीला होता है और वह अपने को दूसरों के अनुरूप ढालने में सफल रहता है.

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 1”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 3”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 4”

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कैसा होगा मेष, वृष और मिथुन राशि वालों पर गुरु का प्रभाव

मेषगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Aries

मेषगत गुरू के होने पर जातक की वाणी में ओजस्विता का भाव देखा जा सकता है. व्यक्ति अपने विचारों को स्पष्टता के साथ प्रबल रूप से सभी के समक्ष रखता है. उसके वाद विवाद के समक्ष किसी का ठहर पाना आसान नहीं होता है. जातक अपने ज्ञान को बहुत प्रभावशाली तरह से दूसरों के आगे प्रस्तुत करने की कला जानता है. जातक अपनी सोच और उन्नत विचारधारा का परिचय देता है.

जातक व्यवहार कुशल होता है और परिश्रम द्वारा लाभ की प्राप्ति करता है. जातक क्रोध से युक्त होने पर भी अपने उदारतापूर्ण कार्यों को करने से दूर नहीं हटता वह दूसरों के साथ पूर्ण सहयोगात्मक का रूख अपनाता है. सदाचारी व सत्वगुणों द्वारा समाज कल्याण के कार्यों में लगा रहता है. व्यक्ति को पुत्र संतान की प्राप्ति होती है तथा वह संतान से सुख भी पाता है.

जातक के व्यवहार में दबंगपन भी होता है. हार नहीं मानते हुए व्यक्ति कार्य को सिद्ध करने के लिए प्रयासरत रहता है. व्यक्ति के शत्रु अधिक हो सकते हैं. इनका व्यय भी अधिक होता है. आर्थिक रूप से संतुष्ट रहते हैं लेकिन खर्चों पर नियंत्रण नहीं लग पाता है. जातक उग्रता पूर्वक कामों में लगा हुआ व दण्ड देने की चाह रखने वाला हो सकता है.

वृषगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Taurus

जातक को अपने जीवन साथी से प्रेम की प्राप्ति होती है तथा वह भी साथी के साथ प्रेम करने वाला होता है, स्त्री के प्रति इनका विशेष प्रेम रह सकता है. सुंदर वेष वाला और अच्छी वस्तुओं का शौकिन होता है. जातक स्वयं के लिए सुख साधन जुटाने वाला होता है और ऎश्वर्य की चाह रखने वाला होता है. शालिनता से पूर्ण व्यवहार करने वाला होता है.

वृषगत गुरू के होने पर जातक संयम रखने वाला हो सकता है. गुरू के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति भारी-भरकम शरीर वाला हो सकता है या उसे मोटापा भी हो सकता है. भक्ति में लीन रहने वाला होता है देव-ब्राह्मण की भक्ति करने वाला होता है. देखने में आकर्षक स्वरूप का तथा सभी का प्रिय बनता है. शुभ आचरण करने वाला तथा दया भाव से युक्त होता है.

इस राशि ग्रह के प्रभाव स्वरूप जातक को यह संबंध धन धान्य से युक्त बनाने में सहायक होता है. व्यक्ति को अच्छे लाभ की प्राप्ति भी होती है उसके पास गौधन तथा कृषि से धन की प्राप्ति होती है. उत्तम वस्तुओं व आभूषणों को पाने वाला होता है. कम बोलने वाला लेकिन प्रभावशाली तरह से अपनी बातों को दूसरों के समक्ष रखता है. नीतिकुशल होता है तथा विनय पूर्ण व्यवहार वाला और वैद्यक रूप में अच्छी कुशलता पाने वाला बनता है.

मिथुनगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Gemini

मिथुनस्थ गुरू के होने पर जातक धनवान और उत्तम गृह से युक्त होता है. अच्छा प्रभाव पड़ता है. शिक्षा के क्षेत्र में जातक प्रसिद्धि पाने में सफल होता है. धर्म कर्म के कार्यों में रूचि रखने वाला होता है. इसके कार्यों में चंचलता भी होती है किंतु योग्यता से पूर्ण होने पर इनके काम से इन्हें प्रशंसा प्राप्त होती है. विचारों के आदान प्रदान में सदैव लगे रहते हैं. इन क्षेत्रों में आप बहुत उन्नति पाते हैं.

इन्हें छोटी दूरी की यात्रा के अवसर करने के अनेक मौके मिलते हैं. इनके संबंध पड़ोसियों, भाई-बहनों और सहकर्मियों के साथ सामान्य रहते हैं सभी के साथ सामंजस्य की भावना रखने की कोशिश करते हैं. यह आशा और उत्साह से परिपूर्ण रहते हैं. अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश करते रहते हैं. इन्हें कोई न कोई नई चीज सीखने की इच्छा होती है या कोई नया शौक अपनाने की चाह बनी रहती है.

अपनी योग्यता द्वारा सभी को आश्चर्यचकित कर सकते हैं. अपने विचारों में सकरात्मक परिवर्तन बनाए रखते हैं. कभी कभी चीजों के होते हुए भी इन्हें किसी कमी का अहसास हो सकता है. धन वृद्धि के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ सकता है. काफी संघर्ष के बाद धन मिलने की संभावना बनती है. यह धर्म संबंधी कार्यों में बढ़ चढ़ कर रुचि ले सकते हैं.

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 2”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 3”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 4”

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सूर्य का अपने द्रेष्काण में होना बनाता है व्यक्ति को बलवान

ज्योतिष में द्रेष्काण की महत्ता के बारे में काफी कुछ बताया गया है. द्रेष्काण में किस ग्रह का क्या प्रभाव पड़ता है इस बात को समझने के लिए ग्रहों की प्रवृत्ति को समझने की आवश्यकता होती है. जिनके अनुरूप फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है तथा जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में होने वाले बदलावों और घटनाओं को समझ पाना आसान होता है.

सूर्य का स्व:द्रेष्काण में जाने का नियम | Principles Related to Sun Entering its own Dreshkan

सूर्य अपने ही द्रेष्काण में होना अर्थात किसी ग्रह का स्वयं के द्रेष्काण में होना जातक उसकी स्थिति को अधिक प्रभावशाली बनाने में सक्षम होता है. जातक की कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है. यह स्थिति ग्रह को बली बनाने में सहायक होती है. जातक के जीवन में इस स्थिति का प्रभावशाली रूप उभर कर सामने आता है. इस स्थिति के कारण ग्रहों को बल मिलता है तथा ग्रह की शुभता को बढ़ाने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में सहायक होती है.

सूर्य यदि अपने ही द्रेष्काण में जाए तो सूर्य को इस स्थिति के कारण अधिक बल प्राप्त होता है. द्रेष्काण कुण्डली में सूर्य की यह स्थिति में तीन कारणों से हो सकती है, पहला – सूर्य यदि मेष राशि में 10 से 20 अंशों तक का हो. दूसरा – दूसरा कारण की सूर्य अपनी ही राशि में अर्थात सिंह राशि में 0 से 10 अंशों तक का हो और तीसरा – कारण की सूर्य धनु राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित हो. कुण्डली में बनने वाली यह स्थिति सूर्य को बली बनाती है.

सूर्य का अपने ही द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effects of Sun in its own Dreshkan

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार किसी भी ग्रह का अपने द्रेष्काण में होना अच्छा माना जाता है. सूर्य का सूर्य के द्रेष्काण में होना सूर्य को मजबूत बनाता है अब यह स्थिति उसके किस भाव में बन रही है यह देखने पर ही ग्रहों के प्रभावों को समझा जा सकता है जो एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है, इससे सूर्य के प्रभाव में तेजी आती है. सूर्य सात्विक, राजा( राज्य का अधिकारी), तेजोमय, अग्नि से युक्त, प्रचंडताप युक्त ग्रह है. इस ग्रह के बली होने पर जातक को इसके प्रभाव का दोगुना फल प्राप्त होता है.

चमत्कार चिंतामणि, सारावली जैसे अनेक ग्रंथों में सूर्य के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है. जिसमें सूर्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें समान ही रही हैं जिनके अनुसार सूर्य के फल कथन को समझने में आसानी होती है.

सिंह राशि में 0 से 10 अंशों तक | When Sun is in Leo Sign from 0 to 10 Degrees

सूर्य के सिंह राशि में 0 से 10 अंशों तक होने पर यह स्थिति सूर्य को स्वराशि द्रेष्काण बनाती है. अपनी ही राशि में होने पर सूर्य को बल की प्राप्ति होती है और अपनी राशि के गुणों द्वारा स्वयं में वृद्धि पाता है. पिता व पित्तरों का प्रतिनिधि सूर्य कुण्डली में बली होने पर इनसे आशिर्वाद की प्राप्ति में सहायक होता है. सूर्य राजा है और सरकार का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए राज्य तथा देशों के प्रमुखों अधिकारियों से संबंधों के बारे में यह प्रमुख स्थान रखता है इसलिए इस द्रेष्काण में होने पर जातक को राज्य की ओर से लाभ की प्राप्ति हो सकती, वह सरकार की ओर से यात्राओं पर जा सकता है.

व्यक्ति साहसी बनता है किंतु एकांत प्रिय भी हो सकता है. स्वभाव से क्रोधी और विशिष्ट क्रियाओं में निपुण होता है. शत्रु का नाश करने वाला होता है. कामों को में प्रविणता पाने वाला तथा सदैव आगे रहने की चाह रखने वाला होता है. जातक स्वयं में मस्त रहने वाला होता है. जीवन को अपने अनुसार जीने की चाह रखता है. शूरवीर और भय से रहित रहता है. गम्भीर विचारों वाला होता है, अपनी बातों पर अडिग तथा कभी-कभी कुछ अंहकारी भी हो सकता है. हष्ट पुष्ट देह पाता है, व्यक्ति में भीड़ से अलग दिखने की चाह रहती है.

मेष राशि में 10 से 20 अंशों तक | When Sun is in Aries Sign from 10 to 20 Degrees

सूर्य यदि मेष राशि में 10 डिग्री से 20 डिग्री तक के मध्य में स्थित हो तो जातक को सूर्य के फलों में मेष राशि के प्रभाव भी प्राप्त होते हैं इस स्थिति में सूर्य अपनी सर्वोच्च स्थिति को पाता है. सूर्य के इस द्रेष्काण में होने से जातक अस्त्र शस्त्रों का जानकार बनता है. जातक के गुणों में वृद्धि होती है. व्यक्ति अपनी कृतियों और रचनाओं के कारण प्रसिद्धि पाता है तथा उसकी कलात्मक क्षमता में भी वृद्धि होती है.

सूर्य के मेष राशि के द्रेष्काण होने पर व्यक्ति के व्यवहार में गुस्से की अधिकता और किसी भी काम को जब तक समाप्त न कर ले तब तक चैन से न बैठ पाने की जो व्यग्रता रहती है वह इस राशि के द्रेष्काण में जाने से बढ़ जाती है. अत्यधिक तेज स्वभाव होना या जल्द ही गुस्सा हो जाना व्यक्ति की प्रकृति में देखा जा सकता है. व्यक्ति युद्ध संबंधी कामों में कुशल होता है, वह युद्धप्रिय हो सकता है. जिसमें शक्ति का समावेश हो ऎसे कार्य उसे अधिक प्रिय लग सकते हैं. सात्विकता के साथ ही उसमें ओजस्विता और अंह की पुष्टि भी हो सकती है.

जातक में भी स्थाईत्व का अभाव रह सकता है. वह भ्रमण करने का शौकिन हो सकता है तथा साहसिक कार्यों में रूचि रख सकता है. पित्त की अधिकता हो सकती है. रक्तविकार की संभावनाएं भी रहती हैं. जातक के चेहरे पर तेज रहता है. राज्य व पिता से समर्थन की प्राप्ति होती है. रोगों से लड़ने की क्षमता भी अच्छी रहती है.

धनु राशि में 20 से 30 अंशों तक | When Sun is in Sagittarius Sign from 20 to 30 Degrees

सूर्य के धनु राशि में 20 से 30 अंशों तक होने पर जातक आर्थिक संपन्नता को पाता है, स्वतंत्र विचारधार वाला होता है तथा किसी कि अधिनता में बंधे रहना इन्हें पसंद नहीं होता है. काम में पराक्रम दिखाने वाला होता है तथा सिद्धांतों पर चलने वाला होता है. परिवर्तन की लालसा रखता है, दार्शनिक और अन्वेषक हो सकता है. उत्साहजनक, सकारात्मक प्रकृति के होते हैं और दोस्त बनाने में भी आगे रहता है.

धनु राशि के प्रभाव में होने पर जातक में एक सात्विकता के साथ-साथ ही ओजस्विता भी झलकती है उसके गुणों में दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है. जातक मित्र की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है व एक अच्छे मित्र के रूप में सामने आता है तथा बदले में उपकार की उम्मीद नहीं रखता है, इनमें दया भावना नि: स्वार्थ होती है. दूसरे लोगों की योजनाओं में हस्तक्षेप नहीं करते और इनमें अधिकार जताने या जलन की प्रवृत्ति नहीं होती है.

इस द्रेष्काण में जातक अस्थिर चित्त वाला हो सकता है उसमें परदेसगमन की चाह बनी रहती है. साथ ही जातक धार्मिक यात्राओं को करने वाल होता है. परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने की प्रवृत्ति उसमें रहती है. वह अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होता है. कभी कभी जातक मुखिया का भार भी उठाने वाला बनता है. जातक में धार्मिक कार्यों के प्रति रुझान अधिक देखा जा सकता है वह कर्म की महत्ता को समझता है.

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बुध का मेष-वृष या मिथुन राशि में होने पर ऎसा होता है व्यक्ति पर असर

मेषगतदृष्टि बुधफल | Mercury Aspecting Aries

मेषगत बुध के होने से जातक में युद्धकला की खूबी होती है और वह युद्धप्रिय होता है. जातक अपने विषयों का अच्छा जानकार होता है. व्यक्ति निर्णय लेने में देरी नहीं करता है और किसी भी नतीजे पर जल्द से जल्द पहुंचने की कोशिश करता है. शौर्य में प्रविण होने के साथ ही इनमें ज्ञान की समझ भी खूब होती है किंतु सही संगत का साथ नहीं मिलने के कारण यह अपने कौशल को निखार नहीं पाते हैं. मौलिक ज्ञान में यह निपुण होते हैं और जिस भी विषय को जानते हैं उसमें पूरी तरह से विद्वता हासिल कर लेने की क्षमता रखते हैं.

इस राशि में स्थित होने से जातक में मंगल और बुध के गुणों का कुछ न कुछ प्रभाव स्वत: ही दृष्टिगोचर होता है. जातक कार्यों में चालाकी भी रखता यह अपना काम निकाल लेने की कला भी अच्छे से जानता है इसलिए उसके काम करने के तरीकों में छल करने का भाव भी हो सकता है जिससे वह अपने काम को बहुत सहजता से दूसरों द्वारा करवा भी सकता है.

शारीरिक रूप से कुछ कमजोर हो सकता है किंतु साहस में कमी नहीं होती है. इन्हें संगीत में रूचि रहती है और कला संबंधी विषयों में लगाव रहता है कई प्रकार से नाट्य कलाओं का भी शौक रखता है. अपने वचन में असत्यवादी भी हो सकता है. प्रेम में रमे रहने की इच्छा रखता है. चंचलता इनमें खूब होती है पर साथ ही यह कुछ मामलों में दृढ़ता के साथ खडे़ भी रहते हैं. इनकी मेहनत से कमाया गया धन कई बार व्यर्थ हो जाता है जिस कारण ऋण भी लेना पड़ता है आर्थिक स्थिति में उतार-चढा़व बने रहते हैं.

वृषस्थ बुधफल | Mercury Aspecting Taurus

इससे प्रभावित होने से जातक में दक्षता आती है उसमें चातुर्य होता है जिसके कारण वह अपने कामों को काफी सहजता और प्रभावशाली तरीके से कर लेता है. इनमें अपनी वाह वाही पाने की चाह होती है यह दान पुण्य करते हैं किंतु साथ में प्रशंसा भी पाने की इच्छा रखते हैं. वेद सम्मत होने के साथ साथ शास्त्रों के बारे में जानने का इच्छुक भी होता है. धर्मसंगत कामों में भी रूचि लेने वाला होता है.

जातक को अच्छे रहन सहन में रहने कि इच्छा रहेगी, वस्त्राभूषणों का शौक होगा. अच्छी और कीमती वस्तुओं के प्रति झुकाव अधिक रह सकता है. परिश्रम करने वाला होगा और अपनी देह को कसरत द्वारा सुंदर बनाए रखने कि चाह भी रखेगा. अपने विचारों में काफी दृढ़ विचारों हो सकता है और स्वभाव में कठोरता लिए रह सकता है.

आर्थिक रूप से जातक को काफी मजबूती मिलती है. बातों में उसके मिठास रह सकती है तथा उसके इस गुण से लोग उससे प्रभावित होते हैं. यह दूसरों की बातों को समझने वाले होते हैं, इनमें प्रेम की भावना अधिक होती है और रास विलास की चाह भी खूब रहती है. हास्य में रूचि लेते हैं तथा मनोविन्द की प्रवृति भी इनमें रहती है. किसी भी काम को करने में यह कुछ जल्दबाजी भी रख सकते हैं जिस कारण कुछ गड़बडी़ भी उत्पन्न हो सकती है किंतु अपने काम को संपूर्ण करने में इनकी लगन समाप्त नहीं होती और धैर्य के साथ काम को पूर्ण करने में लगे ही रहते हैं.

मिथुनस्थ बुधफल | Mercury Aspecting Gemini

मिथुनस्थ बुध के होने पर जातक जातक शुभ वेष धारण करने वाला बनता है, शुभ वचनों को बोलने वाला व प्रियभाषी होता है. साहयक बनता है और समाज कार्य में सहयोग करने वाला होता है. जातक की प्रसिद्धि भी खूब होती है वह अपने कार्यों द्वारा सभी के सम्मुख सम्मान भी पाता है. बोलने में काफी निपुण होता है परंतु कभी कभी इनके शब्दों में बड़बोलापन देखने को मिल सकता है. अपनी स्थिति से अधिक कहने कि इनकी आदत रहती ही है.

जातक स्वाभिमानी होता है और किसी की सहायता की अधिक चाह नहीं रखता है. सुख अधिक नहीं भोग पाता है. इनमें अधिक रतिकामना नहीं होती. विवाद में अधिक रमे रह सकते हैं बाल की खाल उतारना इनके व्यवहार में रह सकता है. स्वतंत्र विचारधार वाले होते हैं ओर अपने विचारों में किसी प्रकार का बदलाव इन्हें पसंद नहीं आता है.

कार्य कुशलता इनमें खूब होती है. इन्हें मित्र बनाना पसंद है ओर इनके मित्र भी ठेर सारे होते हैं जो इनके लिए सहयोगी भी होते हैं. संतान का सुख भी खूब मिलता है और यह अपने जीवन में मेहनत भी खूब करते हैं ताकी अपनी सफलता को पा सकें.

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 2”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 3”

“बुधगतदृष्टि फलाध्याय – भाग 4”

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व्यवसाय क्षेत्र में चंद्रमा का महत्व : चंद्रमा के कारण मिलेगा आपको ये काम

चंद्रमा की व्यवसाय और कार्यक्षेत्र में उपयोगिता है बहुत ही प्रभावशाली ढ़ग से उभर कर सामने आती है. व्यवसाय क्षेत्र में चंद्रमा एक जलीय ग्रह है अत: इसके कार्यों में जल से संबंधित वस्तुओं का व्यापार करने के अवसर देखे जा सकते हैं. चंद्रमा के तत्व में शीलता की प्रमुखता होती है और यह अपने काम एमं भी अपने जैसे शुभ गुणों को देने वाला बनता है. इसी के आधार पर चंद्रमा से प्रभावित होने पर व्यवसाय में व्यक्ति अपनी स्थिति के अनुकूल पाने की चाह रखता है वह कुछ विचारों में काफी विभिन्नता रख सकता है और अपने अनुरूप काम को एक-रसता में बंधने से दूर भी करता है.

चंद्रमा की स्थिति द्वारा व्यवसाय में उसका प्रभाव पूर्ण रूप से झलकता है. जातक को कार्य में चंद्रमा का प्रभाव देखने को मिलता है. चंद्रमा जब अन्य ग्रहों के साथ युति बनाता है या उनसे दृष्टि संबंध बनाता है तो जातक के व्यवसाय क्षेत्र में कई प्रकार के पहलू देखने को मिल सकते हैं. जातक अपने कार्य क्षेत्र में इन ग्रहों के शुभ व अशुभ दोनों रूपों की छाप देखता है. कौन सी बात अधिक प्रभाव दे रही है वह ग्रह के कारक तत्वों से स्पष्ट होती है जिससे जातक को व्यवसाय चयन व रूझान का भी पता चल पाता है.

चंद्रमा का व्यवसाय निर्धारण में योगदान | Role Of Moon In Business

  • यदि कुण्डली में चंद्रमा का दूसरे जलीय ग्रहों के साथ संबंध बनता है तो जातक पानी बेचने के कार्यों, नाव चलाने, पानी से जुडे़ कामों, रंग-रोगन के निर्माण कार्य से भी जुड़ सकता है.
  • चंद्रमा का खाने पीने की वस्तुओं से भी गहरा संबंध रहा है. क्योंकि चंद्र लग्न भी बनता है और जलीय ग्रह है अत: जब चंद्रमा का और द्वितीयेश का प्रभाव कार्य क्षेत्र पर पड़ता है तो जातक होटल, रेस्त्रां इत्यादि में काम करने की चाह रख सकता है.
  • दुग्ध से जुडे़ हुए पदार्थों की बिक्री या निर्माण कार्य से भी जातक का झुकाव रह सकता है. किसी न किसी प्रकार से तरल पदार्यों की बिक्री का भी काम इससे देखा जा सकता है.
  • जातक मछली पालन के क्षेत्र में काम करने लग सकता है. नेवी के काम में जा सकता है.
  • चंद्रमा को स्त्री ग्रह माना गया है अत: जब यह अपने ही जैसे दूसरे ग्रह के साथ संबंध बनाता है तो जातक स्त्री पक्ष के साथ मिलकर काम करने वाला बन सकता है.
  • चंद्रमा को रानी का स्थान प्राप्त है जिस कारण से राज्य से संबंधित होने के कारण यह ग्रह, सूर्य या बृहस्पति ग्रहों के साथ मिलकर सरकार और राजनीति से संबंधित कामों को करने अवसर भी देता है.
  • चंद्रमा सुगंध प्रिय है अत: शुक्र ग्रह का साथ पाकर सुगंन्धित तेलों के निर्माण कार्य या उन्हें बेचने से संबंधित काम करवाने में मददगार हो सकता है.
  • चंद्रमा दशम भाव में स्थित हो और उस पर राहु का प्रभाव आ रहा हो तो ऎसी स्थिति में जातक मादक पदार्थों जैसे शराब बेचने के काम में लग सकता है. इसी प्रकार यदि चंद्रमा नीच का हो राहु से संबंध बनाते हुए चतुर्थ भाव के साथ जुडे़ तो व्यक्ति गलत कामों से पैसा कमाने वाला हो सकता है परंतु इन स्थितियों के साथ अन्य तथ्य जैसे अन्य ग्रहों का दृष्टि प्रभाव और भावों का स्वामित्व भी इस ओर अपनी भूमिका निभाता है.
  • चंद्रमा को मन से जुडा़ मानते हैं मन का पूर्ण अधिपत्य चंद्रमा द्वारा प्रतिफलित होता है. ऎसी स्थिति में जब चंद्रमा, चौथे भाव या उसके स्वामी, शनि अथवा राहु के साथ दृष्टि या युति संबंध बनाता है तो जातक मन विरक्ति से युक्त हो सकता है तथा उसे उदासीन बना सकता है ऎसी स्थिति में जातक साधुओं जैसा व्यवहार कर सकता है अथवा रेन्टल इनकम द्वारा जीवन व्यतीत कर सकता है.
  • चंद्रमा यदि द्वितीयाधिपति होकर बुध जैसे व्यवसायी ग्रहों के साथ संबंध बनाता है तो धान की उपज का व्यापार कर सकता है.
  • कुण्डली में चंद्रमा लग्नेश होकर द्वितीयेश बृहस्पति से प्रभावित होता है तो व्यक्ति मिष्ठान के कामों से जीविकोपार्जन कर सकता है.
  • इसके अतिरिक्त जातक कपडा़ व्यवसाय, नर्सिग से जुडे़ कामों को करने वाला हो सकता है. फलों के जूस के काम में भी चंद्रमा का हस्तक्षेप बना रहता है.

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