शुक्र अगर इन राशि में हो तो कर देता है कमाल

मेषगत शुक्र का योगफल | Venus Aspecting Aries

मेष राशि में शुक्र की स्थिति होने पर जातक को नेत्र से संबंधी तकलिफ हो सकती है या कोई दृष्टि दोष हो सकता है. स्वभाव में क्रोध अधिक हो सकता है, कठोर हो सकता है किंतु कोमल अभिव्यक्ति से युक्त भी होता है. अपने गुणों के प्रभाव से शत्रु को भी अपनी ओर कर लेने की कला से परिचित होता है. व्यक्ति का कार्यक्षेत्र कैसा भी हो उसमें कलात्मकता का पुट देखा जा सकता है. अपने गंभीर फैसलों में अधिक दृढ़ होने में सफल नहीं हो पाता है. सभी के साथ परिचतों जैसा सहयोगात्मक रवैया अपना सकता है.

यह स्थिति नेत्र ज्योति पर प्रभाव डालने वाली रहती है. इस स्थिति के कारण जातक को अपने नेत्रों का ख्याल रखना चाहिए. व्यक्ति में दोष उभर सकते हैं वह गलत कार्यों की ओर जल्द ही अग्रसर हो सकता है. विरोध का स्वर अधिक तीव्र रहता है आसानी से किसी की नहीं सुनते हैं. स्त्री के प्रति आसक्त रहने वाला हो सकता है. प्रेम में निपुण होता है और अभिव्यक्ति में भावनाओं का संगम उत्तम स्तर का होता है. प्राकृतिक क्षेत्रों में रहने वाला होता है और इसी में रहने की चाह भी रखता है. अपने सभी ओर सुंदर मोहक दृश्य देखने की चाह रखने वाला होता है.

वन-पर्वतों में विहार करने वाला हो सकता है. मन से कठोर होने के कारण कभी-कभी निर्दयी स्वभाव का भी हो जाता है. स्त्री के कारण बंधनगामी हो सकता है. अधिपत्य की प्राप्ति चाहता है और अपनी कार्यक्षमता से वह अधिक से अधिक अधिकारों की प्राप्ती में सफल रहता है. व्यक्ति को समूह का नेतृत्व करने की शक्ति भी प्राप्त होती है. व्यक्ति में हठ का भाव भी अधिक होता है किसी बात को सोच लिया तो उसी पर लगा रहता है. कहीं ओर ध्यान नहीं लगा पाता है.

वृषगत शुक्र का योगफल | Venus Aspecting Taurus

यह एक अच्छी स्थिति होती है जिसमें इसे बल मिलता है और शुक्र की स्थिति भी मजबूत होती है. किसी भी प्रकार से यह उत्तम होते हैं तो व्यक्ति आभूषणों से युक्त होता है और अच्छे सुंदर वस्त्रों की चाह रखता है. जीवन में ऎश्वर्य को पाता है. धन कि स्थिति अनुकूल बनी रहती है. व्यक्ति स्त्रियों में रमा रहता है और उनके प्रति अधिक आकर्षण रखता है. रत्नों की प्राप्ती करता है. अनेक विषयों का जानकार बनता है. कलात्मकता से पूर्ण होता है व्यक्ति में कला के प्रति बहुत अच्छी अभिव्यक्ति रहती है. व्यक्ति के काम में आपको सौंदर्य का पुट मिल सकता है.

पालक बनता है और सभी के लिए सहायतार्थ युक्त कामों को करने वाला होता है. गोपालक के रूप में प्रसन्नचित्त होता है. दान पुण्य में विश्वास रखने वाला होता है और सहनशीलता से युक्त होता है. किसी भी क्षेत्र में होने पर भी इसमें एक अलग ही छाप दिखाई देती है. कृषि संबंधि कार्यों में लगा रहने वाला हो तो इस ओर अच्छे फल पाता है. वाहन इत्यादि संपदा से भी युक्त रहता है. सौंदर्य व शुभ्र वस्त्रों से सुसज्जित रहने वाला होता है. समूह से अलग दिखाई देता है और प्रेम कि चाह रखने वाला होता है.

व्यक्ति में परोपकार का गुण होता है और स्थिरता के कारण विश्वसनीय भी होता है. समाज कल्याण में रूचि रखने वाला होता है तथा शुभ गुण कर्म में रमा रहने वाला होता है. अपने बंन्धुओं का पोषण करने वाला होता है.

मिथुनगत शुक्र का फल | Venus Aspecting Gemini

यहां यह स्थिति मित्र भावना को दर्शती है. इसमें व्यक्ति गुणों को विस्तृत रूप में आगे ले जाने का सोचता है और अपने ज्ञान को अधिक बढा़ने में लगा रहता है. कला और शास्त्र में प्रसिद्धि पाने वाला होता है. व्यक्तिव से सुंदर और दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर लेने में सक्षम होता है. विद्या, कला और शास्त्र के ज्ञान को पाने में लगा रहता है और उसके द्वारा प्रसिद्धि भी पाता है. नाट्य कला में अच्छा अभिनय दिखाने वाला होता है सभी के सम्मुख प्रशंसा को पाता है. हंसमुख और रति प्रेमी होता है.

चित्रकार तथा भाव-भंगिमाओं को बहुत खूबी के साथ दूसरों के सम्मुख प्रकट करने की कला जानता है. काव्यक्र्ता तथा गीत संगीत का जानकार हो सकता है. मित्रों की अधिकता और स्नेह पाने वाला होता है. देवों और ब्राह्मणों के अनुरक्त होता है. सभी के साथ प्रेम स्वभाव दर्शाता है. सज्ज्नों की संगती से युक्त रहते हुए प्रसन्नचित होता है.

“शुक्रगत स्थिति का योगफल – भाग 2”

“शुक्रगत स्थिति का योगफल – भाग 3”

“शुक्रगत स्थिति का योगफल – भाग 4”

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गंडमूल नक्षत्र से डरें नहीं : ऎसे होती है इसकी शांति और दोष का उपाय

वैदिक ज्योतिष में गण्डमूल नक्षत्रों को लेकर बहुत से मत पाए जाते हैं लेकिन सभी के अनुसार गण्डमूल नक्षत्रों को अशुभ ही बताया गया है. इनमें जन्मा बच्चा अपने माता-पिता अथवा परिवार के किसी अन्य सदस्य के लिए भारी माना जाता है. इन गण्डमूल नक्षत्रों में तीन नक्षत्र केतु के तो तीन नक्षत्र बुध के शामिल हैं. कुछ शास्त्रीय ग्रंथकारों के अनुसार गण्डमूल का अपवाद भी माना गया है. आज हम गण्डमूल नक्षत्र के अपवाद के बारे में जानकारी देने का प्रयास करेंगे.

गण्डमूल नक्षत्र के अपवाद “गर्ग“ मत से | Exceptions of Gandamool Nakshatra as per Garg Opinion

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार कुछ परिस्थितियों में गण्डमूल नक्षत्र होने पर भी प्रभाव कम माना गया है लेकिन मूल शांति तब भी अवश्य करानी चाहिए. गर्ग मतानुसार रविवार के दिन अश्विनी नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होने पर गण्डमूल का प्रभाव उस पर अपेक्षाकृत कम होता है.

रविवार के ही दिन यदि गण्डमूल नक्षत्र में आने वाले अन्य किसी नक्षत्र में भी जन्म होता है तब उनका भी जातक के जीवन पर प्रभाव कम ही माना गया है. बुधवार का दिन हो और गण्डमूल नक्षत्र – अश्विनी, मघा, मूल, अश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म हो तब भी मूल नक्षत्र होने पर भी प्रभाव कम माना जाता है.

गण्डमूल का अपवाद वशिष्ठ मत से | Exceptions Related to Gandamool Nakshatra as per Vashishtha Opinion

आइए अब वशिष्ठ जी के मत की बात करते हैं, उनके मतानुसार व्यक्ति का जन्म यदि अभिजित मुहूर्त्त में हुआ है तब मूल दोष काफी हद तक खतम हो जाते हैं. लेकिन कुछ अन्य लोगो के मतानुसार इस कथन को विवाह लग्न में देखना चाहिए ना कि जन्म लग्न में.

वशिष्ठ जी के मतानुसार गण्डमूल नक्षत्रों के अतिरिक्त कुछ अन्य नक्षत्रों में जन्म होने पर भी दोष माना गया है. यह दोषकारक नक्षत्र है – चित्रा व पुष्य नक्षत्र का पहला, दूसरा चरण, पूर्वाषाढ़ा का तीसरा व उत्तराषाढ़ा का पहला चरण.

इन नक्षत्रों में जन्म होने पर बच्चा माता-पिता, भाई तथा स्वयं अपने लिए कष्टकारी सिद्ध होता है. लेकिन इन दोषकारक नक्षत्रों का फल जीवनभर नहीं रहता है अपितु यह एक वर्ष तक ही अपना दोष दिखाते हैं.

वशिष्ठ जी के मतानुसार दिन के जन्म में मूल के प्रथम चरण में जन्म होने पर बच्चा माता-पिता के लिए कष्टकारी होता है. मूल के पहले चरण में रात का जन्म हो तब भी माता-पिता के लिए कष्टकारी होता है.

गण्डमूल का अपवाद बादनारायण जी के मत से | Exceptions of Gandamool Related to Baad Narayana Opinion

आइए बादनारायण जी का मत जानने का प्रयास करें. बादनारायण जी के मतानुसार मूल नक्षत्र का चंद्रमा अगर लग्नेश से संबंध बनाता है तब मूल दोष में कमी हो जाती है. चंद्रमा का लग्नेश के साथ यह संबंध दृष्टि संबंध ना होकर अन्य किसी रुप में बनता हो तब मूल दोष में कमी होती है.

ब्रह्मा जी के मतानुसार गण्ड का अपवाद | Exceptions Related to Ganda as per Lord Brahma

अब ब्रह्मा जी के मत की चर्चा करते हैं. ब्रह्मा जी के अनुसार जन्म कुंडली में चंद्रमा यदि बली अवस्था में हो तब गण्डमूल दोष कम होता है. यदि कुण्डली में गुरु बली अवस्था में हो तब लग्न गण्डांत का दोष भी कम हो जाता है. लेकिन ब्रह्मा जी कुछ दोष मानते अवश्य है, यह पूरी तरह से इस दोष को मना नहीं कर रहे हैं.

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चंद्रमा की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा का फल

चंद्रमा ग्रह की महादशा 10 वर्ष की होती है. चंद्रमा की महादशा में जातक को चंद्रमा से संबंधित फलों की प्राप्ति होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा की स्थिति को हम यहां अवलोकन नहीं कर रहे अपितु उसकी महादशा के फलों की बात करते हुए यह कह सकते हैं कि चंद्रमा की महदशा में जातक का व्यवहार शांत हो सकता है. जातक के मन में विचारों की उद्विग्नता की स्थिति होती देखी जा सकती है.

एक साधारण दृष्टि डालें तो हम पाते हैं कि चंद्रमा के फलों में शांति, शीतलता, मानसिक उत्तेजना जैसी अनेक बातें देखने को मिलती है. यहां इस बात से कोई अर्थ नहीं कि वह किस भाव या किस राशि में स्थित है क्योंकि चंद्रमा शीतलता से ठंडा ग्रह है तो इसमें इन गुणों का होना स्वभाविक ही है. अत: कुण्डली में उसकी स्थिति का आंकलन न करते हुए यदि हम उसके स्वभाविक रूप को समझने का प्रयास करें तो हमें पता चलता है कि वह मन का कारक व शीतलता से युक्त है, ग्रहों में इसे रानी का स्थान प्राप्त है.

चंद्रमा शांत, सौम्य ग्रह है चंद्रमा में चंद्रमा का होना शीतलता व मन की चंचलता को प्रतिबिंबित करने वाला होता है. यह मिलन एक संतुलित गठन लाता है. इसी का प्रभाव हमारे मन पर भी होता है हमारा मन कृष्ण पक्ष के जैसे घटता है व शुक्ल पक्ष के जैसे बढ़ता है. चंद्रमा में चंद्रमा की अंतर्दशा होने पर जातक को मानसिक चेतना मिलती है. उसका मन कई बातों पर विचारशील रह सकता है. वह अपने मन में उठने वाले ज्वार को सही रूप से नहीं समझ पाता है. मन में अनेकों कल्पनाएं उमड़ने लगती हैं.

सामाजिक और व्यावसायिक लाभ मिलता है, धन की प्राप्ति होती है आभुषण एवं वस्त्रादि का सुख मिलता है. जातक को दूसरों से सम्मानित कराती है साथ ही प्रेम की प्राप्ति भी कराने में सहायक होती है. व्यक्ति धार्मिक पथ में चलने वाला होता है. चंद्रमा को जल तत्व का देव कहा जाता है, इनको सर्वमय कहा गया है तथा यह सोलह कलाओं से युक्त हैं. शुभ चंद्र जातक को धनवान और दयालु बनाता है, सुख और शांति देता है. घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं. चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का आधिपत्य प्राप्त है. मानसिक रोगों का कारण भी चंद्र को माना गया है क्योंकि यह सबसे अधिक मन पर ही प्रभाव डालते हैं.

चंद्रमा में चंद्रमा दशा अवधि में कुछ शुभ घटनाओं, खुशी में वृद्धि होगी इसके अलावा जातक के जो भी कोई नुकसान हुए हों वह इस समय में दूर हो सकेंगे. व्यक्ति को जल से भय रह सकता है. इसकी दशाओं का योग होने पर प्रभाव अनुकूल अधिक रहते हैं और सामंजस्य की ओर भी इशारा करते हैं.

इस ग्रह में सात्विकता का भाव देखा जाता है. इनकी दशाओं का काफी कुछ शुभ प्रभाव देने वाला बनता है. जातक को शत्रुओं की ओर से शांति व समझौते करने का मौका मिलता है, धन लाभ होता है, मन में शांति व सकुन का एहसास होता है, घर से संबंधी सुखों की ओर व्यक्ति को जाने का मार्ग मिलता है.

इसमें उसे आकस्मिक लाभ ,यश, कीर्ति एवं विदेश यात्राओं से लाभ प्राप्त मिलता है. धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है, माता की ओर से कुछ अच्छे संकेत मिलते हैं. प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता बढती है, स्त्री का सुख मिलता है. पर यदि हम उसके कुछ अशुभ स्थानों में होने या कमजोर होने की बात करते हैं तो इन प्रभावों में कहीं न कहीं कमी भी देखी जाती है व्यक्ति को मन की चेतना में तेजी आने से जातक काफी चंचल व अपने में रहने वाला हो सकता है. इस कारण से कुछ कमियां भी चंद्रमा की अंतर्दशा भुक्ति में देखने को मिल सकती है इन सभी बातों का सामान्य रूप से अध्ययन करने के लिए काफी हद तक हमें कुण्डली में ग्रहों की स्थिति को भी समझना होता है जिससे हम पूर्ण निष्कर्ष को समझ सकें.

चंद्रमा की महादशा में चंद्रमा की अन्तरदशा होने पर यह दशा जातक के जीवन में बहुत सारे नए विचारों को लाने का प्रयास करती है. इस स्थिति में चंद्रमा के बली व निर्बल दोनों रूपों को समझने का प्रयास करने की आवश्यकता होती है तभी दशा के फलों का निर्धारण किया जा सकता है.

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गुरु का मकर, कुम्भ और मीन राशि में होने पर ये होगा असर

मकरगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Capricorn

मकरगत गुरू के होने पर गुरू अपनी निर्बल स्थिति में होता इस स्थिति में गुरू के फल को पूर्ण रूप से बली नहीं माना जाता है. यहां गुरू की स्थिति के कारण जातक को पूर्ण रूप की प्राप्ति में बाधा आ सकता है. वह किसी न किसी रूप से परेशान कर सकता है. जातक के जीवन में होने वाली परेशानीयों को हल करने में व्यक्ति को बहुत मुशकिलें आ सकती हैं कोई न कोई स्थिति इस ओर से भी उठ खडी़ हो सकती है.

जातक अपने प्रभाव को बनाने के लिए अधिक परिश्रम से दूर ही रह सकता है. अपने प्रयासों में उसे कई बार उलझी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. जीवन में होने वाले उतार-चढा़वों से वह घबरा सकता है. कलेशों से परेशान रह सकता है. संतान की ओर से भी परेशानी बनी रह सकती है. मूर्खता पूर्ण लिए गए निर्णय भी उसके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं.

जातक दूसरों की चाकरी में लगा रहने वाला हो सकता है. उसमें दया भाव भी कम हो सकता है बन्धु प्रेम से रहित धर्म कर्म के प्रति अधिक सजग न रहने वाला हो सकता है. जातक के साहस में कमी रहती है वह मजबूत फैसले नहीं ले पाता है. प्रवासी जीवन जीने वाला बनता है और शरीर से कमजोर हो सकता है. मन से काफी विचलित रहने वाला और विषाद युक्त हो सकता है.

कुम्भगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Aquarius

कुम्भगत गुरू के होने पर जातक बातों में लगा रहने वाला और चुगलखोर हो सकता है. परिस्थितियों में स्वयं को आगे बढा़ लेने की योग्यता रखता है. आचरण से कुछ विपरित कर्म करने वाला भी हो सकता है. इससे प्रभावित होने पर जातक के चरित्र में कई प्रकार के उतार-चढा़व देखे जा सकते हैं. उसके कर्म में कुछ कठोरता मौजूद हो सकती है. कहीं न कहीं यह कठोरता उसे स्वभावगत स्थरता देने वाली भी बन सकती है. जातक को दुष्ट भी कहा जा सकता है क्योंकि उसके द्वारा किए गए यह कठोर कर्म कई प्रकार से दुष्टता की स्थिति का आधार भी बन सकते हैं.

व्यक्ति में काम को लेकर अधिक उत्साह नहीं होता वह कोई भी छोटा मोटा काम काज करने में भी अपने को संतुष्ट पाता है अधिकांशत: वह अपने इस व्यवहार के कारण नीच कर्म को करने की ओर भी प्रवृत्त हो सकता है. अधिक जुटा लेने की चाहत भी रहती है. वह सभी कुछ पाना चाहता है और समस्त वस्तुओं का उपभोग भी चाहता है.

कुम्भ में गूरू की स्थिति शनि के प्रभाव से भी प्रभावित होती है. यहां जातक में न्याय की प्रबलता देखी जा सकती है वह किसी भी प्रकार के प्रपंचों को समझने में सक्षम होता है. उसकी बौद्धिकता के कारण ही उसे कई प्रकार के तथ्यों की समझ भी अच्छी होती है. जातक में घमंड की अधिकता देखी जा सकती है उसमें अहंवाद का भाव होता है. इस बात में उसकी ज्ञानशीलता और एकात्मता का बोध होता है. वह स्वयं को बेहतर व नेतृत्व करने में सामर्थ्यवान समझता है.

मीनगत गुरू का फल | Jupiter Aspecting Pisces

मीन में स्थित होने पर गुरू स्वराशि युक्त होता है और स्वबल की प्राप्ति में सक्षम होता है. इस स्थिति के कारण जातक में ज्ञान की अधिकता होती है. वह चंचल स्वरूप का किंतु स्थिरता का बोध लिए होता है. जातक की वेद शास्त्रों में अभिरूची बनी रहती है. इसमें गुरू की स्थिति अत्यधिक धार्मिकता की स्थिति का बोध कराने में भी सहायक बनती है. यह एक शुद्ध व सात्विक स्थिति की परिचायक होती है. जातक में सात्विक गुणों की प्रधानता रहती है और वह अपने कर्म व विचारों द्वारा कई प्रकार से आत्मिकता का बोध कराने में सहायक होता है.

व्यक्ति को राजसम्मान की प्राप्ति होती है. उसे आदरणीय स्थान प्राप्त होता है श्रष्ठ जनों की संगत पाता है. अपने कार्यों में धार्मिकता को स्थान देता है. धर्म कर्म में भी रूझान रखने वाला होता है. इस स्थिति के होने के बावजूद भी जातक में घमंड का भाव भी होता है. वह आलस्य से युक्त हो सकता है. नीतिवान और शिक्षा से युक्त भी होता है. उसमें कभी कभी क्रोध भी देखा जा सकता है वह अपनी बातों को प्रधान सत्य की भांति देखता है.

व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली होता है. शारीरिक तौर पर स्वस्थ और सुन्दर होता है. स्वभाव से दयालु और विनम्र रहता है. धर्म के प्रति आस्थावान और आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहता है. इसके प्रभाव से पिता एवं संतान से सुख प्राप्त होता है. गृहस्थ जीवन सुखमय होता है.

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 1”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 2”

“गुरूगत स्थिति का योगफल – भाग 3”

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कुंडली में शुभ ग्रह की दृष्टि से दूर होते हैं अशुभ प्रभाव

शुभ दर्शन बल सहित: पुरूषं
कुर्याद्धनान्वितं ख्यातम् ।
सुभंग प्रधानमखिलं सुरूपदेहं
सुसौख्यं च ।।

अर्थात शुभ ग्रह की दृष्टि किसी ग्रह पर पड़ने पर जातक को शुभ फलों की प्राप्ति में सहायक बनती है. जातक को सौभाग्य और रूप-गुण की प्राप्ति होती है. जातक धन वैभव से सुखी और संपन्न बनता है.

सूर्य | Sun

सूर्य पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने से जातक का स्वास्थ्य उत्तम और स्वस्थ देह का निर्माण होता है. जातक को अपने द्वारा किए गए कामों में उच्च सफलता की प्राप्ति होती है. राज्य की ओर से भी सहायता तथा सम्मान की प्राप्ति होती है. व्यक्ति गुरू जनों के प्रति आदर भाव रखने वाला होता है तथा ब्राह्मणों की सेवा में तत्पर रहता है. कर्मठता द्वारा भाग्य का निर्माण करता है और ज्ञान की उच्चता को ग्रहण करने वाला होता है.

चंद्रमा | Moon

चंद्रमा के शुभ ग्रह से दृष्ट होने पर जातक को शुभ एवं सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है. मन में दृढ़ता आती है और व्यक्ति अपने प्रयासों से दूर नहीं रहता है. साहस और पराक्रम द्वारा वह अपने कामों को पूरा कर लेने में सफल रहता है. धन वैभव से संपन्न होता है, जातक को वाहन सुख व आभूषणों की प्राप्ति होती है. भ्रम की स्थिति से बचाव होता है तथा भटकाव से मुक्ति मिलती है.

मंगल | Mars

मंगल पर शुभ दृष्टि होने पर जातक सुंदर सुशील बनता है. उसका साहस व्यर्थ नहीं होता है और वह अपने प्रयासों से दूसरों के लिए भी सहायक होता है. जीवन साथी का अनुकूल सहयोग प्राप्त होता है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. व्यक्ति में कठिनाईयों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है. विरोधियों को परास्त करने में सफलता मिलती है. जातक धनी व मान सम्मान से युक्त होत है. उसके वचनों को मनने वाले होते हैं. व्यक्ति को उच्च पद व अधिकारों की प्राप्ति होती है.

बुध | Mercury

बुध पर शुभ ग्रह दृष्टि होने पर जातक का ज्ञान उन्नत होता है और उसकी समझ का दायरा भी विस्तृत होता है. जातक अपनी वाणी द्वारा अन्यों को मोहित करने का गुण पाता है उसके वचनों में जो मधुरता होती है वह सभी को उसकी ओर प्रस्तुत करने में सहायक होती है. व्यक्ति अपने कार्यों को चतुरता के साथ पूर्ण करता है. शुरवीर होकर व्यक्ति अपने मान सम्मान की रक्षा करने वाला होता है. पुण्य कर्मों को करने वाला होता है तथा दूसरों के हितों का ख्याल रखता है.

बृहस्पति | Jupiter

बृहस्पति स्वयं में ही एक बहुत पवित्र ग्रह हैं अत: जब इन पर अन्य शुभ दृष्टि प्रभाव डालती है तो जातक के लिए यह स्थिति बहुत उत्तम होती है. व्यक्ति को कई प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है उसकी ज्ञान क्षमता भी उन्नत होती है वह उपदेशात्मक व शुभ वचनों को कहने वाला होता है. सरकार की ओर से व्यक्ति को लाभ और पद की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को तीर्थाटन करने के अनेकों अवसर मिलते हैं वह धार्मिक स्थलों में जाकर अपने पुण्यों में वृद्धि करता है. दूसरों के लिए सहायक व प्रिय भाषी होता है. व्यक्ति की देवार्चन व सदवचनों को श्रवण करने की इच्छा होती है.

शुक्र | Venus

शुक्र के शुभ दृष्टि आने पर व्यक्ति को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है. व्यक्ति ऎश्वर्य के साथ जीवन जीने वाला होता है. आभूषणों व रत्नों की प्राप्ति होत है. जातक में सदाचारी गुणों का विकास होता है. अच्छे कामों द्वारा वह सभी के समक्ष सम्मान भी पाता है, शौर्य व साहस द्वारा सभी का हित करने वाला होता है. स्वास्थ्य से सुखी व सौंदर्य से युक्त होता है.

शनि | Saturn

शनि के शुभ दृष्टि से युक्त होने पर जातक भूमि अथवा कृषि संबंधि कार्यों से लाभ कमाने वाला होता है. वैभव संपन्न तथा सेवकों का सुख पाने वाला होता है. कठोरता में कमी आती है जिस कारण दूसरों के समक्ष प्रिय होता है. परोपकारी कार्यों में रूचि रहती है तथा सामाजिक मान- सम्मान की प्राप्ति होती है. नौकरी व्यवसाय के काम हेतु परदेस गमन भी करना पड़ता है. जातक में क्रोध की कमी होती है और उसके शुभ कर्मों का विकास होता है.

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सिंह लग्न का छठा नवांश | Sixth Navansh of Leo Ascendant

सिंह लग्न का छठा नवांश कन्या राशि का होता है. इस नवांश में जन्में जातक को अपने जीवन में कर्म क्षेत्र के प्रति काफी विचारशील रहना होता है. उसे अपने शत्रु पक्ष एवं जीवन में आने वाले उतार-चढावों को समझने की आवश्यकता होती है. जीवन में रोग शत्रु और ऋण के मध्य ही जीवन का चक्र चलता रहता है. यहां जातक की बौद्धिकता का जो स्तर मालूम पड़ता है वह काफी महत्वपूर्ण होता है उसके द्वारा ही जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों को समझने की आवश्यकता होती है.

जातक विचारशील हो सकता है कई बातों को सोचने में रहता है. इनके प्रभाव से व्यक्ति में क्रोध की अधिकता हो सकती है. जातक धन संपदा से युक्त होंगे लेकिन खर्चों पर नियंत्रण लगा पाना कठिन काम होगा. यह जातक सुदृढ़ शरीर वाले और काफी बलशाली होंगे. जीवन की शुरूआत में काफी प्रगति करते हैं और अग्रसर बने रहते हैं. वाणी में कुशलता और व्यवहारिकता का भाव होता है. लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. सामंजस्य स्थापित करने में कुशलता से काम लेते हैं. समाज में आपकी अलग पहचान होगी व धार्मिक कार्यों में रूचि रखने वाले होते हैं.

शरीर से कोमल तथा कुछ कमजोर हो सकते हैं. जल्द ही घबरा जाते हैं इस कारण से कठोर निर्णय लेने में सहज नहीं होते. सहयोगियों का प्रभाव अधिक रहता है. क्रय विक्रय में निपुणता से काम लेते हैं कुछ अच्छी स्तर की बौद्धिक रचनाओं की ओर झुकाव होता है. आर्थिक कामों को निपटाने में काफी निपुण रहते हैं. जातक के विचारों में स्थिरता की अभिव्यक्ति रहती है. मुखाकृति व नेत्र सुंदर होती है, वस्त्र एवं सुंदर वस्तुओं की चाह रहती है. आर्थिक स्थिसि को अनुकूल बनाए रखने के लिए परिश्रम करते हैं.

काम में जल्दबाजी करते हैं जिस कारण घाटा भी सहना पड़ सकता है. दांपत्य जीवन में सामान्यत्: कुछ कठिनाईयां उभर सकती हैं. स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए जीवन की बाधाओं और जटिलताओं को समझते हुए विवादों को सुलझाने का प्रयास करें.

सिंह लग्न के छठे नवांश का प्रभाव | Effects of Sixth Navansh of Leo Ascendant

जातक की कद काठी सामान्य होती है, चेहरा लाल व रंग साफ होता है, जीवन में आगे बढ़ने की सोच लेकर चलते हैं. अपने लक्ष्य को पाने में प्रयासरत रहते हैं जिस कारण कुछ कठोर भी हो सकते हैं. स्वभाव में स्पष्टवादी होते हैं. परिश्रम से बचने का प्रयास करते हैं आराम पसंद हो सकते हैं. इनकी भाषा में ओज व उत्साह बना रहता है. पारिवारिक संपत्ति की प्राप्ति भी होती है. इनकी वाणी मधुर होती है और यह भावुक प्रवृत्ति के होते हैं. दूसरों की मदद के लिए तैयार रहने वाले होते हैं. किसी पर जल्द विश्वास कर लेना इनकी कमी भी कही जा सकती है जिस कारण इन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

समाज के उच्च वर्ग से इन्हें लाभ की प्राप्ति होती है. यह भाग्य पर अधिक विश्वास रखने वाले होते हैं. इनमें प्रतिशोध की भावना रह सकती है जिस कारण स्वभाव में होने वाले बदलाव इस ओर अपना प्रभाव देने में बहुत प्रभावशाली होते हैं. इन्हें भाग्य का साथ मिलता है और यह कई स्थानों पर तरक्की की राह को पकड़ने में आसान रहते हैं.

दांपत्य जीवन प्राय: सामान्य ही रहता है. आपके साथ को शास्त्रों और धर्म कर्म के विषय में अच्छी जानकारी रहती है. धार्मिक क्रिया कलापों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं इनकी रहस्यात्मक विधाओं में भी रूचि बनी रहती है. जीवन साथी के साथ परोपकारिता से पूर्ण कामों में लगे रह सकते हैं. धार्मिक यात्राओं में लगे रहते हैं. पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में जीवन साथी का सहयोग बना रहता है. जीवन साथी का स्वास्थ्य कुछ परेशान करने वाला रह सकता है. रक्त विकार व सामान्य कमजोरी से थकावट का अहसास बना रहता है. साथी की इच्छाएं भी काफी अधिक रहती हैं जिन्हें पूरा करना इनकी कोशिश में भी रहता है.

समर्पित व्यक्ति के रूप में अपने आस पास की बातों को ध्यान में रखना इन्हें पता होता है. कुशल और व्यावहारिक व्यक्तियों का साथ भी मलता है. परंतु उचित लाभ मिल सके यह आवश्यक नहीं होता है. व्यवहार में बदलाव बना रहता है कुछ हद बातों से सभी को अपनी ओर मोड़ सकते हैं. अधिक मेल जोल न सही लेकिन मित्रों का साथ इन्हें मिल ही जाता है. यह आंकलन में संतुलित और निष्पक्ष से होते हैं.

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मित्र क्षेत्री ग्रह का प्रभाव | Effects Of Planets Placed In Their Friendly House

किसी ग्रह के मित्र क्षेत्री ग्रह होने पर उक्त ग्रह का प्रभाव बली अवस्था में मौजूद रहता है. ग्रह की मित्र क्षेत्र में स्थिति के होने पर कुण्डली में उसके अनुकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं. कहीं न कहीं यह स्थिति ग्रह के लिए सहायक का काम करने वाली बनती है और इससे जातक अपने कर्म क्षेत्र में जूझारू दिखाई देता है और उसके प्रयास भी उसकी सफलता में बहुत सहायक बनते हैं.

जातक को मित्रों का सहयोग मिलता है और उनके साथ से वह आगे जाने में सफल रहता है. जातक कीर्ति पाता है और यशस्वी होकर समाज में अच्छी स्थिति पाने में सफल रहता है. व्यक्ति को अनेक प्रकार को कठिनाईयों को दूर करने का साहस मिलता है वह दृढ़ता के साथ अपने फैसलों को आगे लेकर चलने वाला बनता है.

सूर्य | Sun

सूर्य के मित्र क्षेत्री होने पर उसे सबलता मिलती है. जातक को उसकी महत्ता मिलती है वह अपने कामों में परिश्रमी और अपने बल व सामर्थ्य का उपयोग करने वाला बनता है. मित्रों का सुख पाने वाला और उनके सहयोग की प्राप्ति में सफल रहता है. भाई बंधुओं के साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार करने वाला होता है किसी न किसी रूप में उनके साथ मिलकर कार्यों को करने वाला बनता है. शत्रुओं को पराजित करने में सफल रहता है. भय से दूर रहकर अपने पराक्रम से भाग्य को अनुकूल बनाने में प्रयासरत रहता है. गुरू जनों व ब्राह्मणों की सम्मति को पाकर काम को करने वाला बनता है. धन धान्य की प्राप्ति होती है.

चंद्रमा | Moon

चंद्रमा के मित्र क्षेत्री होने पर चंद्रमा के शुभाशुभ फलों की प्राप्ति होती है. जातक को को राज्य सम्मान और शुभ वस्त्रों की प्राप्ति होती है. किसी न किसी रूप में जातक को स्त्री पक्ष से प्रेम की प्राप्ति अवश्य होती है. जातक सज्जन, मधुर भाषी और अपनों का साथ पाने वाला होता है. जातक को जल द्वारा धन की प्राप्ति होती है. अपने कर्मों की शुभता से वह दूसरों को संतुष्ट रखने की कोशिश में सफल रहता है. दूसरों के दूख को दूर करने वाला और दूसरों के साथ जल्दी से घुलमिल जाने वाला होता है. सभी के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करने की चाहत रखता है.

मंगल | Mars

मंगल के मित्रक्षेत्री होने पर जातक को साहस और बल की प्राप्ति होती है वह अपने शौर्य व पराक्रम द्वारा कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ता जाता है. कुल में श्रेष्ठ स्थान पाने वाला होता है. निर्बलों की सहायता करने में सदैव तत्पर रहता है. मित्रों में प्रमुख स्थान पाने वाला होता है. गुरू जनों की सेवा में तत्पर रहते हुए अपने शुभ फलों में वृद्धि करता है.

बुध | Mercury

बुध ग्रह के मित्रक्षेत्री होने पर जातक को ज्ञान की प्राप्ति होती है, मित्रों की अच्छी संगती उसे शुभ कार्यों को करने की ओर प्रेरित करती है. जातक अपने लोगों से युक्त और परिवार के सहयोग को पाने वाला होता है. उसे मंत्रालय संबंधी कार्यों में स्थान भी मिल सकता है. वाचाल होता है तथा अपने बौद्धिक तर्कों के समक्ष सभी को चुप करा देने में भी सक्षम होता है. बुध के शुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति के स्वभाव में परोपकारिता का भाव भी निहीत होता है वह उदार और साधुजनों की सेवा करने वाला होता है.

बृहस्पति | Jupiter

बृहस्पति के मित्र क्षेत्री होने पर जातक विनम्र, योग्य और ज्ञानवान होता है. राज्य से समान पाने वाला और गुरूजनों का प्रिय बनता है किसी भी स्थिति में जातक के निर्णय बहुत निष्पक्ष होते हैं तथा सभी की सहमती को पाने वाले होते हैं. व्यक्ति स्थिर संपदा से युक्त होता है यदि कुण्डली पर बुरे प्रभाव हों तो वह भी गुरू की अनुकूल स्थिति से कम होने की ओर अग्रसर होते हैं. व्यक्ति के समक्ष कोई भी आसनी से टिक नहीं पाता है.

शुक्र | Venus

शुक्र के मित्रक्षेत्री होने पर ग्रह बली होता है और व्यक्ति को सुख और वैभव की ओर आकर्षित करता है. जातक अपने जीवन में महंगे सामान और आभूषणों को पाने की चाह रखता है चकाचौंध से युक्त जीवन जीने की चाह रहती है. किसी भी क्षेत्र में अपने प्रतिभा का प्रदर्शन करने से पिछे नहीं हटता है. कला से संबंधित कामों की ओर रूझान रहता है तथा प्रेम प्राप्ति की चाह रखता है.

शनि | Saturn

शनि के मित्रक्षेत्री होने पर जातक मित्र और बांधवों से सुख पाता है. स्थिरचित का विद्वान और विनयशील होता है. कर्मठ और न्यायशील होता है. जातक में सेवाभाव भी बहुत होगा और सभी के प्रति समान भावना रखने वाला होगा.

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कुण्डली के स्वक्षेत्री ग्रह का प्रभाव | Effects Of Planets Placed In Their Own House

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुण्डली में स्वक्षेत्री ग्रहों की स्थिति होने पर अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है. स्वक्षेत्री होने पर जातक को धन धान्य की प्राप्ति होती है. वह दूसरों के समक्ष आदर व सम्मान पाता है. स्वक्षेत्री ग्रहों की दशा भुक्ति के दौरान जातक को अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता है और उसे अच्छे लाभ मिलते हैं. संबंधों में मधुरता आती है और मित्रों का स्नेह मिलता है.

सूर्य | Sun

सूर्य के स्वक्षेत्री होने पर जातक कुछ हठी और अधिक कोधी हो सकता है. वह अपनी बातों पर अटल रहने वाला धृष्ट भी हो सकता है. कार्यकुशल और सत्य निष्ट होता है. धार्मिक, सुयोग्य संतान को पाने वाला और धन युक्त हो सकता है. राजसी सुख पाने में सफल और स्वावलंबी होता है. अपने को अग्रीण मानने वाला और प्रमुख स्थान की चाहत रखने वाला होता है.

चंद्रमा | Moon

चंद्रमा के स्वक्षेत्री होने पर जातक सत्यवादी और शांत स्वभाव का भावुक व्यक्ति होता है. धर्मपूर्ण और ह्रदय से कोमल होता है. अपने पैतृक स्थान पर रहने वाला होता है स्त्रियों से प्रेम की प्राप्ति होती है. सुख की प्राप्ति में सहायक होती है. माता से प्रेम और सहयोग बना रहता है. वैभव तथा यश प्रदान करने वाला होता है. जातक को वस्त्र आभूषण और वाहन की प्राप्ति होती है. पद प्रतिष्ठा में वृद्धि मिलती है.

मंगल | Mars

मंगल की स्वक्षेत्री स्थिति होने पर राज्य सम्मान व सुख मिलता सकता है. भाईयों का सुख, भूमि भवन का सुख प्राप्त होता है. पराक्रम व साहस की द्वारा सफलता प्राप्त होती है. राजा के सामान सुख प्राप्त करता है. शत्रुओं का दमन होता है तथा रूकावटें दूर होने लगती हैं. भू-संपदा का लाभ होता है राज्यसम्मान की प्राप्ति होती है. जातक क्रोधी वाकपटुता से युक्त व साहसी होता है.

बुध | Mercury

बुध के स्वक्षेत्री होने पर जातक अपने दायित्वों का निर्वाह करने वाला होता है. निष्ठा और पूर्ण मन के साथ काम को करने वाला होता है. स्त्री सुख तथा बंधुओं का सुख प्राप्त होता है. धन-संपदा प्राप्त होती है. हास्य एवं मनोविनोद का व्यवहार पाता है. बौद्धिकता अच्छी होती है, जातक व्यापार एवं व्यवसाय में उन्नती पाता है. मित्रों, संबंधियों एवं संतान का सुख प्राप्त होता है. शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त होता है अपने क्षेत्र में अग्रीण स्थान पाता है. मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. व्यवहार में धर्म के प्रति आस्थावान होता है.

बृहस्पति | Jupiter

बृहस्पति के स्वक्षेत्री होने पर जातक देव और गुरू भक्त होता है. मेधावी और गुणवान होता है. व्यक्ति के भीतर धैर्य और नैतिकता का समावेश देखा जा सकता है. अच्छी वस्तुओं की प्राप्ति होती है पर साथ ही उसमें गर्व की भावना भी अधिक देखी जा सकती है. संतान सुख की प्राप्ति होती है. तीर्थाटन एवं पर्यटन के मौके प्राप्त होते हैं. नेतृत्व की क्षमता मिलती है और ज्ञान में वृद्धि होती है, घर और वाहन का सुख प्राप्त होता है.

शुक्र | Venus

शुक्र के स्वक्षेत्री होने पर जातक स्वास्थ्य से सुखी और ऎश्वर्य को पाने वाला होता है. भाग्यशाली और सुंदर और आकर्षक देह का स्वामी होता है. स्त्री का सुख मिलता है और उनसे प्रेम की प्राप्ति होती है. धन वैभव से संपन्न होता है और दूसरों को भी सम्मान देने वाला होता है. बोलने में मधुर भाषी होता है. आभूषण और वाहन सुख पाता है.

शनि | Saturn

शनि के स्वक्षेत्री होने पर जातक सजग और सावधान होता है. न्यायविद तथा सेवकों का शुभचिंतक होता है. सत्ता का सुख प्राप्त हो सकता है, पिता एवं अन्य संबंधियों से विरोध भी झेलना पड़ सकता है. जीवन में कठिनाईयों का सामना करने की दिशा मिलती है. उचित अनुचित में भेद करना सीखता है. कठोर कर्म और कठोर भाषी भी हो सकता है.

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कैसा होगा आपका व्यवसाय: जानने का आसान तरीका

वैदिक ज्योतिष में यूँ तो बहुत सी बातों की जानकारी दी गई है लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा के पश्चात हर व्यक्ति अपना व्यवसायिक क्षेत्र जानने का इच्छुक रहता है. कई बार व्यक्ति अपने मनपसंद क्षेत्र में चला जाता है और सफल रहता है लेकिन आपमें से बहुत से ऎसे भी हैं जो अपने पसंदीदा क्षेत्र में कामयाब नही हो पाते हैं. ऎसे में एक सरल तरीका आपको इस प्रेजेन्टेशन के माध्यम से बताया जा रहा है कि वह कैसे अपने व्यवसायिक क्षेत्र का चयन कर सकते हैं.

चर राशि में ग्रह होने पर व्यवसाय का स्वरुप | Kind of Profession with Planets in Movable signs

आइए सबसे पहले हम चर राशि के बारे में जाने, चर राशि सदा चलायमान रहने वाली मानी गई है. इस राशि का जातक किसी एक जगह पर टिक कर नही रहता है. जन्म कुंडली में चर राशि में ज्यादा ग्रह हैं तब व्यक्ति चलायमान रहने वाले व्यवसाय को अपनाता है.

अपने व्यवसाय में निपुणत से काम लेता है, चतुराई तथा युक्तियों से लोगों से मेलजोल बढ़ाता है क्योकि इसके बिना व्यवसाय गति नहीं पकड़ता है. व्यवसाय को चलाने के लिए भाग – दौड़ करता है.

अधिकतर ग्रह चर राशि में होने वाला व्यक्ति नौकरी में कम ही टिक पाता है क्योकि यह अपने तरीके से स्वतंत्र रहकर काम करना चाहता है. ऎसा व्यक्ति एक स्थान पर कभी भी नहीं टिक पाता है और भ्रमण ही करता है.

ऎसा व्यक्ति घूम – घूमकर उन्नति करने में ज्यादा विश्वास करता है. चाहे एक फेरीवाला ही क्यूँ ना हो उसकी कुंडली में भी ज्यादातर ग्रह चर राशि में ही होगें क्योकि वह भी घूम घूमकर ही कमाता है. यदि व्यक्ति उच्च स्तर का व्यवसाय है तब उसके सिलसिले में सदा भ्रमणशील रहता है. यदि कभी नौकरी भी करनी पड़े तो वह भी सदा घूमते रहने वाली हो सकती है अर्थात जिसमें व्यक्ति बाहर अधिक रहता हो.

स्थिर राशि में होने पर व्यवसाय | Kind of Profession with Planets in fixed signs

आइए अब स्थिर राशि में स्थित ग्रहों की बात करते हैं. स्थिर राशि वाले व्यक्ति एक ही स्थान पर टिकना पसंद करते हैं और आसानी से कहीं जाते नहीं हैं. ऎसे व्यक्ति स्थिरता वाले कामों में ज्यादा रुचि रखते हैं इसलिए जिनकी कुण्डली में अधिकतर ग्रह स्थिर राशि में होते हैं वह टिकने वाला व्यवसाय करता है ताकि बदलाव ना करना पड़े.

ऎसे व्यवसायो में एक ही स्थान पर बैठे बिठाए काम हो जाता है और व्यक्ति को भाग – दौड़ नहीं करनी पड़ती है. ऎसे व्यवसाय में हर तरह की दुकाने भी आती हैं जहाँ व्यक्ति एक ही स्थान पर बैठा रहता है और ग्राहक स्वयं उसके पास चलकर आता है.

व्यक्ति सदा ऎसे व्यवसाय में भाग्य आजमाता है जिसमें ज्यादा भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती है. ऎसे स्थिर व्यवसायो में धैर्य, सहनशीलता, एकाग्रता, दृढ़ निश्चयता तथा चिन्तन मनन अधिक होता है. ऎसे व्यवसायो के अन्तर्गत सभी सरकारी नौकरियाँ भी आती है जिनमें केवल एक ही स्थान पर बैठकर काम हो जाता है. डॉक्टर का व्यसाय भी एक ही स्थान पर बैठ कर ही होता है इसलिए स्थिर राशि में अधिकतर ग्रह होने पर व्यक्ति डॉक्टर भी बन सकता है.

द्वि-स्वभाव राशि में अधिक ग्रह होने पर व्यवसाय | Kind of Profession with Planets in Dual-Natured signs

अब हम द्वि-स्वभाव राशि की ओर बढ़ते हैं. इन राशियों में अधिकतर ग्रह होने पर व्यक्ति ना चलायमान रहता है और ना ही स्थिर ही रहता है, इसलिए द्वि-स्वभाव राशि में अधिकतर ग्रह होने पर व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र में अधिक सफलता पाता है.

व्यक्ति ऎसे काम करता है जो शैक्षिक क्षेत्र से ही किसी ना किसी रुप में जुड़े हों क्योकि द्वि-स्वभाव राशियों में बुध की मिथुन व कन्या तथा गुरु की धनु व मीन राशि आती है. गुरु का ज्ञान तो बुध को बुद्धिमत्ता तथा शिक्षा का कारक ग्रह माना गया है.

ऎसा व्यक्ति आढ़्त का काम भी कर सकता है अथवा किराना आदि की दुकान भी कर सकता है. व्यक्ति वो सभी काम करता है जिसमे कुछ देर टिककर काम हो तो कभी कभार बाहर भी जाना पड़ता हो.द्वि-स्वभाव राशि वाले व्यक्तियों को बुद्दिमान माना गया है इसलिए यह ज्ञान के क्षेत्र में ज्यादा सफल रहते हैं तभी इनके लिए अध्यापन क्षेत्र उचित माना गया है.

चर, स्थिर तथा द्वि-स्वभाव में बराबर संख्या में ग्रह होने पर व्यवसाय | Kind of Profession with Equal Number of Planets in Movable, Fixed and Dual-Natured signs

जन्म कुंडली में यदि चर,स्थिर तथा द्वि-स्वभाव राशि में समान संख्या में ग्रह हो तब ऎसे में व्यक्ति किसी भी काम में सफल हो सकता है. यदि तीनों वर्गों में से किन्हीं दो में समान संख्या में ग्रह हैं तब उन दोनो के गुण व्यक्ति में आते हैं और उसके कार्यों में भी उसकी झलक दिखाई देती है. ऎसी स्थिति में सूर्य से शनि तक के ग्रहों की गणना की जाती है और राहु/केतु को नहीं लिया जाता है.

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नौकरी हो या बिजनेस कैसा रहेगा आपके लिए जानिये बृहस्पति/गुरु से

बृहस्पति को समस्त ग्रहों में शुभ ग्रह माना गया है. इसी के साथ इन्हें ज्ञान, विवेक और धन का कारक माना जाता है. इस बात से यह सपष्ट होता है कि अगर कुण्डली में गुरू उच्च एवं बली हो तो स्वभाविक ही वह शुभ फलों को देता है. बृहस्पति को नान टेक्निकल ग्रह कहा गया है यदि दशमेश का संबंध इससे बनता है तो यह जातक को नान टेक्निकल क्षेत्र से जोड़ता है और पाप ग्रहों का प्रभाव आने पर मिले जुले फल देने वाला बनता है, परंतु कुण्डली में खराब स्थिति में हो तो शुभता में कमी के संकेत देता है, जातक को अपने मनोकुल फल नहीं मिल पाते हैं.

बृहस्पति सफलता और धन सम्पति देता है. जातक प्रसिद्धि, खुशहाली को पाता है, गुरू जनों का साथ मिलता है, विद्वता व सदगुणों का विकास होता है. कुण्डली में गुरू की अनुकूल स्थिति होने से जातक के लिए शुभता का आगमन होता है. जीवन में यश-कीर्ति पाता है. जातक को राजा तुल्य जीवन जीने का अवसर मिलता है. अपनी दशा या अन्तर्दशा में अच्छे फल देता है. शत्रुओं पर विजय मिलती है, सप्तम भाव में होने से सामाजिक छवि बेहतर बनती है.

जातक में चुम्बकीय आकर्षण आता है, नेतृत्व के गुणों का विकास होता है. गुरू यदि चंद्रमा के साथ युति में केन्द्र भाव में स्थित हो तो जातक के व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव देखा जा सकता है. बृहस्पति द्वारा प्राप्त होने वाले शुभाशुभ फलों में गुरू का स्वामि ग्रह महत्वपुर्ण भूमिका निभाता है. गुरू जिस राशि में स्थित है उस राशि का स्वामी ग्रह कुण्डली में किस स्थिति में है इस पर भी बृहस्पति द्वारा प्राप्त होने वाले फल निर्भर करते हैं. गुरू का राशिश जन्म कुण्डली में उच्च या स्वराशि का होकर केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो शुभ फलों की प्राप्ति है .

यह स्थिति व्यक्ति की मानसिकता और व्यक्तिगत भावनाओं में संतुलन लाने का प्रयास करती है. जातक के लिए सौभाग्य का फलादेश मिलता है और उसके कर्मों में भी शुभता आती है. अपने में धैर्य और सहनशीलता के गुणों को भी पाने में सहायक बनता है. इन्हें घूमने फिरने का शौक भी खूब होता है. विद्वानों का साथ मिलता है जातक सदकर्मों में युक्त और सदाचार को निभाने में विश्वास रखने वाला होता है.

बृहस्पति ग्रह कानून से संबंध रखने वाला होता है. यदि जन्म कुण्डली में बृहस्पति बलवान होकर अष्टमेश या एकादशेश हो तथा बुध या शुक्र के साथ मिलकर कर्म क्षेत्र को प्रभावित कर रहा हो तो जातक वकील या एडवोकेट के पद को पा सकता है इसके साथ लग्न या लग्नेश का शामिल होना भी बहुत अनुकूल होता है.

बृहस्पति का मंगल से संबंध बन रहा हो तो व्यक्ति फैजदारी से संबंधित कामों में शामिल होता है. यदि कुण्डली में इनकी स्थिति मजबूत है तो यह स्थिति जातक को न्यायाधीश का पद भी दिला सकती है. वाक चातुर्य में जितना महत्व गुरू का रहा है उतना ही बृहस्पति का सहयोग भी काम आता है. जब कुण्डली में गुरू दूसरे या पंचम का स्वामी होकर उच्च के बुध के साथ कर्म भाव का द्योतक होता है तो व्यक्ति वाणी के कौशल द्वारा आजीविका कमाने वाला बनता है. अध्यापक या वकील के क्षेत्र में काम कर सकता है.

जन्म कुण्डली में बृहस्पति दशम भाव का स्वामी होकर जब नवमेश, द्वादशेश या पंचमेश से संबंध बनाता है तो जातक धर्म के कार्यों द्वारा धनार्जन करता है. व्यक्ति मंदिर, देवाल्य, धर्मशाला या पुरोहित कर्म करने वाला हो सकता है.

बृहस्पति धन का कारक व आर्थिक उन्नती देने में सहायक बनता है. जब कुण्डली में बृहस्पति द्वितीयेश व एकादश भावों का स्वामी होकर लग्न, लग्नेश पर प्रभाव डालता हुआ दशम भाव से संबंध बनाता हो तो व्यक्ति बैंक अधिकारी, चल सम्पत्ति का से जुडा़ काम करके पैसा कमा सकता है अथवा किराया, सूद ब्याज द्वारा जीविकोपार्जन कर सकता है.

गुरू को मंत्रालय व राज्य से संबंधित माना गया है ऎसी स्थिति में यदि बृहस्पति नवमेश होकर बली अवस्था में हो लग्न या लग्नेश के साथ संबंध बना रहा हो तथा दशम भी इसमें अपनी भागीदारी दे रहा हो तो जातक को राज्य से धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति उच्च राज्यअधिकारी होकर धनोपार्जन करता है.

जन्म कुण्डली में गुरू और शुक्र एक दूसरे के साथ संबंध बनाते हों और लग्न या लग्नेश पर प्रभाव डालते हों तथा शनि का भी इसमें दशमेश होकर प्रभाव आ रहा हो तो व्यक्ति वकालत से जुड़ा हुआ हो सकता है और तर्कता पूर्ण विचार विमर्श करने वाला होता है.

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