वक्री शुक्र का मेष राशि में गोचर का असर

शुक्र का मेष राशि में गोचर करना उसके परिभ्रमण का एक हिस्सा है, किंतु जब भ्रमण की इस स्थिति पर वक्रता का प्रभाव पड़ता है तो यह अपने प्रभाव में कई तरह के बदलाव दिखाता है. शुक्र के मेष राशि में होने का उत्साही एवं क्रियात्मक प्रभाव अधिक देखने को मिल सकता है. इसी के साथ यह रोमांस एवं प्रेम संबंधों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान होता है. मेष की ऊर्जा शुक्र को आगे बढ़ने के लिए उत्साह देती है. नए रिश्तों में जाना और नई जोखिम उठाना भी इस स्थान पर देखने को मिलता है. अब जब शुक्र वक्री अवस्था में मेष में होता है तब इसका प्रभाव कई तरह से दिखाई दे सकता है. 

वक्री शुक्र का सभी राशि पर असर 

खगोल जीवन में परिवर्तन और बदलाव की लहर लाने के लिए तैयार है. प्यार और रिश्तों से लेकर करियर की संभावनाओं तक, इस ग्रह परिवर्तन का प्रभाव बहुत अधिक रहने की उम्मीद होती है. तो, एक रोमांचक सवारी का समय होता है. आइए जानें इस गोचर का क्या महत्व है और यह आपके जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है.

मेष राशि 

वक्री शुक्र का गोचर आपके फैसलों को अधिक तेजी से सामने लाता है. अपने लिए जो भी काम करना चाहते हैं उसे सोच समझ करना होता है. यह अपनी खुशी और भलाई पर ध्यान देने का समय है. थोड़ी आत्म-देखभाल करना और अपनी इच्छाओं को तलाशने व्यक्ति के जीवन में शामिल होने लगता है. जीवन में कुछ आवश्यक ऊर्जा और उत्साह लाएगा. खुद को किसी नए व्यक्ति के प्रति आकर्षित भी पा सकते हैं. मौके लें किंतु स्थिति अनुसार व्यवहार जरुरी होगा. 

वृष राशि

वक्री शुक्र के प्रभाव अनुसार इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि इस गोचर के दौरान आप जो कुछ भी करना चाहते हैं, वह आपके मूल मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए. अपनी इच्छाओं को लेकर अनियंत्रत होने से बचना होगा. जीवन में सरल सुखों को भी देखना है केवल कामुकता प्रमुख नहीं है. अविवाहित हैं, तो आप किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो सकते हैं जो मुखर और स्वतंत्र है. यदि किसी रिश्ते में हैं, तो स्वतंत्रता की अधिक चाह रखेंगे इसलिए चीजों के मध्य सामंजस्य बनाना होता है. 

मिथुन राशि 

वक्री शुक्र का प्रभाव रिश्तों और आप दूसरों के साथ कैसे बातचीत करें इस पर अधिक होगा. यह गोचर उन सभी क्षेत्रों को उजागर करेगा जहां संचार कौशल से लाभ दिला सकते हैं ओर इस ओर अधिक ध्यान से काम करने की आवश्यकता है. इस समय ठीक से सोचे बिना खुद को अधिक आवेगी और अपनी इच्छाओं पर काम निर्भर रह सकते हैं. इस बात का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है ताकि कोई ऐसा निर्णय न लें जिसके लिए आपको बाद में पछताना पड़े.

कर्क राशि 

वक्री शुक्र का असर जीवन में बहुत से बदलाव ला सकता है. रिश्तों और आत्म-सम्मान के मामले में ज्यादा चिंता रहेगी. व्यक्तिगत लक्ष्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने से अपने डर और असुरक्षा का सामना करने के लिए मजबूर किया जा सकता है. अपनी प्रवृत्ति पर भरोसा करना सीखना होगा. सच्ची इच्छाओं से जुड़ने का समय होगा जिसके परिणामस्वरूप अधिक पूर्ण संबंध बनाने में सक्षम होंगे.

सिंह राशि 

वक्री शुक्र का प्रभाव ख़ुद को ज़्यादा आत्मविश्वासी और स्वतंत्र महसूस कराने वाला होगा. नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होना होगा. किसी भी स्थिति से अधिकतम लाभ उठाने के लिए बहुत आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प से काम लेना होगा. जोखिम लेने और कुछ नया करने की कोशिश करने के लिए और अधिक इच्छुक होंगे. अपने आप को अधिक स्पष्टता के साथ अभिव्यक्त करने में सक्षम होंगे.  

कन्या राशि 

वक्री शुक्र का प्रभाव अतीत के मसलों को सने ला सकता है. पुराने रिश्तों पर पुनर्विचार करने पर विवश भी कर सकता है. जरूरी है कि वर्तमान में रहा जाए और अभी पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है. भविष्य संभावनाओं से भरा है, लेकिन यदि आप अतीत में जी रहे हैं तो निराशा और चिंता अधिक रहेगी. यह आत्मचिंतन का भी समय है. अपनी भावनाओं को कंट्रोल करना ही होगा. अपने लिए समय निकालें और समझें कि वास्तव में क्या आवश्यक है.

तुला राशि 

वक्री शुक्र का प्रभाव आज़ादी के लिए उत्साहित करने वाला होगा. यह यात्रा करने या नई चुनौतियों का सामना करने के लिए आगे रख सकता है. व्यक्तिगत लक्ष्यों और इच्छाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करने वाले हैं जिसके चलते दूसरे इग्नोर हो सकते हैं. अधिक मुखर और आत्मविश्वासी रह सकते हैं इस समय जरुरी है की दूसरों को भी अभिव्यक्ति का समय दें ओर खुद को थोपें नहीं. 

वृश्चिक राशि 

वक्री शुक्र का सर इस समय स्वभाव को अधिक प्रभावित कर सकता है. आत्म-मूल्य, ईर्ष्या और शक्ति की गतिशीलता के मुद्दों को लेकर परेशानी होगी. जरुरी है की अपनी चुनौतियों से अवगत होना, ताकि आप रचनात्मक तरीके से इनका सामना कर सकें. यह रिश्तों में बड़े परिवर्तन का भी समय है. अपने आप को दूसरों के साथ नम्रता से जोड़ने पर ही सफलता सामने दिखाई दे सकती है. 

धनु राशि 

वक्री शुक्र के प्रभाव से अधिक जोश वाले होंगे इसके अलावा सकारात्मक रवैये का जीवन में अनुकूल फल मिल रहा है. सकारात्मक सलाह से आप दूसरों की मदद कर सकते हैं. चीजें  रास्ते पर चलेंगी, और टकराव भी होग अलेकिन जरूरी है की दोस्ताना रुख बनाए रखें. अधिक ग्रहणशील बनें. सामाजिकता, नेटवर्किंग जैसे काम अच्छे प्रभाव देंगे. रिश्तों में नवीनता का असर होगा क्रोध एवं जल्दबाजी से बचना होगा. 

मकर राशि 

वक्री शुक्र के प्रभाव द्वारा जो लोग रिश्ते में हैं उन्हें लग सकता है कि उनका साथी अधिक मांग करने वाला हो गया है. ऎसे में विवाद और अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है. जितना संभव हो एक दूसरे के प्रति सहज बनें. जो लोग अविवाहित हैं वे किसी ऐसे व्यक्ति की ओर आकर्षित हो सकते हैं जो ऊर्जा और उत्साह से भरा हो लेकिन इस समय तर्क और असहमति भी अधिक आप को प्रभावित करने वाली है. 

कुम्भ राशि 

वक्री शुक्र का असर विकास और नई शुरुआत का समय है, लेकिन स्वतंत्र रुप से निर्णय लेना भी उचित नहीम होगा. साहस और ऊर्जा काम आएगी यदि सही से उपयोग की जाए. कुछ कामों जोखिम उठा सकते हैं, नई चीजों को आजमा सकते हैं और नए अनुभवों के लिए खुल सकते हैं. यह समय थोड.अ सोच समझ कर आगे बढ़ना उचित होगा. यह व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करने का भी समय है.

मीन राशि

वक्री शुक्र का प्रभाव ऊर्जा शक्ति में बदलाव को दिखाने वाला होगा. रचनात्मकता अधिक रहने वाली है. बाहरी लोगों के साथ संपर्क का समय भी होगा. भावुक और प्रेमी दोनों हो महसूस कर सकते हैं. अविवाहितों के लिए खुद को बाहर निकालने और नए रिश्ते शुरू करने का यह एक अच्छा समय है. जो लोग पहले से ही किसी रिश्ते में हैं, वे खुद को सामान्य से अधिक भावुक महसूस कर सकते हैं. इस पारगमन का उपयोग अपने रचनात्मक पक्ष में टैप करने और खुद को नए तरीकों से अभिव्यक्त करने के लिए करें.

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नवांश में बैठे मंगल का बल कैसे जानें

नवांश कुंडली ग्रहों की शक्ति एवं उनके प्रभाव को देखने हेतु महत्वपूर्ण होती है.  नवांश कुंडली में मंगल की उपस्थिति जिस स्थान एवं ग्रहों के साथ होगी उसकी क्षमता एवं प्रभाव उसी के अनुरुप प्राप्त होते हैं. नवांश कुंडली के प्रयेक भाव में बैठा मंगल अलग-अलग तरह से अपना 

प्रथम भाव नवांश में मंगल

नवांश कुंडली के पहले घर में बैठा मंगल व्यक्ति को कुछ अतिरिक्त प्रभाव देने वाला होता है. मंगल का असर व्यक्ति को कुछ अधिक सक्रिय बना सकता है. व्यक्ति प्रतिस्पर्धा में शामिल होता है, काम करने के लिए वह उत्साह दिखाने वाला होता है. आरंभिक रुप से उसकी उर्जा न दिखाई दे पाए लेकिन जल्द ही उसकी प्रतिभा सभी के समक्ष होती है. यहां उसे कुछ बल प्राप्त होता है.  लक्ष्य निर्धारण करने में वह कुशल हो सकता है. 

द्वितीय भाव नवांश में मंगल 

नवांश कुंडली के दूसरे भाव में बैठा मंगल जीतने के लिए साहस देता है. व्यक्ति को ऊर्जा से भरपूर रखने के लिए प्रयासशील बनाता है. व्यक्ति को शारीरिक गतिविधियां पसंद होती हैं. वह अपने परिवार के लिए भी कर्मठ होगा. उसके द्वारा किए गए काम गतिविधियां आर्थिक लाभ प्राप्ति के क्षेत्र में सहायक हो सकती हैं. अपने बोलने एवं संप्रेषण में वह थोड़ा अधिक उत्साहित एवं कठोर भी हो सकता है. प्रयासों के द्वारा उसे लाभ प्राप्ति होगी. खानेपीने में लापरवाही के कारण कुछ रोग भी उस पर असर डाल सकते हैं. 

तृतीय भाव नवांश में मंगल 

मंगल का तीसरे नवमांश में होने के कारण कुछ स्पर्धाओं में वह अपने प्रयासों के द्वारा आगे बढ़ने में सफल हो सकता है. खेल कूद से जुड़े लोगों के लिए यह स्थिति बेहतर असर देने वाली हो सकती है.  व्यक्ति में आक्रामकता, प्रतिस्पर्धा, क्रोध, जीत की भावना जैसे गुण भी होंगे जो उसे आगे ले जाने के लिए सहयोगी बनेंगे. अपनों के साथ उसका रवैया कई बार कुछ असंतोषजन भी होगा. कई बार अधिक उत्साह के चलते व्यक्ति व्यर्थ की समस्याओं में भी फंस सकता है. अधीर हो सकता है और जल्द से चीजों को पाने की इच्छा रख सकता है, 

चतुर्थ भाव नवांश में मंगल 

नवांश कुंडली के इस स्थान पर होने के कारण व्यक्ति महत्वकांक्षी हो सकता है. अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शॉर्टकट रास्ते अपना सकता है. मंगल का यहां होना उसे मकान या भूमि के द्वारा कुछ लाभ प्रदान करने में भी सहयोग दिखा सकता है. परिवार एवं लोगों के साथ बेहतर तारत्म्य बनाने में उसे कुछ परेशानी हो सकती है. कई बार लम्बी यात्राओं से लाभ और अचानक से किसी भौतिक संपत्ति की प्राप्ति भी हो सकती है.

पंचम भाव नवांश मंगल 

नवांश कुंडली के पंचम भाव में मंगल का होना व्यक्ति को प्रयासशील बना देता है. अपने खर्चों को लेकर व्यक्ति कई बार जल्दबाजी में होकर हानि का सामना भी कर सकता है. व्यक्ति कई बार लाटरी या सट्टे को लेकर भी कई बार जल्दबाजी के फैसले ले लेता है. स्वतंत्र रूप से काम करने वाला होता है. दूसरों के लिए फैसले लेने ओर मार्गदर्शन की इच्छा भी व्यक्ति में अधिक देखने को मिल सकती है. कुछ रचनात्मक कामों में भी वह फैसला ले सकता है ओर इसमें मान सम्मान भी प्राप्त हो सकते हैं. 

छठे भाव नवांश में मंगल 

नवांश कुंडली के छठे भाव में मंगल का होना व्यक्ति को उत्साहित और अधिक तीव्र बना सकता है. साहस के साथ काम करने का गुण व्यक्ति के भीतर होता है. फैसले लेने में भी निड़रता देखने को मिलती है. वह अपने लक्ष्यों को पाने में अपनी एकाग्रता एवं लक्ष्य साधना का बेहतर परिणाम देख पाता है. विरोधियों का हस्तक्षेप अधिक रहता है लेकिन उन्हें चुप कराने में भी कुशलता मिलती है. दुर्घटना या अचानक होने वाली घटनाएं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. 

सप्तम भाव नवांश में मंगल 

नवांश के सातवें भाव में जब मंगल होता है तो इसका असर व्यक्ति को जीवन में सामाजिक क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में मदद्गार हो सकता है. व्यक्ति सलाहकारों से सलाह लेने से बचता है. वह अपने निर्णयों को स्वयं द्वारा लेना पसंद कर सकता है. कुछ मामलों में अपनों के लिए स्वार्थी भी हो सकता है. विपरितलिंग के मध्य आकर्षण पाता है. व्यक्ति दूसरों पर अधिकार जताने में भी काफी इच्छुक हो सकता है. मांगल्य कार्यों में मिलेजुले परिणाम पाता है. 

अष्टम भाव नवांश में मंगल 

नवांश के आठवें भाव में मंगल की स्थिति कमजोर होती है. इसका प्रभाव व्यक्ति को अनुकूल परिणामों में कमी को दर्शाने वाला होता है. मंगल की स्थिति के द्वारा व्यक्ति अपने शत्रुओं एवं व्याधियों से परेशान हो सकता है. जीवन में अचानक होने वाले घटनाक्रम उसे मानसिक रुप से परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति को लाभ प्राप्ति भी आकस्मिक रुप से हो सकती है. मंगल का प्रभव व्यक्ति को गुढ़ चीजों को आसानी से कर लेने में सहायक बनता है. व्यक्ति दबंग, कठोर एवं साहसिक होता है,रक्त संबंधी विकार परेशानी दे सकते हैं. 

नवम भाव नवांश में मंगल 

मंगल के नवांश के नवम भाव में होने पर व्यक्ति को अपने कार्यों में सफलता पाने का अवसर मिलता है. वह जीवन के प्रति कुछ सकारात्मक होता है. उसके पास कई चीजों को करने का मौका भी होता है. जीवन में परिश्रम द्वारा सफलताओं को पाने के लिए प्रेरित होता है. व्यक्ति अपने वरिष्ठों का कठोर अनुशासन पाता है. भाई बंधुओं के प्रति अधिक लगाव होता है, किंतु परिस्थितियां अधिक सहायक नहीं बन पाती है. संघर्ष द्वारा लाभ प्राप्ति योग होता है. मान सम्मान प्राप्ति मिलती है. 

दशम भाव नवांश में मंगल 

मंगल के दशम नवांश में होने के कारण व्यक्ति में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की इच्छा शक्ति मजबूत होती है. नवीन चीजों के प्रति खुद को ढ़ाल लेने का गुण भी होता है. व्यक्ति अधिकारियों के सामने अपनी प्रतिभा को अच्छे से स्थापित करने वाला होता है. भौतिक सुख संपत्ति को एकत्रित कर पाने में सक्षम होता है. व्यक्ति अपने काम के द्वारा प्रसिद्धि भी पाता है. उच्च पदों को पाने में सफल होता है. 

एकादश भाव नवांश में मंगल 

मंगल के एकादश भाव में होने की स्थिति कुछ लाभकारी पहलू दिखाने में सहायक बनती है. व्यक्ति दोस्तों के समक्ष अपने को स्थापित करता है. भीड़ का नेतृत्व करने वाला होता है. एक से अधिक कार्यों को करने में कुशल होता है. घूमने फिरने के मौके मिलते हैं. प्रेम और रोमांस को लेकर वह आगे रहने वाला होता है. अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास उसके द्वारा किए जाते हैं. 

द्वादश भाव नवांश में मंगल 

बारहवें भाव में मंगल की स्थिति कमजोर रहती है. मंगल के प्रभाव से व्यक्ति अपने आस पास की चीजों को लेकर अधिक गंभीर भी दिखाई दे सकता है. रिश्तों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है. प्रेम संबंधों में अलगाव एवं असंतुष्टि का असर भी देखने को मिल सकता है.

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मीन राशि में बृहस्पति अस्त होने का प्रभाव

बृहस्पति का अस्त होना गोचर एवं आध्यात्मिक दोनों ही पहलुओं से काफी विशेष माना जाता है. गुरु की स्थिति को अत्यंत शुभ माना गया है ओर जब गुरु अस्त होते हैं तो ऎसे में विवाह-सगाई कार्य, गृह प्रवेश, गृह निर्माण कार्य, नया व्यवसाय एवं कार्यालय आरंभ कोई भी शुभ नवीन कार्यों को करने की मनाही का संकेत मिलता है. इस समय पर ऎसे कार्यों को कुछ समय के लिए रोक देने को कहा जाता है जो जीवन की सुख समृद्धि एवं शुभता के द्योतक होते हैं. 

गुरु क्यों अस्त होता है? 

पंचांग गणना अनुसार गुरु का अस्त होना वह स्थिति होती है जब बृहस्पति सूर्य के अत्यधिक समीपस्त होने लगता है. उस समय सूर्य के प्रभस्वरुप गुरु अस्त होने लगता है. गुरु की अस्त स्थिति के कारण ही गुरु के मिलने वाले शुभ फलों में भी कुछ कमी आ जाती है. ऎसे में बृहस्पति के गुण कमजोर होने के कारण विवाह एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्यों को रोक दिया जाता है. बृहस्पति एक बेहद ही शुभ ग्रह है, यह दांपत्य सुख, विस्तार, समृद्धि एवं प्रसन्नता का ग्रह है ज्ञान की प्राप्ति का आधार है. इस कारण इसके अस्त होने के कारण इन शुभतत्वों में कमी होती है जिसके चलते यदि अस्त समय पर शुभ मांगलिक कार्यों को किया जाए तो उनका सकारात्मक फल भी कमजोर हो जाता है. 

बृहस्पति अस्त प्रभाव का राशियों पर असर 

मेष राशि के लिए अस्त बृहस्पति  

मेष राशि वालों के बृहस्पति का अस्त होना आर्थिक मामलों में कुछ नए बदलाव का समय होगा. विदेशी कार्यों में लाभ का समय होगा लेकिन काम के पूरा होने की अवधि अब लंबी भी हो सकती है.  क़रीबी लोगों के साथ कुछ बहस हो सकती है, सामाजिक जीवन में रुचि कम हो सकती है. आर्थिक रूप से, धन व्यय पर नज़र बनाए रखनी होगी. 

वृष राशि के लिए अस्त बृहस्पति  

वृष राशि के लिए ग्यारहवें भाव में बृहस्पति अस्त होगा. इस समय अधिक लाभ मिलने में कुछ समय व्यवधान की स्थिति बनेगी. निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे बड़ा निवेश करने से अभी बचें. परिवार के बड़ों की ओर से थोड़ा अधिक दबाव बढ़ सकता है. इस समय यात्राएं कुछ समय के लिए असुविधाजनक भी लग सकती हैं. 

मिथुन राशि के लिए अस्त बृहस्पति 

बृहस्पति दशम भाव में अस्त होगा. इस घटना के दौरान नौकरी और व्यवसाय से जुड़े जीवन पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है. व्यवसायी या कामकाजी व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में देरी का सामना कर सकता है, कुछ विफलता भी हाथ लग सकती है. स्वास्थ्य कुछ कमजोर हो सकता है. वरिष्ठ अधिकारियों से अधिक सहयोग अभी नहीं मिल पाए.

कर्क राशि के लिए अस्त बृहस्पति   

मिथुन राशि के लिए बृहस्पति नवम भाव में अस्त होगा. अचानक आध्यात्मिक गतिविधियों से हट कर कुछ काम शुरु हो सकते हैं. साधना में कुछ समय अटकाव हो सकता है. धार्मिक यात्राएं होंगी लेकिन यात्राओं में असुविधा परेशान कर सकती है. सामाजिक रुप से नए विचारों के साथ आगे आएंगे. आर्थिक रुप से स्थिति सामान्य रहेगी. 

सिंह राशि के लिए अस्त बृहस्पति   

सिंह राशि को इस समय अचानक से अपने काम में बदलाव दिखाई दे सकता है. उधार या कर्ज देने से अभी बचना चाहिए. स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिल सकती है, इसलिए आपको अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता हो सकती है. 

कन्या राशि के लिए अस्त बृहस्पति  

कन्या राशि वालों के लिए बृहस्पति का अस्त होना विवाह के सुख में कुछ कमी का संकेत दे सकता है, इस समय साझेदारी में किए जाने वाले कार्यों पर बारीकी से नजर बनाए रखनी होगी. कुछ नया करने से बचें. लेनदेन के मसलों में गड़बड़ी हो सकती है. ये समय अचानक से यात्रा का भी होगा. आर्थिक रुप से लाभ और खर्च दोनों की स्थिति बनी रहने वाली हैं. 

तुला राशि के लिए अस्त बृहस्पति

तुला राशि वालों के लिए यह स्थिति सामान्य रहेगी. छठे भाव का स्वामी अस्त होगा ऎसे में शत्रुओं से राहत रहेगी. कुछ नए काम अचानक से लाभ दे सकते हैं. व्यवसाय या नौकरी में स्थिति अनुकूल रहेगी.  इस समय केवल काम करने की रणनीति में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता हो सकती है. 

 वृश्चिक राशि के लिए अस्त बृहस्पति

वृश्चिक राशि वालों के लिए पंचम भाव में बृहस्पति का अस्त होगा. यह समय छात्रों की एकाग्रता की कमी को देने वाला होगा, इस समय बच्चे कुछ लापरवाह हो सकते हैं. मौज मस्ती में अधिक समय लगाते हुए छात्र अपनी शिक्षा में कमजोर हो सकते हैं. प्रेमियों के लिए स्थिति कमजोर होगी. संतान को लेकर कुछ चिंता रह सकती है. 

धनु राशि के लिए अस्त बृहस्पति

धनु राशि वालों को इस समय घर से दूर जाने के मौके मिलेंगे. काम एवं नई चीजों को सीखने के लिए कुछ यात्रा कर सकते हैं. धनार्जन के लिए और सेविंग बनाए रखने के लिए प्रयास अधिक करने की आवश्यकता होगी. 

मकर राशि के लिए अस्त बृहस्पति 

बृहस्पति का अस्त होना थकान की अधिकता दे सकता है.काम में अधिक ध्यान न देने से दूसरों के हस्तक्षेप की अधिकता होगी. ऎसे में चीजों पर नियंत्रण कम होगा. भाई बंधुओं के साथ व्यर्थ की बहस से बचने की आवश्यकता होगी. कंधे एवं कान से जुड़े रोग उभर सकते हैं. 

कुंभ राशि के लिए अस्त बृहस्पति 

 कुंभ राशि के लिए बृहस्पति का अस्त होना धन से जुड़े मामलों में कुछ निराशा दे सकता है. इस समय खान-पान में लापरवाही सेहत पर भी असर डल सकती है. परिवार में किसी सदस्य के कारण चहलकदमी बढ़ सकती है. सेविंग को लेकर लापरवाही से बचना होगा.

मीन राशि के लिए अस्त बृहस्पति 

लग्नेश बृहस्पति के अस्त होने के कारण मन एवं शरीर के तारतम्य में कमी दिखाई देगी. कुछ बातों को लेकर अधिक सोच विचार बना रह सकता है. कार्यों को लेकर परिश्रम बनाए रखने की आवश्यकता होगी. इस समय जरुरी है की बृहस्पति के मंत्रों का जाप नियमित रुप से किया जाए ऎसा करने से शक्ति एवं उत्साह बना रहेगा. 

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जन्म कुंडली में केन्द्र भावों की भूमिका और परिणाम

कुंडली में प्रत्येक भाव अपने आप में परिपूर्ण होता है, लेकिन इसके साथ ही एक कुछ भाव ऎसे होते हैं जिनका प्रभाव बेहद ही शुभ और विशेष बन जाता है. इन भावों को केन्द्र भाव की संज्ञा दी जाती है. कुंडली में मौजूद यह भाव व्यक्ति के अस्तित्व पर विशेष छाप छोड़ने वाले होते हैं इन भावों के संबंधों से ही धन योग, लक्ष्मी योग जैसे शुभ फल प्राप्त होते हैं. वहीं जब केन्द्र का संबंध एक दूसरे से बनता है तो दोनों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन को मजबूती देने वाला माना गया है.

केन्द्र भाव में कुंडली के चार स्तंभों को देखा जाता है. इन स्तंभों के द्वारा जीवन चलायमान होता है. इन के आधार पर ही कुंडली के कई योग निर्मित भी होते हैं. कुंडली के ये भाव जीवन के भौतिक स्वरुप के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं. 

कुंडली के केन्द्र भाव कौन से होते हैं 

पहला भाव – केन्द्र भाव 

जन्म कुंडली का पहला भाव केन्द्र भाव में स्थान पाता है. यह कुंडली के शुरुआत की स्थिति भी होती है ओर व्यक्ति का जीवन इसके द्वारा दृष्टिगोचर भी होता है. कुंडली का पहला घर जिसे लग्न भी कहा जाता है केन्द्र स्थान में बेहद विशेष होता है. इसको तनु या शरीर भाव के रूप में भी जाना जाता है जो जीवन की शुरुआत यानी बचपन, स्वास्थ्य, परिवेश, व्यक्तित्व, शारीरिक बनावट, चरित्र और कुंडली की सामान्य ताकत को रेखांकित करता है.

इस भाव के द्वारा शुभता आचरण एवं अच्छे खराब प्रभाव सभी को देखा जाता है. कुंडली में यदि लग्न मजबूत होता है तो व्यक्ति को जीवन में किसी भी संघर्ष से बच निकलने की अदभुत शक्ति भी प्राप्त होती है. लग्न का स्वामी ओर लग्न यदि हर प्रकार से शुभ होते हैं तो व्यक्ति कभी हार नहीं मानता है. वह अजय के रुप में सफलता को पाता है. इसके विपरित अगर यह केन्द्र भाव कमजोर हो जाए तो व्यक्ति को किसी के समक्ष विजय पाने में संघर्ष अधिक करना पड़ सकता है. आत्मसम्मान पर इसका गहरा असर भी पड़ता है. 

चतुर्थ भाव केन्द्र स्थान   

चौथा घर एक केंद्र भाव है जो गृह जीवन, आंतरिक सुख, माता के सुख, चल और अचल संपत्तियों, सामान्य शिक्षा को दर्शाता है। यह काल पुरुष – गर्दन और कंधों का भी प्रतिनिधित्व करता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार दूसरा घर एक व्यक्ति एवं उसके परिवार, भौतिक सुखों, वाहन, वस्त्र आभूषण, परिवार में माता, प्रेम रिश्तों के साथ संबंधों, उसके धन को दिखाने वाला स्थान होता है, यह एक व्यक्ति के मूल्यों एवं उसकी नैतिकता के लिए भी अच्छा स्थान होता है.

किसी के पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को समझने के लिए इस घर को देखा जा सकता है.  धन कमाने के लिए चुने गए रास्ते को समझने में भी यह घर मदद करता है. इसे कुंडली विश्लेषण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है और परिवार के धन और मूल्यों को समझने के लिए कुंडली मिलान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.  एक व्यक्ति के लिए उसका सुख और घर के साथ उसके संबंधों की परिभाषा को समझाने वाला स्थान होता है. 

सातवां भाव केन्द्र भाव 

एक मजबूत सातवां घर एक व्यक्ति की जीवन शैली में एक भौतिकवादी स्थिति को दर्शाता है. साझेदारी के लिए ये स्थान बेहद अच्छा होता है. जीवन में होने वाले कोई भी काम जो मिल कर किए जा सकते हैं उन्हें इसके द्वारा देखा जाता है. यह विवाह का स्थान भी है. जीवन में प्रमुख लक्ष्य के रूप में पैसा कमाना और सामाजिक स्थिति भी इस भाव से देखने को मिलती है. खुशी और स्वतंत्रता को इससे भी जोड़ा जाता है. यह भाव प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए साथी एवं धन का सही तरीके से उपयोग करने की क्षमता भी देता है.

यह भाव व्यक्ति की भावनाओं को भी प्रभावित करता है, खासकर जीवन के दूसरे पड़ाव में साथी के साथ संबंधों को भी सके द्वारा देखा जाता है. इस केन्द्र भाव के कमजोर होने की स्थिति के परिणामस्वरूप शत्रुता, विरक्ति, ऋणों का संचय हो सकता है. घर की प्रतिकूल स्थिति का परिणाम यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों के साथ कई तरह से नहीं मिल पाता है. यह अनुभव परिवार और परिचितों के विस्तारित क्षेत्रों में भी आगे बढ़ाया जा सकता है, विशिष्ट ग्रहों की उपस्थिति इस भाव पर अधिक प्रभाव डाल सकती है जबकि शुभ का होना जीवन को असमान बना सकता है. 

दशम भाव केन्द्र स्थान 

 दशम भाव क्रिया और कर्म का प्रतिनिधित्व करता है इसे कीर्तिस्थान के रूप में जाना जाता है. वैदिक ज्योतिष में दशम भाव आपके कार्यक्षेत्र को निर्धारित करता है. इस घर की चाल आपके करियर की रेखा तय करती है. इसी घर से सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है. शक्ति या दासता की स्थिति भी इसी घर से देखने को मिलती है. दशम भाव एक सामाजिक रुप से आगे बढ़ने को अग्रसर करता है.  यह  सत्ता में लोगों के साथ नेटवर्क को जोड़ने और बनाने के लिए आगे रखता है. दशम भाव सीधे तौर पर कमाई की क्षमता से भी जुड़ा होता है.

शक्ति और महत्वाकांक्षा को दर्शाता दशम भाव कड़ी मेहनत के प्रति किसी के दृष्टिकोण को स्थापित करता है. करियर में लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रयास करने की बात इसी घर से आती है. जीवन के कर्मों का फल भी इस घर से देखा जा सकता है. कालपुरुष कुंडली अनुसार यह शनि ग्रह द्वारा अधिपति स्थान है और मंगल और सूर्य कारक बनते हैं. सबसे प्रभावशाली और शक्तिशाली लोग इस घर का प्रतिनिधित्व करते हैं. समाज के उच्च वर्ग में स्थापित होने के लिए इस घर की मजबूती आवश्यक होती है. 

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बृहस्पति के केतु के साथ योग का 12 भावों पर प्रभाव

बृहस्पति एक अत्यंत शुभ ग्रह है ओर केतु एक नकारात्मक ग्रह के रुप में पाप ग्रह माना गया है. यह छाया ग्रह है जो जब कुंडली में बृहस्पति के साथ होता है तो इसका योग बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है. बृहस्पति अंतर्दृष्टि के प्रकाश को देते हुए अज्ञानता और अंधकार को दूर करने वाला ग्रह है. यह ईमानदारी और विस्तार का ग्रह है. उच्च लक्षण और आत्मा का उत्थान बृहस्पति द्वारा हो पाता है.

गुरु चण्डाल योग और इसका असर

केतु गुरु का योग चंडाल योग भी बनाता है, धर्म में आस्था या अनास्था, विश्वास इसी से प्रकट होता है. यह व्यक्ति के धार्मिक पक्ष का विस्तार करता है. लेकिन जब केतु आता है तो व्यक्ति जीवनकाल में कई रहस्यमयी और अलौकिक विधियों में निपुण हो सकता है. क्योंकि केतु एक अलौकिक ग्रह है, जो मोक्ष और त्याग को दर्शाता है. ब्रह्मांड के सबसे सूक्ष्म खगोलीय अंदरूनी तथ्यों को केतु की स्थिति द्वारा ही समझा जाता है. केतु व्यक्ति को हमेशा शांत और एकांत में रहने की आदत देगा. केतु द्वारा रहस्यमय का बोध होता है. यह पूर्व जन्मों में किए गए कार्यों को दर्शाता है. गुरु के साथ केतु मिलकर कई प्रकार की चीजों को करता है और जीवन को बदल देने वाला समय पाता है. 

बृहस्पति और केतु की युति से संबंधित योग है

इस योग के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्ष हैं क्योंकि राहु और केतु पाप ग्रह हैं और बृहस्पति पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं. इसलिए इस योग को भी समान रूप से दोष माना जाता है क्योंकि इसके कई दुष्प्रभाव होते हैं. यह योग किसी व्यक्ति के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है. यह युति जिस भाव और राशि में स्थित है, उसके अनुसार यह बृहस्पति ग्रह और केतु से संबंधित अच्छे और बुरे परिणाम मिलते हैं.

व्यक्ति अनैतिक, अनैतिक और अवैध हो जाता है. ऐसे जातकों का व्यक्तित्व और चरित्र संदिग्ध हो सकता है. सभी कुंडली में केतु और बृहस्पति ग्रह की अलग-अलग शक्ति और कमजोरियां होती हैं, जो सभी को अलग-अलग प्रभावित करती हैं. किसी योग या दोष और लाभ के सभी परिणामों का विश्लेषण करने के लिए कुंडली को देखा जाना चाहिए और उसके अनुसार फलकथन करना उचित होता है. 

गुरु और केतु की युति को गणेश योग या योगिनी योग भी कहा जाता है. इस योग को ध्वजा योग के नाम से भी जाना गया है. बृहस्पति और केतु आध्यात्मिक प्रकृति के हैं. रहस्यवाद के लिए मौलिक मन की शांति इन दोनों के एक साथ होने पर मिलती है. बृहस्पति और केतु की युति जन्म कुण्डली में एक शुभ संयोग है. यह योग जादुई और पारलौकिक कर्मों की बात करता है, बृहस्पति संज्ञान के विकास को नियंत्रित करता है, जबकि केतु ज्ञान का प्रदर्शन करता है. इनका जुड़ाव मुक्ति या मोक्ष की ओर प्रेरित करता है.

कुंडली के प्रथम भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के इस भाव में बृहस्पति और केतु की युति होने से व्यक्ति बौद्धिक रुप से अपने विचारों में काफी दृढ़ हो सकता है. धन के मामले में भाग्यशाली रहता है लेकिन दूसरों के द्वारा धन को छीन लेने का भय भी रहता है.व्यक्ति धार्मिक होता और धर्म को अधिक महत्व देता है.  

कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति और केतु की युति होने से व्यक्ति अपनी वाणी में काफी प्रभावशाली होता है. पूर्वजन्मों का उस प्र अधिक प्रभाव पड़ता है. व्यक्ति धूम्रपान और शराब जैसे पदार्थों का आदी हो सकता है. आर्थिक स्थिति में समस्या बनी रह सकती है. 

कुंडली के तीसरे भाव में गुरु और केतु  

कुडली के तीसरे भाव में गुरु और केतु की युति होने से व्यक्ति चतुर एवं कार्यशील होता है. परिवार में मानसिक तनाव हो सकता है. इस योग में भाई बंधुओं की ओर से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति लेखन कार्य में काफी सफल हो सकता है. गलत कार्यों के लिए भी उसका रुझान हो जाता है.

कुंडली के चौथे भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के चतुर्थ भाव में बृहस्पति और केतु का योग व्यक्ति को परिवार से दूर ले जाने वाला होता है. व्यक्ति बौद्धिक एवं कुशल होता है. भौतिक सुख सुविधाओं को लेकर प्रयासशील रहता है. दूसरों का सहयोग नहीं मिल पाता है. मां को दिक्कत भी हो सकती है.

कुंडली के 5वें भाव में बृहस्पति और केतु  

पंचम भाव में गुरु और केतु का एक साथ होना व्यक्ति के प्रेम एवं संतान पक्ष पर असर करता है. व्यक्ति आध्यात्मिक रुप से काफी सजग होता है. इन चीजों की ओर रुझान भी रखता है. सामान्य शिक्षा में बाधा की स्थिति परेशानी दे सकती है. 

कुंडली के छठे भाव में बृहस्पति और केतु 

कुंडली के छठे भाव में बृहस्पति और केतु का होना कष्ट  एवं गलत रास्ते पर जाने के लिए अधिक उकसा सकता है. काम के क्षेत्र में रुकावटें आ सकती हैं व्यक्ति शत्रुओं के द्वारा परेशान हो सकता है. शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. 

कुंडली के सातवें भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के सप्तम भाव में बृहस्पति और केतु का होना व्यक्ति के दांपत्य जीवन को कमजोर कर सकता है. समस्याएं पैदा हो सकती है और रिश्तों में दूरी का असर पड़ता है. कमर से संबंधित परेशानी रहेगी. व्यक्ति को शत्रुओं से कष्ट हो सकता है. सामाजिक रुप से लाभ प्राप्ति के योग बनते हैं. 

कुंडली के आठवें भाव में गुरु और केतु  

कुंडली के अष्टम भाव में गुरु और केतु की युति व्यक्ति को आध्यात्मिक रुप से काफी मजबूत बना सकता है. जीवन साथी से भी तनावग्रस्त स्थिति मिल सकती है. लोगों का दुष्ट स्वभाव परेशानी देता है. आर्थिक स्थिति नाजुक होने के कारण दबाव अधिक रहता है.आकस्मिक दुर्घटना, चोट, ऑपरेशन इत्यादि का सामना करना पड़ सकता है. 

कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति और केतु का होना धार्मिक गतिविधियों अलग विचार देता है. अलग संस्कृतियों के प्रति रुझान अधिक होता है. पिता से संबंध या सुख कमजोर रह सकता है. पारिवारिक जीवन में तनाव हो सकता है.  

कुंडली के दशम भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के दशम भाव में बृहस्पति और केतु का होना व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ाने का काम करता है. व्यक्ति एक से अधिक कार्यों में शामिल हो सकता है. व्यक्ति नैतिक कार्यों से अलग कई तरह के काम कर सकता है. नौकरी में उन्नति और प्रतिष्ठा पाना मुश्किल होता है. व्यापार और करियर में लगातार संघर्ष बना रह सकता है.

कुंडली के ग्यारहवें भाव में गुरु और केतु  

कुंडली के एकादश भाव में बृहस्पति और केतु का होना व्यक्ति को एक से अधिक आय के स्त्रोत देने वाला होता है. आर्थिक पक्ष में कई बार व्यक्ति गलत रास्तों से भी लाभ पाने में सक्षम होता है. मित्रों की संगति के साथ विरोध भी झेलना पड़ सकता है. 

कुंडली के बारहवें भाव में बृहस्पति और केतु  

कुंडली के द्वादश भाव में बृहस्पति और केतु का योग होने से व्यक्ति को विदेशी स्थान से लाभ प्राप्त करता है. आध्यात्मिक रुप से ये स्थिति अनुकूल होती है. नींद में कमी का अनुभव होता है. व्यक्ति भौतिक सुख सुविधाओं को पाने में सफल होता है. स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की जरुरत होती है. 

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शुक्र का कुंडली के विभिन्न भावों में गोचर फल

शुक्र को बेहद शुभ ग्रह के रुप में देखा जाता है. यह जीवन में इच्छाओं को उत्पन्न करने एवं सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है. शुक्र की स्थिति व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक एवं विशेष असर दिखाने वाली होती है. शुक्र जब गोचर में एक राशि एक भाव में होता है तो इसका असर महत्वपूर्ण होता है. जन्म चंद्रमा जिस स्थान पर स्थित है, वहां से पहले भाव, दूसरे भाव. तीसरे भाव, चतुर्थ भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव, नवम भाव, एकादश भाव और बारहवें भाव में शुक्र के गोचर की स्थिति शुभ फलों को प्रदान करने वाली मानी गई है.  इसके अतिरिक्त शेष भवओं पर अर्थात छठे भाव, सातवें भाव और दसवें भाव स्थान पर इसका गोचर अच्छा नहीं माना जाता है. 

शुक्र का प्रथम भाव में गोचर

जब शुक्र आपके पहले भाव से गोचर करता है, तो व्यक्ति दूसरों को खुश करने की कोशिशें करता है. आकर्षण और व्यक्तिगत आकर्षण के लिए समय विशेशः होता है. इस समय खुद के बदलाव एवं विकास पर अधिक ध्यान देते हैं और इस ओर प्रयास लगाते हैं. सामाजिक रुप से आगे रहते हैं. रिश्तों में नए संबंध भी इस समय जीवन पर असर डालते देखे जा सकते हैं. कला, रोमांस, सामाजिकता और व्यक्तिगत रचनात्मक आत्म-अभिव्यक्ति में अधिक शामिल दिखाई दे सकते हैं.इनसे संबंधित व्यवसाय में शामिल होने का यह एक अच्छा समय है लाभ प्राप्ति भी अच्छी होती है.

शुक्र का दूसरे भाव में 

शुक्र का गोचर में दूसरे भाव में होना एक अच्छा प्रभाव दिखाने वाला होता है. जनसंपर्क में काम करके व्यक्ति अच्छी स्थिति को पाता है. व्यक्ति दूसरों के प्रति भी अधिक सहयोगी होता है. दूसरों के साथ शांति बनाना है, परिवार के लिए कुछ नवीन कार्यों को करना तथा इच्छा शक्ति भी मजबूत रहती है. इस समय व्यक्ति दूसरों की कठिनाइयों को कम करने का सबसे अच्छा तरीका खोजने में मदद करने वाला होता है. शुक्र के दूसरे भाव में गोचर करते समय मौज-मस्ती के भी अवसर प्राप्त होते हैं. जब शुक्र आपके दूसरे भाव से गोचर करता है, तो यहां मुख्य रुप से शब्द कला, संगीत और शोबिज से संबंधित कामों में अच्छा करने का मौका देता है. किसी भी तरह की कलात्मक अभिव्यक्ति जैसे पेंटिंग, नृत्य, संगीत या मूर्तिकला बहुत फायदेमंद परिणाम देने वाली होती है. 

शुक्र का तृतीय भाव में गोचर

शुक्र के तीसरे भाव में गोचर का समय व्यक्ति को कई मायनों में मेलजोल की स्थिति दिलाने वाला होता है. यह सामाजिक गतिविधियों, आनंद, प्रेम, कलात्मक व्यवहार और व्यवसाय से जुड़ा रहने वाला समय होता है. इस समय यात्राओं के लिए सबसे अच्छे मौके भी मिलते हैं. अपने भाई-बहनों, पड़ोसियों, दोस्तों और सहकर्मियों के साथ व्यक्ति के संबंध भी विकसित होते हैं. संचार बहुत बेहतर होता है और इसके द्वारा लाभ प्राप्ति का भी बेहतर समय होता है. व्यक्ति अपने रिश्तों को लेकर भी बहुत ही सौहार्दपूर्ण स्थिति को पाने वाला होता है. 

शुक्र का चतुर्थ भाव में गोचर

शुक्र का चतुर्थ भाव में गोचर होना व्यक्ति को भौतिक सुख समृद्धि प्रदान करने वाला होता है. शुक्र गोचर की विशेषता परिवार के सदस्यों के साथ व्यवहार में बदलाव को दिखाने वाली होती है. जीवन में नई वस्तुओं का आगमन होता है.  व्यक्ति अपनों के साथ अच्छे रिश्ते पाता है. माता-पिता के साथ बहुत अधिक सामंजस्य की अभिव्यक्ति होती है. घर में सुंदरता से संबंधित चीजों को  लाते हैं रहन सहन में बदलाव होता है.  प्रकृति से जुड़ते हैं, सुंदरता के प्रति बहुत संवेदनशील भी होते हैं. घर या बगीचे को सुंदर बनाने के लिए कला या विलासिता की वस्तुएं खरीदी जाती हैं. जमीन-जायदाद या फर्नीचर या घरेलू सामान से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल होने का योग होता है. 

शुक्र का गोचर पंचम भाव में

जब शुक्र आपके पंचम भाव से गोचर करेगा, तो कुछ रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करने वाला भी बनाता है. बच्छों या मित्रों के साथ रचनात्मकता का संब्म्ध जुड़ता है. लोगों के साथ बहुत अच्छे से घुलमिल जाते हैं. यह एक साथ खेलने और मस्ती करने का अच्छा समय है. अधिक समझ महसूस करते हैं और कई तरह के मान सम्मान भी पाने में सफल होते हैं. अधिक दयालु और उदार बनते हैं. प्रेम संबंधों से जुड़ने का समय होता है नए रिश्तों की शुरुआत का समय होता है. ये समय कई तरह के कार्यों में शामिल होने का भी अच्छा समय होता है. 

शुक्र का छठे भाव में गोचर

आपके छठे भाव से शुक्र का यह गोचर काम या पेशे से जुड़े सभी मामलों के लिए कुछ अटकाव एवं चुनौतियों को देने वाला समय होता है. इस समय सेहत की स्थिति भी प्रभावित होती है. व्यक्ति चीजों को हल करने के लिए दूसरों के साथ काम करने को तैयार होता है. कार्यस्थल पर भी दूसरों से आपको कुछ अधिक प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ सकती है. आर्थिक मदद के लिए दूसरों का पक्ष काम आता है. इस गोचर के समय वैवाहिक जीवन की स्थिति पर भी मिलाजुला असर पड़ता दिखाई देता है. इस समय पर व्यक्ति कई तरह की गतिविधियों में शामिल होता है. 

शुक्र का सातवें भाव में गोचर

सप्तम भाव में शुक्र का गोचर मिलेजुले परिणाम देने वाला होता है. शुक्र के गोचर का असर रिश्तों पर पड़ता है. जनसंपर्क, सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी का समय होता है. महत्वपूर्ण या  व्यावसायिक भागीदारों के साथ संबंधों में कुछ बदलाव अचानक से देखने को मिलता है. व्यक्ति मांगलिक सुख को पाता है. वैवाहिक जीवन से संबंधित रिश्ते भी इस समय प्राप्त होते हैं. लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध भी विकसित होते हैं. किसी के साथ समस्या होने पर इसे सुलझाने में दूसरों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण बन जाती है. 

शुक्र का आठवें भाव में गोचर

शुक्र का अष्टम भाव में गोचर होना काफी महत्वपूर्ण होता है. इस समय स्थिति कुछ कमजोर पक्ष में भी काम करने वाली होती है. सामाजिक संपर्क के माध्यम से विवाद भी उभर सकते हैं. गुप्त विरोधियों का दबाव भी अधिक बढ़ने लगता है. व्यावसायिक क्षेत्र में इस समय संभल कर काम करने की जरुरत होती है. यौन संबंधों की ओर अधिक झुकाव भी उत्पन्न होता है. इस समय के वैवाहिक जीवन के सुख पर असर पड़ता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी स्थिति कमजोर रह सकती है. संक्रमण इत्यादि का खतरा बढ़ सकता है. 

शुक्र का नवम भाव में गोचर

शुक्र का ये गोचर सामान्यत: अनुकूल सिद्ध होता है. इस अवधि में विवाह की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं नए रिश्तों का आगमन होता है. व्यक्ति के लिए यात्राओं का समय होता है. व्यक्ति संगीत, कला और प्रेम संबंधों में गहरी रुचि ले सकता है.सामाजिक रूप से सक्रिय होने का अवसर मिलता है. समाज में संबंध स्थापित होते हैं. पिता के समक्ष रिश्ते अनुकूल होते हैं. आर्थिक समृद्धि एवं पद प्राप्ति का समय होता है. 

शुक्र का दशम भाव में गोचर

शुक्र के दशम भाव में गोचर की स्थिति व्यक्ति को नए कार्यों एवं पद प्राप्ति के मोके दिलाने वाली होती है. लेकिन संघर्ष भी अधिक रह सकता है. शुक्र के प्रभाव से भाग्य का साथ कम मिलता और विवाद की संभावना भी अधिक होती है. मानसिक अशांति और शारीरिक क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है. खर्च अधिक होने की स्थिति परेशानी चिंता दे सकती है. कार्यो उन्मुख होने का समय होता है. परिवार के प्रति आकर्षण बढ़ता है, इसके अलावा समृद्ध जीवन की इच्छा भी बढ़ती है.

शुक्र का एकादश भाव में गोचर

शुक्र के लाभ भाव स्थान में गोचर के द्वारा जीवन में आगे बढ़ने की इच्छाओं को बल प्राप्त होता है. इस भाव में शुक्र के गोचर से धन, मान-सम्मान, समृद्धि, नए स्थान के साथ-साथ शत्रुओं का सामना भी होता है. यह समय सामाजिक रुप से सक्रियता देने वाला होता है. विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है. भाई बंधुओं के साथ संबंध प्रगाढ़ होते हैं. इस भाव में शुक्र का गोचर आर्थिक स्थिरता को प्रदान करने में सहायक बनता है.

बारहवें भाव में शुक्र का गोचर

शुक्र के बारहवें भाव में गोचर की स्थिति आकर्षण और जिज्ञासा में वृद्धि को दिखाती है.  व्यर्थ के भय को जन्म मिलता है. यहां शुक्र कामुकता को जन्म देता है, इस समय में व्यक्ति शांतिपूर्ण और सुकून भरा जीवन जीना चाहता है लेकिन अपनी इच्छाओं के कारण परेशानी झेलता है. शुक्र के गोचर के कारण मिश्रित फल मिलते हैं. इस समय में आर्थिक स्थिति उतार-चढ़ाव से प्रभवैत होती है.  धन हानि और खर्चों में अचानक से वृद्धि हो सकती है. 

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मंगल का विभिन्न राशियों में फल

मंगल उत्साह और साहस का ग्रह है. यह जिस राशि में होता है उस राशि के साथ जुड़कर अपना फल देता है. मंगल की स्थिति जीवन में व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है. व्यक्ति अपने जीवन के संकल्पों एवं निर्णयों के लिए जिम्मेदार होता है. आइये जानते हैं मंगल कैसे देता है विभिन्न राशियों में बैठ कर अपना प्रभाव 

मंगल मेष राशि में

मंगल मेष राशि में अपने प्रमुख स्थान पर है, क्योंकि मेष वास्तव में मंगल की राशि है जो मंगल को मजबूती देने वाली है. मेष राशि में मंगल वाले लोग अत्यधिक सक्रिय, प्रतिस्पर्धी और शारीरिक गतिविधि में अधिक संलग्न रहते देखे जा सकते हैं. मंगल मेष में होने पर खेलकूद से जोड़ता है व्यक्ति को शारीरिक गतिविधियों से जोड़ने का काम करता है, लेकिन यह प्रवृत्ति कई बार भी उन्हें दुर्घटना इत्यादि से भी परेशान करने वाली होती है. मेष राशि में मंगल निश्चित रूप से एक शुद्ध, उच्च शक्ति वाली ऊर्जा का समय होता है. व्यक्ति बोल्ड, साहसी और स्वतंत्र अतिवादी भी हो सकता है. कभी-कभी  अत्यधिक आक्रामक भी बना सकता है. 

मंगल वृष राशि में

वृष राशि में मंगल का का होना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. मंगल का असर यहां व्यक्ति को जिद्दी बनाता है., कुछ क्रोधी भी लेकिन अपने जीवन को भौतिक रुप से संपन्न बनाने के लिए प्रेरित करने वाला होता है.  व्यक्ति में दृढ़ संकल्प मजबूत होता है.  वृष में बैठा मंगल व्यक्ति को कई बार अविश्वसनीय रूप से धैर्यवान बना सकता है. किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कैसे दृढ़ रहना है इन्हें अच्छे से आता है.  व्यक्ति हार नहीं मानता है और उनके पास एक बेहतर स्थिर दृष्टिकोण भी होता है. व्यक्ति बहुत विचारशील और व्यवस्थित  होता है तथा जीवन की गुणवत्ता के लिए प्रयास करता है. 

मंगल मिथुन राशि में 

मंगल का मिथुन राशि में होना व्यक्ति को उत्सही एवं चंचलता देने वाला हो सकता है. यह एक ऐसा प्लेसमेंट है जो मंगल के जोश को सक्रिय कर देने वाला होता है. मिथुन राशि बदलाव के पक्ष की राशि है. उच्च मानसिक कार्यों से युक्त होती है ऎसे में मंगल का यहां होना उनके पास एक तेज़ बुद्धि है और अपने तर्कों से आगे बढ़ने वाला है.  चीजों एवं जानकारी को जल्दी से समझने वाले होते हैं और उच्च ऊर्जा को दर्शाते हैं इनमें एक कमी हो सकती है जल्द से ऊब जाना और बेचैनी का सामना करना. कई बार ये लोग बिखरे हुए भी लग सकते हैं, मल्टीटास्किंग में अविश्वसनीय हो सकते हैं, और उनकी बहुत सारी रुचियां होती हैं, इसलिए ये लोग भी बहुमुखी हैं और वे हमेशा एक कदम आगे रहने वाले हो सकते हैं. 

कर्क राशि में मंगल 

कर्क राशि में मंगल का होना कुछ कमजोर और अधिक अस्थिर रह सकते हैं. यहां मंगल थोड़ा असहज दिखाई दे सकता है. मंगल ग्रह यहां अपनी नीच स्थिति में होता है. मंगल भावनाओं का उपयोग करना पसंद नहीं करता है लेकिन यहां कर्म में वह भावनाओं से लड़ता दिखाई देता है. यह भावनाओं के बिना कार्रवाई का उपयोग करना पसंद करता है और जब यह कर्क राशि में होता है, तो यह इसे भावनाओं का उपयोग करने के लिए मजबूर करता है. कर्क में मंगल का प्रभाव लोगों के प्राकृतिक नेतृत्व को दर्शाता है. व्यक्ति परिवार और रिश्ते-उन्मुख होने के साथ, सुखों को पाने के लिए ललायित रहने वाला होता है. 

सिंह राशि में मंगल

सिंह राशि में मंगल की स्थिति ऊर्जा और जुनून के साथ काम करने वाली होती है. सिंह के मंगल में होने पर व्यक्ति आत्मविश्वास में मजबूत होता है. उसके आस पास की ऊर्जा उसे मजबूत बनाती है. आत्मविश्वास, पहल, प्रेरणा और दृढ़ संकल्प देने वाली होती है.  शीर्ष पर रहने की स्थिति मजबूत होती है. सिंह में मंगल जबर्दस्त इच्छाशक्ति और उत्साह, और नेतृत्व करने की स्वाभाविक क्षमता के साथ दिखाई देता है. उन्हें दूसरों को बहुत अधिक दबाव देने के लिए भी जाना जा सकता है लेकिन अच्छी स्थिति होने पर, मंगल बहुत प्रेरक, उदार और वफादार व्यक्तित्व प्रदान करता है. 

मंगल कन्या राशि में

जब मंगल ग्रह कन्या राशि में होता है तो यह विचारशीलता को दर्शाता है और साथ ही जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए आगे रखता है. ये असर व्यक्ति को व्यस्त बनाता है. हर चीज पर कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं.  कन्या राशि एक बहुत ही मानसिक और बौद्धिक राशि है ऎसे में मंगल यहां बैठ कर व्यक्ति को तर्क से परिपूर्ण बना सकता है. मंगल की स्थिति यहां बिखरी हुई, उन्मत्त ऊर्जा को दर्शाने वाली होती है. कन्या में मंगल का होना चिंताजनक भी होता है. क्योंकि यहां मंगल का होना चीजों पर विवरणों पर बहुत ज्यादा ध्यान देने वाला बनाता है ऎसे में उनके कारण महत्वपूर्ण चीजें छूट जाती हैं. 

तुला राशि में मंगल

तुला राशि में मंगल की स्थिति कुछ मिलेजुले प्रभाव को दिखाने वाली होती है. जैसे मंगल कर्म में कमजोर होता है वैसे ही तुला राशि भी मंगल के अधिक अनुकूल नहीं होती है. मंगल यहां पर होकर थोड़ा असहज हो सकता है क्योंकि मंगल की स्थिति थोड़ा स्वार्थी तरीके से काम करना पसंद करती देखी जाती है. यहां व्यक्ति कुछ अधिक कल्पनाशील होकर काम करने की इच्छा रखता है. तुला राशि की उच्च विचारधारा मंगल को कई तरह से प्रेरित करने वाली होती है. तुला राशि में मंगल का होना व्यक्ति को सामाजिक बनाने का काम करता है. सामाजिकता से जुड़ कर, लोगों के साथ काम करना, सहयोग और सद्भावना जैसी बातें इसकी प्राथमिकताओं में शामिल हो सकती हैं.  तुला राशि में मंगल होने का परिणाम यह भी हो सकता है कि लोग बहुत अधिक मिलनसार हो सकते हैं और अपनी स्वयं की इच्छाओं और जरूरतों की उपेक्षा कर सकते हैं.

मंगल वृश्चिक राशि में 

वृश्चिक में मंगल का होना एक बेहतर परिणाम माना जाता है क्योंकि मंगल के लिए यह स्थान उसका घर होता है. वृश्चिक राशि मंगल के स्वामित्व की राशि भी है. मंगल ग्रह जब वृश्चिक में होता है तो बेहतर परिणाम देने वाला होता है. यहां व्यक्ति तर्क कुशल बनाने वाला संकेत भी होता है. प्रेम और रोमांस व्यक्ति में उत्साही होता है. वृश्चिक राशि में मंगल का होना परिश्रमी बनाता है और बाधाओं से लड़ने वाला भी बनाता है. उनके पास वास्तव में एक मजबूत इच्छा शक्ति होती है लेकिन इसका असर व्यक्ति को जिद्दी भी बनाता है. 

मंगल धनु राशि में  

मंगल का धनु राशि में होना व्यक्ति को एकाग्रता से पूर्ण और जोशिला बनाता है. व्यक्ति भीड़ में आकर्षण का केन्द्र भी बनता है. एक मजबूत दार्शनिक होता है ओर दूसरों के लिए मार्गदर्शक का काम भी करता है. व्यक्ति में कमर्ठता का गुण होता है. सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति भी उसमें होती है.  व्यक्ति के पास एक बहुत ही आदर्शवादी रवैया भी होता है, कई बार ये लोग क्सर जोखिम लेने वाले होते हैं, लेकिन बहुत भाग्यशाली भी होते हैं. मंगल धनु में बैठ कर खुद को भाग्यशाली भी बनाता है. साहसिक भावना और शारीरिक सहनशक्ति अच्छी होती है. 

मकर राशि में मंगल

मकर राशि में मंगल की स्थिति काफी उच्च होती है. यहां मंगल काफी उन्नत स्थिति का होता है. मकर राशि में मंगल उच्च का होता है, मंगल यहां उच्च प्रतिष्ठित स्थिति में होता है और यहां पूरी शक्ति से आगे बढ़ने वाला होता है. मंगल की ऊर्जा के लिए ये स्वतंत्र स्थान भी होता है. मंगल का असर व्यक्ति को प्रेरित, महत्वाकांक्षी और प्रत्यक्ष भी बनाता है. उनके पास अच्छी करियर स्थिति और वित्तीय सुरक्षा होती है. सफलता की ओर काम करने में सपक्षम होते हैं. मकर राशि में मंगल भी जोखिम लेने वाला नहीं है, सतर्क और रूढ़िवादी रहना पसंद करता है.ऎसे में गणनात्मक होकर वे कड़ी मेहनत करते हुए आगे बढ़ते हैं. जिम्मेदार, अनुशासित और परिपक्व बनते हैं, उत्कृष्ट कर्मचारी और उद्यमी भी बनते हैं. 

मंगल कुंभ राशि में

कुंभ राशि में मंगल का होना एक दिलचस्प स्थिति को दर्शाने वाला होता है. आगे बढ़ते हुए व्यक्ति स्वतंत्र विचारधारा को लेकर चलता है. इनमें कई बार हठ और उच्च भावना भी होती है. किसी भी काम को करने के लिए वह आगे बढ़ते हैं मंगल कुंभ में होकर व्यक्ति को स्वतंत्र और दृढ़ निश्चयी बनाता है. व्यक्ति स्वयं के बारे में तथा दूसरों को लेकर काफी अधिक सोच विचार वाला होता है. जोखिम लेकर आगे बढ़ने की स्थिति भी इनमें होती है. इनके पास मजबूत मानसिक ऊर्जा शक्ति होती है और अपरंपरागत, कल्पनाशील विचारों के साथ एक असामान्य स्थिति भी यहा दिखाई देती है. 

मीन राशि में मंगल

मीन राशि में मंगल का होना शक्ति को कई बार उपकारी तरीके से उपयोग करने वाला बनाता है. भावनात्मक एवं उदार व्यकित्व देने में सहायक होता है. मंगल के मीन में होने पर व्यक्ति अधिक दयालु बनाता है और ये लोग दूसरों के सहयोग के लिए अपनी बहुत सारी ऊर्जा भी मदद करने उपयोग करते हैं. अपनी शक्ति को दूसरों की सहायता के साथ योगदान देने में लगाते हैं.  मंगल का मीन में होना कुछ असंगठित भी बना सकता है, ये लोग जो महसूस करते हैं उसके प्रवाह के साथ जाना पसंद करते हैं. इनके पास बहुत सारी कलात्मक, रचनात्मक प्रतिभा है, जो कला और संगीत जैसी चीजों से इन्हें जोड़ने का काम करती है. एक स्वप्निल, नरम दृष्टिकोण इनके स्वभाव का अंग हो सकता है. 

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बुध का कुंडली के 12 भाव में गोचर फल

बुध एक ऎसा ग्रह है जो अपनी तेज रफता के साथ चलते हुए गोचर में अपना असर हर राशि पर जल्द से जल्द देने की कोशिश करता है. बुध को राशि चक्र का एक चक्र पूरा करने में लगभग साल का समय लग जाता है यह सूर्य के समान ही उसके पास या आगे पीछे रहते हुए राशि भ्रमण में होता है. यह प्रत्येक राशि में तीस दिनों तक का समय व्यतीत करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसकी गति सीधी है या वक्री क्योंकि चाल में जब भी बदलाव होगा तब समय सीमा भी कम अधिक हो सकती है. जन्म के समय चंद्रमा जिस भाव में स्थित होता है, वहां से दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में बुध को अच्छे परिणाम देने वाला माना जाता है. इसके अतिरिक्त भाव स्थानों पर जिसमें से लग्न भाव, तिसरे भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव, नवम भाव और द्वादश भाव में यह कमजोर परिणाम दिखाता है. 

पहले भाव में बुध का गोचर 

पहले घर में बुध का गोचर कई मायनों में अपने असर को दिखाता है. यह मानसिक रुप से विचारशीलता को बढ़ा देने वाला समय होता है. गले में खराश और टॉन्सिलिटिस जैसी स्वास्थ्य समस्याएं भी दे सकता है. इस समय व्यक्ति संगति को लेकर काफी उत्साहित दिखाई देता है. कुछ स्थिति स्वतंत्रता को कमजोर कर देने वाली होती है. ज्यादातर ऐसी स्थिति भी देखने को मिल सकती है अनिच्छा से किसी की बातों के अनुसार अधिक काम करना पड़ सकता है. 

दूसरे भाव में बुध गोचर का फल 

इस समय पर बुध का गोचर आर्थिक क्षेत्र में अच्छे परिणाम दिखाने वाला होता है. व्यक्ति अपनी मांग के अनुरुप अच्छे काम करने में सक्षम भी होता है. वाणी में चतुराई आती है. अपना काम निकलवाने में व्यक्ति सफल होता है. खर्चों की अधिकता होती है लेकिन लाभ प्राप्ति के कारण स्थिति सामंजस्य को पाती है. व्यक्ति सामाजिक रुप से अपने लिए अच्छे स्थान को पाता है. दूसरे लोग इनकी बातों में सहजता से आ सकते हैं. 

तीसरे भाव में बुध गोचर का फल 

तीसरा भाव बुध के गोचर के लिए शुभ होता है. यह विशेष रूप से व्यापार एवं सौदा करने वालों के लिए आर्थिक लाभ और आय में वृद्धि का प्रतीक होता है. यह अवधि चीजों को सीखने और ज्ञान प्राप्त करने में सफलता के रूप में अच्छे मौके देने वाली होती है यह अवधि अच्छे लोगों की संगति में भी लाती है और अच्छे पकवानों का स्वाद चखने का अवसर देती है.  इस समय यात्राओं का समय होता है संचार के क्षेत्र में भी यह समय काफी अच्छा माना जाता है. 

चतुर्थ भाव में बुध गोचर का फल 

इस समय काम में विवादों से बचने के लिए सावधानी बरतने की जरुरत होती है. इस दौरान काम को बेहतरीन तरीके से करना जरुरी होता है. अनावश्यक ख़र्चों से भी सावधान रहना पड़ता है क्योंकि इससे आपकी जेब पर भारी बोझ पड़ सकता है. खराब लोगों के कारण दबाव अधिक रहता है. योजनाएं अटकाव के कारण आगे बढ़ नहीं पाती हैं. इस समय घर में कुछ नवीन वस्तुओं के आगमन का भी समय होता है. 

पंचम भाव में बुध गोचर का फल 

पंचम भाव में गोचर के कारण बुध व्यक्ति को कई तरह के लोगों स मिलवाता है. व्यक्ति मित्रों के साथ जुड़कर कई तरह की उपलब्धियों को भी पाने के लिए प्रेरित दिखाई देता है. इस समय कलात्मक पक्ष के साथ साथ रचनात्मक क्षेत्र में भी अच्छे अवसर दिखाई देते हैं. यहां व्यक्ति बौद्धिक रुप से काफी सजग होकर काम कर पाता है. शेयर मार्किट इत्यादि से लाभ की स्थिति भी बनती है. मित्रों और अधिकारियों से प्रशंसा पदोन्नति, बेहतर के लिए बदलाव, नए विषयों का अध्ययन का समय होता है.

छठे भाव में बुध गोचर का फल 

छठे भाव में बुध का गोचर अच्छे परिणाम दिलाने में सहायक बनता है. इस समय पर अपने कार्यक्षेत्र में प्रतिष्ठा की प्राप्ति भी संभव हो पाती है. व्यापार के क्षेत्र में यात्राएं होती हैं और नए सौदे भी इस समय पर मिल सकते हैं. व्यक्ति अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में सफल होता है. इस समय नए विषयों का अध्ययन कर पाते हैं और समाजिक रुप से कई तरह के काम में भागीदारी का समय भी होता है. स्वास्थ्य को लेकर त्वचा एवं गले से संबंधित कुछ विकार परेशानी दे सकते हैं. 

सप्तम भाव में बुध गोचर का फल 

सातवें भाव में बुध का गोचर असुरक्षा एवं अनिश्चितता का माहौल दे सकता है. इस समय व्यर्थ के आरोप प्रत्यारोपों के कारण मानसिक रुप से व्यक्ति परेशान होता है. यह  समय मानसिक और शारीरिक रूप से कुछ कठिन रह सकता है. यह अवधि बीमारी का संकेत भी देने वाली होती है. अपने साथी को लेकर चिंताएं रह सकती हैं. इस गोचर के दौरान आपको शारीरिक दर्द और शारीरिक कमजोरी का अनुभव करना पड़ सकता है. मानसिक रूप से बेचैन और परेशान भी अधिक रह सकते हैं. 

अष्टम भाव बुध गोचर का फल 

आठवें भाव में बुध के गोचर का फल अस्वस्थता के साथ चिंता की अधिकता वाला होता है. इस समय अकस्मात होने वाले लाभ भी प्राप्त होते हैं. नौकरों और वरिष्ठों की ओर से काम काज में सहायता भी मिल पाती है. भागदौड़ अधिक बनी रह सकती है. वाणी में झूठ का असर दिखाई दे सकता है. कुछ मामलों में गलतफमियों के चलते परेशानी अधिक उठानी पड़ सकती है. 

नवम भाव में बुध गोचर का फल 

नवम भाव में बुध का गोचर कुछ काम की अधिकता के साथ साथ जिम्मेदारियों को भी बढ़ा देने वाला होता है. दिशा निर्देशों का पालन करना आसान नहीं होता है. संतान एवं जीवन साथी के मध्य तालमेल बिठाने में दिक्कत हो सकती है. यह समय अध्ययन के लिए बेहतर होता है. आध्यात्मिक रुप से लोगों के साथ विचारों का आदान प्रदान भी बढ़ता है. स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना होता है.

दशम भाव में बुध का गोचर फल 

बुध का गोचर जब दशम भाव में होता है तो यह स्थिति अच्छी आय का संकेत देने में सहायक होती है. नए विषय का अध्ययन कर पाते हैं. धार्मिक मामलों में रुचि बढ़ सकती है. अधिकारियों के साथ संपर्क बनता है और काम में अच्छे लाभ भी मिलते हैंइस समय व्यक्ति परिवार और काम को लेकर कुछ अधिक व्यस्त रह सकता है. 

एकादश भाव में बुध का गोचर 

एकादश भाव में बुध अच्छे परिणाम देने वाला होता है. यह कुछ नए समाचार, अच्छी आय, सरकारी कार्यों में सफलता को दिखा सकता है. इस समय मित्रों और रिश्तेदारों के साथ मेल जोल अधिक बढ़ता है. सामाजिक रुप से भागीदारी भी रहती है. विलासिता की वस्तुओं पर धन खर्च होता है और साथ ही नवीन वस्तुओं की प्राप्ति का समय होता है. 

द्वादश भाव में बुध का गोचर फल 

बारहवें भाव में बुध का गोचर होने पर व्यक्ति को मिलेजुले परिणाम अधिक मिल सकते हैं. इस समय आय प्राप्ति के लिए बाहरी संपर्क अधिक काम आते हैं. लम्बी दूरी की यात्राओं का समय भी बनता है. विदेश कारोबार में मुनाफा मिल पाता है. इस समय खर्चों की अधिकता रह सकती है. शत्रुओं से सावधान रहना होता है अन्यथा मान हानि का असर भी जीवन पर पड़ सकता है. 

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बुद्धि के विकास के लिए क्यों अहम होता है बुध ग्रह ?

बुध को संस्कृत में बुद्ध कहा जाता है और इसका अर्थ बुद्धिमत्ता और तर्क की कुशलता. बुध जितना अच्छा होगा उतना ही गुण बेहतर होता चला जाएगा. बुध एक ऎसा ग्रह है जो वाणी और बुद्धि का ऎसा संतुलन देता है जिसके कारण व्यक्ति का काया कल्प हो सकता है. सभी अच्छे वकीलों और वाद-विवाद करने वालों के पास ये गुण बुध ग्रह के कारण ही उन्हें मिलता है. स्मृति, अवलोकन करने और जानकारी एकत्र करने की क्षमता ये सभी बातें बुध के अधीन मानी गई हैं. व्यक्ति का पढ़ना सुनना इसी बुध पर निर्भर करता है. व्यक्ति चीजों को समझने के लिए जो भी काम करता है वह बुध पर निर्भर करता है. 

मिथुन और कन्या पर बुध का असर 

बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि का स्वामित्व पाता है. मिथुन राशि का चिन्ह दो चेहरे हैं, एक अंदर की ओर देख रहा है और दूसरा बाहर की ओर देख रहा है. यह ग्रहण कर लेने के लिए बुध की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है, चिंतन क्षमता का चेहरा अंदर की ओर होता है बुध उसका उपयोग करके इसका बोध कराता है और फिर दूसरों को अपनी समझ बाहर की ओर चेहरा व्यक्त या संप्रेषित करता है. यह इस अद्वितीय क्षमता के कारण है कि बुध को मौखिक संचार की शक्ति का आधिपत्य सौंपा गया है. भीतर की ओर देखने वाला चेहरा इस तथ्य से भी संबंधित है कि बुध तंत्रिका तंत्र पर शासन करता है. पीड़ित बुध तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियों का कारण बन सकता है.

अब दूसरी राशि कन्या राशि है, यह एक युवा कन्या है जिसके हाथों में अनाज के बीज हैं और वह नाव पर सवार हैं. यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों, सेवा और विकास के सांसारिक व्यापारिक मामलों के साथ बुध के संबंध का प्रतीक बनती है. हर किसी को अनाज भरण पोषण की आवश्यकता होती है जो एक कृषि प्रधान समाज में बुनियाद का प्रतिनिधित्व करता है. कारीगर वर्ग, कुशल पेशेवर वर्ग, कौशलता का उपयोग करके अपनी आजीविका अर्जित करने वाले प्रशिक्षण के लिए बुध द्वारा कन्या राशि को मजबूती मिलती है. यह कालपुरुष कुंडली में रोजमर्रा के काम का छठा भाव है. जीवन की नाव पर सवार कुमारी इस तथ्य का प्रतीक है कि हमारी बुद्धि एक कोमल अबोध रुप की तरह है. मासूमियत या हमारी बुद्धि की शून्यता के बिना, हम कुछ भी सीखने और कुछ भी अर्जित करने में सक्षम नहीं होंगे, इसके लिए जरुरी है की नाव को इस अस्थिर दुनिया में अपने अस्तित्व के अशांत जल पर चला सकें इसके लिए बुध सहायक बनता है.

बुद्धि की अपार उर्वरता को पाने में बुध सहायक बनता है. यह विचारों को जन्म देता है, समस्याओं को हल करने में हमारी मदद करता है. कालपुरुष कुंडली में तीसरा भाव मिथुन का और छठा भाव कन्या का होता है. बुध इन दोनों के द्वारा समस्याओं या बाधाओं का सामना करने की क्षमता विकसित करता है. समस्याओं को हल करने वाले विचारों के लिए बुध की आवश्यकता होती है. कन्या राशि का बुध, असीम ज्ञान देता है, यही कारण है कि कन्या राशि में बुध को उच्च का माना जाता है. बुध यहां होकर समस्याओं या बाधाओं से जूझने और हल करने के लिए परिपक्क बनाता है. 

बुध का सूर्य से संबंध 

विंशोत्तरी दशा बुध की दशा से समाप्त होती है. बुध की सहायता के बिना केतु जिस मोक्ष या मुक्ति की कामना करता है, उसे प्राप्त नहीं कर सकता है. बुध के बारे में एक और अनोखी बात यह है कि यह एकमात्र ऐसा ग्रह है जो सूर्य के बहुत करीब होने के कारण अस्त के दोष को नहीं पाता है. सूर्य की अत्यधिक रोशनी ग्रह पर हावी होने के कारण अपनी शक्ति खोने के कारण ग्रह अस्त हो जाता है लेकिन बुध सूर्य से काफी ज्ञान पाता है. बुध के लिए सूर्य उसका शिक्षक भी है. हर दूसरे ग्रह का प्रभाव तब अस्त हो जाता है जब वे सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं.लेकिन जब बुध सूर्य के साथ होता है, तो यह एक प्रसिद्ध राजयोग बनाता है. इस शुभ योग के कारण जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करने में व्यक्ति सक्षम होता है.

सूर्य के साथ बुध बुधादित्य योग कहलाता है. यह योग जातक को बहुत तेजवान बनाता है. बुध बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है और सूर्य सत्य या आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है. सत्य या आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित एक बुद्धि अधिक ज्ञान को लाती है और किसी भी तरह से हानिकारक नहीं होती है. इससे हमें स्पष्ट पता चलता है कि बुध सूर्य की किरणों से अस्त क्यों नहीं होता. यह सूर्य या आत्मा द्वारा प्रकाशित होने पर और अधिक शक्तिशाली हो जाता है.यह सूर्य के सबसे निकट का ग्रह भी है. यह इस तथ्य को इंगित करता है कि  सूर्य से निकलने वाली जीवन शक्ति के अलावा, बुद्धि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कारक है. सूर्य के तेज से प्रकाशित उज्ज्वल बुद्धि के बिना हम सभी अधूरे हैं. 

बुध जीवन के आरंभिक जीवन अबोध पलों के लिए विशेष होता है क्योंकि ज्योतिष में बुध राजकुमार है. बच्चा जीवन के इस चरण में अपने आस-पास की हर प्रासंगिक वस्तु और व्यक्ति को पहचानना सीखता है. बच्चे जिज्ञासु और बेचैन होते हैं यह क्षमता उसे अपने आस पास के माहौल से मिलती है. चीजों को सीखने में बुध मदद करती है. बुध भाषा और संचार पर अधिकार रखता है. बुध भी चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रहों में सबसे अधिक जिज्ञासु और बेचैन करने वाला ग्रह है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह चंद्रमा को छोड़कर अन्य सभी ग्रहों की तुलना में कम समय में सभी राशियों पर भ्रमण पूरा कर लेता है. मजबूत बुध वाला व्यक्ति जीवन भर अपनी जिज्ञासा बनाए रखता है. वह जीवन भर ज्ञान में सीखते और बढ़ते रहते हैं. वहीं बुध का कमजोर होना सीखने और समझने के गुण पर असर डालने वाला होता है. 

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मंगल का सभी 12 भावों में गोचर का प्रभाव

मंगल ग्रह का गोचर जन्म कुंडली के जिस भाव में होगा वहां बैठ कर कई तरह के असर दिखाने वाला होता है. मंगल ग्रह प्रत्येक राशि में लगभग 40 दिनों तक गोचर करता है. जन्म के समय चंद्रमा जिस भाव में स्थित होता है, वहां से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में गोचर करने पर यह सकारात्मक परिणाम लाता है. शेष भावों में, यानी पहले भाव, दूसरे भाव, चौथे भाव, पांचवें भाव, सातवें भाव, आठवें भाव, नवम भाव, दशम भाव और बारहवें भाव में अनुकूलता की कमी को दर्शाने वाला होता है. मंगल का ये गोचर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी ला सकता है. मंगल का गोचर आपके जीवन को कई तरह से प्रभावित कर सकता है.

पहले भाव में मंगल गोचर का फल 

जब मंगल पहले भाव में गोचर करता है, तो व्यक्ति स्वयं को लेकर उत्साहित होता है. खान पान और रहन सहन में बदलाव का समय होता है. धन की ओर अधिक ध्यान देना शुरू हो जाता है. कमी के नए स्त्रोत विकसित होने का समय होता है. इस दौरान कुछ अनचाहे खर्चे भी हो सकते हैं. स्वास्थ्य की दृष्टि से आपको बुखार या रक्त संबंधी रोग हो सकते हैं. करियर में कुछ उतार-चढ़ाव भी आ सकते हैं. इस समय व्यवहार की कठोरता से बचना सबसे आवश्यक होता है. 

दूसरे भाव में मंगल गोचर का फल 

दूसरे भाव में मंगल का गोचर चारित्रिक गुणों, शारीरिक बनावट, स्वभाव एवं वाणी पर असर डालता है. इस समय पर जीवन की अनिश्चितताओं और अचानक होने वाले बदलावों को देख पाते हैं. मंगल का यह गोचर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को भी दर्शा सकता है. इसके अलावा इस समय मंगल देव प्रभाव से अपने कार्यक्षेत्र में हर काम को एक नई ऊर्जा के साथ करते हुए नजर आते हैं

तीसरे भाव में मंगल गोचर का फल  

तीसरे भाव में मंगल का गोचर अच्छे परिणामों को प्रदान करने वाला माना गया है. इससे आपको अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है. पार्टनरशिप से जुड़ा व्यापार करने वाले लोगों के बेहतर लाभ के मौके मिलते हैं. यह गोचर बहुत ही शुभ फल देने की संभावना वाला होता है. जीवनसाथी भी आपके कारोबार में खुलकर सहयोग करता है. वहीं नौकरीपेशा लोगों के लिए भी यह गोचर अधिक शुभ फल लेकर आता है. क्योंकि इस समय कार्यस्थल पर आपके काम को सभी सराहेंगे और इसके परिणाम स्वरूप आपको पूर्ण सफलता मिलती है. 

चतुर्थ भाव में मंगल गोचर का फल 

मंगल का गोचर चतुर्थ भाव में होने पर व्यक्ति को कई मामलों में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रह सकती है. इस दौरान काम ओर घर दोनों स्थानों पर तालमेल बनाए रखने की आवश्यकता होती है. अपने लक्ष्य के प्रति खुद को केंद्रित रखते हुए कड़ी मेहनत करने की जरूरत होती है. पारिवारिक जीवन में इस अवधि में आपको अपनी माता के स्वास्थ्य को लेकर सबसे ज्यादा सावधान रहने की जरूरत होती है क्योंकि इस बात की आशंका अधिक है कि इस गोचर के दौरान आपकी माता का स्वास्थ्य अथवा उनके साथ संबंध चिंता का कारण हो सकते हैं. 

पंचम भाव में मंगल गोचर का फल 

कुंडली के पांचवें भाव में मंगल का गोचर कई मायनों में मिलेजुले परिणामों को देने वाला होता है. प्रेम संबंधों को लेकर इस समय गोचर के दौरान कुछ बदलाव साफ तौर पर देखने को मिल सकते हैं. रिश्ता पहले से ज्यादा गहरा होता है लेकिन कई बार कुछ बातें अलगाव और विवाद का कारण भी बन जाती हैं. अपने प्रियतम के साथ परिणय सूत्र में बंधना चाहते हैं तो इस समय अनुकूल परिणाम मिलने वाले होते हैं.

छठे भाव में मंगल गोचर का फल 

छठे भाव में मंगल का गोचर अच्छे प्रभाव दिखाता है. इस भाव में मंगल का गोचर व्यक्ति की छवि को दूसरों पर प्रभावशाली रुप से डालने वाला होता है. इस दौरान हर तरह के कानूनी विवाद में सफलता पाने का भी अवसर प्राप्त होता है. इस बात की भी संभावना है कि यदि किसी कानूनी पचड़े में फंस भी जाते हैं तो मंगल देव की कृपा से आप उससे भी निकलने में सफल रहते हैं.इसके अलावा जिन लोगों का कोई कोर्ट केस चल रहा है उनका फैसला भी आपके पक्ष में आ सकता है. विरोधियों को दबाने में सफल होते हैं. 

सातवें भाव में मंगल गोचर का फल 

सातवें भाव में मंगल का गोचर होने के कारण यह परिवार एवं दांपत्य जीवन पर असर डालने वाला होता है. 

गोचर की यह अवधि उन के लिए भी कुछ बेहतर हो सकती है जो काम या विदेश में बसने से संबंधित विदेश यात्रा के इच्छुक हैं, लेकिन कुछ समस्याएं भी बनी रहेंगी. सेहत पर असर पड़ सकता है. अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता होगी. वहीं पारिवारिक जीवन में भी एक दूसरे से मतभेद से बचने की जरूरत होगी. 

आठवें भाव में मंगल गोचर का फल 

मंगल का गोचर कुछ मायनों में आठवें भाव पर जब होता है, तब स्थिति कुछ कठिन और चुनौतिपूर्ण रहती है. 

इस समय हर तरह के लेन-देन करते समय काफी सावधानी बरतने की जरूरत है. यह आठवां भाव जीवन में अनिश्चितता और अचानक अच्छे और बुरे बदलावों को दिखाता है. अष्टम भाव में ग्रह स्थिति थोड़ी चिंताजनक हो सकती है. इसका सबसे बड़ा असर सेहत पर कई तरह की परेशानियां ला सकता है. करियर की बात करें तो इस अवधि में कई उतार-चढ़ाव देने वाला होता है. इस वजह से कार्यक्षेत्र में संघर्ष और मेहनत करने की आवश्यकता होगी. अपनी मेहनत के अनुसार सफलता और संतुष्टि में कमी रह सकती है. व्यवसाय से जुड़े हैं तो इस गोचर काल में कुछ लाभ मिलने के योग भी बनते हैं.

नवम भाव में मंगल गोचर का फल 

मंगल के यहां होने पर नौकरी और कार्यक्षेत्र में पदोन्नति मिलने के योग बनते है. निजी जीवन इस गोचर के कारण जीवनसाथी के साथ कुछ अनबन का सामना करना पड़ सकता है, वहीं वरिष्ठों से साथ रिश्ते मिलेजुले से होंगे. कार्यस्थल पर कार्यभार और दबाव अधिक होने के कारण परिवार के लिए समय की कमी परेशान कर सकती है. अपने जीवनसाथी को पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे जिसे रिश्ते के बीच कुछ तनाव और गलतफहमी पैदा हो सकती है. यह समय आध्यात्मिक स्थिति को प्रभावित करने वाला होगा. यात्राओं के मौके बने हुए होंगे. 

दशम भाव मंगल गोचर का फल 

खासतौर पर प्रतियोगी परीक्षा या किसी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे जातकों के लिए मंगल देव सफलता मिलने के पूरे योग बनाते हैं. खेल के क्षेत्र से जुड़े विद्यार्थियों को अच्छा प्रदर्शन देने में भी मंगल देव सहायक होते हैं. शत्रु और विरोधी सक्रिय रहेंगे, लेकिन अपनी सूझबूझ और मेहनत के बूते उन पर विजय पाने में सफल रह सकते हैं. 

ग्यारहवें भाव मंगल गोचर का फल 

लाभ भाव में मंगल का गोचर अच्छे फलों को दर्शाने वाला होता है. इस समय पर इच्छाएं ओर परिश्रम दोनों मिलकर काम करते हैं. जीवन में कुछ प्राप्तियों का समय होगा. इस समय मान सम्मान को पाने का अथवा कुछ बेहतर लाभ पाने का बेहतर समय होगा. स्वास्थ्य को लेकर सुधार की संभावना भी है. रिश्तों में सहभागिता का समय दिखाई देगा. सामाजिक रुप से स्थिति पक्ष में रहने वाली होगी. 

बारहवें भाव मंगल गोचर का फल 

बारहवें भाव में मंगल का गोचर चिंता को दिखाने वाला होता है. इस समय लम्बी दूरी की यात्राएं अधिक रह सकती हैं. इस गोचर के दौरान शरीर में कुछ दर्द बना रहता है. पैरों, आंखों और पेट से संबंधी रोगों को लेकर सावधान रहना चाहिए. नींद संबंधी कुछ विकार भी बने रहते हैं. यह वह अवधि है  ख़र्चों को कम करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता होती है. 

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