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वैदिक ज्योतिष के क्षेत्र में, राहु और केतु बहुत ही विशेष छाया ग्रह हैं। सामान्य ग्रहों के विपरीत ये दोनों ही गणितीय बिंदु हैं जहां सूर्य और चंद्रमा के कटाव बिंदु बनते हैं इन्हें अक्सर उत्तरी नोड (राहु) और दक्षिणी नोड (केतु) कहा जाता है।
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भारतीय वैदिक ज्योतिष एक अत्यंत प्राचीन और गूढ़ विज्ञान है, जो ग्रहों की गति, नक्षत्रों और समय की गणना के माध्यम से मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करता है. इस ज्योतिषीय विज्ञान में "होरा" का विशेष स्थान है. "होरा" का शाब्दिक
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ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को न्यायाधीश की संज्ञा दी गई है. यह ग्रह व्यक्ति के कर्मों का फल देता है चाहे वह अच्छा हो या बुरा. जब शनि किसी राशि में प्रवेश करता है, तो वह वहां ढाई वर्ष तक रहता है. लेकिन जब वह किसी राशि के ठीक पहले उस राशि
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वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के गोचर का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. इनमें केतु एक छाया ग्रह है जो अदृश्य होते हुए भी गहन प्रभाव डालता है. जब केतु सिंह राशि में गोचर करता है, तो इसका प्रभाव जातकों के जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे मानसिकता,
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राहु ज्योतिष शास्त्र में एक छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है. यह कोई भौतिक ग्रह नहीं है, बल्कि चंद्रमा और सूर्य के बीच ग्रहण के समय उत्पन्न होने वाला एक बिंदु है. यद्यपि यह दृश्य नहीं है, फिर भी इसका प्रभाव अत्यंत गहन और महत्वपूर्ण माना
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केतु, जिसे अक्सर दक्षिणी राहु कहा जाता है, एक प्रमुख ग्रह है जो ज्योतिष शास्त्र में शनि के समान प्रभाव डालता है, लेकिन उसकी ऊर्जा और उसका प्रभाव कुछ भिन्न होते हैं. केतु का सम्बन्ध मोक्ष, अज्ञेयता, भ्रम और दिव्यज्ञान से होता है. जब केतु
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बृहस्पति को हिन्दू ज्योतिष में सबसे शुभ ग्रह माना जाता है। यह ग्रह ज्ञान, बुद्धि, धर्म, कानून, शिक्षा, और आचार्यत्व का प्रतीक है। बृहस्पति का संबंध समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने, शिक्षा में सफलता, और व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति से भी
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कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध है, जो बुद्धि, वाणी और तर्कशीलता का प्रतीक है। कन्या राशि के लोग प्रायः व्यवस्थित, बुद्धिमान और मेहनती होते हैं। जब किसी भी राशि पर शनि की साढ़ेसाती आती है, तो वह व्यक्ति के जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव और
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मंगल का पुष्य नक्षत्र में होना एक विशेष खगोलीय घटना है, जो ज्योतिषशास्त्र में अत्यधिक महत्व रखता है। पुष्य नक्षत्र को भारतीय ज्योतिष में एक शुभ नक्षत्र माना जाता है, और मंगल ग्रह के इस नक्षत्र में होने से इसका प्रभाव व्यक्ति की जीवनशैली और
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साढ़ेसाती भारतीय ज्योतिषशास्त्र का एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद विषय है. यह ग्रहों की स्थिति पर आधारित एक कालखंड होता है, जो किसी व्यक्ति के जीवन में विशेष प्रभाव डालता है. साढ़ेसाती का काल किसी भी व्यक्ति के जीवन में शनि ग्रह के विशेष
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कर्क राशि और शनि साढ़े साती कर्क राशि चंद्रमा द्वारा शासित एक जल तत्व की राशि है, और इस राशि के लोग आमतौर पर भावनात्मक, देखभाल करने वाले, सहानुभूति रखने वाले और परिवार के प्रति बहुत स्नेहशील होते हैं। लेकिन जब शनि की साढ़ेसाती कर्क राशि पर
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नव संवत्सर को सिद्धार्थ नामक संवत के नाम से जाना जाएगा. इस वर्ष संवत के राजा सूर्य होंगे और मंत्री सूर्य होंगे. वर्ष के राजा सूर्य होने से राष्ट्र में विरोधाभास की स्थिति बनी रहने वाली है. इस समय मौसम का प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिल
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केतु एक ग्रह के रूप में अपनी विशेषताओं और प्रभाव के लिए जाना जाता है। भारतीय ज्योतिष में केतु को छाया ग्रह कहा जाता है, जो सूर्य और चंद्रमा के साथ सम्बन्ध रखता है। यह ग्रह व्यक्ति के जीवन में रहस्यमय और अप्रत्याशित घटनाओं को जन्म दे सकता
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शनि ग्रह भारतीय ज्योतिष में सबसे महत्वपूर्ण ग्रहों में से एक है. शनि को न्याय का देवता कहा जाता है और यह हमारे कर्मों का फल देने वाला ग्रह माना जाता है. शनि का प्रभाव हमारे जीवन में बहुत गहरा और बहुत ज्यादा होता है, खासकर जब शनि अपनी
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बुध मीन राशि में अस्त हो रहा है और इसका प्रभाव सभी राशियों पर होगा. बुध के मीन राशि में अस्त होने से प्रत्येक राशि पर क्या असर पड़ेगा. बुध को विचारों, तर्क, व्यापार, शिक्षा, यात्रा, और नियमित गतिविधियों का कारक माना जाता है. जब यह ग्रह मीन
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वक्री बुध मीन राशि में बुध का मीन राशि में वक्री होना ज्ञान ओर बुद्धि के वक्रत्व को दर्शाता है। बुध ग्रह जब भी मीन राशि में वक्री होता है तो यह घटना ज्योतिष के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि बुध ग्रह को विचारों, तर्क, शिक्षा,
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वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य एक बहुत ही प्रभाशाली ग्रह है और दूसरी ओर कुंडली का आठवां भाव सभी प्रभाव को कम देने वाला भाव है. अब इस स्थिति में आठवें भव में जब सूर्य बैठ जाता है तो क्या संभावनाएं ला सकता है इस बारे में सही से समझने के लिए
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मेष राशि के लिए शनि साढे़साती प्रभाव शनि को राशि चक्र का एक चक्कर पूरा करने में लगभग तीस वर्ष लगते हैं. यह प्रत्येक राशि में लगभग ढ़ाई 2.5 वर्ष तक रहता है. शनि को एक ऐसा ग्रह माना जाता है जो अशुभ स्थिति में होने पर लोगों के लिए दुख और
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वैदिक ज्योतिष में, जन्म कुंडली में केतु की स्थिति महत्वपूर्ण अर्थ रखती है, खासकर जब यह बातहवें भाव में स्थित हो. बारहवां भाव, व्यय का स्थान होता है, यह अवचेतन, आध्यात्मिकता और छिपे हुए क्षेत्रों के साथ अपने संबंध के लिए जाना जाता है. अब