मिथुन लग्न का पहला नवांश | First Navamsa of Gemini Ascendant

जन्म कुण्डली में भाव और भावेश की स्थिति का विचार नवांश से भी किया जाता है. यह नवांश भाव के सूक्ष्म विश्लेषण का आधार होता है. इससे भाव व ग्रहों के बल का अनुमान लगाने में सहायता मिलती है. जीवन में मिलने वाली शुभता या अशुभता इससे बहुत प्रभावित होती है.

इन्हीं के द्वारा जीवन की स्थिति एवं संबंधों की आत्मिकता को अच्छी तरह से समझ पाते हैं. जन्म कुण्डली तथा नवांश कुण्डली में ग्रह स्थिति और विभिन्न योगों के आधार पर परिवर्तन देखे जा सकते हैं. इससे जातक के सामान्य विवरण का पता चल पाता है.

मिथुन लग्न के पहले नवांश का महत्व | Importance of First Navamsa of Gemini Ascendant

मिथुन लग्न का पहला नवांश तुला राशि का है, लग्न के नवांश का ग्रह स्वामी शुक्र है जिसके कारण धन की प्राप्ति, गुणों में वृद्धि, साहस और शक्ति मिलती है. पहले नवांश में यह शुभ स्थिति का परिचायक है. जातक में शुक्र और बुध दोनों के गुणों का संगम देखा जा सकता है वाणी में प्रभावित करने की क्षमता देखने को मिलती है.

जातका का कद लम्बा और चेहरा सुंदर होगा. चेहरे पर लालिमा लिए होगा, आंखें चमकदार होंगी हाथ लम्बे और कंधे चौडे होंगे और आत्मविश्वास का होना स्पष्ट ही दिखाई देता है. जातक का चेहरा तथा व्यक्तित्व अलग ही दिखाई देता है, मंहगी वस्तुओं पर व्यय करने में आगे रहते हैं. बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते हैं, आपके चरित्र में दृढ़ता बनी रहती है. दांपत्य जीवन को चलाने में यह जातक अपना पूर्ण सहयोग देने की कोशिश करते हैं.

मिथुन लग्न के पहले नवांश प्रभाव | Effects of First Navamsa of Gemini Ascendant

जातक का स्वभाव आकर्षण से युक्त होगा, स्नेही व कुछ उदार भाव भी रखेंगे. आकर्षक चिजों की ओर झुकाव व साज सज्जा का समान खरिदने की चाह रहेगी. धर्म व सत्यवादी आचरण इनमें रह सकता है. खेलकूद व घूमने फिरने के शौकिन होंगे. लोगों से मेलजोल बनाने वाले होते हैं, कार्यों के प्रति आप निष्ठावान रहते हैं और काम में मन लगाकर कार्य करते हैं.जिम्मेदारियों को निभाने की पूरी चाह रखते हैं. आप उदारवादी रवैया भी अपनाते हैं.

शत्रुओं पर नियंत्रण करना अच्छे से जानते हैं. बदला लेने की प्रवृत्ति भी रहती है और शत्रुओं से बदला लेने की भावना से पिछे नहीं हटते हैं. कार्यों में नैतिक व अनैतिक सभी पक्षों को अपना सकते हैं. किसी भी बात के बारे में बिना लाग लपेट के कह देना इनकी खूबी में शामिल होता है.

काम को लेकर जल्दबाजी रह सकती है, किसी विषय के बारे में जितना जल्दी विचार करते हैं उतना ही धीमें कार्य की प्रगति पर हो सकते हैं. कल्पनाओं की उडा़न अधिक रह सकती है. किसी भी विषय के बारे में समझ रखने की कोशिश कर सकते हैं. अच्छे वक्ता हो सकते हैं, आर्थिक स्थिति जीवन के मध्य भाग से बेहतर रहेगी. बौद्धिक क्षमता के द्वारा आप अपनी कार्ययोजनाओं को आगे तक ले जाने की चाह रखेंगे.

मिथुन लग्न के पहले नवांश का महत्व

जीवन की शुरूआत में काफी प्रगति करते हैं और अग्रसर बने रहते हैं. वाणी में मधुरता और कलात्मकता होने के कारण यह लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. धार्मिक कार्यों में रूचि रखने वाले होते हैं. सामंजस्य स्थापित करने में कुशलता से काम लेते हैं. सहयोगियों का प्रभाव अधिक रहता है, सोच प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती.

क्रय विक्रय में निपुणता से काम लेते हैं कुछ अच्छी स्तर की बौद्धिक रचनाओं की ओर झुकाव होता है. आर्थिक कामों को निपटाने में काफी निपुण रहते हैं. जातक में निडरता, सांमंजस्य का विचार और विचारों में स्थिरता की अभिव्यक्ति रहती है. शुक्र के प्रभाव से इस नवांश में आपकी मुखाकृति व नेत्र सुंदर होती है, आकर्षक देह प्राप्त होती है. वस्त्र एवं रत्न आभूषण के शौकिन रह सकते हैं. आर्थिक स्थिति को अच्छा बनाए रखने की चाह रहती है जिसके लिए परिश्रम करते हैं.

काम में जल्दबाजी भी कर सकते हैं जिस कारण कभी कभी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. दांपत्य जीवन में सामान्यत: आन्द का माहौल रहता है. जीवन की विपरित परिस्थितियों में भी साथी का पूर्ण साथ मिलता है और उसके साथ को आगे तक ले जाने की चाह भी रखते हैं. जीवन साथी नीतिवान और निपुण होता है और काम के प्रति तथा परिवार दोनों को समान महत्व देने वाला होता है. यदि कुछ कठिनाईयां उभरती भी हैं तो दोनो मिलकर उन पर नियंत्रण पा सकते हैं.

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कैसा होता है चंद्रमा महादशा में सूर्य अंतर्दशा फल आईये जानें

चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है. चंद्रमा की महादशा में जातक को इससे संबंधित फलों की प्राप्ति होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा की स्थिति हम यहां अवलोकन नहीं कर रहे अपितु उसकी महादश के फलों की बात करते हुए यह कह सकते हैं कि चंद्रमा की महादशा में जातक का व्यवहार शांत रहता है वह यदि कभी उग्र रहने वाला हो तो जातक इस दशा में शांत होने लगता है.

चंद्रमा शांत, सौम्य ग्रह है और सूर्य जोरदार व आक्रामक होता है, चंद्रमा के साथ सूर्य का संयोजन चंद्रमा के लिए शक्ति को प्रतिबिंबित करने वाला होता है. यह मिलन एक संतुलित गठन लाता है. एक साथ मिलकर यह मिल-जुले फल देने वाले होते हैं. ज्योतिष में चंद्र का प्रमुख स्थान है, इसी का प्रभाव हमारे मन पर भी होता है हमारा मन कृष्ण पक्ष के जैसे घटता है व शुक्ल पक्ष के जैसे बढ़ता है.

चंद्रमा में सूर्य की अंतर्दशा होने पर जातक को उच्च ज्ञान के साथ सामाजिक और व्यावसायिक लाभ मिलता है उच्च स्थिति और धन की आमद होती है. चंद्रमा महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा की यह अवधि जातक को दूसरों से सम्मानित कराती है साथ ही प्रेम की प्राप्ति भी कराने में सहायक होती है. व्यक्ति धार्मिक पथ में चलने वाला होता है. इसी के कारण ही समुद्र में ज्वारभाटा उत्पन्न होता है. चंद्रमा सूर्य से ही प्रकाश पाता है और सभी को प्रकाशित करता है.

इन्हें जल तत्व का देव कहा जाता है, इनको सर्वमय कहा गया है तथा यह सोलह कलाओं से युक्त हैं. शुभ चंद्र जातक को धनवान और दयालु बनाता है, सुख और शांति देता है. घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं. चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का आधिपत्य प्राप्त है. मानसिक रोगों का कारण भी चंद्र को माना गया है क्योंकि यह सबसे अधिक मन पर ही प्रभाव डालते हैं.

चंद्रमा में सूर्य दशा अवधि में कुछ शुभ घटनाओं, खुशी में वृद्धि होगी इसके अलावा जातक के जो भी कोई नुकसान हुए हों वह इस समय में दूर हो सकेंगे. व्यक्ति को सांप, चोरों, सरकार से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और विदेश यात्रा के दौरान मुसीबतों से भी सामना हो सकता हो.

अत: कुण्डली में उसकी स्थिति का आंकलन न करते हुए यदि हम उसके स्वभाविक रूप को समझने का प्रयास करें तो हमें पता चलता है कि यह शांत, कोमल ग्रह हैं. ग्रहों में रानी का स्थान पाता है, इन दोनों की दशाओं का योग होने पर प्रभाव अनुकूल अधिक रहते हैं और सामंजस्य की ओर भी इशारा करते हैं.

इन दोनों ग्रहों में सात्विकता का भाव देखा जाता है. इन दोनों दशाओं का काफी कुछ शुभ प्रभाव देने वाला बनता है. जातक को शत्रुओं की ओर से शांति व समझौते करने का मौका मिलता है, धन लाभ होता है, मन में शांति व सकुन का एहसास होता है, कुछ घर से संबंधी सुखों की ओर व्यक्ति को जाने का मार्ग मिलता है.

इसमें उसे आकस्मिक लाभ ,यश , कीर्ति एवं विदेश यात्राओं से लाभ प्राप्त मिलता है. धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है, माता की ओर से पिता की ओर से कुछ अच्छे संकेत मिलते हैं. प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता बढती है, उच्च अधिकारियों से सम्मान प्राप्त होता है तथा प्रशासनिक लोगों से मेल मिलाप करने के अवसर प्राप्त होते है.

पर यदि हम उसके कुछ अशुभ स्थानों में होने या कमजोर होने की बात करते हैं तो इन प्रभावों में कहीं न कहीं कमी भी देखी जाती है व्यक्ति को मन की चेतना में तेजी आने से जातक काफी चंचल व अपने में रहने वाला तथा अपने नेतृत्व को दर्शाने की चाह भी रख सकता है. इस कारण से कुछ कमियां भी सूर्य की अंतर्दशा भुक्ति में देखने को मिल सकती है इन सभी बातों का सामान्य रूप से अध्ययन करने के लिए काफी हद तक हमें कुण्डली में ग्रहों की स्थिति को भी समझना होता है जिससे हम पूर्ण निष्कर्ष को समझ सकें.

पुराणों के अनुसार सागर मंथन से जो रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था. इसलिए इनकी शांति के लिए शिव भगवान की पूजा अच्छी मानी जाती है जिससे इन्हें मजबूती प्राप्त होती है. चावल, सफेद वस्त्र, श्वेत पुष्प, चीनी, शंख, दही और मोती का दान करना भी अच्छा होता है.

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धनु लग्न | Sagittarius Ascendant | Characteristics of Sagittarius Sign

वैदिक ज्योतिष में बारह राशियों का वर्णन किया गया है. इन्हीं बारह राशियो में से ही कोई एक राशि व्यक्ति विशेष के लग्न में उदय होती है. जो राशि लग्न में उदय होती है उसी के अनुसार व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्धारित होता है. उसी लग्न के आधार पर शुभ व अशुभ ग्रहो का निर्धारण भी होता है. आज हम आपके सामने धनु लग्न के विषय में बताएंगें.

धनु राशि की विशेषताएँ | Characteristics of Sagittarius Sign

धनु राशि भचक्र की नवें स्थान पर आने वाली राशि है. भचक्र में इस राशि का विस्तार 240 अंश से 270 अंश तक फैला हुआ है. यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव मानी गई है. इस कारण व्यक्ति का स्वभाव कई बार डांवा डोल सा रहता है. इस राशि का तत्व अग्नि है और अग्नि के प्रभाव से व्यक्ति तेज तर्रार होता है.

धनु राशि के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं, जिन्हें अत्यधिक शुभ ग्रह माना गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक घोड़ा है जिसकी आकृति ऊपर से मानव जैसी है और उसके हाथ में तीर है अर्थात इस राशि का प्रतीक चिन्ह आधा मानव और आधा घोड़ा है.

धनु लग्न के व्यक्ति का व्यक्तित्व | Sagittarius Ascendant and Your Characteristics

धनु लग्न के जातकों की विशेषताओ को जानने का प्रयास करते हैं. धनु राशि कालपुरुष की कुंडली में नवम‌ भाव में आती है. जब कालपुरुष कुंडली का नवम भाव लग्न बनता है तब ऎसे व्यक्ति को भाग्यशाली समझा जाता है. इस राशि की गणना अग्नि तत्व राशि के रुप में होती है, इसलिए अग्नि तत्व लग्न होने से आपके भीतर अत्यधिक तीव्रता होगी. आपको क्रोध भी अधिक आने की संभावना बनती है.

आप अत्यधिक फुर्तीले और अपनी धुन के पक्के व्यक्ति होगें. एक बार जिस काम को करने का निर्णय ले लिया तब उसे आप पूरा करके ही दम लेगें. आपकी एक विशेषता यह होगी कि किसी भी निर्णय को लेने में आप जरा भी देर नहीं लगाएंगें.

धनु लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Sagittarius Ascendant

धनु लग्न होने से आपके लिए कौन से ग्रह शुभ हो सकते हैं आइए इसे जानने का प्रयास करें. इस लग्न के लिए बृहस्पति लग्नेश होकर शुभ हो जाते हैं. लग्न के स्वामी को सदा शुभ माना जाता है. इस लग्न के लिए मंगल त्रिकोणेश होकर शुभ हो जाते हैं. हालांकि मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक बारहवें भाव में पड़ती है, लेकिन तब भी यह शुभ होता है.

इस लग्न के लिए सूर्य नवमेश होकर अति शुभ होते हैं. नवम भाव कुंडली का सबसे बली त्रिकोण भाव होता है. इसी भाव से व्यक्ति के भाग्य का भी निर्धारण होता है. धनु लग्न के लिए शुभ ग्रहों की शुभता कुंडली में उनकी स्थिति तथा बल पर निर्भर करेगी. यदि शुभ ग्रह पीड़ित या निर्बल है तब शुभ फलों की प्राप्ति में कमी हो सकती है.

धनु लग्न के अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets of Sagittarius Ascendant

इस लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं, अब उनके बारे में बात करते हैं. धनु लग्न के लिए शनि अशुभ माना गया है. यह तीसरे व चतुर्थ भाव के स्वामी होते हैं. इस लग्न के लिए बुध सम होते हैं और इसे केन्द्राधिपति दोष भी होता है अर्थात बुध की दोनो राशियाँ केन्द्र स्थान में ही पड़ती है.

इस लग्न के लिए चंद्रमा अष्टमेश होकर अशुभ होते हैं हालांकि चंद्रमा को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता है लेकिन यह जहाँ और जिस ग्रह के साथ स्थित होगें उसे दूषित कर देगें. शुक्र इस लग्न में षष्ठेश व एकादशेश होकर अशुभ होते हैं.

धनु लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Sagittarius Ascendant

अंत में हम आपको शुभ रत्नो के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं. इस लग्न के लिए पुखराज धारण करना शुभ होता है. धनु लग्न के स्वामी ग्रह बृहस्पति होते हैं और पुखराज उनके लिए ही पहना जाता है.

मंगल के लिए मूंगा व सूर्य के लिए माणिक्य पहनना भी शुभ होता है. पुखराज महंगा रत्न है यदि आप इसे खरीदने में सक्षम नहीं हैं तब इसके स्थान पर इसका उपरत्न सुनहैला भी पहन सकते हैं.

एक बात का ध्यान यह रखें कि कुंडली में यदि बृहस्पति, मंगल अथवा सूर्य निर्बल हो तभी इनका रत्न पहनें. यदि बली अवस्था में स्थित हैं तब आपको इनका रत्न पहनने की आवश्यकता नहीं है. यदि जन्म कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब उस ग्रह से संबंधित मंत्रों का जाप रोज करें. अशुभ ग्रह की दशा में आप दान व व्रत भी कर सकते हैं.

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आईये जाने मकर लग्न और उसकी विशेषताएं

वैदिक ज्योतिष में बहुत सी बातो की जानकारी मिलती है. जब तक हम वैदिक ज्योतिष की सामान्य जानकारी नहीं रखेगें तब तक इसकी बारीकियों को नहीं समझ पाएंगे. किसी भी विद्या को समझने के लिए पहले उसकी मूलभूत बातों को समझना आवश्यक है. इन्ही मूल बातो को मद्देनजर रखते हुए आज हम लग्नों की अपनी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए मकर लग्न के बारे में बात करेगें. मकर लग्न का व्यक्तित्व पर प्रभाव, शुभ व अशुभ ग्रह आदि के बारे में बताया जाएगा.

मकर राशि की विशेषता | Characteristics of Capricorn Sign

मकर राशि भचक्र की दसवें स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार 270 अंश से 300 अंश तक फैला हुआ है. मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि महाराज है. मकर राशि में मंगल उच्च और गुरु नीच का होता है.

इस राशि को चर राशि की श्रेणी में रखा गया है. इस कारण इस राशि के लग्न में आने के प्रभाव से व्यक्ति कभी भी एक स्थान पर टिककर नही बैठता है. इस राशि की गणना पृथ्वी तत्व राशियों में की जाती है.

मकर लग्न की विशेषताएँ | Capricorn Ascendant and Your Characteristics

मकर लग्न होने आपकी कुछ विशेषताओं के बारे में बताने का प्रयास करते हैं. मकर लग्न के प्रभाव से आपकी आँखे बहुत सुंदर होती हैं. आपका मुख “मगर” के समान पतला, लंबा व सुंदर होता है.

इस लग्न के प्रभाव से आपकी स्मरण शक्ति अदभुत होती है. आप विवेकशील व दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं. अपनी विवेकशीलता के आधार पर ही निर्णय लेते हैं और जो एक बार निर्णय ले लिया तब उसी पर ही दृढ़ भी रहते हैं.

सामाजिक विषयो से आप पीछे हटते हैं लेकिन आप व्यवहारिक व्यक्ति होते हैं. आपको हवाई किले बनाना अच्छा नहीं लगता है. आप परिस्थितियों के अनुसार समझौता करने में प्रवीण होते हैं. यह आपका एक बहुत गुण होता है.

मकर लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Capricorn Ascendant

आइए आपको मकर लग्न के लिए शुभ रत्नो के बारे में बताएँ. आपका लग्न मकर होने से शनि लग्नेश होकर शुभ होता है और नीलम इसके लिए अनुकूल रत्न है. यदि आप नीलम खरीदने में असमर्थ हैं तब आप इसका उपरत्न धारण कर सकते हैं.

इस लग्न के लिए बुध पंचमेश होकर अनुकूल होता है और आप बुध के लिए पन्ना रत्न धारण कर सकते हैं. शुक्र इस लग्न के लिए योगकारक ग्रह होता है, इसलिए डायमंड शुभ रत्न होता है लेकिन आप इसका उपरत्न ओपल या जर्कन भी पहन सकते है.

कुंडली में अशुभ ग्रहों से संबंधित दशा चल रही हो तब ग्रह का मंत्र जाप नियमित रुप से करना चाहिए. इससे अशुभ फलों में कमी आती है. एक बात आपको यह ध्यान रखनी चाहिए कि जो शुभ ग्रह कुंडली में निर्बल अवस्था में स्थित हों उन्हीं का रत्न धारण करना चाहिए.

मकर लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Capricorn Ascendant

मकर लग्न होने से आपके लिए शुभ ग्रह कौन से होगें उसके बारे में बताते हैं. शनि ग्रह मकर राशि का स्वामी होता है इसलिए शनि लग्नेश होने से शुभ होता है. मकर लग्न के नवम भाव में कन्या राशि आती है इसलिए बुध त्रिकोण का स्वामी होने से शुभ होता है.

मकर लग्न के लिए शुक्र पंचम व दशम का स्वामी होकर शुभ होता है. पंचम त्रिकोण भाव तो दशम की गिनती केन्द्र स्थान में होती है. इन दोनो भावों का स्वामी होने से शुक्र इस लग्न के लिए योगकारी बन जाता है.

मकर लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Scorpio Ascendant

आइए अंत में हम मकर लग्न के लिए अशुभ ग्रहों की बात करते हैं. इस लग्न के लिए बृहस्पति अति अशुभ होते हैं. बृहस्पति बारहवें व तीसरे भाव के स्वामी हो जाते हैं और दोनो ही भावों को शुभ नही माना जाता है.

मंगल भी इस लग्न के लिए कुछ विशेष फल प्रदान करने वाले नहीं होते है. सूर्य इस कुंडली के लिए अष्टमेश होकर शुभ नहीं हैं हालांकि इन्हें अष्टमेश होने का दोष लगता नही है. चंद्रमा इस लग्न के लिए सप्तमेश होने से मारक हो जाते हैं जबकि इन्हें मारक का दोष लगता नहीं है. लेकिन यह जहाँ जाते हैं और जिन ग्रहों के साथ संबंध बनाते हैं, वहाँ मारकत्व का प्रभाव छोड़ देते हैं.

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ग्रह महादशा और अंतर्दशा इस तरह से देती है अपना फल

जन्म कुण्डली में महादशा के फल अथवा अन्तर्दशा के फल ग्रहों की कुंडली में स्थिति पर निर्भर करते हैं और महादशा में अन्तर्दशा के फल दोनो ग्रहों की एक-दूसरे से परस्पर स्थिति पर निर्भर करते हैं. आइए इसे कुछ बिंदुओ की सहायता से समझने का प्रयास करते हैं.

  • महादशानाथ यदि राहु/केतु अक्ष पर स्थित है तब यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.
  • जब द्वादशेश की युति द्वित्तीयेश के साथ होती है या दृष्टि होती है तब वह अपनी दशा/अन्तर्दशा में वह एक बली मारक बन सकता है.
  • जन्म कुंडली में केन्द्र के शुभ स्वामी ग्रह अपने मित्र की दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करते हैं.
  • सर्वाष्टकवर्ग में जिस ग्रह से 11वें भाव में अधिकतम बिंदु होते हैं या जो ग्रह स्वयं अधिक बिंदुओ के साथ कुंडली में स्थित होता है उस ग्रह की दशा/अन्तर्दशा शुभ फल प्रदान करती है.
  • यदि जन्म कुंडली में शुक्र तथा शनि दोनो ही बली अवस्था में स्थित हो तब यह दोनो अपनी दशा/अन्तर्दशा में व्यक्ति को असफलताएँ प्रदान कराते हैं. लेकिन यदि यह दोनो ग्रह एक-दूसरे से छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों या एक-दूसरे से त्रिक भावों में स्थित हो तब यह यह एक-दूसरे की दशा में शुभ फल प्रदान करते हैं.
  • यदि जन्म कुंडली का उच्च का ग्रह नवांश में नीच का हो जाता है तब वह शुभ व अच्छे फल देने में असफल रहता है. यदि जन्म कुंडली का नीच का ग्रह नवांश में उच्च का हो जाता है तब वह अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है.
  • राहु यदि त्रिक भाव में स्थित होकर केन्द्रेश अथवा त्रिकोणेश से युति करता है तब अपनी आरंभ की दशा में शुभ फल देता है लेकिन बाद की दशा में व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए अशुभ हो जाती है.
  • यदि जन्म कुंडली में शुक्र व बृहस्पति दोनो ही वृश्चिक राशि में स्थित हों या दोनो में से एक ग्रह वृश्चिक राशि में हो लेकिन एक-दूसरे की दृष्टि में हों तब शुक्र की दशा में शुभ परिणाम मिलते हैं.
  • यदि जन्म कुंडली में सूर्य तथा बुध की युति होती है तब बुध की दशा शुभता प्रदान करती है.
  • जन्म कुंडली में चंद्रमा तथा मंगल की युति होने पर या परस्पर दृष्टि संबंध बनने पर चंद्रमा की दशा अत्यधिक शुभ हो जाती है लेकिन मंगल की दशा सामान्य सी ही रहती है.
  • जन्म कुंडली में यदि शनि तथा बृहस्पति की युति अथवा दृष्टि संबंध बन रहा हो तब शनि की दशा तो शुभ हो जाएगी लेकिन बृहस्पति की दशा सामान्य लाभ देने वाली होगी.
  • इसी प्रकार यदि चंद्रमा व बृहस्पति युति कर रहे हो या दृष्टि संबंध बना रहे हों तब चंद्रमा की दशा शुभ हो जाएगी लेकिन बृहस्पति की दशा साधारण रह सकती है.
  • किसी भी भाव विशेष से आठवें भाव का स्वामी अपनी दशा में भाव का नाश करता है.
  • किसी भी भाव विशेष से 22वें द्रेष्काण का स्वामी ग्रह अपनी दशा में उस भाव के संबंध में अशुभ फल प्रदान करता है.
  • किसी भी भाव से छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में बैठे ग्रह यदि निर्बल अवस्था में हों तब अपनी दशा में अशुभ फल प्रदान करते हैं.
  • यदि महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ दूसरे, चौथे, पांचवें, नवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में हो तब शुभ फल मिलते हैं.
  • अन्तर्दशानाथ और महादशानाथ एक-दूसरे से समसप्तक हो तो इसे सामान्य स्थिति माना जाता है और यह हल्के परिणाम देती है.
  • यदि अन्तर्दशानाथ, महादशानाथ से तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होता है तब अशुभ फल मिलते हैं.
  • यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ नैसर्गिक मित्र होते हैं तथा शुभ भावों के स्वामी होते हैं तब अपनी दशा में अच्छे परिणाम देते हैं.
  • जन्म कुंडली में महादशानाथ की उच्च राशि में यदि अन्तर्दशानाथ स्थित होता है तब यह अपनी दशा में अनुकूल फल प्रदान करता है.
  • महादशानाथ से चौथे, पांचवें, नवम व दशम भाव के स्वामियों की दशा व्यक्ति को अनुकूल फल प्रदान करती है.
  • महादशानाथ और उसके नक्षत्रेश(महादशानाथ जिस नक्षत्र में स्थित है) की दशा/अन्तर्दशा में जीवन की मई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटती हैं.
  • जन्म कुंडली में जिस ग्रह की महादशा चल रही है उसकी गोचर में स्थिति फलों का निर्धारण करती है अथवा महादशानाथ से गोचर के अन्य ग्रहों की स्थिति दशा के प्रभावों में परिवर्तन लाती है.
  • दशानाथ यदि त्रिक भाव का स्वामी ना होकर शुभ भाव का स्वामी होता है और गोचर में जब वह अपनी उच्च, स्वराशि, मूलत्रिकोण राशि में आता है या जिस भाव में दशानाथ स्थित है उस भाव से तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें भाव में आता है तब शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
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    संतानहीनता के योग | Yogas for No Children

    संतान प्राप्ति के लिए वैदिक ज्योतिष में पंचम भाव का आंकलन किया जाता है. पंचम भाव जितना अधिक शुभ प्रभाव में रहेगा उतना ही संतान प्राप्ति जल्दी होती है. इसी प्रकार पंचमेश को भी देखा जाता है. पंचम भाव व पंचमेश पर शुभ ग्रह का प्रभाव होने पर शुभ होता है और अशुभ प्रभाव होने पर संतान प्राप्ति में विलंब होता है. इसके साथ ही वर्ग कुंडलियों का भी अध्ययन बहुत जरुरी है. नवांश कुंडली का पंचम भाव व पंचमेश भी देखा जाता है. सप्ताँश कुंडली का विश्लेषण संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है. सप्ताँश कुंडली का लग्न लग्नेश, पंचम भाव व पंचमेश और जन्म कुंडली के पंचम भाव व पंचमेश की सप्ताँश कुण्डली में स्थिति को देखेगें. संतान प्राप्ति के लिए बीज स्फूट व क्षेत्र स्फूट को भी देखा जाएगा.

    संतान प्राप्ति के लिए जितने बिन्दुओ को देखा जाता है उन सभी के बारे में ऊपर बता दिया गया है. अब हम एक उदाहरण कुंडली के माध्यम से एक-एक बिन्दु को आपके सामने विस्तार से बताने का प्रयास करेगें. जिन महिला की कुंडली आपके सामने प्रस्तुत की जाएगी उन्हें संतान प्राप्ति नही हुई. सभी तरह का ईलाज और भगवान की भक्ति के बाद भी वह नि:संतान रही. विवाह के काफी वर्ष बाद उन्होने एक लड़की को पैदा होते ही गोद भी लिया लेकिन जब वह बच्ची बड़ी होने लगी तब पता चला कि उसकी दोनो टांगे बेकार हैं वह कभी चल नहीं पाएगी और साथ ही उसका एक हाथ(दायां) भी बेकार है जो काम नहीं करता है. भाग्य का ही खेल है कि बच्चा गोद लेने पर भी वह दुखी रही या इसे पूर्व जन्म के कर्म कहेंगे कि वह संतान सुख से वंचित ही रही.

    जन्म कुंडली | Janam Kundali

    सबसे हम जन्म कुंडली पर नजर डालते हैं. महिला का जन्म अक्तूबर 1964 का है और 22वर्ष की उम्र में इनका विवाह एक कुलीन व संभ्रांत परिवार में संपन्न हुआ. आर्थिक रुप से किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. इनके पति भी एक कुशल बिजनेसमैन हैं. संयुक्त परिवार में रहती हैं. जन्म कुंडली का मिथुन लग्न है और चंद्रमा मकर राशि का आठवें भाव में स्थित है. मिथुन लग्न और मकर राशि है. बाकी के ग्रह इस प्रकार से हैं – राहु लग्न में, दूसरे भाव में नीच का मंगल, तीसरे भाव में शुक्र, बुध तथा सूर्य चतुर्थ भाव मे हैं. सप्तम भाव में केतु, आठवें में चंद्रमा, शनि वक्री अवस्था में नवम भाव मे और बृहस्पति वक्री अवस्था में द्वादश भाव में स्थित है.

    जन्म कुंडली का लग्न व लग्नेश कमजोर हैं. लग्न में राहु स्थित है और लग्नेश बुध अपनी स्वराशि में चतुर्थ भाव में स्थित है लेकिन सूर्य के साथ परम अस्त है. सूर्य 28 अंश व 03 मिनट के है और बुध 27 अंश व 19 मिनट के हैं. पंचम भाव में शुक्र की राशि तुला आती है और शुक्र तीसरे भाव में अपनी शत्रु राशि सिंह में स्थित हैं. सिंह राशि में शुक्र को शुभ नही माना गया है क्योकि यह परम शत्रु की राशि में स्थित हैं. पंचमेश शुक्र पर नैसर्गिक अशुभ ग्रह शनि की दृष्टि भी आ रही है जो भाग्येश होने के साथ इस कुंडली के अष्टमेश भी है. मंगल इस कुंडली के लिए अशुभ है और छठे भाव के स्वामी होकर दूसरे भाव में अपनी नीच राशि में स्थित हैं, यहाँ से मंगल अपनी चौथी दृष्टि से पंचम भाव को देख रहे हैं. पंचम भाव व भावेश पर शनि तथा मंगल दोनो का एक साथ प्रभाव पड़ रहा है.

    बृहस्पति को संतान प्राप्ति का नैसर्गिक कारक ग्रह माना जाता है. इन महिला की कुंडली में बृहस्पति बारहवें भाव में वक्री अवस्था में स्थित हैं. यदि शुभ ग्रह वक्री हो तब वह अपनी शुभता खो देते हैं. चंद्रमा भी इनकी कुंडली में अष्टम भाव में स्थित है और नीच के मंगल से दृष्ट है. चंद्रमा भी पीड़ित अवस्था में स्थित हो गया है. लग्न, लग्नेश, चंद्रमा तीनों के ही कमजोर होने से जातिका के भीतर वैसे ही कमी हो जाती है और रज का कारक मंगल भी नीच राशि में होने से परेशानी अधिक बढ़ गई हैं. पंचम से पंचम भाव का आंकल्न करें तो वह नवम भाव है और इस भाव में शनि अपनी राशि में तो स्थित है लेकिन वक्री अवस्था में होकर कमजोर हो गए हैं. इस कुंडली में एक समस्या यह भी है कि पंचमेश शुक्र अपने ही नक्षत्र में स्थित है और इसे अनुकूल स्थिति नहीं माना गया है. कोई भी ग्रह यदि अपने ही नक्षत्र में स्थित हो तो उस भाव से संबंधित संबंधी से परेशानी होती है.

    नवांश कुण्डली | Navamsha Kundali

    पंचम भाव व पंचमेश का आंकलन नवांश कुंडली में भी किया जाता है. नवांश कुंडली का लग्न भी मिथुन है, जब जन्म कुंडली और नवांश कुंडली का लग्न एक ही हो तब इसे वर्गोत्तम लग्न कहा जाता है. इस कुंडली में पंचम भाव में तुला राशि में राहु स्थित है और शुक्र अपने भाव से एक भाव पीछे अर्थात चौथे भाव में नीच के हो गये हैं. मंगल छठे भाव के स्वामी होकर फिर यहाँ आठवीं दृष्टि से शुक्र को देख रहे हैं. गुरु नीच राशि में अष्टम भाव में स्थित हैं और नवीं दृष्टि से शुक्र को देख रहे हैं. नवांश कुंडली में पंचम भाव, पंचमेश तथा कारक बृहस्पति तीनो ही अत्यधिक पीड़ित हैं. यहाँ बृहस्पति आठवें भाव में नीच के हैं और इस पर छठे भाव से शनि की दृष्टि भी आ रही है.

    सप्तांश कुंडली | Spartans Kundli

    संतान सुख के लिए सप्ताँश कुंडली का अध्ययन भी किया जाता है. सबसे पहले तो इसका लग्न और लग्नेश देखा जाता है. इन महिला जातक की सप्ताँश कुंडली में धनु लग्न आता है और लग्न में केतु स्थित होने से यह पीड़ित हो गया है. लग्नेश बृहस्पति होते हैं जो बारहवें भाव में शुक्र के स्थित है और शुक्र इस सप्ताँश कुंडली के लिए छठे भाव के स्वामी बन जाते हैं जो कि संतान प्राप्ति में फिर से बाधा दिखा रहे हैं. इस कुंडली के पंचम भाव में मेष राशि आती है और मेष राशि के स्वामी मंगल है जो सप्तम भाव में राहु के साथ स्थित हैं. सप्तांश कुंडली का लग्न राहु/केतु अक्ष पर, लग्नेश बृहस्पति षष्ठेश शुक्र के साथ बारहवें भाव में, पंचमेश मंगल राहु/केतु अक्ष पर, शनि की दृष्टि लग्न पर है. यहाँ भी हर तरह से पीड़ा नजर आती है.

    चंद्र कुंडली | Chandra Kundli

    चंद्रमा को लग्न बनाकर कुंडली को देखें तब मकर लग्न बनता है. पंचम भाव में वृष राशि आती है और पंचमेश शुक्र आठवें भाव में स्थित हैं. दूसरे भाव से शनि की दृष्टि पंचमेश शुक्र पर आ रही है. बृहस्पति तीसरे व बारहवें भाव के स्वामी होकर पंचम भाव में स्थित हैं, जो कि अशुभ है. यहाँ भी पंचम भाव पीड़ित अवस्था में है और कहीं से भी आशा की किरण नजर नहीं आती है.

    क्षेत्र स्फूट | Kshetra Sphuta

    महिला की कुंडली में संतान प्राप्ति के लिए क्षेत्र स्फूट को देखा जाता है. क्षेत्र स्फूट प्राप्त करने के लिए चंद्रमा, मंगल तथा बृहस्पति के भोगांश का जोड़ राशि तथा अंशो सहित किया जाता है. इन महिला की जन्म कुंडली में क्षेत्र स्फूट लग्न में मिथुन राशि में आता है. महिला की कुंडली में विषम राशि में क्षेत्र स्फूट को शुभ नहीं माना जाता है. यहाँ यह मिथुन राशि में है जो कि विषम राशि मानी जाती है और यह राहु/केतु अक्ष पर भी स्थित है. नवांश कुंडली में क्षेत्र स्फूट सम राशि वृश्चिक में बनता है लेकिन छठे भाव में और सप्तांश कुंडली में भी सम राशि कर्क में बन रहा है लेकिन कर्क राशि आठवें भाव में स्थित है, जिसे शुभ नहीं माना जाता है.

    निष्कर्ष | Conclusion

    जन्म कुंडली, नवांश कुंडली, सप्तांश कुंडली तथा चंद्र कुंडली सभी से पंचम भाव तथा पंचमेश से संबंधित बाधाएँ दिखाई दे रही है. इन सभी कुंडलियों में जितना अशुभ प्रभाव पड़ेगा उतनी अधिक संतान संबंधी परेशानी होगी.

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    जैमिनी कुण्डली से प्रेम संबंधों का आंकलन | Analysis of love relationships through Jaimini Astrology

    जैमिनी ज्योतिष द्वारा प्रेम संबंधों को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं जिन्हें समझकर हम कुण्डली को पढ़ने की समझ रख सकते हैं. प्रेम संबंधों को समझने के लिए लग्न और उसकी स्थिति को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है.

    लग्न और सप्तम भाव द्वारा प्रेम संबंधों और विवाह के विषय में विचार किया जाता है, इसी के साथ वह राशि जिसमें दारा कारक स्थित है और उससे सप्तम भाव की स्थिति, वह राशि जिसमें उपपद और उससे सप्तम भाव की स्थिति, सप्तमेश की पद राशि और उससे सातवां भाव,

    दारा कारक की नवांश राशि को जन्म कुण्डली में चिन्हित करके और उससे सप्तम भाव को भी चिन्हित कर लेना चाहिए. इसके साथ ही राहु केतु का अक्ष किन राशियों में है और उनकी किन भावों पर दृष्टि है इस बात को भी अच्छी तरह से समझ लें और लिख लें, साथ ही दारा कारक की जिन-जिन भावों पर दृष्टि हो उसे भी समझ लें और अलग से लिख लें. अगर किसी राशि दशा से दारकारक पंचम भाव में आ जाता है तो उसे भी लिखना आवश्यक होता है.

    दाराकारक से दूसरे एवं सातवें घर एवं उनके स्वामियों का भी निर्धारण विवाह के संदर्भ के लिए किया जाता है. दाराकारक गुरू लग्न से यदि छठे भाव में आ रहा हो तो जातक को विवाद एवं लडा़ई झगडों की स्थिति से रूबरू कराता है.

    यदि कारक शुक्र नीच का हो जाए तो भी यह संबंधों में तनाव की स्थिति देने में सहायक बनता है. प्रेम संबंधों में सशक्ता के लिए आवश्यक होता है कि ग्रहों की स्थिति अच्छी बनी रहती है और जातक को आने वाले समय में जैसी भी स्थिति का सामना करना पडे़गा वह उसके लिए कैसी रहेंगी.

    इस विषय में कहा गया है कि अगर दूसरे घर में कोई ग्रह शुभ होकर स्थित हो व उसकी प्रधानता हो अथवा गुरु और चन्द्रमा कारकांश से सातवें घर में स्थित हो तो साथी में आकर्षण का भाव निहीत होगा और वह आपके मन को भाने वाला होगा. इसी के साथ अगर दूसरे घर में कोई ग्रह अशुभ होकर स्थित हो तो एक से अधिक प्रेम संबंधों की ओर इशारा करता है. साथी से संतुष्टि का न मिल पाना या उसके प्रति लगाव में कमी का अनुभव रह सकता है.

    कारकांश से सातवें घर में बुध होने पर प्रेमी का योग्य एवं शिक्षित स्तर का होता है इसी के साथ चन्द्रमा यदि कारकांश से सातवें भाव में हो तो प्रेम संबंधों का दूर से होना निश्चित होता है. शनि का कारकांश से सातवें भाव में होना यह प्रेम का अधिक उम्र वाला होने की बात करता है उसके विचारों में भी एक ठहराव की स्थिति बनी रहेगी, विचारों में सहजता का भाव रह सकता है.

    प्रेम संबंधों में राहु भी अपनी स्थिति का बोध कराता है उसके होने से जातक की सोच में बदलाव और एक अलग रूप देखने को मिलता है. जैमिनी ज्योतिष में दशाओं को भी ध्यान में रखने आवश्यकता होती है किस दशा का प्रभाव कैसा रहेगा यह देखना जरूरी है यदि प्रेम संबंधों में धनु की दशा को देखा जाए तो यह कई प्रकार के बदलावों को लेकर आती है. जो रिश्तों में होने वाले परिवर्तन भी जरूर देती है.

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    कुण्डली में मारकेश का अध्ययन | Study of Markesh in Kundli

    जन्म कुण्डली द्वारा मारकेश का विचार करने के लिए कुण्डली के दूसरे भाव, सातवें भाव, बारहवें भाव, अष्टम भाव आदि को समझना आवश्यक होता है. जन्म कुण्डली के आठवें भाव से आयु का विचार किया जाता है. लघु पाराशरी के अनुसार से तीसरे स्थान को भी आयु स्थान कहा गया है क्योंकि यह आठवें से आठवा भाव है (अष्टम स्थान से जो अष्टम स्थान अर्थात लग्न से तृतीय स्थान आयु स्थान है) और सप्तम तथा द्वितीय स्थान को मृत्यु स्थान या मारक स्थान कहते हैं इसमें से दूसरा भाव प्रबल मारक कहलाता है. बारहवां भाव व्यय भाव कहा जाता है, व्यय का अर्थ है खर्च होना, हानि होना क्योंकि कोई भी रोग शरीर की शक्ति अथवा जीवन शक्ति को कमजोर करने वाला होता है,इसलिये बारहवें भाव से रोगों का विचार किया जाता है. इस कारण इसका विचार करना भी जरूरी होता है.

    मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए.

    यदि अष्टमेश, लग्नेश भी हो तो पाप ग्रह नहीं रहता. मंगल और शुक्र आठवें भाव के स्वामी होने पर भी पाप ग्रह नहीं होते, सप्तम स्थान मारक, केंद्र स्थान है। अत: गुरु या शुक्र आदि सप्तम स्थान के स्वामी हों तो वह प्रबल मारक हो जाते हैं। इनसे कम बुध और चंद्र सबसे कम मारक होता है. तीनों मारक स्थानों में द्वितीयेश के साथ वाला पाप ग्रह सप्तमेश के साथ वाले पाप ग्रह से अधिक मारक होता है. द्वादशेश और उसके साथ वाले पापग्रह षष्ठेश एवं एकादशेश भी कभी-कभी मारकेश हो जाते हैं. मारकेश के द्वितीय भाव सप्तम भाव की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हैं और इसके स्वामी से भी ज्यादा उसके साथ रहने वाले पाप ग्रहों का भी निर्णय विचार पूर्वक करना जरूरी होता है.

    विभिन्न लग्नों के भिन्न भिन्न मारकेश होते हैं यहां एक बात और समझने की है कि सूर्य व चंद्रमा को मारकेश का दोष नहीं लगता है. मेष लग्न के लिये शुक्र मारकेश होकर भी मारकेश का कार्य नहीं करता किंतु शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ घातक हो जाते हैं. वृष लगन के लिये गुरु , मिथुन लगन वाले जातकों के लिये मंगल और गुरु अशुभ है, कर्क लगन के लिये शुक्र, सिंह लगन के लिये शनि और बुध, कन्या लगन के लिये मंगल, तुला लगन के लिए मंगल, गुरु और सूर्य, वृश्चिक लगन के लिए बुध, धनु लग्न का मारक शनि, शुक्र, मकर लगन के लिये मंगल, कुंभ लगन के लिये गुरु, मंगल, मीन लगन के लिये मंगल, शनि मारकेश का काम करता है. छठे आठवें बारहवें भाव मे स्थित राहु केतु भी मारक ग्रह का काम करते है.

    यह आवश्यक नहीं की मारकेश ही मृत्यु का कारण बनेगा अपितु वह मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाला हो सकता है अन्यथ और इसके साथ स्थित ग्रह जातक की मृत्यु का कारण बन सकता है. मारकेश ग्रह के बलाबल का भी विचार कर लेना चाहिए. कभी-कभी मारकेश न होने पर भी अन्य ग्रहों की दशाएं भी मारक हो जाती हैं. इसी प्रकार से मारकेश के संदर्भ चंद्र लग्न से भी विचार करना आवश्यक होता है. यह विचार राशि अर्थात जहां चंद्रमा स्थित हो उस भाव को भी लग्न मानकर किया जाता है. उपर्युक्त मारक स्थानों के स्वामी अर्थात उन स्थानों में पड़े हुए क्रमांक वाली राशियों के अधिपति ग्रह मारकेश कहे जाते हैं.

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    कब मिलते हैं गोचर के शुभ-अशुभ फल जानें इसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

    जन्म कुंडली में किसी घटना के होने में दशाओं के साथ गोचर के ग्रहों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है. यदि जन्म कुंडली में दशा अनुकूल भावों की चल रही है लेकिन ग्रहों का गोचर अनुकूल नहीं है तब व्यक्ति को संबंधित भाव के फल नहीं मिल पाते हैं. इसलिए किसी भी घटना के लिए दशा के साथ गोच़र भी अनिवार्य माना गया है. यदि गोचर अनुकूल है लेकिन दशा अनुकूल नही है तब भी फलों की प्राप्ति नहीं हो पाती है. गोचर से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में आपको जानकारी देने का प्रयास इस लेख के माध्यम से किया जाएगा.

    • जब जन्म कालीन सूर्य के ऊपर से शनि का गोचर होता है तब उस भाव के कारकत्वों से संबंधित फलों में कठिनाई का अनुभव व्यक्ति विशेष को होता है.
    • जब जन्मकालीन सूर्य पर से बृहस्पति का गोचर होता है या उसकी दृश्टि पड़ रही होती है तब व्यक्ति को आजीविका में पदोन्नति मिलती है. वह अपनी आजीविका में वृद्धि भी पाता है और विकास की ओर बढ़ता है.
    • जन्मकालीन बुध पर से बृहस्पति का गोचर या दृष्टि व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार करती है.
    • कुंडली के दूसरे या ग्यारहवें भाव पर गुरु की दृष्टि अथवा गोचर व्यक्ति विशेष को आर्थिक रुप से संपन्न बनाता है.
    • जन्मकालीन शुक्र के ऊपर से बृहस्पति का गोचर अथवा दृष्टि प्रेम संबंध स्थापित कराती है.
    • जन्मकालीन शुक्र के ऊपर से बृहस्पति का गोचर व्यक्ति को विवाह देता है.
    • कुंडली में जिस भाव से संबंधित दशा या अन्तर्दशा चलती है उस भाव में बृहस्पति का गोचर या दृष्टि शुभ फल प्रदान करती है.
    • जन्मकालीन बृहस्पति पर से बृहस्पति का गोचर संतान का जन्म देता है.
    • जन्म कुंडली के सूर्य को यदि गोचर के शनि व बृहस्पति एक साथ प्रभावित करें तब व्यक्ति की पदोन्नति वेतन में वृद्धि के साथ होती है लेकिन साथ ही व्यक्ति को स्थानांतरण भी देती है.
    • चतुर्थ भाव पर यदि गोचर के शनि व बृहस्पति एक साथ प्रभाव डालें तब व्यक्ति का निवास स्थान बदल जाता है.
    • जन्म कुंडली के सप्तम भाव पर बृहस्पति व शनि का एक साथ प्रभाव पड़ने पर व्यक्ति का विवाह संपन्न होता है.
    • जन्म कुंडली के पंचम भाव/पंचमेश पर जब गोचर के शनि व बृहस्पति एक साथ प्रभाव डालते हैं तब व्यक्ति का विवाह तय होता है या विवाह हो जाता है या विवाह की ओर व्यक्ति का रुझान होता है.
    • कुंडली के छठे, आठवें व बारहवें भाव के अंशों को जोड़ने पर प्राप्त अंश पर या उससे त्रिकोण पर शनि का गोचर मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य कष्ट देता है.
    • जन्मकालीन अष्टमेश पर या उससे त्रिकोण भाव में चंद्रमा का गोचर अशुभ परिणाम देता है.
    • एक अशुभ स्थान में किसी ग्रह का गोचर किसी तरह की कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे यदि वह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होता है.
    • यदि व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में दशा/अन्तर्दशा अनुकूल हो लेकिन उस समय गोचर प्रतिकूल चल रहा हो तब दशा के अनुकूल फल सम हो जाते हैं. अनुकूल परिणामो का फल अनुभव नही किया जा सकता है.
    • गोचर के शुभ फल तभी प्राप्त होगें जब कुंडली में दशा/अन्तर्दशा व गोचर दोनो ही अनुकूल चल रहे हों.
    • जन्मकालीन शुक्र, बुध और सूर्य पर से राहु का गोचर व्यक्ति के जीवन को तरक्की की ओर ले जाता है.
    • जन्मकालीन मंगल के ऊपर से शनि का गोचर व्यक्ति के जीवन में एक विशिष्ट परिवर्तन लेकर आता है.
    • दशमेश पर से शनि का गोचर व्यवसाय संबंधी गंभीर समस्याएँ प्रदान करता है.
    • आठवें भाव में शनि का गोचर अत्यधिक चिन्ताएँ प्रदान करता है और इसी तरह से शनि की साढ़ेसाती भी व्यक्ति को मानसिक चिन्ताएँ व परेशानियाँ प्रदान करती हैं.
    • जन्मकालीन चंद्रमा या चंद्रमा से चतुर्थ या आठवें भाव पर से मंगल का गोचर व्यक्ति को रोग प्रदान करता है.
    • चंद्रमा से दशम भाव में शनि का गोचर व्यक्ति को यात्राएँ करवाता है और उसका स्थान परिवर्तन भी कराता है.
    • कुंडली में गोचर के वक्री ग्रहो की दृष्टि एक भाव पीछे से भी मानी जाती है. उदाहरण के लिए वक्री शनि का गोचर तुला राशि में हो रहा है तब शनि का प्रभाव कन्या राशि से माना जाएगा.
    • जन्म कुंडली में जब किसी एक भाव/भावेश पर से शनि व बृहस्पति का गोचर एक साथ असर डालता है तब उस भाव से संबंधित फलों की प्राप्ति होती है.
    • कुंडली में जिस ग्रह की दशा/अन्तर्दशा चल रही होती है यदि वह ग्रह गोचर में अपनी नीच राशि में गोचर करता है तब व्यक्ति को परेशानियाँ व बाधाएँ प्रदान करेगा.

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    तलाक – ज्योतिषीय कारण | Astrological Reasons for Divorce

    वर्तमान समय में जब स्त्री-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हों वहाँ अब तलाक शब्द ज्यादा सुनाई देने लगा है. इसका एक कारण सहनशीलता का अभाव भी है. इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में सभी मशीन बन गये हैं. काम की अधिकता ने सहनशक्ति में भी कमी कर दी है. लड़कियाँ अपने पैरों पर खड़े होने लगी है और उन्हें भी लगता है कि वह आजीविका में बराबर की हिस्सेदार है तो वह अपने साथी के सामने क्यूँ झुके! हालांकि यह एक तरह से अहंकार है और कुछ नहीं. बहुत बार पुरुष की मनमानी से तंग होकर घर में क्लेश बढ़ जाते हैं. बहुत से कारण बन जाते हैं तलाक के, जिन्हें अलग रहना हो वह कोई ना कोई बहाना ढूंढ ही लेते हैं.

    तलाक के कारणों का आज हम ज्योतिषीय आधार पर विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं. कुंडली में ऎसे कौन से योग हैं जिनके आधार व्यक्ति का तलाक हो जाता है या किन्हीं कारणो से पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहना आरंभ कर देते हैं.

    • जन्म कुंडली में लग्नेश व चंद्रमा से सप्तम भाव के स्वामी ग्रह शुक्र ग्रह की स्थिति से प्रतिकूल स्थिति में स्थित हों.
    • कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो या छठे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तब यह अदालती तलाक दर्शाता है अर्थात पति-पत्नी का तलाक कोर्ट केस के माध्यम से होगा.
    • बारहवें भाव के स्वामी की चतुर्थ भाव के स्वामी से युति हो रही हो और चतुर्थेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब पति-पत्नी का अलगाव हो जाता है.
    • अलगाव देने वाले ग्रह शनि, सूर्य तथा राहु का सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र पर प्रभाव पड़ रहा हो या सातवें व आठवें भावों पर एक साथ प्रभाव पड़ रहा हो.
    • जन्म कुंडली में सप्तमेश की युति द्वादशेश के साथ सातवें भाव या बारहवें भाव में हो रही हो.
    • सप्तमेश व द्वादशेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो और इनमें से किसी की भी राहु के साथ हो रही हो.
    • सप्तमेश व द्वादशेश जन्म कुंडली के दशम भाव में राहु/केतु के साथ स्थित हों.
    • जन्म लग्न में मंगल या शनि की राशि हो और उसमें शुक्र लग्न में ही स्थित हो, सातवें भाव में सूर्य, शनि या राहु स्थित हो तब भी अलगाव की संभावना बनती है.
    • जन्म कुंडली में शनि या शुक्र के साथ राहु लग्न में स्थित हो. जन्म कुंडली में सूर्य, राहु, शनि व द्वादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो.
    • जन्म कुंडली में शुक्र आर्द्रा, मूल, कृत्तिका या ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित हो तब भी दांपत्य जीवन में अलगाव के योग बनते हैं.
    • कुंडली के लग्न या सातवें भाव में राहु व शनि स्थित हो और चतुर्थ भाव अत्यधिक पीड़ित हो या अशुभ प्रभाव में हो तब तब भी अलग होने के योग बनते हैं.
    • शुक्र से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पापी ग्रह स्थित हों और कुंडली का चतुर्थ भाव पीड़ित अवस्था में हो.
    • षष्ठेश एक अलगाववादी ग्रह हो और वह दूसरे, चतुर्थ, सप्तम व बारहवें भाव में स्थित हो तब भी अलगाव होने की संभावना बनती है.
    • जन्म कुंडली में लग्नेश व सप्तमेश षडाष्टक अथवा द्विद्वार्दश स्थितियों में हों तब पति-पत्नी के अलग होने की संभावना बनती है.


    लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे | Longest Running Lawsuit

    कई बार पति-पत्नी की आपसी रजामंदी से तलाक जल्दी हो जाता है तो कई बार दोनो अपनी ही किसी जिद को लेकर अड़ जाते हैं और कोर्ट में वर्षो तक मुकदमा चलता ही रहता है. आइए लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों के बारे में जानें.

    • यदि जन्म कुंडली में षष्ठेश वक्री अवस्था में स्थित है तब तलाक के लिए मुकदमा बहुत लम्बे समय तक चलता है.
    • यदि जन्म कुंडली में अष्टमेश की छठे भाव पर दृष्टि हो तब मुकदमा बहुत लम्बे समय तक चलता है.
    • यदि वक्री ग्रह की आठवें भाव पर दृष्टि हो, विशेषकर शुक्र की तब भी कोर्ट केस बहुत लंबे समय तक चलते हैं.


    वैवाहिक सुख में वक्री व अस्त शुक्र तथा मंगल का परिणाम | Results of Retrograde Venus and Mars

    सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पुरुषो की कुंडली में शुक्र को देखा जाता है और स्त्रियों की कुंडली में मंगल को. यदि दोनो ग्रह शुभ अवस्था में नहीं है तब वैवाहिक जीवन में सुख का अभाव देखा जा सकता है. आइए शुक्र व मंगल से संबंधित कुछ बातों पर विचार करते हैं.

    • पुरुष की जन्म कुंडली में वक्री शुक्र हो तब व्यक्ति यौनाचार को लेकर पूर्ण रुप से विरक्त होगा या अति कामी होगा. यही स्थिति स्त्रियों की कुंडली में मंगल को लेकर भी है. यदि स्त्री जातक की कुंडली में मंगल वक्री अवस्था में स्थित है तब वह स्त्री पूर्ण रुप से कामी होगी या बिलकुल विरक्त होगी.
    • स्त्री हो या पुरुष हो, यदि जन्म कुंडली में नीच या वक्री मंगल पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तब वैवाहिक जीवन में बहुत सी समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ता है.
    • यदि स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल अस्त हो तब वह नपुंसक बनाता है या फिर यौन इच्छा की कमी को दर्शाता है. यही स्थिति पुरुष की कुंडली में शुक्र को लेकर होती है.


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