कन्या लग्न में जन्मे जातक की विशेषताएं और फलकथन

आज हम आपको कन्या लग्न के बारे में सामान्य जानकारी देने का प्रयास किया जाएगा. आने वाले समय में इसकी आपको विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी. कन्या लग्न के व्यक्ति की विशेषताएँ, उसके लिए शुभ्-अशुभ ग्रह आदि का वर्णन किया जाएगा. इस लग्न के लिए शुभ रत्न कौन से हो सकते हैं इसकी जानकारी भी आपको दी जाएगी.

कन्या राशि का परिचय | An Introduction to Virgo Sign

कन्या राशि भचक्र में छठे स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार 150 अंशो से 180 अंशो तक माना गया है. इस राशि का स्वामी बुध होता है और इसे सभी ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्रदान की गई है. इसलिए इसके प्रभाव वाला व्यक्ति भी स्वयं को राजकुमार से कम नहीं समझता है.

यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव राशि के अन्तर्गत आती है. इस राशि का तत्व पृथ्वी है और पृथ्वी तत्व होने से इसमें सहनशक्ति भी होती है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक लड़की है जो नाव में सवार है और उसके एक हाथ में गेहूँ की बालियाँ व दूसरे में लालटेन है जो मानव सभ्यता का विकास दिखाती है. लालटेन को प्रकाश का प्रतीक माना गया है. नाव में सवार यह निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है.

कन्या राशि का व्यक्तित्व | Characteristics of Virgo Sign

आइए एक नजर कन्या राशि की विशेषताओं पर भी डालते हैं. कालपुरुष की कुंडली में यह राशि छठे भाव में पड़ती है और छठा भाव रोग, ऋण व शत्रुओ का माना जाता है. इसी भाव से प्रतियोगिताएँ व प्रतिस्पर्धाएँ भी देखी जाती हैं.

जब यह राशि लग्न में उदय होती है तब व्यक्ति को जीवन में बहुत सी प्रतिस्पर्धाओ का सामना करना पड़ता है. इसलिए यदि आपका कन्या लग्न होने पर आपको जीवन में बिना प्रतिस्पर्धा के शायद ही कुछ मिले. जीवन में एक बार थोड़ा संघर्ष करना ही पड़ता है.

कन्या राशि के प्रभाव से आपके भीतर संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है क्योकि यह राशि पृथ्वी तत्व राशि मानी गई है इसलिए यह परिस्थिति से पार निकलने में सक्षम होती है. बुध को बौद्धिक क्षमता का कारक माना गया है इसलिए बुध के प्रभाव से आप बुद्धिमान व व्यवहार कुशल व्यक्ति होते हैं.

आप तर्क-वितर्क में भी कुशल होते हैं और हाजिर जवाब भी होते हैं. आपके इसी गुण के कारण सभी लोग आपसे प्रभावित रहते हैं. आप स्वभाव से संकोची व शर्मीले होते हैं और आप आसानी से लोगो से मिलते-जुलते नहीं हैं, थोड़े झिझकने वाले व्यक्ति होते हैं. आप जीवन में कम्यूनिकेशन व पढ़ने-लिखने वाले कामों में सफलता ज्यादा पा सकते हैं.

कन्या लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Virgo Ascendant

कन्या लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करते हैं. कन्या लग्न का स्वामी बुध लग्नेश होने से शुभ हो जाता है. शुक्र भाग्य भाव का स्वामी होने से शुभ होता है. भाग्य भाव कुंडली का नवम भाव है जो कि सबसे अधिक बली त्रिकोण माना गया है.

शनि कुंडली के पंचम व छठे भाव दोनो का स्वामी होता है. पंचम का स्वामी होने से शनि शुभ ही होता है लेकिन छठे भाव के गुण भी दिखा सकता है यदि कुंडली में इसकी स्थिति सही नही है तो.

सभी शुभ माने जाने वाले ग्रहों की शुभता कुंडली में इनकी स्थिति पर निर्भर करती है. यदि यह कुंडली में निर्बल हैं तब इनकी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फलों में कमी हो सकती है.

कन्या लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Virgo Ascendant

शुभ ग्रहो के बाद अब कन्या लग्न के लिए अशुभ ग्रहो की भी बात करते हैं. इस लग्न के लिए बृहस्पति बाधकेश का काम करता है. कन्या लग्न द्वि-स्वभाव राशि होती है और द्वि-स्वभाव राशि के लिए सप्तमेश बाधक ग्रह माना गया है.

बृहस्पति की दोनो राशियाँ केन्द्रों में पड़ती है इसलिए बृहस्पति को केन्द्राधिपति होने का दोष भी लगता है. सूर्य इस लग्न के लिए बारहवें भाव का स्वामी होने से शुभ नही होता हैं. चंद्रमा भले ही इस लग्न के लिए एकादश भाव के स्वामी होकर लाभ देने वाले हैं लेकिन त्रिषडाय के स्वामी होने से अशुभ बन जाते है.

मंगल इस लग्न के लिए अत्यंत अशुभ है क्योकि दो अशुभ भावों के स्वामी होते हैं. कन्या लग्न में मंगल तीसरे व अष्टम भाव के स्वामी होते है और दोनो ही भाव शुभ नही माने जाते हैं.

कन्या लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Virgo Ascendant

अंत में आपको शुभ रत्नो की जानकारी दी जाती है. इस लग्न के लिए पन्ना, डायमंड व नीलम शुभ रत्न माने गए हैं. पन्ना बुध के लिए, डायमंड शुक्र के लिए व नीलम शनि के लिए पहना जाता है.

आप यदि महंगे रत्न नहीं खरीद सकते तब इनके उपरत्न भी पहन सकते हैं. पन्ना के लिए हरा टोपाज, डायमंड के लिए जर्कन या ओपल व नीलम के लिए नीली या लाजवर्त भी पहने जा सकते हैं. जिस ग्रह की दशा कुंडली में चल रही हो उससे संबंधित मंत्र का जाप नियमित रुप से करना चाहिए. इससे अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलो की बढ़ोतरी होती है.

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कुण्डली में बनने वाला वज्रमुष्टि योग | Vajra Mushti Yoga in Kundli

वज्रमुष्टि योग के विषय में कई ज्योतिषी ग्रंथों में लिखा गया है, इस योग के बारे में कई प्रकार के फलों को भी बताया गया है जिसमें से प्रमुख तो यह है कि स्वास्थ्य में कमी का सामना करना पड़ता है और जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है. इस योग को वृश्चिक लग्न और कर्क लग्न में अधिक प्रभावी माना गया है.

चक्रस्य पूर्वभागे पापा: सौम्यास्तथेतरे चैव ।

वृश्चिकलग्ने जाता गतायुषो वज्रमुष्टियोगेस्मिन।।

इस तथ्य के अनुरूप जन्म कुण्डली में पूर्वार्ध के भावों अर्थात 1, 2, 3, 4, 10, 11, 12 भावों में सभी पाप ग्रह स्थित हों और शेष बचे हुए भावों में समस्त शुभ ग्रह स्थित हों तो वृश्चिक लग्न में जन्म होने पर यह वज्रमुष्टि नामक योग बनता है. यह योग जातक के स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब माना जाता है.

इसी संदर्भ में बादरायण ने भी कहा है जिसमें उन्होंने कर्क लग्न को प्रमुख मानते हुए यह योग के प्रभावों को परिलक्षित किया है. वहीं एक अन्य ज्योतिषाचार्य के अनुसार लग्न में कमजोर चंद्रमा स्थित हो और पाप ग्रह केन्द्र स्थानों व अष्टम भाव में बैठे हों तो जीवन के प्रति संशय बना रहता है.

पाप ग्रह राशि के अन्तिम नवांश में हों तथा संध्या समय का जन्म हो, चंद्रमा की होरा में जन्म हुआ हो और चंद्रमा व पाप ग्रह चारों केन्द्रों में हों तो मृत्यु तुल्य कष्ट का भय बना रहता है.

वज्रमुष्टि योग के अन्य स्वरूप | Other Forms of Vajra Mushti Yoga

बृहज्जातक होरा शास्त्र में यह दो योग कहे गए हैं जिनमें से एक है कि राशि अन्त में पाप ग्रह हो व चंद्रमा की होरा में संध्या समय में जन्म हुआ हो और दूसरे में चंद्रमा व पाप ग्रह चारों केन्द्रों में किसी भी प्रकार से स्थित हों तो यह स्थिति सेहत के लिए हानिकारक होती है तथा मृत्यु का भय रह सकता है.

एक अन्य मत में कहा गया है कि यदि दो पाप ग्रहों के मध्य में चंद्रमा चौथे, छठे या सातवें भाव में बैठा हो तो किसी भी प्रकार से जातक की रक्षा करना असंभव हो जाता है. कोई भी शक्ति जीवन देने में सहायक नहीं हो पाती है.

जन्म कुण्डली में चंद्रमा पाप ग्रहों के मध्य में 1, 7 या 8वें भाव में स्थित हो और कमजोर शुभ ग्रह उस पर दृष्टि डाल रहे हों और सातवें व आठवें भावों में पाप ग्रह स्थोत हों और उन पर पाप दृष्टि हो तो पहले योग में जातक की मृत्यु व दुसरे योग में माता और संतान दोनों को कष्ट झेलना पड़ता है. यहां शुभ दृष्टि के कारण कुछ राहत मिलती है जो योग को बुरे प्रभाव देने से रोक देती है.

वज्रमुष्टि योग का प्रभाव | Effects of Vajra Mushti Yoga

ग्रहण का दिन चंद्रमा पाप युक्त होकर लग्न में स्थित हो और मंगल आठवें में हो तो सेहत में कमी बनी रहती है माता को भी कष्ट होता है ओर संतान को भी कष्ट झेलना पड़ता है . इन सभी के प्रभाव से एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि यह स्थिति किसी भी तरह से जातक के लिए अनुकूल नहीं मानी जा सकती कुछ न कुछ परेशानियां तो उत्पन्न होती ही रहती हैं और कष्ट से पिडा़ अधिक बढ़ जाती है.

मृत्यु तुल्य कष्ट से बचाव नहीं हो पाता है और यदि दशा और गोचर का साथ मिल जाए तो यह स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है और किसी न किसी दुर्घटना का अंदेशा बना ही रहता है. जातक की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और हल्की से बिमारी भी खतरनाक रूप धारण कर सकती हैं.

वज्रमुष्टि योग से बचाव के उपाय

  • इस योग का प्रभाव कुण्डली पर बनने पर इसके बुरे प्रभावों से बचने के लिए नियमित रुप से गायत्रि मंत्र का जाप करना बहुत असरदायक होता है.
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भी इस योग के दुष्प्रभाव कम होते हैं.
  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट समाप्त होते हैं.
  • पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्रमा का पूजन करें ओर खीर का भोग लगाएं.
  • माता का सम्मान करें और उनसे आशिर्वाद प्राप्त करें.
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    मिथुन लग्न का 5वां नवांश और उसका प्रभाव

    मिथुन लग्न का पांचवां नवांश कुम्भ राशि का होता है. इस नवांश के स्वामी ग्रह शनि हैं जिनके अनुरूप इस नवांश पर शनि का प्रभाव भी परिलक्षित होता है. पांचवें नवांश में जन्म होने के कारण जातक का चेहरा बडा़ और आभा से युक्त होगा गोल चेहरा हो सकता है. रंग साफ और आकर्षक होता है. बाल रूखे, सख्त व मध्यम आकार के हो सकते हैं.

    इनका स्वभाव सामान्यत: क्रोधी हो सकता है किंतु ज्यादा देर तक क्रोध में नहीं रहते और जल्द शांत भी हो जाते हैं. कुम्भ नवांश से प्रभावित होने के कारण जातक दूसरों की बातों में जल्द ही आ जाते हैं इस कारण जीवन की शांति भंग भी होती है और विचारों में द्वंद बना रहता.

    इनमें साहस और पराक्रम भरपूर होता है. अपनी मेहनत से कठिन से कठिन कार्य को भी पूरा करने की कोशिश करते हैं. कुछ स्थितियों में कारोबार एवं व्यापार में कठिनाईयों का सामना करना होता है क्योंकि कभी कभी साझेदारी में इन्हें लाभ मिलने की संभावना कम रहती है. समाज में सम्मानित और प्रतिष्ठित होते हैं. भूमि, भवन एव वाहन का सुख प्राप्त होता है.

    कुम्भ नवांश से प्रभावित होने पर यह कम बोलने वाले हो सकते हैं लेकिन जब बातें करना शुरू कर देते हैं तो रूकते नहीं हैं. इनके विचारों को समझना मुश्किल नहीं होता इनके मन में आने वाले विचारों का प्रवाह कल्पनाओं को छुते हुए आगे बढ़ता जता है. अपने में स्थिर होते हुए भी जीवन में कुछ न कुछ नया करने की चाह इनमें हो सकती है.

    समाज में इन्हें सम्मान और उच्च पद की प्राप्ति भी होती है. धन संपत्ति का संग्रह करने में सफल रहते हैं, जीवन में धन को लेकर अधिक परेशानी नहीं झेलनी पड़ती है. परिवार के भरण पोषण में अपनी भूमिका का निर्वाह अच्छे से करते हैं और उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं.

    जीवन के उत्तरार्ध में जातक को आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है. प्रभावशाली वक्ता होते हैं, जीवन में आगे बढ़ने के कई अवसर मिलते हैं लेकिन उनका लाभ उठा पाने में देरी हो सकती है. बुध द्वारा यह अपनी अधिकांश योजनाओं को पूरा कर लेते हैं तथा इनमें व्यवहार कुशलता भी देखने को मिलती है. धर्म परायणता होती है किंतु अधिक उससे प्रभावित नहीं रहते और धार्मिक कृत्यों को सामान्य रूप से पूरा करते हैं.

    मिथुन लग्न नवांश महत्ता | Importance of Fifth Navamsha of Gemini Ascendant

    जीवन में परेशानियों का सामना करना होता है. मन चंचल और अशांत रहता है. पारिवारिक जीवन में आपसी कलह और विवाद की संभावना रहती है. जीवनसाथी सुन्दर और महत्वाकांक्षी होता है, गुणी और व्यवहारिक होता है. मित्रों एवं साझेदारो से सहयोग व लाभ मिलता है. व्यापार एवं कारोबार में जल्दी कामयाबी मिलती है. आर्थिक स्थिति सामान्य रहती है.

    मानसिक परेशानी और कष्ट की अनुभूति होती है. व्यक्ति बुद्धिमान व ज्ञानी होता है. इनमें आत्मबल और आत्मविश्वास होता है. मन अस्थिर और चंचल होता है. गायन और संगीत में अभिरूचि रहती है. वाणी प्रभावशाली होती है. धन संचय की कला में निपुण होते हैं सगे सम्बन्धियों से लाभ प्राप्त होता है.

    संतान एवं जीवनसाथी से सुख प्राप्त होता है. इनका जीवन साथी घरेलु कामों को करने में दक्ष होगा सामान्यत: वह स्वाभिमानी तथा उदार हृदय का होगा और आपके साथ सहयोगी भी रहेगा. परंतु उसके स्वभाव में भी आक्रामकता का गुण हो सकता है इसलिए दोनों को शांत भाव से काम लेना चाहिए. जीवन साथी बुद्धिमान और गुणी होता है. अध्यात्म में इनकी अभिरूचि होती है. पूजा पाठ एवं धार्मिक कार्यो मे इनकी अभिरूचि होती है.

    अपने व्यक्तित्व एवं आत्मबल के कारण समाज में यश और प्रतिष्ठित होता है. शिक्षा के क्षेत्र में इन्हें सफलता मिलती है. वाणी से लोगों को प्रभावित करने की क्षमता होती है गुप्त विषयों एवं विद्याओं में इनकी रूचि होती है. आत्मविश्वास की कमी के कारण निर्णय लेने में कठिनाई महसूस करते हैं. इनके कई प्रेम प्रसंग होते हैं. भोग विलास में इनका मन रमता है.

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    तुला लग्न | Libra Ascendant | Characteristics of Libra Sign

    वैदिक ज्योतिष में व्यक्ति विशेष के लग्न पर काफी जोर दिया गया है. जन्म कुंडली में लग्न के आधार पर ही फलकथन किया जाता है. लग्न यदि बली है तब व्यक्ति बहुत सी परेशानियों को झेलने में कामयाब रहता है और यदि लग्न कमजोर है तब व्यक्ति में बहुत सी बातों की कमी दिखाई देती है. लग्न ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करता है.

    आज हम तुला लग्न के बारे में चर्चा करेगें. इस लग्न के लिए कोन से ग्रह शुभ व अशुभ होते हैं आदि बातों की जानकारी आपको उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा.

    तुला राशि की विशेषताएँ | Characteristics of Libra Sign

    तुला राशि भचक्र की सातवें स्थान पर आने वाली राशि है. भचक्र में इस राशि का विस्तार 180 अंश से 210 अंश तक फैला हुआ है. इस राशि का तत्व वायु है इसलिए इस राशि के व्यक्तियों की विचारशक्ति अच्छी होती है.

    इस राशि की गणना चर राशि में होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति कुछ ना कुछ करने में व्यस्त रहता है. इस राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है जिसकी गणना नैसर्गिक शुभ ग्रहों में होती है और यह एक सौम्य ग्रह होता है. तुला राशि का चिन्ह एक तराजू है जो जीवन में संतुलन को दर्शाता है.

    तुला लग्न के गुण | Qualities of Libra Ascendant

    तुला लग्न का आपके व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव होता है आइए उसके बारे में जानें. इस लग्न के प्रभावस्वरुप आप संतुलित व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं और आप न्यायप्रिय व्यक्ति भी होते हैं.

    शुक्र को सुंदरत का कारक ग्रह माना जाता है इसलिए शुक्र के प्रभाव से आप सौन्दर्य प्रिय व्यक्ति होते हैं. सुंदर चीजों को एकत्रित करना आपका शौक हो सकता है. आपको नित नई फैशनेबल वस्त्र पहनना पसंद हो सकता है.

    शुक्र को भोग का कारक भी माना जाता है. आपको विलासिता की वस्तुएँ खरीदना व उनके उपभोग करने में रुचि होगी. वायु प्रधान होने से आपकी विचारशक्ति बहुत अच्छी होती है और नित नई योजनाएँ बनाते हैं. तुला राशि को बनिक राशि भी कहा गया है इसलिए यदि तुला राशि आपके लग्न में उदय होने से आप बहुत अच्छे व्यवसायी होते हैं. आप बिजनेस चलाने के लिए नई – नई योजनाओं को बना सकते हैं.

    आपको गीत,संगीत, नृत्य व अन्य कलाओ में रुचि हो सकती है क्योकि शुक्र को कला का भी कारक माना गया है. तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं और बृहस्पति के साथ उन्हें भी गुरु का व मंत्री का दर्जा दिया गया है. इसलिए आप सत्यवादी व अनुशासनप्रिय व्यक्ति होते हैं.

    तुला लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Libra Ascendant

    तुला लग्न के शुभ ग्रहों की चर्चा करते हैं. इस लग्न का स्वामी शुक्र होता है इसलिए शुक्र लग्नेश होकर इस लग्न लिए शुभ होता है. इस लग्न के लिए शनि केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी होकर अति शुभ होते हैं और इस लग्न के जातको के लिए योगकारी ग्रह बन जाते हैं.

    बुध इस लग्न के लिए नवम भाव के स्वामी होकर शुभ होते हैं. नवम भाव कुंडली का अति बली त्रिकोण होता है और आपका भाग्य भी यही भाव निर्धारित करता है. तुला लग्न के लिए चंद्रमा दशम के स्वामी होकर सम होते हैं. दशम भाव केन्द्र स्थान है और यहाँ के स्वामी तटस्थ हो जाते हैं.

    तुला लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Libra Ascendant

    तुला लग्न के लिए मंगल प्रबल मारक ग्रह बन कर अति अशुभ हो जाता है. इस लग्न के लिए मंगल दूसरे व सातवें भाव का स्वामी होता है और इन दोनो भावो की गणना मारक भाव के रुप में होती है.

    तुला लग्न के लिए सूर्य त्रिषडाय भाव के स्वामी होकर अशुभ होते हैं. भले ही यह लाभ दिलाते हों लेकिन एकादश भाव की गणना अशुभ भाव में होती है. तुला लग्न के लिए तीसरे व छठे भाव के स्वामी होकर बृहस्पति सबसे अशुभ बन जाते हैं. तीसरे और छठे की गणना त्रिक भावों के रुप में होती है.

    तुला लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Libra Ascendant

    तुला लग्न के लिए डायमंड, नीलम व पन्ना शुभ होते हैं. आप अगर महंगे रत्न नहीं खरीद सकते हैं तब उपरत्न भी पहन सकते हैं. शुक्र के लिए डायमंड, शनि के लिए नीलम और बुध के लिए पन्ना पहनते हैं.

    आपकी कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उसके मंत्र जाप भी आपको नियमित रुप से 108 बार करना चाहिए. कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब मंत्र जाप के साथ दान व व्रत भी कर सकते हैं, इससे अशुभ फलों में कमी आ सकती है.

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    मिथुन लग्न का सातवां नवांश | Seventh Navamsha of Gemini Ascendant

    मिथुन लग्न के सातवें नवांश में मेष राशि आती है. इस नवांश के स्वामी ग्रह मंगल हैं. मिथुन राशि के सातवें नवांश में जन्मा जातक मंगल के प्रभाव से पूर्ण होता है. जिसके फलस्वरूप जातक का कद लम्बा और रंग साफ होता है. चेहरा लालिमा लिए होता है. छाती चौडी़ और आंखें सुंदर व भूरे रंग की होती हैं. जातक में तेज होता है और वह अपने कार्यस्वरूप द्वारा सभी के मध्य प्रधानता पाता है.

    जातक में क्रोध अधिक होता है परंतु वह अपने क्रोध को काफी हद तक दूसरों के समक्ष नहीं लाना चाहता. शांत रहकर काम करने की कोशिश करता है. जातक में शिल्प कला में निपुणता मिलती है और वह अपने इस कार्य से अच्छा धन भी कमा सकता है. काम के प्रति पूर्ण निष्ठा और प्रतिबद्धता दिखाने वाला होता है. अपनी ओर से गलतियों को न करने की पूरी कोशिश ही करता है.

    स्वभाव से प्रसन्नचित रहने वाला व खुश्गवार होना इनके गुणों में शामिल होता है. जीवन में समर्पण की भावना भी इनमें देखी जा सकती है. किसी के लिए यदि कुछ चाह रखते हैं तो उसे पूरे दिल से निभाने की कोशिश करते हैं. इनकी सरल और सच्ची अभिव्यक्ति इन्हें सफलता दिलाने में खूब सहायक होती है.

    मिथुन लग्न के सातवें नवांश का प्रभाव | Effects Of Seventh Navamsha of Gemini Ascendant

    इस नवांश से प्रभावित होने पर व्यक्ति में संतोष की भावना भी रहती है. जीवन की अनेक बातों में अपने को शांत स्वभाव से काम करने तैयार रखते हैं. जल्दबाजी से कामों को न करते हुए उनके सभी पक्षों के बारे में सोचते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. यदि किसी काम में इन्हें अनुकूल सफलता न भी मिल पाए तो भी यह कम लाभ से ही खुश रहते हैं. थोडे़ में भी बहुत कुछ की चाह रखने वाले होते हैं.

    इस नवांश से प्रभावित जातक को एकांतवास अधिक पसंद आता है, ज्यादा भीड़ भाड़ से दूर ही रहते हैं. जितना स्वयं में ही रहकर अच्छा अनुभव करते हैं उतना किसी ओर के साथ नहीं. इनके मित्रों की संख्या भी कम ही होती है. लेकिन जिनसे भी मित्रता करते हैं उनके साथ सदैव बने रहना चाहते हैं. अपने धन को काफी सूझबूझ के साथ व्यय करते हैं, व्यर्थ के दिखावों से दूर रहते हैं और सीमाओं में रहकर ही जीवन जीते हैं. एक निश्चित धार में बहते रहते हैं.

    मिथुन लग्न के सातवें नवांश का महत्व | Significance of Seventh Navamsha of Gemini Ascendant

    दांपत्य जीवन में अपनी साथी से अधिक अपेक्षाएं नहीं रखते हैं. इसलिए विवादों के लिए जगह ही नहीं बचती, जीवन साथी के साथ प्राय: मधुर संबंध सामान्य ही रहते हैं. जीवन साथी का स्वभाव तेज होता है इस कारण स्वभाव में दोनों के ही अधिक तेजी रिश्ते के लिए सही नहीं रह पाती अत: कुछ बातों को यदि शांतिपूर्वक निभाया जाए तो राहत मिल सकती है अन्यथा परेशानियां बढ़ने में देर नहीं लगती है.

    साथी अपने कार्यों में कुशल होता है और समय का पाबंद भी होता है. प्राय: रक्त संबंधी परेशानियां उसके लिए स्वास्थ्य में कमी का कारण बन सकती हैं. पारिवारिक संबंध अधिक घनिष्ठ नहीं हो पाते. कुछ न कुछ कमी बनी रह सकती है. लेकिन बहरी व्यक्तियों के साथ वह काफी सहयोगपूर्ण संबंध बनाकर चलता है.

    जातक अपनी योजनाओं को पूरा करने में परिश्रम से लगा रहता है. अपनी योग्यता और कौशल का सही उपयोग करना जानते हैं. धार्मिक कार्यों को करने में न अधिक और न कम रूचि लेते हैं. पारिवारिक व सामाजिक सुख शांति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं. कुछ मामलों में एक दूसरे से उदासीनता का भाव भी झेलना पड़ता है लेकिन तालमेल से जीवन की राह आसान बना ही लेते हैं.

    जातक को अपने वरिष्ठजनों का साथ मिलता है और जीवन में आगे बढ़ते रहने की चाह भी रहती है, जीवन में किसी न किसी कारण कुछ अचानक होने वाली घटनाएं भी जीवन को प्रभावित करती है. पैतृक धन लाभ भी मिलता है अपनी आथिक जीवन को मजबूत करने में लगे रहते हैं, सहनशीलता में कमी नही रह सकती है क्रोध के कारण लोगों से दूरी भी बन सकती है. इसलिए इन बातों का ध्यान रखते हुए ही आगे के कामों को करें.

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    वृश्चिक लग्न | Scorpio Ascendant – Characteristics of Scorpio Sign

    आज हम आपको वृश्चिक लग्न के बारे में बताने का प्रयास करेगें. वृश्चिक लग्न की क्या विशेषताएं होती है और कौन से ग्रह इस लग्न के लिए शुभ होते हैं और कौन से अशुभ होते हैं. साथ ही यह भी बताया जाएगा कि इस लग्न के लिए कौन से रत्न शुभ रहेगें.

    वृश्चिक राशि का परिचय | An Introduction to Scorpio Sign

    वृश्चिक राशि भचक्र में आठवें स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार भचक्र पर 210 अंश से 240 अंश तक फैला हुआ है. इस राशि की गणना जल तत्व के रुप में की जाती है इसलिए इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति लचीला हो सकता है.

    इस राशि की गणना स्थिर राशि में की गई है इसलिए व्यक्ति बहुत जल्दी बदलाव पसंद नही करता है. इस राशि का स्वामी ग्रह मंगल है और मंगल को ग्रहों में सेनापति का दर्जा दिया गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह बिच्छू माना गया है. इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति भी बिच्छू के समान पलट कर जवाब देने वाला होता है.

    वृश्चिक लग्न की विशेषताएँ | Characteristics of Scorpio Ascendant

    आइए अब वृश्चिक लग्न के बारे में बात करते हैं. वृश्चिक राशि कालपुरुष की कुंडली में आठवें भाव में आती है और आठवाँ भाव बाधाओ का माना जाता है. जब जन्म कुंडली में आठवाँ भाव जन्म लग्न बनता है तब व्यक्ति को कुछ बाधाओं का सामना जीवन में करना पड़ सकता है. उसे कई बार उतार-चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ सकता है.

    आपके वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल होता है जिससे आप पर मंगल का प्रभाव अधिक होगा. आप स्थिर स्वभाव के लेकिन जिद्दी प्रवृति के व्यक्ति होगें. आपके मन में एक बार जो धारण बैठ गई तब उसे कोई नहीं बदल पाएगा.

    वृश्चिक राशि की गणना जल तत्व के रुप में की जाती है इसलिए आप जल के समान लचीली प्रवृति के भी हो सकते हैं. जितनी जल्दी क्रोध आएगा उतनी जल्दी आप पिघल भी जाएंगें. आप साहसी तथा पराक्रमी होगें. आप के भीतर ऊर्जा की मात्रा भी अधिक होगी. जीवन में एक बार जिससे शत्रुता हो जाए तब उससे कभी दुबारा हाथ नही मिलाएंगे.

    वृश्चिक लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Scorpio Ascendant

    आइए अब वृश्चिक लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करते हैं. इस लग्न का स्वामी मंगल लग्नेश होकर शुभ होता है. चंद्रमा इस लग्न के लिए नवम भाव के स्वामी होकर अति शुभ हो जाते हैं. नवम भाव बली त्रिकोण है और भाग्य भाव भी है.

    इस लग्न के लिए बृहस्पति भी पंचमेश होकर शुभ होते हैं हालांकि इनकी दूसरी राशि द्वित्तीय भाव में पड़ती है लेकिन तब भी बृहस्पति को शुभ ही माना जाएगा. इस लग्न के लिए सूर्य, दशमेश होकर सम हो जाते हैं.

    वृश्चिक लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Scorpio Ascendant

    शुभ ग्रहों के बाद अशुभ ग्रहों के बारे में भी आपको बताने का प्रयास किया जा रहा है. वृश्चिक लग्न के लिए शनि शुभ ग्रह नहीं माना जाता है. शनि तीसरे व चौथे भाव के स्वामी होते हैं. इस लग्न के लिए बुध भी अशुभ माना गया है. बुध अष्टमेश व एकादशेश होकर अशुभ बन जाते हैं.

    शुक्र को इस लग्न के लिए अति अशुभ माना गया है क्योकि शुक्र सातवें भाव के स्वामी होकर मारक बन जाते हैं और बारहवें भाव के स्वामी होकर व्ययेश बनते हैं. शुक्र इस लग्न के लिए प्रबल मारकेश का काम करते हैं.

    वृश्चिक लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Scorpio Ascendant

    अंत में आपको इस लग्न के लिए शुभ रत्नों के बारे में बताया जाता है. वृश्चिक लग्न के लिए मूंगा, मोती व पुखराज शुभ रत्न माने गये हैं. पुखराज रत्न को बृहस्पति के लिए पहना जाता है लेकिन बृहस्पति दूसरे भाव का भी स्वामी माना जाता है इसलिए बृहस्पति की स्थिति का आंकलन पहले कुंडली में कर लेना चाहिए उसके बाद ही पुखराज धारण करना चाहिए. मूगा रत्न मंगल के लिए तथा मोती चंद्रमा के लिए पहना जाता है. जब कुंडली में इन रत्नो से संबंधित शुभ ग्रह कमजोर हो तभी इन्हें पहने अन्यथा आपको नहीं पहनने चाहिए.

    कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे संबंधित मंत्र जाप अवश्य करने चाहिए. इससे ग्रह शुभ फल देने में अधिक सक्षम होगा. अशुभ ग्रह की दशा में मंत्र जाप के साथ दान, व्रत तथा उस ग्रह की वस्तुओं से स्नान भी किया जा सकता है. इससे अशुभ फलों में कमी आती है.

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    जानिये धनु लग्न और इसमें जन्मे जातक के बारे में विस्तार से

    वैदिक ज्योतिष में बारह राशियों का वर्णन किया गया है. इन्हीं बारह राशियो में से ही कोई एक राशि व्यक्ति विशेष के लग्न में उदय होती है. जो राशि लग्न में उदय होती है उसी के अनुसार व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्धारित होता है. उसी लग्न के आधार पर शुभ व अशुभ ग्रहो का निर्धारण भी होता है. आज हम आपके सामने धनु लग्न के विषय में बताएंगें.

    धनु राशि की विशेषताएँ | Characteristics of Sagittarius Sign

    धनु राशि भचक्र की नवें स्थान पर आने वाली राशि है. भचक्र में इस राशि का विस्तार 240 अंश से 270 अंश तक फैला हुआ है. यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव मानी गई है. इस कारण व्यक्ति का स्वभाव कई बार डांवा डोल सा रहता है.इस राशि का तत्व अग्नि है और अग्नि के प्रभाव से व्यक्ति तेज तर्रार होता है.

    धनु राशि के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं, जिन्हें अत्यधिक शुभ ग्रह माना गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक घोड़ा है जिसकी आकृति ऊपर से मानव जैसी है और उसके हाथ में तीर है अर्थात इस राशि का प्रतीक चिन्ह आधा मानव और आधा घोड़ा है.

    धनु लग्न के व्यक्ति का व्यक्तित्व | Sagittarius Ascendant and Your Characteristics

    धनु लग्न के जातकों की विशेषताओ को जानने का प्रयास करते हैं. धनु राशि कालपुरुष की कुंडली में नवम‌ भाव में आती है. जब कालपुरुष कुंडली का नवम भाव लग्न बनता है तब ऎसे व्यक्ति को भाग्यशाली समझा जाता है.

    इस राशि की गणना अग्नि तत्व राशि के रुप में होती है, इसलिए अग्नि तत्व लग्न होने से आपके भीतर अत्यधिक तीव्रता होगी. आपको क्रोध भी अधिक आने की संभावना बनती है. आप अत्यधिक फुर्तीले और अपनी धुन के पक्के व्यक्ति होगें. एक बार जिस काम को करने का निर्णय ले लिया तब उसे आप पूरा करके ही दम लेगें. आपकी एक विशेषता यह होगी कि किसी भी निर्णय को लेने में आप जरा भी देर नहीं लगाएंगें.

    धनु लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Sagittarius Ascendant

    धनु लग्न होने से आपके लिए कौन से ग्रह शुभ हो सकते हैं आइए इसे जानने का प्रयास करें. इस लग्न के लिए बृहस्पति लग्नेश होकर शुभ हो जाते हैं. लग्न के स्वामी को सदा शुभ माना जाता है.इस लग्न के लिए मंगल त्रिकोणेश होकर शुभ हो जाते हैं. हालांकि मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक बारहवें भाव में पड़ती है, लेकिन तब भी यह शुभ होता है.

    इस लग्न के लिए सूर्य नवमेश होकर अति शुभ होते हैं. नवम भाव कुंडली का सबसे बली त्रिकोण भाव होता है. इसी भाव से व्यक्ति के भाग्य का भी निर्धारण होता है. धनु लग्न के लिए शुभ ग्रहों की शुभता कुंडली में उनकी स्थिति तथा बल पर निर्भर करेगी. यदि शुभ ग्रह पीड़ित या निर्बल है तब शुभ फलों की प्राप्ति में कमी हो सकती है.

    धनु लग्न के अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets of Sagittarius Ascendant

    इस लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं, अब उनके बारे में बात करते हैं. धनु लग्न के लिए शनि अशुभ माना गया है. यह तीसरे व चतुर्थ भाव के स्वामी होते हैं. इस लग्न के लिए बुध सम होते हैं और इसे केन्द्राधिपति दोष भी होता है अर्थात बुध की दोनो राशियाँ केन्द्र स्थान में ही पड़ती है.

    इस लग्न के लिए चंद्रमा अष्टमेश होकर अशुभ होते हैं हालांकि चंद्रमा को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता है लेकिन यह जहाँ और जिस ग्रह के साथ स्थित होगें उसे दूषित कर देगें. शुक्र इस लग्न में षष्ठेश व एकादशेश होकर अशुभ होते हैं.

    धनु लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Sagittarius Ascendant

    अंत में हम आपको शुभ रत्नो के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं. इस लग्न के लिए पुखराज धारण करना शुभ होता है. धनु लग्न के स्वामी ग्रह बृहस्पति होते हैं और पुखराज उनके लिए ही पहना जाता है. मंगल के लिए मूंगा व सूर्य के लिए माणिक्य पहनना भी शुभ होता है. पुखराज महंगा रत्न है यदि आप इसे खरीदने में सक्षम नहीं हैं तब इसके स्थान पर इसका उपरत्न सुनहैला भी पहन सकते हैं.

    एक बात का ध्यान यह रखें कि कुंडली में यदि बृहस्पति, मंगल अथवा सूर्य निर्बल हो तभी इनका रत्न पहनें. यदि बली अवस्था में स्थित हैं तब आपको इनका रत्न पहनने की आवश्यकता नहीं है. यदि जन्म कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तब उस ग्रह से संबंधित मंत्रों का जाप रोज करें. अशुभ ग्रह की दशा में आप दान व व्रत भी कर सकते हैं.

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    मिथुन लग्न का चौथा नवांश और इसका प्रभाव

    मिथुन लग्न का चौथा नवांश मकर राशि का होता है. मकर राशि का स्वामी शनि है इस लिए इस नवांश लग्न पर शनि का स्वामित्व रहता है. इस नवांश लग्न के प्रभावस्वरूप जातक का मस्तक चौडा़ तथा आंखे सुंदर होती हैं. घने व सुंदर बाल होंगे. शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट होंगे तथा मोटापा भी हो सकता है. रंग सामान्यत: साफ और नैन नक्श सुंदर आकर्षक होंगे.

    जातक में बुध और शनि दोनों के ही गुण समाहित होंगे अपने काम में पूर्ण निष्ठा की भावना होगी. कार्यक्षेत्र में बदलाव से दूर रहेंगे और कार्यों को करने में अधिक जल्दबाजी नहीं करेंगे. इन्हें अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना शायद उचित लग सकता है अपने फैसले लेने में कुछ अधिक समय ले सकते हैं.

    मिथुन लग्न के इस नवांश से प्रभावित जातक बौद्धिक क्षमता से पूर्ण होगा और विद्वता पूर्ण कार्य करने की कोशिश करने वाल होगा. सोच विचार करके ही किसी कार्य को करने का निर्णय लेते हैं इस कारण फैसलों में समय भी अधिक लग जाता है. परंतु अपने निर्णयों से हटने नहीं हैं और अटल रहते हैं.

    मिथुन लग्न नवांश महत्व | Importance of Fourth Navamsa of Gemini Ascendant

    मिथुन लग्न के मकर नवांश से प्रभावित जातक अपनी जिम्मेवारियों के प्रति सजग रहता है. यदि उसे को काम मिलता है तो उसे पूण निष्ठा के साथ पूरा करता है. इनके मित्रों की संख्या अधिक नहीं होती है जिससे पता चलता है कि यह सोच विचार और अपने में सीमित व्यक्ति होते हैं किंतु बुध के प्रभाव से भी यह अपने मित्रों का पूरा साथ देते हैं.

    जातक के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है वह स्वभाव से स्वाभिमानी होता है. इसके फलस्वरुप उसके व्यापार में परेशानियां आने की संभावना बनती है. वैवाहिक जीवन के आरम्भ में कष्ट प्राप्त हो सकते है. परन्तु बाद में स्थिति सामान्य होकर व्यक्ति को अपने जीवन साथी का सहयोग प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. अधिनस्थों का सहयोग भी प्राप्त होता है.

    मित्र व सहयोगियों के साथ स्वार्थी रूप नहीं रखते और न ही उनका फायदा उठाते हैं. जीवन में अचानक होने वाली घट नाएं पारिवारिक स्थिति को प्रभावित अवश्य करती हैं. जातक चोरी या मुकद्दमे बाजी में के केस मे भी फंस सकता है.

    इस प्रकार की घटनाएं कई प्रकार से तनाव का कारण बन सकती हैं. जातक को परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग मिलता किंतु पिता से कुछ मतभेद रह सकते हैं. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के संचय में भी वृ्द्धि को सहयोग प्राप्त होता है. आजिविका क्षेत्र के फल देर से प्राप्त होते है.

    मिथुन लग्न नवांश प्रभाव | Effects of Fourth Navamsa of Gemini Ascendant

    जातक धन संचय करने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों का सुख प्राप्त होता है. परन्तु माता के सुख में कमी की संभावनाएं बनती है. भूमि- भवन संबन्धी मामलों से भी समस्याएं आ सकती है. जातक के भाग्य व शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं बनी रहती है, व्यय भी बढ सकते है.

    इनका दांपत्य जीवन काफी सुख पूर्ण होता है जीवन साथी की ओर से ईमानदारी ओर कर्तव्य परायणता मिलती है. जीवन साथी आत्मबल से युक्त रहता है और धर्म के प्रति आदर रखने वाला होता है. रंग रूप और सौदर्य का आकर्षण उसमें होता है. पारिवारिक कार्यों में साथी का काफी सहयोग प्राप्त होता है.

    जातक में गंभीरता का भाव होगा तथा जीवन के प्रति सजगता मौजूद होगी, काम में कुछ आलस्य ला सकते हैं लेकिन कार्यों को सही दिशा तक ले जाने की चाह बनी रहती है. परंपरावादी सोच होती है व नियमों को मानते हैं और समाजिक रूप में मिलकर रहते हैं.

    गंभीर प्रवृत्ति, आध्‍यात्म की तरफ रुचि व काम के प्रति लगन होती है, दूसरों में गलतियाँ ढूँढना इन्हें प्रिय होता है,जीवनसाथी से अत्यधिक अपेक्षाएँ रखते हैं, भाग्योदय प्राय: देर से ही होता है. इस लग्न से प्रभावित जातक विवाद से दूर ही रहने का प्रयास करते हैं.

    निश्चय में अटल होते हैं अपने फैसलों को लेकर काफी संवेदनशील भी रहते हैं. मन में भावों का प्रवाह सतत बहता ही रहता है. जातक लम्बे कद का गुणों से युक्त उदार हृदय वाला होता है. बौद्धिक गुणों की उज्जवलता होती है. सभी के प्रति प्रेम भावना और सहयोगात्मक भावन होती है. धार्मिक यात्राओं को करता है.

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    जानिये मिथुन लग्न के तीसरे नवांश का फलकथन

    मिथुन लग्न का तीसरा नवांश धनु राशि का होता है और इसके स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं. इस नवांश के होने से जातक में साहस की कमी नहीं होती है. जातक अपने परिश्रम और मेहनत के बल पर आगे बढ़ता रहता है. जीवन में कुछ न कुछ परिवर्तनों की मांग इसमें बनी रहती है. इस नवांश में जन्मे जातक का रंग साफ और चेहरा सुंदर होता है. जातक का बाहुबल अधिक होता है और किसी के भी समक्ष खडा़ होने का सामर्थ्य रहता है.

    चेहरा लम्बा और भरा होता है. आंखों में लालिमा रहती है. बल से पूर्ण होता है. मन में सपनों की नई आकांक्षाएं जन्म लेती रहती हैं. किसी न किसी काम को करने में लगा रहने की चाह भी रहती है. मेहनत करने पर भी अधिक थकान महसूस नहीं होती. गीत संगीत में रूचि रखते हैं और वाणी में मधुरता तथा स्वभाव में आकर्षण का भाव निहित होता है. जातक को अपने मित्रों और सहयोगियों से सहायता मिलती रहती है.

    जातक के दांपत्य जीवन में सुख बना रहता है और इसी ओर अधिक ध्यान भी रहता है जीवन साथी के प्रति इनका लगाव बना रह सकता है. संतान पक्ष की ओर से सुख की प्राप्ति बनी रह सकती है संतान गुणों से सम्पन्न होती है.

    मिथुन लग्न का तीसरा नवांश का प्रभाव | Effects of Third Navamsa of Gemini Ascendant

    जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हैं, इनके खुले विचार ओर दार्शनिक प्रवृत्ति इन्हें जीवन के रहस्यों को को जानने में सहायक बनती है. कई बार विचारों को लेकर द्वंद की स्थिति भी उत्पन्न होती है जिसमें इस बात का पता लगना कठिन हो जाता है कि किस राह को पकडा़ जाए इसलिए ऎसे समय का निश्चय कर पाना इनके लिए काफी परेशानी वाला होता है.

    जातक बहुमुखी प्रतिभा से युक्त होता है. आशावादी दृष्टिकोण के द्वारा मार्ग पर आगे बढ़ता जाता है. उत्साह सदैव बरकरार रहता है इस कारण से यह दृढ़ विचारधार के व्यक्ति भी होते हैं. पर कई बार अधिक दृढ़ता भी परेशानी का सबब बन सकती है इस तथ्य को सदैव ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ना चाहि जिससे की अन्य को इस बात से परेशानी न हो.

    द्विस्वभाव राशि होने से कल्पनाओं का क्षेत्र भी काफी विस्तृत रहता है. बदलाव की प्रवृत्ति बनी रहती है और जीवन में कुछ न कुछ अलग करने की चाह भी रहती है. इनकी अधिकांश ऊर्जा इस कारण भी नष्ट होती रहती है क्योंकि एक राह में लगे रहना अधिक सुविधाजनक होता और व्यक्ति की ऊर्जा भी उसी काम में पूर्णता से लगी रहती है.

    प्रेम संबंधों में चंचलता बनी रहती है, अर्जित धन का उपयोग पूरी तरह से करते हैं, निश्चय में अटल होते हैं और अपने फैसलों को लेकर काफी संवेदनशील भी रहते हैं. प्राय: अपने लक्ष्यों से विचलित नहीं होते. क्रोधी स्वभाव के हो सकते हैं पर जल्द ही शांत भी हो जाते हैं. आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं.

    विद्वान लोगों का साथ मिलता है तथा गुरूजनों से सम्मान की प्राप्ति है. समाज में सम्मान और पद प्राप्ति होती है. अपने विनम्र स्वभाव के कारण जातक अन्य लोगों के साथ सहज हो जाता है. जीवन साथ काम में चुस्त व दक्ष होता है. व्यवहार कुशलता बनी रहती है. जीवन साथी से सहयोग व साथ की प्राप्ति होती है.

    शारीरिक रूप से मजबूत होता है, स्वास्थ्य अनुकूल रह सकता है. सामाजिक और पारिवारिक कार्यों में पूर्ण रूप से सहयोग करने वाला होगा. जीवन में उतार-चढा़वों से निकलते हुए आगे बढते हैं कभी-कभी अगर निराशावादी हो भी जाएं तो उस समय से जल्द उबरने की कोशिश भी करते हैं.

    जीवन साथी सहयोगी स्वभाव वाला होता है. सुंदर और आकर्षक नैन नक्ष वाला होता है साथ ही परंपराओं को मानने वाला और धर्म के प्रति उन्मुख होगा. सामाजिक रूप में आपके लिए सम्मान प्राप्त करेगा और जीवन साथी के साथ अनेक धार्मिक स्थलों का भ्रमण करने का अवसर भी प्राप्त होगा.

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    जानें – मिथुन लग्न के दूसरे नवांश का फल

    मिथुन लग्न का दूसरा नवांश वृश्चिक राशि का होता है. इस नवांश के प्रभाव स्वरूप जातक की कद काठी सामान्य होती है, चेहरे पर लालिमा रहती है और वाणी में काफी तेज रहता है. आंखे गोल तथा शरीर सामान्य होता है. तेज चलने वाला और घूमने का शौकिन हो सकता है.

    इससे प्रभावित जातक में कर्म को लेकर एक लग्न रहती है जातक अपने कार्य को पूरा करने में आतुर रहता है. आर्थिक रूप से साधारणत: सामान्य बनी रहती है. जातक अपनी बौधिकता और अपनी वाक शक्ति के द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल भी रहता है.

    इसके प्रभाव से त्वचा शुष्क व कठोर भी हो सकती है. त्वचा का भरपुर ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. वाणी में कर्कशता एवं तुनकबाजी भी हो सकती है जिस कारण कुछ प्रतिरोधों का सामना भी करना पड़ सकता है.

    यह जातक कुछ आलसी भी रह सकते हैं लेकिन लक्ष्य को पाने में प्रयासरत रहते हैं. स्वभाव में स्पष्टवादी होती है. आर्थिक रूप से सुवस्थित रहते हैं. शत्रुओं पर हावी रहते हैं और जीवन में आगे बढ़ने की सोच लेकर चलते हैं.

    मिथुन लग्न नवांश का महत्व | Importance of Navamsa of Gemini Ascendant

    यह संबंध दो राशियों के संबंधों की भी व्याख्या करता है. इसके द्वारा बुध और मंगल के प्रभावों का प्रतिफलन ही होता है. इसके प्रभाव से जातक दूसरों पर अच्छा प्रभाव डालने में सक्ष्म होता है. समाज में मान सम्मान व यश पाने में समर्थ होता है.

    पारिवारिक संपत्ति की प्राप्ति भी होती है. स्वभाव में उग्रता के कारण ही इन्हें कई बार दूसरों से दूर भी होना पड़ सकता है या फिर अपनी ही बातों को कहते रहना भी अन्य के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. अपने कार्यों में अच्छे ही रहते हैं.

    जीवन में छठे भाव से संबंधि प्रभाव अधिक रह सकता है जातक को शत्रुओं से सावधान रहने की आवश्यकता रहती है. इसी के साथ अपने खर्चों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए जिससे आर्थिक रूप से तंगी न आ सके खुले खर्चे इन्हें समस्या में भी डाल सकते हैं.

    व्यवहार से यह काफी आलोचनात्मक रवैया भी रख सकते हैं. जीवन में काफी जूझारूपन दिखाई देता है. स्वावलम्बी व स्वच्छंद रहने की इच्छा हो सकती है. किसी के द्वारा संपर्क माध्यम से कार्यों को सफल करने में आगे रहते हैं.

    मिथुन लग्न नवांश का प्रभाव | Effects of Navamsa of Gemini Ascendant

    धार्मिक रूप से जातक सामान्य व्यवहार ही रखता है, धर्म के प्रति उन्मुखता अधिक नहीं रहती किंतु सामान्य पूजा पाठ और धर्म कर्म को करता ही है. आपने काम में इन्हें किसी का व्यवधान सहना पड़ सकता है और जातक को कई बार पराजय भी झेलनी पड़ सकती है.

    इससे निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह स्थिति लम्बी अवधि तक परेशान नहीं कर पाती है और जातक इन परिस्थितियों से जल्द ही पार पा लेता है. जीवन के उत्तरार्ध में आपकी कार्यकुशलता और अर्थ लाभ बढ़ता है. जीवन साथी का स्वभाव भी अधीर रह सकता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी कुछ कमी रह सकती है..दांपत्य जीवन में उलझने और तनाव का सामना करना पड़ सकता है.

    कुछ मामलों में वैचारिक मतभेद ही अलगाव का कारण बन जाते हैं. जीवन साथी के स्वभाव में अस्थिरता के प्रभाव स्वरूप आपको कुछ अधिक जिम्मेदार बनना पड सकता है जिससे सही निर्णय ले सकें और जीवन में स्थिरता ला सकें. विवाह के पश्चात कुछ आर्थिक सम्रद्धि प्राप्त होती है जीवन साथी आपकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने का पूर्ण प्रयास करता है.

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