कुण्डली में भाव परिवर्तन का महत्व | Importance of Interchange of Planets in Kundali

कुण्डली में ग्रहों की स्थिति और उनकी युति कई प्रकार के प्रभावों को सामने लाती है. जातक पर उनका अनेक प्रकार से प्रभाव देखा जा सकता है जीवन में आने वाले उतार-चढावों में ग्रहों की स्थिति व संबंध बहुत प्रभाव डालने वाले होते हैं. कुण्डली में बनने वाला परिवर्तन योग के बारे मे ज्योतिष शास्त्रों मे बहुत कुछ लिखा गया है. परिवर्तन का अर्थ इस बात से समझा जा सकता है कि ग्रहों का एक दूसरे की राशि में स्थित होना होता है.

वृश्चिक कर्क और मीन राशि के लिये अशुभ माना जाता है यही नही जब यह योग जोखिम और कार्य की पूरक राशियों मे अपना परिवर्तन योग सामने लाता है तो जातक के जीवन में कशमकश और मेहनत का दौर बना ही रहता है. ऎसे में एक निराशा भी उसे घेर सकती है जो उसके लिए काफी थका देने वाली ओर परेशान कर देने वाली होती है.

परिवर्तन योगों में राशि स्वामी परिवर्तन, भाव स्वामी परिवर्तन, नक्षत्र स्वामी परिवर्तन योग इत्यादि परिवर्तनों को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है. इसी के साथ इनके जीवन में सभी प्रकार के लक्षणों को समझने के लिए इन्हें समझना आवश्यक है. मुख्य परिवर्तन योग माने जाते है. जहां एक ओर यह योग मेष सिंह और धनु राशि के स्वामियों की आपसी परिवर्तन करने से अच्छे राजयोग मे बदल सकता है. उसी प्रकार कुछ ऎसी भी स्थान हैं जहां इनका परिवर्तन अनुकूल नहीं हो पाता है.

शनि मंगल का परिवर्तन योग पराक्रम और लाभ के विचार को दर्शाता है जातक अपने आपको परिश्रमी बनाता है और अपनी स्थिति को उन्नत करने की चाह रखता है. कुम्भ लगन का स्वामी शनि के साथ मंगल जो दशम का स्वामी है परिवरतन योग बनने पर कार्य में हर प्रकार की युति संगती का प्रयोग करने की ओर उन्मुखता लिए हो सकता है.
जातक, इनका परिवर्तन कार्य के प्रति तकनीक और उत्तेजना का मिलन लेकर आता है. जातक को अपने काम में कई प्रकार के आक्षेप भी सहन करने पड़ सकते हैं. इसके अलावा जातक की कुंडली को सूक्ष्म विवेचन से देखने पर अन्य बातों को पुर्ण रूप से समझने पर ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.

जब दो ग्रह एक दूसरे की राशि में चले जाते हैं तो इस स्थिति से राजयोग का निर्माण भी होता है. अगर केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों में शुभ ग्रहों का भाव परिवर्तन हो रहा हो तो यह जातक को अच्छे फल देने की ओर अग्रसर रहते हैं. परंतु यह स्थित उलट भी हो सकती है और इसके अच्छे प्रभावों में कमी आ सकती है जैसे कि यदि कोई ग्रह अस्त हो या नीच राशि में स्थित ग्रह भाव परिवर्तन में शामिल हो रहा हो तो साधारत: बुरे फल देने की ओर उद्धत रहते हैं.

यहां हम एक उदाहरण कुण्डली के माध्यम से भाव परिवर्तन योग को समझने का प्रयास करेंगे. मिथुन लग्न की कुण्डली ले रहे हैं लग्न में वक्री शनि और केतु स्थित हैं, पंचम भाव में तुला राशि का चंद्रमा स्थित है, सप्तम भाव में धनु के राहु, अष्टम भाव में मकर राशि के सूर्य, गुरू, बुध, वक्री शुक्र स्थित हैं और एकादशभाव में मेष के मंगल स्थित हैं.

इस कुण्डली में लग्नेश और चतुर्थेश बुध का भाग्येश व अष्टमेश शनि के साथ परस्पर भाव परिवर्तन हो रहा है. इस कुण्डली में शनि नवमेश हैं जिस कारण पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं. यहां लग्नेश अस्त हो रहा है जो सूर्य के साथ आठवें भाव में स्थित है जो पिता का कारक माना जाता है.

यह एक अनुकूल परिवर्तन योग नहीं माना जा सकता है इस के कारण जातक को अपने पिता से दूरी की स्थिति को झेलना पड़ सकता है तथा भाई बहनों से भी अलगाव की स्थित बनी रह सकती है. इस प्रकार से जब हम भावों के समझते हैं तो देखते हैं कि यदि कोई अशुभ भाव का संबंध इस परिवर्तन योग में आ रहा हो तो उक्त ग्रहों से मिलने वाले फलों में कमी बनी रहती है पर यदि किसी शुभ स्थान का परिवर्तन मिले तो जातक को अच्छे फलों की प्राप्ति अवश्य होती है.

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मिथुन लग्न का नौवां नवांश | Ninth Navamsha of Gemini Ascendant

मिथुन लग्न का नौवां नवांश मिथुन का ही होता है इस कारण से यह वर्गोत्तम स्थिति को पाता है. यह स्थिति काफी अच्छी मानी गई है इस नवांश के फलस्वरूप जातक को बुध से संबंधित फलों की प्राप्ति होती है. यह नवांग लग्न जातक को उत्तम स्थिति देने में सफल होता है. जातक के पास अनेक प्रकार मौके आते हैं जो जीवन में उसे आगे ले जाने में सहायक बनते हैं.

मिथुन लग्न के नौंवे नवांश में जन्मा जातक का बलिष्ठ व सुंदर होता है. इनका मुखमंडल आभा लिए होता है. इनके केश घुंघराले व सुंदर होते हैं. त्वचा कोमल होती है. इस नवांश से प्रभावित जातक में बुध के स्वरूप वाला आकर्षण और खिंचाव रहता है. जिन पर यह प्रभाव रहता है उनके व्यक्तित्व में आकर्षण सहज ही पाया जाता है. जातक के गुणधर्म के अतिरिक्त ग्रह का प्रभाव भी स्पष्टत: देखने को मिलता है. ललित-कलाओं का ज्ञान तथा विद्या, पाण्डित्य, शास्त्र, उपासना आदि का बोध जातक को बना रहेगा.

जातक में अभिव्यक्ति की क्षमता भी खूब होगी. प्रतिस्पर्धा में सफलता के लिए जिस प्रस्तुतिकरण की आवश्यकता होती है वह इन जातकों को बखूबी आती है. इसके प्रभाव स्वरूप व्यक्ति अपनी प्रतिभा का आर्थिक लाभ उठाना भी अच्छे से जानता है. व्यक्ति की वाणी में ओजस्विता आती है. वाक चातुर्य एवं पटुता प्राप्त होती है. जातक की हाजिर-जवाबी के सामने किसी ओर की नहीं चल पाती है.

उचित समय पर उचित जवाबदेही इन्हें खूब आती है. जिस पैनीधार वाली सोच की आवश्यकता होती है वह इस नवांश के प्रभाव से प्राप्त होती है. जातक में अनुकूलनशीलता होती है वह प्रत्येक स्थिति में स्वयं को ढाल लेना जानता है.यह हंसना, खेलना खूब पसंद करते हैं. जिंदादिल रहना और जिंदगी के हर पल को भरपूर जीने की चाह रखते हैं. समय की मांग के अनुरूप खुद को आसानी से बदल कर समय की मुख्य धारा में शामिल होने की क्षमता रखते हैं.

मिथुन लग्न का नौवां नवांश महत्व | Significance of Ninth Navamsa of Gemini Ascendant

जातक आम तौर पर बहुत बुद्धिमान होते हैं इनका वाणी पर बहुत अच्छा नियंत्रण होता है जिसके चलते वे अपनी बुद्धि तथा वाणी कौशल के बल पर कठिन परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने की योग्यता रखते हैं. जातकों की वाणी व्यवहार और अवसर के अनुकूल होती है. बातचीत, बहस या वाक प्रतियोगिता में इनसे जीत पाना कठिन होता है.

इनका साहित्य में लगाव भी खूब होता है. यह एक कुशक व्यवसायी के रूप में अच्छा प्रदर्शन करते हैं और मुनाफा कमाने में भी आगे रहते हैं. समाज में अच्छी प्रतिष्ठा पाते हैं और सम्मान में वृद्धि होती रहती है, इन्हें विद्वान लोगों का साथ भी खूब मिलता है.

किसी के विश्वास को आप आसानी से हासिल कर सकते हैं. इसलिए इन पर लोगों का भरोसा जल्द ही बन जाता है. यह किसी के साथ पक्षपात नहीं करते हैं और किसी भी निर्णय को पूरी ईमानदारी के साथ सामने लाते हैं. यह एक अच्छे समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते हैं.

दांपत्य जीवन से यह संतुष्ट ही रहते हैं, इनका जीवन साथी इनके विभिन्न कामों में सहायक बनता है और कुशल तथा विद्वान भी होता है. यह प्राय: सदाचारी और धार्मिक कार्यों में रूचि लेने वाले होते हैं. आर्थिक क्षेत्र में योजनाबद्ध तरिके से काम करते हैं और खर्चों पर नियंत्रण करने का प्रयास भी करते हैं. परंतु कुछ स्थानों में आप दोनों में एक अंह की भावना भी सामने आ सकती है. आप एक दूसरे के समक्ष अपनी बात को रखना चाहते हैं, इनके साथी अपेक्षाकृत कुछ अधिक जिद्दी भी हो सकते हैं व कभी कभी तनाव भी बढ़ सकता है किंतु यदि आप संतोष रखें तो संबंधों में सुगमता बनी रह सकती है.

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मिथुन लग्न का प्रभाव और इसमें जन्मे जातक की विशेषताएं

वैदिक ज्योतिष हो, जैमिनी हो या फिर पाश्चात्य ज्योतिष की ही बात क्यूँ ना करे, सभी में राशियों का महत्व माना गया है. जैमिनी ज्योतिष में तो सारी दशाएँ ही राशियों की होती है. राशियों की इस श्रृंखला में आज हम मिथुन लग्न की विशेषताओ पर चर्चा करेगें.

मिथुन राशि का परिचय | Introduction of Gemini Sign

मिथुन राशि भचक्र की तीसरे स्थान पर आने वाली राशि है. भचक्र पर इसका विस्तार 60 अंश से 90 अंश तक होता है. यह राशि स्वभाव से द्वि-स्वभाव राशि की श्रेणी में आती है अर्थात इसमें चर व स्थिर राशि दोनो के ही गुण विद्यमान होते हैं.

मिथुन राशि का तत्व वायु होता है और इस कारण इस राशि के व्यक्ति अत्यधिक कल्पनाशील होते हैं. यह भचक्र की पहली राशि है जिसका चिन्ह मानवाकृति है और उनके हाथ में वाद्य यंत्र हैं. इसीलिए इस राशि के लोगो को संगीत से प्रेम होता है या किसी ना किसी कला से लगाव होता है.

इस राशि का रंग होता है और यह पुरुष संज्ञक राशि मानी जाती है. यह राशि रात्रि में बली मानी जाती है. यह पृष्ठोदय राशि मानी गई है अर्थात पीछे का भाग पहले उठता है.

मिथुन लग्न के व्यक्ति का व्यक्तित्व | Gemini Ascendant and Your Personality Traits

मिथुन राशि के व्यक्तियों के गुणो के बारे में जानने का प्रयास करते हैं. मिथुन राशि कालपुरुष की कुंडली में तीसरे भाव में पड़ती है. तीसरा भाव पराक्रम व साहस का होता है. इसलिए जब तीसरा भाव लग्न बनता है तब व्यक्ति को जीवन में पराक्रम अधिक करने पड़ जाते हैं. व्यक्ति अत्यधिक परिश्रमी होता है.

इस राशि पर बुध का प्रभाव होने से आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति होते हैं. आपकी प्रतिभा दिन ब दिन निखरती ही है और सभी आपके काम से प्रभावित रहते हैं. इस राशि का वायु तत्व होने से आपका मस्तिष्क सदा चलायमान रहता है. आप नित नई योजनाओ को बनाने में व्यस्त रहते हैं. आपकी कल्पनाओ की दुनिया में भी खोये रह सकते हैं.

बुध को सभी ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्रदान की गई है. इसलिए बुध का प्रभाव होने से आप सदा स्वयं को जवाँ व ऊर्जावान मानेगें. आपको गीत, संगीत, नृत्य व कला में रुचि हो सकती है. आपको लेखन आदि कामों में भी दिलचस्पी हो सकती है.

आप हास्यरस प्रेमी व मनोविनोद में रुचि रखने वाले व्यक्ति होते हैं. आप अधिक समय तक गंभीर बने नही सकते हैं. आपको हंसी मजाक करना अच्छा लगता है. अपवाद – विवाद व तर्क्-वितर्क में अति कुशल व हाजिरजवाब व्यक्ति होते हैं. शारीरिक श्रम की बजाय आप प्रबंधन से संबंधित कामो में कुशल होते हैं.

मिथुन लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Gemini Ascendant

आइए अब हम मिथुन लग्न के लिए शुभ ग्रहों का वर्गीकरण करते हैं. इस लग्न के लिए बुध लग्नेश व चतुर्थेश होकर शुभ हो जाता है. शुक्र पंचम का स्वामी होकर शुभ है क्योकि यह त्रिकोण स्थान है. वैसे तो शुक्र की दूसरी राशि वृष बारहवें भाव में पड़ती है फिर भी त्रिकोण की राशि को अधिक महत्व दिया गया है और फिर शुक्र की शुभता इसके बलाबल पर निर्भर करती है.

शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ बली त्रिकोण स्थान नवम भाव में पड़ने से शनि भी शुभ होता है. बुध, शुक्र व शनि की शुभता जन्म कुंडली में इनकी स्थिति पर भी निर्भर करती है. यदि यह शुभ होकर बली हैं तब शुभ फलों में वृद्धि करेगें और अगर यह शुभ होकर निर्बल हैं तब यह अपनी शुभता में कमी भी कर सकते हैं.

मिथुन लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Gemini Ascendant

मिथुन लग्न के लिए अशुभ ग्रहों के बारे में जानते हैं. इस लग्न के लिए चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी होकर तटस्थ बन जाता है क्योकि इसे मारक का दोष नहीं लगता है. सूर्य तृतीयेश होकर अशुभ होता है. तीसरे भाव की गणना अशुभ भावों के रुप में की जाती है.

मंगल छठे भाव और एकादश भाव का स्वामी होकर अशुभ है. गुरु सप्तमेश व दशमेश होकर भी शुभ नहीं है और यह मिथुन लग्न के लिए बाधकेश का काम करता है. इस ग्रह को केन्द्राधिपति दोष भी लगता है.

मिथुन लग्न के लिए उपाय | Remedies for Gemini Ascendant

आपके लिए पन्ना, डायमंड व नीलम शुभ रत्न होते हैं. पन्ना बुध के लिए, डायमंड शुक्र के लिए और नीलम शनि के लिए पहना जाता है. यदि आप महंगे रत्न खरीदने में समर्थ नही है तब आप इन रत्नों के उपरत्न भी पहन सकते हैं.

यदि जन्म कुण्डली में बुध, शुक्र व शनि शुभ होकर कमजोर अवस्था में स्थित हैं तभी आप इनका रत्न पहनें. यदि किसी अशुभ ग्रह की दशा जन्म कुंडली में चल रही हो तब आपको उसके मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए. जन्म कुंडली में जिस भी ग्रह की दशा हो उससे संबंधित मंत्र जाप के साथ आप व्रत भी रख सकते हैं.

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कुंडली में दुर्घटना तथा चोट लगने के योग

वैदिक ज्योतिष के अन्तर्गत ही चिकित्सा ज्योतिष का भी वर्णन मिलता है. इसके माध्यम से व्यक्ति के साथ होने वाले अरिष्ट का पता पहले से ही लगाया जा सकता है. हर कुंडली में स्वास्थ्य के कुछ मापदंड पहले से ही निर्धारित होते हैं. उनके अनुसार व्यक्ति को फलों की प्राप्ति होती है. इस लेख के माध्यम से आज हम आपको दुर्घटना व चोट लगने में शामिल भाव व ग्रहों के बारे में बताएंगे फिर इनके योगो के बारे में बताएंगें.

चोट व दुर्घटना में शामिल भाव व ग्रह | Planets and Yogas Related To Injuries and Accidents

  • जन्म कुंडली के त्रिक भाव सबसे अशुभ समझे जाते हैं और इनके भावेशों को भी अशुभ ही समझा जाता है.
  • आठवें भाव तथा अष्टमेश की भूमिका भी आती है.
  • जन्म कुंडली में राहु,केतु, शनि व मंगल को भी देखा जाता है. मंगल को चोट लगने का कारक माना ही जाता है.
  • यदि वाहन से दुर्घटना के योग देखने हों तब शुक्र, चतुर्थ भाव तथा चतुर्थेश का विश्लेषण किया जाता है.
  • यदि कोई दो पापी ग्रह परस्पर षडाष्टक योग में स्थित हैं तब उनकी स्थिति अशुभ समझी जाती है.
  • परस्पर षडाष्टक स्थिति में बैठे ग्रह की दशा चलने पर यदि गोचर भी प्रतिकूल ही चल रहा हो तब दुर्घटना होने की संभावना ज्यादा बनती है.
  • दुर्घटनाओं को जन्म कुंडली के साथ वर्ग कुंडलियो में भी देखा जाना चाहिए और तब किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाना चाहिए. यदि दोनो में ही दुर्घटना के योग बनते हैं तभी दुर्घटना होगी अन्यथा कम में ही बात टल जाएगी.

जन्म कुंडली में दुर्घटना होने के योग | Yogas For Accidents

  • जन्म कुंडली में आठवाँ भाव अथवा अष्टमेश, मंगल तथा राहु से पीड़ित होने पर दुर्घटना होने के योग बनते हैं.
  • सारावली के अनुसार शनि, चंद्रमा और मंगल दूसरे, चतुर्थ व दसवें भाव में होने पर वाहन से गिरने पर बुरी दुर्घटना देते हैं.
  • जन्म कुंडली में सूर्य तथा मंगल चतुर्थ भाव में पापी ग्रहों से दृष्ट होने पर दुर्घटना के योग बनते हैं.
  • सूर्य दसवें भाव में और चतुर्थ भाव से मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तब दुर्घटना होने के योग बनते हैं.
  • निर्बली लग्नेश और अष्टमेश की चतुर्थ भाव में युति हो रही हो तब वाहन से दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
  • लग्नेश कमजोर हो और षष्ठेश, अष्टमेश व मंगल के साथ हो तब गंभीर दुर्घटना के योग बनते हैं.
  • जन्म कुंडली में लग्नेश कमजोर होकर अष्टमेश के साथ छठे भाव में राहु, केतु या शनि के साथ स्थित होता है तब गंभीर रुप से दुर्घटनाग्रस्त होने के योग बनते हैं.
  • जन्म कुंडली में आत्मकारक ग्रह पापी ग्रहों की युति में हो या पापकर्तरी में हो तब दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
  • जन्म कुंडली का अष्टमेश सर्प द्रेष्काण में स्थित होने पर वाहन से दुर्घटना के योग बनते हैं.
  • जन्म कुंडली में यदि सूर्य तथा बृहस्पति पीड़ित अवस्था में स्थित हों और इन दोनो का ही संबंध त्रिक भाव के स्वामियों से बन रहा हो तब वाहन दुर्घटना अथवा हवाई दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
  • जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव तथा दशम भाव पीड़ित होने से व्यक्ति की गंभीर रुप से दुर्घटना होने की संभावना बनती है.

घाव तथा चोट लगने के योग | Yogas For Injuries

  • यह मंगल की पीड़ित अवस्था के कारण होने की संभावना अधिक रहती है.
  • जन्म कुंडली में यदि मंगल लग्न में हो और षष्ठेश भी लग्न में ही स्थित हो तब शरीर पर चोटादि लगने की संभावना अधिक होती है.
  • जन्म कुंडली में मंगल पापी होकर आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर चोट लगने की संभावना बनती है.
  • जन्म कुंडली में यदि मंगल, शनि और राहु की युति हो रही हो तब भी चोट अथवा घाव होने की संभावना बनती है.
  • चंद्रमा दूसरे भाव में हो, मंगल चतुर्थ भाव में हो और सूर्य दसवें भाव में स्थित हो तब चोट लगने की संभावना बनती है.
  • जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य स्थित हो, आठवें भाव में शनि स्थित हो और दसवें भाव में चंद्रमा स्थित हो तब चोट लगने की अथवा घाव होने की संभावना बनती है.
  • जन्म कुंडली के छठे भाव में मंगल तथा चंद्रमा की युति हो तब भी चोट लगने की संभावना बनती है.
  • चंद्रमा तथा सूर्य जन्म कुंडली के तीसरे भाव में होने से भी चोट लगने की संभावना बनती है.
  • कुंडली का लग्नेश तथा अष्टमेश शनि और राहु या केतु के साथ आठवें भाव में स्थित हो तब भी चोट लगने की संभावना बनती है.
  • लग्नेश, चतुर्थेश तथा अष्टमेश की युति होने पर भी चोट लगने की संभावना बनती है.
  • जन्म कुंडली के लग्न में ही छठे भाव का स्वामी राहु या केतु के साथ स्थित हो.
  • जन्म कुंडली के छठे अथवा बारहवें स्थान में शनि व मंगल की युति हो रही हो.
  • जन्म कुंडली के लग्न में पाप ग्रह हो या लग्नेश की पापी ग्रह से युति हो और मंगल दृष्ट कर रहा हो.
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तीसरे भाव से कुण्डली का आंकलन | Assessment of Kundli by Third House

जातक की जन्म कूण्डली में तीसरा भाव उसके पराक्रम और साहस की कहानी बताता है. इसके साथ साथ इन प्रमुख बातों के अतिरिक्त इस भाव से भई बहनों का सुख और यात्राओं के बारे में भी जाना जा सकता है. पराक्रम भाव होने पर व्यक्ति के बाहु बल का विचार किया जाता है. साहस, वीरता आदि के लिये भी तीसरे भाव देखा जाता है. कुण्डली में यदि तीसरा भाव कमजोर हो तो व्यक्ति के साहस में कमी देखी जा सकती है.

जातक की मानसिक स्थिति की मजबूती भी यही भाव उसे देता है. इससे जातक कि रुचि व शौक देखे जाते है. यह घर लेखन की भी जानकारी देता है. इस भाव से जातक में संगीत के प्रति लगाव को भी देखा जाता है. इस घर में जो भी राशि होती है उसके गुणों के अनुसार व्यक्ति का शौक होता है.

कुण्डली में तीसरे भाव का महत्व | Importance of Third House in Kundli

तीसरे घर से लेखन तथा कम दूरी की यात्राओं का विचार किया जाता है. बुद्धि तथा पराक्रम होने से सभी काम सरलता से पूरा जाता हैं. इसलिए इस भाव से कार्य कुशलता के विषय में भी जाना जा सकात है. कम्युनिकेशन के लिए, सभी प्रकार के समाचार पत्र, मीडिया व संप्रेषण संबन्धी कार्य इसी घर से देखे जाते है, प्रकाशन संस्थाएं भी इस भाव के अन्तर्गत आती है.

भाई-बन्धुओं में कमी के लिये इस घर से विचार किया जाता है यह उनके स्वास्थ्य का बोध भी कराता है. पड़ोसियों से सम्बन्ध का भी विचार इससे घर से किया जा सकता है. कार्य क्षेत्र में बदलाव का कारण भी बन सकता है. खेल-कूद में सफलता के लिए भी इसी घर से विचार किया जाता है.

इस भाव को अपोक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषढाय के नाम से भी जाना जाता है. यह भाव गरदन, भुजाएं, छाती का ऊपरी भाग, कान, स्नायुतंत्र इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव दायें कान, दायें बाजू, जननांग का दायें भाव की व्याख्या करता है.

तृतीय भाव से कुण्डली के बारे में जानने हेतु जातक के इस भाव में किस ग्रह की युति है और किस भाव से इसका संबंध आ रहा है इन सभी बातों को समझना आवश्यक होता है, किसी जातक के जीवन काल में उसकेभाईयों तथा दोस्तों से होने वाले लाभ तथा हानि के बारे में जानकारी प्राप्त करने केलिए कुंडली के इस भाव का ध्यानपूर्वक अध्ययन में यह देखा होता है कि कुंडली में तीसरा भाव कितना मजबूत है.

कुण्डली के तृतीय भाव का फल कथन | Results of third house in kundli

यदि तीसरा भाव मजबूत हो और किसी अच्छे ग्रह के प्रभाव में हो तो ऎसी स्थिति में जातक परिश्रम करने से अपने जीवन काल में अपने भाईयों, दोस्तों की सहायता भी खूब पाता है. अपनी मेहन और साहस से जातक खूब सफलताएं पाता है. लोगों का पूर्ण सहयोग भी जातक को ऊंचाईयां छूने में मददगार होता है.

समर्थकों के सहयोग से सफलतायें प्राप्त करते हैं, जबकि दूसरी ओर यदि जातक की कुंडली में तीसरे भाव पर अशुभ बुरे ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों तथा दोस्तों के कारण बार-बार हानि उठाते हैं तथा इनके दोस्त या भाई इनके साथ बहुत जरुरत के समय पर विश्वासघात भी कर सकते हैं.

शरीर के कुछ हिस्सों तथा श्वास लेने की प्रणाली को भी दर्शाता है तथा इस भाव पर किसी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली धारक को मस्तिष्क संबंधित रोगों अथवा श्व्सन संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है।

कुण्डली का तृतीय भाव यदि राहु केतु से प्रभावित हो तो जातक संतान रूप में अपने घर में ज्येष्ठ या अनुज होता है. साथ ही उसमें भाव में राहु और केतु का प्रभाव पड़ने से परेशानी भी आती है. यह संबंधों में तनाव को भी ला सकता है. तीसरा भाव उच्चता लिए हो तो स्वाभिमान में बल आता है जातक को लोगों का सामना करने की हिम्मत मिलती है.

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कर्क लग्न : होते हैं भावुक, आईये जानते हैं इनके जीवन के रहस्यों को

भचक्र में स्थित सभी बारह राशियों का अपना स्वतंत्र महत्व होता है. सभी के अपने कारकत्व, विशेषताएँ और महत्व होता है. जब कोई एक राशि लग्न में उदय होती है तब उसका प्रभाव व्यक्ति विशेष की कुंडली पर पड़ता है.

राशियों की इस श्रृंखला में आज हम कर्क राशि के बारे में बात करेगें कि जब यह लग्न में उदय होती है तब क्या – क्या प्रभाव पड़ता है. कर्क लग्न के लिए शुभ – अशुभ ग्रहो की चर्चा भी की जाएगी.

कर्क राशि की विशेषताएँ | characteristics of Cancer Sign

कर्क राशि भचक्र की चतुर्थ राशि है और इसका विस्तार 90 अंश से 120 अंश तक फैला हुआ है. इस राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा है और इसका चिन्ह केकड़ा होता है. केकड़ा पानी के पास दलदली जमीन में रहता है.

इस राशि का तत्व जल होता है और यह स्त्री संज्ञक राशि होती है इसलिए इस राशि के पुरुषों में भी स्त्रियोचित्त व्यवहार देखने को मिल सकता है. कर्क राशि की गणना चर राशि में होती है इसलिए इस राशि के प्रभाव वाला व्यक्ति सदा कुछ ना कुछ करते रहता है.

कर्क लग्न के व्यक्ति का व्यक्तित्व | Cancer Ascendant and Your Personality Traits

कर्क लग्न के व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा होगा, आइए इस पर चर्चा करते हैं. यदि आपका लग्न कर्क है तब चंद्र कलाओ की भांति आपका मूड बना रहेगा, इसका अर्थ यह हुआ कि आप किसी भी बात पर बहुत जल्दी नाराज हो सकते हैं तो शीघ्र ही किसी अन्य बात पर खुश भी हो सकते हैं.

कर्क लग्न जल तत्व होता है इसलिए आप अत्यधिक भावुक व्यक्ति होगें. आप दूसरों के दुख से भी जल्दी ही पिघलने वाले व्यक्ति होगें. जरा – जरा सी बात से आपका मन बेचैन व व्याकुल हो सकता है. अत्यधिक भावुक होने से आपकी भावनाएँ आपके सभी निर्णयों में शामिल हो सकती है. इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको एक बार विचार अवश्य कर लेना चाहिए.

आप लचीले स्वभाव के व्यक्ति होते हैं इसलिए हर तरह की परिस्थिति में स्वयं को ढ़ालने में सक्षम भी होते हैं. आप केकड़े के समान होगें अर्थात जिस प्रकार केकड़ा अपने पंजें में एक बार किसी चीज को जकड़ लेता है तब उसे आसानी से छोड़ता नही हैं. उसी प्रकार आप जिस बात को पकड़ लेगें फिर उसे नहीं छोड़ेगें. एक बार जो मित्र बन गया उसकी मित्रता के लिए जी जान भी दे देगें लेकिन जिससे शत्रुता हो गई फिर उस से अच्छी तरह से शत्रुता ही निभाएंगे.

यदि किसी व्यक्ति से आप भावनात्मक रुप से जुड़ जाते हैं तब बरसों तक आप उसे निभाते भी हैं. आप बड़ी – बड़ी योजनाओ के सपने अधिक देखते हैं लेकिन साथ ही आप परिश्रमी व उद्यमी भी होते हैं. आपको कला से संबंधित क्षेत्रों में रुचि होती है. इसके अलावा आपको प्राकृतिक सौन्दर्य से भी लगाव होता है. आपको जलीय स्थान अच्छे लगते हैं और आप भ्रमणप्रिय व्यक्ति होते हैं.

कर्क लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Cancer Ascendant

कर्क लग्न के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देगें उसके बारे में बात करते हैं. कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा होता है इसलिए आपके लिए यह अति शुभ प्रदान करने वाला ग्रह होगा. इस लग्न के लिए मंगल योगकारी ग्रह होता है इसलिए यह भी आपके लिए अति शुभ होगा.

मंगल पंचम भाव और दशम भाव का स्वामी होने से शुभ फल प्रदान करता है. पंचम त्रिकोण स्थान तो दशम केन्द्र स्थान होता है और केन्द्र्/त्रिकोण का संबंध होने पर शुभ फल मिलते हैं. गुरु इस लग्न के लिए भाग्येश होकर अति शुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह होता है. गुरु की दूसरी राशि मीन नवम भाव में आती है. हालांकि गुरु की मूल त्रिकोण राशि, धनु छठे भाव में आती है लेकिन तब भी गुरु अशुभ फल नहीं देते हैं.

कर्क लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Cancer Ascendant

अंत में कर्क लग्न के लिए अशुभ ग्रहों की बात करते हैं. इस लग्न के लिए सूर्य सम माना जाता है क्योकि यह दूसरे भाव के स्वामी हैं और दूसरा भाव सम होता है. दूसरे भाव को मारक माना गया है लेकिन सूर्य को मारक का दोष नहीं लगता है. इसलिए यह कर्क लग्न के लिए सम हो जाते हैं.

इस लग्न के लिए बुध तीसरे और द्वादश भाव के स्वामी होने से अति अशुभ होते हैं. शुक्र चतुर्थ व एकादश भाव के स्वामी है लेकिन शुभ नहीं है. चतुर्थ भाव केन्द्र स्थान होने से तटस्थ हो जाता है और एकादश भाव त्रिषडाय भाव कहा जाता है.

कर्क लग्न के लिए शनि सबसे अधिक अशुभ माने जाते हैं क्योकि यह दो अशुभ भावों के स्वामी बन जाते हैं. शनि सप्तम भाव व अष्टम भाव के स्वामी हैं और दोनो ही भाव अशुभ हैं. सप्तम भाव मारक तो अष्टम भाव त्रिक भाव है.

कर्क लग्न के लिए उपाय | Remedies for Cancer Ascendant

अंत में आपको कर्क लग्न के लिए शुभ रत्नो के बारे में भी बता देते हैं. आपके लिए मोती, मूंगा व पुखराज धारण करना शुभ होगा. अगर आप महंगे रत्न खरीदने में असमर्थ हैं तब आप चाहे तो इनके उपरत्न भी पहन सकते हैं.

लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि इन रत्नों को आप तभी पहनें जब इनके स्वामी ग्रह कुंडली में कमजोर अवस्था में स्थित हों. आप चंद्रमा के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा व गुरु के लिए पुखराज पहन सकते है.

यदि आपकी जन्म कुंडली में किसी अशुभ ग्रह की दशा या अन्तर्दशा चल रही हो तब आप उसके मंत्रों का जाप अवश्य करें इससे अशुभ फलों में कमी होगी. आपकी कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे संबंधित दान व व्रत भी आप कर सकते हैं.

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मिथुन लग्न का आठवां नवांश | Eighth Navamsha of Gemini Ascendant

मिथुन लग्न का आठवां नवांश वृष राशि का होता है. इस राशि के नवांश स्वरूप जातक देखने में हष्ट-पुष्ट व बलशाली होता है.गठा हुआ शरीर होता है. इस नवांश के स्वामी ग्रह शुक्र हैं इसमें जन्मे जातक की त्वचा कोमल और सुंदर होती है. कद काठी अच्छी होती है. इनके स्वभाव में गहन चिंतन-मनन करने वाला होता है.

यह बोलने में स्पष्ट और प्रभावशाली होते हैं. एक अच्छे वक्ता के गुण इनमें खूब होते हैं, जन समूह को अपनी वाक कुशलता द्वारा अपनी ओर खिंच लेने की कला इन्हें खूब अच्छे से आती है. तर्क वितर्क करने में माहिर होते हैं और किसी को आसानी से अपने समक्ष टिकने नहीं देते हैं.

इनके ज्ञान में हमेशा वृद्धि होती है, यह धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप काम करने वाले व्यक्ति होते हैं. किसी का अहित करने की चाह इनमें नहीं होती है अपितु अपने शत्रुओं को भी यह क्षमा कर देते हैं. अपने साथियों के प्रति इनकी भावनाएं बहुत उत्साहवर्धक और अच्छी होती हैं. इसी कारण इनके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है, सभी के समक्ष यह आदर पाते हैं.

बहुमूल्य वस्तुओं का शौक होता है, आभुषणों और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित रहने की चाह रखते हैं. बुद्धिमान एवं धनवान बनाता है.इन्हें कारोबार में अच्छी सफलता मिलती है. विनोदी व्यक्तित्व प्रदान करता है.ऐसा व्यक्ति जीवन को आनन्द और उल्लास के साथ जीने की इच्छा रखता है.

इन्हें सरकारी पक्ष से अनुकूलता प्राप्त होती है. जीवनसाथी के संदर्भ में भी यह मंगलकारी होता है.व्यक्ति को सुन्दर और बुद्धिमान जीवनसाथी का साथ मिलता है. करोबार एवं रोजगार में लाभ दिलाता है. साझेदारी खूब फलती

मिथुन लग्न के आठवें नवांश का प्रभाव | Effects of Eighth Navamsha of Gemini Ascendant

इस नवांश में जातक के खर्चे अधिक बने रह सकते हैं जीवन में उसे इस ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. किसी भी कार्य में धन की स्थिति तो प्राय: बनी ही रहती है. कुछ आर्थिक स्थितियों के उतार-चढा़व होने पर जातक को जीवन में अनेक परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है किंतु अपनी बल और शक्ति सामर्थ्य द्वारा वह कई प्रकार की बाधाओं को दूर करता हुआ आगे बढ़ने की क्षमता रखता है और जीवन में अपनी स्थिति को सदृढ़ बनाने में भी सफल हो सकता है.

इस नवांश से प्रभावित जातक में धर्मार्थ के कार्यों के प्रति भी अधिक रूझान रहता है. कुछ न कुछ सामाजिक गतिविधियों में वह लगा रह सकता है. सामाजिक सरोकार से पूर्ण वह सेवार्थ के कामों में पूर्ण रूप से लगा रह सकता है. अपने शुभ वचनों से यह दूसरे लोगों का मन मोह लेने की क्षमता रखते हैं ओर सभी के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार से सम्मनित स्थान भी पाते हैं आने वाले सभी कामों में इनका योगदान स्मरणीय रहता है और लोगों के मध्य इनकी ख्याती भी खूब होती है. जातक के अच्छे सदगुण इसके शुभ कर्मों में वृद्धि करने वाले बनते हैं जो पुण्य एवं सत मार्ग का रास्ता आसान बनाते हैं.

अपने मित्रों के लिए इनका प्रेम सदैव बना रहता है. सहयोगियों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और उनके लिए आदरणीय बने रहते हैं. इसी के साथ सभी लोग इनके प्रशंसक बने रहते हैं. इनकी भावनाएं अपने लोगों और सभी के लिए ही उत्साहवर्धक रहती हैं. और अच्छी होती हैं उनसे द्वेष पालने की इनकी कोई चाह नहीं होती है इसलिए इनसे अधिक देर तक कोई दूर नहीं रह सकता है.

मिथुन लग्न का आठवें नवांश महत्व | Importance of Eighth Navamsha of Gemini Ascendant

जीवन साथी के साथ अच्छा समय व्यतीत करते हैं. इनका जीवन साथी काफी परिश्रमी होता है और अच्छे गुणों से सम्पन्न होता है. परंतु उसमें महत्वकांक्षा अधिक होती है और निडर भी खूब होता है. अपने कामों को करने की दक्षता रखता है. किसी भी कार्य को करने से पहले उसे योजनापूर्ण तरीके से लेकर चलता है. विद्या के क्षेत्र में प्रयासरत रहता है और उसमें रूचि भी खूब रखता है.

इनका जीवन साथी प्राय: सुंदर ओर अच्छे स्वास्थ्य वाला होता है. इनके साथ जीवन के सभी पहलुओं को जीने की चाह रखने वाला होता है. आप दोनों में ही आध्यात्मिक चाह एक जैसी ही रहती है इसलिए एक दुसरे कि भावनाओं को समझने कि परख भी खूब रखते हैं. एक दूसरे का साथ मिलता है जीवन के उतार-चढावों को साथ मिलकर झेलते हैं.

इनका जीवन साथी काफी परिश्रम होता है, जीवन में अपने बलबूते पर आगे बढ़ने का प्रयास करता है. अपने कामों में सदगुणों के साथ आगे चलता है. महत्वकांक्षाओं के पक्के होते हैं और सपनों को साकार करने वाले होते हैं. इस नवांश का पूर्ण प्रभाव होने से इन व्यक्तियों में सौंदर्य व प्रेम की चाहत स्वा‍भाविक रूप से होती है.

व्यक्तित्व आकर्षक होता है. इनकी अभिरू‍चि कलात्मक होती है, कला में विशेष रूचि खाने-पीने का शौक होता है. घर से बाहर घूमने-फिरने, आराम करने की प्रवृत्ति, इस राशि के व्यक्ति व्यसनाधीन जल्दी हो सकते हैं जिससे स्वास्थ्य में गिरावट का सामना भी करना पड़ सकता है.

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सिंह लग्न: सब पर भारी पड़ते हैं सिंह लग्न वाले

अभी तक हम आपके समक्ष वैदिक ज्योतिष की बहुत सी बातों की चर्चा हम करते आ रहे हैं. वैदिक ज्योतिष के मूलभूत आधार बिंदुओ की हम चर्चा करते आ रहे है. इन्हीं कड़ियों को आगे बढ़ाते हुए आज हम सिंह राशि की चर्चा करेगें. सिंह राशि का परिचय, इसके कारकत्व व सिंह लग्न के लिए शुभ – अशुभ ग्रहों के बारे में आपको बताया जाएगा.

सिंह राशि का परिचय व कारकत्व | An Introduction to Leo Sign

सिंह राशि भचक्र में पांचवें स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार भचक्र में 120 अंश से 150 अंश तक फैला हुआ है. इस राशि को अग्नि तत्व राशि की श्रेणी में रखा गया है.

इस राशि की गणना स्थिर राशि में होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव में आने वाला व्यक्ति स्थिर रहता है उसे जीवन में टिकाव पसंद होता है. इस राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है जिसे सभी ग्रहों में राजा की उपाधि प्राप्त है. सिंह राशि का प्रतीक चिन्ह शेर है और शेर को भी जंगल का राजा माना गया है.

सिंह राशि के व्यक्ति की विशेषताएँ | General Characteristics of Leo Sign

आपका जन्म अगर सिंह लग्न में हुआ है तब आप साहस से भरपूर होगें. आप निर्भीक व पराक्रमी व्यक्ति होगें. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप आसानी से घबराने वाले व्यक्ति नहीं होते हैं. आप अपनी संस्था के कुशल संचालक हो सकते हैं अथवा आपको जो भी काम दिया जाएगा उसे आप बहुत ही खूबसूरती से संचालित करते हैं और कामयाब होते हैं.

सिंह राशि स्थिर स्वभाव की राशि है इसलिए आपके कार्यों में ठहराव रहेगा और आप बुद्धिमत्तापूर्ण रुप से निर्णय लेगें. आप जल्दबाजी में कोई काम करना पसंद नहीं करेगें. आप पहले उसके दूरगमी परिणाम देखेगे फिर आगे बढे़गें.

आपके अंदर नेतृत्व के सभी गुण मौजूद होगें और आप एक अच्छे लीडर बन सकते हैं. आप अपनी टीम को आगे बढ़ाने की सभी विशेषताएँ रखते हैं. आप हठीले किस्म के व्यक्ति हो सकते हैं. एक बार जो जिद ठान ली तो बस ठान ली, उसे फिर कोई नहीं बदल सकता है. आप अत्यधिक महत्वाकांक्षाएँ भी रखते हैं और उन्हें पूरा करने का हर भरसक प्रयास भी करते हैं. आपके अंदर आत्मविश्वास भरा होता है, इसी कारण आपको कोई आसानी से आपके इरादों से हिला नही सकता है.

सिंह राशि की गिनती राजसी राशि में की जाती है और इसके स्वामी सूर्य को सभी नौ ग्रहों में राजा की उपाधि दी गई है, इसलिए आपके भीतर भी राजनीति में भाग लेने की इच्छा रहती है और मौका मिलते ही आप किसी ना किसी संस्था के सदस्य बनने के लिए चुनाव में भाग ले भी लेते हैं.

सिंह लग्न के लिए शुभ ग्रह | Auspicious Planets for Leo Ascendant

सिंह लग्न के लिए कौण से ग्रह शुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में चर्चा करते हैं. इस लग्न के लिए सूर्य लग्नेश होकर अति शुभ बन जाता है. सिंह लग्न के लिए दूसरा शुभ ग्रह बृहस्पति होता है. बृहस्पति पंचम भाव के स्वामी होते हैं जो कि सदा शुभ होता है. हालांकि बृहस्पति की मीन राशि अष्टम भाव में पड़ती है लेकिन तब भी इसे शुभ ही माना गया है.

बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि धनु, त्रिकोण स्थान, पंचम में पड़ती है, इसलिए यह ग्रह शुभ ही माना गया है. मंगल इस लग्न के लिए योगकारी होने से शुभफलदायी होते हैं क्योकि मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी होते हैं.

चतुर्थ भाव केन्द्र् माना गया है और नवम भाव त्रिकोण माना गया है. इसलिए मंगल केन्द्र्/त्रिकोण के स्वामी होकर अत्यधिक शुभ बन जाते है.

सिंह लग्न के लिए अशुभ ग्रह | Inauspicious Planets for Leo Ascendant

सिंह लग्न के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देने की क्षमता रखते हैं, अब उनके बारे में जानने का प्रयास करते हैं. सिंह लग्न के लिए शुक्र तीसरे व दशम भाव का स्वामी होकर सम बन जाता है.

सिंह लग्न के लिए शनि छठे व सातवें के स्वामी होकर अति अशुभ बन जाते हैं. चंद्रमा द्वादश भाव के स्वामी होकर अशुभ होते हैं. द्वादश भाव को व्यय भाव के रुप में भी देखा जाता है. बुध इस लग्न के लिए धनेश व लाभेश होते हैं अर्थात दूसरे व एकादश भाव के स्वामी होते हैं. बुध इस लग्न के लिए दूसरे भाव के स्वामी होकर मारक बन जाते हैं और साथ ही त्रिषडाय भाव के स्वामी भी होने से और अशुभ हो जाते हैं.

सिंह लग्न के लिए शुभ रत्न व मंत्र जाप | Auspicious Gemstones and Mantras for Leo Ascendant

अंत में सिंह लग्न के लिए शुभ रत्नों की चर्चा भी कर ही लेते हैं. सिंह लग्न होने से आपके लिए माणिक्य शुभ रत्न है क्योकि आपके लग्न का स्वामी सूर्य है और माणिक्य सूर्य के अधिकार में आता है.

आपके लिए पुखराज व मूंगा धारण करना भी शुभ है. पुखराज आप बृहस्पति के लिए पहन सकते हैं और मूंगा आप मंगल के लिए धारण कर सकते हैं. आप चाहे तो इन रत्नों का उपरत्न भी पहन सकते हैं.

जन्म कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे संबंधित मंत्र जाप भी आपको अवश्य करने चाहिए. कुंडली में अशुभ ग्रह से संबंधित ग्रह की दशा में आप दानादि भी कर सकते हैं और अशुभ ग्रह से संबंधित वस्तुओ से स्नान भी कर सकते हैं.

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जन्म कुंडली में प्रापर्टी योग | Yoga for Property in Janam Kundali

हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह अपने सपनो का घर अवश्य बनाएँ. जिसे वह अपने मन से सजाए-संवारे. आप में से बहुत से लोगों का यह सपना पूरा हो जाता है लेकिन बहुत से लोग अपने इस सपने को पूरा ही नही कर पाते हैं. कोई ना कोई अड़चन राह में आ जाती है. आप में से कुछ लोग ऎसे भी होगें जो घर तो बना लेते हैं लेकिन उसमें रह नहीं पाते हैं अथवा घर में कलह क्लेश बने रहते हैं. कई लोगों के पास एक से अधिक भूमि-मकान होते हैं तो किसी के पास एक भी नहीं होता है.

आज हम आपकी जन्म कुंडली में प्रॉपर्टी बनाने के योगो के बारे में बात करेगें कि योग हैं या नहीं और अगर हैं तो किस तरह के योग बन रहे हैं.

जन्म कुंडली में प्रापर्टी का विश्लेषण | Analysis of Property in Janma Kundali

जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव प्रॉपर्टी के लिए मुख्य रुप से देखा जाता है. चतुर्थ भाव से व्यक्ति की स्वयं की बनाई हुई सम्पत्ति को देखा जाता है. यदि जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रह का प्रभाव अधिक है तब व्यक्ति स्वयं की भूमि बनाता है.

जन्म कुंडली में मंगल को भूमि का मुख्य कारक माना गया है. जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव या चतुर्थेश से मंगल का संबंध बनने पर व्यक्ति अपना घर अवश्य बनाता है. जन्म कुंडली में जब एकादश का संबंध चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति एक से अधिक मकान बनाता है लेकिन यह संबंध शुभ व बली होना चाहिए.

जन्म कुंडली में लग्नेश, चतुर्थेश व मंगल का संबंध बनने पर भी व्यक्ति भूमि प्राप्त करता है अथवा अपना मकान बनाता है. जन्म कुंडली में चतुर्थ व द्वादश भाव का बली संबंध बनने पर व्यक्ति घर से दूर भूमि प्राप्त करता है या विदेश में घर बनाता है.

जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ, अष्टम व एकादश भाव का संबंध बन रहा हो तब व्यक्ति को पैतृक संपति मिलती है. जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब भी व्यक्ति को पैतृक संपत्ति मिलती है.

जन्म कुंडली में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ भाव या भावेश या दशाओं से बने बिना घर का निर्माण नही होता है. इसलिए गृह निर्माण में मंगल व शनि की भूमिका मुख्य मानी गई है. मंगल भूमि का कारक है तो शनि निर्माण हैं इसलिए घर बनाने में इनका अहम रोल होता है.

भूमि निर्माण में चतुर्थांश कुंडली का महत्व | Importance of Chaturthansh Kundali in Construction of Property

जन्म कुंडली के साथ संबंधित वर्ग कुंडलियों का विश्लेषण भी करना आवश्यक है. भूमि के लिए वैदिक ज्योतिष में चतुर्थांश कुंडली को महत्व दिया गया है. भूमि आदि के विश्लेषण के लिए जन्म कुंडली के साथ चतुर्थांश कुंडली का अध्ययन अवश्य करना चाहिए.

यदि जन्म कुंडली में प्रॉपर्टी के योग हैं और वर्ग कुंडली में नहीं है तब व्यक्ति को प्रॉपर्टी बनाने में दिक्कते आती हैं. चतुर्थांश कुंडली का आंकलन प्रॉपर्टी के लिए किया जाता है. चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश व चतुर्थ भाव/भावेश पर शुभ प्रभाव होना चाहिए अन्यथा प्रॉपर्टी नहीं बन पाती है.

चतुर्थांश कुंडली के लग्न/लग्नेश व चतुर्थ/चतुर्थेश पर मंगल व शनि का प्रभाव होना चाहिए तभी भूमि की प्राप्ति होती है अथवा व्यक्ति घर बना पाता है. यदि जन्म कुंडली में प्रॉपर्टी बनाने के योग हैं और चतुर्थांश कुंडली में योग नहीं हैं तब व्यक्ति को परेशानियाँ आती हैं. जन्म कुंडली में योग नहीं हैं और चतुर्थांश कुंडली में योग हैं तब कुछ परेशानियों के बाद प्रॉपर्टी बन जाती है.

प्रॉपर्टी बनने में बाधाएँ | Obstacles in Constructing a Property

आइए अब प्रॉपर्टी बनने में होने वाली बाधाओं व रुकावटों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं. यदि जन्म कुंडली में मंगल का संबंध चतुर्थ से ना बन रहा हो तब अपना स्वयं का मकान बनाने में बाधाएँ आती हैं.

जन्म कुंडली में शनि का संबंध चतुर्थ से ना बन रहा हो तब व्यक्ति मकान का निर्माण करने में रुकावटों का सामना कर सकता है. जन्म कुंडली में चतुर्थ से संबंधित दशा व गोचर एक साथ ना मिल पा रहे हों तब भी व्यक्ति भूमि प्राप्त करने में बाधाओं का सामना कर सकता है.

चतुर्थ व चतुर्थेश अशुभ व पाप प्रभाव में हों स्थित हों तब मकान नही बन पाता है. शनि की तीसरी दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ने पर व्यक्ति का अपना घर होते भी वह किन्हीं कारणो से उसमें रह नहीं पाता है. जीवन में एक से अधिक घर भी बदल सकता है. यदि चतुर्थ भाव क संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब प्रॉपर्टी को लेकर विवाद अथवा कोर्ट केस आदि हो सकते हैं.

उपरोक्त सभी बातों का आंकलन जन्म कुंडली के साथ चतुर्थांश कुंडली में भी करना चाहिए और फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए. जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव में अकेला मंगल स्थित है तब प्रॉपर्टी होते भी कलह बना रह सकता है. मकान अथवा जमीन – जायदाद को लेकर कोई ना कोई विवाद हो सकता है.

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मिथुन लग्न के छठे नवमांश का फल

मिथुन लग्न का छठा नवांश मीन राशि का होता है जिसके स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं. मिथुन लग्न का यह नवांश काफी अनुकूल फल देने वाला होता है. इसके प्रभाव से जातक का व्यक्तिव आकर्षण से युक्त होता है और जातक दूसरों को प्रभावित करने में काफी सक्षम होता है. जातक के दांत सुंदर होते हैं. होंठ गुलाबी रंग लिए होते हैं. शरीर से बलिष्ठ व त्वचा मुलायम व सुंदर होती है.

जातक प्रतिभावान और दिमागी होता है. उसके कार्यों में बौद्धिकता के गुण स्पष्ट नज़र आते हैं, किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता को करने में अग्रसर रहता है और जीवन में जातक को आगे बढ़ने की चाह बनी रहती है. जातक को गुरूजनों का पूर्ण साथ मिलता है और वह अपने गुरूओं से सम्मान पाता है. जातक के इन्हीं विशेष गुणों के द्वारा समाज में यह अपनी स्थिति को उन्नत करने में सक्षम होता है.

मिथुन लग्न के छठे नवांश का प्रभाव | Effects of Sixth Navamsha of Gemini Ascendant

मिथुन लग्न के छठे नवां में जन्मा जातक अधिकतर जिद्दी, अत्यधिक धार्मिक, क्रमठ, उदासीन और रूढ़िवादी हो सकता है. शारीरिक रूप से मध्यम आकार के मोटे, साँवले रंग के होते हैं. आम तौर पर, सिद्धांतों के अनुयायी रूढ़िवादी होते हैं. धार्मिक रिवाजों और प्रथाओं के पालन में अंधविश्वासी, कठोर भी हो सकते हैं. महत्वाकांक्षी, पैसे खर्च करने में मितव्ययी होते हैं. आत्मविश्वास की कमी भी होती है.

दयालु होते हैं, इनके स्वभाव में करूणा का भाव है. सहानुभूति, संवेदना युक्त होते हैं. दूसरों के दु:खों से आप शीघ्र दु:खी हो जाते है. इन्हें अपने स्वभाव को कठोर होने से बचाना चाहिए तथा स्वयं को समय के साथ ढालने का प्रयास करना चाहिए. सेवा कार्यो में बढ चढ कर भाग लेते है. मौलिक व रचनात्मक कार्यो में मन अधिक लगता है. यदि यह नेतृत्व शक्ति का विकास करें तो उतम नेता बनने की योग्यता रखते है.

अत्यधिक पारम्परिक होने से बचना चाहिए, आधुनिक विचारों का स्वागत करने की प्रवृति स्वयं में लाने कि कोशिश करें. स्वभाव में धैर्य की कमी को दूर करने का प्रयास करें तथा स्वभाव में अहं का भाव न आने दें. इसके अतिरिक्त क्रोध में कमी करना भी हितकारी रहेगा.

मिथुन लग्न के छठे नवांश का फल | Result of Sixth Navamsha of Gemini Ascendant

इनकी बुद्धि इनकी कुशाग्र होती है कि यह किसी भी कार्य को करने में आपकी योग्यता अवश्य रहती है. अपनी वाणी के प्रभाव से यह दूसरों को अपने प्रभाव से प्रभावित रखते हैं सभी इनके बोलने की कुशलता से प्रभावित रहते हैं मनोविनोद की अच्छी समझ होती है इनमें. इन्हें समाज के उच्च वर्ग का सहयोग और सम्मान प्राप्त होता है, उत्तम वाहन सुख और अच्छे घर में निवास करते हैं.

व्यवसाय की अच्छी समझ होती है इनमें, साझेदारी में हों या स्वयं द्वारा कार्य करते हों दोनों ही क्षेत्रों में इनका रूतबा अच्छा रहता है. इन पर दूसरे लोगों का विश्वास बना रहता है. घटनाओं का पूर्वाभास करने की कला भी इनमें खूब होती है.

इनका जीवन साथी व्यवहार कुशल होगा, आर्थिक मामलों को समझने में दक्ष होगा. अपने सामाजिक और पारिवारिक कार्यों में उसका पूर्ण सहयोग उसे मिल सकेगा. स्वास्थ्य की दृष्टि से वह सामान्यत: कुछ कमी का अनुभव कर सकता है. धार्मिक कार्यों को करने में भी वह दिलचस्पी लेगा. धार्मिक यात्राओं पर जाने की चाह रखने वाला होगा.

इस लग्न के प्रभाव स्वरूप जो भी फल जातक को मिलते हैं वह ग्रहों की स्थिति के अनुरूप ही प्रभाव डालने वाले होते हैं जातक इन्ही की स्थिति व युति द्वारा फलों को पाता है.

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