मुहूर्त कैसे निकालें आईये जानें महत्वपूर्ण बातें

आज इस लेख के माध्यम से हम मुहूर्त से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर विचार करना चाहेगें कि कौन सा मुहूर्त कब अच्छा होता है और इसमें किन – किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

गोधूलि लग्न | Godhuli Lagna

गोधूलि लग्न का अर्थ है कि सूर्योदय के समय जो राशि लग्न में होती है उससे सातवीं राशि जो भी हो वह गोधूलि लग्न कहलाती है. गोधूलि लग्न को सभी कामों के लिए शुभ माना जाता है. इस लग्न में कई सारे दोषो का विचार नही किया जाता है. इसलिए इसे शुभ माना जाता है. जैसे इस लग्न में नक्षत्र, तिथि, करण, वार, नवांश, मुहूर्त, योग, आठवें भाव में बैठे ग्रह, जामित्र दोष आदि का विचार नहीं किया जाता है. यह लग्न सूर्य की स्थिति से सातवाँ होता है. इस लग्न में चंद्रमा दूसरे, तीसरे, ग्यारहवें, भाव में स्थित होने से शुभ माना जाता है.

इस गोधूलि मुहूर्त के लग्न में चंद्रमा या मंगल नहीं होना चाहिए, चंद्रमा का छठे और मंगल का सातवें भाव में होना भी त्यागना चाहिए. इस लग्न से आठवाँ भाव खाली होना चाहिए. इस लग्न की प्रशंसा कई पुस्तकों में की गई है.

गोधूलि मुहूर्त के दोष | Defects of Godhuli Muhrat

इस मुहूर्त में कई दोष भी पाए जाते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं और इनका त्यागना ही श्रेयस्कर माना गया है.

  • गोधूलि मुहूर्त में रविवार का दिन नहीं लेना चाहिए, इसका त्याग किया गया है.

  • कुलिक मुहूर्त काल, क्रान्ति साम्य, गोधूलि मुहूर्त के लग्न, छठे और आठवें भाव में चंद्रमा का त्याग करना चाहिए.
  • गोधूलि मुहूर्त के समय एक पापी ग्रह का उसी लग्न नक्षत्र में होना शुभ नहीं है.
  • गोधूलि लग्न से चंद्रमा यदि पहले, छठे या आठवें भाव में है तब यह कन्या के लिए अशुभ होता है. यदि इस लग्न के पहले, सातवें या आठवें भाव में मंगल स्थित है तब यह वर के लिए अशुभ होता है.
  • वीरवार के दिन सूर्यास्त से पहले के गोधूलि मुहूर्त को अशुभ माना जाता है, किन्तु सूर्यास्त के बाद का समय ले सकते हैं.
  • शनिवार के दिन सूर्यास्त से पहले का गोधूलि मुहूर्त शुभ होता है लेकिन बाद का नहीं.


मुहूर्त में त्याज्य समय | Inauspisious Time in Muhurat

मुहूर्त में कुछ समय ऎसा भी होता है जिसका सर्वदा त्याग किया जाता है. इन्हें नकारात्मक समय माना जाता है जिन्हें शुभ कार्यो के लिए छोड़ देना चाहिए. यह समय किसी भी समय अन्तराल जैसे नक्षत्र, तिथि या वार में एक समय विशेष में आता है. नक्षत्र आरंभ होने के बाद तिथि या वार का नकारात्मक समय अन्तराल उस नक्षत्र, तिथि या वार के आरंभ होने के कुछ समय बाद ही आता है. यह समय नकारात्मक समय से 1 घंटा 36 मिनट का होता है.

नक्षत्र त्याज्य काल | Nakshatra Inauspicious Period

नक्षत्र का अशुभ और त्याज्य काल कृतिका, पुनर्वसु, मघा और रेवती नक्षत्र के आरंभ होने के 30 घटी समाप्त होने पर, रोहिणी की 40 घटी समाप्त होने पर, आश्लेषा के 32 घटी समाप्त होने के बाद, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, उत्तराषाढ़ा और पुष्य के आरंभ होने के 20 घटी के बाद, आर्द्रा और हस्त के आरंभ होने के 21 घटी के बाद, अश्विनी के 50 घटी के बाद, उत्तराफाल्गुनी व शतभिषा के आरंभ होने के 18 घटी के बाद, उत्तराभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा और भरणी के आरंभ होने के 24 घटी बाद, विशाखा, स्वाती, मृगशिरा और ज्येष्ठा के आरंभ होने के 14 घटी बाद, पूर्वाभाद्रपद के आरंभ होने के 16 घटी बाद, अनुराधा, धनिष्ठा और श्रवण के आरंभ होने के 10 घटी बाद, मूल नक्षत्र के आरंभ होने के 56 घटी बाद शुरु होता है. यह अशुभ काल 4 घटी का होता है अर्थात 1 घंटा 36 मिनट.

तिथि में त्याज्य समय | Date Inauspicious Time

नक्षत्रों की ही भांति तिथि में भी कुछ समय का त्याग किया जाता है. तिथियों की विषघटी प्रतिपदा से चतुर्दशी, अमावस्या या पूर्णिमा के लिए क्रमश: 15, 5, 8, 7, 7, 5, 4, 1, 10, 3, 13, 14, 7, 8 आदि घटी के बाद अगली 4 घटियाँ होती हैं.

वार में त्याज्य काल | Day Inauspicious Time

वारों में भी कुछ समय का त्याग किया जाता है. वारो में विषघटी रविवार से आरंभ होकर शनिवार तक क्रमश: 20, 2, 12, 10, 7, 5 व 25 घटी के बाद अगली 4 घटियो का त्याग करना है.

उपरोक्त दोष निरस्त भी हो जाता है. जब चंद्रमा लग्न या त्रिकोण भाव में स्थित हो और लग्नेश अपने भाव, केन्द्र, त्रिकोण, स्ववर्ग या शुभ मित्र ग्रह की दृष्टि में है तब यह दोष निरस्त हो जाता है. चंद्रमा यदि मृगशिरा नक्षत्र में है तब भी यह दोष खतम हो जाता है.

Posted in Marriage, Muhurta, Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

जानें शनि की साढ़ेसाती और नक्षत्रों का व्यक्ति पर प्रभाव

जन्म चंद्र से जब गोचर का शनि बारहवें भाव में आता है तब व्यक्ति की साढ़ेसाती का प्रभाव आरंभ हो जाता है. यह साढ़ेसाती का पहला चरण माना जाता है. अब जन्म चंद्र के ऊपर शनि आता है तब दूसरा चरण और जन्म चंद्र से दूसरे भाव में शनि का गोचर होने पर साढ़ेसाती का अंतिम व तीसरा चरण होता है. आज इस लेख में हम साढ़ेसाती का विभिन्न नक्षत्रों में क्या प्रभाव पड़ता है उसके बारे में बताएंगें.

जब साढ़ेसाती का आरंभ होता है तब उस समय शनि जिस नक्षत्र में है उसे देखें और जन्म चंद्रमा जिस नक्षत्र में है उसे देखें. यदि जन्म नक्षत्र गोचर के शनि के नक्षत्र से अशुभ नक्षत्रों में है तब अशुभ फल मिलते हैं अन्यथा नहीं. आइए देखें कब-कब अशुभ फलों की प्राप्ति होती है.

  • यदि जन्म नक्षत्र पहला, दूसरा या तीसरा होता है तब हानि होने की संभावना बनती है, कई प्रकार के खतरे व्यक्ति को बने रह सकते हैं, अवांछित घटनाएँ हो सकती हैं.
  • यदि चौथे, पांचवें, छठे या सातवें स्थान पर आता है तब विजय खुशियाँ तथा सफलताएँ मिलती है.
  • आठवें, नवें, दसवें, ग्यारहवें, बारहवें या तेरहवें स्थान पर होने से अवांछनीय परिवर्तन, थकाने वाली लंबी यात्राएँ.
  • चौदहवाँ, पंद्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ या अठारहवें स्थान पर होने से धन संपत्ति का आगमन होता है, व्यक्ति को शुभ समाचार मिलते है, भाग्यशाली होता है, अन्य लोगों से सहायता मिलती है.
  • उन्नीसवाँ या बीसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को मिश्रित परिणाम मिलते हैं.
  • इक्कीसवाँ, बाईसवाँ अथवा तेईसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति के लिए शुभ रहता है. अच्छे परिणाम मिलने की संभावनाएँ बनती हैं.
  • चौबीसवाँ या पच्चीसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को सुख सुविधाएँ मिलती है.
  • छब्बीसवाँ या सत्ताईसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को शारीरि, मानसिक तथा आर्थिक सभी प्रकार की चिन्ताएँ घेरे रहती हैं.


कई विद्वानों का मत है कि साढ़ेसाती का परिणाम चंद्र राशि पर निर्भर करता है. चंद्र राशिश यदि शनि का मित्र है या शनि की राशि में चंद्रमा है अथवा चंद्रमा उच्च राशि में है अन्य किसी शुभ स्थिति में है तब साढ़ेसाती के परिणाम शुभ होते हैं.

मूर्ति निर्णय | Murti Verdict

मूर्ति निर्णय की विवेचना गोचर के फलों को देखने के लिए की जाती है. इसे हम शनि, राहु अथवा बृहस्पति के लिए देख सकते हैं कि इनका गोचर व्यक्ति विशेष के लिए कैसा रहेगा? जब भी कोई ग्रह राशि परिवर्तन करता है तब उस समय का गोचर का चंद्रमा देखें कि कहाँ है. अब अपने जन्म चंद्रमा से गोचर के चंद्रमा की गणना करें कि वह कौन सी राशि में पड़ता है.

  • यदि जन्म चंद्रमा से गोचर का चंद्रमा पहली, छठी या ग्यारहवीं राशि में होता है तब स्वर्ण मूर्ति होती है. यह स्वर्ण मूर्ति सबसे अधिक शुभ परिणाम देती हैं.
  • यदि दूसरी, पांचवीं या नवीं राशि में हो तब रजत मूर्ति होती है. यह भी शुभ परिणाम देती है लेकिन स्वर्ण से कुछ कम होते हैं.
  • यदि तीसरी, सातवीं या दसवीं राशि हो तब ताम्र मूर्ति होती है.यह ज्यादा शुभ नहीं होती है.
  • यदि चौथी, आठवीं या बारहवीं राशि हो तब लौह मूर्ति होती है. यह मूर्ति सबसे अधिक अशुभ परिणाम देती है.


साढ़ेसाती का शुभ तथा अशुभ समय | Auspicious and Inauspicious Time For Sadesati

चंद्र राशि चंद्र से बारहवाँ शनि चंद्र पर शनि चंद्र से दूसरे भाव में शनि
मेष मध्यम अशुभ शुभ
वृष अशुभ शुभ शुभ
मिथुन शुभ अतिशुभ अशुभ
कर्क शुभ अशुभ अशुभ
सिंह अशुभ अशुभ शुभ
कन्या अशुभ शुभ अतिशुभ
तुला शुभ अतिशुभ अशुभ
वृश्चिक शुभ अशुभ मध्यम
धनु शुभ मध्यम शुभ
मकर शुभ मध्यम शुभ
कुंभ शुभ अशुभ मध्यम
मीन शुभ मध्यम अशुभ


शनि की ढ़ैय्या | Shani Dhaiyya

शनि द्वारा एक राशि में व्यतीत किया गया समय शनि की ढ़ैय्या कहलाता है. यह ढ़ैय्या जन्म चंद्रमा से शनि के चतुर्थ या अष्टम भाव में होने पर होती है.

कंटक शनि या अर्धाष्टम शनि | Kantak or Adharshtam Saturn

जब गोचर का शनि जन्म चंद्रमा से चतुर्थ भाव में गोचर करता है तब इसे कंटक शनि अथवा अर्धाष्टम शनि कहते हैं.

अष्टम शनि | Ashtam Saturn

जब गोचर का शनि जन्म चंद्र से आठवें भाव से गुजरता है तब इसे अष्टम शनि कहते हैं.

Posted in Nakshatra, Vedic Astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

वैवाहिक सुख में कमी के कारण

वैदिक ज्योतिष में बहुत से अच्छे तथा बुरे योगों का उल्लेख मिलता है. इन योगों का फल कब मिलेगा इसका अध्ययन करना बहुत जरुरी है और इनका अध्ययन दशा, गोचर और कुंडली के योगो के आधार पार किया जाता है. किसी भी घटना के लिए कुंडली में सबसे पहले योग होने चाहिए, उसके बाद योगो से संबंधित ग्रह की दशा/अन्तर्दशा और गोचर का होना जरुरी माना गया है. आइए आज इस लेख के माध्यम से अरिष्ट का आंकलन करने का प्रयास करें.

आपके सामने आज जो उदाहरण कुंडली दी जा रही है वह एक महिला की है जिनका वैवाहिक जीवन कभी भी सुखी नहीं रहा. विवाह के बाद से ही इनके पति ने इन्हें हर तरह से परेशान किया, जबकि पति की आर्थिक स्थिति अच्छी होते भी यह पैसे को लेकर हमेशा परेशान रही. पति की ओर से आर्थिक सहायता ना मिलने के कारण यह अपना स्वयं का काम करती थी. इनकी दो संताने हुई लेकिन अपने बच्चो से भी पिता को लगाव नहीं था. अगर यह कुछ भी आवाज उठाती तो पति की मार का सामना करना पड़ता था. पति का अच्छा-खासा बिजनेस था लेकिन इन्हे कभी समझ नहीं आया कि इनका पति इनके साथ दुर्व्यवहार क्यो कर रहा है. विवाह के 16 वर्ष तक यह पति के कष्टों को सहन करती रही.

2007 के अक्तूबर माह में इस महिला को अपने पति के व्यवहार में कुछ बदलाव नजर आए. पति क स्वभाव कुछ नरम था और उसने पत्नी से कहा कि बेटे को मेरे साथ बिजनेस संभालने के लिए कहो हालांकि बच्चा अभी 15 वर्ष का ही था. इन बातों के चार दिन बाद ही एक दिन पति ने अपनी पत्नी से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगी कि मैने तुम्हारे साथ बुरा सुलूक किया है. फिर एक-दो दिन बाद ही स्वयं को आग लगाकर आत्महत्या कर ली. महिला जातक को आर्थिक रुप से फायदा तो बहुत हुआ लेकिन उसकी कीमत उसे पति की मौत से चुकानी पड़ी. आज उसके पास सभी कुछ है लेकिन पति का सुख नही है, जो पहले भी नहीं था.

जन्म कुंडली वृष लग्न की है और वृष लग्न में मंगल सप्तम भाव के स्वामी होते हैं. मंगल इनकी कुंडली में सप्तमेश होकर दूसरे भाव में स्थित है चतुर्थेश सूर्य के साथ. मंगल का अपने भाव से अष्टम भाव में जाना वैवाहिक सुख के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. मंगल अग्नि तत्व ग्रह है और दूसरे अग्नि तत्व ग्रह सूर्य के साथ स्थित है. सूर्य व मंगल की युति पति के आयु स्थान में हो रही है. महिला जातक की कुंडली का दूसरा भाव पति का आयु स्थान माना जाता है और महिला जातको की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में मंगल की स्थिति पति की आयु के लिए शुभ नही मानी जाती है.

इस महिला की कुंडली में सप्तम से आठवें भाव में मिथुन राशि जो कि वायु तत्व है, उसमें दो अग्नि तत्व ग्रह मंगल व सूर्य की स्थिति, जिन्हें नीच का शनि बारहवें भाव से तीसरी दृष्टि से देख रहा है. शनि मेष राशि में नीच के होते हैं और मेष राशि फिर अग्नि तत्व राशि मानी गई है. वृष लग्न के लिए बृहस्पति दो अशुभ भावों अष्टम व एकादश का स्वामी होता है. इन महिला की कुंडली में बृहस्पति छठे भाव में स्थित होकर नवीं दृष्टि से फिर दूसरे भाव व दूसरे भाव में स्थित ग्रहों को देख रहा है. इनकी कुंडली में चंद्र तथा राहु दसवें भाव में स्थित हैं. चंद्रमा का राहु से पीड़ित होना जीवन भर की मानसिक परेशानियों को दिखाता है. बारहवें भाव में स्थित नीच का शनि शैय्या सुख में कमी दिखा रहा है.

दूसरे भाव से कुटुम्ब का आंकलन किया जाता है और इनकी कुंडली में यह भाव पीड़ित है. चतुर्थ भाव से भी सुख का आंकलन किया जाता है लेकिन इनकी कुंडली में चतुर्थ भाव में केतु स्थित है और चतुर्थेश मंगल के साथ शनि व गुरु से दृष्ट है. इनकी नवांश कुंडली वर्गोत्तम है और वृष लग्न की ही है. सप्तम भाव में शुक्र व शनि एक साथ स्थित हैं. मंगल सप्तमेश होकर बारहवें भाव में स्वराशि के स्थित होकर आठवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देख रहे हैं. इस कुंडली में स्थित कुछ बेहतर है तभी महिला ने 16 वर्षो तक पति का साथ निभाया. नवांश कुंडली में बृहस्पति वर्गोत्तम है और छठे भाव से फिर मंगल को सातवीं दृष्टि से देख रहे हैं.

जिस समय महिला के पति ने आत्महत्या की उस समय इनकी कुंडली में शनि/केतु/बुध की दशा थी. शनि की स्थिति का आंकलन हमने पहले ही ऊपर कर दिया है. अब यदि शनि को वृश्चिक लग्न बनाकर देखें तो पति के भाव से यह छठे में अग्नि तत्व राशि में स्थित हैं. अन्तर्दशानाथ केतु सिंह राशि, जो कि अग्नि तत्व राशि है, में स्थित है और केतु स्वयं भी अग्नि तत्व ग्रह है. केतु अपने राशिश के अनुसार फल देते हैं. अगर हम केतु के राशिश सूर्य का आंकलन करें तो वह सप्तम से अष्टम में मंगल के साथ हैं महादशानाथ शनि से दृष्ट हैं. प्रत्यंतर दशानाथ बुध पति के भाव सप्तम से अष्टम में स्थित है. सप्तम भाव से छठे, सातवें व आठवें भाव का संबंध दशाओं में दिख रहा है.

जिस दिन यह हादसा हुआ उस दिन मंगल मिथुन राशि में ही गोचर कर रहे थे जहाँ पर जन्म कुंडली का मंगल स्थित है. शनि और गुरु का दोहरा गोचर महिला की जन्म कुंडली में लग्न भाव पर हो रहा था अर्थात पति का मारक स्थान. इनकी जन्म कुंडली के राहु/चंद्र पर ही गोचर के राहु/चंद्र गोचर कर रहे थे. जो इनकी मानसिक परेशानियो को साफ तौर पर दिखा रहा है. भाग्येश शनि बारहवें भाव में नीच राशि में स्थित हैं. भाग्य भाव एक बली त्रिकोण और धर्म त्रिकोण के बारे में जाना जाता है.

इनकी कुंडली में शनि राजयोगकारी है और शनि ने अपनी दशा के आरंभ के कुछ वर्ष नीचता दिखाने के बाद इन्हें जीवन में सुख तो दिया लेकिन उसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी और उस सुख का अहसास शायद ही इन्हें जीवन में हो. शनि/केतु में ही पति से वियोग हुआ और शनि की महादशा में ही इन्हें विरक्ति भी होने लगी और यह मन की शांति के लिए आध्यात्म की ओर मुड़ गई. एक धार्मिक संस्था की सक्रिय सदस्या बन गई. केतु की अन्तर्दशा में पति की मृत्यु हुई और इसी दशा में इन्होंने अपना घर भी बनाया क्योकि केतु चतुर्थ भाव में स्थित है इसलिए उससे संबंधित फल भी प्रदान किए. सप्तम भाव का स्वामी मंगल जन्म कुंडली के धन भाव में स्थित है जो पति से धन की प्राप्ति दिखा रहा है और दशा आने पर वह हुई भी. पति की मृत्यु के समय बुध का प्रत्यंतर था और बुध इनकी कुंडली में धनेश व पंचमेश है और लग्न में स्थित होकर सप्तम को देख भी रहा है. इन्हें इसी प्रत्यंतर दशा में पति का सारा धन प्राप्त हुआ.

वृष लग्न के लिए शनि योगकारी ग्रह माने जाते हैं क्योकि यह केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी हैं. जिन भावों के स्वामी है, उनसे संबंधित फल भी प्रदान कर रहे हैं. इस दशा में ही इन्हें सुख तथा दुख दोनो ही प्राप्त हुए हैं.

Posted in Marriage, Vedic Astrology | Tagged , , , | 1 Comment

जन्म कुंडली में कार्यसिद्धि का समय | Analysis of An Incident’s Time in Janma Kundali

जन्म कुंडली में किसी घटना के घटने में बहुत से कारक काम करते हैं. सबसे पहले तो किसी भी घटना के होने में योग होने आवश्यक होते हैं. यदि जन्म कुंडली में किसी कार्य के होने के योग ही नहीं होगें तब दशा/अन्तर्दशा आने पर भी वह काम नहीं बनता है. इसलिए जन्म कुंडली में किसी भी घटना के होने के लिए सबसे पहले योग होते हैं, फिर दशा देखी जाती है और घटना घटित होने के समय ग्रहों का गोचर देखा जाता है. यह सब मिलकर ही किसी काम के होने का इशारा करते हैं.

आज हम एक उदाहरण कुंडली के माध्यम से कार्य के सिद्ध होने को समझने का प्रयास करते हैं. किसी भी घटना के होने में जन्म कुंडली में मौजूद योगो के साथ संबंधित वर्ग कुंडली में भी योग होने चाहिए और जिस वर्ष घटना फलीभूत होती है उस वर्ष की वर्ष कुंडली में भी उसके लक्षण उभरकर नजर आते हैं. इस प्रकार हम कार्य होने के लिए जन्म कुंडली, संबंधित वर्ग कुंडली, वर्ष कुंडली, दशा तथा उस समय के गोचर का आंकलन करेगें.

उदाहरण कुंडली में आज हम एक जातक की कुंडली लेगें जिसने अपनी पढ़ाई के दौरान ही अपना इन्टरव्यू पास किया और पढ़ाई पूरी होते ही उसकी नौकरी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में लग गई. बच्चे ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है और इसे फील्ड इंजीनियर की नौकरी मिली. जिसके लिए इसे घर से दूर जाना पड़ा और यह समुद्र के किनारे अधिक रहता है. अपनी नौकरी के सिलसिले मे ही यह कम उम्र में ही विदेश यात्राएँ भी कर चुका है. नौकरी लगने के चार माह बाद ही जातक अमेरिका चला गया था दो महीने के लिए. आइए कुंडली पर एक नजर डालने का प्रयास करें.

जन्म कुंडली | janma kundali

जातक की कुंडली तुला लग्न की है और चंद्रमा कुंभ राशि में पंचम भाव में स्थित है. जातक का इन्टरव्यू 8 दिसम्बर 2006 को हुआ और उसने अपनी नौकरी 18 अगस्त 2007 को ज्वाइन की. कुंडली के बाकी ग्रहों को देखते हैं. जिस समय इन्टरव्यू हुआ उस समय जातक की कुंडली में बृहस्पति/शनि/शनि की दशा चल रही थी. बृहस्पति जन्म कुंडली में तीसरे व छठे भाव के स्वामी है. तीसरा भाव छोटी यात्राएँ तथा छठे भाव से नौकरी देखी जाती है. शनि इस कुंडली के लिए योगकारी ग्रह है और लग्न में अपनी उच्च राशि में स्थित है, भाग्येश व द्वादशेश बुध के साथ और साथ में ही लाभेश सूर्य भी हैं. इस दशा में हमें योग नजर आते हैं कि जातक को भाग्य से संबंधित कुछ फल मिलने चाहिए और उसके भाग्य का संबंध विदेश से भी बनता है. गुरु स्वराशि का धनेश व सप्तममेश मंगल के साथ स्थित है. लाभ का संबंध विदेशों से बन सकता है क्योकि मंगल सप्तमेश है जो कि विदेश को दिखाता है. साथ ही जातक छोटी यात्राएँ भी अधिक करेगा क्योकि महादशानाथ बृहस्पति तीसरे भाव में स्वराशि के हैं. तीसरा भाव छोटी यात्राओ के लिए देखा जाता है.

जातक ने अपनी नौकरी 18 अगस्त 2007 में ज्वाइन की. उस समय दशा थी बृहस्पति/शनि/बुध की. बृहस्पति छठे भाव का स्वामी है ही जिसे सर्विस भाव भी कहते हैं. शनि योगकारी ग्रह होकर शुभ हैं जो दशम भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं और छठे भाव के स्वामी पर भी दृष्टि डाल रहे हैं. बुध भाग्य भाव के स्वामी हैं अर्थात इस समय भाग्य से संबंधित कुछ अच्छा होने की संभावना बनती है.

दशमांश कुंडली | Dashmansh Kundali

आइए अब एक नजर दशमांश कुंडली पर डालते हैं. इस कुंडली में मिथुन लग्न उदय हो रहा है. महादशानाथ बृहस्पति दशम भाव के स्वामी होकर द्वादश भाव में स्थित है, कर्म का संबंध विदेश से. अन्तर्दशानाथ शनि दशमांश कुंडली के भाग्येश होकर लग्न में ही स्थित है और दशम भाव को देख रहे हैं. बुध दशमांश कुंडली के लग्नेश है और धन भाव में स्थित है. इस समय कर्म से संबंधित काम दिख ही रहा है.

वर्ष कुंडली | Varsha Kundali

आइए अब इस वर्ष की वर्ष कुंडली देखें. हमने 23वें वर्ष की कुंडली बनाई है. वर्ष कुण्डली के लग्न में कर्क राशि उदय हो रही है जो कि जन्म कुंडली का दशम भाव है. जन्म कुंडली का जो भाव वर्ष कुंडली का लग्न बनता है उस वर्ष उस भाव से संबंधित कोई ना कोई घटना अवश्य ही घटित होती है. वर्ष कुण्डली का वर्षेश चंद्रमा है जो भाग्य भाव में स्थित है. मुंथा सिंह राशि में है जो दूसरे भाव में स्थित है और मुंथेश सूर्य हैं जो चतुर्थ भाव में स्थित होकर दशम भाव को देख रहे हैं. सभी ग्रहो का प्रभाव नवम, दशम व एकादश भावों पर है. कर्क लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में शनि हैं जो दसवीं दृष्टि से एकादश भाव को देख रहे हैं. सूर्य, बुध, मंगल व शुक्र चतुर्थ भाव में है और दशम भाव को देख रहे हैं. वर्ष कुंडली में जब भी सूर्य व मंगल का प्रभाव दशम भाव पर पड़ता है तब उस वर्ष व्यक्ति को व्यवसाय संबंधी अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है. चंद्रमा वर्ष कुण्डली के नवम भाव में स्थित है.

नौकरी ज्वाइन के दिन ग्रहों का गोचर | Transit Kundali

जन्म कुंडली में किसी भी घटना के होने के लिए पहले दशा का अनुकूल होना आवश्यक है फिर वर्ष कुंडली में उसके होने का संकेत मिलता है और अंत में जिस भाव से संबंधित फल मिलने वाले होते हैं, गोचर के अधिकतर ग्रह उस भाव के आसपास ही होते हैं. विशेष तौर पर गुरु व शनि के बिना कोई भी काम कुंडली में घटित नहीं होता है. इसे शनि व गुरु के दोहरे गोचर के नाम से जाना जाता है. इन दोनो के साथ अन्य ग्रह भी संबंधित भाव के आसपास ही होते हैं.

जिस दिन जातक ने अपनी नौकरी ज्वाइन की उस दिन के गोचर पर नजर डालते हैं. जातक की तुला लग्न की कुंडली है और इसने 18 अगस्त 2007 को अपनी नौकरी ज्वाइन की. तुला लग्न में इस दिन के ग्रहों को स्थापित करते हैं. बृहस्पति वृश्चिक राशि में दूसरे भाव में स्थित हैं और नवम दृष्टि से दशम भाव को देख रहे हैं. शनि एकादश भाव में स्थित है. मंगल अष्टम में स्थित होकर एकादश भाव को देख रहे हैं. चंद्रमा द्वादश भाव में स्थित है जो कि एकादश के पास ही है. सूर्य, शुक्र, बुध, केतु चारो ही ग्रह एकादश में है. सभी ग्रहो का प्रभाव एकादश भाव पर पड़ रहा है और जैसा कि हमने ऊपर कहा ही है कि घटना के दिन अधिकतर ग्रह संबंधित भाव के पास ही होते हैं. नौकरी से लाभ की प्राप्ति होना जातक की कुंडली में स्पष्ट रूप से नजर आता है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | 4 Comments

क्या होते हैं कारक ग्रह और कैसे दिखाते हैं अपना असर ?

ज्योतिष में कई प्रकार की युतियां और संबंध बनते हैं जिनके बनने से कई प्रकार से कुण्डली का आंकलन करने में सहायता प्राप्त होती है. जातक के जीवन में इन सभी का प्रखर प्रभाव पड़ता है जिससे जीवन में अनेक उतार-चढाव उत्पन्न होते हैं. इसी प्रकार कुण्डली में परस्पर कारक ग्रह भी होते हैं जो घटनाओं और स्थितियों का निर्धारण करने और उनसे फल कथन करने में सहायक होते हैं.

जन्म कुण्डली में प्रथम,चतुर्थ, सप्तम और दसम भावों में ग्रह स्वराशि, मूलत्रिकोण या उच्चस्थ हो तो उन्हें परस्पर कारक ग्रह माना जाता है. इन परस्पर कारक ग्रहों से तात्पर्य होता है कि एक दूसरे के लिए यह अनुकूल होकर ग्रहों के फलों में शुभता देने वाले बनते हैं., तथा जातक को शुभता एवं जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी प्राप्त होती है.

कुण्डली के परस्पर कारक ग्रहों का स्वरूप | General Characteristics of Mutual Karak Planets in Kundali

कुण्डली में यदि परस्पर कारक ग्रह लग्न से केन्द्र भावों में होते हों तो यह स्थिति काफी अच्छी मानी जाती है. इस स्थिति का बहुत लाभ जातक को प्राप्त होता है. जातक के जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों में भी कमी आती है और जातक को सुख की प्राप्ति भी हो पाती है.

कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार केन्द्र के स्थानों में बनने वाली यह स्थिति बहुत उत्कृष्ठ विकल्प मानी गई है तथा कुण्डली को मजबूती देने वाली बनती है. इस बात को हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं कि यदि कोई तुला लग्न की कुण्डली हो तो उसमें शनि लग्न में, मंगल चतुर्थ भाव में सूर्य सप्तम में और गुरू और चंद्र दशम भाव में कर्क राशि में हों तो वह परस्पर कारक ग्रह माने जाएंगे.

इस स्थिति से यह स्वत: ही स्पष्ट होता है कि यह स्थिति जातक के लिए कितनी लाभकारी रह सकती है और इससे जातक की कुण्डली को भी भरपूर बल मिल पाता है. उदाहरण में यह बात स्पष्ट होती है कि केन्द्र में होने की अपेक्षा लग्न से केन्द्र में होना विशेष फलदायी माना जाता है.

इसी प्रकार से विभिन्न लग्नों में भी यह स्थितियां बन सकती हैं, इस कारक योग के होने के अनेक विकल्प होते हैं अर्थात विशिष्ट फलदायक ग्रह कारक होते हैं. सभी चर लग्नों में केन्द्र राशियां सूर्य, बृहस्पति, शनि और मंगल की उच्च राशियां होती है.

स्थिर और द्विस्वभाव राशि लग्नों में ऎसी स्थिति नहीं होती है, इसलिए इनमें यह स्थिति नहीं बन पाती है. बृहज्जातक में राजयोग कारक ग्रहों की एक सारणी बनाई गई है जिनमें प्रमुख ग्रहों को शामिल किया गया है.

दूसरे प्रकार का कारक योग | Another Important Karak Yoga

कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम भावों के अतिरिक्त कहीं भी उच्च राशि, स्वराशि, मूलत्रिकोण राशि, मित्रक्षेत्री राशि ग्रह हों या इन्हीं नवांशों में स्थित हों तो वह कारक माने जाते हैं. यदि वह परस्पर केन्द्रों में हों तो इन्हें और विशेष कारक माना जाएगा. जैसे की कुछ ज्योतिषीयों के अनुसार दशमस्थ उच्चराशि में स्थित सूर्य विशेष कारक माना जाता है इसी के साथ दशमस्थ कोई भी उच्चस्थ ग्रह विशेष कारक माना जाता है.

कुछ अन्य विशिष्ट कारक योग | Some Other Important Karak Yogas

कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ और दशम भावों में किसी भी राशि में स्थित हों परंतु नीच नहीं हों तो वह ग्रह भी सामान्य श्रेणी के कारक माने जाते हैं. कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार एकादश में स्थित ग्रह भी कारक होता है. परंतु इस बात पर सभी सहमत नहीं हो पाते. इस बात का उल्लेख बृहत्पराशर होरा शास्त्र से भी मिल चुका है कि कुण्डली में किसी भी स्थान में उच्चादिग्रह परस्पर केन्द्र में हों तो कारक हैं.

कारक ग्रहों का फल | Results from Karak Planets

कारक ग्रहों के मजबूत व बली होने पर जातक को हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. कारक ग्रहों के उच्चता पूर्ण होने से व्यक्ति अग्रीण स्थिति को पाता है. यदि जातक साधारण घर में भी जन्मा हो परंतु उसके ग्रहों में बलता है तो वह उच्च स्थिति को अवश्य पा लेगा.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

जाने, 12 राशियों में कैसा रहेगा राहु का फल

वैदिक ज्योतिष में राहु/केतु का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है हालांकि दोनो ही छाया ग्रह हैं लेकिन तब भी मानव जीवन पर इनका बहुत प्रभाव पड़ता है. आज हम राहु का प्रभाव मेष से मीन राशि तक में करेगें.

राहु मेष व वृष राशि में | Rahu in Aries and Taurus Sign

मेष राशि में राहु के स्थित होने से व्यक्ति भूमि का संचय करता है. पराशर मुनि ने मेष राशि के राहु को अच्छा माना है. इस राशि में राहु के होने से घर – परिवार में खुशियाँ रहती है. इस राशि में राहु के प्रभाव से व्यक्ति जीवन में उलटे तरीके ज्यादा अपनाता है.

वृष राशि में राहु को उच्च का माना जाता है. इस राशि का राहु जनता व सरकार से व्यक्ति को सम्मान दिलाता है. वृष राशि के राहु से व्यक्ति जमीन जायदाद का काफी संग्रह करता है. व्यक्ति की शिक्षा अच्छी होती है और वह भावुक स्वभाव का होता है.

मिथुन व कर्क राशि का राहु | Rahu in Gemini in Cancer Sign

मिथुन राशि में राहु के होने के फलों का वर्णन करते हैं. मतांतर से इस राशि में भी राहु को उच्च का माना जाता है लेकिन वायु तत्व राशि में होने से मानसिक परेशानी बनी रह सकती हैं. मिथुन राशि के राहु से व्यक्ति को सरकार व सगे संबंधियों से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

व्यक्ति के जीवनसाथी व संतान को कष्ट व परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. मिथुन राशि बुध की राशि है जिसके परिणामस्वरुप व्यक्ति को गाने का शौक हो सकता है. अब हम कर्क राशि में राहु के होने का फल जानने का प्रयास करते हैं. कर्क राशि के राहु से व्यक्ति धन संपत्ति का संचय करता है. व्यक्ति पद, पदवी प्राप्त करता है व उसके पास अधिकार शक्ति होती है. कर्क राशि में राहु की स्थिति से व्यक्ति में कई बार धोखा देने की प्रवृति भी पाई जाती है.

सिंह व कन्या राशि में राहु | Rahu in Leo and Virgo Sign

सिंह राशि में राहु की स्थिति को जानने का प्रयास करते हैं. सिंह राशि में राहु की स्थिति से व्यक्ति को प्रियजनों से अलग होना पड़ सकता है. व्यक्ति को जमीन-जायदाद की हानि उठानी पड़ सकती है. इस राशि में राहु के प्रभाव से व्यक्ति कूटनीतिज्ञ होता है.

कन्या राशि में राहु की स्थिति से व्यक्ति के जन्म स्थान में वृद्धि होती है.व्यक्ति को किसी सामाजिक संगठन में या किसी सरकारी विभाग में उत्तरदायित्व वाले पद की प्राप्ति हो सकती है. इस राशि में राहु के होने से व्यक्ति लेखक या गायक होता है.

तुला व वृश्चिक राशि में राहु का प्रभाव | Rahu in Libra and Scorpio Sign

आइए तुला राशि के राहु की बात करते हैं. इस राशि में राहु के होने से व्यक्ति का अपने से बड़े लोगो से वियोग हो सकता है. व्यक्ति को सरकार से परेशानियाँ उठानी पड़ सकती है तथा धन – संपत्ति की हानि होने की भी संभावना बनती है.

व्यक्ति में कार्य करने की सक्षमता काफी अधिक होती है. वृश्चिक राशि में राहु अगर स्थित हो तब व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाता है. व्यक्ति भू-संपत्ति में वृद्धि करता है लेकिन उसमें धोखेबाजी व अनैतिकता की प्रवृति पाई जाती है.

धनु व मकर राशि के राहु का प्रभाव | Rahu in Sagittarius and Capricorn Sign

धनु राशि में राहु का अवलोकन करते हैं. इस राशि में राहु को नीच का माना गया है. इस राशि में राहु के होने से व्यक्ति प्रयास विफल होते रहते है. व्यक्ति के सगे संबंधियों की भावनाएँ उसके प्रति अच्छी नही होती है.

धनु राशि में राहु अगर शुभ प्रभाव में स्थित है तब व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है और वह धार्मिक कार्यों में भी रुचि रखता है. मकर राशि में राहु के होने से व्यक्ति लोगो द्वारा पसंद किया जाने वाला होता है. व्यक्ति को सभी प्रकार की सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.

कुंभ व मीन राशि के राहु का प्रभाव | Rahu in Aquarius and Pisces Sign

कुंभ राशि के राहु की चर्चा करते हैं. इस राशि में राहु के होने से व्यक्ति रोगी हो सकता है. व्यक्ति का अपने प्रियजनो से वियोग हो सकता है, व्यक्ति का जीवनसाथी व सगे संबंधी चिन्ताग्रस्त रह सकते हैं. व्यक्ति की वाणी मीठी व मधुर होती है.

मीन राशि में राहु के स्थित होने से व्यक्ति का अपने सगे संबंधियों से अलगाव हो सकता है. व्यक्ति को चोरी व अग्निभय बना रह सकता है तथा सरकार से परेशानी हो सकती है. इस राशि में राहु की स्थिति से व्यक्ति धार्मिक व अच्छा व्यवहार करने वाला होता है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Comments Off on जाने, 12 राशियों में कैसा रहेगा राहु का फल

सूर्य का विभिन्न राशियों में स्थिति पर विचार – भाग 1 | Sun in Different Signs – Part 1

वैदिक ज्योतिष में हर ग्रह का अपना स्वतंत्र महत्व होता है. ग्रह किस राशि में और किस भाव में क्या फल देगें, यह विस्तार का विषय है. जिसे हम धीरे-धीरे समझ सकते हैं. आज हम सूर्य की विभिन्न राशियों मेष, वृष, मिथुन और कर्क में स्थिति पर विचार करेगें कि सूर्य जब किसी राशि विशेष में होता है तब क्या फल प्रदान करता है.

सूर्य का मेष राशि में फल | Sun’s effects in Aries sign

आइए सबसे पहले मेष राशि के सूर्य की बात करें. इस राशि की विशेषता यह है कि इसमें सूर्य उच्च का होता है, जो सूर्य की अत्यधिक बली स्थिति मानी जाती है और इस राशि में सूर्य 10 अंशों पर उच्चता पाता है.

मेष राशि चर राशि होती है और सूर्य अग्नि है इसलिए आप फुर्तीले व्यक्ति होगें. सूर्य ग्रहों में राजा माना गया है और राजा बुद्धिमान व्यक्ति होता था इसलिए आप बुद्धिमान व्यक्ति होगें. आप दृढ़ निश्चयी व्यक्ति होगें जो एक बार निर्णय ले लिया फिर उसी पर अडिग रहेगें, लेकिन मन में अधीरता बनी रहेगी क्योकि सूर्य आग का गोला है और फिर मेष राशि भी अग्नि तत्व राशि है और मेष का स्वामी मंगल भी अग्नि तत्व ग्रह है. इन सभी के कारण आपके मन में सदा अधीरता का वास रहेगा.

आप आत्मकेन्द्रित व्यक्ति होते है इसलिए किसी से ज्यादा मिलते-जुलते नहीं हैं. आपका अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व हो सकता है. अग्नि तत्व राशि और ग्रह के प्रभाव से आप अत्यधिक आक्रामक व्यक्ति हो सकते हैं.

आपको यात्रा प्रेमी कहा जा सकता है क्योकि मेष चर राशि है इसलिए आपको कहीं टिककर बैठना अच्छा नहीं लगेगा. सूर्य सरकार का कारक ग्रह माना गया है. आपकी जन्म कुंडली में सूर्य उच्च राशि में होने से आप सरकारी कर्मचारी हो सकते हैं अथवा आप किसी अच्छी संस्था में कार्यरत हो सकते हैं.

आप बहुत परिश्रमी व उद्यमशील व्यक्ति होते हैं. आप सदा किसी ना किसी काम को करने में लगे रह सकते हैं.

सूर्य का वृष राशि में फल | Sun’s effects in Taurus Sign

अब हम वृष राशि के सूर्य की बात करेगें. वृष राशि का सूर्य होने से आप शांत व सम स्वभाव वाले व्यक्ति होगें क्योकि वृष राशि शुक्र की राशि है और इस राशि का स्वभाव शांत होता है. वृष राशि पर शुक्र का प्रभाव होने से आप संगीत प्रेमी व्यक्ति हो सकते हैं.

आपको गहनों से और श्रृंगार की अन्य वस्तुओं से प्यार होगा. आप इन पर धन का व्यय करते रहेगें. वृष राशि स्थिर स्वभाव की और पृथ्वी तत्व है इसलिए अधिकतर काम में आप आलस्य का परिचय दे सकते हैं. आपको ज्यादा भाग – दौड़ पसंद नहीं होगी. एक बार जहाँ टिक गये वहाँ से फिर कोई हिला नही पाएगा.

आप दूसरों पर अधिकार जताने वाले व्यक्ति होगें. आपको अपनी मर्जी दूसरों पर थोपने की आदत होगी. आप थोडे़ चतुर – चालाक हो सकते हैं लेकिन अपनी बातों पर अटल रहने वाले व्यक्ति हो सकते हैं. आप विश्वास से पूर्ण व्यक्ति होगें इसलिए आसानी से कभी कमजोर नहीं पड़ेगें.

सूर्य का मिथुन राशि में फल | Sun’s effects in Gemini Sign

आइए अब मिथुन राशि की ओर बढ़ते हैं. मिथुन राशि में सूर्य होने पर आप ज्ञानी व पंडित व्यक्ति होगें. आपको हर बात की जानकारी होगी. आप बहुत से विषयों में रुचि रख सकते हैं. आपकी खास बात यह होगी कि हर बात को जानने की जिज्ञासा आपके मन रहेगी. आप किसी ना किसी तरह सभी बातों की जानकारी पाना चाहेगें.

आप स्वभाव से थोड़े शर्मीले व्यक्ति हो सकते हैं इसलिए शीघ्रता से किसी से घुलते मिलते नही है. आप थोड़े से डरपोक स्वभाव के भी हो सकते हैं. आप हर कार्य करने में कुशलता प्राप्त करेगें और आप सभी विषयों में निपुण हो सकते हैं.

आप स्वयं को वातावरण के अनुकूल ढ़ालने वाले तथा नम्र स्वभाव के व्यक्ति होगें. आप मानसिक रुप से सदा सजग और सचेत रहने वाले व्यक्ति होगें.

सूर्य का कर्क राशि में फल | Sun’s effects in Cancer sign

अंत में हम आपको सूर्य की स्थिति कर्क राशि में बताने का प्रयास करेगें. कर्क राशि जलतत्व होती है और इसमें सूर्य की स्थिति आपको भावनात्मक बनाती है. सूर्य आग है तो कर्क राशि जल है इसलिए आपकी भावनाएँ सदा ऊपर – नीचे होती रहेगी.

आप शीघ्र ही क्रोधित होने वाले व्यक्ति हो सकते हैं लेकिन जल्दी ही आपका क्रोध शांत भी हो जाएगा. आप स्वतंत्र रुप से अधिकार जताने वाले व्यक्ति होगें. यह आपकी विशेषता बन जाती है कि आप सभी को अपना समझ कर उन पर पूर्णरुप से अधिकार समझते हैं.

आप यात्राओं के शौकीन होगें विशेष रुप से आप जल यात्राओं के शौकीन हो सकते हैं. आप स्वभाव से कठोर भी हो सकते हैं और कभी तो इतने अधिक कठोर हो जाएंगें कि लोग आपको निर्दयी स्वभाव का समझ सकते हैं.

“सूर्य का विभिन्न राशियों में स्थिति पर विचार – भाग 2”

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

कर्क लग्न के दूसरे नवांश की विशेषताएं

कर्क लग्न का दूसरा नवांश सिंह राशि का होता है, जिसके स्वामी सूर्य होते हैं. इस नवांश में जन्मा जातक सौंदर्य व जोश से युक्त होता है. जातक का रंग गुलाबीपन लिए हुए साफ होता है.आंखें मोटी व तेजवान होती हैं. शरीर से मजबूत व ताकतवर होता है. चेहरा गोल और आभायुक्त होता है. इनके घुटने काफी मजबूत होते और पैदल चलने की अच्छी क्षमता होती है.

जातक का व्यवहार मिलनसार और भावुक होगा वह अपने में सीमित रहने वाला होता है. जातक में क्रोध होता है किंतु वह जल्द ही शांत भी हो जाता है. इनका स्वभाव उदारतापूर्ण और स्नेहशील होता है. किसी के दूख को समझने की योग्यता इनमें होती है और अपने प्रयासों से यह दूसरे की मदद करने की भी पूरी कोशिश करते ही हैं. इनके अधिक मित्र नहीं हों किंतु जिनसे भी मैत्री संबंध बनाते हैं उन्हें निभाने की पूरी कोशिश करते हैं अधिकांशत: भावुक होते हैं और अपनी भावनाओं को दूसरों के सामन जल्दी से दिखाते नहीं हैं.

अकेला रहना इन्हें अच्छा लग सकता है और एक जगह रहकर काम करने की चाह भी रखते हैं. परिवर्तन में अधिक विश्वास नहीं रखते और जो भी कार्य हो उसे अपने मन अनुसार ही करते हैं. कभी कभी इनमें अंह की भावना भी अधिक हो सकती हैं किंतु यह उसे दबाने में काफी हद तक सफल रहते हैं. जीवन में कल्पनाओं का सागर बहता रहता है किंतु वास्तविकता की भी समझ रखते हैं.

विद्वता के गुण इनमें होते हैं, गुरूजनों की संगती भी इन्हें खूब प्राप्त होती है. सामाजिक कार्यों में यह भाग लेते रहते हैं और अपना सहयोग भी देने की चाह रखते हैं. यात्राओं पर जाने का अधिक मन न हो परंतु फिर भी कुछ धार्मिक यात्राएं करते रहते हैं. धर्मिक विचारों से युक्त प्रतिभा संपन्न व्यक्ति होते हैं.

कर्क लग्न के दूसरा नवांश का महत्व | Importance of Second Navamsha of Cancer Ascendant

कर्क लग्न के दूसरे नवांश सिंह के होने से यहां नवांश में दूसरा भाव उदय हो रहा होता है जिसके फलस्वरूप जातक को परिवार से संबंधित बातों पर अधिक ध्यान देना होता है. उसका झुकाव भी अपने कुटुंब की ओर बना रहता है. परिवार के प्रति व अपने दायित्वों का निर्वाह करने की पूरी कोशिश भी करता है.

इनके संबंध उच्च स्तर के होते हैं जिनसे इन्हें लाभ की अच्छी प्राप्ति होती है. राजनीतिज्ञयों से संपर्क बनाने में काफी कुशल होते हैं. अपने संपर्कों के माध्यम से इन्हें लाभ की भी प्राप्ति होती है. इनमें आकर्षण खूब होता है और जिससे इन्हें अन्य लोगों के साथ संपर्क साधने में आसानी होती है, अपनी कम प्रतिक्रियाओं के बावजूद भी यह अच्छे रिश्तों को पा लेने में सफल रहते हैं.

कार्यों के प्रति यह सामान्यत: ईमानदार ही होते हैं. अपनी लग्न ओर मेहनत का अच्छे से परिचय देते हैं. अपने द्वारा किए हुए वादों को व्यर्थ नहीं जाने देते हैं ओर उसे निभाने की भी पूरी कोशिश करते हैं. कभी-कभी इनके स्वभाव में क्रूरता व उग्रता देखी जा सकती है जिसके कारण इनके कार्यों को नकारात्मकता के आधार पर टिका हुआ माना जा सकता है.

आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं और परिवार की ओर से भी इन्हें कुछ संपत्ति की प्राप्ति हो पाती है. इनका दांपत्य जीवन परिवार के सानिध्य को पाता है. दांपत्य जीवन के सुख दुख परिवार के साथ मिलकर आसानी से व्यतीत होने लगते हैं, परंतु कुछ मामलों में जीवन साथी के व्यवहार में स्वाभिमान की अभिव्यक्ति अधिक झलकती है.

साथी में भी क्रोध होता है जिस कारण की बार एक दूसरे की बातों को न समझ पाने की स्थिति में तनाव का सामना करना पड़ता है. किंतु यदि शांति के साथ बातों को समझने का प्रयास करेंगे तो काफी कुछ स्थिति संभल सकती है. जीवन साथी चरित्रवान होता है और कार्यकुशल भी होता है. आपके साथ सहयोगी बनकर जीवन के पथ पर साथ निभाने की पूरी कोशिश भी करता है.

आर्थिक रूप से यह संपन्न होते हैं और कर्मठता से भी अच्छा धन कमाने की योग्यता रखते हैं. आर्थिक स्थिति और परिवार की शांति को बनाए रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. स्वास्थ्य की दृष्टि से सामान्यत: यह ठीक ठाक रहते हैं. यदि अपने मन को मजबूत रखें तो कई प्रकार की विचारधारों में उलझने से बच सकते हैं.

Posted in Navamsa Kundli, Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

कर्क लग्न का पहला नवांश | First Navamsha of Cancer Ascendant

कर्क लग्न का पहला नवंश वर्गोत्तम होता है. यह कर्क राशि का ही होता है. इस नवांश में जन्में जातक के जीवन में स्वयं की स्थिति का ही आधार बना रहेगा. अर्थात वह कुध के विषयों से ही अधिक सोच विचार करेगा. अन्य स्थिति पर उसका अधिक ध्यान कम ही रहेगा जितना खुद के लिए उसका ध्यान बना रहेगा.

जातक का इस लग्न में जन्म होने पर कुछ स्वभाविक गुण बने ही रहते हैं वह जीवन के प्रति सकारात्मक स्थिति को लेकर चलने वाला होता है. देखने में सुंदर ओर गौर वर्ण का हो सकता है. जातक का मन काफी विचारशील रहेगा. उसके मन में अनेक विचारों की उथल पुथल बनी रह सकती है. कद काठी अच्छी होगी भुजाएं लम्बी हो सकती हैं आंखे मोटी और बाल घने होते हैं.

इनका शरीर सामान्यता कुछ मोटा और आकर्षक दिखाई देता है. इसी के साथ यह कफ प्रक्रत्ति वाले होते हैं और जातक पतले तथा मध्यम कद का हो सकता है. सभी स्थितियों में समायोजन करने की कोशिश करते हैं. परिस्थितियों में स्वयं को ढालने का प्रयास करते हैं.

जीवन को ऎश्वर्यपूर्ण रूप में जीना चाहते हैं. आर्थिक रूप से स्वयं को मजबूती देने की चाह रखते हैं, किसी भी तरह अपने नाम को सभी के सम्मुख समानित कराने की चाह इनमें बनी रहती है. धैर्यवान होते हैं कठिन से कठिन समय में सोच विचार कर आगे बढ़ते हैं और घबराते नहीं बल्की साहस से सामना करते हैं.

कोमल हृदय के होते हैं संवेदनाएं काफी अग्रीण होंगी जिस कारण यह किसी बात को आसानी से भूलते नहीं पाते हैं. इनके मन में गहराई तक समा जाती हैं. अपने संवेदनाओं के प्रति पूर्ण सजग होते हैं. दूसरों की भावनाओं को समझने वाले होते हैं. इनका स्वभाव स्नेही होता है और मिलनसार भी होते हैं.

कर्क लग्न के प्रथम नवांश का महत्व | Importance of First Navamsha of Cancer Ascendant

इस नवांश से प्रभावित जातक में कोमलता और सहृदयता के गुण भी मौजुद होते हैं. कर्क लग्न नवांश के प्रभाव से जातक अति संवेदनशील होते हैं. यह प्रभाव जलतत्त्व और चंद्रमा से प्रभावित होने के कारण ही होता है, जातक अपने मार्ग को किसी न किसी प्रकार से हासिल करके ही दम लेता है. यह अपना कार्य निकाल अच्छे से जानते हैं. इनके स्वभाव में परिवर्तन देखने को मिलता है जिस कारण लगातार कार्य में लगे रहना इनके व्यवहार में शामिल होता है.

इन्हें जलीय स्थानों के नजदीक रहना अधिक पसंद होता है, जातक जिनके साथ भी भावनात्मक रूप से जु़ड जाते हैं उनसे दूर होने की चाह नहीं रखते हैं. यह पूरी तत्परता से उनका सहयोग करते हैं. मित्रों के सहायक बनते हैं ओर उनकी मदद करने की भी हर संभव कोशिश करते हैं. अपनी जिम्मेदारियों का बोध भी रहता है तथा उन्हें पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

जातक बिना थके निरन्तर कार्य कर सकते हैं और धुन के पक्के होते हैं. लगातार कार्य करना और नई नई कल्पनाओं को साकार करने की चाह भी इनमें खूब रहती है. इन्हें अपने स्वास्थ्य का भी खूब ध्यान रखना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य पर दी गई थोडी़ सी भी ढील इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है।. इन्हें अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने की भी जरूरत है अपने आराम को भी कुछ प्रमुखता देनी चाहिए जिससे मन में स्फूर्ति बनी रह सके.

आप अत्यधिक भावनात्मक होते हैं इसलिए आपके निर्णय कई बार गलत भी हो जाते हैं. स्वभाव में कई बार जिद्दीपन आ जाता है, स्वभाव के इस नकारात्मक पक्ष को दूर करने का प्रयास करना चाहिए भाग्य का साथ मिलता है. जब किसी काम को करने की ठान लें, तो उसे करके ही बैठते है जीवन में अनेक बदलाव अचानक ही होते हैं इसलिए तैयार रहने की आवश्यकता है सभी बातों के लिए तैयार रहना चाहिए.

Posted in Navamsa Kundli, Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

जानें कैसा है आपका स्वभाव: क्या आपकी कुंडली में भी बनते हैं ये योग

वैदिक ज्योतिष में यदि हम सूक्ष्मता से देखें तो हर व्यक्ति के चारित्रिक गुण तथा दोषो का पता लगाने में कामयाब हो सकते हैं. व्यक्ति की जन्म कुंडली उसके व्यक्तित्व के बारे में सभी कुछ बताने में सक्षम होती है. कुछ व्यक्ति चारित्रिक गुणों की खान होते हैं तो कई कमजोर चरित्र के भी होते हैं. कमजोर चरित्र से अभिप्राय हमारा व्यक्ति के झूठ बोलने, बेईमान होने तथा इसी तरह की कई अन्य बातों से हैं. आज हम आपको यही बताने का प्रयास करेगें कि एक व्यक्ति के चारित्रिक गुण तथा दोषों का पता कैसे लगाया जा सकता है.

बेईमान होने का कारण | Reasons For Being Dishonest

सबसे पहले हम उन योगो की बात करेगें जिनके कारण व्यक्ति बेईमान स्वभाव का होता है. जन्म कुंडली के तीसरे भाव में मंगल बिना किसी शुभ दृष्टि के स्थित हो तब व्यक्ति के ईमानदार होने में संदेह होता है.

जन्म कुंडली का चौथा भाव व्यक्ति का मन माना जाता है. इसके पीड़ित होने पर व्यक्ति का मन परेशान रहता है. जब जन्म कुंडली में चतुर्थेश अथवा नवमेश कुंडली के छठे भाव में स्थित हो तब व्यक्ति बेईमान बन जाता है.

बुध को बुद्धि का कारक भी माना जाता है. इससे बुद्धिमत्ता का आंकलन किया जाता है. जब बली बुध ग्रह नवें भाव में एक अशुभ ग्रह के साथ स्थित हो तब व्यक्ति का झुकाव बेईमानी की ओर रहता है.

जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में दशमेश या अष्टमेश स्थित होने पर भी व्यक्ति के ईमानदार होने में संदेह रहता है. जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में दो नैसर्गिक पाप ग्रहों मंगल व शनि स्थित हों या मंगल व राहु स्थित हो तब व्यक्ति अन्य लोगों के साथ बेईमानी करता है. जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अशुभ ग्रह इस भाव को देख रहे हों तब भी व्यक्ति बेईमान होता है.

स्वभाव से निर्लज्ज व्यक्ति | Reasons For Being Impudent In Nature

आपको अपने जीवन में ऎसे बहुत से व्यक्तियों से पाला पड़ा होगा जो बात करने में हिचकते नहीं है चाहे वह पहली बार ही किसी से मिलें हो और उनमें बहुत से तो निर्लज्ज स्वभाव के भी होते हैं जिन्हें पता ही नही होता कि क्या कह रहे हैं या उन्हें कब क्या कहना चाहिए. आइए ऎसे लोगो का अध्ययन कुंडली के माध्यम से करने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में जब चंद्रमा व बुध ग्रह को मंगल देख रहा हो तब व्यक्ति निर्लज्ज स्वभाव का हो सकता है.

जन्म कुंडली के सातवें भाव में मंगल और लग्न में बुध व शुक्र स्थित हो तब व्यक्ति बिना किसी शर्म के नि:संकोच रहता है. जन्म कुंडली के लग्न में बृहस्पति स्थित हो और मंगल देख रहा हो तब भी व्यक्ति को अपनी बात किसी के भी समक्ष कहने में कोई शर्म या हिचक नही होगी.

त्रिक भाव अर्थात कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में कमजोर चंद्रमा, मंगल के साथ स्थित हो तब भी व्यक्ति निर्लज्ज से स्वभाव का हो सकता है.

कुटिल स्वभाव का व्यक्ति | Person With Cunning Nature

आइए हम ऎसे योगो की बात करते हैं जिनके द्वारा व्यक्ति की बुद्धि कुटिल होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में मेष राशि में बुध स्थित हो क्योकि बुध को बुद्धि कौशल का कारक माना जाता है और जब वह अपने परम शत्रु ग्रह की राशि में स्थित होता है तब व्यक्ति की बुद्धि कुटिल होने की संभावना बनती है.

जन्म कुंडली में बुध लग्न का स्वामी होकर छठे भाव में स्थित हो, ऎसा केवल मिथुन लग्न और कन्या लग्न में ही संभव होगा. व्यक्ति की बुद्धि में कुटिलता का वास तभी संभव हो सकता है जब कुंडली के अन्य शुभ योग कमजोर हो. जन्म कुंडली के किसी भी भाव में राहु, शनि और मंगल की युति हो रही हो तब भी व्यक्ति की बुद्धि में कुटिलता समाई रह सकती है.

क्रोध करने वाला व्यक्ति | People With Aggressive Nature

अंत में हम उन योगो की बात करेगें जिनके कारण व्यक्ति को अत्यधिक क्रोध आने की संभावना बनती है. यदि जन्म कुंडली के लग्न में मंगल कमजोर अवस्था में स्थित हो या सप्तम भाव में स्थित और शनि से दृष्ट हो रहा हो तब आपको अत्यधिक क्रोध आने की संभावना बनती है.

कुंडली में मंगल के लग्न या सप्तम भाव में स्थित होने पर व्यक्ति को अधिक क्रोध आता है क्योकि मंगल स्वयं एक आक्रामक ग्रह है और लग्न से संबंध बनने पर वह आपको अत्यधिक क्रोधी स्वभाव का बना देता है. जन्म कुंडली का लग्नेश आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर भी आपको अधिक क्रोधी बना सकता है.

जन्म कुंडली में चंद्र राशिश अर्थात आपकी कुंडली में चंद्रमा जिस राशि में स्थित है उसका स्वामी ग्रह कुंडली के पांचवें या नवम भाव में स्थित होने पर भी आपको अधिक गुस्सा आ सकता है. जन्म कुंडली का लग्नेश, मंगल और शनि के प्रभाव में होने से भी आपको अधिक क्रोध आने की संभावना बनती है.

Posted in Vedic Astrology | Tagged , , , , | Leave a comment