जून 2023 के विशेष विवाह मुहूर्त

हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये प्रयोग किया जाता है. विवाह की तिथि सदैव वर-वधू की कुंडली में गुण-मिलान करने के बाद निकाली जाती है क्योंकि विवाह की तिथि तय होने के बाद, कुण्डलियों की मिलान प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए.

निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह – वृष राशि की कन्या से हो रहा हो, तो दोनों के विवाह के लिये 26,27,30  तिथियाँ एक समान होने के कारण शुभ रहेगी.

जून 2023 में निम्न तिथियों में विवाह करना शुभ रहेगा. यहां जन्म राशि से अभिप्राय: चन्द्र स्थित राशि से है. इन विवाह मुहूर्तो में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है.

 

वर(लड़के) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 1,5,6,7,8,11,12,13,23,26,27
वृष राशि 26. 27, 30
मिथुन राशि 23, 27, 30
कर्क राशि 3,5,6,7,8,11,12,13
सिंह राशि 1,5,6,7,8,23,26,27
कन्या राशि 1,3,6,7,8,11,12,13,23,26,27,30
तुला राशि 23,26,27
वृश्चिक राशि 1,3,5,6,7,8,11,12,13
धनु राशि 1,3,5,6,7,8,23,26,27,30
मकर राशि 1,3,5,6,7,8,11,12,13,26,27,30
कुम्भ राशि 23,27,30
मीन राशि 3,5,6,7,811,12,13
वधु(लड़की) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 1,5,6,7,8,11,12,13,23,26,27
वृष राशि 1,3,6,7,8,11,12,13,26,27,30
मिथुन राशि 1,3,5,6,11,12,13,2327,30
कर्क राशि 3,5,6,7,8,11,12,13,23,26,27,30
सिंह राशि 1,5,6,7,8,23,26,27
कन्या राशि 2,3,6,7,8,11,12,13,23,26,27,30
तुला राशि 1,3,5,6,11,12,13,23,26,27,30 
वृश्चिक राशि 1,3,5,6,7,8,11,12,13
धनु राशि 1,3,5,6,7,8,23,26,27,30
मकर राशि 1,3,5,6,7,8,11,12,13,26,27,30
कुम्भ राशि 1,3,5,6,7,8,11,12,13,23,27,30  
मीन राशि 3,5,6,7,8,11,12,13,23,26,27, 30
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मई 2023 में विवाह शुभ मुहूर्त की कमी नहीं, चुनें अपनी पसंद की डेट

हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये प्रयोग किया जाता है. विवाह की तिथि सदैव वर-वधू की कुंडली में गुण-मिलान करने के बाद निकाली जाती है क्योंकि विवाह की तिथि तय होने के बाद, कुण्डलियों की मिलान प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए.

निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मिथुन राशि के वर का विवाह – वृष राशि की कन्या से हो रहा हो, तो दोनों के विवाह के लिये 3,9,10 तिथियाँ एक समान होने के कारण शुभ रहेगी.

मई 2023 में निम्न तिथियों में विवाह करना शुभ रहेगा. यहां जन्म राशि से अभिप्राय: चन्द्र स्थित राशि से है. इन विवाह मुहूर्तो में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है.

 

वर(लड़के) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
वृष राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
मिथुन राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
कर्क राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
सिंह राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
कन्या राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
तुला राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
वृश्चिक राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
धनु राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
मकर राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
कुम्भ राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
मीन राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
वधु(लड़की) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
वृष राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
मिथुन राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
कर्क राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
सिंह राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
कन्या राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
तुला राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
वृश्चिक राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
धनु राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
मकर राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
कुम्भ राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
मीन राशि 3, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16, 20, 21, 22, 29, 30
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घर बैठे जानें अप्रैल 2025 माह के शुभ विवाह मुहूर्त

विवाह कार्य एवं अत्यंत ही शुभ व मांगलिक कार्य होता है तो ऎसे में इस कार्य में एक अच्छे शुभ मुहूर्त की तलाश हर किसी के मन में भी रहती है. माता-पिता अपने बच्चों के लिए विवाह मुहूर्त देखना चाहें या फिर लड़के लड़की खुद अपनी शादी के लिए कोई शुभ समय ढूंढ रहे हैं तो यहां आपको मिलेगा अपनी पसंद का शुभ मुहूर्त समय.

अप्रैल माह में ये दिन रहेंगे विवाह के लिए बहुत शुभ. आप अपनी राशि से जान सकते हैं अपने लिए एक अच्छा दिन जो आपके वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने के लिए होगा बहुत ही सहायक.

अप्रैल 2025 में निम्न तिथियों में विवाह करना शुभ रहेगा. यहां जन्म राशि से अभिप्राय: चन्द्र स्थित राशि से है. इन विवाह मुहूर्तो में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है.

 

वर(लड़के) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
वृष राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
मिथुन राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
कर्क राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
सिंह राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
कन्या राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
तुला राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
वृश्चिक राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
धनु राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
मकर राशि  14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
कुम्भ राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
मीन राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
वधु(लड़की) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
वृष राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
मिथुन राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
कर्क राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
सिंह राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
कन्या राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
तुला राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
वृश्चिक राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
धनु राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
मकर राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
कुम्भ राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
मीन राशि 14, 16, 18, 19, 20, 21, 25, 29, 30
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मार्च 2025 ये दिन रहेंगे विवाह के लिए शुभ मुहूर्त समय

विवाह को हर धर्म संप्रदाय में एक अत्यंत ही पवित्र बंधन के रुप में देखा जाता है. यह दो लोगों के जीवन का एक नया अध्याय होता है जिसे दोनों को एक साथ मिलकर लिखना होता है. एक सुखी दांपत्य जीवन की इच्छा हर लड़के-लड़की के मन में रहती ही है. अपने जीवन साथी के साथ जीवन के हर पल को जीने की चाह लिए दो लोग एक साथ इस प्रेम के बंधन में बंधते हैं.

विवाह संस्कार को हिन्दुओं में एक अत्यंत पवित्र एवं शुभ मांगल्य जीवन की आधारशिला के रुप में देखा जाता है. इस संस्कार को करने के लिए एक शुभ मुहूर्त की आवश्यकता भी होती है. शुभ समय पर किए गए कार्यों का परिणाम भी हमें शुभ रुप में ही प्राप्त होता है. इस लिए शादी-विवाह के कार्य को करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करते समय अत्यंत सावधानी और बहुत सी बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक भी होता है.

हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि को जानने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर और कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को शुभ विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह – मीन राशि की कन्या से हो रहा हो, तो दोनों के विवाह के लिये तिथियाँ एक समान होने के कारण शुभ रहेगी.

मार्च 2025 में निम्न तिथियों में विवाह करना शुभ रहेगा. यहां जन्म राशि से अभिप्राय: चन्द्र स्थित राशि से है. इन विवाह मुहूर्तो में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है.

वर(लड़के) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 1,2,6,7,12
वृष राशि 1,2,6,7,12
मिथुन राशि 1,2,6,7,12
कर्क राशि 1,2,6,7,12
सिंह राशि 1,2,6,7,12
कन्या राशि 1,2,6,7,12 
तुला राशि 1,2,6,7,12
वृश्चिक राशि 1,2,6,7,12
धनु राशि 1,2,6,7,12
मकर राशि 1,2,6,7,12
कुम्भ राशि 1,2,6,7,12
मीन राशि 1,2,6,7,12 
वधु(लड़की) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 1,2,6,7,12
वृष राशि 1,2,6,7,12
मिथुन राशि  1,2,6,7,12
कर्क राशि 1,2,6,7,12
सिंह राशि 1,2,6,7,12
कन्या राशि 1,2,6,7,12
तुला राशि 1,2,6,7,12
वृश्चिक राशि 1,2,6,7,12 
धनु राशि 1,2,6,7,12 
मकर राशि 1,2,6,7,12
कुम्भ राशि  1,2,6,7,12
मीन राशि 1,2,6,7,12
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फरवरी 2025 में शादी-विवाह मुहूर्त डेट

आप फरवरी 2025 में शादी के लिए कोई शुभ मुहूर्त खोज रहे हैं तो यहां मिलेंगे फरवरी माह में होने वाले विवाह के सभी शुभ मुहूर्त समय. आप खुद अपनी राशि से जान सकते हैं की फरवरी 2025 में आपके लिए कौन सा दिन रहेगा शादी के लिए सबसे अधिक उपयुक्त.

फरवरी 2025 में निम्न तिथियों में विवाह करना शुभ रहेगा. यहां जन्म राशि से अभिप्राय: चन्द्र स्थित राशि से है. इन विवाह मुहूर्तो में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है.

वर(लड़के) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
वृष राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
मिथुन राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
कर्क राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
सिंह राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
कन्या राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
तुला राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
वृश्चिक राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
धनु राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
मकर राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
कुम्भ राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
मीन राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
वधु(लड़की) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
वृष राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
मिथुन राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
कर्क राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
सिंह राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
कन्या राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
तुला राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
वृश्चिक राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
धनु राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
मकर राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
कुम्भ राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
मीन राशि 2, 3 ,6, 7, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 19, 21, 23, 25
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शुभ विवाह मुहूर्त जनवरी 2025 में इस दिन होगी शादियां

निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह – कर्क राशि की कन्या से हो रहा हो, तो दोनों के विवाह के लिये 16, 17, 18, 19 तिथियाँ एक समान होने के कारण शुभ रहेगी.

जनवरी 2025 में निम्न तिथियों में विवाह करना शुभ रहेगा. यहां जन्म राशि से अभिप्राय: चन्द्र स्थित राशि से है. इन विवाह मुहूर्तो में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है.

वर(लड़के) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
वृष राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
मिथुन राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
कर्क राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
सिंह राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
कन्या राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
तुला राशि  16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
वृश्चिक राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
धनु राशि  16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
मकर राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
कुम्भ राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
मीन राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
वधु(लड़की) की चंद्र राशि विवाह की तारीख
मेष राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
वृष राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
मिथुन राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
कर्क राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
सिंह राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
कन्या राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
तुला राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
वृश्चिक राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
धनु राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
मकर राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
कुम्भ राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27
मीन राशि 16, 17, 18, 19, 20, 21, 23,24, 26, 27

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विवाह मुहूर्त 2025 : इन दिनों में भूलकर भी न करें मांगलिक कार्य

विवाह के लिए शुभ समय और शुभ मुहूर्त को बहुत ध्यान के साथ करना चाहिए. विवाह मुहूर्त के लिए कई बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है और बेहतर रुप से ज्योतिष गणना के द्वारा मुहूर्त शास्त्र एवं विवाह के लिए मुहूर्त निकालने की पद्धति को अपनाकर एक शुभ और योग्य समय का चयन किया जा सकता है. विवाह के लिए शुभ समय जानने के लिए जहां वर और कन्या की जन्म कुण्डली को देखा जाता है, वहीं उसके साथ शुभ दिन माह और योग इत्यादि भी देखने आवश्यक होते हैं. 

विवाह के मुहूर्त में मुख्य रुप से दस दोषों का विचार किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. इन दस दोषों में लता, पात, युति, वेध, जामित्र, पंचबाण, एकार्गल, उपग्रह, क्रान्ति साम्य और दग्धातिथि का ध्यान रखा जाता है. इन दस दोषों में से वेध, मृत्युबाण ओर क्रांतिसाम्य नाम के तीन दोष को पूर्ण रुप से ही त्यागा जाता है. शेष बचे हुए सात दोषों में से अगर चार दोष बच भी जाते हैं तो विवाह मुहूर्त में लग्न शुद्धि से वह नष्ट हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त भी कुछ मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. विवाह लग्न मुहूर्त ज्ञात करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक माना गया है. जैसे – गुरु, शुक्र का अस्तांगत होना, चन्द्र अथवा सूर्य ग्रहण, पितृपक्ष, भीष्म पंचक आदि समय में विवाह करना शास्त्र संगत नहीं माना जाता है. 

वर-वधू के वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने के लिये विवाह (शादी) की तिथि ज्ञात करने के लिये सर्वश्रेष्ठ शुभ तिथि का उपयोग किया जाता है. शुभ विवाह की तिथि जानने हेतु वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. विवाह मुहूर्त के चयन में अनेक बातों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक होता है तभी विवाह में शुभता बनी रहती है, जैसे वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये प्रयोग किया जाता है. विवाह की तिथि सदैव वर-वधू की कुण्डली में गुण-मिलान करने के बाद निकाली जाती है क्योंकि विवाह की तिथि तय होने के बाद, कुण्डलियों की मिलान प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए. 

निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. वर और कन्या की कुण्डलियों का मिलान कर लेने के पश्चात उनकी राशियों में जो-जो तारीखें समान होती हैं उन तारीखों में वर और कन्या का विवाह शुभ व ग्राह्य माना जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह कर्क राशि की कन्या से हो रहा हो तो दोनों के विवाह के लिये यदि तिथियाँ एक समान हों तो शुभ रहेंगी. 

विवाह मुहूर्तों में त्रिबल शुद्धि

विवाह मुहूर्तों में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है. सूर्य व गुरू स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री हों तो उन्हें शुभ और ग्राह्य मान लिया जाता है. विवाह समय में अशुभ ग्रहों का यथाशक्ति दान व पूजन करवा लेना चाहिए ऎसा करने से वैवाहिक जीवन में शुभता बनी रहती है तथा मांगल्ये की प्राप्ति होती है. इन विवाह मुहूर्तों में सभी दोषो की गणना भी की गई है. जिन मुहूर्तों में गुरु की केन्द्र त्रिकोण में स्थिति है अथवा गुरु की शुभ दृष्टि भी पड़ रही है उनका परिहार हो जाता है जिससे उन मुहूर्तों को विवाह मुहूर्त में शामिल कर लिया जाता है. वर्ष 2025 में 

विवाह के लिए वर्जित न्समय | Time period prohibited to marry in 2025

गुरु के अस्त और उदय होने का समय (अस्तोदय) | Jupiter Astudaya (set and rise)

10 जून 2025 को गुरु अस्त होंगे और 06 जुलाई 2025 को पूर्व में उदय होगा. गुरु के अस्त और उदय होने का समय ये समय विवाह के अनुकूल नहीं माना जाता है. 

गुरु वार्धक्य तथा बालत्व | Guru Vardhakya and Balatva

गुरु वार्धक्य दोष होगा. वार्धक्य का अर्थ है गुरु के अस्त होने से पहले की स्थिति है जिसे अच्छा नहीं माना जाता है. गुरु बाल्यावस्था यह गुरु के उदय होने के ठीक बाद वाली स्थिति होती है जिसे विवाह आदि के नजरिये से शुभ नहीं माना गया है.

शुक्र के अस्त और उदय होने का समय (अस्तोदय) | Venus Astudaya (set and rise)

शुक्र 12 दिसंबर 2025 को अस्त होंगे ओर इसके बाद 31 जनवरी 2026 को पूर्व में उदय होगा. शुक्र विवाह का कारक ग्रह होता है इसलिए इसके अस्त होने की स्थिति में विवाह नहीं किया जाता है. 

शुक्र वार्धक्य व बालत्व | Venus vardhakya and Balatva

शुक्र वार्धक्य का अर्थ शुक्र के अस्त होने से पहले की स्थिति है जो शुभ नहीं मानी जाती है. शुक्र बाल्यत्व अर्थात शुक्र बाल्य अवस्था में रहेंगे और इस अवस्था को भी विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है.

श्राद्ध पक्ष | Shraddha Paksha

वर्ष 2025 में 07 सितंबर से 21 सितंबर 2025 तक श्राद्ध रहेंगे और इस समय विवाह निषेद्ध माना गया है.

होलाष्टक | Holashtak

07 मार्च से 13 मार्च 2025 की अवधि के दौरान होलाष्टक है.

भीष्म पंचक | Bhishma Panchaka

वर्ष 2025 में 01 नवंबर से 05 नवंबर भीष्म पंचक रहेंगे जिसमें विवाह करना वर्जित होता है.

चातुर्मास का विचार | Chaturmas ka Vichar

उत्तर भारत के बहुत से भागों में चातुर्मास्यादि में विवाह करना वर्जित माना जाता है. आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक माह की पूर्णिमा तक विवाह नहीं किए जाते हैं.

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कुण्डली में बने ये योग तो होती है लव मैरिज

प्रेम संबंधों को लेकर युवाओं के मन में बहुत सी कल्पनाएं जन्म लेती रहती है. उम्र के इस पड़ाव पर जब व्यक्ति अपने साथी की तलाश में होता है तो उसका मन किन बातों से प्रभावित होगा यह कहना आसान नहीं होता है. पर वहीं ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे योगों के विषय में बताया गया है जिनका निर्माण जातक को प्रेम विवाह देने वाला होता है.

ग्रहों की स्थिति और दशाओं के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम संबंधों की ओर झुकाव पाता है और यही संबंध आगे जाकर विवाह के बंधन में भी बंधते हैं. ऐसे में मन में विचार आता है की ऐसे कौन से योग होते हैं जो व्यक्ति को प्रेम संबंधों की ओर ले जाते हैं ओर उन्हें विवाह बंधन में भी बांध देते हैं.

लव मैरिज के कुछ योग

जन्म कुण्डली में पंचम, सप्तम और नवम का संबंध होना प्रेम संबंधों की प्रबल स्थिति को दर्शाने वाला होता है. इस इसी के साथ यदि लग्न का संबंध पंचम से बने. पंचमेश और सप्तमेश का संबंध किसी भी रुप में बन रहा हो तो भी स्थिति प्रभावित करती है. शुक्र और मंगल की युति शुक्र की राशि में होने पर साथ ही लग्न त्रिकोण का संबंध प्रेम संबंधों को दर्शाने वाला होता है. पंचम व सप्तम भाव मे शुक्र सप्तमेश या पंचमेश के साथ संबंध बना रह हो उनके साथ युति में तो लव मैरिज के योग बनते हैं.

2 – यदि जातक की कुण्डली में लग्न अर्थात प्रथम भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव एवं नवम भाव अथवा इनके स्वामियों का संबंध शुक्र व चंद्रमा के साथ बन रहा हो तो प्रेम विवाह की संभावना दिखाई देती है. इसके साथ ही लग्न-लग्नेश, पंचम-पंचमेश, का एक दूसरे से संपर्क होना प्रेम विवाह की संभावना को दर्शाने वाला होता है.

3 – कुण्डली में अगर सप्तमेश लग्नेश से कमजोर हो अथवा यदि सप्तमेश अस्त हो अथवा मित्र राशि में हों या नवांश में नीच राशि में हो तो जातक का विवाह अपने से निम्न कुल में होता है. इसमें विपरित लग्नेश से सप्तमेश बली हो, शुभ नवांश में हो तो जीवनसाथी उच्च कुल का होता है. प्रेम संबंध को लेकर भी विवाह की संभावना होती है.

4 – लव मेरिज के योग में पंचमेश और सप्तमेश भाव में हों अथवा लग्नेश और पंचमेश-सप्तमेश अस्त हो अथवा यदि मित्र राशि में हों या नवांश में नीच राशि हो तो जातक का विवाह अपने से निम्न कुल में होता है. इसमें विपरीत लग्नेश से सप्तमेश बली हो शुभ नवांश में हो तो जीवन साथी उच्च कुल का होता है.

5 – पंचमेश सप्तम भाव में हो तथा लग्नेश और पंचमेश सप्तम भाव के स्वामी के साथ लग्न में स्थित हो. सप्तमेश पंचम भाव में हो और लग्न से संबंध बना रहा हो तो भी प्रेम संबंध की स्थिति दिखाई देती है और विवाह की संभावनाएं दिखाई देती है. सप्तमेश लग्न में और लग्नेश सप्तम में हो साथ ही पंचम भाव के स्वामी से दृष्टि संबंध हो तो भी प्रेम संबंध का योग बनता है.

6 – पंचम में मंगल भी प्रेम विवाह करवाता है. यदि राहु पंचम या सप्तम में हो तो प्रेम विवाह की संभावना दर्शाता है. वहीं प्रेम विवाह की संभावना होती है ऎसे में विवाह संभावना दिखाई देती हैं. सप्तम भाव में यदि मेष राशि में मंगल हो तो प्रेम विवाह होता है सप्तमेश और पंचमेश एक दूसरे के नक्षत्र पर हों तो भी प्रेम विवाह का योग दिखाई देता है.

7 – पंचमेश और सप्तमेश कहीं भी किसी भी तरह से द्वादशेश से संबंध बनाएं, लग्नेश या सप्तमेश का आपस में स्थान परिवर्तन अथवा आपस में युक्त होना दृष्टि संबंध भी प्रेम विवाह को दर्शाता है ऐसे में लव मैरिज की स्थिति भी दिखाई देती है.

8 – सप्तमेश स्वगृही हो एकादश स्थान पाप ग्रहों के प्रभाव से यदि मुक्त हो शुभत्व की प्राप्ती हो उसे, शुक्र का संबंध लग्न में लग्नेश के साथ ही हो उक्त स्थिति लव मैरिज की स्थिति को भी दर्शाती है.

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अगर आपकी कुंडली में भी है कालसर्प योग तो जानें इसका फल

जन्म कुण्डली में राहु-केतु से निर्मित होने वाला योग है. राहु को कालसर्प का मुख माना गया है. अगर राहु के साथ कोई भी ग्रह उसी राशि और नक्षत्र में शामिल हो तो वह ग्रह कालसर्प योग के मुख में ही स्थित माना जाता है. वहीं यदि कोई ग्रह राहु की राशि में स्थित हो लेकिन राहु के नक्षत्र से अन्य किसी नक्षत्र में स्थित हो तो वह ग्रह कालसर्प के मुख में होकर भी कैसा फल देगा इस बात का निर्धारण करने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है.

  • पहले इस बात को समझने की जरूरत है की कालसर्प का मुख कुण्डली के किस भाव में स्थित है.
  • दूसरा यह की कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह का कारकत्व क्या है.
  • कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह क्या अन्य भावों का भी अधिपति है.
  • इन मुख्य बातों पर विचार करने के उपरान्त ही अन्य चीजों का निर्धारण आरंभ होता है. जन्म कुण्डली में राहु के साथ अशुभ ग्रह की स्थिति कालसर्प के मुख में विष उत्पन्न करने वाली होती है. ऐसे कालसर्प का मुख अर्थात राहु जिस भाव में स्थित होता है. इसके साथ ही संबंधित भाव के मिलने वाले फलों में भी उसे परेशानी ही प्राप्त होती है.

    अगर कालसर्प के मुख में शुभ ग्रह स्थित हो तो यह कालसर्प अशुभ प्रभाव नहीं देता है और वह जिस भाव में स्थित हो उससे संबंधित बुरे फल भी नहीं मिलते.

    विभिन्न ग्रहों का कालसर्प मुख का प्रभाव

    सूर्य का प्रभाव

    सूर्य का कालसर्प के मुख में स्थित होना तथा लग्न भाव, द्वितीय भाव, तृतीय भाव, दशम भाव या द्वादश भाव में होना. साथ ही शुभ राशि ओर शुभ प्रभाव में होना अनुकूल माना जा सकता है. इसमें राज्य की ओर से व्यक्ति को पद प्राप्ती हो सकती है. प्रतिष्ठा प्राप्त होती है सामाजिक स्तर पर वह सक्रिय रह कर सम्मानित होता है. व्यक्ति अन्याय के खिलाफ विरोध करने वाला होता है. लेकिन यदि यह युति अशुभ राशि एवं अन्य किसी पाप ग्रह के प्रभाव में बन रही हो तो संघर्ष में भी प्रयासरत ही रहता है.

    भटकाव भी जीवन में बहुत होता है. कुंडली में यह युति अगर दूसरे भाव, चौथे भाव अथवा सातवें भाव में हो रही हो तो जीवन में पारिवारिक एवं दांपत्य सुख में कमी करने वाला होता है. व्यक्ति में अभिमान एवं स्वार्थ की भावना अधिक होती है. वाणी में कठोरता का भाव होता सत्यता की कमी होती है.

    चंद्रमा का प्रभाव

    यदि कालसर्प के मुख में चंद्रमा स्थित हो तो जातक को परिपक्व और बेहतर विचारधारा वाला बनाता है. व्यक्ति धैर्य के साथ परेशानियों का सामना करता है. समाज के हित में भी बेहतर कार्यों को करता है. साथ ही साथ सामाजिक रुप से भी व्यक्ति सक्रिय रहते हुए काम करता है. चंद्र अशुभ प्रभाव के कारण जातक को जीवन में संघर्ष की स्थिति भी प्रभावित होगी. जीवन में बाल्यावस्था समय जातक परेशानियों में रहेगा. असफलताएं आपको मानसिक रुप से अशांति प्राप्त हो सकती है.

    मंगल का प्रभाव

    मंगल का कालसर्प के मुंह में होना व्यक्ति को पराक्रमी बनाने वाला होता है. जातक पराक्रमी होता है. व्यक्ति को भाई बहनों का साथ ही संपूर्ण साथ मिलेगा. इस के साथ जीवन को असफलताएं का प्रभाव घेरे रह सकता है. इनके जीवन में बाल्यावस्था से कष्ट मिलता है. चोट का भय रहता है, हिंसक एवं असंतुष्ट रहता है. व्यभिचार का प्रभाव आपको प्रभाव में जल्द ही घेरे रह सकता है. वाद विवाद में व्यक्ति को परेशानियां रहती है. संबंध अधिक रहते हैं.

    बुध का प्रभाव

    कालसर्प के मुख में बुध हो तथा शुभ स्थिति से प्रभावित होने पर व्यक्ति पर में ग्रहण की स्थिति बहुत अच्छे होती है. जल्द ही चीजों को अपने अनुरूप ढालने वाला होता है. किसी भी विषयों को ग्रहण करने के लिए इनमें बेहतर योग्यता होती है. व्यवहार कुशल होते हैं. काम निकलवाने में भी दक्ष होते हैं.

    अगर बुध कालसर्प के मुख में अशुभ प्रभाव में होने पर जातक में भ्रम की स्थिति अधिक होती है. किसी भी चीज को समझने में एकाग्रता की कमी भी परेशान करती है. बौद्धिकता पर असर पड़ता है. उचित निर्णयों को लेना कठिन ही होता है. स्मरणशक्ति भी कमजोर ही होती है. व्यवसाय के क्षेत्र में व्यक्ति को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.हिस्टीरिया जैसे रोग का प्रभाव भी व्यक्ति को प्रभावित करता है.

    बृहस्पति का प्रभाव

    बृहस्पति यदि कुंडली में कालसर्प के मुख में स्थित हो तो शुभस्थ होता है. जातक को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. बुद्धिमता तीक्षण होती है. वैसे तो राहु और गुरु का संबंध गुरु चंडाल योग का निर्माण करने वाला होता है. इस कारण से इस योग को अच्छा नहीं माना जाता है. लेकिन बेहतर शुभस्थिति में होने पर यह योग व्यक्ति को प्रगति भी देता है.

    अशुभ स्थिति प्रभाव के चलते व्यक्ति धर्म विरोधी बनता है. अनैतिक कार्यों के प्रति उसका आकर्षण अधिक रहता है. रुढियों से हटकर काम करता है. उसका ज्ञान भी प्रभावित होता है. इसलिए अपने बूजुर्गों की सलाह अवश्य लेनी चाहिए तथा पाप कर्म से मुक्त रहना ही आपको सकारात्मकता दे सकता है.

    शुक्र का प्रभाव

    शुक्र की स्थिति मुख में होने पर शुभस्थ स्थिति हो तो यह भौतिक सुखों की प्राप्ति कराने वाला होता है. व्यक्ति को जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. विवाह अचानक से होता है तथा विवाह आपके लिए सुख एवं समृद्धि लाने वाला होता है.

    पर यदि यह प्रभावित हो पाप से तो व्यक्ति का सुख बाधित होता है. मनोकूल वैभव एवं भौतिक सुखों में कमी आती है. आर्थिक कष्ट रहत हैं. विवाह का सुख भी प्रभावित होता है. जातक पथभ्रष्ट भी हो सकता है.

    शनि का प्रभाव

    कालसर्प के मुख में शनि के होने पर जातक व्यवहारिक अधिक होता है. उसमें परिपक्कता एवं प्रौढ़ता होती है. गुढ़ विषयों पर पकड़ अच्छी होती है. व्यक्ति में दूरदर्शिता का भाव भी अच्छा होता है. वह संस्था को चलाने में सक्षम होता है. आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है.

    अशुभ प्रभाव में होने पर स्थिति विपरीत होती है. कार्यक्षेत्र में बाधाओं का एवं शत्रुओं का सामना अधिक होता है. व्यक्ति का स्वभाव भी कठोर होता है. कर्ज की स्थिति बहुत रहती है. धार्मिक क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ होता है.

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    कैसे और कब बनता है यमघंटक योग : एक अशुभ योग

    कुछ अशुभ योगों की गिनती में यमघंटक योग का नाम भी आता है. यह वह योग है जो अच्छे कार्यों में त्याज्य होता है. इस योग में व्यक्ति के किए गए शुभ कार्यों में असफलता की संभावना बढ़ जाती है. ज्योतिष में इन्हीं कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा जाता है. इन योग में यमघंटक का नाम भी प्रमुख रुप से आता है.

    इस योग में शुभ एवं मांगलिक कामों को न करने की बात कही गई है. मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने गए इन योगों का निर्धारण करने के कुछ नियम बताए हैं जहां पर इन के होने की स्थिति को बताया गया है. अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना चाहिए. यात्रा, बच्चों के लिए किए जाने वाले शुभ कार्य तथा संतान के जन्म समय में भी इस योग का विचार किया जाता है.

    वसिष्ठ ऋषि द्वारा दिवसकाल में यदि यमघंटक नामक दुष्ट योग हो तो मृत्युतुल्य कष्ट हो सकता है, परंतु साथ ही रात्रिकाल में इसका फल इतना अशुभ नहीं माना जाता.

    यमघंटक योग के नियम

  • रविवार के दिन जब मघा नक्षत्र का संयोग बनता है तो यमघंटक योग का निर्माण होता है जो कि अच्छा नहीं होता है.
  • सोमवार का दिन हो और उस दिन विशाखा नक्षत्र होने पर इस योग से यमघंटक योग का निर्माण होता है.
  • मंगलवार के दिन आर्द्रा नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग की स्थिति उत्पन्न होती है.
  • बुधवार के दिन जब मूल नक्षत्र का संयोग होने पर इस योग का निर्माण माना जाता है.
  • बृहस्पतिवार के दिन यदि कृतिका नक्षत्र का मिलान हो जाने पर यमघंटक नक्षत्र बनता है.
  • शुक्रवार के दिन अगर रोहिणी नक्षत्र का उदय होता है तो यह भी यमघंटक की स्थिति होती है.
  • शनिवार के दिन अगर हस्त नक्षत्र की स्थिति बनती है तो यह स्थिति भी इसी योग का निर्माण करती है.
  • किसी भी कार्य को करने हेतु एक अच्छे समय की आवश्यकता होती है. हर शुभ समय का आधार तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है. शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्राकाल से बचना चाहिये. चर, स्थिर लग्नों का ध्यान रखना चाहिए. जिस कार्य के लिए जो समय निर्धारित किया गया है यदि उस समय पर उक्त कार्य किया जाए तो मुहूर्त्त के अनुरूप कार्य सफलता को प्राप्त करता है.

    योगों में जीवन का सारांश छुपा होता है जिसे पढ़कर व्यक्ति भूत, भविष्य और वर्तमान के संदर्भ में अनेक बातों को जान सकता है. ज्योतिष में अनेक योगों का निर्माण होता है कुछ शुभ योग होते हैं और कुछ अशुभ योग होते हैं, कौन सा योग किस प्रकार के फल देगा इस बात को तभी समझा जा सकता है जब हम उसके नियमों को समझ सकें.

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